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EMPRESAS HEADHUNTERS CHILE PDF
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Story Transcript

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© Sunita Sharma Khatri 2020 All rights reserved All rights reserved by author. No part of this publication may be reproduced, stored in a retrieval system or transmitted in any form or by any means, electronic, mechanical, photocopying, recording or otherwise, without the prior permission of the author. Although every precaution has been taken to verify the accuracy of the information contained herein, the author and publisher assume no responsibility for any errors or omissions. No liability is assumed for damages that may result from the use of information contained within. First Published in January 2020 ISBN: 978-93-5347-775-2 BLUEROSE PUBLISHERS www.bluerosepublishers.com [email protected] +91 8882 898 898 Cover Design: Mohit Joshi Typographic Design: Teena Maurya Distributed by: BlueRose, Amazon, Flipkart, Shopclues

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 प्रस्तावना  अपनी लिखी कहाननयों का संग्रह पुस्तक के रूप में पाठकों के समक्ष रखने में मुझे बहुत खुशी हो रही है| अब तक मेरे द्वारा लिखी इन कहाननयों को पाठक सोशि साईट्स, समाचार पत्रों और पनत्रकाओं में पढ़ते रहे | मेरे पाठकों ने सदै व ही मुझे प्रोत्सानहत नकया, इन सभी कहाननयों को संग्रनहत कर नकताब लिखने की प्रेरणा दी मेरे छोटे भाई रनव भारद्वाज ने। मेरे इस कायय में सहयोग नदया बडे भाई शैव्य शमा ने और नपता सीताराम शमा के अतुिनीय आशीवाद द्वारा मेरी किम आगे बढ़ने िगी…. मेरे दोनों बच्चे अनुष्क (पुत्र) एवं स्वास्तस्तका (पुत्री) ने मेरा मनोबि बढ़ाया.... मेरी इस राह को आसान बना नदया। िेखन में मेरे नमत्रों, मेरे भाईयों और मेरी बहनों ने जो प्रोत्साहन तथा हौसिा मुझे प्रदान नकया, उसके लिए मैं आभारी ह ूँ । मेरे नकताब लिखने के इस सपने को मूतय रूप में िाने का श्रेय ब्लू रोज़ पनब्लकेशन को है, स्तजन्होंने मुझे सही रास्ता नदखाया। ऊ ूँ नम:स्तशवाय।|

iii

 समपयण  “यह नकताब समर्पयत है मेरे नदवंगत पतत श्री अनुप कुमार खत्री को, कुछ समय पहिे कैंसर ने उन्हें मुझसे छीन लिया... उन्होंने मुझे हमेशा ही प्रेररत नकया नक मैं िेखन में अपनी पहचान नवश्वस्तरीय बना सक ूँ ू , मेरे िेखन के लिए हर सुनवधा मुहैया करायी। वह हमेशा कहते थे- मैं भिे ही शशरीर तुम्हारे साथ न रह ूँ पर तुम्हारे मन में हमेशा रह ूँ गा। ” —सुनीता शमा खत्री

iv

 अनुक्रमलणका  प्रस्तावना .............................................................................. iii समर्पण ..................................................................................iv अनक्र ु माणिका .........................................................................v आणिर क्यों ? .........................................................................1 पश्चाताप की ज्वाला ................................................................26 समुंदु र-समुंदु र यहााँ से वहााँ तक ..................................................63 जोगन ..................................................................................90 हसीन बला ........................................................................ 103 प्यार है तमु से ..................................................................... 113 िश ु ी का अहसास ............................................................... 116 भींगा मन ........................................................................... 118 चररत्रहीन ........................................................................... 121 िुंडहर .............................................................................. 123 कमाई ............................................................................... 125 कमाई - 2 .......................................................................... 127 कमाई - 3 .......................................................................... 129 माँहु मत मोडो ...................................................................... 131 मााँ की वापसी ..................................................................... 133 छोटा काम ......................................................................... 136 णिल्म ............................................................................... 139 पररचय .............................................................................. 141 v

vi

 आलखर क्यों ?  क्या माँगती हो भगवान से पूजा-पाठ कर ! पूजा गृह से वापस िौटी सन्जना पर तंज कसता हुआ नवीन मु ूँ ह टेढा कर मुस्कुरा रहा था। सन्जना उसका व्य ं ग्य समझ गयी िेनकन खामोशी से अपने काम में िग गयी। क्या कहती वह ! कुछ पि के लिए ही सही मंनदर में भगवान की मूरत दे ख वह अपना हर ददय भुि जाती निर नहम्मत जुटा अपने नदन की शुरूआत करती। उसकी खामोशी दे ख नवीन ततिनमिा गया। वह उसे बदाश्त नहीं कर पा कर पा रहा था.... कोई न कोई बहाना खोजता उससे िडने का, हर नदन काम में मीन-मेख ननकािता तानक उसे घर से और अपनी स्तजन्दगी से ननकाि िेंके िेनकन उसकी हर चाि उल्टी पडती। घर वािों ने उसे सर चढ़ा रखा था। नवीन कोस्तशश करता नक सब उससे निरत करे िेनकन वह अपनी इन कोस्तशशों में नविि रहा। रात नदन उसके नदमाग में यह जदोजह्द चिती रहती नककैसे अपने और पािुमी के रास्ते की सन्जना रूपी दीवार को नगरायें, उसे कामयाबी नहीं नमि पा रही थी, उसकी हर चाि उल्टी पडती.. नदन पर नदन उसकी झु ं झिाहट बढ़ती गयी। िैपटॉप पर पािुमी से वीनडयो चैट करते नवीन की सारी रात बीत गयी। दोनों की नजदीनकयाँ बढ़ती ही जा रही थी। दोनों के शहरों में दूररयाँ बहुत थी िेनकन नेट ने इनकी दूररयों को कम नकया था। वह इतनी आसानी से तुम्हारा पीछा नहीं छोडेगी... आलखर क्या कमी है उसे, अपने घर जाकर भी रह सकती है, जब तुम उसे पंसद नहीं करते तो तुम्हारी स्तजन्दगी से चिी क्यों नहीं जाती।

1

तुम शांत हो जाओ पािुमी... मैं कोई न कोई रास्ता जरूर ननकाि िू ं गा । अपनी स्तजन्दगी से तो क्या, इसे दुननयां से ही नमटा दूंगा । बडी सती सानवत्री बनती है । क्या मैं नहीं जानता जब मैं बाहर टू र पर जाता था तो क्या गुि लखिाती थी ! जब से तुम मेरी िाईि में आयी हो पािुमी, मैं जीने िगा ह ूँ वना तो मेरे स्वाथी पररवार वािों ने मेरा जीना हराम नकया हुआ था । बस हर वक्त पैसा चानहए इन्हें, मेरी कोई परवाह नही ! मतिबी हैं सबके सब। िैपटॉप की स्क्रीन पर पर पािुमी अपनी काततिाना मुस्कान िेंकती है। अपने ननवस्त्र शरीर पर हाथ िेरती हुई कहती- मैं तो कब की तुम्हारी ह ूँ पर तुम्हीं ने दे र की हुई है। उसकी अदाओं से नवीन पागि हुआ जाता है । तुम निक न करो... मैं जल्द ही इसे घर से ननकाि दूंगा । निर उसके बाद तुम यहाँ होगी मेरे इस घर में, इस कमरे में, इस नबस्तर पर हमेशा के लिए। ठीक है... अब मैं सोने जा रही ह ूँ , तुम भी सो जाओ.... कि निर नमिेंगे। पािुमी ने अपना पुरा हुस्न नवीन के सामने परोस नदया स्तजसे संवारने के लिए नवीन अच्छी खासी रकम उसके बैंक एकाउन्ट में जमा करता था । जब भी मौका नमिता उससे नमिने पहुंच जाता। आभागी सन्जना इस बात को अच्छे से समझ चुकी थी नक उसका पतत उसका है ही नहीं िेनकन पररवार वािों की मान मयादा के चिते वह खामोश रहती । कहती भी तो नकससे ? अपनी बीमारी से िाचार उसका सुंदर चेहरा कुम्हिा गया था, उस पर बच्चों का पािन पोषण और पररवार जनों की सेवा में खुद को समर्पयत कर वह ससुराि में तो सम्मान पा चुकी थी िेनकन पतत की चाहतों के आगे उसकी एक न चि पायी । उसकी जिी-कटी सुनना और मार खाना, यही उसने अपनी ननयतत मान हािातों से समझौता नकया हुआ था।

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बेटी को ट्यूशन से घर वापस िेकर िौटी सन्जना पर नवीन बहाना बनाता हुआ भडकने िगा- कहाँ गयी थी हीरोईन बन कर... अपने यारों से नमिने ! सन्जना ने कोई जवाब न नदया। वह समझ चुकी थी नवीन निर उससे िडने के मूड में है । सारी रात उसने िैपटॉप पर गुजारी है, यह वहउसका कमरा दे ख सुबह ही समझ गयी थी िेनकन उससे उिझने में वक्त बबाद न कर घर के काम में िग गयी। नवीन पर तो पािुमी के इश्क और हुस्न का नशा चढ़ा था। नकसी भी तरह सन्जना खुद ही से घर चिी जाये या खुद उससे तिाक िे िे, इसके लिए आज निर वह उसे उकसाना चाहता था । नबना वजह अनाप-शनाप शब्दों की बौछारें करने िगा। रन्डी जवाब नहीं दे रही ! और सन्जना के बािों को जोर से पकड खींच घर के बाहर िे आया।. सािी बार बार पूछ रहा ह ूँ कहाँ गयी थी, बता नहीं रही, बहुत ऐंठ आ गयी है । बेटी भागते हुए बाहर आयी- पापा ! मम्मा को क्यों मार रहे हो, वह तो मुझे िेने गयी थी और जोर से रोने िगी । बेटी को रोता दे ख नवीन कुछ होश में आया । मैं पूछ रहा ह ूँ .... जवाब नहीं दे रही इसलिए मारा इस हरामखोर को.... कहता हुआ नवीन घुमने चिा गया। मम्मा ! आपने पापा को बताया क्यों नहीं... क्यों मार खायी । अगर मैं बता देती तो वह तब भी मारते बेटा ! वह बच्चों से क्या कहती नक उनका नपता क्या कर रहा है ! अपना ददय भूि सन्जना ने बेटी के आ ूँ सू पोंछ सीने से िगा लिया । बच्ची रोते-रोते कहने िगी- मम्मा ! आप यहाँ से दूर चिो... हम यह घर छोड कर चिे जायेंगे। पापा गन्दे हैं। ऐसे नहीं कहते बेटे ! सन्जना ने जब नपता के प्रतत बच्ची के मन में निरत का भाव दे खा तो वह सोच में पड गयी । आलखर नवीन ऐसा क्यों करता

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है, िैपटॉप पर सारी रात क्या करता है ! बच्चों के कोमि मन पर नकतना गहरा बुरा असर पड रहा होगा, सोच कर वह सहम गयी । साथ ही कुछ िैसिा िेने के लिए सोचने िगी। अपनी सारी नहम्मत जुटा सन्जना चुपचाप नवीन के कमरे में गयी और उसका िैपटॉप खोि दे खने िगी नक आलखर वह क्या करता है । जैसे ही उसने गुगि नहस्ट्री चेक की तो जो कुछ उसे नदखा उसके होश उड गये । नवीन इस हद तक नगरेगा, वह कभी सोच भी नहीं सकती थी.... तभी तो वह उसके साथ ऐसा बताव करता है । अपनी हवस के लिए वह एक बजारू औरत को घर में रखने को तैयार हो गया। उसने ठान लिया नक वह अब और बदाश्त नहीं करेगी । क्रोध से उसका पूरा शरीर काँप रहा था। उसने घर में सबको बताया और अपना िैसिा भी । सभी सकते में थे। काम करने के बहाने कई कई नदनों तक घर से बाहर रह नवीन यह गुि लखिा रहा था । सबके सर शमय से झुक गये। नवीन की माँ गुस्स ु् े से भर गयी- आज इसे आने दो... बह पर तोहमतें िगाता है, खुद क्या कर रहा है यह.... पूरा घर बबाद कर नदया इसने। तभी देवेन भागा हुआ आता है- माँ भाभी.... जल्दी चिो ! क्या हुआ देवेन ! " माँ ने चौंकते हुए पूछा । माँ ! भैया का एक्सीडेन्ट हो गया.... उन्हें हॉस्तिटि में िे गये हैं। मैं बाजार में था, मुझे मेरे दोस्तों ने बताया.... जल्दी चिो ! सन्जना भी अपना गुस्सा भूि गयी- क्या भैया....! जल्दी चिो

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सब हॉस्तिटि पहु ूँ चते हैं । वहाँ बेड पर खून से िथपथ नवीन पडा था बेहोश । माँ जोर से तचल्लायी- यह क्या हो गया ! वह िगभग बेहोश होने को थी । सन्जना की भी रूिाई िूट पडी । नवीन को इस हाि में नहीं देख सकती थी.... भिे ही उसने उस पर नकतने भी जुल्म नकये हों। डॉक्टर ने बतिाया नक एक्सीडेन्ट में गंभीर चोटें आयी हैं, सजयरी करनी होगी, अतधक दे र नहीं कर सकते वना नवीन की जान को खतरा हो सकता है, कािी खून बह चुका है । उसे ऑपरेशन तथयेटर िे गये। नवीन का भाई रो रहा था । उसने ही बताया- भैया बहुत तेज गाडी चिा रहे थे । उन्होंने बहुत नरंक की हुई थी । नशे में वह खुद और गाडी को संभाि नहीं पाये । तेज गतत से सामने से आ रहा रक उनकी गाडी से जा टकराया । उसकी िीड इतनी तेज थी नक पूरी गाडी चकनाचूर हो गयी । बडी मुस्तश्कि से िोगों ने गाडी से बाहर ननकािा। तुम चुप हो जाओ देवेन.... सन्जना ने ढांढस बंधाया । तुम्हारे भैया ठीक हो जायेंगे..... कुछ नहीं होगा उन्हें। तुम ठीक कहती हो बह.... बुरा ही सही बेटा है वो मेरा । उसको ऐसे हाि में नहीं दे ख सकते हैं ! बेबसी उनके चेहरे से साि झिक रही थी । संजना दोनों हाथों को जोड भगवान से प्राथयना करनी िगी- हे भगवान ! उसके गुनाहों को माि कर दे । तभी ऑपरेशन तथयेटर से एक डॉक्टर बाहर आता है। सभी उसकी तरि बढ़ते हैं । कैसा है मेरा बच्चा ! माँ जी ने डॉक्टर से पूछा ।

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थोडी देर हो गयी यहाँ िाने में ! मरीज़ की दोनों टांग काटनी पडेगी नहीं तो बचाया नहीं जा सकता, एक्सीडेन्ट में पूरी तरह से कुचि गयी है । क्या ! माँ यह सुनते ही बेहोश हो गयी। दे वेन ने उन्हें संभािा । भाभी, पापा आप यही रहो, मैं माँ को घर छोड कर आता ह ूँ .... इन्हें यहाँ रखना ठीक नहीं है। तुम जाओ.... मैं दे ख िू ं गी । सन्जना ने खुद को संभािते हुए कहा। क्या करना है... आप अपना ननणयय जल्द बताएं ! डॉक्टर ने पूछा । आप पापा जी से पुछ िीस्तजए ! सन्जना ने ससुर की ओर इशारा करते हुए कहा । उसकी रूिाई िूट पडी । ससुर ने कहा- खुद को संभािो सन्जना ! होनी को कौन टाि सकता है। आप वही कीस्तजए जो उतचत हो डॉक्टर ! ठीक है ! आप यहाँ साईन कर दीस्तजए। नवीन के नपता ने बुझे मन से साईन तो कर नदया पर दुख का पहाड जो उनके पररवार पर टू ट पडा था, उसे उन्होंने समझ लिया था। वह बच्चों के आगे कमजोर नहीं पडना चाहते थे इसलिए अपने आ ूँ सुओं को अपने अन्दर ज़ब्त कर गये और अिताि में रखे सोिे पर ननढाि पड गये। सन्जना समझ नहीं पा रही थी नक क्या करें। ऑपरेशन हो चुका था, नवीन बेहोश था । उसको दूसरे रूम में स्तशफ्ट कर नदया गया। स्तसिय एक ही व्यनक्त रूम में रहे । डॉक्टसय ने बोि नदया था । सन्जना रो रही थी । ससुर ने सांत्वना दी- चुप हो जाओ बेटा..... होनी पर नकसका बस चिा है । भगवान का शुक्र मनाओ वह जीनवत तो है वना तो स्तजस तरह उसका एक्सीडेन्ट हुआ था उसे दे ख.... वह स्तजन्दा भी बच भी

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पाता । यही गनीमत समझो.... मैं तुमसे क्या कह ूँ । उस नािायक ने जो सिुक तुम्हारे साथ नकया आज तक, उसी का िि नमिा है उसे। अब अपानहज की स्तजन्दगी जीयेगा। सन्जना ने अपने ससुर का चेहरा दे खा । वे गुस्से और निरत के साथसाथ दयनीय स्तस्ट्थतत में थे। सन्जना ने कहा- ऐसी बात नहीं है पापाजी.... बस वह भटके हुए हैं वना पहिे उनका व्यवहार मेरे प्रतत ऐसा न था। यह तो सही कह रही हो बह तुम.... नवीन पहिे ऐसा न था । उसकी बुरी संगतत ने ही उसे इस हाि में पहु ूँ चाया है । ईश्वर उसे अब सही राह नदखाये। तभी देवेन के साथ नवीन के दोनों बच्चे भी आ पहु ूँ चे । पापा कैसे हैं ? मम्मा बताओ न ! ठीक हैं बेटा ! दोनों वही माँ के साथ बैठ गये । दे वेन तुम यही रूको, भाभी के पास । मैं जरा घर जाकर तुम्हारी माँ को दे ख आता ह ूँ ! अब वह कैसी है ! वह ठीक हैं पापा । उनका बी.पी िो हो गया, साथ आने की स्तजद कर रही थी पर मैं नहीं िाया। ठीक नकया.... आलखर माँ ही तो है । वह अपने बेटे को इस हाि में कैसे दे ख सकती है ! सन्जना के ससुर घर जाते हैं । वहाँ पूजा-घर में पत्नी को बैठा दे ख वहीं चिे जाते हैं । वह अधीर हो उठती है- कैसा है नवीन बताओ ! और रोने िगती है । वह उसे सीने िगा खुद भी रोने िगते हैं।

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नवीन की माँ ! हमारा बच्चा अपानहज हो गया । मना करता था बह के साथ प्यार से रहा कर पर नहीं माना । पता नहीं कैसा भूत सवार था उस पर.... हर समय गुस्से में रहता था। यह सब उस औरत की वजह से हुआ स्तजसके चगुंि में वह ि ं सा था । घर में बह थी, बच्चे थें... पूरा पररवार था िेनकन उसे हमसे कोई खुशी कहाँ थी.... ! तुम ठीक कहती हो नवीन की माँ.... ! अगर वो यहाँ खुश होता तो ऐसे चक्करों में न पडता । अब क्या.... अपने िायक भी न बचा ! बेचारी बह.... अभी भी उसके साथ खडी उसी के लिए रो रही है। उस बेचारी की क्या गिती.... वह वही करती है जो उसे करना चानहए । जिीि तो नवीन ही है। ऐसे मत बोिो नवीन के नपता.... ! उसे उसके नकये की सजा नमि गयी। उस बजारू को घर िा रहा था । अब िे आ, अब आ जायेगी आपानहज के साथ । कर िेगी इसकी सेवा, उसी को बुिाओ आ ूँ ख तो खुिेगी, जो करेगा वही करेगा.... हम क्या करें ! बुढ़ापे में यह दुख दे खने को नमि रहा है। अच्छी-खासी बह है... उसके साथ खुश नहीं रह सका नािायक ! कहते हुए नवीन के नपता सुबकने िगे। दोनों पतत पत्नी गम में डू ब चुके थे। मंनदर में कृष्ण भगवान मन्द-मन्द मुस्कुरा रहे थे। वहाँ अभागी सन्जना बच्चों को अपनी बातों से बहिा रही थी तानक अपने पापा की हाित दे ख वह घबराये नहीं। नवीन हॉस्तिटि के कमरे में बेड पर बेहोश था । उसे अभी तक होश नहीं आया था । सन्जना ने चेकअप करने आये डॉक्टर से पूछा- इन्हें कब तक होश आयेगा । डॉक्टर ने कहा- कि तक होश आ जायेगा। 8

बच्चों ने पापा को कमरे में बेहोश दे खा तो वे मायूस हो गये । उन्हें यह नहीं पता था नक पापा दोनों पैर एक्सीडेन्ट में गंवा चुके हैं.... न ही नकसी ने बताया। उनके मायूस चेहरों को देख सन्जना ने उन्हें देवेन के साथ घर भेज नदया और वहाँ िाने के लिए मना कर नदया तानक उनके नदमाग पर बुरा असर न पडे। थोडी देर में सन्जना के ससुर गोपािदास भी वहाँ आ पहुंचे । तुम खाना खा िो बह । कि से तुमने कुछ नहीं खाया ! सन्जना रोने िगी । मत रो बेटी, सब ठीक हो जायेगा। उन्होंने ढांढस बंधाया और अपने आ ूँ सुओं को पी गये। ‘पानी.....पानी... आह ! आह ! सुबह-सुबह नवीन की आवाज पास में रखे स्टू ि पर औं धी पडी सन्जना के कानों में जैसे ही पहु ूँ ची वह हडबडा गयी । दो नदन बाद नवीन ने आ ूँ खें खोिी । सामने सन्जना को दे ख नवीन चीखने िगा- तू मेरे सामने से हट जा... आ गयी मेरे सामने ! हट यहाँ से, मै कहाँ हं .... ! तभी गोपािदास वहाँ आ जाते हैं । नवीन को पकडते हैं- खुद को संभािो बेटा ! नवीन उठने की कोस्तशश करता है िेनकन उठ नहीं पाता । क्या हुआ मुझे ? मैं कहाँ ह ूँ और चीखता हुआ अपने पैरों पर ढकी हुई चादर हटा दे ता है। दोनों पैर नदारद.... स्तसिय दोनों घुटनों पर पनियाँ बंधी थी । नवीन यह दे ख बोिा- मेरे पाँव... क्या हुआ मेरे साथ ! कहता हुआ दोबारा बेहोश हो जाता है।

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