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Story Transcript

आभार ��ेक मानव के जीवन की सफलता एवं असफलता म� िकसी न िकसी ���, प�र��थित, उसकी अपनी श��, लगन , मेहनत व अंतत: िकसी अ�� श�� का हाथ होता है । भावनाएँ सबके मन म� उठती ह�, जो कभी लेखन, कभी िच�कारी, कभी गायन व कभी नृ� के �प म� �कट होती ह� । ठीक वैस े ही मेरे मन म� उठने वाले भावों के िलए उन प�र��थितयों का आभार �� करती �ँ , िजनकी बदौलत श� प�ों पर �प ले पाए । माता – िपता का आभार िज�ोंने इस लायक बनाया िक िलखना सीख पाई । भाई पीयूष और बहन पा�ल का आभार िज�ोंने मुझे समय – समय पर �े�रत िकया और म� भावों को �प दे ने म� सफल हो पाई । कभी – कभी एक ऐसा ��� भी आपके जीवन म� होता है , जो शायद दे खने म� करीबी नहीं लगता, पर आपके जीवन म� एक अ�� जगह होती है उसकी । वो आपकी उस �ितभा को भी पहचानता है िजसे आपके ब�त करीबी दो� या कोई और करीबी ��� नहीं पहचान पाता । ऐसी ही एक िम� िनिध जुनेजा का आभार �� करती �ँ, जो दू र रहकर भी मुझे अपनी किवताएँ �कािशत करवाने के िलए �े�रत करती रही और िजसका प�रणाम आज आपके हाथों म� है ।

उस अ�� परम श�� का आभार िजसकी कृपा से मेरा ‘िचर – �तीि�तʼ �� पूण� �आ ।

भूिमका यौवन की दहलीज़ पर कदम रखते ही िलखना शु� िकया । िलखना भी �ा शु� िकया, कब शु� हो गया दरअसल पता ही नहीं चला । कभी सोचा भी नहीं था िक वो भाव एक िदन का� - पु�क का �प ल�गे । शायद कम श�ों म� जब ब�त कहना हो , तभी किवता उभरती है । जब िज़ंदगी ने परे शान िकया, तो मन दाश�िनक हो गया, तब ‘सपनेʼ ‘दद� ʼ, ‘चेहरे ʼ ‘दायरे ʼ जैस ी किवताएँ अ��� म� आईं । जब िज़ंदगी ने सृि� के दो सश� त�ों से प�रचय करवाया तो ‘पु�ष और �कृितʼ , ‘बाती , तेल और िदयाʼ , ‘फूल और चाँदʼ जैस ी किवताओं ने आकार िलया । मन ने समाज को िनहारा , उसके दु ख – दद� से प�रचय �आ तो ‘�ा, मानव रह गए हो तुमʼ , ‘जंगली पौधाʼ ‘बढ़ते जंगलʼ ‘गुलाबʼ ‘िमिडल �ास आदमीʼने अपना आकार पाया। जब जीवन म� �ेम उपजा तो ‘तो कहनाʼ ‘कुछ नया कहोʼ ‘�ेमदीपʼ और ‘�र�ेʼ(यह किवता िववाह की �ीकृित दे ने से पहले �� �प म� अपने पित के िलए भेजी थी और आज भी यह किवता िदल के ब�त करीब है ) जैस ी खूबसूरत किवताओं ने मेरा मन आँ गन महकाया । हर मिहला के जीवन म� एक ऐसा व� आता है जब उसे ‘नारीʼ होने पर गव� होता है । उ�ीं पलों म� ‘हाँ! नारी �ँ म�”, ‘मेरे �प अनेकʼ जैस ी नारी सश��करण से आकंठ डूबी किवताएँ उभरीं ।

चूँिक अ�ािपका �ँ , उस पर भी िह�ी की, तो ‘िह�ी की �थाʼ भी किवता के मा�म से �� की और अपने िव�ािथ�यों को �े�रत करते �ए कहती �ँ ‘सूरज हो, खुद को िन�ेज न होने दोʼ ! आशा करती �ँ िक आपको भी मेरे भाव कहीं न कहीं िदल की गहराइयों म� छू जाएँ गे और वही गहराइयाँ िफर मुझे �े�रत कर� गीं कुछ नया कहने के िलए । पूवा� िसंह

समप�ण पु�क समिप�त है उन सभी भावनाओं को िज�ोंने िदल म� जगह बनाई, उन प�ों को, िज�ोंने श�ों के घाव और मलहम , दोनों अपने पर उकेरने िदए उन प�र��थितयों व घटनाओं को िजनके प�र�े� म� किवता घिटत �ई ।

अनु�मिणका नारी सश��करण................................................. 1 फूल और चाँद ........................................................... 3 बूँद और लड़की ........................................................ 5 मेरे �प अनेक.......................................................... 6 हाँ ! नारी �ँ म� ......................................................... 10 समप�ण ............................................................... 12 गुलाब ..................................................................... 13 सद� हवाएँ ............................................................... 14 दश�न .................................................................. 17 अतीत..................................................................... 18 काश िज़ंदगी ........................................................... 19 �ा तुम !................................................................ 21 �खली धूप................................................................ 22 �ाब : एक नया िव�ास .......................................... 24 �ाब ..................................................................... 26 चेहरे ....................................................................... 27 जंगली पौधा ............................................................ 28 िज़ंदगी, �ा बस �ॉप नहीं ह� ! ................................ 29 तु�ारी याद............................................................. 31 दद� ......................................................................... 32

दायरे ...................................................................... 33 दो अप�रिचत .......................................................... 34 नीड़........................................................................ 35 �� तो है चलने का .................................................. 36 िफर और िफर ........................................................ 37 बस एक बूँद ही तो .................................................. 38 बस चाँद हमारा है ................................................... 39 मौन........................................................................ 41 याद� ........................................................................ 42 लता और दू ब .......................................................... 43 व� ....................................................................... 44 िवसज�न .................................................................. 45 श� के �ितिबंब ..................................................... 46 सपने ...................................................................... 48 �ेम रस ............................................................... 49 ओस – कण ............................................................ 50 कुछ नया कहो ........................................................ 51 खामोश ल�� ........................................................... 52 तुम – �ा हो .......................................................... 53 तो कहना !.............................................................. 56 िदवस के अवसान पर .............................................. 57 पु�ष और �कृित..................................................... 58

�ेम – दीप............................................................... 59 बाती, तेल और दीया ................................................ 60 मेरा मौन मुख�रत कर दो ......................................... 61 �र�े ...................................................................... 62 िवरह - रै ना ............................................................. 63 �ेरणा.................................................................. 64 सूरज हो , खुद को िन�ेज़ न होने दो ! ...................... 65 गीत नहीं, ग़ज़ल �ँ म� .............................................. 68 दू ध, तेरे िकतने �प ! .............................................. 70 िसफ़� अपने िलए ...................................................... 72 �ं� .................................................................. 73 मानव, �ा मानव रह गए हो तुम ! ............................ 74 बढ़ते जंगल ............................................................. 77 पी.टी.एम. का िदन ................................................... 79 छाप ....................................................................... 83 �ूशन मेिनया ......................................................... 87 बदलाव................................................................... 90 िश�ा का �वसाय .................................................. 92 सं�ृितयों का टकराव ............................................. 95 सास है तो आस है .................................................. 97 िह�ी की �था कथा ............................................. 101 संवाद ................................................................... 105

नारी सश��करण

~ 1~

~ 2~

फूल और चाँद हाँ , खुले आसमां म� तो िवचरना चाहती �ँ पर, पु�ष - �द� चाँद – सी, फूल – सी की उपमा से बाहर िनकलना चाहती �ँ । अरे ! पूछते हो �ों ? और कहते हो िक – चाँद और फूल तो सुंदरता के �तीक ह� पर ये तो बताओ �ा मेरा अ��� मा� सुंदर व कोमल होने म� िनिहत है ? अरे , पु�ष �द� ये उपमाएँ तो सीिमत कर दे ती ह� मेरी यो�ता को। चाँद का उतना ही अंश चमकता है िजतने भाग पर उसके पड़ती है भानूकला सो,म� नहीं चाहती िक, इस चाँद की भाँित ही मेरा भी पु�ष – इ��त अंश ही �कटे और न ही फूल की नाईं हर बार िकसी दे व �ितमा पर चढ़ाया जाना चाहती �ँ । मुझ पर करो बस ये अहसान ~ 3~

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