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चालीसा यानि चालीस, संखया चालीस, हमारे दे वी-दे वताओं की सततुनतयों में चालीस सततुनतयाँ ही सम्मललत की जाती है । जैसे श्ी हितुमाि चालीसा, दर तु ागा चालीसा, लिव चालीसा आदद। इि सततुनतयों में चालीसा दोहे ही कयों होते हैं? इसका धालमगाक दृम्टिकोण हैं। इि चालीसा सततुनतयों में संबंधधत दे वता के चररत्र, िमकत, कायगा, एवं, मदहमा का वणगाि होता हैं। चालीसा चौपाईयाँ हमारे जीवि की स्पण गा ा का प्रतीक हैं, इिकी संखया चालीस इसललए पू त निधागाररत की रयी है कयोंकक मितु्य जीवि २४ ततवों से निलमगात है और संपपूणगा जीविकाल में इसके ललए कतुल १६ संसकार निधागाररत ककये रए हैं। इि दोिों का योर ४० होता है । इि २४ ततवों में ५ ज्ािेंदरिय, ५ कममेमद्रिय, ५ महाभत पू , ५ तद्मात्रा, ४ अंतःकरण िालमल है । सोलह संसकार इस प्रकार है − १. रभागाधाि संसकार २. पतुंसवि संसकार ३. सीमद्तोिद्यि संसकार ४. जातकमगा संसकार ५. िामकरण संसकार ६. नि्क्रमण संसकार ७. अद्िप्रािि संसकार ८. चपूड़ाकमगा संसकार ९. ववधया र्भ संसकार १०. कणगाभेद संसकार ११. यज्ोपवीत संसकार १२. वेदारं भ संसकार १३. केिाद्त संसकार १४. समावतगाि संसकार १५. पाणणग्रहण संसकार १६. अद्तयेम्टि संसकार। भरवाि की इि सततुनतयों में हम उिसे इि ततवों और संसकारों का बखाि तो करते ही हैं, साथ ही चालीसा सततुनत से जीवि में हतुए दोषों की क्षमायाचिा भी करते हैं। इि चालीस चौपाईयोँ में सोलह संसकार एवं २४ ततवों का भी समावेि होता है । मजसकी वजह से जीवि की उतपमतत है ।

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