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सा# से सृजन क* ओर "ीमती संतोष मेहरा
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{ An Imprint of Manda Publishers } Title: Sakshy se srijan ki or Author: Santosh Mehra 2022 © All rights reserved All rights reserved by author. No part of this publication may be reproduced, stored in a retrieval system or transmitted in any form or by any means, electronic, mechanical, photocopying, recording or otherwise, without the prior permission of the author. Although every precaution has been taken to verify the accuracy of the information contained herein, the author and publisher assume no responsibility for any errors or omissions. No liability is assumed for damages that may result from the use of information contained within. First Published by Manda Publishers in 2022 ISBN: 978-93-90447-49-7 Kashah Entertainment www.kashahentertainment.com
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./य सत को सत./या क2 पु5ांज7ल
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"ीमती संतोष मेहरा आगरा के एक जौहरी च/ं गोपाल मेहरा के ( माई थान िनवासी ) घर म= मेरा ज>म 1941 म= हBआ था । माता राजरानी मेहरा और िपता दोनG ही संHांत पIरवार से थे । माता कटरा नील िदKली से थी । मां एक सयु ोNय गृिहणी और िपता कुशल Rयापारी (सयु ोNय गणु ी ) थे । मS बचपन से Uाइमरी Wकूल तक उसके बाद नगर पािलका Wकूल म= पढ़ी । बीच म= कुछ कारणG से पढ़ाई \क गई । उसके बाद आगरा क] गड़ु मडं ी म= िWथत `ी िवaा धमc विधcनी संWकृ त िवaालय म= मSने मdयमा से लेकर शाeी और आचायc Uथम वषc क] परीgा िhतीय `ेणी म= पास क] । नागरी UचाIरणी सभा इलाहाबाद म= दशcनशाe से लेकर िवशारद क] परीgा Uथम `ेणी म= पास क] । 1968 म= मेरा िववाह िदKली म= वायु सेना म= सेवारत एक संदु र सश ु ील और चIरlवान प\ु ष से हBआ । बचपन से ही मझु े िलखने पढ़ने का बहBत शौक था । अतः िववाह उपरांत `ी लाल बहादरु शाeी िवaापीठ सWं कृ त िवaालय शिr नगर से ( वाराणसी से ही ) िशgा शाe िhतीय `ेणी म= उsीणc िकया । इसी बीच मSने गKसc गाइड और फWटc एड क] भी िशgा एक योNय िवaाथu के vप म= पास क] । बचपन से ही नाटकG म= भाग लेना, शारीIरक Rयायाम, खेलना कूदना, कुछ िलखते, रहना पढ़ते रहना हर काम म= मेरी \िच रही है । उन िबखरे मोितयG को माला म= िपरो कर आज मS पाठकG के सामने UWततु कर रही हyँ । आशा है आपको मेरे मन के संदु र भाव आ{म िवभोर कर द=गे । मेरा जीवन संघषc पणू c होकर भी सख ु द रहा । स{यनारायण के vप म= पित को पाकर म= ध>य हBई । और 1970 म= सल ु gणा ( चीना ) के vप म= हमारे आगं न म= एक कली ने Uवेश िकया । िजसे हमने अपने आँचल म= समेट िलया है और आज उसने हम= अपने आचं ल क] छाँव से ढँक िदया है ।
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"मु% पंछी" मS ना कभी मr ु पंछी क] तरह उड़ पाई, बालपन म= ततु लाई माँ क] उँगली पकड़कर चली । िपता के साये म= पली िपता के साये को खोया माँ क] लाड़ली अपने अनजु G क] बाँह= पकड़ी । कुछ हँसी इतराई, लडाई गई, पढ़ाई गई, अचानक िपता क] जदु ाई सही बड़ी बन गई । माँ के दख ु G को सहारा िदया न>हे म>ु नG क] बड़ी बहन बन गई । समय बीता ख़दु को भल ु ा सबको याद िकया मS ना कभी मr ु पछ ं ी क] तरह उड़ पाई । आकाश क] ऊँ चाइयG को छूने क] चाहत ही रही न छू पाई, बहती हवाओ ं को Wपशc करने क] चाहत ही रही ना Wपशc कर पाई । फूलG क] सगु ंिधयG को सँघू ने क] चाहत ही रही ना सँघू पाई, धरती के धरातल पर महकती रही अपनी मिं ज़ल ना पा सक] । चाहत है िफर से मेरे पंख मझु े िमल जाएँ, और मS Wवƒछंद और मr ु पंछी क] तरह उड़ सपनG और नीले आकाश क] ऊंचाइयG को छू लँू । अपनी झोली म= ढेर सारी खिु शयाँ सि„मिलत कर बात कर संतोष पा लँू ।
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"लेखक क. कलम से" किलयगु के इस किलकाल म=, छाया है घोर अँधरे ा अपने दीपक से , …योित देकर अधं कार िमटाना है उिजयारा फै लाना । जहाँ जलती हS लालच, बैर, hेष, िहसं ा और अिभमान क] मशाल=, उन मशालG को एक नया आयाम दे कर, बैर भाव जाित-पाती का भेद िमटाकर, जन-जन के ‡दय म= Uेम शांित क] शिr देकर अिहसं ा, Uेम, {याग क] रोशनी से नया दीप जलाना है । सच कड़वा पर िहतकारी होता, झठू छल कपट मीठा पर अतं म= द:ु ख देता है । अपनी किवताओ ं म= मSने एक सदं श े पहBचँ ाना है, कमc करो मानव जीवन म= धमc पर चलते जाओ । िफर ना ज>म िमलेगा ना समय िफर लौटेगा, सा‰य से सृजन क] …योित जलाओ Šान का Uकाश फै लाओ यह कतcRय त„ु हारा है ।
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अनु2म3णका "गणेश वंदना" ..................................................................................................................... 13 श7द हीन मौन ...................................................................................................................... 14