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केन्द्रीय विद्यालय लखनपुर Kendriya Vidyalaya Lakhanpur दरू भाष:-01922-285123
अक्षरा
राजभाषा पविका सि: 2021-2022
प्राचार्य की कलम से ......... अत्र्ंत हर्य का विर्र् है कक इस िर्य 2021-2022 में केंद्रीर् विद्यालर् लखनपुर अपनी राजभार्ा पविका ‘अक्षरा’ का प्रकाशन करने जा रहा है जजसमें विद्यालर् के विद्यार्थयर्ों एिं अध्र्ापकों की किर्ात्मक अर्भरुर्च तथा अर्भव्र्वि को सामने लार्ा जा रहा है | राजभार्ा पविका बच्चों को कहं दी भार्ा में अपनी किर्ात्मक लेखन क्षमता तथा अपने विचारों को व्र्ि करने का एक सशि एिं प्रभािी माध्र्म है |इसके द्वारा बच्चों की प्रर्तभा तथा कार्य-कौशल को उनके अर्भभािकों तथा समाज तक पहुुँचार्ा जा सकता है |बच्चे अपने विचारों तथा कल्पना को कहानी ,कविता ,लेख आकद के माध्र्म से व्र्ि करते हैं जजससे उनमें लेखन अर्भरुर्च के साथ-साथ स्िस्थ प्रर्तस्पर्ाय का भी विकास होता है | र्ह मेरा पूर्य विश्वास है कक बच्चों एिं अध्र्ापकों का र्ह प्रर्ास आपको अिश्र् प्रभावित करे गा| मैं केंद्रीर् विद्यालर् संगठन,जम्मू संभाग के माननीर् उपार्ुि डॉ. डी. मंजन ु ाथ एिं सहार्क आर्ुि श्री गोविन्द र्संह मेहता के प्रर्त उनके सहर्ोग एिं उत्साहिर्यन के र्लए कृ तज्ञता व्र्ि करता हूुँ | मैं विद्यालर् के विद्यार्थयर्ों तथा संपादकीर् मंडल के सभी सदस्र्ों को उनके सराहनीर् प्रर्ास के र्लए बर्ाई तथा र्न्र्िाद दे ता हूुँ | (डी. आर. पटे ल ) प्राचार्य केंद्रीर् विद्यालर् लखनपुर
संपादक मंडल
मुख्र् संपादक
श्रीमती सुखविंदर कौर प्र.स्ना.र्शक्षक (कहं दी) श्री लालचंद प्र.स्ना.र्शक्षक (अंग्रेज़ी)
श्रीमती ररम्पी
संपादन सहार्क
स्नाकोत्तर र्शक्षक (कहं दी) श्री र्नशांत र्संह वबल्लोररर्ा स्नाकोत्तर र्शक्षक (कंप्र्ूटर साइं स)
संपादकीय भार्ा केिल अर्भव्र्वि का माध्र्म ही नहीं,अवपतु ककसी राष्ट्र की संस्कृ र्त की संिाकहका भी होती है |अत: राजभार्ा कहं दी का विकास करना हम सभी का परम कत्तयव्र् है |राजभार्ा पविकाओं के प्रकाशन से राजभार्ा के उत्तरोत्तर विकास में महत्त्िपूर्य र्ोगदान र्मलता है |इससे एक ओर जहाुँ विद्यार्थयर्ों ि कमयचाररर्ों को अपनी लेखन प्रर्तभा उजागर करने के र्लए सशि मंच र्मलता है िहीं दस ू री ओर र्े पविका विद्यालर् के विर्भन्न कार्यकलापों एिं जीिन के विर्भन्न पक्षों को उजागर कर सभी को नई-नई सूचनाओं से लाभाजन्ित करती है | हमारे विद्यालर् की राजभार्ा पविका ‘अक्षरा’ का प्रथम अंक आपके समक्ष प्रस्तुत है |इस पविका के माध्र्म से हमारा प्रर्ास है कक कहं दी का अर्र्कार्र्क प्रचार-प्रसार हो सके |इसी िम में अध्र्ापकों ि विद्यार्थयर्ों ने अपने लेखों ,कविताओं और कहानी के माध्र्म से अपनी सृजनशीलता का पररचर् कदर्ा है ,जजससे िे स्िर्ं प्रेररत तो हुए ही हैं ,अन्र् लोगों को भी प्रोत्साकहत ककर्ा है | इस अंक के प्रकाशन को सफल बनाने के र्लए सभी विद्यार्थयर्ों,अध्र्ापकों एिं अर्र्काररर्ों का कहं दी विभाग की ओर से बहुत-बहुत आभार |
सुखविंदर कौर
प्रशिक्षक्षत स्नातक शिक्षक केंरीय विद्यालय लखनपुर
ज्ञान हे ईश्वर! दे ज्ञान की ज्र्ोर्त, अज्ञानता का नाश हो | प्रगर्त पथ पर बढ़ते जाएुँ, ज्ञान रूपी दीपक से रोशन जग को करते जाएुँ | तम का विनाश हो, हे ईश्वर! दे ज्ञान की ज्र्ोर्त | जगत जननी इस िसुर्ा को फूलों-सा महकाएुँ हम, राह से भटके जनमानस को सही राह कदखाएुँ हम | मागय में आएुँ लाख बार्ाएुँ खुद पर अटल विश्वास हो, हे ईश्वर! दे ज्ञान की ज्र्ोर्त | ज्ञान से विज्ञान उपजे, चहुुँ ओर हर्य और उल्लास हो | सत्र् अकहं सा हों आदशय हमारे , न कक भोग-विलास हो | हे ईश्वर! दे ज्ञान की ज्र्ोर्त, अज्ञानता का नाश हो |
सुखविंदर कौर प्र. स्ना. शिक्षक (ह ं दी)
बेहियााँ माुँ की प्र्ारी, पापा की दल ु ारी होती हैं बेकटर्ाुँ, घर को जगमगाती, रोशन करती हैं बेकटर्ाुँ ।
भाई का माुँ की तरह ख्र्ाल रखती हैं बेकटर्ाुँ, हर सुख- दख ु में साथ र्नभाती हैं बेकटर्ाुँ । सभी के कदल पर राज़ करती हैं बेकटर्ाुँ,
इसर्लए तो घर की परी होती हैं बेकटर्ाुँ । माता- वपता के मन की फुलिारी होती हैं बेकटर्ाुँ, दर्ु नर्ा के ज़ुल्मों से टकराकर दे श उन्नर्त में भागीदार होती हैं बेकटर्ाुँ । बेकटर्ाुँ िो ताकत है जो छोटे -से घर को महल बना दें , उजड़े हुए बाग में कफर से बहार ला दें ,
पररिारजनों के र्लए एहसास हैं बेकटर्ाुँ । जखलौने गुकड़र्ाुँ नहीं माुँगती बेकटर्ाुँ, पापा जल्दी आना फरमाइश करती हैं बेकटर्ाुँ । जज़न्दगी का अर्भमान होती हैं बेकटर्ाुँ, घरोंदों की सजािट होती हैं बेकटर्ाुँ । संस्कारों का पररं दा हैं र्े, हे मानि! दो खुला आसमान इन्हें , ऊुँची होगी उड़ान इनकी, उड़ने का भी चाि है इन्हें , क्र्ोंकक मानि में मानिता भरती हैं बेकटर्ाुँ । दे श को िीर सैर्नक, डॉक्टर, इं जीर्नर्र, र्शक्षक, िैज्ञार्नक दे ती हैं बेकटर्ाुँ । अगर आज बेकटर्ों को न अपनाओगे, तो जीिन की हर जंग में मुुँह की खाओगे । बेकटर्ों का करो सम्मान, भारत दे श बनेगा महान...
आकांक्षा गुप्ता प्राथशमक शिक्षक्षका
तू ! पग शनरं तर बढ़ता चल दृवि रख र्नज ध्र्ेर् पर, तू ! पग र्नरं तर बढ़ता चल, बार्ाएुँ र्मलेंगी राह में, तू चररत अपना गढ़ता चल, तू ! पग र्नरं तर बढ़ता चल || जब ध्र्ेर् भटकेगा तेरा, इसे ना भटकने दे ना तू, मोह पाश में जब भी फंसे, पैर अटकने न दे ना तू, जीत तो र्मलकर रहे गी, पर प्राप्त करना ना है सरल || दृवि रख र्नज ध्र्ेर् पर, तू ! पग र्नरं तर बढ़ता चल, पग र्नरं तर बढ़ता चल || 1 || सीख, गुरु- वपतु – मात से, जो भी र्मली उन्हें लेना साथ,
श्रद्धा र्कद है र्नज ध्र्ेर् पर तो, रहे गा सर पर सबका हाथ, जब भी र्गरोगे राह में, आशीर् इनका करता सबल || दृवि रख र्नज ध्र्ेर् पर, तू ! पग र्नरं तर बढ़ता चल, पग र्नरं तर बढ़ता चल || 2 || जीत छोटी र्ा हो बड़ी, अर्भमान मत तू पालना, लोकेर्र्ा र्मले ककतनी ही, तू इसे बस टालना | भाि जागा जब अहम का, मनुज हुआ तब - तब विफल || दृवि रख र्नज ध्र्ेर् पर,
तू ! पग र्नरं तर बढ़ता चल, पग र्नरं तर बढ़ता चल || 3 || र्नज ध्र्ेर् भले कुछ भी हो,पर िसुर्ा का कल्र्ार् हो, सोच ऐसी र्लए मन में, कक उत्तम मनुज र्नमायर् हो | ऐसे मनुज ही इस र्रा पर, करते अपना जीिन सफल || दृवि रख र्नज ध्र्ेर् पर, तू ! पग र्नरं तर बढ़ता चल, पग र्नरं तर बढ़ता चल || 4 || जनादद न ध्यानी प्र.स्ना.शिक्षक (गक्षित) केंरीय विद्यालय लखनपुर
मेरी ह ं दी भाषा
जन जन की भाषा ै ह ं दी, भारत की आिा ै ह ं दी, क्षजसने पूरे दे ि को जोडे रखा ै , िो मज़बूत धागा ै ह ं दी | ह ं दस् ु तान की गौरिगाथा ै ह ं दी, क्षजसके वबना ह ं द थम जाए, ऐसी जीिन रे खा ै ह ं दी, क्षजसने काल को जीत शलया ै , ऐसी अमर भाषा ै ह ं दी | सरल िब्दों में क ा जाए तो, जीिन की पररभाषा ै ह ं दी |
ने ा ग्यार िीं
कंप्यूिर कंप्र्ूटर मानि द्वारा ककर्ा गर्ा सबसे महत्िपूर्य और बेहतरीन आविष्कार है l कंप्र्ूटर मानि के जीिन जीने का नज़ररर्ा है l आज कंप्र्ूटर की सहार्ता से ककसी भी प्रकार की जानकारी ली जा सकती है l इसकी गर्ना करने की तेज़ी ने मानि को भी तेज़ रफ़्तार बना कदर्ा है l कंप्र्ूटर का आविष्कार सियप्रथम चाल्सय बैबेज ने ककर्ा थाl इसके बाद इसमें र्नरं तर पररितयन होते रहे और आज र्ह दर्ु नर्ा में पररितयन ला रहा है l ितयमान में कंप्र्ूटर पर दे श दर्ु नर्ा की सभी जानकाररर्ाुँ उपलब्र् हैं l इसका उपर्ोग सभी कार्ायलर्ों, बैंकों, अस्पतालों, स्कूलों और शोर् के र्लए िैज्ञार्नकों द्वारा भी ककर्ा जाता है l इसके उपर्ोग के कारर् आज हमें मौसम की सही जानकारी र्मल जाती है l साथ ही कंप्र्ूटर ने र्शक्षा और व्र्ापार को भी आसान बना कदर्ा है l र्चककत्सा के क्षेि तो िांर्तकारी बदलाि आए हैं l र्चककत्सकों द्वारा बीमाररर्ों के इलाज के र्लए दिाइर्ाुँ बनाना आसान हो गर्ा है l कंप्र्ूटर का उपर्ोग ऑनलाइन जानकारी का आदान - प्रदान करने में कर सकते हैं l िैज्ञार्नकों ने इसकी सहार्ता से कई उपलजब्र्र्ाुँ प्राप्त की हैं l उन्होंने अन्तररक्ष की जानकारी कंप्र्ूटर के माध्र्म से ही प्राप्त की है l कंप्र्ूटर एक बहुत उपर्ोगी र्न्ि है l कंप्र्ूटर मानि जीिन का अर्भन्न अंग बन गर्ा है l इसके अनेक फार्दे हैं तो कुछ नुकसान भी हैं l हमें इसका उपर्ोग सािर्ानीपूिक य करना चाकहएl हमें र्ह हमेशा ध्र्ान रखना चाकहए कक कंप्र्ूटर अगर मानि जीिन को सुलभ बना सकता है तो र्ह उसे दल य भी बना सकता है l ु भ र्श िर्यन पटे ल कक्षा – 6 ‘ब’
ऐसा अिसर दे मुझे
हे भारत माता ऐसा अिसर दे मुझे । कुरबान करूुँ अपनी जान तुझे ।। तुझे मैं अपना नमन करूुँ । दश्ु मनों को पराजजत कर,पूरे जहान में अमन करूुँ।। दश्ु मनों को छलनी करके । तेरा ऊुँचा नाम करूुँ ।। हे भारत माता ऐसा अिसर दे मुझे । कुरबान करूुँ अपनी जान तुझे ।।
ध्रुविका आठिीं ‘ए’
अकेले लोगों की कौम गहरी सोच और समझदार होने के साथ- साथ, ककतने अकेले होते हैं न िो लोग, जो लाइब्रेरी, ककताबों, ग़ज़लों, नग्मों, जैसी र्नष्प्रार् चीज़ों को ही अपना घर बना लेते हैं । और पते की बात र्ह कक, इनकी अर्र्कतम तस्िीरों का कफल्टर होता है "ब्लैक एंड िाइट"! काला रं ग अपना-सा लगता है । बचपन में शार्द कोई कविता र्ा लेख पढ़ लेते हैं हम लोग। कफर र्लखना एक शौक बन जाता है , और जब तक "र्चल्लाने और "आिाज़ उठाने" का फ़कय समझ आता है , तब तक चुप रहकर र्लखना हमारी रोज़ की आदत बन जाती है । ऐसा लगता है आम लोग समर् के पीछे भाग रहे हैं और हम, "अकेले लोगों की कौम" के र्लए घड़ी का कांटा रुक जाता है , जज़न्दगी जस्थर हो जाती है और हम भटके मुसाकफ़र की भाुँर्त जज़्बातों की गठड़ी उठाकर चल पड़ते हैं बदलाि के स्टे शन की खोज में और घड़ी-घड़ी घूुँट भरते रहते हैं चार्/कॉफी का,जो हमारी एक अहम ख़ुराक है । सुबह की ग़ज़ल और शाम की शार्री में र्ही तो जान डालती है । मैं पल दो पल का शार्र हूुँ पल दो पल मेरी कहानी है पल दो पल मेरी हस्ती है
पल दो पल मेरी जिानी है ! शार्द, हर र्लखने-पढ़ने िाले की र्ह लाख पसंदीदा ग़ज़लों में से एक होगी। ऐसी ग़ज़ल जजसे सुनते-सुनते चार्/कॉफी का प्र्ाला हाथ में र्लए हम अत्र्र्र्क सोच में डू ब जाते हैं और िो बनता है हमारे अगले लेख का विर्र्। ककशोरािस्था में आते-आते र्लखना कब शौक से आदत बन रहा है , इससे अंजान, मैं हूुँ एक बांिरी-सी लड़की!
जजसे स्िर्ं पता नहीं कक िह क्र्ा महसूस करती है । आज शाम का दृश्र् कुछ ऐसा था कक, बाहर आसमान में काले बादल छा गए, ज्र्ों मुझे र्ाद कदला रहे हों कक आज मैं कुछ र्लखना भूल गई हूुँ! मैंने जखड़की खोली और दौड़ी कॉफी बनाने, इससे पहले मौसम मेरे मूड की तरह झपक से बदल जाता। घर खाली था, और अंदर
से मैं भी। बाहर काले बादल और वबजली, हल्की मुस्कान मेरे चेहरे पर, हाथ में कॉफी, और र्हीं मेरी जज़न्दगी जस्थर हो गई! मैंने अपनी कल्पनाओं के गाुँि में इतनी तरक्की कर ली थी कक िह अब शहर बन रहा था और मैं उसकी सुन्दरता में पूरी तरह डू बी हुई थी। तभी माुँ की बाहर से र्चल्लाने की आिाज़ आई, "तार से कपड़े
क्र्ों नहीं उतारे ? बाररश हो रही है , सब भीग गए। हे भगिान! क्र्ा होगा इस घर का मेरे वबना!" पापा ने जखड़की बन्द की और मैं माुँ से जज़द करने लगी कक कल लाइब्रेरी जाना है तो जाना है ! पापा हुँ सते हुए बोले,"लड़की समझदार लोगों में शार्मल हो रही है !" और मैंने कहा, "समझदार नहीं, अकेले लोगों की कौम है र्े! आप नहीं समझोगे!" पापा ने कुछ नहीं कहा। थोड़ी दे र बाद बोले, "कल लाइब्रेरी छोड़ने मैं जाऊुँगा!"
दक्षक्षता िमाद कक्षा- ग्यार िीं
आज कफर कलम उठाई है ,
ऐसा क्यों??
र्लखना है उनके बारे में जो, सच में है हमारे ररर्ल हीरोज।। र्ूं तो लोग उन्हें र्ाद रखते हैं जो कफल्मों में आते हैं । जो हमारी खार्तर शहीद हो जाते हैं , िे केिल दो कदन ही र्ाद रहते हैं | ऐसा क्र्ों? आज भी र्हीं सोचती हूुँ,
कक जो आतंककर्ों से लड़ते हैं , उन पर र्सर्ासत होती है । ऐसा क्र्ों?? आज मन में बहुत प्रश्न हैं , बहुत कुछ पूछना है ?
ऐसे समर् में जो हमारी रक्षा कर रहे हैं , िे सरहद पर आतंककर्ों से लड़ रहे हैं , कफर भी उन पर र्सर्ासत। ऐसा क्र्ों?? ककसी को र्ाद नहीं 14 फरिरी, 2019 जब पुलिामा में हमला हुआ था।
कोई र्ाद नहीं रखेगा उन्हें जजन्होंने, दे श की इफाज़त करते हुए अपना बर्लदान कदर्ा था,
र्ाद रहें गे िो हीरोज जो कफल्मों में आते हैं । ऐसा क्र्ों?? कहने को तो बहुत कुछ है पर, आज मैं इतना ही कहूुँगी, जो हमारी सुरक्षा के र्लए
जज़ंदगी है दांि पर लगा रहे उन्हें मैं बस सलाम करूुँगी। जर् कहं द! जर् भारत!! ने ा कक्षा : बार िीं ‘अ’
मेरा दे ि प्र्ारा - प्र्ारा मेरा दे श, सबसे न्र्ारा मेरा दे श । दर्ु नर्ा जजस पर गिय करे , ऐसा र्सतारा मेरा दे श । चांदी सोना मेरा दे श, सफल सलोना मेरा दे श । गंगा - जमुना की माला का, फूलों िाला मेरा दे श। आगे जाए मेरा दे श, र्नत मुस्काए मेरा दे श इर्तहासों में बढ़ - चढ़कर, नाम र्लखार्े मेरा दे श । प्र्ारा - प्र्ारा मेरा दे श ।
वप्रयंका िमाद कक्षा- आठिीं ‘ए’
क्या शलखूाँ ? छप रही है स्कूल की पविका मुझे र्मला समाचार सोचा र्लख डालूुँ आकटय कल दो चार। क्र्ा र्लखूुँ कैसे र्लखूुँ ? नहीं समझ में आता र्ूुँ ही सोचते - सोचते समर् गुज़रा जाता । कविता र्लखूुँ र्ा कहानी अथिा कोई लेख। इसी सोच में बैठी हूुँ र्सर घुटनों पे टे क। इन्हीं विचारों में खोकर तुकबंदी कर डाली। आशा है कक पढ़ लेंगे सभी - सुर्र्जन इसको इसी सोच से होने लगती बहुत प्रसन्न्ता मुझको।
जपनीत कौर बार िीं ‘ए'
घडी कटक-कटक करती र्े घड़ी , सही समर् बताती है । हर काम सही समर् पर , करना हमें र्सखलाती है । कटक-कटक करती र्े घड़ी , सही समर् बताती है । अनुशासन में रहना , हमें र्ह र्सखाती है । कटक-कटक करती र्े घड़ी , सही समर् बताती है । समर् का सदप ु र्ोग करना , हमें र्ह र्सखाती है ।
कटक-कटक करती र्े घड़ी , सही समर् बताती है । सुबह सिेरे हमें उठाती , जल्दी से तैर्ार हम होते , इसके कारर् हम स्कूल समर् पर जा पाते । कटक-कटक करती र्े घड़ी , सही समर् बताती है । हर काम सही समर् पर , करना हमें र्सखलाती है ।।
िैलजा कुमारी कक्षा - आठिीं 'अ'
पापी कौन ? एक बार एक ऋवष ने सोचा हक लोग गंगा में पाप धोने जाते ैं , तो इसका मतलब ु आ हक सारे पाप गंगा मे समा गए और गंगा भी पापी
ो गई |अब य
जानने के शलए तपस्या की हक पाप क ााँ जाता ै ?
तपस्या करने के फलस्िरूप दे िता प्रकि ु ए तो ऋवष ने पूछा हक भगिान जो पाप गंगा में धोया जाता ै ि
क ााँ जाता ै ? भगिान ने क ा, “चलो गंगा से
ी पूछते
ैं |”
दोनों गंगा के पास गये और क ा हक े गंगे! लोग आपके य ााँ पाप धोते ैं , तो इसका मतलब आप भी पापी ु ई| गंगा ने क ा "मैं क्यों पापी ु ई| मैं तो सारे पापों को ले जाकर समुर को अवपदत कर दे ती ूाँ |" अब िे लोग समुर के पास गये," े सागर! गंगा सारे पाप आपको अवपदत कर दे ती ै , तो इसका मतलब आप भी पापी ु ए|" समुर ने क ा,"मैं क्यों पापी ु आ, मैं तो सारे पापों को भाप बना कर बादल बना दे ता ूाँ |" तब िे लोग बादल के पास गये और क ा " े बादल! समुर पापों को भाप बना कर बादल बना दे ते ै ,तो इसका मतलब आप पापी ु ए|" बादल ने क ा,"मैं क्यों पापी ु आ,मैं तो पानी बरसा कर सारे पापों को धरती पर िावपस भेज दे ता ूाँ , क्षजससे अन्द्न उपजता ै ,क्षजसको मानि खाते ैं | उस अन्द्न को क्षजस मानशसक क्षस्थशत से उगाया जाता ै ,क्षजस िृवि से प्राप्त हकया जाता ै और क्षजस मानशसक अिस्था में खाया जाता ै ,उसी के अनुसार मानि की मानशसकता बनती ै |"
दीपाली शमश्रा कक्षा- आठिीं ’ए’
पेड र्रती की बस र्ही पुकार पेड़ लगाओ बारम्बार आओ र्मलकर कसम खाएं अपनी र्रती हररत बनाएं ।
र्रती पर हररर्ाली हो, जीिन में खुशहाली हो । पेड़ र्रती की शान हैं , जीिन की मुस्कान हैं ।
अब पेड़ लगाएुँ हम, पेड़ लगाकर जग महकाकर । जीिन सुखी बनाए हम आओ पेड़ लगाएुँ हम |
व्यघा पााँचिीं ‘ए’
भारत की िान 'ह ं दी' शान हमारी बनती है , कहं दी के गुर्गान में | शब्द से ऐसे र्तलक करो, बस, बस जाए जी जान में | साकहत्र् की दर्ु नर्ा में इसने, नई फूक दी जान है |
सूरदास, तुलसी, र्नराला प्रेमचंद महान हैं | लेखनी इनकी सीख है दे ती, संघर्य और विराम में | शब्द से ऐसे र्तलक करो, बस, बस जाए जी जान में | आिाज़ दे श की एक हो, चाहे र्मय अनेक हों | कहं दी से नाता जोड़े हम, भारत सारा एक हो | इसका रं ग र्तरं गे में है , और भारत के अर्भमान में | शान हमारी बनती है कहं दी के गुर्गान में | शब्द से ऐसे र्तलक करो, बस, बस जाए जी जान में | जर्कहं द!
आनंहदनी िमाद कक्षा - निमीं (ए)
भारत मााँ की पुकार
उठो जिान र्ह दे श तुम्हें पुकारे , र्ह भारत की पविि भूर्म करती है तुम्हें इशारे । उठ तू नींद से, तू सोर्ा है अनंत समर् से, उठ खड़ा हो कर प्रतीज्ञा भारत माुँ से।
शिु रि से रं जजत र्रती कहे पुकार के, ऐ इस दे श के िीर जिान तू जा। लड़ इस र्रती के शिु से, जो खड़े हैं सीमा को लाुँघने । उठो दे श के िीर जिान, अपने दे श की ताकत जानो, िि न गंिाओ | जो इस दे श को आुँख कदखाए, उसे तुम अपने बल से उसकी औकात कदखाओ। उठो दे श के िीर जिान र्े र्रती तुम्हें पुकारे , र्ह भारत की पविि भूर्म करती है तुम्हें इशारे ।
पािनी िमाद कक्षा- आठिीं ‘अ’
मन्द्नत र्ारों के साथ मस्ती, टीचर की फटकार, बैठे हैं आज सारे होके बेकार ॥ र्ाद बड़े आते है स्कूल के िो पल, जब दोस्त कहें –चलें ? हमेशा कहना चल ॥ क्र्ा करें कुछ समझ नहीं आता है , कफर से स्कूल जाना र्ही मन चाहता है । कोरोना ने बदल दी है हम सभी की चाल । घर बैठे- बैठे लगता है , हो गर्ा बुरा हाल ॥ स्कूल जाते समर् करते थे छुजटटर्ों का इं तजार, लेककन अब कहते हैं छुजटटर्ाुँ होनी ही नहीं चाकहए र्ार । सुना है भगिान करते हैं बच्चों की मन्नत पूरी, उसी ईश्वर से है एक मन्नत भी मेरी, कर दे कुछ ऐसा चमत्कार हो जजससे कोरोना का संहार ॥
भूशमका िमाद कक्षा - ग्यार िीं
समय जजसने समर् का मोल है समझा , उसने सदा सुख है पार्ा। जजसने नहीं समझा समर् का मोल , िह सदा रोर्ा और पछतार्ा | बचपन से हमने र्े र्सखा ,
हर काम समर् पर करना।। समर् है सबसे बलिान , इसके आगे कोई जीत न पार्ा। विद्याथी जीिन में अनुशासन में रहना , हमें इस समर् ने र्सखार्ा।। जजसने समर् का मोल है समझा , उसने सदा सुख है पार्ा।
श्वेत सुमन कक्षा :- दसिीं 'ब'
ाय!! य
कोरोना।।
कोरोना ने कदर्ा है हमें अंदर से मार क्र्ा करें क्र्ा न करें कुछ समझ नी आता र्ार | लगती है घर की सारी दीिारें जेल क्र्ों एक िार्रस के आगे सारी विज्ञान फेल ? कोरोना के कहर को होने िाले हैं दो साल पता नहीं कब जाएगा र्ह मनहूस काल र्हाुँ ना छूना िहाुँ ना जाना मास्क पहनना कदल चाहता है चले जाएुँ ऐसे लोक हो न जहाुँ कोई कोरोना का शोक कोई बैठा है घरों में होकर उदास और कोई अपनों से र्मलने के र्लए कर रहा है हर संभि प्रर्ास बस! बहुत हो गर्ा र्ह कोरोना कोरोना अब तो इसका नाम सुनकर ही आता है मुझे रोना
गीशतका मे ता निमीं ‘बी’
सह-शैक्षजर्क गर्तविर्र्र्ाुँ (2021-2022)
स्काउि एिं गाइड
इस कायदक्रम के अंतगदत 21 शसतंबर को विश्व िांशत हदिस मनाया गया क्षजसमें विद्याशथदयों से ‘सिदधमद प्राथदना’ करिाकर ‘पौधा रोपि’ करिाया गया | 7 निंबर को स्थापना हदिस मनाते
ु ए विद्याशथदयों के स योग से प्राथदना सभा, सिद धमद
प्राथदना, िी.पी. 6, प्रकृ शत पर आधाररत ड्राइं ग एिं पेंहिं ग आहद गशतविशधयााँ करिायी गई |
आज़ादी का अमृत म ोत्सि कायदक्रम
स्ितंिता प्राशप्त की 75 िीं िषदगांठ पर आज़ादी का अमृत म ोत्सि कायदक्रम के अंतगदत अनेक हक्रयाकलाप करिाए गए, जैसे- ऑनलाइन कक्षा की िुरुआत राष्ट्रगान द्वारा करना, कक्षा में प्राथदना सभा का आयोजन क्षजसमें प्रशतहदन हकसी विद्याथी द्वारा स्ितंिता सेनानी या घिना का वििरि दे ना,15 अगस्त को विद्यालय को सजाया जाना, विद्याशथदयों
े तु दे िभवि गीत, कविता
िाचन, शनबंध लेखन, पोस्िर बनाना, क ानी िाचन, प्रश्नोिरी आहद हक्रयाकलापों का आयोजन हकया गया |
ह न्द्दी पखिाडा
हदनांक 01.09.2021 से 15.09.2021 तक केन्द्रीय विद्यालय, लखनपुर में ह न्द्दी पखिाडे का आयोजन हकया गया। इस कायदक्रम के दौरान शनबंध लेखन, नारा लेखन, आिु भाषि, काव्यपाठ, िाद-वििाद इत्याहद प्रशतयोशगताएाँ करिायी गईं क्षजसमें विद्याशथदयों ने बढ़-चढ़कर भाग शलया । हदनांक 14.09.21 को विद्यालय में िचुअ द ल माध्यम से ह न्द्दी हदिस मनाया गया | कायदक्रम में विशभन्द्न विद्याशथदयों ने कविता, गीत प्रस्तुत हकए |
तथा उद्बोधन द्वारा ह ं दी भाषा संबंधी अपने विचार
स्िच्छता पखिाड़ा
विद्यालर् में 1 र्सतंबर से 15 र्सतंबर तक स्िच्छता पखिाड़ा मनार्ा गर्ा जजसके अंतगयत स्िच्छता जागरूकता कदिस, सामुदार्र्क संपकय कदिस, हररत विद्यालर् अर्भर्ान आकद कार्यिम करिाए गए |विद्यार्थयर्ों के र्ोगदान हे तु ऑनलाइन माध्र्म से ड्राइं ग एिं पेंकटं ग, नारा लेखन, मॉडल बनाना, र्नबंर्-लेखन, िाद-वििाद और प्रश्नोत्तरी आकद प्रर्तर्ोर्गताएुँ करिार्ी गई |विद्यार्थयर्ों ने घर ि आसपास की सफ़ाई तथा व्र्विगत सफ़ाई आकद किर्ाकलापों र्लर्ा |अंत में प्राचार्य महोदर् ने पुरस्कार वितररत कर छािों को प्रोत्साकहत ककर्ा |
में भाग
योग हदिस
स्ितंिता हदिस
एक भारत श्रेष्ठ भारत कायदक्रम
एक भारत श्रेष्ठ भारत- इस कार्यिम के अंतगयत मुख्र् विर्र् ‘तर्मलनाडु ’ पर आर्ाररत अनेक किर्ाकलाप करिाए गए,जैसेतर्मल भार्ा में कविता लेखन, प्रश्नोत्तरी, ऑनलाइन कक्षा में तर्मलनाडु पर समाचार ,तर्मलनाडु पर िातायलाप ,प्रदशयन बोडय सजाना, र्नबंर् लेखन, तर्मल में प्रर्तज्ञा का अंग्रेज़ी में अनुिाद आकद |इनके द्वारा तर्मलनाडु के विर्र् विद्यार्थयर्ों के ज्ञान में अर्भिृवद्ध की गई |
गांधी जयंती
राष्ट्रीय एकता हदिस
राष्ट्रीय शिक्षा हदिस
संविधान हदिस