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Story Transcript

उत्तरककाण्ड प्रसङ्ग एववं सवंनकासकाधधिककार ववमरर्श

1

उत्तरककाण्ड प्रसङ्ग एववं

सवंनकासकाधधिककार ववमरर्श धचित्रककूटस-ततुलससीपसीठकाधिसीश्वर-सकावमशसीरकामभदकाचिकारर्श-पक्षधिरखण्डन

ललेखक

शसीभकागवतकानवंद गतुर

आरकार्शवतर्श सनकातन वकावहिनसी 'धिमर्शरकाज' कले ससौजन सले प्रककाधरत NOTION PRESS

धचित्रककूटस-ततुलससीपसीठकाधिसीश्वर-सकावमशसीरकामभदकाचिकारर्श-पक्षधिरखण्डन

उत्तरककाण्ड प्रसङ्ग एववं सवंनकासकाधधिककार ववमरर्श

2

NOTION PRESS

India. Singapore. Malaysia. ISBN 9781649836939 First Published – 2020 Second Edition - 2021 This book has been published with all reasonable efforts taken to make the material error-free after the consent of the author. No part of this book shall be used,

reproduced in any manner whatsoever without written permission from the author, except in the case of brief quotations embodied in critical articles and reviews. The

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All Rights Reserved – Author

धचित्रककूटस-ततुलससीपसीठकाधिसीश्वर-सकावमशसीरकामभदकाचिकारर्श-पक्षधिरखण्डन

उत्तरककाण्ड प्रसङ्ग एववं सवंनकासकाधधिककार ववमरर्श

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उत्तरककाण्ड प्रसङ्ग एववं

सवंनकासकाधधिककार ववमरर्श धचित्रककूटस-ततुलससीपसीठकाधिसीश्वर-सकावमशसीरकामभदकाचिकारर्श-पक्षधिरखण्डन

ललेखक

शसीभकागवतकानवंद गतुर

आरकार्शवतर्श सनकातन वकावहिनसी 'धिमर्शरकाज' कले ससौजन सले प्रककाधरत NOTION PRESS

धचित्रककूटस-ततुलससीपसीठकाधिसीश्वर-सकावमशसीरकामभदकाचिकारर्श-पक्षधिरखण्डन

उत्तरककाण्ड प्रसङ्ग एववं सवंनकासकाधधिककार ववमरर्श

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धचित्रककूटस-ततुलससीपसीठकाधिसीश्वर-सकावमशसीरकामभदकाचिकारर्श-पक्षधिरखण्डन

उत्तरककाण्ड प्रसङ्ग एववं सवंनकासकाधधिककार ववमरर्श

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ववषर सकूचिसी ववषर

पपृष



रकास्त्रज्ञ ववद्वज्जननवं कले आरसीवर्शचिन

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----

06



पतुरनवकाकक्

----

----

24

1.

प्रथम भकाग

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----

31

2.

वद्वतसीर भकाग

----

----

91

3.

तपृतसीर भकाग

----

----

112

4.

चिततुथर्श भकाग

----

----

121

5.

पञ्चम भकाग

----

----

154

6.

षष भकाग

----

----

181

7.

सप्तम भकाग

----

----

211

8.

अष्टम भकाग

----

----

242

9.

नवम भकाग

----

----

279

10. दरम भकाग

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----

302

धचित्रककूटस-ततुलससीपसीठकाधिसीश्वर-सकावमशसीरकामभदकाचिकारर्श-पक्षधिरखण्डन

उत्तरककाण्ड प्रसङ्ग एववं सवंनकासकाधधिककार ववमरर्श

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रकास्त्रज्ञ ववद्वज्जननवं कले आरसीवर्शचिन (०१) शसीरकामकानन्द एववं शसीरकामकानतुज सम्प्रदकार ममें कनई ससैदकानन्तिक मतभलेद नहिसीवं हिसै। भगवकानक् शसीरकामकानन्दकाचिकारर्श जसी एववं भगवकानक् शसीरकामकानतुजकाचिकारर्श जसी, दनननवं कका ववधरष्टकाद्वसैत धसदकान्ति हिसी हिसै अततः भगवकानक् रकामकानन्दकाचिकारर्श नले कनई भकाष्य ककी रचिनका नहिसीवं ककी कनवंवक धसदकान्ति एक हिसी हिसै । उननवंनले पकूवकार्शचिकारर्श कले मत कका हिसी प्रसकार वकरका अतएव हिमकारले एववं शसीरकामभदकाचिकारर्श जसी कले बसीचि ससैदकानन्तिक मतभलेद ककी तन कनई बकात हिसी नहिसीवं हिसै। दन दरक पकूवर्श हिमनले 'ससीतका वनवकार्शसन नहिसीवं' नकामक ग्रन्थ पढ़का थका जन ससीतकाजसी कले वनवकार्शसन कन ललेकर थका। रले सब उनकका व्यवक्तिगत मत हिन सकतका हिसै और पसौरकाधणिक, महिकाभकारतसीर एववं वकालसीककीररकामकारणिगत ववषरनवं कका अपनले ढवंग सले वववलेचिन भसी हिन सकतका हिसै वकन्तितु हिमकारले आचिकारर्श, रथका शसीलनककाचिकारर्शसकामसी जसी जन रहिस्यग्रन्थनवं कले महित्वपकूणिर्श आचिकारर्श हिह, वले शसीवचिनभकूषणिमक् ममें महिकालकसी (शसीजकानककी) कका महिकाववषतु (शसीरकामचिन) सले तसीन बकार ववरनग ससीककार करतले हिह - लककातः प्रथमववशलेषतः सकपृपकाप्रककारनकाथर्शमक्। रकावणि कले द्वकारका हिरणि कले समर ससीतकाजसी कका शसीरकाघवलेनसरककार सले प्रथम ववरनग हुआ, कपृपका कले प्रककारनकाथर्श। रकावणिवधि कले उपरकान्ति रकाक्षधसरनवं कन धचित्रबद करकले दनण्डत करनले कन उद्यत शसीहिनतुमकानक् जसी कन ससीतकाजसी ऐसका करनले सले कपृपकापकूवर्शक रनक दलेतसी हिह। पकूवर्शककाल ममें अक्षम्य अपरकाधिसी इनपतुत्र जरन्ति कन भसी कपृपकापकूवर्शक क्षमका कर दलेतसी हिह। वनवकार्शसन कले समर दकूसरसी बकार ससीतका जसी कले ववरनग कले सन्दभर्श ममें शसीवचिनभकूषणिककार उसले पकारतवंत्रप्रककारनकाथर्श कहितले हिह। मह तन कहितका हहूँ वक शसीमद्वकालसीककीररकामकारणि ममें रहि प्रसवंग जब उत्तरककाण्ड ममें प्रकारम्भ हिनतका हिसै, वहिकावं सले ललेकर लकणि जसी कले लसौट कर आनले एववं शसीरकामजसी सले पतुनतः बकातचिसीत करनले तक रहि ववषर बकारमकार सहृदर लनगनवं कन पढनका चिकावहिरले । इसकन पढनले सले वसतुततः पतका चिलतका हिसै वक भगवतसी ससीतकाजसी कका आदरर्श कका थका ! वहि आदरर्श बहुत हिसी महित्वपकूणिर्श थका और उस आदरर्श ककी सकापनका हिसी नहिसीवं हिन पकातसी अगर रहि 'ससीतकाजसी कका वद्वतसीर ववशलेष' भगवकानक् सले नहिसीवं हिनतका। भगवकानक् शसीरकाघवलेनसरककार कले आदरर्श ककी सकापनका तन पकूणिर्शतरका हिन चितुककी थसी वकन्तितु भगवतसी जनकनधन्दनसी जकानककी कले आदरर्श ककी सकापनका तन इससी ममें हिसै। इससीधलए मह रहिसी कहहूँगका वक रहि सब ववषर बड़ले गम्भसीर हिह और धचित्रककूटस-ततुलससीपसीठकाधिसीश्वर-सकावमशसीरकामभदकाचिकारर्श-पक्षधिरखण्डन

उत्तरककाण्ड प्रसङ्ग एववं सवंनकासकाधधिककार ववमरर्श

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आचिकारर्यों नले इसकका अनतुसनकान वकरका हिसै। अपनले प्रकावतभप्रकागल्भ्य कले बल पर हिम रकास्त्रसीर, सकावपत एववं अनतुवषत परम्परकाओवं कन, ववचिकारनवं कन इस तरहि सले उपलेधक्षत नहिसीवं कर सकतले हिह, वतरसपृत और अससीकपृत नहिसीवं कर सकतले हिह। उपजसीव्यववरनधि कका पररतकाग करकले, पकूवकार्शचिकारर्यों कले मत कले अनतुसकार चिलतले हुए, भगवकानक् शसीरकामकानतुजकाचिकारर्श जसी नले सतन्त्र सकामरर्श हिननले पर भसी ब्रह्मसकूत्र ककी बनधिकारन वपृवत्त प्रकाप्त करकले हिसी शसीभकाष्य कका व्यकाखकान वकरका। रहि ववचिकारणिसीर ववषर हिसै, कलेवल वकालसीककीर रकामकारणि ममें हिसी ससीतवनवकार्शसन कका प्रसवंग नहिसीवं हिसै, अवपततु अनत्र भसी पतुरकाणिनवं ममें इसकले सन्दभर्श प्रकाप्त हिनतले हिह। हिम सभसी आचिकारर्यों ककी एक बहुत बड़सी धजमलेदकारसी रहि बनतसी हिसै वक भगवकानक् कले प्रवत, भगवकानक् कले परमवप्ररप्रकाणितमका शसीजनकनधन्दनसी जकानककी जसी कले प्रवत, भगवकानक् कले शसीरकामकपृषवकामननपृधसवंहिकावद समस सरूपनवं कले प्रवत जन सवंसकार ममें धिकारणिका हिसै, उसले हिम वकससी एक बकात कन धसद करनले कले चिक्कर ममें धछिनधभन न करमें अनथका हिमसले बहुत बड़का अपरकाधि हिन जकारलेगका। इससीधलए, हिममें लनगनवं ककी भकावनका कन ववकपृत नहिसीवं करनका चिकावहिरले। भगवकानक् वकालसीवक भसी कहितले हिह -

अधथर्शतन मकानतुषले लनकले जज्ञले ववषतुतः सनकातनतः। अथकार्शतक् प्रकाथर्शनका करनले पर भगवकानक् ववषतु हिसी शसीरकाम कले रूप ममें आतले हिह। वलेदव्यकास जसी कहितले हिह -

दलेवककावं दलेवरूवपणकावं ववषतुतः सवर्शगतुहिकाररतः।

आववरकाससीद्यथका प्रकाचकावं वदरसीन्दतुररव पतुष्कलतः॥ भगवकानक् रकामकानतुजकाचिकारर्श जसी तन अवतकार एववं अवतकारसी ममें कनई भलेद हिसी नहिसीवं मकानतले , अवपततु एकत्व एववं एकवनषका ससीककार करतले हिह। कनई भलेद करतका हिसै तन वहि अपरकाधिसी हिसै, रहि भसी ससीककार करतले हिह। इस ववषर पर वनष्पक्ष रकास्त्रसीर धचिन्तिन हिननका बहुत आवश्यक हिसै। पकूवकार्शग्रहिग्रहिसीत धचिन्तिन न तन जगतक् कका कलकाणि कर सकलेगका और न सरवं कका कलकाणि कर सकलेगका। तन ववद्वकाननवं ककी ववचिकारपदवत, ववद्वकाननवं ककी रकास्त्रसीर परम्परका कले अनतुसकार वववलेचिनकापदवत सवर्शदका-सवर्शथका-सवर्शत्र सतुत हिसै। महिवषर्श वकालसीवक, वलेदव्यकास एववं पकूवकार्शचिकारर्यों सले अववरद अथर्श रखतले हुए उनकले धचित्रककूटस-ततुलससीपसीठकाधिसीश्वर-सकावमशसीरकामभदकाचिकारर्श-पक्षधिरखण्डन

उत्तरककाण्ड प्रसङ्ग एववं सवंनकासकाधधिककार ववमरर्श

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धसदकावंतनवं कन प्रककाधरत करनले कले धलए रवद अपनले प्रवतभकाप्रकागल्भ्य कले बल पर हिम उसकका वनवर्शचिन करतले हिह तन उन ऋवषरनवं एववं आचिकारर्यों कका भसी आरसीवकार्शद हिममें वमलतका हिसै। सनकातन धिमर्श ममें रकास्त्रकाथर्श ककी परम्परका रहिसी हिसै। रहि ववचिकारणिकापदवत तन भकारतसीर सवंसपृवत ककी अमकूल सम्पवत्त हिसै। लनकतवंत्र ममें वकाणिसी चिलतसी हिसै, ललेखनसी चिलतसी हिसै, तलवकार नहिसीवं चिलतसी, बलप्ररनग नहिसीवं हिनतका हिसै। रहिसी लनकतवंत्र ककी ववरलेषतका हिसै एववं रहिसी रकास्त्रतवंत्र ककी भसी ववरलेषतका हिसै। प्रकाचिसीनककाल ममें रकास्त्रकाथर्श ककी सभकारमें हिनतसी थसीवं। लसीलकापकूवर्शक वकससी ककारर्श कन करनले कले धलए अलग सले कनई पक्ष ललेकर भसी प्रवतभका कका व्यकारकाम वकरका जका सकतका हिसै वकन्तितु उसले धसदकान्ति नहिसीवं मकानका जका सकतका हिसै। वकालसीककीर रकामकारणि ममें पकाठक दलेखमें वक महिवषर्श जकाबकाधल नले धचित्रककूट ममें भगवकानक् शसीरकाम कन लसौटकानले कले धलरले जन तकर्श प्रसतुत वकरले हिह, शसीरकाम जसी नले कतुद हिनकर जकाबकाधल सले कहिका वक आपकका कथन अनतुधचित हिसै। अन्तिततः भगवकानक् कन कतुद जकानकर वधरष जसी कन कहिनका पड़का -

जकाबकाधलरवप जकानसीतले धिमर्शस्यकास्य (लनकस्यकास्य) गतकागवतमक्। वनवत्तर्शवरततुककामसतु त्वकामलेतद्वकाकमतुक्तिवकानक्॥

जकाबकाधल महिवषर्श भसी धिमर्श कले तत्त्व कन जकानतले हिह, सलेहिप्रसनमनसका … सलेहि ममें बहिकर

आपकन लसौटकानले कले धलरले इननवंनले ऐसका कहिका हिसै। अथकार्शतक् रकास्त्रकाथर्श ककी परम्परका ममें प्रवतभका कका प्रककारन करनले कले धलरले उस समर कनई प्रवतभका कले बल पर कतुछि कहिले तन वहि मकात्र प्रवतभका कका व्यकारकाम हिसै। अचच्छी बकात हिसै, वकन्तितु उससी कन धसदकान्ति मकान ललेनका उधचित नहिसीवं हिसै। बहुत सले पकूवकार्शचिकारर्यों कले ऐसले ववचिकार हिह, जगवदतकार सवर्शजनसतुखकार हिह, उनकका समकान करमें,

शतुवतसपृवतपतुरकाणिववरनधि न हिननले पकावले एववं शतुवतसपृवतपतुरकाणिवनष जसीवन जसीनले वकालले धरष्ट आचिकारर्यों सले भसी ववरनधि न हिन सकले, वलेदकानतुमनवदत सपृवतरनवं एववं सपृतनतुमनवदत पतुरकाणिनवं सले ववरनधि न हिन सकले, इस तरहि हिममें लनगनवं कले बसीचि ममें ववचिकार प्रसतुत करनले ककी आवश्यकतका हिसै। कनई भसी ववचिकार हिसै तन उसकका समकाधिकान ववचिकारनवं कले बल पर करनका हिसी रकास्त्रनधचित पदवत हिसै। लकाठसी कले बल पर समकाधिकान कसैसले हिनगका ? व्यवधिकान अवश्य हिन सकतका हिसै। मह रहिसी सनचितका हहूँ वक शसीभकागवतकानवंद जसी कले धलरले रकास्त्रसीर परम्परका, महिवषर्श वकालसीवक ककी ववचिकारणिका, भगवकानक् वलेदव्यकास ककी भकावनका, वलेदकानतुमनवदत रकास्त्रनवं एववं वलेदनवं कले ववपरसीत न जकातसी हुई, सनकातन धचित्रककूटस-ततुलससीपसीठकाधिसीश्वर-सकावमशसीरकामभदकाचिकारर्श-पक्षधिरखण्डन

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सवंसपृवत कका सवर्शथका-सवर्शदका-सवर्शत्र प्रचिकार प्रसकार करतले हुए इस ववचिकारसरणिसी कले मकाध्यम सले, धजसममें कनई हिठ रका दतुरकाग्रहि न हिन, रकास्त्रसीर मन्तिव्यनवं कका पररपकूणिर्श समथर्शन एववं परस्पर ववरद बकातनवं कका भसी समन्वर करतले हुए आज समकाज ममें परस्पर सनकारपदवत कका अनतुसनकान करतले हुए ववचिकार प्रसतुत करनले ककी आवश्यकतका हिसै। मह पकूज्य ततुलससीपसीठकाधिसीश्वर जगदतुर रकामकानन्दकाचिकारर्श शसीरकामभदकाचिकारर्श जसी महिकारकाज कका अग्रज कले रूप ममें, मकात्र अवसका अधधिक हिननले कले ककारणि हिसी नहिसीवं, अवपततु रकास्त्रनवं ममें उनकले शम कन और उनकले द्वकारका वकरले गरले व्यकाकरणि कले ककारर्यों कन दलेखतले हुए हृदर सले उनकका समकान करतका हहूँ और उनककी उन सभसी बकातनवं कका समथर्शन करतका हहूँ धजसममें पकूवकार्शचिकारर्यों कका वकससी भसी प्रककार सले धसदकान्तिववरनधि न हिन। मकूलततः भगवकानक् वलेद एववं वलेदकावतकार शसीमद्वकालसीककीर रकामकारणि ममें षटकाण्डकावन तथनत्तरमक्, तथनत्तरमक् कले द्वकारका उत्तरककाण्ड कन ससीककार वकरका जकातका हिसै और आचिकारर्यों नले उसले ससीककार वकरका हिसै, पकूरले अवंर पर व्यकाखकान भसी वकरका हिसै। प्रवतभका कले बल पर तन कनई भसी बकात वकससी भसी तरहि सले कहिसी जका सकतसी हिसै , वहि अलग ववषर हिसै। वकन्तितु पकूवकार्शचिकारर्यों नले कका ससीककार वकरका हिसै, इसले ध्यकान ममें रखकर उसले भसी उससी प्रवतभका कले बल पर धसद वकरका जकारले तन वहि प्रवतभका वन्दनसीरका, ध्यलेरका, ससीककारकार्श, अनतुषलेरका हिनगसी और जगत्कलकाणिककाररणिसी भसी हिनगसी। मह अपनसी बकात रखतले हुए, अपनले ववचिकारनवं कन धरष्टकाचिकारपकूवर्शक प्रसतुत करनले वकालले शसीभकागवतकानवंद गतुरजसी कन हृदर सले धिनवकाद दलेतका हहूँ वक रले सकावहितसजर्शन ममें लगले हुए हिह, रले इससी प्रककार सले सकावहितसजर्शन करतले रहिमें। आचिकारर्यों ककी सवनधधि ममें भसी पहुहूँचि करकले ववचिकार-ववमरर्श करतले रहिमें एववं उन ववमरर्यों कन रथकावतक् धलवपबद भसी करतले रहिमें। वकससी सले कनई मतभलेद हिसै तन दकूरभकाष सले भसी ववचिकार ववमरर्श करनका अधधिक उपरतुक्ति एववं समकाज कले धलरले लकाभदकारक भसी हिनतका हिसै कनवंवक ललेखबद रकास्त्रकाथर्यों ककी परम्परका कभसी समकाप्त नहिसीवं हिनतसी हिसै, वहि चिलतसी हिसी रहितसी हिसै, आजतक चिल रहिसी हिसै। कलहिरवहित, परस्पर मननमकाधलनरवहित एववं धरष्टकाचिकारकानतुमनवदत वकससी भसी प्रककार ककी ववचिकारपरम्परका रवद चिल रहिसी हिसै, चिलतसी हिसै तन उसकका सकागत हिननका चिकावहिरले। भकूवमकका कन पढनले सले जसैसका पतका चिलका, उस सन्दभर्श ममें रहिसी कहहूँगका वक ववचिकारपदवत एववं ववचिकारपरम्परका कन बलपकूवर्शक दबकानका उधचित नहिसीवं हिसै। इनसीवं रबनवं कले सकाथ मह अपनले ववचिकारनवं, पकूवकार्शचिकारर्यों कले ववचिकारनवं एववं पकूवर्शवषर्शरनवं कले ववचिकारनवं कन जगतक् ममें पहुवंचिकानले वकालले ववचिकारकनवं कका हृदर सले धिनवकाद करतले हुए रहि रतुभककामनका व्यक्ति करतका हहूँ वक उदसीरमकान ववचिकारक शसीभकागवतकानवंद जसी, धचित्रककूटस-ततुलससीपसीठकाधिसीश्वर-सकावमशसीरकामभदकाचिकारर्श-पक्षधिरखण्डन

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धजनकले नकाम कले आगले 'गतुर' रब कका प्ररनग हिनतका हिसै, ऐसले शसीभकागवतकानवंद गतुर जन कहि रहिले हिह और हिमकारले अग्रज 'जगदतुर' शसीरकामभदकाचिकारर्श जसी महिकारकाज जन कहि रहिले हिह, उन बकातनवं ममें, कलेवल तलवकार चिलकानले वकालसी, बलप्ररनग करनले वकालसी बकातमें छिनड़ करकले सभसी बकातमें ववचिकार ककी पदवत सले ससीककार ककी जकातसी हिह। बकात ऐससी हिसै वक रकास्त्रनवं ककी ववचिकारपदवत, रकास्त्रसीर परम्परका, रकास्त्र धचिन्तिन, रहि सब ववद्वकाननवं कका पकाथलेर हिसै, इसकले वबनका ववद्वकानक् रहिमेंगले कसैसले ? और पकाथलेर तन हिननका भसी चिकावहिरले, आवश्यक भसी हिसै। इसममें रकास्त्र हिसी नकारकालर हिसै। रकास्त्रनवं कले प्रमकाणिबल और प्रमकाणिसवंखका कन, उनकले अथर्श कन हिम अपनसी बतुवद कले बल पर बदल दमें, कलेवल व्यकाकरणि ककी व्यतुत्पवत्त कले बल पर मकूल सले ववरद मनमकानका अथर्श कर दमें तन रहि अव्यवसका ककी बकात हिन जकारलेगसी, समस्यकारमें उत्पन हिननले लगतसी हिह। ऐसका करनका प्रवतभका हिन सकतसी हिसै, धसदकान्ति नहिसीवं। प्रवतभका कले भकाव कन धसदकान्ति नहिसीवं मकानका जका सकतका हिसै। मह इन सभसी ववचिकारकनवं कका हृदर सले अधभनन्दन करतले हुए ग्रन्थकतकार्श कले प्रवत भगवकानक् शसीकनसललेर ककी सवनधधि सले रहि ववज्ञकापन करनका चिकाहितका हहूँ वक भगवकानक् उनमें शतुवतसपृवत पतुरकाणिप्रवतपकावदत धसदकान्तिनवं, चिररत्रनवं, आखकाननवं कले मकाध्यम सले भकारतसीर सवंसपृवत कन समपृद करनले, पतुष्ट करनले ककी रवक्ति प्रदकान करमें। असतु ... शसीमज्जगदतुर रकामकानतुजकाचिकारर्श शसीसकामसी वकासतुदलेवकाचिकारर्श 'ववद्यकाभकासर' जसी महिकारकाज शसीकनसललेरसदन, शसीअरनध्यकाधिकाम (०२) शसीभकागवतकानवंद जसी सकाधिनका एववं ककीवतर्श ममें बहुत आगले वनकल चितुकले हिह, भकारतवषर्श कले शलेष ववद्वकाननवं ममें गणिनका हिन चितुककी हिसै। धिन एववं पद सले हिसी कनई बड़का नहिसीवं हिनतका वक उसककी बकात कन हिसी प्रकामकाधणिक मकानका जकाए। शसीभकागवतकानवंद जसी ककी सरलतका, एककाग्रतका एववं स्पष्ट वक्तिव्य अदतुत हिसै। वले वहिन्दतुओवं कले धलए गसौरव हिह। धजस २३ वषर्श ककी आरतु ममें रतुवक-रतुववतरकावं नरका एववं फनन ककी पतनककाररणिसी वकातकार्श ममें व्यस रहितले हिह, सकाथ हिसी आरतु, रसौवन, समर एववं धिन कले नकार ममें लगले रहितले हिह, उस अवसका ममें शसीभकागवतकानवंद जसी अठकारहि-अठकारहि घणटले धिकावमर्शक ललेख धलखतले हिह, रहि अदतुत बकात हिसै। वकतनसी धिमर्शवनषका हिसै, रकास्त्रनवं कले सवंरक्षणि कले प्रवत दृढ़ सङ्कल्प हिसै ! उन लनगनवं ककी बतुवद कका सर कका हिनगका जन धिमर्श ककी ओट ममें धिन, पद, प्रवतषका कले धलए धिमर्शग्रन्थनवं कन हिसी प्रधक्षप्त बतकानले लगले हिह, रहि समकाज कन सनचिनका पड़लेगका। रकास्त्र ककी रक्षका ममें तत्पर शसीभकागवतकानवंद गतुर दलेर, धिमर्श, सवंसपृवत कले प्रवत समवपर्शत, भसौवतक वकासनका एववं धचित्रककूटस-ततुलससीपसीठकाधिसीश्वर-सकावमशसीरकामभदकाचिकारर्श-पक्षधिरखण्डन

उत्तरककाण्ड प्रसङ्ग एववं सवंनकासकाधधिककार ववमरर्श

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सतुववधिकाओवं कका बधलदकान करकले तपस्यका एववं अध्यरन ममें रत हिह। शसीभकागवतकानवंद गतुर अल्प अवसका ममें, अवववकावहित, वनडर, वनभर्भीक, अदम्य सकाहिस कले सकाथ सभसी षड्दरर्शन ,षट्सम्प्रदकार कले प्रवत समकान, समसरतका कका भकाव रखतले हुए शतुवत, सपृवत, पतुरकाणि, तन्त्रकावद रकास्त्रनवं कका गहिनतम अवलनकन करकले सरवं कले रतुवक्तिरतुक्ति तकर्शसवंगत वकाकनवं कले द्वकारका रकास्त्रनवं कले ववषर ममें भ्रवमत समकाज कन सवकारनले ममें लगले हिह। ऐसले व्यवक्तित्व कले प्रवत भसी कतुछि अवववलेककी जन अपरब, अभदतका कका व्यवहिकार कर रहिले हिह, रहि दतुभकार्शग्यपकूणिर्श हिसै। इस प्रकरणि कन दलेखनले पर अनकारकास हिसी, शसीमदकाद्यरङ्करकाचिकारर्श जसी कले गसीतकाभकाष्य कका वचिन सरणि हिन आतका हिसै -

ब्रकाह्मणित्वस्य वहि रक्षणिलेन रधक्षततः स्यकाद्वसैवदकन धिमर्शतः। ब्रकाह्मणित्व ककी रक्षका सले हिसी वसैवदक धिमर्श सतुरधक्षत रहि सकतका हिसै, रहि उवक्ति चिररतकाथर्श हिन जकातसी हिसै।

शसीदण्डसी सकामसी ब्रजलेश्वरकाशम जसी महिकारकाज (०३) 'उत्तरककाण्ड प्रसङ्ग एववं सवंनकासकाधधिककार ववमरर्श' नकामक ग्रवंथ कका प्रककारन सनकामधिन शसीभकागवतकानवंद गतुर जसी कले द्वकारका करकारका जका रहिका हिसै, रहि आनन्द कका ववषर हिसै। जन भकारतसीर सवंसपृवत एववं सवंसपृत भकाषका कले मकूलकाधिकार एववं मकूल सनत अपसौरषलेर ग्रवंथ वलेद हिह, जन भगवकानक् सरवं वलेदवलेद्य हिह, धजनककी जसीवनगकाथका महिवषर्श वकालसीवक जसी नले रकामकारणिरूपसी गकारत्रसीभकाष्य कले रूप ममें समकाज कन वदरका हिसै, उसममें उत्तरककाण्ड कन प्रधक्षप्त कहिनका महिकानक् असह्य अपरकाधि हिसै। आधितुवनक समकाज ममें बसौवदक क्षमतका कन दृवष्टगत करतले हुए परम भकागवत शसीभकागवतकानवंद गतुर कले अथक प्ररकास सले 'उत्तरककाण्ड प्रसङ्ग एववं सवंनकासकाधधिककार ववमरर्श' नकामक खण्डनग्रन्थ कका प्रणिरन वकरका गरका हिसै धजसममें सभसी वलेदतन्त्रपतुरकाणिनपवनषदकावद ग्रवंथनवं सले सप्रमकाणि सवंग्रहि करकले अतन्ति सतुन्दर प्रसतुवत दसी गरसी हिसै। अततः समकाज ममें ससीतकावनवकार्शसन एववं रमकूकवधि आवद ववषरनवं कन ललेकर जन ववकपृवत एववं भ्रम कका प्रसकार वकरका जका रहिका हिसै, उसकका सतुगमतका सले वनरकाकरणि हिन सकलेगका एववं सभसी जन लकाभकाधन्वत हिन सकमेंगले। रहि अतन्ति सरकाहिनसीर ककारर्श हिसै जन धजज्ञकासतुओवं कले भ्रमभवंजन कले एक उत्कपृष्ट सकाधिन कले रूप ममें उपलब्ध हिन रहिका हिसै। हिममें पकूणिर्श ववश्वकास हिसै वक उदकार पकाठकगणि ग्रन्थककार कले सतुत प्ररकास कका हृदर सले सकागत करमेंगले। भगवकानक् शसीरकाजरकाजलेश्वर सले प्रकाथर्शनका हिसै वक इनकले इस सतुप्ररकास कन सवर्शथका सफल बनकारमें। मलेरसी रहिसी रतुभककामनका हिसै। जर शसीमनकारकारणि ! शसीमज्जगदतुर रकामकानतुजकाचिकारर्श शसीसकामसी ववश्वलेरप्रपनकाचिकारर्श जसी महिकारकाज शसीसतुग्रसीववकलका, शसीअरनध्यकाधिकाम धचित्रककूटस-ततुलससीपसीठकाधिसीश्वर-सकावमशसीरकामभदकाचिकारर्श-पक्षधिरखण्डन

उत्तरककाण्ड प्रसङ्ग एववं सवंनकासकाधधिककार ववमरर्श

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(०४) आपकका ललेख पढनले पर बहुत समरनपरकान्ति वकससी ममें इतनसी तसीव्र रकास्त्रवनषका कका दरर्शन हिननले ककी प्रतसीवत हुई। परमपकूज्य महिकारकाजशसी धिमर्शसमकाटक् करपकात्रसी सकामसी जसी कले पथ कका अवंरतनऽवप अनतुगमन हिम कर सकमें, रहिसी प्ररकास हिसै। आपममें वहि झलक वदखतसी हिसै, धजसले खननले ककी परवकाहि नहिसीवं, पकानले कन इस जग ममें कतुछि धिरका नहिसीवं। आपकले धलए व्यवंजनकावपृवत्त कले आशर सले खण्डनसीर कका सवंकलेत करनका अधधिक समसीचिसीन हिनगका जसैसका वक हिमकारले आचिकारर्यों ककी रसैलसी हिसै। रहि एक कटतु सत हिसै वक सकावपत लनग कभसी भसी वकससी भसी क्षलेत्र ममें नरले प्रवतभकारकालसी सले आरवङ्कत हिनकर उसले जमनले नहिसीवं दलेतले। सघनवषत अनतुचिर-पनवषत अनसैवतक सत्तकाधिसीर सवर्शत्र हिह। आपकका ललेख अतसीव सकारगधभर्शत, ववसपृत, प्रकामकाधणिक, समकाधिकानननतुख हिसै, धजसले महनले समग्र पढ़का हिसै। ससैकडनवं वषर्यों ममें कनई कनई इतनका दतुधिर्शषर्श-ललेखनकलकाववतक् जन ललेतका हिसै। वनरवत आपसले अवश्य महिकानक् ककारर्श करकाएगसी। आपककी ललेखनसी ममें एक ववलक्षणि प्रहिकार ककी क्षमतका हिसै। वलेदभगवकानक् आपककी रक्षका करमेंगले। अवतशमसकाध्य प्रमकाणिकान्वलेषणि, तदनतुरसीलन धचिवंतन तथका टवंकणि, वहि भसी इतनले ववरकालसर पर, रहि अदतुत प्रवतभका हिसै। आज कले सकाथर्शसकाधिनपरकारणि - प्रचितुरजनसमदर्श ममें ऐससी अदम्य, अवडग, वनवर्वैर, वनभर्शर रकास्त्रवनषका वकालले आपकन पकाकर मकावं भकारतसी इठलकातसी हिनगसी। रकास्त्रनपकासक ऋवषजन प्रमतुवदत हिनतले हिनवंगले। सनकातनधिमर्श सचिमतुचि भगवदधक्षत धिमर्श हिसै। इसकका पनषणि करनले हिलेततु धिरका पर ववभकूवत आतसी हिसी रहिसी हिह एववं आगले भसी सदसैव आतसी रहिमेंगसी। आप भसी, सनकातन कले सजग प्रहिरसी, वकससी महिकापतुरष सले कम नहिसीवं हिसै। भववष्य आपककी तलेजनसतका कले धिवल प्रककार सले प्रककारवकानक् वदख रहिका हिसै। आप सनकातन धिमर्श ककी अनतुपम धिरनहिर हिह। हिमकारसी सवर्शववधि-रतुभकारवंसका सदसैव आपकले सकाथ हिसै। समथर्शशसी त्र्यमकलेश्वर चिसैतन ब्रह्मचिकारसी जसी महिकारकाज (०५)

बकालनऽहिवं जगदकानन्दन न मले बकालका सरसतसी। अपकूणिर्णे पञ्चमले वषर्णे वणिर्शरकावम जगत्त्ररमक्॥ जर शसीमनकारकारणि !

भकारतवषर्श ममें सदसैव प्रवतभकाओवं कका उदर हिनतका रहिका हिसै। उससी शवंखलका ममें आदर तथका गम्भसीरतका कले सकाथ रवद दलेखका जकाए, तन झकारखण्ड - बनककारन कले वनवकाससी एववं भकारत कले गसौरव शसीभकागवतकानवंद गतुरजसी कका नकाम भसी आतका हिसै धजनककी ललेखनसी सदसैव रकास्त्रसीर प्रमकाणिनवं ककी धचित्रककूटस-ततुलससीपसीठकाधिसीश्वर-सकावमशसीरकामभदकाचिकारर्श-पक्षधिरखण्डन

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रनधिपरक रक्षका करतसी हिसै। वकससी कले भसी बकाह्य वसैभव कन दलेखकर आप उसकले रकास्त्रववरद कपृत रका वक्तिव्यनवं कले सकामनले नतमसक नहिसीवं हिनतले हिह। शसीभकागवतकानवंद गतुर जसी अवसका ममें कम हिह, वकन्तितु एक ज्ञकानवपृद कले पकास जन ज्ञकान हिननका चिकावहिए, वहि इनकले पकास हिसै, अतएव इनकका हिम अधभनवंदन करतले हिह। आपकका ववद्यकावसैभव बहुत पतुष्ट हिसै, हिमनले आपकले इस ललेखन कका धसवंहिकावलनकन वकरका। इसममें आपनले नकानका पतुरकाणिनवं एववं ग्रवंथसलनवं कका वववलेचिन प्रसतुत वकरका हिसै, धजसले एक पतुनसकका ललेकर अवश्य सवंकधलत करनका चिकावहिए। रहि भसी सत हिसै वक आपकले ललेखनवं कन अक्षररतः एक बकार नहिसीवं , अवपततु कई बकार पढ़नका चिकावहिए। रहि ववडमनका हिसै वक आप जसैसले सतुरनग्य व्यवक्तित्व कन वकासव ममें जन समकान वमलनका हिसै, वहि समकाज ममें नहिसीवं वमल पका रहिका हिसै, जन खलेद कका ववषर हिसै। शसीभकागवतकानवंद गतुरजसी सनकातन धिमकार्शवलनमरनवं कले धलए एक आदरर्श हिह, धजनकका पररचिर अपनले आप ममें गसौरवरतुक्ति हिसै। सदसैव रकास्त्रसीर प्रमकाणिनवं कले आधिकार पर वकातकार्श करनले ककी वनधश्चित बतुवद हिसै। आपकले ललेख गम्भसीर वववलेचिनका कले धलए प्रधसद हिह, हिम आपकले मवंगल ककी ककामनका करतले हिह। सम्भकावनका करतले हिह वक वनरवंतर अपनसी आध्यकाधत्मिक गतुरतका ककी वकरणिनवं सले समस सनकातन धिमकार्शवलनमरनवं कन अनतुप्रकाधणित करतले हुए धिमर्शध्वज कले सफल सवंवकाहिक कले रूप ममें आप धचिरककाल तक प्रवतवषत रहिमें। जर शसीमनकारकारणि शसीमज्जगदतुर रकामकानतुजकाचिकारर्श शसीसकामसी मधितुसकूदनकाचिकारर्श वलेदकान्तिसी जसी महिकारकाज (०६) ॥ अरवंसरमक्॥ शसीभकागवतकानन्दलेन गतुरणिका ववरधचितवं 'उत्तरककाण्ड प्रसङ्ग एववं सवंनकासकाधधिककार ववमरर्श' इवत ग्रन्थरत्नमवकालनवक मरका। तत्र कणिलेहित पतुरकाणिनपवनषतपृवतसमतुदतपृ धसदकान्तिमतुपसतुवर्शनक्

सलेचरनलकावपतवकानग्विलकासपतुरतःसरसमतुज्जपृनम्भतकात्मिखकावतवरसीकपृतकाहिमनववजल्पनसरधणिमनङ्गच्छी चिककार। पकूवर्शपक्षसमसीररतकनल्पतधसदकान्तिपनषणिवपृवत्त मरलेषकामनलेकरकास्त्रनक्तिवकाकलेमतुषसीसहिकपृतसतुवचिनधभगतुर्शरररवं भकागवतसीवं मनसीषकावं सगसौरववं पनसतुटसीवत। वकालसीककीरमतुदञ्चरनवप भवभकूवतवकागझरसीमतुत्तररकामचिररतजनकामवप सतुदृढमधभमतमतुपसकापनकार समतुदकाजहिकार। सवंनकासकाधधिककारप्रसङ्गलेऽवप नसैकववधिकानतुललेखचिरकानक् प्रकाककाधर ववदतुषकानलेन। सरम्भकूत्वमचिखण्डतक् सचन्दतकामचिखण्डतक्, परम्परकावं मवंमनसीवत, पकूवकार्शचिकारकार्शनक् मवंमनतले रकास्त्रकाधभप्रकारप्रकटनचिकाततुरसीमसहिमकानसत्तकात्परर्शमधभतसनष्टवसीवत ग्रन्थनऽरमक्। धचित्रककूटस-ततुलससीपसीठकाधिसीश्वर-सकावमशसीरकामभदकाचिकारर्श-पक्षधिरखण्डन

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भकारतसीरमनसीषकावसैभवरररधक्षषरका सकनल्पतववचिकारप्रसकारणिकल्पनकामरवं सववनरमससीचिकले। ग्रन्थवममवं पकाठवं पकाठवं, प्रसतुवतवं ध्यकारवं ध्यकारवं सहिषर्शमरवं जनतः ककामरतले रदरवं कमतः समकाजस्य भ्रमवनवकारणिसैकवनषतुरतः सनक् प्रमत्तकावं प्रवपृवत्तमग्रलेऽवप दरर्शं दरर्शं रकास्त्रकालनचिनलनचिनलेन प्रककामवं

वकागकारकावं ज्यलेषकाचिकारकार्शणिकामनतुवतर्शरनक् ससमकानवं रथकावसरवं प्रववतर्शततः स्यकादववनचनतरका। एतदथर्शं शसीभकागवतकानन्दगतुरनतः प्ररकासनऽधभनन्दनसीरतः। ववदतुषकावं व्रकाततः पलववतकावममकावं वकाणिसीवं सकादरवं ससीकररष्यतसीवत मदसीरन दृढतरतः ववशम्भतः स्यकावदतकारकासले। महिकामहिनपकाध्यकारतः पनण्डतरकाज आचिकारर्यो वमधथलकाप्रसकादवत्रपकाठसी (रकाष्टष पवतनका समकावनततः) पकूवर्शकतुलपवततः

महिवषर्श पकाधणिवन सवंसपृत एववं वसैवदक ववश्वववद्यकालर, उज्जसैन (०७) 'उत्तरककाण्ड प्रसङ्ग एववं सवंनकासकाधधिककार ववमरर्श' ग्रन्थ कका सकावधिकानतरका वनरसीक्षणि वकरका। इस ग्रन्थ ममें धचित्रककूटस ततुलससीपसीठकाधिसीश्वर सकावमशसीरकामभदकाचिकारर्श जसी कले अरकास्त्रसीर ववचिकारनवं कका सप्रमकाणि और सरतुवक्तिक खण्डन वकरका गरका हिसै। ग्रन्थककार नले बड़का हिसी पववत्र ककारर्श वकरका हिसै। जन वकाणिसी खनण्डत नहिसीवं हिन तन वहि ससीकपृत मकानसी जकातसी हिसै - सकाकपृतसैव खलतु वकागपरकासका। शसी अधभरकाजरकाजलेन वमश कले 'जकानककीजसीवन' ककाव्य ममें भसी शसीरकामभदकाचिकारर्श जसी उत्तरककाण्ड

कन प्रधक्षप्त घनवषत वकरले हिह। जन गनसकामसी शसीततुलससीदकास कले शसीरकामचिररतमकानस ककी चिसौपकाईरकावं बदल दले और बकावंसतुरसी कका 'गदका' अथर्श करले, वहि कतुछि भसी अककारर्श कर सकतका हिसै।

'कलेरकानवतसीवत कलेरवतः' ऐससी व्यतुत्पवत्त भसी मह उनकले मतुख सले सतुन चितुकका हहूँ जन पकाधणिवन कले अनतुरकासन सले ववरद हिसै।

महिकाकवव ककाधलदकास, भवभकूवत, रकाजरलेखर, वदङकाग आवद अनलेक महिकामनसीषसी कववरनवं कले महिकाककाव्यनवं ममें उत्तरककाण्ड ककी कथका रवद वमलतसी हिसै तन धरष्टपरम्परकापररगपृहिसीत हिननले सले उसले महिवषर्श वकालसीवककपृत हिसी मकानका जकारलेगका। पकाश्चिकातनवं नले बकालककाण्ड कले अनलेक सगर्यों कन और उत्तरककाण्ड कन प्रधक्षप्त कहिका हिसै धजनकका पनषणि दव्यलनभ सले प्रचिनवदत हिनकर अनलेक लनग करतले हिह। शसीरकामभदकाचिकारर्श जसी महिकारकाज भसी उनसीवं लनगनवं ममें सले अनतम हिह। वतलकटसीकका कले सकाथ छिपले रकामकारणि कले उत्तरककाण्ड कले कतुछि सगर्श 'प्रधक्षप्त' कले रूप ममें छिपले हिह। वले भसी प्रधक्षप्त नहिसीवं हिह, इसममें मतुझले प्रमकाणि वमलका हिसै। ध्वनकालनक ककी लनचिनटसीकका ममें आचिकारर्शशसी अधभनवगतुप्त नले इनवजका कले एक पकाद कन उदपृत वकरका हिसै - कनधिनऽवप दलेवस्य वरलेणिततुलतः। रहि अवंर प्रधक्षप्त मकानले जकानले वकालले सगर्श कले शनक कका हिसै।

धचित्रककूटस-ततुलससीपसीठकाधिसीश्वर-सकावमशसीरकामभदकाचिकारर्श-पक्षधिरखण्डन

उत्तरककाण्ड प्रसङ्ग एववं सवंनकासकाधधिककार ववमरर्श

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सवर्शमकान महिकामकाहिलेश्वर सवंज्ञका सले समलङ्कपृत आचिकारर्श ककी दृवष्ट सले तन रहिसी धसद हिन रहिका हिसै वक वकालसीवकरकामकारणि कका कनई भसी शनक रका सगर्श प्रधक्षप्त नहिसीवं हिसै। एवञ्च पकूरले ककाण्ड कन हिसी प्रधक्षप्त घनवषत कर दलेनका बहुत बड़का सकाहिस हिसै। मनसीवषरनवं कन रहि सह्य नहिसीवं हिननका चिकावहिरले। प्रकपृत ग्रन्थ कले रचिवरतका कले शकाघनसीर प्ररकास कन हिम नमन करतले हिह। हिमकारले आषर्श वकाङ्मर पर हिननले वकालले आकमणि कका वनरकाकरणि इससी प्रककार हिनतले रहिनका चिकावहिरले। रहि ग्रन्थ प्रक्षलेपध्वकान्ति प्रलेवमरनवं ककी वनववडतवमसका कका वनरकास करकले आनसकजननवं कन आहकाद प्रदकान करले, ऐससी ककामनका भगवकानक् शसी शसीवनवकास सले करतका हहूँ। प्रन० कमलकाककान्ति वत्रपकाठसी आचिकारर्श - पकूवर्शमसीमकावंसकाववभकाग सम्पकूणिकार्शनन्द सवंसपृत ववश्वववद्यकालर, वकारकाणिससी (०८) महिकानरवं हिषर्शस्य ववषरन रदतुरूपकाहसैतः शसीभकागवतकानन्दमहिनदरसैरत्तरककाण्डप्रसङ्ग एववं सवंनकासकाधधिककारववमरर्शनकामका ग्रन्थतः प्रणिसीततः। अस्य ग्रन्थस्य कलेधचिदवंरका मरकावप मण्डकूकपतुतकावलनवकतकातः। मकानकानकावं वकालसीवकव्यकासप्रभपृततुपजसीव्यकानकामपृषसीणिकावं वचिनलेषतु धिकूधलप्रक्षलेपणिवं ववदतुषका ग्रन्थकपृतकानङ्गच्छीकपृतमत एव समनसीषरका ववचिकारपकूवर्शकमनलेन वकालसीवकव्यकासकावदवचिनकासवहिषकूनकावं ववदतुषकावं तककार्श वनरसकातः सप्रमकाणिवं तवद्वद्वधदववर्शचिकाररसीलसैरवश्यमलेवकावलनकनसीरकातः। रवदनकामकात्र वकमवप क्षनदक्षमवं तत्त्ववं ववलनकतले तदवश्यमलेव वपपवठषकूणिकावं धजज्ञकासकूनकावं सन्दलेहिवनवकारणिकार प्रमकापणिसीरमलेव 'वकादले वकादले जकारतले तत्वबनधि' इवत नरलेन द्वरनरवप ववदतुषनसकर्शशवणिववचिकारणिद्वकारका भववष्यतलेव प्रकाकपृतकानकामवप जनकानकावं रथकातरवं धजज्ञकासकूनकावं लकाभतः। ववदतुषन ललेखकस्य कपृतले आसकाककीनकातः सदकावनकातः। नकूनमस्य ग्रन्थस्यकावलनकनलेन सलेत्स्यतलेव वनष्कपृष्टकाथर्शबनधि इवत ककामरतले भगवन्तिवं वपृन्दकावनववहिकाररणिमक् नमनरञ्जनतः डड० शसीरकामकपृपकालवत्रपकाठसी प्रकाचिकारर्शचिरतः - शसीरङ्गलकसीआदरर्श सवंसपृतमहिकाववद्यकालरस्य वपृन्दकावनसस्य

धचित्रककूटस-ततुलससीपसीठकाधिसीश्वर-सकावमशसीरकामभदकाचिकारर्श-पक्षधिरखण्डन

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