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EMPRESAS HEADHUNTERS CHILE PDF
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Story Transcript

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डॉ० ल�मीनाराय� शमा� बाल मनोिव�ान के अनभु वी लेखक माने जाते ह� । आपने िचिक�सा पर आधा�रत कई �ज�न प�ु तक� क� रचना क� है । नवीनतम खोज� और िनज अनभु व को ही आप हमेशा अपने लेखन का आधार बनाते थे । ब�च� और िकशोर� के अलावा आपने यवु ाओ ं के िलए भी ��कृ �� िचिक�सा सािह�य िलखा है । आपको लेखन एवं समाज सेवा के िलए अनेक परु �कार� से स�मािनत िकया जा चक ु ा है ।

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डॉ० ���������� ����

यूएसए | कनाडा | यूके | आयरलैंड | ऑस्ट्ेललया न्ू ज़ीलैंड | भारत | दक्षिण अफ्ीका | चीन हिन्द पॉके ट बुक्स, पेंगुइन रैं डम िाउस ग्ुप ऑफ़ कम्पनीज़ का हिस्ा िै, जिसका पता global.penguinrandomhouse.com पर ममलेगा पेंगुइन रैं डम िाउस इं हडया प्ा. लल., चौथी मं जिल, कै पपटल टावर -1, एम िी रोड, गुड़गांव 122 002, िररयाणा, भारत

प्थम सं स्करण हिन्द पॉके ट बुक्स द्ारा 1973 में प्काक्ित यि सं स्करण हिन्द पॉके ट बुक्स में पेंगुइन रैं डम िाउस द्ारा 2022 में प्काक्ित कॉपीराइट © हिन्द पॉके ट बुक्स सवावाधिकार सुरक्षित 10 9 8 7 6 5 4 3 2 इस पुस्तक में व्यक्त पवचार लेखक के अपने िैं, जिनका यथासं भव तथ्ात्मक सत्ापन हकया गया िै, और इस सं बं ि में प्कािक एवं सियोगी प्कािक हकसी भी रूप में उत्तरदायी निीं िैं। ISBN 9789353492144

यि पुस्तक इस ितवा पर पवक्रय की िा रिी िै हक प्कािक की ललखखत पूवावानुमपत के पबना इसका व्यावसाययक अथवा अन् हकसी भी रूप में उपयोग निीं हकया िा सकता । इसे पुनः प्काक्ित कर पवक्रय या हकराए पर निीं हदया िा सकता तथा जिल्दबं द अथवा हकसी भी अन् रूप में पाठकों के मध्य इसका पररचालन निीं हकया िा सकता । ये सभी िततें पुस्तक के ख़रीददार पर भी लागू िोंगी । इस सं दभवा में सभी प्कािनाधिकार सुरक्षित िैं । www.penguin.co.in

ा कथन “अ छा ! चलो िफर, पुिलस म भी रपोट िलखा दॱॱॱ” मेरे िम महोदय ने ल बी सांस छोड़ते हए कहा । “िब कुल िलखा देनी चािहए; इससे कोई नुकसान तो है नह , अिपतु लाभ क ही आशा है । बहत स भव है लड़का िमल जाए ।” मने उनके दख ु ी मन को आ व त करते हए कहा । मेरे इन िम महोदय का प ह वष का लड़का दो िदन से घर से लापता था । वभावतः वे बहत दख ु ी और िचि तत थे । हम दोन जब पुिलस टेशन क ओर चले तो मने उनसे रा ते म पूछा, “आिखर आप उसके चले जाने का या कारण समझते ह ?” “ या बताऊं, मेरी तो कुछ समझ म नह आता । लेिकन कुछ िदन से म यह देख रहा था िक वह बात-बात पर बहस करता था । यिद उसके मन का काम न हआ, तो घर म कुहराम-सा मचा देता था । अपनी मां को तो वह कुछ समझता ही न था । मुझसे भी िखंचा-िखंचा-सा रहता था । िक तु वह घर छोड़कर चला जाएगा इसक उ मीद नह थी ।”

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“आप जब यह देख रहे थे िक उसम प रवतन आ रहा है, तो उसको ढंग पर लाने का कुछ उपाय करना था ; कुछ न कुछ सावधानी बरतनी चािहए थी ।” “अजी म तो उसे बहत डांट-डपटकर रखता था । वह तो यह समझो िक इतनी कड़ाई बरतने पर उसका यह हाल था ; अगर कह मने ढील दी होती तो न जाने उसका या हाल होता ।” “ मा क िजएगा,” मने िम महोदय से कहा, “लड़के के घर से भाग जाने म उसका नह , म आपका दोष मानता हं ।” मेरे इस कथन पर वे कुछ च के और कहने लगे, “आप भी कै सी बात करते ह ? मेरा या दोष है ? म तो उसे पये म पयेभर चीज़ िखलाता था; कपड़ा-ल ा वह अ छे से अ छे पहनता था; भगवान क दया से घर पर उसे िकसी बात क कमी न थी । आप ही बताइए म और या करता ?” मने उ ह समझाते हए कहा, “देिखए, खाने-पहनने क ज़ रत पूरी कर देना मा ही काफ नह होता ; खास बात ब चे के मानिसक वा य क ओर यान देना होता है । ब च को सुधारने अथवा उ ह अनुशासन िसखाने और स य बनाने क ि ट से जब हम उनपर कड़ाई करते ह, तो यह भूल जाते ह िक बालक का भी अपना अलग यि त व है; उसक भी कुछ मानिसक मांग और ज़ रत ह; उसक भी अलग अपनी एक दिु नया है, और वह भी हमसे कुछ अपे ा रखता है । व तुतः इस अिववेकपूण कड़ाई से बालक अपने यि त व का िनरादर महसूस करता है, उसे अपनी वत ता का अपहरण िदखाई देता है; वह अनुभव करता है िक उसक मांग का कोई मू य ही नह समझा जाता । फलतः उसके मन म िव ोह उ प न होने लगता है । और इस िव ोही िति या के कारण ही अनेक बालक घर से चल देते ह; कई उ ड होने लगते

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ह; कुछ बालक कुमागमामी और अपराधी बन जाते ह ।” मेरी बात सुनकर वे कहने लगे, “लो साहब ! हम भी तो कभी ब चे थे; हम तो कभी घर से नह भागे । हमारे िपताजी भी हमपर काफ कड़ी िनगाह रखते थे; लेिकन साहब, हमने तो कभी उनक बात नह लौटी ।” “हो सकता है िक आपक बात ठीक हो,” मने कहा, “लेिकन हर ब चे को एक ही तराज़ू से तो नह तोला जा सकता । कुछ ब चे अिधक भावुक, कुछ अिधक साहसी, कुछ अिधक सहनशील हो सकते ह; लेिकन बुिनयादी तौर पर हर ब चे के मन म कठोर यवहार से िति या अव य होती है । सच तो यह है िक येक माता-िपता को बालक से यवहार करने क िविध, उनके पालनपोषण का सही ढंग जानना और सीखना चािहए; उ ह इस िवषय का अ ययन करना चािहए ।” कदािचत् िम महोदय मेरे इस कथन के मह व को न समझ सके । उ ह ने कुछ ऐसा ही अनुभव िकया िक जैसे मने उनसे कोई बेतुक , अनहोनी-सी बात कह दी हो । वे बोले, “लो साहब ! अब ब च से बात करने के तरीके भी सीखने पड़गे । या ज़माना आ गया है !” हमारे ये िम महोदय ही अके ले ऐसा समझते ह , यह बात नह , बि क हमारे समाज म आम माता-िपता अभी यह अनुभव नह करते िक ब च के साथ यवहार करने के कुछ खास तौर-तरीके होते ह । बालमनोिव ान के कुछ बुिनयादी उसूल ह । िक तु आज तो ान-िव ान का युग है; मनु य ने अपनी बु से जीवन के येक े को प र कृ त और प रमािजत िकया है । बालमनोिव ान के े म भी मानस-शाि य और िवचारक ने जो कुछ शोध और खोज क है, वह समाज के िलए बहत क याणकारी है । अतएव बालक

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का नह अिपतु वयं अपना जीवन सफल और सुखी बनाने के िलए माता-िपताओ ं को बालमनोिव ान का ान आव यक है । यिद इस िदशा म कोई सव ण िकया जाए तो बहत कम ऐसे माता-िपता िमलगे िज ह अपने ब च से कोई िशकायत न हो, अ यथा िकसीको अपने ब चे से सु त और कामचोर होने क िशकायत है, तो दसू रे के ब चे पढ़ाई-िलखाई से जी चुराते ह । कोई इस बात से परे शान है िक उसके ब चे आपस म मारपीट और गाली-गलौज करते ह, तो कोई इसिलए िचि तत रहता है िक उसके लड़के म चोरी करने और झूठ बोलने क आदत पड़ गई है । ब च क ओर से इन परे शिनय म पड़े हए सभी माता-िपता, ब च के अ दर से इन दोष को दरू करने का य न भी अपने ढंग से करते ह; िकंतु चंूिक उनके य न मनोिव ान-स मत नह होते इसिलए उ ह ब च को सुधारने म सफलता नह िमलती; और तब वे कभी अपने भा य को दोष देते ह, कभी ज़माने को कोसते ह, और कभी ब च के िबगड़ने का कारण गली-मुह ले के सािथय को मान लेते ह । पर तु मनोवै ािनक का कथन है िक बालक म हमेशा यह दोष माता-िपता क पालन-पोषण क गलितय के कारण आते ह । व ततु ः ब चे पर पहली छाप अपने घर के वातावरण और माता-िपता के आचरण क पड़ती है । सामा य प से यह देखने म आता है िक जो लोग घर म ग दी गािलयां नह देते, उनके ब च के मंुह से भी कभी ग दी गािलयां नह िनकलत । जो लोग वयं बीड़ी-िसगरे ट नह पीते, उनके ब च म भी धू पान क आदत कदािचत् आती है । व तुतः ब चे तो गीली िम ी के समान होते ह; उ ह िकसी भी सांचे म ढाला जा सकता है । िजस तरह कु हार एक ही िम ी से घड़ा, सुराही, हंिडया आिदिभ न-िभ न कार के बतन और िखलौने बना सकता है, उसी तरह ब च को भी आप चाहे िजस सांचे म

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ढाल सकते ह, बशत िक आपको पालन-पोषण तथा खास तौर से मनोिव ान क टैकनीक आती हो । जब कभी बालक का शारी रक वा य िबगड़ जाता है, उसे बुखार, खांसी, द त या िनमोिनया आिद रोग हो जाते ह, तो हम उसके िलए िचि तत हो उठते ह, उसका अ छे से अ छा इलाज कराते ह । लेिकन हम उसके मानिसक वा य क ओर कोई यान ही नह देते । िज़द करना, चोरी अथवा छल-कपट करने क आदत बालक के मानिसक वा य िबगड़ने के ल ण होते ह । सच तो यह है िक शारी रक वा य क अपे ा जीवन म मानिसक वा य का कह अिधक मू य होता है । बालक के अ दर दगु ुण पनप जाने पर उनका जीवन ही खतरे म पड़ जाता है । मनोिव ान-शाि य ने तो यहां तक कहा है िक आज संसार म जो धूतता, ठगी, छल, कपट फै ला हआ है, मु य प से इन दगु ुण के पीछे अिभभावक क पालन-पोषण स ब धी भूल ह । अतएव हम अपने बालक के मानिसक वा य क ओर से जागक और सचेत रहना चािहए । वा तव म ार भ से उनके साथ हमारा यवहार ऐसा होना चािहए िक उनम सदग् ुण पैदा ह ; उनक गु त शि तय और ितभा का िवकास हो । इसके अित र त बालक म िकसी दगु ुण का ादभु ाव होता िदखाई दे, तो हम देखना चािहए िक हम कहां भूल कर रहे ह; हमारी िकसिवपरीत बात का बालक पर बुरा असर पड़ रहा है । बालक के साथ मनोिव ान-स मत यवहार करने क िविध या है, यही इस पु तक म बताया गया है । मुझे िव वास है िक तुत पु तक अिभभावक के िलए भारी सहायक िस होगी । िह दी म बालमनोिव ान पर पु तक अव य कािशत हई ह; िक तु एक तो उनक क मत काफ ऊंची ह, दसू रे ायः उनक भाषा जिटल है,

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िजसे एक सामा य यि त को समझने म किठनाई आती है । तुत पु तक क भाषा इतनी सरल िलखी गई है िक एक सामा य तर क गृिहणी भी आसानी से समझ सकती है । आशा है िक मेरी दसू री वा य-पु तक के समान पाठक को मेरी तुत कृ ित भी पस द आएगी । वा य-िवहार सीलमपुर (ओ ड) िद ली-31

िवनीत डा० ल मीनारायण शमा

म गोद के ब चे जब ब चा बोलना सीख जाता है ब च के खेल-िखलौने बाल-मन पर माता-िपता के आचरण का भाव अनुकूल वातावरण ब च के मन क खुराक ‘ ेम’ बालक का यि त व वीकार क िजए बालक म भय पैदा करना खतरनाक होता है बालक को वत ता बालक म अनुशासन का न रोज़ाना क कुछ सम याएं

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76 83 89 95

ब च का च र -िनमाण आपके हाथ म

गोद के ब चे यवहार क ि ट से गोद क आयु से ही हम ब च के ित सावधानी बरतनी चािहए । आदत िबगड़ने या सुधरने क जड़ ायः इसी आयु से शु हो जाती है । दो-ढाई महीने क आयु तक ायः ब चा अिधक रोता है; इसके कुछ शारी रक कारण होते ह । वा तव म ज म से पहले जब ब चा माता के गभ म रहता है, तो वहां के जो वातावरण और हालात होते ह, ज म के बाद इस संसार म आने पर वे एकदम बदल जाते ह और ब चा िबलकुल दसू री प रि थित म आ जाता है । जैसे गभ म उसे माता के र त ारा पोषण िमलता था, अब वह खुद माता के तन से दधू पीता है । गभ म उसके ट ी-पेशाब क ज रत भी माता क र तवािहिनय ारा पूरी होती थी, लेिकन अब वह वयं ट ी-पेशाब करता है । इसी तरह पहले वह शु वायु भी माता के र ारा ा त करता था, िक तु अब वयं वास- वास लेता और छोड़ता है । ज म के बाद उसके शरीर क वृि भी तेज़ी से होती है; इस कारण वह शरीर म कुछ क टदायक तनाव महसूस करता है । इस तनाव के कारण उसके शरीर म बेचैनी-सी भी पैदा

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