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Story Transcript

आदि कदि

महर्षि वालममीरि िाल्मीदक प्ाचमीन भारतमीय ्हद्षि हैं, जो आदिकदि के रूप ्ें प्दिद्ध हैं । उनहोंने िंसककृ त ्ें रा्ायण की रचना की । उनके द्ारा रचमी रा्कथा िाल्मीदक रा्ायण कहलाई । रा्ायण एक ्हाकावय है, जो दक भगिान श्मीरा् के जमीिन के ्ाधय् िे ह्ें जमीिन के ितय िे, कतषिवय िे, पररदचत करिाता है । इि पसु तक ्ें उनहीं आदि कदि िाल्मीदक के ्हान जमीिन की कथा को प्ेरक ढंग िे उके रा गया है । यह जमीिनमी अतयंत रोचक होने के िाथ-िाथ बेहि दिक्ाप्ि भमी है । इि जमीिनमी को बचचों और दकिोरों के दलए िजाया-िँिारा गया है, तादक इिे पढ़कर उन्ें उनके जैिा बनने, ऊँचा उठने और िदु नया के दलए अच्ा करने की प्ेरणा जगा िकें । यह जमीिनमी बहुत हमी आिान भा्ा और रोचक ढंग िे दलखमी गयमी है, तादक इिे स्रण करने ्ें भमी आिानमी होगमी । इिके िाथ हमी इि्ें आक्षिक दचत्र भमी दिए गए हैं । िाथ हमी आपकी परमीक्ा के दलए प्शनोततरमी भमी, हल कीदजए और अपने ज्ान की परमीक्ा आप सियं कीदजए ।

सरुु रिपूरषि एवं प्रेररादायि सरित्र जमीवनमी

आदि कदि

महर्षि वालममीरि दिराग गपु ता

एम.ए. (इरिहास), एल.एल.बमी.

यूएसए | कनाडा | यूके | आयरलैंड | ऑस्ट्ेललया न्ू ज़ीलैंड | भारत | दक्षिण अफ्ीका | चीन हिन्द पॉके ट बुक्स, पेंगुइन रैं डम िाउस ग्ुप ऑफ़ कम्पनीज़ का हिस्ा िै, जिसका पता global.penguinrandomhouse.com पर ममलेगा पेंगुइन रैं डम िाउस इं हडया प्ा. लल., चौथी मं जिल, कै पपटल टावर -1, एम िी रोड, गुड़गांव 122 002, िररयाणा, भारत

प्थम सं स्करण हिन्द पाॅकेट बुक्स द्ारा 2014 में प्काक्ित यि सं स्करण हिन्द पॉके ट बुक्स में पेंगुइन रैं डम िाउस द्ारा 2022 में प्काक्ित कॉपीराइट © पवराग गुप्ा सवावाधिकार सुरक्षित 10 9 8 7 6 5 4 3 2 इस पुस्तक में व्यक्त पवचार लेखक के अपने िैं, जिनका यथासं भव तथ्ात्मक सत्ापन हकया गया िै, और इस सं बं ि में प्कािक एवं सियोगी प्कािक हकसी भी रूप में उत्तरदायी निीं िैं। ISBN 9789353491710 मुद्रकः रे प्ो इं हडया ललहमटेड

यि पुस्तक इस ितवा पर पवक्रय की िा रिी िै हक प्कािक की ललखखत पूवावानुमपत के पबना इसका व्यावसाययक अथवा अन् हकसी भी रूप में उपयोग निीं हकया िा सकता । इसे पुनः प्काक्ित कर पवक्रय या हकराए पर निीं हदया िा सकता तथा जिल्दबं द अथवा हकसी भी अन् रूप में पाठकों के मध्य इसका पररचालन निीं हकया िा सकता । ये सभी िततें पुस्तक के ख़रीददार पर भी लागू िोंगी । इस सं दभवा में सभी प्कािनाधिकार सुरक्षित िैं । www.penguin.co.in

क्र्म जन् और ॠद्यों के ज्ान भरे प्शन

7

िक ं ा ि्ाधान

14

ज्ान प्ादपत

20

योग और ि्ादध के पथ पर

27

और ऐिे बने आदि कदि

33

िाल्मीदक की िरण ्ें ्ाता िमीता

48

लि-कुि का जन्

55

्हा-ि्ादध

61

प्शनोततरमी

64

जन्म और ऋषियों के ज्ञान भरे प्रश्न िाल्मीदक प्ाचमीन भारतमीय ्हद्षि हैं । ये आदिकदि के रूप ्ें प्दिद्ध हैं । उनहोंने िसं ककृ त ्ें रा्ायण की रचना की । उनके द्ारा रचमी रा्ायण िाल्मीदक रा्ायण कहलाई । रा्ायण एक ्हाकावय है जो दक श्मीरा् के जमीिन के ्ाधय् िे ह्ें जमीिन के ितय और कतषिवय िे पररदचत करिाता है । कु् लोग ्हद्षि िाल्मीदक का जन् नागा प्जादत ्ें हुआ ्ानते हैं, तो कु् ब्ाह्मण कुल ्ें । लेदकन यह दनदिषििाि तथय है दक ्हद्षि बनने के पहले िाल्मीदक रतनाकर के ना् िे जाने जाते थे । कई िास्तों ्ें ऐिा दििरण भमी है दक ्हद्षि कशयप और अदिदत के नि् पत्रु िरुण (आदितय) िे इनका जन् हुआ । इनकी ्ाता च्षिणमी और भाई भकृगु थे । िरुण का एक ना् प्चेत भमी है, इिदलये इनहें प्ाचेति् ना् िे उललेदखत दकया जाता है । ऐिे ्हान ितं और आदिकदि का जन् दििि आदशिन ्ाि की िरि पदू णषि्ा के दिन ्नाया जाता है । उपदन्ि् के दििरण के अनिु ार ये भमी अपने भाई भकृगु की भादं त पर् ज्ानमी थे । एक बार धयान ्ें बैठे हुए िरुण-पत्रु के िरमीर को िमी्कों ने अपना ढूह (बाँबमी) बनाकर ढक दलया था । िाधना परू मी करके जब ये िमी्क-ढूह िे दजिे िाल्मीदक कहते हैं, बाहर दनकले तो लोग इनहें िाल्मीदक कहने लगे । यहाँ ह् उनहीं िाल्मीदक की जमीिनगाथा िे आपको पररदचत करा रहे हैं । चदलए तो ह् आपको रा्ायण काल ्ें लेकर चलते हैं । दिधं य की श्ेदणयों ्ें दचत्रकूट और प्याग के बमीच एक भयक ं र िन था । उि्ें दिन ्ें जाने ्ें भमी डर लगता था । लेदकन पि-ु पदक्यों के दलए िह दकिमी सिगषि िे क् आदि कदि – ्हद्षि िाल्मीदक

•7

नहीं था । उि िन के बमीच ्ें एक पग डणडमी-िमी बनमी हुई थमी, जो इि बात की द्योतक थमी दक उििे होकर राहगमीर आते-जाते हैं । लेदकन अचानक हमी दहरण उठ खडे हुए और पगडणडमी को ्ोडकर एक तरि भागने लगे, कयोंदक पगडणडमी पर आगे बढ़ते हुए िपतॠद् आ रहे थे । िपतॠद्यों के ्ख ु िे ओ्.् ..िादं त...ओ्.् .. की िाणमी पदक्यों की चहचाहट को और भमी िगं मीत्य बनातमी हुई चलमी जा रहमी थमी । लेदकन अचानक ! “ठहरो !” एक झाडमी ्ें िे आिाज आयमी । उिे कडक आिाज के िाथ दचदडयाओ ं की चहचहाहट तो रुक गयमी, लेदकन ॠद्यों के कि् धमीरे अिशय हुए पर आगे बढ़ते हमी रहे । ॠद्यों को रुकते न िेख दिर आिाज आयमी, “िब के िब बहरे हैं कया ? ठहरो !” 8

• आदि कदि – ्हद्षि िाल्मीदक

“िारा ब्ह्माणड हमी पररितषिनिमील है ! दिर भला कोई ठहर कै िे िकता है ?” भयानक जगं ल के बमीच पगडडं मी िे गजु रते हुए िपतॠद्यों ्ें िे िबिे आगे चल रहे अदगन ॠद् ने दिर उलटे प्शन दकया, “कौन हो ? िा्ने आओ !” “लो आ गया िा्ने !” कहकर झादडयों िे एक दििालकाय यिु क बाहर दनकल आया । उिके हाथ ्ें खजं र था । दिर पर ्ोर के पख ं बधं े हुए थे । बिन पर के िल ्ैलमी धोतमी दलपटमी हुई थमी । कनधों पर धन्ु -बाण लटके हुए थे । उिे िेखते हमी ॠद्िर ि्झ गये दक यह कोई डाकू या लटु रे ा हमी है । अदगनॠद् ने उििे कहा, “कहो, बचचा कया बात है ?” जो कु् तमु हारे पाि है ्झु े िेकर चलते बनो ।” उि डाकू ने कहा । “ह्ारे पाि है हमी कया ? ह्ारा तो यह िरमीर भमी नहीं है । यह भमी यहीं ्ोडकर चले जायेंगे और एक दिन यह द्ट्टमी ्ें द्ल जायेगा ।” “हे ॠद्गण ! अपनमी िािषिदनकता अपने पाि रखो और जहाँ हो िहीं ठहर जाओ, नहीं तो....।” डाकू ने आख ं ें दिखाते हुए ध्की िमी । “नहीं तो कया ?” अदगन ॠद् ने नम्रता के िाथ प्ू ा । “त्ु िातों ॠद्यों के धड अभमी ज्मीन पर लढ़ु कते नजर आयेंगे !” और दिर ! िब ॠद् जहाँ थे, िहीं रुक गये । “लो ठहर गये ह् तो, त्ु कब ठहरोगे ? अदगन ॠद् ने कहा । “त्ु कहना कया चाहते हो ?” डाकू ने प्ू ा । “इतना भमी नहीं ि्झे !” ्सु कुराकर अदगन ॠद् ने आगे प्ू ा, “कया ना् है तमु हारा ?” “्ेरा ना् रतनाकर है ।” डाकू ने ऐठं के िाथ अपना ना् बता दिया । “ह्ारा ्ागषि कयों अिरूद्ध दकया ?” “जो कु् तमु हारे पाि है, ्झु े िेकर चलते बनो ।” “ह्ारे पाि तो क्णडल और िेह पर दलपटमी हुई ्कृग च्षि के अलािा और कु् भमी नहीं ।” आदि कदि – ्हद्षि िाल्मीदक

•9

“इनका कया करूँगा ्ैं, ्झु े कोई िाधू थोडे हमी बनना है ।” “आपको क्णडल और ्कृग च्षि नहीं चादहए !” “नहीं !” “तो कया चादहए ?” “दनषक !” “दनषक अथाषित् सिणषि ्द्ु ाएँ ह्ने कभमी िेखमी नहीं हैं । कै िमी होतमी हैं सिणषि ्द्ु ाएँ ?” “कया ? त्ु लोगों ने कभमी दनषक िेखमी हमी नहीं, दिर तमु हारा जमीिन कै िे चलता है ?” “ह् तो ईशिर भदकत ्ें िल ं गन ्ें रहते हैं, इिदलए जन् िे लेकर आज तक ह्ें धन की जरूरत हमी नहीं पडमी ।” “त्ु द्थया बोल रहे हो । त्ु लोगों ने अिशय हमी अपना धन कहीं जगं ल ्ें द्पाकर रखा हुआ होगा ।” “ह्ने कहीं कोई धन द्पाकर नहीं रखा हुआ । ह् ितय बोल रहे हैं । िपतॠद् कभमी द्थया िचन का उचचारण नहीं करते !” “्ैं कै िे दिशिाि करूं ?” “दकिमी और िे प्ू लो दक िपतॠद्यों को धन की जरूरत होतमी है दक नहीं !” “ओह ! बहुत खबू ! ्ैं दकिमी िे प्ू ने जाऊं और त्ु ्ौका िेखकर भाग जाओ, यहमी चाहते हो ना त्ु लोग !” “नहीं ह् यहाँ िे नहीं जायेंग,े आप दनदशचतं रहें ।” “्झु े ्ख ू षि ि्झते हो ।” “ह्ने तो आपको ्ख ू षि नहीं कहा !” “ठमीक है, त्ु िातों एक जगह आपि ्ें क्र िे क्र द्लाकर खडे हो जाओ । ्ैं त्ु िातों को रसिमी िे एक िाथ बाधं िेता हूँ और दिर दकिमी िे प्ू ने जाऊँगा दक ॠद्यों को धन की जरूरत पडतमी है या नहीं ।” 10

• आदि कदि – ्हद्षि िाल्मीदक

“जैिमी तमु हारमी इच्ा ।” अदगनॠद् ने कहा और दिर िातों ॠद् पमीठ िे पमीठ दभडाकर आपि ्ें खडे हो गये । डाकू रतनाकर, झादडयों िे रदसियों का गचु ्ा उठा लाया और दिर उिने उनहें उि रसिमी िे बाधं दिया । तभमी उिमी पथ िे रतनाकर को एक और ॠद् आता हुआ दिखायमी दिया । िह नारि थे । बधं े हुए ॠद्यों को िेखकर नारि जमी िब ि्झ गये । लेदकन पहले उनहोंने कु् भमी बोलना उदचत नहीं ि्झा । रतनाकर ने िोचा दक पहले इिे लटू ा जाये और बाि ्ें प्ू ा जाये दक िपत ॠद्यों के पाि धन होता है दक नहीं । यहमी िोचकर रतनाकर ने नारि जमी को भमी रोक दलया, लेदकन उिे बडमी दनरािा हुई कयोंदक नारि जमी के पाि भमी कु् नहीं था । गसु िे ्ें रतनाकर डाकू ने नारि िे प्ू ा, “कौन हो त्ु ? और खालमी हाथ घर िे कयों चले हो ? कहाँ जा रहे हो ?” “िेखो भाई, ्ेरा ना् नारि है । ्ैं अकिर िेिलोक िे यहाँ आता हूँ । ्झु े कभमी धन की आिशयकता नहीं पडतमी, इिदलए अपने पाि कभमी भमी सिणषि ्द्ु ाएँ या अनय प्कार का धन नहीं रखता ।” “कया आप िेिलोक िे आ रहे हैं ? आपने िेिताओ ं के ििषिन दकये हैं ? कै िे होते हैं िेिता ?” “हाँ ्ैंने िेिताओ ं के ििषिन दकये हैं । बहुत तेजसिमी हैं िेिगण !” “कया बहुत ििंु र होते िेिता ? कया ्ैं भमी िेिताओ ं के ििषिन कर िकता हूँ ।” “क््ा करना त्ु िेिताओ ं के ििषिन नहीं कर िकते !” “कयों, कयों नहीं कर िकता ्ैं िेिताओ ं के ििषिन ?” “त्ु ठहरे डाकू और लटु रे े ! िेिता त्ु जैिे आिद्यों को ििषिन नहीं िेते ।” “ओह ! तो कया ्ैं बहुत बरु ा आि्मी हूँ ।” “िो तो त्ु हो ! कया त्ु जानते नहीं दक चोरमी करना या डाका डालना बहुत बरु मी बात है ? त्ु कयों लोगों को लटू ने का का् करते हो ?” आदि कदि – ्हद्षि िाल्मीदक

• 11

“्झु े और कोई का् आता हमी नहीं है, इिदलए चोरमी या डकै तमी िे हमी धन क्ाता हूँ । दबना धन के पररिार का पेट कै िे पालँगू ा ?” “कया तमु हारे ्ाता-दपता और पतनमी तथा बचचों को पता है दक त्ु चोरमी और डकै तमी के धन िे उनहें पाल रहे हो ? ्झु े दिशिाि है दक दजनके दलए त्ु यह िब कर रहे हो, िे लोग तमु हारे पाप ्ें भागमीिार नहीं बनना चाहेंगे ।” “कयों नहीं बनेंगे ्ेरे पाप ्ें भागमीिार ? ्झु े तो घर के िब लोग जमी-जान िे चाहते हैं ।” “िेखो भाई िख ु ्ें िब िाथमी होते हैं, लेदकन िःु ख ्ें तो पर्ायमी भमी िाथ ्ोड िेतमी है, इिदलए ्ैं परू े दिशिाि के िाथ कहता हूँ दक तमु हारे पाप 12

• आदि कदि – ्हद्षि िाल्मीदक

्ें तमु हारे पररिार िाले किादचत् भागमीिार नहीं बनेंगे । त्ु चाहो तो उनिे प्ू कर आ िकते हो !” रतनाकर भले हमी डाकू था, लेदकन उिका हृिय बहुत हमी अच्ा था । नारि ्दु न की बात उिके हृिय ्ें बैठ गयमी और उिने नारि को भमी िातों ॠद्यों के िाथ बाधं दिया और दिर िमीघ्रता के िाथ घर की ओर कि् बढ़ा दिए ।

आदि कदि – ्हद्षि िाल्मीदक

• 13

शंकञा — स्मञाधञान रतनाकर के ्न ्ें ॠद्यों के प्शन बराबर गजंू रहे थे, यहमी कारण था दक िह उनका िमीघ्र हमी ि्ाधान करना चाहता था । जहाँ उनहोंने ॠद्यों को बाधं कर रखा था, िहाँ िे तमीन-चार कोि िरू गाँि ्ें रतनाकर का घर था । उि यगु ्ें अदधकाि ं धरतमी िनों िे आच्ादित थमी, इिदलए िह गाँि िनों की िमी्ा ्ें हमी बिा हुआ था । उि गाँि ्ें ्दु शकल िे िौ घर होंगे । िभमी घर कचचमी द्ट्टमी की बनमी हुई ईटोंं िे दनद्षित दकये गये थे । िबके घरों की ्त घाि और िंू ि के टाटों िे बनाई गयमी थमी । दकिमी भमी घर की िमीिार पर चनू ा या ििे िमी का ना्ों दनिान भमी नहीं था, कयोंदक िबके घरों की िमीिारें गाय के गोबर िे पतु मी हुई थमी । घरों के िालान और बगड, गाय के गोबर तथा पमीलमी द्ट्टमी द्लाकर पोते गये थे । िभमी के घरों ्ें गेरू की बाट िमी हुई थमी । बाट की चौडाई ्ह अगं ल ु िे जयािा नहीं होगमी, जो ज़्मीन िे लगाकर िमीिार के नमीचे के दहसिों पर हमी िमी गयमी थमी, चारों ओर धरातल पर नहीं । घर के ्खु य िरिाजों पर गोबरमी के ऊपर गेरू के घोल और खदडया िे ििंु र अलपना अथाषित् ्गु गु बनाये गये थे । रतनाकर के घर ्ें तमीन ्पपर अथाषित् क्रे थे । एक पिओ ु ं के दलए, एक उिके ि पतनमी के दलए तथा तमीिरा उिके ्ाता-दपता के दलए । िबिे पहले रतनाकर अपने ्ाता-दपता िाले क्रे ्ें गया । उिकी ्ाता गेहूँ ्ें द्ले हुए कंकड ि जौ के िाने िाि कर रहमी थीं । दपता बैठे हुए िन िे रसिमी बट रहे थे । रतनाकर ने ्ाता-दपता के चरण सपिषि करके उनिे प्ू ा, “हे प्ातःस्रणमीय 14

• आदि कदि – ्हद्षि िाल्मीदक

्ात-दपता, ्ैं आज तक आपका पालन पो्ण चोरमी और डकै तमी के धन िे करता आया हूँ । आप यह नहीं जानते दक आज तक ्ैंने आप लोगों को िख ु मी बनाने के दलए न जाने दकतने दनिदो् पदथकों को ्ौत के घाट उतारा है । ्ैं आपिे प्ू ना चाहता हूँ दक कया आप ्ेरे पाप के भागमीिार भमी बनेंगे ?” “नालायक िरू हो जा ह्ारमी आँखों के िा्ने िे !” दपता ने उिे िटकारते हुए आगे कहा, “चोरमी करना पाप है और इि पाप ्ें ह् तमु हारा िाथ नहीं िे िकते । इिदलए इिमी ि्य घर तयागकर चला जा और कहीं डूब ्र ।” इतना कहकर उिके दपता ने रसिमी बटना भमी ्ोड दिया । उिकी आँखों ्ें तो ्ानों खनू उतर आया, कयोंदक उिे आज तक पता हमी नहीं था दक उिका बेटा उनहें पाप की क्ायमी लाकर िेता है । आगे िह कु् बोलता उििे पहले हमी रतनाकर की ्ाताजमी ने ितु कारते हुए कहा, “त्ु अपने क्मों का िल सियं भोगोगे । यदि भगिान ने ह्िे प्ू ा भमी कया त्ु अपने पत्रु के पाप ्ें भागमीिार बनना चाहोगे तो ह् तो यहमी कहेंगे दक ह्ारा पालन-पो्ण करना पत्रु का ध्षि था । उिने पाप के धन िे ह्ारा पो्ण दकया या ध्षि के धन िे ह् नहीं जानते, लेदकन इतना तो दनदशचत है दक ह् पाप के भागमीिार नहीं बन िकते । जो पाप ह्ने दकया हमी नहीं, उिके भागमीिार भला ह् कयों बनेंगे ?” ्ाता-दपता के िचन िनु कर रतनाकर के हृिय को आघात लगा और िह जलिमी-जलिमी ्ें उि क्रे िे दनकले लगा, तो िहलमीज िे पैर टकराकर उिे ठोकर लग गयमी । उिे दगरते िेख दपता के ्ख ु िे दनकला, “अभमी भमी ि्य है िभं ल जा ।” “लो िभं ल तो गया !” दगरते हुए रतनाकर ने अपने आप को िभं ाल दलया, लेदकन उिके अगं ठू े िे रकत की धार बह चलमी । िहलमीज ्ें टकराने िे अगं ठू े ्ें चोट लग गयमी थमी । अगं ठू े की ्रह् पट्टमी दकये दबना िह अपनमी पतनमी ितितं मी के पाि जा पहुचँ ा । पतनमी अपने क्रे ्ें लगमी हाथ की चककी िे गेहूँ पमीि रहमी थमी । िह पिमीने ्ें तर हो रहमी थमी, लेदकन दिर भमी एक हाथ आदि कदि – ्हद्षि िाल्मीदक

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