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Story Transcript

सनातन संस्कार संस्कृित

अशोक शर्ीवास्तव

Copyright © Ashok Shrivastava All Rights Reserved. ISBN 978-1-64983-390-7 This book has been published with all efforts taken to make the material errorfree after the consent of the author. However, the author and the publisher do not assume and hereby disclaim any liability to any party for any loss, damage, or disruption caused by errors or omissions, whether such errors or omissions result from negligence, accident, or any other cause. While every effort has been made to avoid any mistake or omission, this publication is being sold on the condition and understanding that neither the author nor the publishers or printers would be liable in any manner to any person by reason of any mistake or omission in this publication or for any action taken or omitted to be taken or advice rendered or accepted on the basis of this work. For any defect in printing or binding the publishers will be liable only to replace the defective copy by another copy of this work then available.

यह संकलन वस्तत र् परु ोधाओं को ु ः हमारी िहन्द ू सनातन संस्कृित के हमारे उन पव ू ज

समिपर्त है िजनकी गौरवशाली िवरासत के हम उत्तरािधकारी हैं . इस अवसर पर शर्द्धैय िपता स्व. पी एम ् शर्ीवास्तव एवं माता स्व शर्ीमती सत्यभामा शर्ीवास्तव की सहज

स्वभािवक स्मिृ त को सादर नमन िजनके द्वारा पर्दत्त संस्कारों के िबना यह संगर्ह मेरी

रूिच का िवषय कतई नहीं होता . यह वस्तत ु ः कोई मौिलक रचना नहीं बिल्क समय समय पर अिजर्त उन जानकािरयों का संगर्ह है जो िविभन्न परु ातन गर्ंथो पर आधािरत है .मेरे

इस तरह के संस्मरण और संकलन के सज ृ न पर्यासों में मेरे िपर्य भाई डॉ नवीन वमार् कुवैत का पर्ोत्साहन और सतत सहयोग सवर्था उल्लेखनीय है । मेरे और उसके पर्ेरणा स्तर्ोत

आदरणीय चाचा स्व एम बी वमार् एवम चाची स्व स्नेहलता वमार् की पण् ु य स्मिृ त को भी सादर नमन ।

कर्म-सच ू ी पर्स्तावना

vii

भिू मका

ix

1. “संसार एक सनातन वक्ष ृ ”

1

2. “ वेदों में माँ ”

2

3. “सनातन पद्धित में माला जाप का वैज्ञािनक आधार”

4

4. “ सय ू र् दे व की उपासना ”

6

5. “ मंिदर में पिरकर्मा का सनातनी वैज्ञािनक आधार ”

8

6. “ मंिदर की पेडी पर कुछ समय िवशर्ाम की सनातनी मान्यता ”

10

7. “ िहन्द ू सनातनी पद्धित में जलािभषेक का महत्व ”

12

8. “ सनातन िहन्द ू संस्कृित में हवन यज्ञ का महत्व ”

13

9. “ रक्षा सतर् ू या मौली बांधने की वैिदक परम्परा का महत्व ”

15

10. “ पर्ितिदन स्मरण योग्य शभ ु संद ु र मंतर् संगर्ह ”

17

11. “ िहन्द ू संस्कृित में बेल पतर् का महत्व ”

20

12. “ िशव उपासना के वैिदक िवधान ”

22

13. “ सनातन साित्वक जीवन पद्धित ”

24

14. “ कमर् अकमर् िवकमर् शर्ी कृष्ण व्याख्या ”

25

15. “ अिहंसा परमो धमर्ः पर भर्ािन्त ”

26

16. “ नमर्दा के हर पत्थर में िशव है ”

28

17. “ संस्कृत सनातन संस्कृित का सम्पष्ु ट आधार ”

29

18. “ नवगर्ह एवं उनकी शांित उपाय ”

31

19. “ सनातन शास्तर्ों में मान्य सोलह संस्कार ”

33

20. “ सनातन िहन्द ू धमर् में पिरकर्मा का महत्व ”

38

21. “ सत्संग का महत्व ”

40

•v•

पर्स्तावना इस संगर्ह की पर्ेरणा मझ ु े अपनी उस गौरवशाली संस्कृित के िनयम रीती िरवाज़ और धािमर्क आस्थाओं से िमली जो मेरी नजर में िवश्व की सबसे अनठ र् ः ू ी गहन मानवीय मल् ू यों से पण ू त सम्पोिषत और एक आदशर् संस्कृित है .

इस पिरवेश और पष्ृ टभिू म में जन्म लेना गौरव और सम्मान की बात है . मेरा यह संगर्ह

यिद कुछ पाठकों की इस भावना की अनभ ु िू त का अहसास िदला पावेगा तो यह पर्यास अपने सफलता के आयाम की और अगर्िषत माना जा सकेगा .

अशोक शर्ीवास्तव शर्ीवास्तव,

बी1303 गर्ीन वल्डर् बेलापरु थाने हाईवे ऐरोली नवी मंब ु ई 400708 मोबाइल:-9949147036

मेल आईडी[email protected]

वत वतर्र्म मान ान यु व वाा पीढ़ी में िदनोिदन अपन अपनेे सं स् स्कार कार और सं स् स्क कृ ित के पर्ित अनु रराग ाग की क्षीणता इस सं क कलन लन की रचना का मू ल आधार है . िजनका सर्ोत िदनोंिदन सोशल मीिडया और िविभन्न सम्पकर् सू तर् तर्ोंों से पर्ाप्त जानकािरयां और कु छ अपन अपनेे पै त क स्कारों कारों की अनु भू िितयाँ तयाँ हैं . आज ृ सं स् की यु व वाा पीढ़ी इन सं स् स्कारों कारों के महत्व को समझ कर इनका कु छ भाग • vii •

पर्स्तावना

ही अपन अपनेे जीवन काय कायर्र्क कलापों लापों में आत्मसात कर ले वे ग गीी तो यह पर्यास सफलता के आयाम को छू ले ग गाा .

• viii •

भिू मका सं क कलन लन में िहद त्ुत्व व और पु ररातन ातन िहन्द ू सं स् स्क कृ ित की आस्था धम धमर्र् और पू ज जाा पद्धित की िविवध िवधाओ िवधाओंं को एक ही जगह सं ििक्षप्त क्षप्त में वे द मान्यता श्लोकों को आधार बनाकर स िृिजत जत करन करनेे का पर्यास िकया गया है . कु छ िवधाओ िवधाओंं को वै ज्ञ ज्ञािनक ािनक आधार पर भी पर्मािणत िकया गया है . वस्तु त तःः आस्था और धम धमर्र् िवश्वास की धु ररीी पर घू म मने ने वाल वालेे दो पिहय पिहयेे हैं जो अपन अपनेे पू वर्ज जोंों के पर्ित हमार हमारेे सम्मान और उनकी अिस्मता की गाड़ी को पीढ़ी दर पीढ़ी आग आगेे बढ़ात बढ़ातेे हैं . समय के साथ सं स् स्क कृ ित में कु छ पिरवत पिरवतर्र्न पिरिस्तिथ एव एवंं पिरव पिरवेेश के कारण आत आतेे रहत रहतेे हैं ले ििकन कन सिदयों से पोिषत हमारी पु ररातन ातन सं स् स्क कृ ित और सं स् स्कारों कारों की उप उपेेक्ष क्षाा नहीं की जा सकती . यही इस सं क कलन लन का उद उदेे श्श्य य एव एवंं पर्योजन है .

• ix •

1 “संसार एक सनातन वक्ष ृ ”

एकायनोऽसौ िद्वफलिस्तर्मल ू -श्चतरू सः पञ्चिवधः षडात्मा

सप्तत्वगष्टिवटपो नवाक्षो दशच्छदी िद्वखगो ह्यािदवक्ष ृ ः॥ (शर्ीमद्भागवत दशम स्कन्ध – दस ू रा अध्याय, श्लोक २७)

यह संसार क्या है , एक सनातन वक्ष ृ । इस वक्ष ृ का आशर्य है —एक पर्कृित । इसके दो फल हैं—सख ु और द:ु ख; तीन जड़ें हैं—सत्त्व, रज और तम; चार रस हैं—धमर्, अथर्, काम और मोक्ष । इसके जाननेके पाँच पर्कार हैं—शर्ोतर्, त्वचा, नेतर्, रसना और नािसका । इसके छ: स्वभाव

हैं—पैदा होना, रहना, बढऩा, बदलना, घटना और नष्ट हो जाना । इस वक्ष ृ की छाल हैं सात

धातए ु ँ—रस, रुिधर, मांस, मेद, अिस्थ, मज्जा और शकर् ु । आठ शाखाएँ हैं—पाँच महाभत ू , मन, बिु द्ध और अहं कार । इसमें मख ु आिद नवों द्वार खोडऱ हैं । पर्ाण, अपान, व्यान, उदान, समान, नाग, कूमर्, कृकल, दे वदत्त और धनञ्जय—ये दस पर्ाण ही इसके दस पत्ते हैं । इस संसाररूप वक्ष ृ पर दो पक्षी हैं—जीव और ईश्वर || इस संसाररूप वक्ष ृ की उत्पित्तके आधार एकमातर् आप ही हैं || "जय शर्ीमन्नारायण महापर्भ"ु

"जय शर्ीहिर िवष्ण"ु

•1•

2 “ वेदों में माँ ”

महिषर् वेदव्यास ने ‘मां’ के बारे में िलखा है -

‘नािस्त मातस ृ मा छाया, नािस्त मातस ृ मा गितः।नािस्त मातस ृ मं तर्ाण, नािस्त मातस ृ मा िपर्या।।’ माता के समान कोई छाया नहीं है , माता के समान कोई सहारा नहीं है । माता के समान कोई

रक्षक नहीं है और

माता के समान कोई िपर्य चीज नहीं है

तैतरीय उपिनषद में ‘मां’ के बारे में इस पर्कार उल्लेख िमलता है मात ृ दे वो भवः।

‘माता दे वताओं से भी बढ़कर होती है । ’शतपथ बर्ाह्मण‘ की सिू क्त -

अथ िशक्षा पर्वक्ष्यामःमातम ु षो वेदः।’ ृ ान ् िपतम ृ ानाचायर्वान परू

जब तीन उत्तम िशक्षक अथार्त एक माता, दस ू रा िपता और तीसरा आचायर् हो तो तभी मनष्ु य ज्ञानवान होगा।‘मां’ के गुणों का उल्लेख करते कहा गया है ‘पर्शस्ता धािमर्की िवदष ु ी माता िवद्यते यस्य स मातम ृ ान।

’धन्य वह माता है जो गभार्वान से लेकर, जब तक परू ी िवद्या न हो, तब तक सश ु ीलता का उपदे श करे । िहतोपदे श-

आपदामापन्तीनां िहतोऽप्यायाित हे तत ु ाम ् ।

मातज ृ ङ्घा िह वत्सस्य स्तम्भीभवित बन्धने ॥

जब िवपित्तयां आने को होती हैं, तो िहतकारी भी उनमें कारण बन जाता है । बछड़े को बांधने में मां की जांघ ही खम्भे का काम करती है । स्कन्द परु ाण-

•2•

अशोक शर्ीवास्तव

नािस्त मातस ृ मा छाया नािस्त मातस ृ मा गितः। नािस्त मातस ृ मं तर्ाण, नािस्त मातस ृ मा िपर्या।।

माता के समान कोई छाया नहीं, कोई आशर्य नहीं, कोई सरु क्षा नहीं। माता के समान इस दिु नया में कोई जीवनदाता नहीं।

•3•

3 “सनातन पद्धित में माला जाप का वैज्ञािनक आधार” पर्ाचीनकाल से ही जप करना भारतीय पज ू ा-उपासना पद्धित का एक अिभन्न अंग रहा है । जप के िलए माला की जरूरत होती है , जो रुदर्ाक्ष, तल ु सी, वैजयंती, स्फिटक, मोितयों या

नगों से बनी हो सकती है । इनमें से रुदर्ाक्ष की माला को जप के िलए सवर्शर्ेष्ठ माना गया है , क्योंिक इसमें कीटाणन ु ाशक शिक्त के अलावा िवद्यत ु ीय और चंब ु कीय शिक्त भी पाई जाती है । अंिगरा स्मिृ त में माला का महत्त्व इस पर्कार बताया गया है िवना दमैश्चयकृत्यं सच्चदानं िवनोदकम ्।

असंख्यता तु यजप्तं तत्सवर् िनष्फल भवेत ्।।

अथार्त िबना कुश के अनष्ु ठान, िबना माला के संख्याहीन जप िनष्फल होता है । माला में 108 ही दाने क्यों होते हैं, उस िवषय में योगचड़ ू ामिण उपिनषद में कहा गया है पद्शतािन िदवाराितर् सहस्तर्ाण्येकं िवंशित।

एतत ् संख्यािन्तंत मंतर् जीवो जपित सवर्दा।।

हमारी सांसों की संख्या के आधार पर 108 दानों की माला स्वीकृत की गई है । 24 घंटों में एक व्यिक्त 21,600 बार सांस लेता है । चंिू क 12 घंटे िदनचयार् में िनकल जाते हैं, तो शेष 12 घंटे दे व-आराधना के िलए बचते हैं अथार्त 10,800 सांसों का उपयोग अपने ईष्टदे व को स्मरण करने में व्यतीत करना चािहए, लेिकन इतना समय दे ना हर िकसी के िलए संभव नहीं होता इसिलए इस संख्या में से अंितम 2 शन् ू य हटाकर शेष 108 सांस में ही पर्भ-ु स्मरण की मान्यता पर्दान की गई।

दस ू री मान्यता भारतीय ऋिषयों की कुल 27 नक्षतर्ों की खोज पर आधािरत है । चंिू क पर्त्येक

नक्षतर् के 4 चरण होते हैं अत: इनके गुणफल की संख्या 108 आती है , जो परम पिवतर् मानी जाती है ।

•4•

अशोक शर्ीवास्तव

माला के 108 दानों से यह पता चल जाता है िक जप िकतनी संख्या में हुआ। दस ू रे माला के ऊपरी भाग में एक बड़ा दाना होता है िजसे ‘सम ु ेरु’ कहते हैं। इसका िवशेष महत्व माना जाता है । चंिू क माला की िगनती सम ु ेरु से शरू ु कर माला समािप्त पर इसे उलटकर िफर शरू ु से 108 का चकर् पर्ारं भ िकया जाने का िवधान बनाया

•5•

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