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Copyright © 2020 by Vivek Mishra All rights reserved. No part of this book may be reproduced, stored in a retrieval system, or transmitted, in any form by any means, electronic, mechanical, magnetic, optical, chemical, manual, photocopying, recording or otherwise, without the prior written consent of its copyright holder indicated above.

ISBN: 978-81-945564-1-1 Publishing Year 2020

Published and Printed by: Sankalp Publication Head Office: Ring Road 2 Gaurav Path, Bilaspur, Chhattisgarh – 495001 Phones: +91 9111395888 +91 9111396888 Email: [email protected] Website: www.sankalppublication.com ii

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"सावरकर माने तेज, सावरकर माने त्याग, सावरकर माने तप, सावरकर माने तत्व, सावरकर माने तकक, सावरकर माने तारुण्य सावरकर माने तीर, सावरकर माने तलवार" -

भारत रत्न अटल बबहारी वाजपेयी

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"सेलुलर जेल के कैंपस में चलते हुए ऐसा अनुभव होता है कक भारत माां के वीर सपू त समांदर की लहरोां पर अपने खून पसीने से भारत माां की जय कलख रहे हैं । वे पल-पल, कतल-कतल अपने आप को जला रहे हैं , अपनी कजांदगी जला रहे हैं ताकक आजादी की रोशनी प्रकट हो। वीर सावरकर को लेकर कजतनी भी बातें सुनी और पढ़ी हैं, वो एक-एक घटना दृश्य बनकर जीवांत हो जाती है । वो कोठररयाां! जहाां वीर सावरकर, बाबा भान कसांह, महावीर कसांह, इां दु भूषण राय जैसे सैकड़ोां हजारोां महान क्ाां कत वीरोां को यातनाएां दी गई, जहाां पर उन्ोांने इतने वषक कबताए, वह व्यक्तिगत रूप से हम सबके कलए ककसी मांकदर से कम नहीां हैं ।" - प्रधानमंत्री नरें द्र मोदी (30/12/2018, पोटट ब्लेयर)

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"पू ज्य दादा श्री रमाकाां त कमश्र एवां दादी श्रीमती फूलमती कमश्रा के कर कमलोां में श्रद्धापू वकक समकपक त!"

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आभार-अबभव्यक्ति ककताबें एक आईना हैं , जो हमारे व्यक्तित्व को दशाक ती हैं और एक ककताब के माध्यम से दे श के महान स्वतांत्रता सेनानी के व्यक्तित्व को दशाक ना, खुद में ही एक असांभव सा कायक है । परां तु जहाां अपनोां का साकनध्य हो और स्वयां वह व्यक्तित्व आपके कलए प्रे रणा स्रोत बन जाए तो असांभव भी सांभव हो सकता है । सवकप्रथम मैं नमन करता हां अपने प्रे रणा स्रोत वीर कवनायक दामोदर सावरकर जी का, कजनके व्यक्तित्व ने मुझे कचांतनशील बनाया और इस पु स्तक के लेखन के कलए प्रे ररत ककया। मैं ऋणी हां अपने माता-कपता कजन्ोांने मुझे जन्म कदया एवां बहन कनकमषा और छोटे भाई कवकास का कजन्ोांने हमेशा मेरी मेहनत और मुझ पर कवश्वास बनाए रखा और मेरे हौसले को कभी कम नहीां होने कदया। इस पु स्तक को व्यवक्तथथत रूप दे ने में तुम दोनोां का अकवस्मरणीय योगदान रहा। साथ ही साथ मेरे घकनष्ट कमत्र सोमेंद्र कत्रवेदी (राना), मामा जी (अां ककत शुक्ल) एवां भाई तुल्य कवकास पाण्डे य कजन्ोांने जीवन की हर कवषम पररक्तथथकत में मेरा साथ कदया। मैं लखनऊ कवश्वकवद्यालय के राजनीकत कवज्ञान के प्रो. आर. के. कमश्रा (सेवाकनवृत्त), प्रो. आशुतोष कमश्र (पू वक कवभागाध्यक्ष), प्रो.शकश शुक्ला (वतकमान कवभागाध्यक्षा), प्रो. राजीव सरन, प्रो. कमल कुमार, प्रो. मनुका खन्ना, प्रो. सांजय गु प्ता, प्रो. ककवराज, डॉ. अकमत कुशवाहा एवां सभी कशक्षक-कशकक्षकाओां का कवशेष रूप से आभार व्यि करता हां कजनके साकनध्य में रहकर मैंने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अपनी कशक्षा पू णक की एवां कजनके मागक दशकन एवां आशीवाक द से ही इस पु स्तक लेखन का कायक सांभव हो सका। आभार व्यि की इस श्रृांखला में मैं डॉ. ज्योकत कमश्रा [सहायक कनदे शक (राजभाषा) सी.बी.आई., भारत सरकार] का

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नाम भी लेना चाहां गा। आप अत्यकधक व्यस्त होने के बावजूद मेरी छोटी से छोटी समस्या का कनश्छल ह्रदय से समाधान करने के साथ-साथ हमेशा मेरा मागक प्रशस्त करने का कायक भी करती हैं । अां त में मैं धन्यवाद करता हां परमकपता परमेश्वर का कजन्ोांने मुझे जीवन कदया और मेरी शक्ति को कभी कम नहीां होने कदया। - लेखक

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भूबमका भारतीय इकतहास के पन्नोां का एक ऐसा वीर जो भूत और वतकमान दोनोां समय चक्ोां में चचाक का ज्वलांत प्रश्न बना रहा! कजनकी दू रदकशकता एवां कभी न खत्म होने वाली सोच को नष्ट करने के अनेकोां प्रयास अां ग्रेज और अां ग्रेकजयत के द्वारा ककए गए। इकतहास में पहली बार ककसी क्ाां कतकारी को दो-दो आजीवन कालापानी की सज़ा सुनाई गई। असीम कष्ट भी उनके क्ाां कत के सांकल्प को कडगा न सके। ऐसा अकद्वतीय व्यक्तित्व कजनके कृकतत्व को कभी कवस्मृ त नहीां ककया जा सकता। ऐसे थे महान क्ाां कतकारी वीर कशरोमकण कवनायक दामोदर सावरकर! कजन्ोांने 'अकभनव भारत' नामक सांगठन का बीजारोपण ककया, जो आगे चलकर भारतवषक के समस्त क्ाां कतकाररयोां के कल्पवृक्ष के रूप में पररणत हुआ। अां ग्रेजोां के गढ़ में जाकर अां ग्रेज अफसर का कशकार करने वाले भारत के पहले क्ाां कतकारी मदन लाल ढीांगरा, शहीद-एआज़म भगत कसांह और नेताजी सुभाषचांद्र बोस जैसे महान् व्यक्तित्व इसी कल्पवृक्ष की शाखाओां से प्रत्यक्ष या परोक्ष आजीवन जुड़े रहे । जब हमारे दे श की कवकवधता के प्रश्न को लेकर अां ग्रेजोां और उन्ीां की जीवनशैली का अनुसरण करने वाले कुछ भारतीयोां को यह भ्रम था कक कहां दुस्तान कभी एक दे श न रहा है और न कभी रह सकता है । अां ग्रेजोां के आगमन से पू वक भारत अनेक टु कड़ोां में बां टा हुआ था। लोग जाकत-धमक के नाम पर एक दू सरे का दोहन कर रहे थे। ऐसी अराजक क्तथथकत में अां ग्रेज भारत आए, उन्ोांने सेना, भाषा एवां कवकध के आधार पर भारत को एकता के सूत्र में कपरोने का कायक ककया। भारत की एकता का कारण किकटश शासन ही है ।

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सावरकर जी ने इस भयावह दु ष्प्रचार को अपने अकाट्य तकों के माध्यम से एकत्व को आत्मसात करने वाली भारतीय सांस्कृकत के इकतहास से भारतीयोां को अवगत कराया। सावरकर जी के शब्ोां में- " हमारा दे श प्राचीन काल से एकता के बां धनोां से बां धा हुआ है । हमारी दे ववाणी भाषा सांस्कृत सभी भाषाओां का उद्गम थथल है । हमारे रहन-सहन, हमारे त्योहार आज भी एक जैसे ही हैं । हमारी कपतृभूकम एवां पु ण्यभूकम भी एक है । हमारे महापु रुष, ककव ,आदशक सभी एक हैं । " यकद अमेररकन, जमकन, किकटश, फ़्रेंच आकद महज़ चारपाां च सौ वषों की सांस्कृकत को सांजोए हुए अपने को एक राष्टर कहलाने के अकधकारी हैं, तो हम एक कहन्दू राष्टर क्ोां नहीां? राष्टर बनने की अहक ताएँ हम कहां दुओां में इन सबसे अकधक पाई जाती हैं । सावरकर जी का अखण्ड भारत इन शब्ोां में पररलकक्षत होता है- "भारतीय राष्टर कवशुद्ध भारतीय बने। नौकरी, पद, टै क्स, वोट इत्याकद ककसी भी कवभाग में धमक और नश्ल कवशेष के कारण ककसी भी व्यक्ति से पक्षपात न ककया जाए। योग्यता को सवोपरर मानकर सबके साथ समान व्यवहार ककया जाए। सांसार के अन्य दे शोां की भाां कत बहुमत की भाषा और कलकप ही राष्टरीय भाषा और राष्टरीय कलकप होनी चाकहए। कहन्दु थथान के इसी आदशक को प्रत्येक जन आत्मसात करे । " दे श के कवभाजन से पू वक अमेररकी पत्रकार लुई कफशर ने सावरकर जी से प्रश्न ककया - "जब मुक्तिम लीग पाककस्तान की माां ग कर रही है , तो आप भारत कवभाजन को स्वीकार क्ोां नहीां कर लेते? " सावरकर जी ने बड़े गां भीर स्वर में कफशर से ही प्रकतप्रश्न कर कदया - " नीग्रो अमेररका में नीग्रोलैंड की माांग करते आ रहे हैं , आप नीग्रोलैंड की माां ग को क्ोां स्वीकार नहीां कर लेते? " कफशर कबना कुछ कवचार ककए बोल पड़े - " क्ोांकक उनकी माां ग राष्टरकवरोधी है ।" सावरकर जी ने तुरन्त कफशर की बात का समथकन करते हुए कहा- " कजस प्रकार नीग्रोलैंड की माां ग आपके कलए राष्टर

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कवरोधी है , ठीक उसी प्रकार पाककस्तान की माां ग हमारे कलए राष्टरकवरोधी और अलोकताां कत्रक है । " सावरकर जी का तकक सुनकर लुई कफशर मौन हो गए। कालाां तर में उन्ोांने एक लेख में कलखा- " सावरकर के हृदय में मैंने एक ओर जहाँ राष्टरभक्ति की असीम भावना पाई, वहीां दू सरी ओर कजन्ना के हृदय में भारत व भारतीय सांस्कृकत के प्रकत घोर घृ णा के बीज कदखाई कदए। " ऐसे महान् राष्टरभि कजन्ोांने अपना सवकस्व न्यौछावर कर अपने को मातृभूकम की सेवा में प्रस्तु त कर कदया, कजनके कलकपबद्ध लेखोां और ग्रन्ोां को पढ़कर दे श के क्ाां कतकारी प्रे रणा लेते होां, कजनकी पु स्तकोां को प्रकाकशत होने से पहले ही प्रकतबां कधत कर कदया गया हो, जो आजीवन अखण्ड भारत का स्वप्न दे खता रहा हो, ऐसे वीर सपू त को मैं शत् शत् नमन करता हँ । - बववेक बमश्र सीतापुर, उत्तरप्रदे श

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अनुक्रमबणका

Øekad 1.

fo"k; प्रारक्तिक जीवन-शैली  जन्म एवां जन्मथथान  कहन्दू धमकरकक्षणी सभा  अकभनव-भारत का गठन

2.

लन्दन में क्रांबत की ज्वाला  लांदन प्रथथान  1857 प्रथम भारतीय स्वतांत्रता सांग्राम न कक सैकनक कवद्रोह  इां ग्लैंड में श्रीराम जन्मोत्सव-सावरकर एवां गाँ धी भेंट  मदनलाल ढीांगरा द्वारा कज़कन वायली का वध  लन्दन में कगरफ्तारी  मासेकलस बन्दरगाह

3.

अंडमान में सामाबजक गबतबवबधयां  दोहरे आजीवन कारावास की सज़ा  अां डमान की सेलुलर जेल  जेल में कई महीनोां बाद अपने भाई से भेंट  शुक्तद्ध आां दोलन  राष्टरभाषा के रूप में कहां दी का प्रचारप्रसार  पत्र-सांवाद

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