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Story Transcript

आत्मा रहस्य

आत्मा , मोक्ष , मत्ृ यु के बाद भटकाव और मिु क्त संबंिधत रहस्यमयी पर्श्नों के उत्तर

पं. मानस राजऋिष

No.8, 3rd Cross Street,CIT Colony, Mylapore, Chennai, Tamil Nadu-600004 Copyright © Pdt. Manas Rajrishi All Rights Reserved. ISBN 978-1-63633-254-3 This book has been published with all efforts taken to make the material error-free after the consent of the author. However, the author and the publisher do not assume and hereby disclaim any liability to any party for any loss, damage, or disruption caused by errors or omissions, whether such errors or omissions result from negligence, accident, or any other cause. While every effort has been made to avoid any mistake or omission, this publication is being sold on the condition and understanding that neither the author nor the publishers or printers would be liable in any manner to any person by reason of any mistake or omission in this publication or for any action taken or omitted to be taken or advice rendered or accepted on the basis of this work. For any defect in printing or binding the publishers will be liable only to replace the defective copy by another copy of this work then available.

परमात्मा-पर्ािप्त के िलए कोई भी साधक चलता है तो वह पहले ‘‘ परमात्मा’’ हैं- इस पर्कार परमात्मा की सत्ता को मानता है और वे परमात्मा सबसे शर्ेष्ठ हैं, सबसे दयालु हैं , उनसे बढकर कोई है ही नहीं’’ ऐसे भाव उसके भीतर रहते हैं तो उपासना सगण ु -िनराकार से ही शरू ु हुई। इसका कारण यह है िक बिु द्ध पर्कृित का कायर् (सगुण) होने से िनगर्ुण को पकड़ नहीं सकती। इसीिलए िनगर्ुण के उपासक का लक्ष्य तो िनगर्ुण-िनराकार होता है , परन्तु बिु द्ध से वह सगुण-िनराकार का ही िचन्तन करता है । नमो स्तवन अन अनंत ं ाय सहस्तर् मत ताय र् े, सहस्तर्पादािक्ष िशरोरु बाहव बाहवे।े ू य सहस्तर् नाम्न नाम्नेे परु षाय शाश्वत शाश्वते,े सहस्तर्कोिट यग धािरणेे नम नम:।। ।। ुरुषाय ु धािरण वासांिस जीणार्िन यथा िवहाय नवािन गह् ह्णाित ृ णाित नरोऽपरािण। तथा शरीरािण िवहाय जीणार् न्यन्यािन सय ंयाित ाित नवािन दे ह ही।।2.22।। ी।। ।।

कर्म-सच ू ी पर्स्तावना

vii

भिू मका

ix

आमख ु

xi

1. आत्मा और परमात्मा

1

2. आत्मा का परमात्मा से िवलग होने के बाद क्या होता है ?

2

3. आत्मा अनिभज्ञ क्यों है ?

3

4. आत्मा का शरीर वरण और जन्म कैसे होता है ?

4

5. शरीर में आत्मा के साथ जीवन का स्वरूप क्या है ?

5

6. अध्याय 6

6

7. मन क्या है ? क्या मन ही आत्मा है ?

7

8. िवचार शिक्त का शर्ोत, आत्मा है या मन ?

8

9. क्या मन को समाप्त करना मिु क्त का मागर् है ?

9

10. मिु क्त क्या है ?

10

11. मत्ृ यु के बाद आत्मा का भटकाव कैसे - कैसे होता है ?

11

12. भटकती आत्मा क्या, खाती - पीती है ?

12

13. आत्मा िकसी शरीर को छोड़कर जब नए शरीर को धारण करती है तो पव ू र् यातर्ा होने पर भी मनष्ु य के मिस्तष्क में पव ू र्

13

जन्म की बात क्यों नहीं याद होती ? 14. आत्मा का परमात्मा से िमलन क्या है ?

14

15. क्या धमोर्ं की तमाम मिु क्त की बातें जैसे गंगा स्नान, पर्वचन, दान आिद से भी मत्ृ यु के बाद परमात्मीय िमलन हो जाता 15 है ? 16. क्या धमार्त्मा व्यिक्त को ही मिु क्त िमल सकती है ,दरु ाचारी को नहीं ?

16

17. क्या भगवद्गीता जैसे गर्ंथों के ज्ञान मिु क्त या मोक्ष मागर् में सहायक हैं ?

17

18. मोक्ष की तरफ अगर्िसत होने के िलए यिद कोई साधना न कर सके तो सरल उपाय क्या है ?

18

19. परमाथर् क्या है ?

19

•v•

कर्म-सच ू ी 20. पर्ेम क्या है ?

20

21. मनष्ु य का लक्ष्य क्या होना चािहए जो मिु क्त के िलए भी सहायक हो सके ?

21

• vi •

पर्स्तावना नौ वषर् की उमर् में मै भी मस्ती करने वाले बालकों में से एक था , बरसात का मौसम था , इलेिक्टर्क पॉवर कभी कभी काफी धीमा होने के कारण ,मेरे िपता शर्ी ने आँगन में िबजली के तार को हैंडपंप में में लगाकर पॉवर बढ़ाने की व्यवस्था बनाई थी । जब भी पॉवर कम होता तो वे िबलली

के तार को हैंडपंप से जोड़ दे ते थे , ऐसा करते समय कुछ िचंगारी िनकलती थी । मझ ु े यह दीवाली की फुलझड़ी की तरह अच्छा लगता था । सायं लगभग 5 बजे बािरश के बाद आँगन में कुछ पानी िबखरा था, मझ ु े फुलझड़ी का कर अपने से 2 छोटे पड़ोसी

को यह करतब िदखने का मन बनाया । मैंने उसे बल ु ाया और बोला दे खो तम् ु हें जाद ू िदखाता हँू । मैंने िबजली का तार िनकाल और हैंडपंप पर स्पशर् कराने लगा । तार पर प्लािस्टक का कवर था और अंितम भाग एक स्टील की मोती िपन के साथ खल ु ा था । करतब िदखने के चक्कर में मेरा हाथ िखसककर कब प्लािस्टक के कवर से स्टील की खल ु ी िपन तक आ गया मझ ु े मालम ू ही नहीं चला । मेरी अंगुिलयाँ स्टील की िपन तक आते ही मै जोरदार झटके के साथ आँगन में िगर गया । स्टील की िपन अभी भी मेरी मट् ु ठी में थी । मेरा परू ा शरीर िबजली के झटकों से

कम्पन्न कर रहा था । मै उस समय सबकुछ सोच सकता था िकन्तु कुछ कर नहीं सकता था । मै अपनी मट् ु ठी को खोलने के िलए िसफर् सोचता

था और मानिसक पर्यास करता था िकन्तु वह पर्यास मेरे हाथों तक नहीं पँहुच रहा था । जैसे-जैसे सेकेंड की िस आगे बढ़ रही थी िबजली मझ ु े अपनी िगरफ्त में जकड़ती जा रही थी । मझ ु े लगा मेरा अंत समय आ गया , मैंने िवचार िकया की अंत समय ईश्वर को याद करते है िफर तरु ं त िवचार आया की मेरे िलए माँ से बड़ा कोई ईश्वर अभी नहीं है । मै बार-बार माँ का नाम लेने लगा । मै उस समय अपनी चेतना को महसस ू कर रहा था । पहले पैर की अंगुिलयों से चेतना गायब हो गई िफर धीरे -धीरे वह चेतना पैर के िनचले भाग से ऊपर की तरफ गायब होने लगी । धीरे

चेतना सारे शरीर से गायब होकर िसफर् मिस्तष्क तक बच गई उस समय मै जीवन और मत्ृ यु के बीच की संिध को महसस ू कर रहा था । मझ ु े उस समय कष्ट ज्यादा था िकन्तु डर िबल्कुल नहीं बिल्क मझ ु े मत्ृ यु को नजदीक से दे खने में एक नया एहसास रोमांिचत कर रहा था । कुछ क्षणों के िलए मै इस दिु नया से पथ ू री दिु नया का मेहमान बन बैठा तभी एकाएक िबजली का कनेक्शन कट हुआ और मै वापस आ ृ क होकर दस गया । िबजली से छूटते ही मझ ु े जैसे नवजीवन का अहसास हुआ , वही परु ानी स्फूितर् । मै उठ बैठा और चलकर घर के बरामदे में लािग भीड़

के बीच जाकर बैठ गया और सबसे बात िकया । कुछ घंटों बाद मझ ु े भीषण ज्वर पर्ारं भ हो गया जो लगभग 15 िदनों तक चला अंगुिलया परू ी तरह से जख्मी हो गईं थीं जो मेरे िपताशर्ी की बेहतर सारवार के कारण जल्द ठीक हो गयी ।

मेरी जीवन में घटी इस घटना ने मझ ु े जीवन मत्ृ यु के रहस्यों से पिरिचत कराया । िफर भी आगे जैसे बहुत कुछ जानना बाकी था ।

मै 10वीं क्लास में था गाँव में एक लड़की का िववाह था िजनके घर तक जाने के िलए मझ ु े लगभग 200 मीटर का जंगलनम ु ा रास्ता पार

करना पड़ता था । मै राितर् में उस वैवािहक कायर्कर्म में सेवा दे ने गया था । राितर् के लगभग 12 बजे मै भोजन आिद करके वापस घर की तरफ

बढ़ा , रास्ते में जंगलनम ु ा उस रास्ते में मझ ु े अहसास हुआ की जैसे कुछ पीछे आ रहा है । मै घर पँहुचा कंुडी खटखटाई िपताशर्ी ने दरवाजा खोला और मै अंदर आ गया । मै अपने कमरे में पलंग पर जाकर लेट गया । कमरे में अंधेरा था िकन्तु लेटे हुए सामने मझ ु े िकसी छाया की अनभ ु िू त हुई । वह छाया धीरे -धीरे मेरे पास आयी और मेरे िसर की तरफ बढ़ी । कुछ क्षण के िलए मै कुछ डर गया । मैंने आँखें बंद कर ली । बंद आँखों में एक साक्षात चलिचतर् चलने लगा । मै एक लड़की को बेर के पेड़ से बेर तोड़ते दे ख रहा था । मै उस लड़की का चेहरा दे खने के िलए उसकी तरफ गया तो उसके अपना चेहरा मेरी तरफ िकया । पहले उसका चेहरा आम नौयौवना की तरह सामान्य था िकन्तु तरु ं त उसका चेहरा

भयानक रूप में आ गया । लंबे दाँत, लाल खन ू ी आँखें । ऐसा िहते ही मेरा िसर बरु ी तरह करं ट के झटकों की तरह कांपने लगा । मै हनम ु ान

चालीसा और गायतर्ी मंतर् पर िवश्वास करता था मै दोनों का जेपी करने लगा वह कंपन बंद हुआ । मैंने जप बंद िकया और तरु ं त कम्पन्न िफर

• vii •

पर्स्तावना

चालू हो गया । मझ ु े मालम ू हो गया की कोई पराशिक्त है । मेरा डर समाप्त हो गया । मै जान गया की यह मेरे मिस्तष्क को िनयंितर्त कर मेरे अंदर पर्वेश का पर्यास कर रही । मैं उस पराशिक्त से बात करना चाहा । लगभग 6-7 झटकों के बाद उस पराशिक्त ने मझ ु से कान में कहा और गायब हो गई । इस शिक्त के कारण मझ ु े पन ु ः नए रहस्य का भेद मालम ू चला । इस घटना के कारण मै इस पस् ु तक में आत्मा की शशरीर गित और मत्ृ यु के बाद गित संबंिधत कुछ रहस्यों को दे सकने में सक्षम हो प रहा हँू ।

मै उस समय लगभग 28 वषर् का हो चक ु ा था । मै सपत्नीक जयपरु मिहंदर्ा वल्डर् िसटी के एक पर्ोजेक्ट में समन्वयक के पद पर था ,

यह जगह जयपरु शहर से लगभग 30 िकमी. दरू जयपरु -अजमेर हाइवे के नजद्दीक 4 िकमी. अंदर गर्ामीण क्षेतर् में थी । 15 जनवरी भीषण

ठं ड का मौसम था मह ु ए मिहंदर्ा वल्डर् िसटी के डायरे क्टर ने पर्ोजेक्ट मीिटंग के िलए रात में बल ु ाया । मीिटंग समाप्त होते रात के 11 बज गए । मै अपनी बाइक से रात में वापस लौटने लगा । सज़ ु ेन हाईवे में मेरी बाइक की रफ्तार लगभग 80-90 की रफ्तार से थी तभी सामने एक कुत्ता एकाएक आ गया और बाइक के अगले पिहये से लग गया । मै चलती बाइक के साथ िगर गया और बाइक के साथ लगभग 7-8 मीटर तक िघसटते गया । जैसे बाइक िघसटते हुए रुकी मैंने खद ु के पैर को बाइक से अगल िकया और सड़क के िकनारे बैठ गया । आँखों के सामने चक्कर आ रहा था , मै बेहोश न हो जाऊँ इसिलए मै पर्ाणायाम करने लगा । कुछ समय पर्ाणायाम करने के बाद जब मै सामान्य हुआ तो अपनी चोटों की पिु ष्ट की घट ु ने कुछ िछल चक ु े थे , अंगूठे की हड्डी संिध से भीतर अलग हो गई थी ऐसा लगा । मैंने िहम्मत कर बाइक को उठाया और बाइक को स्टाटर् कर पिु ष्ट करने लगा । अन्य कुछ सामान्य टूट फुट के साथ बाइक का क्लच टूट चक ु ा था । मै बार-बार बाइक स्टाटर् करने के िलए िकक मार रहा था िकन्तु बाइक स्टाटर् नहीं हो रही थी । रास्ता अभी 4 िकमी. और था , गाँव के रास्तों में बाइक के साथ पैदल चलने में

सरु क्षा का डर था । सेज के तमाम कायोर्ं के कारण िबिल्डंगों का िनमार्ण हो रहा था बाहर से पर्वासी मजदरू भी गाँवों में रह रहे थे । चोरी, लट ू और बलात्कार की घटनायें बन रहीं थीं , यह सब िवचार मेरे भीतर चल ही रहा था की तभी एक बाइक रुकी िजसपर 2 लड़के थे । एक लड़के ने

बाइक से उतरकर पछ ू ा की क्या हुआ ? मैंने बताया की एक्सीडेंट हो गया है मेरा बाइक का क्लच टूट गया है िजससे बाइक स्टाटर् नहीं हो रही । उस लड़के ने मझ ु से बाइक स्टाटर् करने की अनम ु ित माँगी मैंने हाँ कर िदया । उसने एक िकक मारी और बाइक स्टाटर् हो गई , उसने स्टाटर्

बाइक को मेरे हाथ में पकड़ाया और बोला इसे संभालों ध्यान रहे बाइक बंद न होने पाए और सीधे चले जाओ । मै उन्हें धन्यवाद करता तबतक वे िनकाल चक ु े थे । मै बाइक लेकर घर आ गया । इस घटना ने मेरे भीतर ईश्वर के पर्ित िवश्वास को पर्गाढ़ कर िदया । मैंने जाना की ईश्वर िकसी न िकसी रूप में आपकी मदद करता है बस आप उसके योग्य होने चािहए । मै योग्य था िजससे ईश्वर ने मेरी मदद की ।

इन घटनाओं की तरह जीवन में तमाम घटनाओं ने मझ ु े हमेशा ज्ञान के कुछ ऐसे रहस्यों को बताया िजसे समझने के िलए सन्यासी, साधक और िजज्ञासु गहन खोज में जीवन का ज्यादा समय नष्ट कर दे ते हैं िफर भी उन्हें सही उत्तर नहीं िमल पाता । मैंने इस िवषय पर िजस ज्ञान का साक्षात अनभ ु व िकया है िसफर् उससे संबंिधत पर्श्नों क उत्तर यहाँ पर्स्तत ु कर रहा हँू । मझ ु े पण ू र् िवश्वास है िक आत्मा के बारे में जानने वाले िजज्ञासओ ु ं के िलए यह काफी महत्वपण ू र् सािबत होगी ।

• viii •

भिू मका सत्य ज्ञान व्यिक्त को पर्बद् ु ध और समद् ु वों के साथ सहज रूप से ृ ध करता हैं । जीवन से संबंिधत तमाम िजज्ञासाओं का उत्तर जीवन के अनभ िमल जाता है िकन्तु कुछ िवशेष िवषय ऐसे भी होते है िजनसे संबंिधत बातें तो अनेकों जगह होती है िकन्तु उसे जानकार परू ी संतिु ष्ट नहीं

होती , तमाम रहस्यमयी िवषयों की िजज्ञासाएँ लोगों को आकिषर्त करती हैं िजसका फायदा कुछ लालची लेखक और िवद्वान उठा लेते हैं । पस् ु तकों के महासमंदर में इन लालची लेखकों द्वारा िलखे गए असत्य ज्ञान का भंडार भी होता है । यह ज्ञान पढ़ने में आकषर्क तो हो सकता है िकन्तु भटकाने से ज्यादा सत्य नहीं ।

मेरा हमेशा पर्यास रहा िक लोग िसफर् सत्य को जानें । पस् ु तकें िसफर् एक माध्यम होती हैं , आगे पण ू र् सत्य को समझने के िलए आपको अनभ ु वों से साक्षात्कार भी अवश्य करना होता है ।

सत्य ज्ञान भीतर के पर्काश शर्ोत के समान है िजसे जानने के बाद आप कभी भटक या दःु खी नहीं हो सकते ।।

• ix •

आमख ु

• xi •

1 आत्मा और परमात्मा यह एक अनोखी शिक्त है । गीत में इसके बारे में कहा गया है -

न जायत जायतेे िमर्यत िमर्यतेे वा कदािच कदािच- न्नाय न्नायंं भत्ूत्वा वा भिवता वा न भय ूयःः । अजो िनत्यः शाश्वतोऽय शाश्वतोऽयंं परुराणोाणो न हन्यत हन्यतेे हन्यमान हन्यमानेे शरीर शरीरेे ॥

आत्मा का जन्म नहीं होता । उसकी मत्ृ यु भी नहीं होती । वह पहे ले न थी, या अबके बाद नहीं होगी, ऐसा नहीं है । आत्मा अजन्मा, िनत्य,

शाश्वत, परु ातन है । शरीर का नाश होने पर भी आत्मा का नाश नहीं होता । “ हे अजर्न ु ! आत्मा को शस्तर्ो काट नहीं सकते । अिग्न जला नहीं

सकता । पानी भीगो नहीं सकता और वायु सख ू ा नहीं सकता । आत्मा, सवर्व्यापी, िस्थर, अचल और सनातन है । उसे अव्यक्त, अिचंत्य और िवकार रिहत कहे ते हैं । ”

मै इसे समझने में कुछ और सहज करूंगा । आत्मा एक ऐसी शिक्त या ऊजार् का स्वरूप है जो नाशवान नहीं है । कोई भी ऊजार् हमें िजस मातर्ा में िमलती है वह िसफर् एक सामान्य मातर्ा है । ऊजार् का एक महाशर्ोत कहीं न कहीं उपिस्थत होता है । जैसे बोतल में िमलने वाला जल समदर् ु जैसे महाशर्ोत में उपिस्थत है , हमें िमलने वाली गमीर् सय ू र् जैसे अिग्न के महाशर्ोत में उपिस्थत है , हमारी गािड़यों में भरा जाने वाला

पेटर्ोिलयम भिू म के नीचे अत्यंत िवशाल मातर्ा में उपिस्थत है । उसी पर्कार आत्मा जैसी महत्वपण ू र् ऊजार् का भी एक महाशर्ोत होना तय है । दिु नया के सभी धमर् गर्ंथ “परमात्मा” के बारे में अवश्य बात करते हैं ।

जहाँ िकसी ऊजार् का शर्ोत है , वह ऊजार् से असंख्यों गन ु ा शिक्तशाली है और कहीं न कहीं से वह अपने आकषर्ण से ऊजार् को जोड़े हुए है । जैसे समस्त नौ गर्हों की िकर्याएं पिरभर्मण, गरु त्वाकषर् ण , ताप और मौसम चकर् मिु खया गर्ह सय ु ू र् के कारण गितशील है , जैसे समदर् ु की तरफ पथ् ु य शर्ोत परमात्मा से जड़ ु ी है । ृ वी का समस्त जल निदयों के मध्यम से आकिषर्त होता है । उसी पर्कार आत्मा रूपी ऊजार् अपने मख् िजस पर्कार आत्मा एक शरीर को जीवंत करने के िलए पयार्प्त है उसी पर्कार परमात्मा बर्ह्माण्ड में समस्त जीवमंडल को जीवंत करने के िलए पयार्प्त है । िजस पर्कार समदर् ु से भाप बनकर जल बादल का स्वरूप लेता है िफर जल बनकर पथ् ृ वी में झील का िनमार्ण करता है , झील से

निदयाँ बनकर वापस समदर् ु में वह जल िमल जाता है वैसे ही परमात्मा रूपी समदर् ु से आत्मा रूपी जल िनकलकर तमाम योिनयों का चक्कर काटकर वापस परमात्मा में िवलय हो जाता है ।

•1•

2 आत्मा का परमात्मा से िवलग होने के बाद क्या होता है ? मन होनेे का िदया था । जब परम आत्मा महाशर्ोत से आत्मा पथ थक उसेे ैं े उदाहरण समदर् ु से जल का भाप के रूप में अलग होन ृ क होती है जो उस

अपनी शिक्त के उपयोग की आवश्यकता पड़ती है । बर्ह्माण्ड में अन अनेक ेकोंों जीवम जीवमंड ं ल हैं । आत्मा िकसी एक जीवम डल जीवमंड ं ल का चन डल ाव कर जीवम जीवमंड ं ल डल ुनाव में पर्व पर्वेश े करती है । आत्मा अनिभज्ञ है अभी िक उस उसेे िकस योिन में जीव जीवंत ं होना है ।

•2•

3 आत्मा अनिभज्ञ क्यों है ? जब कोई िवद्याथीर् पहली बार िवद्यार िवद्यारंं भ करता है तो वह िवद्या से अनिभज्ञ होता है , जब कोई बालक जन्म लेत ताा है तो वह जीवन को

जीन जीनेे के िलए बोलना बोलना, चलना आिद से अनिभज्ञ होता है , उसी पर्कार आत्मा आत्मा, परम आत्मा से पथ थक उसेे क्या करना है ृ क होकर अनिभज्ञ है िक उस और िकस योिन को धारण करना है िकन्तु एक पर्ाकृ ितक चेत तना ना जीव मण्डल में सद सदैै व मौजद थक ू है जो परमात्मा से पथ ृ क आत्मा की गित को स्वरूप दे त तीी है । जस ै े जीवधािरयों में सभ ंभोग ोग की िशक्षा नहीं दी जाती िकन्तु यह ज्ञान स्वतः पर्कृ ित द्वारा जीवों को पर्ाप्त हो जाता है उसी पर्कार आत्मा का िकसी योिन में शरीर को वरण करन करनेे के काय कायर्र् में पर्कृ ित सहयोगी है ।

•3•

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