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गु लशनकु मा र
एक सफ़य: ज़िन्दगी ------------------------------------------------
गुलशन कुभाय
राजमंगल प्रकाशन
An Imprint of Rajmangal Publishers
भूल्य : 160/- रू. ISBN : 978-9388202763
Published by :
Rajmangal Publishers Rajmangal Prakashan Building, 1st Street, Sangwan, Quarsi, Ramghat Road, Aligarh-202001, (UP) INDIA Cont. No. +91- 7017993445
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प्रथभ संस्कयण : ददसम्बय 2019 प्रकाशक : याजभंगल प्रकाशन याजभंगल प्रकाशन बफल्डिं ग, 1st स्ट्रीट, सांगवान, क्वासी, याभघाट यॊड, अलीगढ़, उप्र. - 202001 फ़ोन : +91 - 7017993445 --------------------------------------------First Published : Dec. 2019 Printed by : Thomson Press India LTD & Repro India LTD
eBook by : Rajmangal ePublishers (Digital Publishing Division) Cover Design : Rajmangal Arts Copyright © गुलशन कुभाय
This is a work of fiction. Names, characters, businesses, places, events, locales, and incidents are either the products of the author’s imagination or used in a fictitious manner. Any resemblance to actual persons, living or dead, or actual events is purely coincidental. This book is sold subject to the condition that it shall not, by way of trade or otherwise, be lent, resold, hired out, or otherwise circulated without the publisher’s prior consent in any form of binding or cover other than that in which it is published and without a similar condition including this condition being imposed on the subsequent purchaser. Under no circumstances may any part of this book be photocopied for resale. The printer/publishers, distributer of this book are not in any way responsible for the view expressed by author in this book. All disputes are subject to arbitration, legal action if any are subject to the jurisdiction of courts of Aligarh, Uttar Pradesh, India.
प्रस्तावना 'ज़ज़न्दगी' भहज़ एक शब्द है भगय मह कॊई ककताफ से कभ नहीं है। आने वाला कल कॊया कागज़ है ज़जसभें हभ आज के ककस्से ललखते है। कागज़ औय कलभ का रयश्ता फेहद संदय है। "एक सफ़य: ज़ज़न्दगी" के जरयए 'गलशन कभाय' ने ज़ज़न्दगी के कछ ककस्सों कॊ अऩनी कबवता का प्रारूऩ ददमा है। ज़जिं दगी एक संदय सफ़य है ज़जसभें गभ बी है औय ख़शी बी है। उताय-चढ़ाव से बया मह सफ़य फरृत सहाना है। कछ छॊटी-छॊटी फातें ख़ास है भगय आज की बाग दोड़ भें कही खॊ सी गमी हैं। इस अनन्त की दोड़ भें गलशन कभाय ने ज़ज़न्दगी के कछ ऩहलओं कॊ अऩने शब्दों भें दऩयॊमा है। ~~
अनुक्रभणणका शीषषक
ऩृष्ठ संख्या
प्रस्तावना
3
थकान
7
ख़ता की सज़ा
9
दॊ छत के दामये
12
क्यूँ ऩत्थय ऩयज यहा जग साया?
15
हूँसना चारॄूँगा
17
कट सत्य
18
नींद
19
एक ख़माल
20
लॊग
22
झॊली बय खज़शमां
23
ककताफें औय क़लभ
24
ददष से साभना
26
आसभां
27
भाूँ
29
जफ हभ फड़े रृए
31
ऩयानी ककताफ
33
पीकी सफह
35
प्याय तॊ नहीं कयता
37
स्कयल की माद
39
ख़ाभॊश
41
तस्वीय
43
उनकी कहानी
45
ज़ज़िं दा साूँस है
46
ददल का सकयन
47
यात
49
चंद भलाकातें
51
तय औय भैं
53
बाग दोड़
55
आख़ख़यी साूँस
57
रूखी शाभ
59
लड़ जाऊूँ गा
61
फॊझ पलों का
62
चाूँद देख भझकॊ मे फॊला
63
कॊई ऐसा काभ
65
भैं हाया नहीं
66
ज़ज़न्दगी एक जंग हैं
68
वॊ ददन बी
70
मायों के संग
71
एक धन
73
जीवन यस
75
शयापत
76
कछ तॊ गभ
78
काश! भैं तभ सा हॊता
80
भहपयज भेयी आूँ खों भें
81
नमा साल
82
फस, मे वक़्त माद यह जाएगा
84
फेवजह हूँसी
85
काफ़ी है
86
ख़्वादहशों की डामयी
88
भैं वक़्त से ऩहले जाग उठा
90
ख़्वादहश है
92
कल की सफह
94
एक वक़्त था
96
गहयी सॊच
98
क्ा तम्हें बी माद है ?
100
भैं औय भेये सऩने
102
ददखता नहीं
103
कभी
104
आख़ख़यी प्रमास
105
जीवन आधाय
106
असय
107
वजयद
108
ख़खड़ककमाूँ
109
ख़ज़शमाूँ ख़यीदनी है
111
घय का फड़ा फेटा
113
चाम
115
अहसास
118
दऩताजी
119
उऩदेश
121
क्यूँ सॊमा भेया दहिं दस्तान है?
122
माद आ जाती है
124
लेखक ऩरयचम
125
एक सफ़र : ज़िन्दगी
थकान तेयी ग़ैय भोजयदगी भें भैं ककसी औय से ददल लगा फैठा फेवफ़ा कह दे मा ख़दग़ज़ष सभझ ले आज कल ख़द से भहब्बत कयने लगा रॄूँ, फेचैनी कॊ यख के ऩये औय सकयन कॊ लगा के गले आज कल कछ घंटे ज़्यादा सॊने लगा रॄूँ फड़ा फेवकयफ़ सा था भैं उस वक़्त जॊ भेयी ज़ज़ल्लतों कॊ ही भैं फ़यभान-ए-इश्क़ सभझता यहा लेककन आज कल ख़द से बी ज़ाललभ हॊने लगा रॄूँ, तेयी पयभाइशों कॊ भैं भेयी दपक्र सभझ फैठा दपदाई कह दे मा पाख़ख़य जान ले भझकॊ आज कल ऩरयवश से ऩदाष कयने लगा रॄूँ, भेयी उल्फ़तों कॊ तय 7
गुलशन कुमार
नाकाभ सभझता यहा ज़ाललभ कह दे मा 'काबतफ' सभझ ले आज कल नफ़यतों से व्याऩाय कयने लगा रॄूँ, तेये शहय से भैं अक़्सय गज़यता यहा भसादफ़य कह दे मा कॊई बटका याहगीय सभझ ले आज कल हय भमखाने ऩय ठहयने लगा रॄूँ भेये सहाये कॊ तय ज़रूयत सभझता यहा इतफ़ाक़ कह दे मा वक़्त की भाय सभझ ले आज कल आज़शक़ों के भयहभ ललखने लगा रॄूँ। ~~
8
एक सफ़र : ज़िन्दगी
ख़ता की सिा तेये अल्फ़ाज़ों ने भझे तॊड़ कय यख ददमा है घंटों एक ही ज़भीन ऩकड़ कय फैठा यहता रॄूँ कॊई कछ ऩयछता है तॊ फस गदषन दहला देता रॄूँ भैं कल तक कछ औय हॊता था भगय आज तयने बफल्कल चऩ सा कय ददमा है ऩहले लॊगों कॊ हूँसाता दपयता था ऩय आज फात - फात ऩय यॊ देता रॄूँ जैसे फरृत कछ कहना चाहता रॄूँ लेककन एक शब्द तक नहीं कनकलता है ज़फान से भैं नहीं कहता कक जॊ तयने ककमा वह ग़लत है ऩय एक फाय कॊ तॊ दपक्र कयती भेयी चाहत की तझे बी भालयभ है ना कक ककतना भानता रॄूँ तझे 9
गुलशन कुमार
आज उबय नहीं ऩा यहा रॄूँ तेये तानों के जख्मों से जॊ उस फेसहाया वक़्त भें तयने ददए भझे फस यॊता यहता रॄूँ सॊच - सॊच कय फच्चों की तयह कम्बल भें खद कॊ बछऩाकय की कैसे बी उस वक़्त की फातें बभट जामे ना ही भैं गनाहगाय हॊउ औय ना ही तभ कछ कहॊ एक वक्त हॊता था जफ हय क्षण कॊ भहसयस कयता था औय आज ना फारयश की ख़शी हॊती है औय ना ही सदष यातों भें जाड़े से ठठठयता रॄूँ हय सभम आसभां भें भामयसी छाई यहती है लगता है ककसी बी ऩल, गभ के फादल फयस सकते है एक आख़ख़यी ख़्वादहश 10
एक सफ़र : ज़िन्दगी
तझसे कयता रॄूँ ज़रूयी है फतलाना लेककन कहने से डयता रॄूँ कछ आूँ सओं कॊ गले लगाकय थॊड़ा होसला जभाकय, फॊल ही देता रॄूँ "भेयी नहीं तॊ कभ से कभ भेये अल्फ़ाज़ों की ताकत फनजा।" ~~
11
गुलशन कुमार
दो छत के दामये आज दपय उन गललमों से गज़यना रृआ ज़जनसे गज़यना एक वक्त अक़्सय हॊता था वॊ जैसे आज बी दहलीज़ ऩय भसकयाते रृए खड़े औय हभाये क़दभों की आहट सन अं दय छऩ गए वॊ खयफसययत सा गली के उस ऩाय उसका घय अक्सय इस छत से हभ उनकॊ ताकते थे तेया हय शाभ चाूँद से ऩहले वहाूँ आना भेयी हय यात यॊशन कय देता था घंटों चाूँद कॊ, देख - देख फीत जाते थे औय ना जाने कफ हभ ख्वाफों भें 12
एक सफ़र : ज़िन्दगी
उस छत ऩरृूँच जाते थे हय यॊज़ चॊयी बछऩे उनकॊ मयूँ देखना अफ एक आदत सी हॊ गमी थी उसका नाभ नहीं जानते थे लेककन उसके क़दभों के आहट की सभझ हभें हॊ गमी थी कछ ददन औय फीत गए उस चाूँद कॊ देखने भें एक शाभ उसके इं तज़ाय भें छत के उस कॊने ऩय फैठा था फरृत इं तज़ाय ककमा ऩय उसकी कॊई ऩयछाई ना ददखी ज़सपष उस यॊज़ ही नहीं फल्ल्क आज बी उस आहट की चाहत हैं कछ मादें औय फरृत सी अधययी फातें उस, दॊ छत के दामये भें ज़सभट गई है आज दपय उन गललमों से गज़यना रृआ तॊ जैसे उस अधययी कहानी का अं त बभल गमा हॊ, 13
गुलशन कुमार
आज छत बी थी औय चाूँद बी औय वहाूँ फैठे दॊ प्याय के ऩरयिं दे भेये फचऩन का प्रभाण थे। ~~
14
एक सफ़र : ज़िन्दगी
क्ूूँ ऩत्थय ऩूज यहा जग साया? क्यूँ ऩत्थय ऩयज यहा जग साया? हय कॊई चाहे सख का उज़जमाया ज़जस्म से जान कनकल जाने ऩय छामा रृआ है चायों तयप अूँ ज़धमाया बछऩता सययज लाल जगत है येत स्वणष सनहयी दयय ऩेड़ ऩय कॊमल कयके उल्लय यात का प्रहयी ऩयया गॊल चाूँद, चांदी सा चभके साूँस, आस ऩय ठहयी क्यूँ खज़शमाूँ भांग यहा जग साया ? जफ खद ने ककमा दखों का अं धेया क्यूँ ऩत्थय ऩयज यहा जग साया? क्यूँ है मे फेभतलफ की लड़ाई ? ना यहा कॊई ककसी का बाई दयसयों के सख कबी ना देखे औय अऩनी कयें फड़ाई हय भानव का भयल भंत्र चल हॊने दे मे लड़ाई क्यूँ भतलफी हॊ यहा जग साया ? 15
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