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EMPRESAS HEADHUNTERS CHILE PDF
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Story Transcript

मैं सफ़दर को बहुत चाहता था। वैसे, भला कौन उसे नही ं चाहता था? हम सभी उसकी दिलकश शख़्सियत, उसके सहज ठहाके , उसकी तमीज़ और तहज़ीब, सहज अभिव्यक्ति, स्पष्ट नज़रिए और कोमल मानवीय मूल्यों के क़ायल थे। हबीब तनवीर

‘हल्ला बोल को आप बीच में नहीं छोड़ सकते। ये एक तेज़-रफ़्तार, सजीव शब्द चित्रों, घनी सरगर्मियों से भरी किताब है। इसे पढ़कर आपका दिल बैठने लगता है, मगर यह िफ़क्शन नहीं है। यह एक हरदिल अज़ीज़ इं सान की कहानी है – एक ऐसा कॉमरेड जिसके लिए इं सानियत पार्टी से बड़ी थी; एक कलाकार, शायर, लेखक, अदाकार, कार्यकर्ता; एक ऐसा इं सान जो अपनी उपलब्धियों के बोझ से भी कभी राह से नहीं डिगा। बेशुमार प्रतिभाओं वाला ऐसा व्यक्ति जिसे तमाम दनु िया उम्मीद भरी नज़रों से देखकर ये कह उठती : “लो, ये रहा नए दौर का इं सान!” और सुधन्वा के रूप में उसे एक बेहतरीन जीवनीकार मिल गया है।’ आनं द पटवर्धन फ़िल्मकार ‘एक नगीना। हल्ला बोल रंगमं च के बारे में है, सं स्कृ ति, राजनीति और उम्मीद के बारे में है, और दिल को हिला देने वाली, आज के लिए बेहद ज़रूरी किताब है। अगर ये आपकी लाइब्रेरी में नहीं है तो समझिए कि वो लाइब्रेरी अधूरी है।’ सं जना कपूर रंगकर्मी ‘आपस में कस कर गुंथे कई नैरेटिव्ज़ को लेकर हल्ला बोल तेज़ी से आगे बढ़ती है। ये सफ़दर हाश्मी का एक चमकदार शब्दचित्र है। यह किताब सांस्कृतिक व्यवहार और मज़दू र वर्गीय राजनीति के अंतर्संबंधों के बारे में है, और उन अंतर्संबंधों, उन चौराहों पर जी गई ज़िदं गियों का रोज़नामचा है। अलग-अलग नाटकों के बनने-बदलने के विवरणों, नुक्कड़ों-चौराहों-पार्कों में उनके मं चन के ब्यौरों से सजी इस किताब का कोमल, बहते पानी जैसा गद्य भी एक सुघड़ नाटक जैसा लगता है। एक दिलकश किताब!’ एजाज़ अहमद मार्क्सवादी चितं क

‘हल्ला बोल सफ़दर हाश्मी की छोटी मगर बेहद भरपूर ज़िदं गी का शानदार ब्यौरा देती है। इसको पढ़कर हमें पता चलता है कि शायरी और नाटक, हास्य और कोमलता, साहस और उम्मीद से भरे-पूरे राजनीतिक प्रतिरोध को जीने का क्या मतलब होता है। और सफ़दर हाश्मी इस मं च पर कहीं अके ला दिखाई नहीं देता। शायद यही उसकी ज़िदं गी – और इस किताब – की कामयाबी है। हल्ला बोल हमें बिल्कु ल पास से ये दिखाती है कि किस तरह एक मामूली आदमी की ज़िदं गी और मौत बहुत सारे लोगों की कहानियों में गुंथी होती है। वे सब मिलकर विचारधारा और ज़िदं गी के सं घर्ष को आपस में जोड़ने वाली एक गहरी कड़ी को सामने लाती हैं। यह एक ऐसी किताब है जिसकी आज हमें दरकार है, ताकि हम प्रतिरोध की अपनी समझ को फिर से तराश सकें और उसे अमल में लाने की ताक़त जुटा सकें ।’ गीता हरिहरन लेखिका ‘सफ़दर के बाद बड़ी हुई एक पूरी पीढ़ी के लिए हल्ला बोल एक खज़ाना है। ऐसी कहानियों और ब्यौरों से भरा खज़ाना जो उस दिलचस्प आदमी के जुनून, हास्य, और इं सानियत को एक अंतरंग पोर्ट्रेट के तौर पर आपके सामने नुमायां करती हैं। यह किताब किसी एक व्यक्ति या किसी एक दख ु द घटना के बारे में नहीं है। सुधन्वा जन नाट्य मं च के लं बे सफ़र का बयान करते हैं और चलते-चलते ऐसी असं ख्य आवाज़ों, और जिस्मों, और कल्पनाओं, और अनगिनत वाक़यों से रूबरू कराते जाते हैं जो करुणा और एकजुटता की मिसालें हैं। मेरी निगाह में ये किताब मोहब्बत के बारे में है।’ नील चौधरी नाटककार एवं निर्देशक

‘कि़स्सागोई के फ़न और चीज़ों को औरों की नज़र से देखने की शानदार क्षमता की बदौलत सुधन्वा देशपांडे सफ़दर हाश्मी के समृद्ध और बेहद प्रतिबद्ध जीवन पर एक गहरी रोशनी डालते हैं। यह किताब हमारे देश में भारी उथल-पुथल और बदलावों के दौर की कहानी भी है। यह उन बहुत सारे विचारों की कहानी है जिनसे सफ़दर और उनके साथी जूझ रहे थे और जिनसे हमारा वर्तमान बना है। बेशक, सफ़दर का जाना निहायत बेतक ु ा और दख ु द क्षण था मगर कु ल मिलाकर वह एक ऐसे आदर्शवादी के रूप में सामने आता है जो राजनीतिक उद्देश्यों के लिए कलात्मक प्राथमिकताओं को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है, जो आत्मसं देह के साथ जूझना जानता है, और देश की एक महत्वपूर्ण रंगमं च कं पनी की बागडोर सं भाले हुए दिलेरी के साथ आगे बढ़ रहा है। हल्ला बोल भारत के समकालीन रंगमं च पर मौजूद थोड़े-से साहित्य में एक बहुत बेशकीमती योगदान है।’ सुनील शानबाग रंग निर्देशक ‘जिसे हम अपना वर्तमान कहते हैं, इतिहास के उस पन्ने पर एक भयानक बवं डर उठ रहा है। हल्ला बोल में सुधन्वा देशपांडे ने उस नन्ही-सी, उस लरज़ती हुई लौ के चारों तरफ अपने हाथों का घेरा बनाया है जिसे हम सफ़दर हाश्मी के नाम से जानते हैं। यह, सफ़दर हाश्मी, और जिसका वो शरीक़ था, उस आंदोलन की उपलब्धि है कि हल्ला बोल सिर्फ एक व्यक्ति को नहीं बल्कि उस मिज़ाज, उस सामूहिक विचारधारा की एक प्रशस्ति के रूप में सामने आती है जो मानती है कि सं घर्षरत समुदायों से जुड़े कलाकारों में ही हमारी मुक्ति की सं भावनाएं छिपी हैं।’ अमिताव कु मार लेखक

सुधन्वा देशपांडे जन नाट्य मं च, दिल्ली के साथ एक ऐक्टर, डायरेक्टर और आॅर्गेनाइज़र के तौर पर सक्रिय हैं। वह लेफ़्टवर्ड बुक्स के मैनेजिगं एडिटर हैं। अपनी ज़्यादातर आवाजाही के लिए साइकिल पर चलने वाले सुधन्वा की यह पहली किताब है।

हल्ला बोल

हल्ला बोल सफ़दर हाश्मी की मौत अौर ज़िंदगी

सुधन्वा देशपांडे  अनुवाद योगेंद्र दत्त

पहला सं स्करण, जनवरी 2020 वाम प्रकाशन 2254/2 ए, शादी खामपुर न्यू रंजीत नगर नई दिल्ली 110008 वाम प्रकाशन और लेफ़्टवर्ड बुक्स नया रास्ता पब्लिशर्स प्रा. लि. की प्रकाशन शाखाएं हैं। leftword.com © 2020, सुधन्वा देशपांडे इस किताब में इस्तेमाल की गईं तस्वीरें जन नाट्य मं च के आर्काइव से साभार ली गई हैं। जहां जानकारी हासिल है, वहां फ़ोटोग्राफ़र का नाम दिया गया है। अगर कोई कमी रह जाती है तो प्रकाशक की तरफ़ से इसमें सुधार किया जाएगा। इस किताब की रॉयल्टी जन नाट्य मं च को जाएगी। ISBN 978-81-943579-4-0

Halla Bol: Safdar Hashmi ki Maut aur Zindagi By Sudhanva Deshpande Translated by Yogender Dutt

काॅमरेड आई और प्रोफ़ेसर बाबा के लिए

विषय सूची

भाग एक



भाग दो

1 जनवरी 1989 1 जनवरी 1989 1 जनवरी 1989 1 जनवरी 1989 1 जनवरी 1989 1 जनवरी 1989 1 जनवरी 1989 1 जनवरी 1989 1 जनवरी 1989 1 जनवरी 1989 2 जनवरी 1989 2 जनवरी 1989 3 जनवरी 1989 4 जनवरी 1989 गर्मियां, 1987 गर्मियां, 1987 गर्मियां, 1987

सत्तर के दशक की शुरुआत सत्तर के दशक की शुरुआत 1973

मद्रास होटल कु र्सी पर निशाना परफ़ॉर्मेंस हमला रास्ता ढू ंढते हुए सफ़दर को बचाने की जद्दोजहद मोहन नगर अस्पताल दिल्ली के अस्पताल भागमभाग छिपना और छकाना अलविदा माला अंतिम विदाई परफ़ाॅर्मेंस जनम के साथ मेरा पहला नाटक फ़रीदाबाद जनम के हालात

13 14 17 18 20 21 24 27 29 33 38 40 41 43 47 50 56

शुरुआती साल दिल्ली विश्वविद्यालय इप्टा जनम का जन्म

61 65 71 76

7

व ि षय सू च ी

1975 जून 1979 अक्टू बर 1978 अस्सी का दशक 1978 अस्सी का दशक अस्सी के दशक के शुरुआती साल अस्सी के दशक की शुरुआत अस्सी के दशक की शुरुआत अप्रैल 1982 अस्सी के दशक का मध्य अस्सी के दशक का मध्य अस्सी के दशक का मध्य अस्सी के दशक का मध्य 1988 अस्सी के दशक का आख़िर भाग तीन

1988 1988 की गर्मियां 1988 की गर्मियां मई 1988 जून 1988 जुलाई 1988

इमरजेंसी सफ़दर राॅय और मलयश्री हाश्मी नुक्कड़ नाटक की शुरुआत नुक्कड़ नाटक का सिद्धांत समुदाय और बेलची अदाकार ऋत्विक घटक एक दर्शक का अनुभव नुक्कड़ नाटक का फै लाव ‘हरिजन’ नाटक बच्चों के लिए लेखन रंगमं च को गं भीरता से लेना सांप्रदायिक सद्भाव समिति टेलीविज़न और डाॅक्यूमट्री ें ज़ पाकिस्तान बेज़ारी और बासीपन

81 83 88 95 98 101 104 108 111 115 120 124 129 134 143 148

नई पौध औरत राजा का बाजा हबीब तनवीर प्रेमचं द का एडेप्श टे न हनुमान की पूंछ

151 151 155 156 161 163

8

व ि षय सू च ी

जुलाई 1988 जुलाई 1988 जुलाई 1988 जुलाई 1988 जुलाई 1988 पतझड़ 1988 अक्टू बर 1988 अक्टू बर 1988 अस्सी का दशक अक्टू बर 1988 अक्टू बर 1988 नवं बर 1988 नवं बर 1988 दिसं बर 1988 दिसं बर 1988 दिसं बर 1988

चमेलीजान गुरु और शिष्य ज़ोहरा सेगल मोनिका दी ऐक्टिंग क्या होती है? हमारी ट्रेनिगं जनम का पुनर्गठन नुक्कड़ नाटक के दस साल दिल्ली का मज़दू र वर्ग मज़दू र सं गठन हड़ताल की तैयारी चक्का जाम की रचना चक्का जाम को खेलना हड़ताल ‘रब राखा पुत्तर’ ख़्वाब-दर-ख़्वाब आख़िरी महीना जिन्हें यक़ीन नहीं था

उपसंहार हल्ला बोल स्रोतों के बारे में आभार

167 169 174 176 179 183 186 190 192 196 203 207 215 219 223 225 228 232 238 251 267 269

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