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डॉ. राम मनोहर लोिहया समीक्षा और िवचार

डॉ. राजीव कुमार अवस्थी

पर्काशक : टर् साइन पिब्लिशंग हाउस पता : SY.N0.21/2 & 21/3, सोननहल्ी, कृष्णराजपुरल, बेंगलुरु, कनार्टक – 560049, भारत ईमेल: [email protected]

वेबसाइट: www.truesign.in

© लेखकाधीन

डॉ. राम मनोहर लोिहया समीक्षा और िवचार डॉ. राजीव कु मार अवस्थी

ISBN: 978-93-5462-718-7

संस्करण: 2022

िबना पर्काशक की िलिखत अनुमित के इस पुस्तक या इसके िकसी भाग का कोई भी व्यावसाियक इस्तेमाल नहीं िकया जा सकता है, न ही इसको कोई कॉपी करायी जा सकती है, न िरकािडर्ग और न ही कंप्यूटर या िकसी अन्य माध्यम से स्टोर िकया जा सकता है।

पर्ाक्कथन शैक्षिणक जीवन के पर्भात काल से ही राजनीित शास्तर िवषय के पर्ित मेरा सहज आकषर् ण रहा है यही कारण है िक एम.ए. उत्ीणर् करने के अन्तर मेरी ज्ञान िवषय िपपासा का शमन नहीं हो सका और मैंने इसी िवषय में शोध कायर् करने का दृढ़ संकल्प िकया मेरे पूवर्जों एवं गुरुवरों की अनुकम्पा एवं आशीवर् चन के पिरणाम स्वरूप मेरी िचर संिचत अिभलाषा पर्स्तुत शोध पर्बन्ध के रूप में पूणर् हु ई है। डॉ. राम मनोहर लोिहया अपने युग के पर्खर मनीषी थे। और उनकी िदव्य दृिष् अत्यन्त पैनी थी। वे गाँधी जी को उन्त शैली का समथर् न देते हु ए आधुिनक अितवाद तथा फैशनवाद का खुलासा िकया और बताया िक हमारे पाँव धरती पर रहे आसमान में नहीं। गाँधी जी के नजिरए से पं. नेहरू और डॉ. लोिहया को देखा जाय तो यह नतीजा िनकलेगा िक वे पं. नेहरू की अपेक्षा कही ज्यादा नजदीक थे, इसमें दो राय नहीं है। परन्तु पं. नेहरू का भारत गाँधी का स्वप्न नहीं था वह पं. नेहरू का अपना स्वप्न था। देखा जाय तो िसद्ान्ततः कांगर्ेस का गाँधी से पर्त्यक्ष कोई सरोकार नहीं बैठ पाता है क्योंिक कांगर्ेस गाँधी जी के िवचार से बहु त दरू जा चुकी है। डॉ. लोिहया नए सोच का साथर् क नाम है, इनमें अपनी धरा का सोच पल्िवत व फिलत हु आ। इस देश की सांस्कृितक िवरासत का अध्ययन कर इस नतीजे पर पहु ँचे थे िक इस देश के पास जो कु छ है यिद उसे समीचीन ढंग से पर्स्तुत िकया जा सके तो उसे बहु त जबरदस्त ताकत िमल सकती है। इस देश की संस्कृित की ऐसी िवशेषता है, जो अन्दर ही अन्दर से व्यिक् को समाज से जोड़ती जाती है। डॉ. लोिहया उन िचन्तकों में से एक सशक् तथा मौिलक िचन्तक हु ए हैं िजन्होंने समगर् मानवता को एक नवीन परन्तु कर्ािन्तकारी दृिष् पर्दान की है। वे िचन्तन को जीवनबद् कर उस नव मानव की स्थापना करना चाहते थे, जो आज भीड़ में खो गया है। डॉ. लोिहया अत्यन्त पर्ितभा सम्पन्, कल्पना सम्पन्, गहरे अध्ययनशील, स्वप्न दृष्ा, जबरदस्त तािकर्क, योग्यतम भाषािवद थे। वे िहन्दी पर्ेमी थे। िबना िहन्दी को देश की कामकाज की भाषा बनाये उनकी दृिष् से भारत की आजादी पंगु और अधूरी ही नहीं बिल्क बहरी और गूग ं ी भी है। वे अपने िसद्ान्तों के पर्ित आस्थावान रहे। वे अपने कत्र्व्य के पर्ित सदा जागरूक रहे। पं. नेहरू के सामने खड़े होना उनके व्यिक्त्व का अनाशक् उदाहरण है। पं. नेहरू उनके

िमतर् थे परन्तु देश और िसद्ान्तों के सामने वे िकसी के नहीं थे, उनमें करोड़-करोड़ अधर् नग् तथा अधर् पेट जीने वाली जीवट जनता की अथाह पीड़ा का समन्दर उछाल भरता रहता था। वे मानव के इस दुभार्ग्य के िलए सदैव उस मानवजाित को दोषी मानते थे जो सुखों के स्वप्न में जी रहा है। उनकी धारणा थी िक गरीबी हमारी व्यवस्था के दुश्चिरतर् का पर्ितफल है, उनकी दृिष् में अमीरी से जी रही जाित पथभर्ष् है और चिरतर्हन्ता है। भारतीय लोकसभा का इितहास जब तक वे जीिवत रहे और वहां पहु ँचते रहे, तब तक कर्ािन्त की आँिधयाँ उठाते रहे और उनके जीवन को जागरूक और पैना बनाता रहा, तब लगता था भारत में लोकतन्तर् है और लोक चेतना का स्वतन्तर् अिस्तत्व है। वे न केवल हमारी अिपतु िवश्व संस्कृित की अमूल्य िनिध है, उनका पर्ातः स्मरणीय जीवन युग-युग तक उत्पर्ेरक और अिद्तीय रहेगा। वे सच्चे अथोर् ं में मानव होकर िजए थे। उनका जीवन जीने की शैली का अनुपात उदाहरण है। उन्होंने अपने को सत्यानुसंधान अनूठी पर्योगशाला बनाया था। वे िचत् के गायक और संघषर् के पुजारी थे। यथाथर् तः वे जीने की एक ऐसी मुदर्ा थे, िजससे ितिमर रूपी दैत्य उनके पास आने से डरता था। उससे मुिक् पाना और िदलाना उनके पराकर्म की अद् ुत तथा िवलक्षण शिक् थी। आज आवश्यकता गत संदभोर् ं का मनन, वतर् मान संदभोर् ं में िकए जाने की है। डॉ. लोिहया आज की जरूरत हैं। आज उनकी िकतनी जरूरत है, यह देखना समझना आवश्यक है। इससे मत स्थापना और कायर् शैली िनधार्रण में मदद िमलेगी और संभावनाओं का नवीन िक्षितज खुलेगा। मुझे डॉ. लोिहया का समूचा व्यिक्त्व एक सशक् िवचार लगा और आज भी लग रहा है। वे अपने िवचार की खुद ही पर्योगशाला थे। चूंिक वे अलग-थलग से पड़ते गये, अतः उनके िवचारों को अनदेखा िकया जाने लगा। िजनकी आज िनहायत जरूरत है। व्यिक् से िवचार और िवचार से कमर् बनने की उसकी यह दीघर् यातर्ा िनिश्चत ही युग-युगों तक मानव का तर्ाणयुक् कर जीवन मंतर् देती रहेगी। मैं अपने गुरुवर डॉ. मानवेन्दर् िसंह के पर्ित शर्द्ा व्यक् करना अपना परम धमर् और कत्र्व्य समझता हू ँ। िजनका आशीवार्द और वरदहस्त मेरा सबसे बड़ा सम्बल है। मैं अपने गुरुवर डॉ. कुलदीप नारायण शर्ीवास्तव व डॉ. िनमर् ल कुमार शर्ीवास्तव पूवर् पर्ाचायर् डी.एस.एन. कालेज, उन्ाव, डॉ. ए.के. दीिक्षत िवभागाध्यक्ष संस्कृत

डी.एस.एन. कालेज, उन्ाव एवं डॉ. सुरेन्दर् िद्वेदी जी िवभागाध्यक्ष राजनीित शास्तर िवश्विवद्ालय लखनऊ व शर्ीमती सुमन लता जायसवाल पर्ाचायार् डी.एस.एन. कालेज, उन्ाव की पर्ेरणा एवं उत्साहवधर् न के फलस्वरूप अन्ततः मैं अपने लक्षय में सफल हो सका। भागदौड़ एवं सामगर्ी संचय में इन सबका महत्वपूणर् सहयोग रहा है।

स्नेहमयी माँ शर्ीमती सुखरानी अवस्थी व बड़े भाई रामजी, श्यामजी एवं भाभी शर्ीमती कुसुम, ऊषा, बहन पर्ीित, बहनोई राजेश कुमार, श्वसुर कैलाश नारायण ितर्वेदी-सास शकु न्तला का आशीवार्द पर्ोत्साहन भी मुझे आगे बढ़ने की पर्ेरणा देता रहा है। मेरी पत्नी पर्ज्ञा अवस्थी व मेरे अनुज संजीव कुमार व अनुज वधू मीनू व मेरे साले अनुराग, अिखलेश ने इस कायर् में बराबर सहयोग िदया है। िजससे उन्हें भी धन्यवाद देना चाहता हू ँ। मैं अपने बाबा स्वगीर्य महावीर अवस्थी व अपने िपताजी स्वगीर्य चिन्दर्का पर्साद अवस्थी के पर्ित भी शर्द्ांजिल अिपर् त करता हू ँ, िजनके आशीवर् चन मेरे िलए अमूल्य धरोहर हैं और जो मुझे पर्ेरणा देते रहते हैं। मैं उन सभी िमतर्ों, शुभिचन्तकों, सहयोिगयों, गुरुवरों एवं सम्बिन्धयों के पर्ित हृदय से आभार व्यक् करता हू ं िजन्होंने मुझे िकसी न िकसी पर्कार से अपना अमूल्य सहयोग पर्दान िकया है। मैं उन सब पुस्तकालयों महात्मा गाँधी पुस्तकालय उन्ाव, िवश्वम्भर दयाल ितर्पाठी राजकीय पुस्तकालय उन्ाव, पुस्तकालय डी.एस.एन. िडगर्ी कालेज, उन्ाव, पुस्तकालय िवश्विवद्ालय, लखनऊ, पुस्तकालय छतर्पित शाहू जी महाराज िवश्विवद्ालय, कानपुर एवं डॉ. लोिहया टर्स्ट-4 िवकर्मािदत्य मागर्, लखनऊ के पुस्तकालयाध्यक्ष व कमर् चारी एवं उन सभी लोगों के पर्ित भी आभार व्यक् करना चाहता हू ँ िजन्होंने समय-समय पर मुझे शोध कायर् में सहयोग पर्दान िकया है। इन सभी की कृपा से मैं अदम्य उत्साह एवं पूरी िनष्ा से शोध कायर् को पूरा करने में समथर् हो सका। कहां तक अपने शोध कायर् में सफलता पर्ाप् हु ई इसका मूल्यांकन राजनीितक िवशेषज्ञों के ऊपर छोड़ता हू ँ, िकन्तु इतना मैं अश्वस्त करना चाहता हू ँ िक मैं अपने कायर् के पर्ित सदैव जागरूक रहा हू ँ। मुझे िवश्वास है िक शोध पर्बन्ध भावी शोधकतार्ओं के िलए पर्ेरणा का सर्ोत बनते हु ए उनका मागर् पर्शस्त करे गा। शोधकतार्

डॉ. राजीव कुमार अवस्थी

डॉ. राम मनोहर लोिहया : समीक्षा और िवचार अध्याय – एक ऐितहािसक िवश्लेषण भारत में समाजवादी िचन्तन का िवकास 1.1 1.2 1.3 1.4

भारत में समाजवादी िवचारों का उदय ............................................ 12 काँगर्ेस के भीतर वामपंथ का उदय पर्मुख िवचार एवं िवचारक ................... 15 काँगर्ेस समाजवादी पाटीर् का स्थापना ............................................. 19 काँगर्ेस समाजवादी पाटीर् का िवकास व कायर् ..................................... 22

अध्याय – दो भारत के पर्मुख समाजवादी िचन्तक 2.1 2.2 2.3 2.4

समाजवाद समाजवाद समाजवाद समाजवाद

व व व व

आचायर् नरे न्दर् देव व पं० नेहरू .................................... 30 जय पर्काश नारायण ............................................... 43 डॉ. मधुिलमये ...................................................... 55 एस०एम० जोशी .................................................. 75

अध्याय-तीन डॉ. राम मनोहर लोिहया का जीवन पिरचय 3.1 3.2 3.3 3.4 3.5

डॉ. राम मनोहर लोिहया का जीवन पिरचय ...................................... 90 राजनीित में पर्वेश ................................................................ 93 डॉ. लोिहया सांसद के रूप में .................................................... 94 डॉ. लोिहया मंितर्मण्डल के सदस्य के रूप में .................................... 100 डॉ. लोिहया िवपक्षी नेता के रूप में .............................................. 102

अध्याय-चार डॉ. राम मनोहर लोिहया के समाजवादी िचन्तन की पृष्भूिम 4.1 4.2 4.3 4.4

डॉ. डॉ. डॉ. डॉ.

लोिहया लोिहया लोिहया लोिहया

पर पर पर पर

अरिवन्द घोष का पर्भाव ........................................ 114 स्वामी िववेकानन्द का पर्भाव ................................... 122 महात्मा गाँधी का पर्भाव ........................................ 133 जवाहर लाल नेहरू का पर्भाव .................................. 145 अध्याय-पाँच डॉ. राम मनोहर लोिहया का समाजवाद

5.1 5.2 5.3 5.4 5.5

समाजवाद के समथर् क........................................................... 149 समाजवाद की अवधारणा ....................................................... 153 समाजवािदयों से मतभेद ......................................................... 161 समाजवाद का भारतीय स्वरूप .................................................. 168 समाजवाद व व्यिक्वाद ......................................................... 177 अध्याय-छ: डॉ. राम मनोहर लोिहया के आिथर् क िवचार

6.1 6.2 6.3 6.4

डॉ. डॉ. डॉ. डॉ.

लोिहया लोिहया लोिहया लोिहया

वगर् उन्मूलन ........................................................ 182 और आिथर् क िवकेन्दर्ीकरण ......................................... 195 और भूिमका पुनर्िवतरण ............................................ 203 और समाजीकरण .................................................. 205

अध्याय-सात डॉ. राम मनोहर लोिहया के समाजवादी िवचारों का मूल्यांकन

212

पर्स्तावना समाजवाद एक ऐसा सपना है िजसने बीसवीं सदी में दुिनया को सवार्िधक आन्दोिलत िकया। अगली शताब्दी में भी दुिनया के अलग-अलग कोनों में अलग-अलग ढंग से लोग इस लक्षय को हािसल करने के िलए जूझते रहेंगे इसमें कोई शक नहीं है, जैसे ईश्वर की पर्ािप् के िलए अलग-अलग मागर् खोजे और बनाये जाते रहे हैं। वैसे ही िवषमताओं का उन्मूलन करके समता परक समाज व्यवस्था के िनमार्ण के िलए भी अलग-अलग ढंग से पर्योग िकए गये हैं लेिकन इन सबकी मूल पर्ेरणा और लक्षय एक ही रहा। भारत के जन किव संत तुलसीदास ने भी अपने रामचिरतमानस में रामराज्य का जो खाका खींचा था उसमें भी िवषमता की समािप् का केन्दर् िबन्द ु है। कु छ और भी पर्श्न पर्ासंिगक हैं। भारत की िवशाल जनशिक् को देखते हु ए हमें इस पर्श्न पर भी गौर करना है िक हमारे देश के िलए उपयुक् तकनीकी क्या है? क्या हम आधुिनकीकरण के नाम पर िवकिसत देशों की तकनीकी आयात करके पूँजी और उत्पादन के साधनों को मुट्ी भर लोगों या कम्पिनयों के हाथों में केिन्दर्त हो जाने दें या िफर अपने िलए उपयुक् मझोली तकनीकी का िवकास करके हर हाथ को काम देकर गरीबी का अिभशाप समाप् करें । समाजवादी सोच के तहत हमने अपने देश में भी सावर् जिनक िनगमों एवं पर्ितष्ानों का एक भारी भरकम ढांचा खड़ा िकया िजनका िवकास में महत्वपूणर् योगदान रहा। पर इसमें कई ऐसे क्षेतर् भी शािमल होते गये जो िवकास का आधारभूत ढाँचा उपलब्ध कराने से सम्बिन्धत नहीं थे। यह सावर् जिनक क्षेतर् अकु शलता और भर्ष्ाचार के चलते हमारी गरीब जनता की गाढ़ी कमाई से बने कोष पर भार सा हो गया है। इस पर्श्न पर भी गौर करना है िक सावर् जिनक िनगमों एवं पर्ितष्ानों को इस दोष से कैसे मुक् िकया जाय। साथ ही साथ जो िवकास के िलए आधारभूत क्षेतर् है, उसको सावर् जिनक क्षेतर् में सुदृढ़ एवं सुव्यविस्थत िकया जाय। भारत में लोकतािन्तर्क समाजवादी रचना का पूरा शर्ेय ितर्मूितर् को है। ितर्मूितर् भारत की संस्कृित का अत्यन्त िपर्य शब्द है, इसिलए िक जन्म, िस्थित और िवनाश यही जीवन की तीन िस्थितयाँ हैं। जीवन का आधार तीन गुण हैं। तीनों गुणों के तीन देवता हैं, इतना ही नहीं पर्त्येक शरीर कफ, िपत्, वात की रचना है। इन सबों के अलग-अलग गुण, धमर् हैं। आने डॉ. राम मनोहर लोिहया समीक्षा और िवचार | 8

वाले िदनों में भी दल या पताकाएं चाहे जैसी भी हों, िवचार और कायर् कर्मों की दृिष् से इनका महत्व बना रहेगा। सम्पूणर् राजनीित िकसी न िकसी पर्कार से इनके वृत् में सोचती है। शतर् यह है िक सोचती हो तब? राजनीित का ध्यान मुख्यतः तात्कािलकता पर होता है। िकन्तु िवचार की दृिष् द रू गामी होती है, यह िवचारक भी िदन के पर्काश को देखते थे। िफर अंध ेरे को पार करते, अंध ेरे के पार देखते थे, सूयोर्दय की पर्तीक्षा न कर स्वयं सूयर् बन उगे थे। िकसी राजनेता के बारे में िलखना बहु त किठन है। क्योंिक उसके सम्बन्ध में एक ही समय और घटना के अनेक सवर् दा परस्पर िवरोधी तथ्य होते हैं। क्योंिक उसके सम्बन्ध में एक ही समय िनणार्यक मत की स्थापना की जा सकती है लेिकन वह भी िववाद के घेरे से दरू नहीं होती और वह भी तब जब अपने समय के हाल के गुजरे समय के उस समनायक पर जो स्वयं भी कम िववादास्पद नहीं रहा, िनरन्तर अपने और अपने बाहर से लड़ता रहा। िजसमें बहु मुखी तथा बहु चिचर् त राजनायक को लेकर िलखना तो और भी किठन है। आज की राजनैितक उथल-पुथल में लोिहया जी की पर्ासंिगकता सवार्िधक है, क्योंिक उनका स्वदेशी मन िजस कतर् व्यबोध से बना था, उसमें सत्ा मोह की अपेक्षा जनशिक् और जन की इच्छाशिक् को संगिठत करने के पर्ित िवशेष आगर्ह है। आज की राजनीित यिद केवल सत्ा िवमुख रहेगी और जन इच्छा तथा जनशिक् पर आधािरत नहीं रहेगी, तो हमारे मौिलक अिधकारों की रक्षा नहीं हो सकेगी। डॉ. लोिहया की पर्ासंिगकता इसिलए भी है िक उनकी समाजवादी िवचारधारा समस्याओं का केवल िवश्लेषण नहीं करती, उनका िनदान भी पर्स्तुत करती है। उनकी िवचारधारा ‘कमर् ’ के साम पर चढ़कर तेज होने वाली िवचारधारा है। उसमें आगर्ह है, दुरागर्ह नहीं है। आज के िबखराव वाले वातावरण में डॉ. लोिहया के िवचार ही देश और समाज में एकसूतर्ता ला सकते हैं, क्योंिक उनके िवचारों में िचन्तन की गहराई के साथ ही कमर् की ऊजार् पैदा करने की क्षमता है। समाज कैसे बदले, देश का आिथर् क ढांचा कैसे सुधरे , िनरन्तर बढ़ते हु ए अन्यायों का पर्ितकार कैसे हो, िवषमताएं दरू करने के कौन-कौन से रचनात्मक कायर् कर्म अपनायें- ये आज के ज्वलंत पर्श्न हैं। इन सारे पर्श्नों का उत्र हमें डॉ. लोिहया के िवचारों में िमलता है। लोिहया ने कहा- “हमें क्या हो गया है? बेबसी को आंख खोलकर स्वीकारने से ही आदत बदलती है। नहीं तो हमें उन सभी कीटाणुओं को ढू ढ़ं ना चािहए िजन्होंने हमारे राष्र्ीय मन को सड़ाया है।” डॉ. राम मनोहर लोिहया का िचन्तन काफी िवचारोत्ेजक और िववादास्पद रहा है। इस पर भी उनके िवचार आज के भारत के सन्दभर् में पर्ासंिगक है। इितहास, राजनीित, समाज डॉ. राम मनोहर लोिहया समीक्षा और िवचार | 9

व्यवस्था, जाितवाद, आिथर् क समस्याएं आिद िवषयों पर उनका िचन्तन वतर् मान जीवन को िदशा दे सकता है। “आज स्वतन्तर्ता की प्यास कु छ मायने में पूरी हु ई है। लेिकन समता और समृिद् की दस ू री प्यास अतृप् है। हमें लोगों को, जनता को जागृत और सचेत करके उनके पर्यत्नों को एकसूतर्ता में लाना चािहए।” लोिहया में िनभीर्क बनकर अपना आत्म परीक्षण करने का बहु त बड़ा गुण था। वे अच्छी तरह जानते थे िक हर एक व्यिक् का दृिष्कोण अलग-अलग होता है, सच को हर व्यिक् हमेशा िकसी एक दृिष्कोण से देखता है। इसे वे कहते थे िक यह देह का दोष है और इस दोष से पूरी तरह कभी छु टकारा हो ही नहीं सकता लेिकन उनकी चाह रहती थी, कोिशश रहती थी िक पूरे सच को समझने के िलए एक सम्यक दृिष्, एक पूरी दृिष् बन पाये। लोिहया राष्र्ीयता के सजग पर्हरी थे। वे िहन्द ू राष्र्, िसख राष्र्, मुिस्लम राष्र्, ईसाई राष्र् नहीं चाहते थे, उन्हें वांिछत थी देश की एकता। गुटिनरपेक्ष नीित को भी वे राज्य की कसौटी पर परखना चाहते थे। वे कहते थे अपने देश की, अपने राज्य की रक्षा करना सबसे बड़ा कतर् व्य है और िफर उससे सारे के सारे िसद्ान्त िनकला करते हैं। ऐसा कोई िसद्ान्त नहीं है, जो की सत्य को खत्म करके चल सकता हो। राजनीित में इसको याद रखना सबसे बड़ा है, राज्य को रखो। हर िहन्दुस्तानी को मैं कह देना चाहता हू ँ िक िपछले हजार वषर् के अपने दुभार्ग्य की तरफ िनगाहें डालो। हजार सवा हजार बरस में क्या हु आ है? राज्य को खोकर हमको क्या-क्या मुसीबतें, क्या-क्या अपमान, क्या-क्या जहन्ुम के और गैरत के गड्ों में िगरना पड़ा है। हमारा राज्य ही नहीं रहा है। सबसे बड़ी चीज है, हमारा राज्य बना रहे। राज्य बनाये रखने के िलए हमें बाकी सब िसद्ान्तों को नीचा कर लेना पड़ेगा और जब राज्य बना रह जायगा, तो उसमें से िसद्ान्त अपने आप िनकल सकेंगे। पर्खर राष्र्ीयता के पर्वक्ा लोिहया िसकु ड़ने वाले राष्र्वाद के समथर् क नहीं थे, उनके आदशर् उतुंग थे। बांग्लादेश पािकस्तान से अलग होकर रहेगा यह लोिहया ने बहु त पहले कहा था। मगर वे चाहते थे िक ये सारे अलग राज्य कम से कम महासंघ के रूप में एक हो। लोिहया को नकली िवश्वयारी से घृणा थी। राष्र्ीय सावर् भौिमकता का आंिशक त्याग उन्हें कु बूल था बशतेर् सभी देश ऐसा करने के िलए राजी हो जाएं और त्यागे हु ए अिधकार एक िवश्व सरकार को सौंप िदए जाएं, इस तरह वे सही मायने में अन्तरराष्र्ीय वादी थे। डॉ. लोिहया सम्पूणर् िवश्व को एक पंचायत में बाँधना चाहते थे। वे िवश्व सरकार के िहमायती थे। उनका सपना था िक हम िबना परिमट के एक देश से दस ू रे देश में जा सके। उनकी यह बहु त बड़ी पीड़ा थी िक आज का िवश्व गोरे और काले दो िवभागों में िवभक् है। डॉ. राम मनोहर लोिहया समीक्षा और िवचार | 10

गोरी दुिनया के िलए समृिद् है, शिक् है, वैभव और िवलास है, तो काली दुिनया के िलए गरीबी है, युद् है, िवषमता है और भूख है, वे इस िस्थित को समाप् करना चाहते थे। डॉ. लोिहया की सप् कर्ािन्त और अनेक आयाम भी हैं जो व्यिक् और व्यिक्, व्यिक् और समाज, व्यिक् और सम्पित् तथा व्यिक् और राज्य के िरश्तों को पिरभािषत करते है और एक शोषण मुक् िवश्व की स्थापना का लक्षय रखते है। हमारी नयी पीढ़ी के अराजनीितकरण को रोकने और इन मौिलक पर्श्नों पर सोचने-िवचारने के िलए पर्ेिरत करेगी।

डॉ. राम मनोहर लोिहया समीक्षा और िवचार | 11

अध्याय – एक ऐितहािसक िवश्लेषण भारत में समाजवादी िचन्तन का िवकास 1.1 भारत में समाजवादी िवचारों का उदय : रूस में 25 अक्टू बर 1917 (नये कैलेंडर से 7 नवम्बर 1917) को हु ई समाजवादी कर्ािन्त आधुिनक िवश्व की सवार्िधक महत्वपूणर्, युगान्तरकारी, ऐितहािसक घटना थी, इसे अक्टू बर कर्ािन्त के नाम से भी जाना जाता है। इस कर्ािन्त के फलस्वरूप रूस के आम मजदरू , िकसान और कमर् चारी कारखानों, खेत-खिलहानों, कायार्लयों, शैक्षिणक संस्थाओं तथा अपनी अमूल्य सांस्कृितक धरोहर के मािलक बने थे। रूस की बोल्शेिवक (कम्युिनस्ट) पाटीर् के कु शल नेतृत्व में हु ई इस कर्ािन्त ने सामर्ाज्यवाद व पूंजीवाद के एक िवशाल एवं शिक्शाली गढ़ को ध्वस्त कर रूस की पावन धरती पर िवश्व सवर् हारा का अजेय लाल झण्डा फहराया था। इस कर्ािन्त के जयघोष ने माक्सर् , एंगल्े स, लेिनन तथा िवश्व के लाखों कर्ािन्तकािरयों, समाजवािदयों व जनवािदयों के िचरकाल से संजोये सपने को साकार िकया था। पहली बार िवश्व के इस भाग में सदा के िलए मनुष्य द्ारा मनुष्य के शोषण को समाप् कर एक सवर् था नयी समाज व्यवस्था का पर्ादुभार्व हु आ था। नवम्बर 1917 में रूस में समाजवादी कर्ािन्त की सफलता ने भारतीयों का ध्यान अपनी तरफ खींचा और इसके बाद भारत में समाजवादी िवचारों के पर्वेश की गित तेज हो गयी। भारत पर नवम्बर कर्ािन्त के पर्भाव के बारे में िबर्िटश शासकों के गुप्चर िवभाग के पर्धान सर ‘सैिसलके’ ने िलखा था - “इसमें कोई संदेह नहीं िक रूस में बोल्शेिवक शासन का अिस्तत्व अन्य देशों में सब पर्कार के कर्ािन्तकारी कामों को पर्ोत्साहन दे रहा है और यह बात भारत पर िवशेषतः लागू होती है, िजसके पर्ायः दरवाजे पर ही बोल्शेिवक शासन मौजूद है। समाजवादी कर्ािन्त का भारतीय जनता, समाचारपतर्ों और राष्र्ीयय नेताओं ने स्वागत िकया। उन्होंने रूस की इस ऐितहािसक िवजय को वहाँ के मजदरू ों और िकसानों की िवजय डॉ. राम मनोहर लोिहया समीक्षा और िवचार | 12

माना। समाजवादी कर्ािन्त के फलस्वरूप अनेक देशों में राष्र्ीय मुिक् आन्दोलन नये िवश्वास और स्फूितर् के साथ आगे बढ़ा। इसने उपिनवेशवाद पर जोरदार पर्हार िकया। सोिवयत संघ की कम्युिनस्ट पाटीर् के इितहास में इस सम्बन्ध में ठीक ही िलखा गया है – “महान अक्टू बर समाजवादी कर्ािन्त से राष्र्ीय मुिक् आन्दोलन को पर्ेरणा पर्ाप् हु ई, िजससे उपिनवेशवादी शासन की नींव खोखली हो गयी। इसके फलस्वरूप मानवजाित को सामर्ाज्यवादी उत्पीड़न से मुक् कराने का महान् संघषर् आरम्भ हु आ, िवश्व में एक नये युग की, पूँजीवादी के पराभव और समाजवाद के िनमार्ण के युग की, मानवजाित के पूँजीवाद के कम्युिनज्म की ओर संकर्मण के युग की पौ फटी।”1 समाजवादी कर्ािन्त से भारतीय राष्र्ीय आन्दोलन में नयी चेतना और िवषयवस्तु का समावेश हु आ। युवकों ने मजदरू ों और िकसानों को संगिठत करने का पर्यास िकया, उन्होंने मजदरू ों की यूिनयन और िकसान सभाएं बनायी और मजदरू ों, िकसानों, युवकों व छातर्ों में समाजवाद की िवचारधारा का तेजी से पर्चार-पर्सार हु आ। समाजवादी कर्ािन्त के पश्चात् ही भारतीय राष्र्ीय आन्दोलन में ‘वगर् संघषर् ’ की रणनीित का समावेश हु आ। यद्िप िबर्िटश सरकार ने समाजवादी कर्ािन्त की खबर को भारतीय जनता तक न पहु ँचने देने की असफल कोिशश की, परन्तु काली घटाएं सुखर् सूरज की सुखद िकरणों को रोक नहीं सकी। समाजवादी कर्ािन्त का संदेश भारत तक पहु च ं ा। लाहौर के दैिनक िटर्ब्यून ने 17 नवम्बर को ही ‘लेिनन का शािन्त पर्स्ताव’ शीषर् क से सोिवयतों की दस ू री अिखल रूसी कांगर्ेस द्ारा स्वीकृत शािन्त सम्बन्धी आज्ञािप् के बारे में समाचार पर्कािशत कर िदया था। इस शािन्त आज्ञािप् में सभी राष्र्ों के आत्मिनणर् य के अिधकार की घोषणा की गयी थी, जब लेिनन यह घोषणा कर रहे थे तब वे भारत, मलाया, इण्डोनेिशया, िहन्दचीन, चीन, िमसर्, अल्जीिरया, अंगोला, दिक्षण अफर्ीका आिद पराधीन राष्र्ों की करोड़ों जनता को सम्बोिधत कर रहे थे। उनके राष्र्ीय स्वाधीनता की कामनाओं और जुझारू संघषोर् ं का हािदर् क स्वागत और समथर् न कर रहे थे। यह कोई िदखावे का पर्स्ताव नहीं था, यह तो िवजयी कर्ािन्त के िवजयी नेता की, ऐसी पर्भावी उद्ोषणा थी िजसका स्वर लाखों – करोड़ों व्यिक्यों को आश्वस्त, उत्पर्ेिरत और आह्ािदत कर रहा था। यह ऐसी ऐितहािसक घोषणा थी िजसमें िवश्व के स्वाधीनता पर्ेिमयों की दृिष् सदा के िलए नये राज्य सोिवयत रूस की ओर मोड़ दी और िफर वह दृिष् वहीं पर िटकी रही। भारतीय समाचार पतर्ों और पितर्काओं में रूस की घटनाओं और समाजवादी कर्ािन्त के नेता ब्लादीिमर इल्यीच लेिनन के बारे में खबरें नवम्बर-िदसम्बर 1917 में ही पर्कािशत होने लगी थी। िनःसन्देह उसी समय से भारतीय जनता तथा राजनीितक कायर् कतार्ओं का ध्यान इनकी ओर आकृष् होने लगा। पर्िसद् तिमल किव शर्ी सुबर्ह्ण्यम भारती ने एक तिमल पतर् में िलखा था िक रूस में ‘िनजी सम्पित्’ को डॉ. राम मनोहर लोिहया समीक्षा और िवचार | 13

‘जनता की साझी सम्पित्’ घोिषत कर िदया गया है। ‘भारती’ रूसी मेहनतकश जनता के नेता लेिनन के नाम का िजनके नेतृत्व में महान् स्पान्तर हु ए थे, उल्ेख करने वाले सबसे पहले भारतीयों में एक थे। रूस में जो हो रहा है ‘उसे समाजवाद कहते हैं’ भारती के अनुसार रूस में सारी कृिष योग्य भूिम और अन्य सम्पदा सारी जनता की सम्पित् है, यह िसद्ान्त रूस से एिशया में भी फैल गया है। भारती इस िनष्कषर् पर पहु च ं े िक “इस िसद्ान्त के सारे संसार में िवजयी होने और जीवन का पर्ितमान बन जाने के बाद ही मानव जाित वास्तिवक रूप में सभ्य हो सकेगी।”2 महान् अक्टू बर कर्ािन्त ने समस्त पूवीर् जगत पर बड़ा पर्भाव डाला, सोिवयत सरकार ने सभी देशों के आत्मिनणर् य के अिधकार का समथर् न िकया था। उसने 3 िदसम्बर 1917 को रूस की जाितयों के अिधकारों की घोषणा और जन किमसार पिरषद की रूस और पूवर् में मुसलमानों के नाम अपील पर्कािशत की थी। इस अपील में िवशेषतः भारत का भी उल्ेख िकया गया था, िजसका सिदयों से सभ्य यूरोप दमन कर रहा था और िजसने िवदर्ोह का झण्डा खड़ा कर िदया था। इस अपील में फारसवािसयों, तुकोर्, िहन्दुओं, अरबों और उन सब लोगों से अपने शोषकों को उखाड़ फेंकने और अपनी आजादी की मांग करने को कहा गया था जो लालची यूरोिपय सामर्ाज्यवािदयों द्ारा सिदयों से दबाये जा रहे थे। िबर्िटश सरकार इस घोषणा और संदेश से बहु त भयभीत हु ई, उसने इन दस्तावेजों को भारतीय जनता तक न पहु च ं ने देने के िलए अनेक पर्यत्न िकये िकन्तु िबर्िटश शासकों की कोिशशों और उनके द्ारा लागू िकये गये पर्ितबंधों के बावजूद ये सन्देश भारत पहु च ं े और भारतीय पतर्ों में पर्कािशत हु ए। इन्होंने कांगर्ेस के नेताओं तथा आम कायर् कतार्ओं पर गहरा असर डाला। रूसी कर्ािन्त के तीन महीने के भीतर ही, पूना से पर्कािशत लोकमान्य बाल गंगाधर ितलक के केसरी नामक मराठी समाचार पतर् ने 29 जनवरी 1918 को ‘रूसी नेता लेिनन’ शीषर् क अगर्लेख पर्कािशत िकया था। ‘केसरी’ ने लेिनन पर अपने सम्पादकीय लेख में िलखा-“हम लेिनन की जीवनी के मुख्य लेख पर्कािशत कर रहे है, क्योंिक यह शरारत भरा पर्चार िकया जाता है िक जनिपर्य रूसी नेता लेिनन एक जमर् न यहू दी के बेटे है और जमर् न सरकार ने उन्हें िरश्वत दी है, लेिनन पर रूसी जनता के अंदर असंतोष पैदा करने का आरोप लगाया जा रहा है, िजसे िमतर् शिक्यों का वफादार कहा जाता है।”3 ‘केसरी’ ने 20 जुलाई 1920 को िलखा िक “सोिवयत सरकार की िवदेश नीित िवदेशी भूिम को छीन कर अपने में िमला लेने अथवा अन्य देशों पर बलपूवर्क अपनी अथर् नीित के िसद्ान्तों को लाद देने की नहीं है, क्योंिक उसका िवश्वास है िक पर्त्येक देश में राजनीितक डॉ. राम मनोहर लोिहया समीक्षा और िवचार | 14

और सामािजक संस्थाओं का उदय उस देश की ऐितहािसक परम्पराओं और आिथर् क हालातों से होता है।4 इसी ‘केसरी’ ने ितलक की परम्परा को िनभाते हु ए 21 अगस्त 1920 को ‘लेिनन की नैितक िवजय’ शीषर् क लेख में िलखा : 6 और 7 नवम्बर 1917 ऐितहािसक दृिष् से स्मरणीय ितिथयां होगी, क्योंिक इन दो िदनों के अन्दर रूसी कर्ािन्त एक बूदं खून बहाये बगैर हु ई। अवश्य ही हजारों लोगों के वषोर् ं के पर्यास इसे पूरा करने में सहायक हु ए लेिकन िकसी भी बड़ी घटना के िलए िकसी ऐसे आदमी की जरूरत होती है, जो उसका मूतर् रूप हों। लेिनन का नाम कम्युिनज्म के इितहास में हमेशा बना रहेगा।5 ‘केसरी’ के इन लेखों से स्पष् होता है िक ितलक जैसे पर्मुख व पर्खर राष्र्ीय नेता एवं पर्ितभा सम्पन् पतर्कार के हृदय में लेिनन के पर्ित िकतना आदर था। उनका ख्याल था िक शािन्त और भूिम की नीित तथा उच्च वगोर् ं से समझौता न करने की नीित उपयुक् व जनता के िहत में है। कलकत्ा से पर्कािशत अंगर्ेजी मािसक मॉडनर् िरव्यू के फरवरी 1919 के अंक में उसके सम्पादक रामानंद चटजीर् ने िलखा – “पूँजीवादी समाचार पतर्ों द्ारा रूसी सोिवयतों के इन समस्त पर्यासों के बावजूद भी िबर्िटश सरकार रूसी कर्ािन्त से उत्पन् नयी आशा और चेतना को भारत में फैलने तथा भारतीय नवयुवकों, िकसानों, मजदरू ों और राष्र्ीय नेताओं को इससे पर्भािवत होने से नहीं रोक सकी। रूसी कर्ािन्त की इस लहर ने भारतीय राष्र्ीय आन्दोलन को एक समाजवादी दृिष् पर्दान की। देश में होने वाले आन्दोलन का रूख समाजवाद की ओर मुड़ा, राष्र्ीय स्वतंतर्ता संघषर् को आिथर् क तथा वगर् स्वतंतर्ता के साथ सम्बिन्धत होने का अवसर िमला, मजदरू ों तथा िकसानों के आन्दोलन में तीवर्ता आयी। भारतीय समाजवाद के इितहास में डॉ. राम मनोहर लोिहया 1910 से 1967 अपने पर्खर िवचारों ओर लड़ाकू व्यिक्त्व के िलए याद िकए जाते हैं। देश की राजनीित में उनकी गणना सबसे जुझारू व्यिक्यों में की जाती है पर अपने िनभर् य व्यिक्त्व के द्ारा उन्होंने समाजवादी आन्दोलन को गित दी। जहाँ तक समाजवादी िचन्तन का पर्श्न है, इस िदशा में आचायर् नरे न्दर् देव व डॉ. राम मनोहर लोिहया का पर्भाव सबसे अिधक है।6

1.2 कांगर्ेस के भीतर वामपंथ का उदय : समाजवाद के िलए संगिठत आन्दोलन आरम्भ करने के िलए केवल समाजवादी िवचारों को पर्वेश पयार्प् न था। उसके िलए स्वयं भारत में आधुिनक उद्ोगों की स्थापना, पूंजीवादी डॉ. राम मनोहर लोिहया समीक्षा और िवचार | 15

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