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Story Transcript

ददिवव्यास्त्र दविमररर्शिननी

1

शनीदनग्रहव्याचव्यारर्शिदविररचतव्या

ददिवव्यास्त्रदविमररर्शिननी दहननी अननुविव्यादि सदहत

ललेखक

शनीभव्यागवितव्याननंदि गनुर

आरव्यार्शिवितर्शि सनव्यातन विव्यादहननी 'धमर्शिरव्याज' कले ससौजन्य सले प्रकव्याररत NOTION PRESS

शनीदनग्रहव्याचव्यारर्शिदविररचतव्या

ददिवव्यास्त्र दविमररर्शिननी

2

NOTION PRESS India. Singapore. Malaysia. ISBN 978-1-63714-439-8 First Pubished – 2020 Second Edition - 2021 This book has been published with all reasonable efforts taken to make the material error-free after the consent of the author. No part of this book shall be used, reproduced in any manner whatsoever without written permission from the author, except in the case of brief quotations embodied in critical articles and reviews. The Author of this book is solely responsible and liable for its content including but not limited to the views, representations, descriptions, statements, information, opinions and references [“Content”]. The Content of this book shall not constitute or be construed or deemed to reflect the opinion or expression of the Publisher or Editor. Neither the Publisher nor Editor endorse or approve the Content of this book or guarantee the reliability, accuracy or completeness of the Content published herein and do not make any representations or warranties of any kind, express or implied, including but not limited to the implied warranties of merchantability, fitness for a particular purpose. The Publisher and Editor shall not be liable whatsoever for any errors, omissions, whether such errors or omissions result from negligence, accident, or any other cause or claims for loss or damages of any kind, including without limitation, indirect or consequential loss or damage arising out of use, inability to use, or about the reliability, accuracy or sufficiency of the information contained in this book.

All Rights Reserved - Author

शनीदनग्रहव्याचव्यारर्शिदविररचतव्या

ददिवव्यास्त्र दविमररर्शिननी

3

शनीदनग्रहव्याचव्यारर्शिदविररचतव्या

ददिवव्यास्त्रदविमररर्शिननी दहननी अननुविव्यादि सदहत

ललेखक

शनीभव्यागवितव्याननंदि गनुर

आरव्यार्शिवितर्शि सनव्यातन विव्यादहननी 'धमर्शिरव्याज' कले ससौजन्य सले प्रकव्याररत NOTION PRESS

शनीदनग्रहव्याचव्यारर्शिदविररचतव्या

ददिवव्यास्त्र दविमररर्शिननी

4

धमर्शिसनंरक्षणव्यारव्यार्शिरव्याधमर्शिसनंहव्यारहलेतविले |

दनग्रहव्याणव्याञ धमव्यार्शिजव्या ललोकले ललोकले प्रविधर्शितव्यामम् ||

दनग्रहव्याचव्यारर्शि शनीभव्यागवितव्याननंदि गनुर

शनीदनग्रहव्याचव्यारर्शिदविररचतव्या

ददिवव्यास्त्र दविमररर्शिननी

5

रजनककी प्रलेरणव्या सले रह ग्रन्थ दनदमर्शित हुआ, उनकले शनीचरणलोनं ममें समदरर्शित

आचव्यारर्शिशनी रङ्करदिव्यास गनुर

शनीदनग्रहव्याचव्यारर्शिदविररचतव्या

ददिवव्यास्त्र दविमररर्शिननी

6

प्रव्याक्करन रव्यास्त्र और रस्त्र दिलोनलोनं कव्या हनी सव्यान समव्याज ममें अरररहव्यारर्शि हहै। रजस प्रकव्यार सले एक रव्यास्त्रज वदक्ति समव्याज ककी रक्षव्या करतव्या हहै, विहैसले हनी उरचत हव्यारलोनं ममें ससत

रस्त्र भनी सनंसव्यार कव्या तव्याण करतव्या हहै। ब्रह्मदरर्शि विररष्ठ कले मत ममें रह बव्यात विरणर्शित हहै दक रजस क्षलेत ममें एक भनी धननुधर्शिर हलोतव्या हहै, उसकले आशर ममें रलेर जन दनभर्शिर

हलोकर दनविव्यास करतले हहैं। धननुदविर्शिदव्या रजनुविर्वेदिनीर उर-विलेदिव्यारधकव्यार कले अन्तगर्शित आतनी हहै। इसकले प्रव्याचनीन आचव्यारर्यों ममें भगविव्यानम् ररवि, विहैरमव्यारन, रररनुरव्याम, दविशव्यादमत, विररष्ठ, दलोण एविनं रव्यानंगर्शिधर आददि प्ररसद्ध हहैं। अधनुनव्या धननुदविर्शिदव्या मव्यात एक

ककीड़व्यागत दविरर हलो रसमट कर रह गरनी हहै। कनुछ विनविव्यासनी समनुदिव्यार इसकले ररनंररव्यागत स्वरूर कलो आज भनी जनीदवित रखले हुए हहैं।

रनुद्ध ममें अनलेकलोनं विणर्यों तरव्या जव्यादतरलोनं कव्या समव्याविलेर हलोतव्या हहै। मनुख्य रलोद्धव्या सममूह क्षदतरलोनं कव्या हनी हलोतव्या हहै। रनुद्धसल ममें मरव्यार्शिदिव्या तरव्या रहैलनी कव्या ररक्षण ब्रव्याह्मण

करतले हहैं - धननुविर्वेदिले गनुरदविर्शिप्रप। रनुद्धसल ममें अश, हव्यारनी, रर आददि कव्या सनंचव्यालन कलोचविव्यानम्, सव्याररनी, समूत, महव्यावित आददि करतले हहैं। रनुद्ध कव्या उरस्कर कमर्शिकव्यार, लसौहकव्यार, अरसदनमव्यार्शितव्या आददि तहैरव्यार करतले हहैं - रजनुविर्वेदि भनी कहतले हहैं -

नमस्तक्षभलो ररकव्यारलेभश्च विलो नमलो नमप कनुलव्याललेभप कमव्यार्शिरलेभश्च। रनुद्ध ममें धमर्शिरक्षव्या कले रलए चव्यारलोनं विणर्यों कले दहतव्यारर्शि रस्त्रव्यारधकव्यार सस्मृदतरलोनं सले रसद्ध हहै। आधनुदनक रनुद्धरहैलनी ममें भनी सनंददिग्ध विस्तनुओनं कलो खलोजनले तरव्या अन्य सनंविलेदिनरनील

कव्यारर्यों कले रलए कनुतलोनं कव्या प्ररलोग हलोतव्या हहै - नमप शभप शरदतभश्च । रमूविर्शिकव्याल ममें भनी सहैकड़लोनं सहसलोनं रलोजनलोनं तक मव्यारक क्षमतव्या रखनले विव्यालले अस्त्रलोनं कव्या

रररदविदनरलोग मन्त्रविलेतव्या ऋदरगण करतले हहैं - तलेरव्यानं सहसरलोजनलेऽवि धनव्यादन

तन्मरस । समरव्याननुसव्यार जव्यान दविजव्यान ककी ररमरव्या कव्या ललोर एविनं प्रव्याकट्य हलोतव्या रहव्या हहै। रमूविर्शिकव्याल ममें दविमव्यान तरव्या प्रक्षलेरव्यास्त्रलोनं कव्या विणर्शिन रव्यास्त्रलोनं तरव्या सनंदहतव्याओनं शनीदनग्रहव्याचव्यारर्शिदविररचतव्या

ददिवव्यास्त्र दविमररर्शिननी

7

ममें प्रव्याप्त हलोतव्या हहै रजससले उस समर कले जव्यान दविजव्यान कव्या बलोध करनव्या कदठिन नहनीनं हहै। बनीच ममें कव्यालकम कले प्रभव्यावि सले उनकव्या ललोर हलोनव्या और आज रनुनप

आधनुदनक दविजव्यान कले उत्करर्शि ममें उनकव्या अनंरतप प्रकटनीकस्मृत हलोनव्या रसद्ध हनी हहै। रजनुविर्वेदि कव्या अप्रदतरर समूक्ति तलो रमूणर्शितरव्या रनुद्ध कलो हनी समदरर्शित हहै।

प्रस्तनुत ग्रनंर ददिवव्यास्त्र दविमररर्शिननी अरनले आर ममें आधनुदनक समव्याज कले रलरले एक महत्वरमूणर्शि कस्मृदत हहै कलोनंदक इसममें जव्यानबनीज कले सनंरक्षण हलेतनु महत्वरमूणर्शि लनुप्तप्रव्यार

ददिवव्यास्त्रलोनं कले मन्त्र, स्वरूर, मरव्यार्शिदिव्या एविनं दविधव्यानलोनं कव्या एकतनीकरण दकरव्या गरव्या हहै जलो दक एक प्ररनंसननीर तरव्या शमसव्याध्य कल्प हहै। सनंसव्यार कलो आरधभसौदतक,

आरधदिहैदविक तरव्या आध्यव्यारत्मिक रटललोनं रर अनलेक ददिव तत्व सनंचव्यारलत करतले हहैं रजनककी ऊजव्यार्शि तरव्या क्षमतव्या समरव्याननुसव्यार ददिवव्यास्त्रलोनं कले रूर ममें रररलरक्षत हलोतनी हहै। प्रस्तनुत ग्रनंर ममें उनकव्या ररव्यासम्भवि रचतण भनी सरलतव्या सले दकरव्या गरव्या हहै।

अदहबनुर्शिध, ररभलेशर, दिनुविव्यार्शिसव्या, भरदव्याज, नव्यारदि, ररवि, विहैरमव्यारन तरव्या नव्याररनंरनीर रसद्धलोनं कले मत सले ददिवव्यास्त्रलोनं कव्या जलो स्वरूर एविनं दविधव्यान विरणर्शित हहै, उनकव्या

मव्यानविनीर दृदष्टि सले ररव्यासम्भवि अविललोकन करकले ग्रन्थकव्यार शनीभव्यागवितव्याननंदि गनुर नले एक हनी सव्यान रर सनंकरलत दकरव्या हहै जलो दक अभनी तक उरलब्ध तरव्या

प्रकव्याररत रमूविर्शिग्रन्थलोनं ममें दष्टिव नहनीनं हलोतव्या हहै। आचव्यारर्शि अरण रव्याणलेर जनी नले उनकव्या रबव्याननुरव्यासन रररमव्यारजर्शित करकले शव्याघननीर कस्मृत्य दकरव्या हहै अतप विले भनी

धन्यविव्यादि कले रव्यात हहैं। महैं आचव्यारर्शिदर कले मङ्गल तरव्या जव्यानव्यारभविधर्शिन ककी कव्यामनव्या करतव्या हहूँ।

आचव्यारर्शि रङ्करदिव्यास गनुर *-*-*

शनीदनग्रहव्याचव्यारर्शिदविररचतव्या

ददिवव्यास्त्र दविमररर्शिननी

8

ददिवव्यास्त्रदविमररर्शिननी दनग्रह उविव्याच

रस्त्रलेण ररक्षतले रव्याष्टिषले रव्यास्त्रचचव्यार्शि प्रवितर्शितले |

रस्त्रभनीत्यव्या सदिव्याधमर्शिसस्तष्ठन्नदर न बव्याधतले ||०१|| दविजरले रव्याज्यलकनीश्च मस्मृतले दनजर्शिरसङ्कनुलमम् |

धरणव्यानं चव्याक्षरव्या ककीदतर्शिप सत्यव्याजसौ सदकरले गतले ||०२|| अधमर्शिप क्षदतरसहैर रदव्यारधमरणनं गस्मृहले |

धमव्यार्शिरर्वे सन्त्यजलेतम् प्रव्याणव्यानम् मलोक्षभव्यागनी भविलेतम् रनुमव्यानम् ||०३|| ब्रव्याह्मणव्यारर्वे गविव्यारर्वे विव्या स्त्रनीरनु बव्यालविधलेरनु च |

सव्याङ्करव्यार्शिदक्षणव्यारर्थं विव्या प्रव्याणत्यव्यागनी तनु मलोक्षभव्याकम् ||०४|| दनग्रहव्याचव्यारर्शि नले कहव्या - रस्त्र सले ररक्षत रव्याष्टिष ममें हनी रव्यास्त्रचचव्यार्शि कव्या प्रसव्यार हलोतव्या हहै | रस्त्र कले भर सले अधमर्शि उरससत हलोतव्या हुआ भनी बव्याधव्या नहनीनं

रहुहूँचव्यातव्या हहै | जलो वदक्ति रनुद्ध ममें ससम्मिरलत हलोनले जव्यातव्या हहै, विह जनीतनले रर रव्याज्यलकनी कलो प्रव्याप्त करतव्या हहै, मस्मृत्यनु रर दिलेवितव्याओनं कले सममूह ममें सव्यान रव्यातव्या हहै तरव्या रस्मृथनी रर उसककी ककीदतर्शि अक्षर रहतनी हहै | क्षदतर कले रलए घर ममें वव्यारधग्रस्त हलोकर मरनव्या अधमर्शि कहव्या गरव्या हहै | धमर्शि ककी रक्षव्या कले रलए जलो अरनले प्रव्याणलोनं कव्या रररत्यव्याग करले, विह रनुरर मलोक्ष कव्या भव्यागनी हलोतव्या हहै | ब्रव्याह्मण, गसौ, स्त्रनी तरव्या बव्यालक आददि ककी हत्यव्या हलोनले रर उनककी रक्षव्या कले रलए, अरविव्या समव्याज कलो विणर्शिसनंकरतव्या सले बचव्यानले कले रलए प्रव्याणलोनं कव्या त्यव्याग करनले विव्यालव्या वदक्ति मलोक्ष कलो प्रव्याप्त करतव्या हहै | शनीदनग्रहव्याचव्यारर्शिदविररचतव्या

ददिवव्यास्त्र दविमररर्शिननी

9

दव्यादविमसौ रनुररसौ ललोकले समूरर्शिमणलभलेददिनसौ |

रररवव्याडलोगरनुक्तिश्च रणले चव्यारभमनुखलो हतप ||०५|| ममूसरर्शितनं दविकलनं भनीतमकरनं रस्त्रविरजर्शितमम् |

रस्त्ररनं बव्यालनं तरव्या विस्मृद्धमरस्त्रमन्यरलोरधनमम् ||०६|| दविमनुखनं दिनीनविव्याकञ दविनतनं नहैवि दहनंसरलेतम् |

सव्यामव्यान्यले कमर्शिरण प्रव्याजलो ददिवव्यास्त्रव्यारण न रलोजरलेतम् ||०७|| चव्यारबव्याणगदिव्यारदक्तिरमूलदिणकस्मृरव्याणकव्याप |

ददिवव्यास्त्रक्षलेरणले प्रलोक्तिव्याप सविव्यार्शिभव्याविले कनुरव्याससस्मृतव्याप ||०८|| रजतलेरन्द्रिरलो रजतशव्यासलो रजतदिसौबर्शिल्यमत्सरप |

धननुविर्वेदिले सदिव्या रलोज्यप सविर्शिननीदतसमरनतप ||०९|| इस सनंसव्यार ममें दिलो हनी रनुरर समूरर्शिमणल कव्या भलेदिन करकले ऊरर्शिगदत कलो प्रव्याप्त करतले हहैं - एक तलो रलोगरनुक्ति सनंन्यव्यासनी और दिमूसरव्या रनुद्धभमूदम ममें विनीरगदत कलो प्रव्याप्त करनले विव्यालव्या मननुष्य | ममूरछर्शित, दविकल, भरभनीत, विस्त्र खलोल दिलेनले विव्यालव्या, रस्त्रहनीन, स्त्रनी, बव्यालक, विस्मृद्ध, दिमूसरले सले रनुद्ध ममें वस्त, रनुद्ध सले दविमनुख, दिनीनविव्याकलोनं कलो बलोलनले विव्यालव्या तरव्या ररण ममें आरले हुए वदक्ति ककी हत्यव्या नहनीनं करननी चव्यादहए | सव्यामव्यान्य कमर्शि ममें बनुदद्धमव्यानम् वदक्ति ददिवव्यास्त्रलोनं कव्या प्ररलोग न करले | ददिवव्यास्त्र कलो चलव्यानले कले रलए धननुर-बव्याण, गदिव्या, रदक्ति, रमूल, दिण तरव्या कस्मृरव्याण कव्या प्ररलोग कहव्या गरव्या हहै | इन सबलोनं कले अभव्यावि ममें कनुर कव्या प्ररलोग बतव्यारव्या गरव्या हहै | इरन्द्रिर, शव्यास, दिनुबर्शिलतव्या एविनं मत्सर कलो जनीतनले विव्यालव्या , सभनी ननीदतरलोनं कले जव्यान सले रनुक्ति वदक्ति कलो हनी धननुविर्वेदि ममें लगव्यानव्या चव्यादहए | शनीदनग्रहव्याचव्यारर्शिदविररचतव्या

ददिवव्यास्त्र दविमररर्शिननी

10

रलो दिलेविव्यानव्यानं दप्ररलो भमूत्वव्या न दिलेविव्यानव्यानं दप्ररङ्करप |

स दिलेविव्यानव्यानंदप्ररलो भमूत्वव्या न दिलेविव्यानव्यानं दप्ररलो भविलेतम् ||१०|| रलो दिलेविव्यानव्यानंदप्ररलो भमूत्वव्या नदिलेविव्यानव्यानं दप्ररङ्करप |

स दिलेविव्यानव्यानं दप्ररलो भमूत्वव्या न दिलेविव्यानव्यानंदप्ररलो भविलेतम् ||११|| जलो दिलेवितव्याओनं कव्या दप्रर हलोकर भनी धमव्यार्शिचव्यार कले दव्यारव्या दिलेवितव्याओनं कव्या दप्रर नहनीनं करतव्या हहै, विह ममूखर्शि बन जव्यातव्या हहै और दफिर दिलेवितव्याओनं कव्या दप्रर नहनीनं रह रव्यातव्या हहै | जलो ममूखर्शि हलोकर भनी रत्न कले समव्यान प्रकव्याररत दिलेवितव्याओनं कव्या धमव्यार्शिचव्यार कले दव्यारव्या दप्रर करतव्या हहै, विह दिलेवितव्याओनं कव्या दप्रर बन जव्यातव्या हहै और दफिर ममूखर्शि नहनीनं रहतव्या हहै |

जव्यानविस्मृद्धलो भविलेददप्रश्चममूविस्मृद्धश्च भमूरदतप |

कलोरविस्मृद्धलो भविलेदहैशलो वित्सरलेण चतनुरर्शिकप ||१२|| जगसन्त दिलेविव्या मन्त्रव्याश्च सविर्वे दविप्ररदिव्याननुगव्याप |

तसव्यातम् मन्त्रप्ररलोगव्याश्च प्रकतर्शिवव्याप सनुमलेधसव्या ||१३|| ब्रव्याह्मण जव्यान सले विस्मृद्ध हलोतव्या हहै, रव्याजव्या अरननी सलेनव्या सले विस्मृद्ध हलोतव्या हहै , विहैश धन सले तरव्या चतनुरर्शिविणर्शि (रमूद) अरननी आरनु कले विरर्यों सले विस्मृद्ध हलोतव्या हहै | सममूणर्शि सनंसव्यार, दिलेवितव्या तरव्या मन्त्र, रले सभनी ब्रव्याह्मण कले चरणलोनं कव्या अननुसरण करतले हहैं, अतएवि अरच्छी बनुदद्ध कले दव्यारव्या हनी मन्त्रलोनं कव्या प्ररलोग करनव्या चव्यादहए |

शनीदनग्रहव्याचव्यारर्शिदविररचतव्या

ददिवव्यास्त्र दविमररर्शिननी

11

विकव्यारव्यादव्यासनुदिलेविश्च तरव्या विहैरव्याखनननप |

रकव्यारव्यारनंकरश्चहैवि शव्या रकव्यारव्याच्च दनदमर्शितप ||१४|| शव्या विव्या मव्या रङ्करलो भमूरव्याददषनुविर्वैरव्याखनननप |

तसव्यादिच्च नु व्यारणले कव्यालले नव्यानस्मृतनं रररनं विदिलेतम् ||१५|| रबब्रह्मलेदत तनं प्रव्याहुवव्यार्शिसब्रव्याह्मरनुकव्यादिरप |

तसलोरव्यासनरव्या रसदद्धस्तसव्यारबलो महलेशरप ||१६|| विकव्यार सले हनी विव्यासनुदिलेवि रब बनतव्या हहै और विकव्यार सले हनी विहैरव्याखननन (गधव्या) भनी बनतव्या हहै | रकव्यार सले हनी रनंकर रब भनी बनतव्या हहै और शव्या (कनुतव्या) भनी | रजस प्रकव्यार सले रकव्यार कव्या प्ररलोग रनंकर कले सव्यान रर शव्या अरविव्या विकव्यार कव्या प्ररलोग दविषनु कले सव्यान रर विहैरव्याखननन आददि कले उच्चव्यारण ममें न लगले, इस हलेतनु सले रबलोनं कले उच्चव्यारण कले समर असत्य एविनं गव्यालनी आददि कठिलोर रबलोनं कव्या प्ररलोग नहनीनं करनव्या चव्यादहए | उस रब कलो 'ब्रह्म', ऐसव्या वव्यास विररष्ठ, रनुकदिलेवि आददि ब्रह्मविलेतव्याओनं नले कहव्या हहै | उस रबब्रह्म ककी उरव्यासनव्या सले हनी कल्यव्याण ककी प्रव्यादप्त हलोतनी हहै इसनीरलए रब कलो महव्यानम् ईशर कहव्या गरव्या हहै |

सनुखदिनुपखले समले कस्मृत्वव्या लव्याभव्यालव्याभसौ जरव्याजरसौ |

ततलो रनुद्धव्यार रनुज्यस्व कस्मृषव्याजहैरव्या गरनीरसनी ||१७|| अविललोदकतनं सस्मृजननं मरव्या रररवितर्शिननं त्वललोदकतमम् |

अविललोदकतव्याप सकलव्या जनव्या: सकलनं जगतम् रररविदतर्शितमम् ||१८||

शनीदनग्रहव्याचव्यारर्शिदविररचतव्या

ददिवव्यास्त्र दविमररर्शिननी

12

रररविदतर्शितनं खलनु रलोरणञ्जगतलो दनरव्यातनमदनुतमम् |

भव्याग्यञ मले रररविदतर्शितनं रररविदतर्शितव्यादन रधरव्या दकरव्या: ||१९|| मम सनुहदिप रररविदतर्शितव्या मम रतविप रररविदतर्शितव्या: |

रररविदतर्शितव्या दविबनुधव्यारधरव्याप रररविदतर्शितञ कललेविरमम् ||२०|| रररविदतर्शितव्या मम सत्यतव्या रनुनरलेवि गलोरनु च मलेऽनस्मृतमम् |

रररविदतर्शितव्याविरणसौ मम सकलव्या ग्रहव्याप रररविदतर्शितव्या: ||२१|| सविर्शिञ मले रररविदतर्शितनं भवितप कस्मृरव्यारररविदतर्शितव्या |

तमसव्यादर सव्या रददि दनषस्मृतव्या कमललेर कव्या मम सद्गदत: ? ||२२|| सनुख-दिनुपख, लव्याभ-अलव्याभ, जर-ररव्याजर कलो एक समव्यान मव्यानतले हुए रनुद्ध कले कतर्शिवमव्यात कले रलरले लडले, ऐसनी भगविव्यानम् शनीकस्मृष ककी महत्वरमूणर्शि आजव्या हहै | ''महैंनले सस्मृदष्टि कलो बनतले हुए दिलेखव्या और इसकले रररवितर्शिन कलो भनी दिलेखव्या | महैंनले सभनी ललोगलोनं कलो दिलेखव्या और समस्त सनंसव्यार कलो बदिलतले हुए दिलेखव्या | महैंनले सनंसव्यार कव्या रलोरण हलोतले हुए दिलेखव्या हहै और उसकले अदनुत सनंहव्यार कलो भनी दिलेखव्या | मलेरव्या भव्याग्य भनी बदिल गरव्या और बनुदद्ध सले प्रलेररत हलोकर मलेरनी दकरव्याएनं भनी रररविदतर्शित हलोतनी रहनीनं | मलेरले दमतगण बदिल गए, मलेरले रतनुओनं कव्या वविहव्यार भनी बदिल गरव्या, दिलेवितव्यागण भनी मलेरले प्रदत बदिल गए और रहव्यानं तक दक मलेरव्या ररनीर भनी बदिलतव्या हनी रहव्या | मलेरव्या सत्य मलेरले प्रदत बदिल गरव्या तरव्या इनंददरलोनं ममें ससत मलेरव्या असत्य भनी बदिल गरव्या | दिलोनलोनं सनंध्यव्याएनं बदिलतनी रहनीनं और ग्रहलोनं ककी चव्याल भनी बदिल गरनी | रले सब बदिलतले रहले, दकन्तनु मलेरले प्रदत आरककी कस्मृरव्यादृदष्टि कभनी नहनीनं बदिलनी | हले नव्यारव्यारण ! रददि मलेरले मलोह कले कव्यारण कभनी विह भनी बदिल जव्यारले तलो कव्या कभनी मलेरनी सद्गदत हलो रव्याएगनी !!'' शनीदनग्रहव्याचव्यारर्शिदविररचतव्या

ददिवव्यास्त्र दविमररर्शिननी

13

एविनं दविरचन्त्य कव्यालस गदतरसस्त सनुदिज नु र्शिरव्या |

सम्यगजव्यात्वव्या नरप रक्षव्यारक्षसौ मत्वव्या रणनं वजलेतम् ||२३|| न धनलेन न रूरलेण न रणलेनव्यारभविद्धर्शिनमम् |

न विव्याजनीदविकरव्या भमूत्यव्या न चव्यासस्त ग्रन्थसङ्ग्रहहैप ||२४|| रस गलेहले हरलेभर्शिदक्तिप सविर्शिदिव्यादतरररमूजनमम् |

दिरव्या भमूतलेरनु सविर्वेरनु तत प्रलोक्तिव्या समनुन्नदत: ||२५|| ऐसव्या दविचव्यार करकले कव्याल ककी गदत कलो दिनुजर्शिरव्या समझकर भलनी प्रकव्यार सले रक्ष एविनं दविरक्ष कव्या जव्यान रखतले हुए वदक्ति रनुद्धभमूदम ममें जव्याए | धन, रूर, वव्यारव्यार ककी विस्मृदद्ध अरविव्या उतम आजनीदविकव्या अरविव्या रसदद्ध सले, ग्रन्थलोनं कले सनंग्रह सले उन्नदत नहनीनं हलोतनी हहै | रजसकले घर ममें भगविव्यानम् दविषनु कले प्रदत भदक्ति हहै, सदिहैवि अदतरररलोनं कव्या सत्कव्यार हलोतव्या हहै, सभनी प्रव्यारणरलोनं कले प्रदत दिरव्या कव्या वविहव्यार हलोतव्या हहै, विहनीनं उन्नदत कहनी गरनी हहै |

नननीशरश्चलोरमन्यनुलर्लोमरश्च महव्यामनुदनप |

मव्याकर्शिणलेरलो दविजव्यानव्यादत सत्कस्मृरव्याञहैवि धमूजर्शिटलेप ||२६|| रद्ध्यतले दिनुजर र्शि प कव्याललो रसव्यादहै रङ्करव्याजरव्या |

तसव्यादिजव्यानसम्मिलोहसौ त्यकव्या रम्भनुरदिनं सर ||२७|| नननीशर, उरमन्यनु, महव्यामनुदन ललोमर और मव्याकर्थंडलेर हनी भगविव्यानम् ररवि ककी सनुनर कस्मृरव्या कलो जव्यानतले हहैं | ररविजनी ककी आजव्या सले दिनुजर्शिर कव्याल भनी स्तनंरभत हलो जव्यातव्या हहै, अतएवि अजव्यान एविनं मलोह कलो छलोडकर ररविजनी कले चरणलोनं कव्या सरण करलो | शनीदनग्रहव्याचव्यारर्शिदविररचतव्या

ददिवव्यास्त्र दविमररर्शिननी

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जन्मनहैवि कलसौ घलोरले क्वरचसन्मतनं क्वरचददरनु: | हन्यतले रविनहैदिर्शिष्टिनु हैस विर्शिदिव्यारविनलो नरप ||२८||

त्यव्यागरनुक्तिप क्षमव्यारनीलप सविर्शिभमूतलोरकव्यारकप |

हन्यतले कलेविलनं दविप्रप कनुरव्याज्यले मलेरहलेलरव्या ||२९||

जनव्यान्रक्षलेतम् ससतव्यानम् रस्मृष्ठले ससतव्यानम् रव्याशर्वे तनु रमूजरलेतम् | सम्मिनुखव्यानम् ममर्शिघव्यातस्तनु रनुद्धधमर्शि: सनव्यातनप ||३०|| सविर्शिदिव्या सहैन्यरदक्तिस्तनु रनुष्टिव्या भविदत भमूभस्मृतव्या |

विव्यादहन्यव्या रनुष्यतले दिणप सविर्लोरदविनव्यारकप ||३१|| मरव्यार्शिदिव्या चहैवि न्यव्यारश्च रनुष्यलेतले दिणननीदतनव्या |

उभव्याभव्यानं रनुष्यतले धमर्शि: समव्याजस्तलेन रनुष्यतले ||३२|| इस घलोर करलकव्याल ममें जन्म सले हनी दमत एविनं जन्म सले हनी कलोई रतनु हलोतव्या हहै कलोनंदक जन्म सले हनी अरविन (दहनमू) वदक्ति दिनुष्टि मलेरलोनं कले दव्यारव्या सदिव्या मव्यारव्या जव्यातव्या हहै | त्यव्यागरनुक्ति, क्षमव्यारनील, प्रव्यारणरलोनं कले प्रदत उरकव्यार करनले विव्यालव्या ब्रव्याह्मण भनी कनुरव्यासन ममें कलेविल मलेर समरर्शिन न करनले कले कव्यारण मव्यारव्या जव्यातव्या हहै | धमर्शिरनुद्ध ममें तत्पर रलोद्धव्या कलो चव्यादहए दक विह अरनले रनीछले खड़ले (आरशतलोनं, प्रजव्या, ररणव्यागत तरव्या कननीर रलोद्धव्याओनं) ककी रक्षव्या करले, अरनले रव्याशर्शिभव्याग ममें खड़ले (सहरलोदगरलोनं तरव्या मव्यागर्शिदिरर्शिक रलोद्धव्याओनं ) कव्या सम्मिव्यान करले तरव्या अरनले सम्मिनुख खड़ले (धमर्शिदलोहनी दविररक्षरलोनं) कव्या ममर्शिघव्यातक प्रहव्यारलोनं सले सनंहव्यार कर डव्यालले, रहनी रनुद्ध कव्या सनव्यातन धमर्शि हहै | कनुरल रव्याजव्या अरननी सलेनव्या कलो रनुष्टि करतव्या हहै | सलेनव्या हनी दिण कलो रनुष्टि करतनी हहै, दिण न्यव्यार तरव्या मरव्यार्शिदिव्या कलो रनुष्टि करतव्या हहै | न्यव्यार तरव्या मरव्यार्शिदिव्या धमर्शि कलो रनुष्टि करतले हहैं और धमर्शि समव्याज कलो रनुष्टि करतव्या हहै | शनीदनग्रहव्याचव्यारर्शिदविररचतव्या

ददिवव्यास्त्र दविमररर्शिननी

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रनं ददिवव्यास्त्रव्यारण ललोकले न च मनुदनविचनव्यादव्याकदिणव्या ननुदिसन्त रनं दिलेविव्या नहैवि घ्नसन्त विनदिननुददिदतजव्या नहैवि नव्यागव्या न रक्षव्याप | विव्यामव्याभमूज्यव्यादविलव्यासहैप प्रचरलतरमणनीनलेतकव्याणप्रहव्यारहै -

जव्यार्शिरव्यामव्यारव्याकनुचव्याभव्यानं दनरतदत मनुदहरप कलो बलनी कव्यामदिलेविव्यातम् ||३३|| रजसले सनंसव्यार ममें ददिवव्यास्त्र, मनुदनरलोनं कले विचनलोनं सले प्रलेररत शव्यार भनी नहनीनं मव्यार रव्यातले, रजसले दिलेवितव्या, विन्यजनीवि, दिव्यानवि, दिहैत्य, नव्याग और रक्ष भनी नहनीनं मव्यार रव्यातले हहैं, विह ममूखर्शि भनी स्त्रनी ककी भस्मृकनुदट सले सनंचव्यारलत नरनरूरनी बव्याण कले प्रहव्यार सले तरव्या स्त्रनी कले मव्यारव्यामर स्तनलोनं सले मव्यारव्या जव्यातव्या हहै , इस ससदत ममें कव्यामदिलेवि कले समव्यान बलनी कसौन हलोगव्या ?

न ब्रह्मव्या नहैवि रदलो न च भस्मृगनुतनरव्याकव्यान्त इन्द्रिलो बरलष्ठ -

स्तव्यारन्तले नहैवि ललोकनं न च सस्मृजनकलव्यानं कल्परन्तनीदत मन्यले |

विस्मृनव्याहल्यव्या च विव्याणनी दविजरदत दतदिरव्यान्मलोदहननीरूरकव्यासन्तप

कनं कहैविव्यार्शि हसन्त कव्यामलो न जगदत दविददितसविर्शिदिलेविव्यारधदिलेविप ||३४|| ब्रह्मव्या, रद, भस्मृगनुरनुतनी लकनी कले रदत दविषनु अरविव्या बलविव्यानम् इन्द्रि आददि इस सनंसव्यार कव्या दनमव्यार्शिण अरविव्या रव्यालन नहनीनं करतले हहैं , ऐसव्या महैं समझतव्या हहूँ, कलोनंदक दविषनु कलो विस्मृनव्या, इन्द्रि कलो अहल्यव्या, ब्रह्मव्या कलो सरस्वतनी एविनं रद कलो मलोदहननी कले रूर ककी कव्यासन्त जनीत ललेतनी हहै | सभनी दिलेवितव्याओनं कव्या भनी दिलेवितव्या कव्यामदिलेवि दकसले, दकन उरव्यारलोनं कले दव्यारव्या मव्यार डव्यालले, इसले सनंसव्यार ममें कलोई नहनीनं जव्यानतव्या हहै |

शनीदनग्रहव्याचव्यारर्शिदविररचतव्या

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