ई - पत्रिका 2022-23 Flipbook PDF


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EMPRESAS HEADHUNTERS CHILE PDF
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Story Transcript

1

प्रिय स्वणण पप्रिका दल मैं के न्द्रीय प्रवद्यालय हट्टी के िाचायण के रूप में अप सभी का हार्ददक स्वागत करता हूँ। हमें बहुत खुशी होती है कक हमारे प्रवद्यालय के छािों की लेखनी कौशल का सम्मान ककया जा रहा है । हमें ऄपने प्रवद्यालय के बारे में स्वणण पप्रिका के माध्यम से जानकारी देने का मौका प्रमल रहा है। हमारे प्रवद्यालय के छािों की सृजनात्मकता और लेखनी कौशल का हमें हमेशा से गवण महसूस होता है। स्कू ल माहौल में लेखनी कौशल का प्रवकास एक महत्वपूणण प्रवषय है जो हमें ऄपने छािों के प्रलए सबसे ज्यादा महत्त्वपूणण लगता है। हमारे प्रवद्यालय के छािों को हमेशा ऄपनी सृजनात्मकता का िदशणन करने के प्रलए िोत्साप्रहत ककया जाता है। हमारे प्रवद्यालय में छािों को ईनके लेखनी कौशल को सुधारने के प्रलए प्रनयप्रमत रूप से लेखन प्रवषयों पर लेखन ऄभ्यास करने का मौका कदया जाता है। हम आस बात का भी ध्यान रखते हैं कक हमारे छािों को प्रवप्रभन्न प्रवषयों पर लेखन में कु शलता िाप्त हो।

2

मेरी तरक्की मेरी तरक्की प्रसर्ण मेरी तरक्की नहीं, यह मेरे भारत को भी मजबूत बनाती है। मेरी सर्लता में समाप्रहत है देश की ताकत, जो मेरी प्रनरं तर कोप्रशशों का है संचार प्रवप्रहत। मेरी ईद्यप्रमता में समाप्रहत है देश की ईत्कषणता, जो मेरी िगप्रत के जीवन में है ऄंतर्ननप्रहत। मेरी नयी सोच में समाप्रहत है देश की िगप्रत, जो दुप्रनया को बताती है ऄपने प्रवकास की रफ्तार। मेरी ऄप्रभवृप्रि में समाप्रहत है देश की ईन्नप्रत, जो सामूप्रहक प्रवकास के सफ़र में होती है िगार। आसप्रलए, मेरी तरक्की प्रसर्ण मेरी तरक्की नहीं, यह मेरे भारत को भी मजबूत बनाती है। श्री प्रवजय कु मार िाचायण कें रीय प्रवद्यालय हट्टी

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मेहनत हर दम मेहनत कररए , मेहनत से ना डररए । अप्रखर में क्या कररए , आससे मत डररए । सम्भल कर पाूँव धररए , आसका ध्यान रप्रखए । भरोसा ऄपने पर रप्रखए , आससे पार ईतररए । काम शुरु कररए , मन में संकल्प धररए । आधर – ईधर की छोप्रिए , अगे बढ़ते रप्रहए । लक्ष्य ऄपना चुप्रनए , ईस पर ध्यान रप्रखए । समय का ख्याल रप्रखए , यह बाद में ना प्रमप्रलए । समय चलता रप्रहए , अप भी न रुककए । ध्यान कें करत कररए , ऄपना ध्यान रप्रखए । कमण करते रप्रहए , नतीजे ऄच्छे होआए । हाथी बनकर चप्रलए , साहस शेर सा रप्रखए । बोलने से न डररए , बात ऄपनी रप्रखए । संकट से न घबराआए , अगे बढ़ते जाआए । हर दम मेहनत कररए , मेहनत से ना डररए । तुलछाराम ि. स्ना. प्रशक्षक, प्रहन्द्दी कें रीय प्रवद्यालय, हट्टी 4

प्रवचार - एक बीज ककसान जब र्सल बोता है तो सवोत्तम बीज चुनता है । ईन बीजों का चुनाव करते समय ईसके मप्रस्तष्क में ऄपनी लहलहाती र्सल का दृश्य होता है । आस प्रवश्वास के साथ कक , ऄच्छा बीज बोउूँगा तो र्सल ऄच्छी होगी । यही प्रनयम हमारे जीवन में भी काम करता है , हमारे प्रवचारों के बीज ही हमारे जीवन की दशा और कदशा का प्रनमाणण करते हैं । संसार एक अइना है आस पर हमारे प्रवचारों की जैसी छाया पिती है वैसा ही िप्रतबबब कदखता है । मनुष्य को स्वस्थ – ऄस्वस्थ, कायर –वीर, िसन्न –ऄिसन्न, सर्ल- ऄसर्ल बनाने में ईसके प्रवचारों का महत्वपूणण योगदान होता है । गौतम बुि ने ऄपने प्रशष्यों को ईपदेश देते हुए कहा था – वतणमान में हम जो कु छ हैं ऄपने प्रवचारों के कारण । स्वामी प्रववेकानन्द्द – स्वगण और नरक कहीं और नहीं, आनका प्रनवास हमारे प्रवचारों में ही है । इसा मसीह – मनुष्य के जैसे प्रवचार होते हैं, वैसा ही बन जाता है । शेक्सपीयर – कोइ वस्तु ऄच्छी या बुरी नहीं है, ऄच्छाइ –बुराइ का अधार हमारे प्रवचार हैं । मनुष्य के प्रवचार शप्रिशाली चुंबक की तरह हैं जो ऄपने जैसे प्रवचारों को ऄपनी ओर अकर्नषत करते हैं । मनुष्य ऄपनी सोचने की क्षमता के कारण ही सभी िाप्रणयों से ऄलग है । जरा प्रवचार करें कक क्या हमें आस चमत्काररक क्षमता का सदुपयोग नहीं करना चाप्रहए । संसार में ककसी भी चीज का प्रनमाणण सबसे पहले प्रवचारों में ही जन्द्म लेता है । आसीप्रलए ऐसे बीज बोना है जो हमारे जीवन को खुशहाली , समृप्रि , स्वास््य ,सर्लता,िेम और शांप्रत से भर दें । ऄपने साथ-साथ हम सभी प्रशक्षक ऄपने प्रवद्यार्नथयों में भी ईस ककसान की तरह अत्मप्रवश्वास, ऄनुशासन, इमानदारी और पररश्रम के बीज डालें ताकक ये बिे होकर प्रजम्मेदार नागररक बनें ,देश और समाज के प्रवकास के सूिधार बनें । हम भी ईस ककसान की तरह खुश हो सकें और गवण कर सकें । डॉ. (श्रीमती) रीतेश शमाण िाथप्रमक प्रशप्रक्षका के . प्रव. हट्टी 5

प्रशक्षा और पूवणज प्रशक्षा ऄपना जीवन है, प्रशक्षा प्रबना सब प्रनराधार है। जीवन को ऄगर सर्ल बनाना है , तो प्रशक्षा को ऄपनाना है । प्रशक्षा ऐसी चीज है , बाूँटों तो बढ़ जाती है । ऄपनी प्रशक्षा ऄपना ऄप्रधकार , दूसरा कोइ छीन नहीं पाता है । ऄगर सच्चे मन से प्रशक्षा पाइ तो , ऄपना और दूसरों का कल्याण है । पूवणज कहते थे पढ़ लो प्रलख लो ,ऄब समझ में अया है । खुद रूखी सूखी खाते जीवन प्रबताते पर हमें प्रवद्यालय भेजने जाते । सपने जब वे संजोते हैं , साकार जब हम कर पाते हैं । ईनके कदल से अवाज प्रनकलती है । सपना साकार हुअ प्रशक्षा जीवन का अधार हुअ । ईनका जीवन बीत गया कर्र भी खुप्रशयाूँ लूटाते हैं । यह वह होते हैं जो बार-बार नहीं प्रमल पाते हैं । तुलछाराम ि. स्ना. प्रशक्षक, प्रहन्द्दी कें रीय प्रवद्यालय, हट्टी 6

झूम ईठा असमान झूम ईठा असमान मेरा,कभी भावनाओं की बाररश कभी खुप्रशयों से चमकते प्रसतारे सुरज सा कदल है मेरा कभी रोशनी से प्यार ईभरता, कभी लाल-सा लड्डू जैसा ईछलता। ईि रहे हैं ऄनप्रगनत पंक्षी मेरे असमान में पर खोल के ईम्मीद लगाएूँ है| कोइ पनाह प्रमल जाए,आस ऄनोखे असमान में। बादल है मेरे खोए-खोए,बस आनको जोि दूूँ एक साथ बन जाएूँगे ईज्ज्वल बरसात जो बंजर को भी बना दे मुस्कराता जहान। असमान है मेरा ऄनोखा,जहाूँ बस प्रमलता है प्यार प्रखलते हैं यहाूँ लाखों ऄरमान,जो ईि चले हैं प्रचरके असमान। प्रजन्द्दगी है ऄनमोल,बनाओ आसको ऄमूल्य प्यार करुणा और मानवता ही,है आस असमान में पंख खोले। बस झूम ईठा असमान मेरा अओ झूमें सब पंख खोल।

श्रीमती प्रशल्पा करिी ि. स्ना. प्रशप्रक्षका , कन्नि कें रीय प्रवद्यालय, हट्टी 7

ऄनुभव से कलम तक वो कदन थे क्या खास –खास , जब २०१७ में , मैंने के वी हट्टी जॉआन ककया था कदवाली के अस पास, सहमी-सहमी सी थी मैं ,घर ,माूँ और पररवार से दूर । कर्र वो अठ दोस्त बन गए खास –खास और वो प्रतलक वाली प्रशल्पा मैडम बन गइ एक ऄद्भुत सा ऄहसास जो घर की दूरी को प्रमटा देती थी ,ऄपने प्यार और दुलार से, वो पल थे खास –खास प्रिप्रन्द्सपल सर के वो सकारात्मक प्रवचार जो कर देते थे मेरे हौंसले बुलंद, और हर काम को बना देते थे असान । वो भी पल थे कु छ खास –खास गोवा, ढांडेली और ककप्रष्कन्द्धा के रिप रात के 12 बजे की मैगी ,खट्टे मीठे ऄनुभव के साथ , प्रनकल गए वो पाूँच साल । काली स्लेट पर चॉक से, ईज्ज्वल भप्रवष्य का सूरज ईगाया , ढाल बनकर ऄपने प्रवद्यालय के बच्चों का साथ प्रनभाया । कभी हक के प्रलए लिना प्रसखाया , कभी गलती बताकर कभी गलती छु पाकर , एक सच्चे गुरु का र्जण प्रनभाया कभी माता –प्रपता बन दी सलाह ,कभी दोस्त बन हौसला बढ़ाया । वो भी कु छ पल थे खास –खास । मोप्रनका जाखि िाथप्रमक प्रशप्रक्षका के . प्रव. हट्टी

8

ऐसे दौि लगाउूँ, ऐसे दौि लगाउूँ, असमान को चीरकर प्रसतारा बन जाउूँ। ऐसे दौि लगाउूँ, जैसे अत्मा-परमात्मा का प्रमलन बन जाउूँ। ऐसे दौि लगाउूँ, सूरज की ककरण छीन लाउूँ। ऐसे दौि लगाउूँ, मन का ऄन्द्धकार प्रमटा जाउूँ। ऐसे दौि लगाउूँ, बहती नदी के प्रवरुि बह जाउूँ। ऐसे दौि लगाउूँ, व्यथण नगरी से दूर जंगल में बस जाउूँ। ऐसे दौि लगाउूँ, मैं भी एक कदन बुि बन जाउूँ। श्रीमती प्रशल्पा करिी ि. स्ना. प्रशप्रक्षका , कन्नि कें रीय प्रवद्यालय, हट्टी 9

बजदगी बजदगी नाम है कु छ करने का, कु छ खोने का कु छ पाने का । बिे करठन है बजदगी के रास्ते, लेककन चलना है कु छ करने के वास्ते । कभी लगता है बजदगी एक गुलाब है, तो कभी लगता है आसमें काूँटे बेप्रहसाब है । कहीं खुप्रशयाूँ बेशुमार है, तो कहीं ररश्तो में पिी दरार है । कभी हूँसाती है बजदगी तो कभी रुलाती है बजदगी, बहुत कु छ हमें प्रसखाती है बजदगी । जी ले बजदगी के हर पल को , ककसने देखा अज ककसने देखा कल को । श्रीमती रूप्रच िाथप्रमक प्रशप्रक्षका के . प्रव. हट्टी

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होली होली में रं ग प्रबखरें हैं, बच्चे घर से प्रनकलें हैं | हरे गुलाबी , लाल – पीले, हर जगह ही प्रछतरे हैं | प्रपचकारी में भरके गुलाल, देखो चेहरा हो गया लाल | हाथों से मलके रं गों को, कर दो पूरे रं गीन गाल | वषाण हइ अज रं गों की, जमी में बादल जैसे| ईिता जाए है गुलाल | हर मन में अज ईल्लास हैं , पकवान बना सब खास है | रं गों को जीवन में लेकर, अइ होली का त्योहार हैं | संगीता सज्जन िाथप्रमक प्रशप्रक्षका के . प्रव. हट्टी 11

"मेरा प्रशक्षक " जीवन में कदया जो पहला ज्ञान, ईन गुरु को मेरा कोरट- कोरट िणाम| अशा की जो ककरण कदखाइ, साहस की नइ राह कदखाइ| कभी किक कभी नरम हुए प्रवचप्रलत हमको न होने कदए हमारा भप्रवष्य ईज्वल ककए| श्रीमती मैनावती िाथप्रमक प्रशप्रक्षका के . प्रव. हट्टी

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नसीब…… प्रजन लोगों को हम चाहते हैं, ओ लोग कभी नहीं प्रमलते। प्रजन लोगों को हम पसंद नहीं करते हैं, ईनका प्रमलन समाप्त नहीं होता। प्रजनके पास हम जाना चाहते हैं, ईनके पास हम नहीं जा पाते। प्रजनके पास हम जाना नहीं चाहते हैं, ईनके पास हमें जाना पिता है। जब जीवन महसूस नहीं करता है, तो समय नहीं रुकता हैं। जब जीवन का सही ऄथण समझ में अता है, ईस समय में हमारे पास समय नहीं रहता हैं। नसीब का खेल ऐसा ही चलता रहता है, आसप्रलए संभल कर रहना पिता है। वहां पर ककसी का कु छ भी नहीं चलता, जहां पर लेकर जाएगा, वहां पर जाना पिता है। प्रजनके पास रहने का मन करता है, लेककन वह लोग बहुत बिबिाते हैं। प्रजनके पास रहना नहीं चाहते हैं, वह लोग बहुत खाप्रतरदारी करते हैं। नसीब का खेल ऐसा ही चलता रहता है, आसीप्रलए संभल कर रहना पिता है। - बंकट भेंडेकर िाथप्रमक प्रशक्षक कें रीय प्रवद्यालय, हट्टी 13

अत्मप्रवश्वास अत्मप्रवश्वास एक ऐसी चीज है, जो हमें ककसी भी करठन काम को करने के प्रलए अवश्यक होता है। आसीप्रलए हमारे पास अत्मप्रवश्वास होना जरूरी है । ककसी भी क्षेि में सर्लता पाने के प्रलए ऄपनी बात को ककसी के समक्ष सही िकार से रखने के प्रलए व्यप्रि में भरपूर अत्म प्रवश्वास होना बहुत अवश्यक होता है। यकद सीधे शब्दों में कहा जाए तो व्यप्रि की सर्लता बहुत हद तक ईसके अत्मप्रवश्वास पर प्रनभणर करती है। अत्मप्रवश्वास से भरपूर व्यप्रि कायणस्थल और समाज में ऄपनी एक ऄलग पहचान बनाता है। तो वही कमजोर अत्मबल वाला व्यप्रि ककसी के सामने ऄपनी बात को सही िकार से नहीं रख पाता है। आसी कारण कइ बार जानकारी होने पर भी वह ऄन्द्य लोगों की तुलना में पीछे रह जाता है। आसप्रलए अत्मप्रवश्वास का मजबूत होना बहुत अवश्यक होता है। अत्मप्रवश्वास को मजबूत बनाने के प्रलए अपको स्वयं तो ियास करने ही होंगे। आसके साथ ही कु छ ग्रहों की प्रस्थप्रत को ऄनुकूल बनाकर भी अप ऄपने अत्मबल को मजबूत बना सकते हैं। – जयदेव बाररक ि. स्ना. प्रश. संस्कृ त के . प्रव. हट्टी

14

सर्लता और साथणकता सर्ल हर कोइ होना चाहता है। आसके प्रलए कोप्रशश भी करता है। करनी ही चाप्रहए। दरऄसल, जीवन का एक ईद्देश्य सर्लता भी है। प्रबना सर्लता के जीवन का कोइ ऄथण नहीं माना जाता। जो जहां है, प्रजस स्तर पर है, ईसे वहां से उपर ईठना होता है। ईस प्रस्थप्रत से बेहतर प्रस्थप्रत में पहुंचना होता है। सर्लता का ऄथण है उपर ईठना, उध्वणगामी होना। नीचे की तरर् प्रगरना, ऄधोगाप्रमता, सर्लता नहीं मानी जाती। आसप्रलए सर्लता के प्रलए सारी कोप्रशशें आसी प्रसिांत के आदण-प्रगदण बनती-बुनी जाती हैं। यथाप्रस्थप्रत वाद ककसी को स्वीकायण नहीं। आसीप्रलए समाज प्रनरं तर िवहमान बना रहता है। वह ऄपने पुराने हो चुके मूल्यों को खुद बदल प्रलया करता है। समाज का प्रसिांत है कक कु दरत ने पांव आसीप्रलए कदए हैं कक अगे बढ़ा जाए। पीछे चलने का स्वभाव पांव का है ही नहीं। अगे बढ़ते रहना ही तरक्की की प्रनशानी है, ईसी से सर्लता के सूि बनते-प्रवकसते हैं । मगर सर्लता ही जीवन का अत्यंप्रतक सूि नहीं है। आससे बिा मूल्य है साथणकता। के वल सर्लता ऄर्नजत कर लें, के वल सर्ल हो जाएं, ईसकी कोइ साथणकता न हो, तो ईसका कोइ मोल नहीं। वह सर्लता व्यथण है। ऄगर अपकी सर्लता से दूसरों को लाभ न पहुंचे, दूसरों को िसन्नता न प्रमले, ईस सर्लता का कोइ ऄथण नहीं। साथणकता का ऄथण है, ऐसी सर्लता, जो दूसरों का कल्याण करे । अपने प्रशक्षा में ऄच्छी सर्लता ऄर्नजत कर ली, पर वह साथणक तभी कही जाएगी, जब वह दूसरों के कल्याण के काम अए । आसप्रलए सर्लता के साथ साथणकता भी जरूरी है। हमारी तमाम िाथणनाओं में इश्वर से मांग की गइ है कक वह सर्लता और साथणकता िदान करें । दृढ़ प्रनश्चय, धैयण और प्रनरं तर ियास से सर्लता तो प्रमल ही जाती है। प्रजसके िप्रत गहरी तिप पैदा हो जाए, वह प्रमल ही जाता है। „जेप्रह पर जेप्रह के सत्य स्नेह, प्रमलबह सो तेबह नहीं कछु संदह े ‟। बाबा ने कहा। यह तो हुइ सर्लता कक प्रजसे चाहा, जो चाहा वह प्रमल जाए। मगर हर सर्लता साथणक भी हो, जरूरी नहीं। सुप्रिया बी . एच. ि. स्ना. प्रश. ( संगणक ) के . प्रव. हट्टी 15

वृक्ष लगाओ वृक्ष लगाओ, वृक्ष लगाओ, हरा भरा संसार बनाओ | र्ल, र्ू ल ये हमकों देते, मन शरीर से स्वस्थ बनाते| वृक्षों से हम छाया पाते, चारों ओर ऑक्सीजन र्ै लाते| प्रमट्टी को ईपजाउ बनाते, भूजल स्तर को ये बढ़ाते| वृक्ष लगाओ, वृक्ष लगाओ, हरा भरा संसार बनाओ| सुनील लाकिा िाथप्रमक प्रशक्षक के . प्रव. हट्टी 16

जीवन मंि…. नल बंद करने से, नल बंद होता हैं। “पानी नहीं”! घिी बंद करने से, घिी बंद होती हैं। “समय नहीं”! दीपक बुझाने से, दीपक बुझता हैं। “रौशनी नहीं”! िेम करने से, िेम प्रमलता हैं। “नर्रत नहीं”! झूठ छु पाने से, झूठ छु पता हैं। “सच नहीं”! दान करने से, रूपया जाता हैं। “लक्ष्मी नहीं”! - रमेश नायक िाथप्रमक प्रशक्षक कें रीय प्रवद्यालय, हट्टी

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कें रीय प्रवद्यालय हट्टी में मेरे ऄनुभव कें रीय प्रवद्यालय हट्टी पररवार में शाप्रमल होकर मैं बहुत खुश हूँ । मुझे जो मधुर ऄनुभव िाप्त हुअ वह ऄमूल्य है।घर पर एक लंबा समय ऄके ले प्रबताने के बाद, बच्चों के साथ प्रमलकर मैं कर्र एक बच्ची बन गइ। छोटे बच्चों की कक्षा में जाकर, ईनका साथ पाकर, मुझे ऄपने मुप्रश्कल कदनों से बाहर अने का और ऄपने जीवन में नव संचार करने का सुनहरा ऄवसर िाप्त हुअ। मैंने ऄपनी कक्षा के नन्द्ह-े नन्द्हे बच्चों को पढ़ाकर, ईनकी प्यारी मुस्कान का अनंद लेकर ऄपने जीवन के ईन कदनों को और खूबसूरत बनाया। मैं कें रीय प्रवद्यालय हट्टी के सभी सदस्यों का हृदय से अभार व्यि करती हूँ। मैं इश्वर से यह िाथणना करती हूँ, कक कें रीय प्रवद्यालय हट्टी सदैव िगप्रत के पथ पर ऄग्रसर हों। ऄजम्मा िाथप्रमक प्रशप्रक्षका कें रीय प्रवद्यालय, हट्टी 18

के न्द्रीय प्रवद्यालय हट्टी में शैक्षप्रणक ऄनुभव डॉ० ऄनुभव पाण्डेय, संगीत प्रशक्षक के न्द्रीय प्रवद्यालय, हट्टी गोल्ड माआन्द्स, कनाणटक हर एक व्यप्रि के जीवन में ऐसा क्षण ज़रूर अता है जब वह पहली बार प्रवद्यालय में िवेश करता है और नये-नये ऄनुभवों से दोचार होता है परन्द्तु एक प्रशक्षक के जीवन में ही ऐसा होता है कक वह दो बार प्रवद्यालय में िवेश लेता है। एक बार तो स्वयं एक छाि के रूप में ज्ञान पाने के प्रलए और दूसरी बार एक प्रशक्षक के रूप में ज्ञान का िसार करने के प्रलये। „आक्कीस ऄक्टूबर दो हज़ार सिह‟ के कदन मैंने भी के न्द्रीय प्रवद्यालय हट्टी में क़दम रखा था। घर से हज़ारों ककलोमीटर दूर, ऄनजानी भाषा, ऄनजाने खान-पान के प्रलए सामने एक नइ दुप्रनयाूँ थी। मेरे साथ और भी कइ लोग ऐसे ही अये थे, माि एक प्रशक्षक के रूप में ही नही बप्रल्क एक जुझारू व्यप्रि के रूप में भी हम सब को स्वयं को िमाप्रणत करना था। ख़ुद को घर से दूर होने की भावना से परे हटा कर ऄपने कमण की तरफ़ ध्यान के प्रन्द्रत करना था। एक संगीत प्रशक्षक होने के नाते, ऄपने प्रवभाग का ित्येक दाप्रयत्व मुझे ही वहन करना था। ऄभी तक संगीत प्रशक्षक के ऄभाव में संगीत प्रवभाग का स्वयं का ही सुर ताल प्रबगिा हुअ था। िातः कालीन िाथणना सभा में प्रवद्याथी िस्तुप्रत तो देते थे परन्द्तु ऄभ्यास जैसी मूलभूत चीज़ों के प्रलये ईनके पास समय ही न था। ईन्द्हें पता ही नहीं था कक प्रजस िकार हम घरों में पूजा के स्थान को सम्मान देते हैं ईसी िकार हमें ऄपने प्रवद्यालय के संगीत कक्ष तथा संगीत वाद्यों भी 19

सम्मान देना चाप्रहये, प्रजस िकार स्वणण को प्रनखरने से पहले स्वयं ऄप्रि में तप कर परीक्षा देनी होती है ईसी िकार िप्रतभावान व्यप्रि को भी कौशल को चमकाने के प्रलये ऄभ्यास की अवश्यकता होती है, आसका कोइ छोटा रास्ता या प्रवकल्प नहीं है। ये वास्तप्रवकता थी कक मैं बच्चों को वह प्रसखाने जा रहा था जो ईन्द्होंने पहले कभी सीखा ही नहीं था तथा यह भी बात ध्यान में रखनी थी कक के न्द्रीय प्रवद्यालय में संगीत एक प्रवषय न हो कर के माि एक गप्रतप्रवप्रध है| ऄतः बच्चों को वह प्रसखाना सम्भव न था, प्रजससे संगीत प्रशक्षा िारम्भ होती है। यह बात समझ अने में थोिा समय लगा क्योंकक संगीत का पहला चरण ही स्वर ज्ञान से शुरू होता है, ठीक ईसी िकार प्रजस िकार पहले कदन बच्चे को क, ख, ग, या ए, बी, सी प्रसखाया जाता है, चूूँकक यहाूँ सीधे ही गाना प्रसखाना होता है तो छोटे बच्चों को स्वर ज्ञान करा पाना सम्भव नहीं होता। बच्चे कान से सुनते हैं और ईसी सुने हुए को गाते हैं। संगीत और ऄनुशासन सदा से ही एक दूसरे के पूरक रहे हैं। िाचीन काल में प्रशष्य गुरुकु ल में रहकर प्रवद्या के साथ-साथ ऄन्द्य मूलभूत जीवन मूल्यों का भी ऄध्ययन करता था और पूणणतः ऄनुशाप्रसत प्रशक्षा ग्रहण करता था। कु छ समय बाद जब मैंने संगीत कक्ष को सुन्द्दर तथा व्यवप्रस्थत बनाने का कायण शुरू ककया तो प्रवद्यार्नथयों ने भी बढ़-चढ़ कर मेरा साथ कदया। आन्द्हीं सब के दौरान मैं प्रवद्यार्नथयों को ये समझाने में सफ़ल हुअ कक ये संगीत कक्ष मेरा नहीं बप्रल्क ईनका है और आसकी देखभाल की प्रज़म्मेदारी ईनकी भी है। ईसके बाद से प्रवद्यार्नथयों में होि सी लग गयी कक कौन ककतना ऄप्रधक योगदान दे सकता है। अज प्रवद्याथी संगीत कक्ष की देखभाल ठीक वैसे ही करते हैं जैसे स्वयं की वस्तुओं की। अज दूसरी कक्षा में पढ़ने वाले 20

सात साल के नन्द्हे प्रवद्याथी ऄप्रिक को भी मालूम है कक घंटी कहाूँ से लेनी है और िाथणना के बाद कहाूँ वापस रखनी है। समय के साथ प्रवद्यार्नथयों ने सीधी पंप्रियों में चल कर अना भी सीख प्रलया है।ऄनुशासन की कदशा में मेरा यह पहला कदम था कक प्रवद्यार्नथयों का अना व्यवप्रस्थत और सुंदर होना चाप्रहये। मुझे आस बात का गवण है कक आस िकिया को बिे बच्चों की तुलना में हमारे पहली दूसरी कक्षा के छोटे प्रवद्यार्नथयों ने जल्दी से सीख प्रलया। ऐसा ऄनेक बार हुअ कक ईन्द्हें लेने जाना ही नहीं पिा, वो स्वयं ही ऄनुशाप्रसत ढंग से सीधी रेल जैसी पंप्रि बना कर अते नज़र अये। एक प्रशक्षक होने के नाते मेरा ये दाप्रयत्व था कक मैं संगीत के साथ-साथ ईन्द्हें ईप्रचत ऄनुप्रचत के भेद से भी पररप्रचत करवाउूँ। जो वह ऄपनी प्रनत्य कदनचयाण में देखते हैं, आसी दौि में हम ऄपनी संस्कृ प्रत ऄपने मूल्यों को भूल बैठे हैं। मैं अश्चयण से भर गया जब देखा कक ऄप्रधकतर बच्चों ने आस बात को गम्भीरता से प्रलया और एक दूसरे को देख-देख कर आसकी अदत भी बना ली। कइ ऄप्रभभावकों ने भी आस बात को पसंद ककया। के न्द्रीय प्रवद्यालय हट्टी मेरी पहली प्रनयुप्रि है आससे पहले कभी भी ककसी प्रवद्यालय में काम करने का ऄवसर नही प्रमला था, और न ही कभी छोटे बच्चों के मनोप्रवज्ञान को समझने का ऄवसर प्रमला था। प्रवद्यार्नथयों को प्रशक्षा देने के ही िम में मैंने स्वयं भी बहुत कु छ सीखा, प्रजसमें सबसे बिी यही प्रशक्षा प्रमली कक दुप्रनयाूँ में बच्चों से ऄच्छा कोइ नहीं, ऄनेक बार मैंने ऄपनी कक्षाओं में भावुक हो कर बच्चों का धन्द्यवाद ककया है। आनकी ही वजह से मेरी रोज़ हारमोप्रनयम बजा कर गाने की अदत बन गयी। ऄनेक वाद्ययंि आन्द्हें प्रसखाते-प्रसखाते मैं ख़ुद भी सीख गया। 21

तू कौन है ख़ुद को पहचान तू पंछी की तरह ईिना सीख और बता दे सबको, कक तू कौन है l हर तरफ़ ऄूँधेरा ही ऄूँधेरा है ऄके लेपन और सूनप े न ने घेरा है आन सबको पीछे छोि और ईजाले में अ और बता दे सबको, कक तू कौन है। कोइ तेरा ऄपना नहीं है यहाूँ ऄके लेपन को ही तू ऄपनी ताकत बना और बता दे सबको, कक तू कौन है। एक नइ सुबह, ईम्मीद और अशा के साथ ईगते सूरज की तरह, बहती नदी की तरह अगे बढ़ और छू ले बुलंकदयों को और बता दे सबको, कक तू कौन है।

नूर ए मुबीन िाथप्रमक प्रशप्रक्षका कें रीय प्रवद्यालय हट्टी 22

समय समय हमेशा बदलता रहता है और समय के साथ सब कु छ बदलता है। जो समय के महत्व को नहीं समझता, वो अगे चलकर बहुत पछताता है। जो पल बीत गया, वह कभी लौट कर नहीं अता। आसप्रलए हमें चाप्रहए कक, हम अज के हर एक पल को खुशी के साथ प्रजयें। प्रजस तरह से धूप के बाद छाूँह, ऄंधेरे के बाद ईजाला और रात के बाद सुबह होती है, ईसी तरह मुप्रश्कलों के बाद असाप्रनयाूँ भी अती हैं। बस हमें थोिा सा धैयण, अत्मप्रवश्वास, ईम्मीद और खुद पर भरोसा रखना पिता है।एक वि ही तो है, प्रजसके पास आतनी ताकत है कक वो ऄंदरूनी घावों को भी मरहम बनकर ठीक कर देता है। हम समय की कर करें गे तो समय हमारी कर करे गा, नहीं तो पछतावे के ऄलावा कु छ हाथ नहीं लगेगा। बस, हमें चाप्रहए कक समय की कर करें । बीतते हुए पलों से कु छ सीखें और ईसका सदुपयोग करें । ककसी ने क्या खूब कहा है- “समय के पास आतना समय नहीं है कक वो अपको समय दे सके ”। नूर ए मुबीन िाथप्रमक प्रशप्रक्षका कें रीय प्रवद्यालय हट्टी 23

प्रशक्षक मैं एक प्रशक्षक हुूँ पढ़ाना मेरा काम ही नहीं जूनून भी है । प्रशक्षक ही एक ऐसा व्यप्रि है जो दुप्रनया को बदलने की क्षमता रखता है । प्रशक्षक सिक की तरह होते है वे छािों को मंप्रजल तक पहुंचने में मदद करते है । लेककन प्रशक्षक प्रबना प्रहले – डु ले ही वही रुक जाते है । यहाूँ ित्येक प्रशक्षक का कतणव्य है । प्रवद्यार्नथयों के जीवन को ज्ञान से अलोककत करना । रे णक ु ा.एच िाथप्रमक प्रशप्रक्षका के . प्रव. हट्टी 24

बरसा पानी छम – छम – छम-छम बरसा पानी याद अइ सब को नानी नानी ने सुनाइ कहानी एक थी पररयों की रानी रानी ने एक छिी घुमाइ प्रजससे छोटी सी प्रचप्रिया अइ प्रचप्रिया ने थे पंख खोले ची - ची करके सबको ये बोले काम से ना जी चुराओ अलस को तुम दूर भगाओ | ऊषभ लाकिा कक्षा :- दूसरी के . प्रव. हट्टी

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मेरी प्यारी माूँ मेरी प्यारी माूँ, तुम हो मेरी प्यारी माूँ, सुलाती मुझे ऄपनी गोद में, प्रखलाती मुझे ऄपने प्यार से, तुम ही हो मेरी देवता, न जाने माूँ का महत्त्व ककसको पता। संगमेश . बी कक्षा - पाूँचवी (ऄ) के न्द्रीय प्रवद्यालय हट्टी

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