कचहरीनामा
कचहरीनामा / मनीष भागव / 1
कचहरीनामा / मनीष भागव / 2
कचहरीनामा
मनीष भागव
स मित कचहरीनामा / मनीष भागव / 3
Title : Kacharinama ISBN: 9789390539505 Author: Manish Bhargava © Manish Bhargava काशक स म त प लशस Website : www.sanmatiindia.com Email:
[email protected] थम सं करण: मई 2022 मू य : `150 Processed and Printed By: Tingle Books, Hapur यह कताब कुछ क पना और कुछ लेखक क ज़दगी म घट घटना ताना-बाना है। थान और सं था
के नाम का
का
योग केवल क य को
ामा णकता दान करने के लए कया गया है। कहानी म आये सभी च र , नाम और घटनाएँ लेखक क क पना और स य अनुभव का म ण ह। इस पु तक के सवा धकार सुर त ह। लेखक क ल खत अनुम त के बना इसके कसी भी अंश क फोटोकॉपी एवं रकॉ डग स हत इले
ॉ नक
अथवा मशीनी, कसी भी मा यम से अथवा ान के सं हण एवं पुनः योग क
णाली ारा, कसी भी
प म पुनःउ पा दत अथवा संचा रत- सा रत
नह कया जा सकता।
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नम कार सा थय , आप सबके साथ अपनी तीसरी कताब सम पत करते
ए
स नता हो रही है। पछली दो कताब 'बेरंग
लफ़ाफ़े' व 'नल दमयंती सतयुग क अमर गाथा' को आप सभी के ारा मले स मान व ो साहन क वजह से ही, इतने कम समय म तीसरी कताब आपके सामने लाने म स म रहा त
या
ँ। अब तक क
ात
से यह ात आ क मेरे ार लखे गए शास नक अनुभव,
आप सभी के ारा सवा धक पस द कये गये और इसी कारण यह पूरी कताब उ ह
शास नक अनुभव पर आधा रत है, जो मने अपने
व भ न कायालय क पद थापना व अलग-अलग पद पर काय करते ए गहराई से दे खे व जए ह। मुझे पूरी आशा इस कताब को आप सभी से भरपूर यार मलेगा। साथ ही यह भी आ
त करता ँ क इसे पढ़कर आप अपने आसपास के व
अपने ारा दे खे गए कायालय को सफ जानगे ही नह , ब क जएँगे भी मुझे पूरी उ मीद और व ास है क इसे पढ़ने के बाद अपने अनुभव अव य साझा करगे। अब जब यह कताब आपके हाथ म ह, उसके लये साधुवाद
- मनीष भागव
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यह रचना सम पत है मेरी प न, ीती भागव को, जसके ारा नभाई जाने वाली ज मेदारी और हर कदम पर मेरा साथ दे ने क इ छाश
क वजह से, प रवार खुशहाल है और म सृजनशील।
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अनु मिणका जन सुनवाई
9
सं वदा कमचारी
18
सफर (सीमा के आर-पार)
31
बँटवारा
60
सीमांकन
71
ड ी या ान
84
तहसीलदार डायरी
92
रटायरमट
105
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जन सु नवाई 14 मई, 2013 जला मु यालय पर कले टर कायालय के पास बने बड़े सभागार के बाहर भीड़ लगी ई है। लगभग 100 कलोमीटर और 318 गाँव म व ता रत जले के अलग-अलग ह स से कई लोग इक ा ए ह। हाथ म छड़ी लए चार पु लस कमचारी अनुशासन बनाने के लए खड़े ह। अ भजात
शासन और जनता के बीच ये हमेशा रहते ह, कभी
अ धका रय क सुर ा के नाम पर तो कभी जनता क सुर ा के नाम पर। कत
ववशता म उ ह ऐसा करना ही पड़ता है। महेश नामक एक पु लस कमचारी अपने सहकम नीरज को,
बार-बार कौतूहलवश भीड़ क तरफ दे खने पर कहता है, “आज मंगलवार है, आज जन सुनवाई होती है।” नीरज नई नौकरी म
श ण
पूरा कर पहली बार पु लस कायालय के बाहर फ ड म अपने कत
पर
आया है। उसके लए यह सब नया अनुभव था। “ या बला है यह जन सुनवाई, और इतनी भीड़ य है?” जानकारी न होने के कारण वह पूछता है। “ येक मंगलवार को कले टर साहब दो घंटे के लए जनता क शकायत सुनने को बैठते ह। इस दौरान इस जले का कोई भी अपनी शकायत लेकर आ सकता है। साहब उसक सुनवाई तुरंत करते ह, और तमाम अ धका रय को भी बुलाते ह ता क तुरंत फैसला कर सक।” महेश ने समझाया। “अ छा! स ताह म सफ दो घंटे जनता के लए काम करते ह, फर बाक समय कसके लए काम करते ह?” नीरज ने फर पूछा। “और पूरे स ताह सरकार के लए काम करते ह, जैसे हम एसपी साहब के लए करते ह।” महेश ने
ं य के लहजे म जवाब दया
और दोन हँसने लगे। जन सुनवाई म 100 से यादा आवेदक आए ए ह। उनम से एक मनोहर लाल अपनी बूढ़ माँ को साथ लेकर आया है। उसे सरपंच कचहरीनामा / मनीष भागव / 9
साहब ने बताया था क नए कले टर साहब आए ह, तुरंत फैसला करते ह। एक उदाहरण स हत समझाते ए उ ह ने कहा था, “ जले म आने के अगले दन ही उ ह ने एक गाँव के मा साब को बना समय गँवाए, बना सुने नलं बत कर दया था, जनक शकायत गाँववाल ने दो दन पहले उनके गाँव के दौरे पर ही क थी और कहा था क वो व ालय प रसर म ब च से सफाई कराते ह।” सुबह आठ बजे से ही लाइन लगनी शु
हो चुक थी।
अनु वभागीय अ धकारी राज व (एसडीएम), तहसीलदार, नायब तहसीलदार जैसे सभी अ धकारी बीच-बीच म दे खकर जा रहे थे। बड़े साहब के लए पानी क बोतल कचहरी या कले टर कायालय से लगे होटल से आ चुक थी। अ य टाफ के लए भी मयूर जग भरवाकर हॉल के कॉनर म ड पोजल गलास स हत रखवाया गया था। इनके अलावा सभी के लए गैलरी के बाहर रखी सीमट क टं क भरवाई गई थी। दरअसल, आपातकाल के समय कसी पशु च क सा अ धकारी ने द रया दली दखाते ए जानवर के लए बनी ई पानी क हौद यहाँ रखवा द थी, जससे जनता क यास बुझती थी और उसी से होमगाड के कमचारी भी पानी पीते थे। दोपहर के बारह बज चुके थे, साहब अब तक आए नह थे। कुछ अफसर जैसे लगने वाले लोग बार-बार आम लोग के बीच से नकलकर जा रहे थे। वे कहते, “हटो-हटो, साहब के लए रा ता छोड़ो। अभी साहब के आने म समय है, उनक मु यमं ी जी से ऑनलाइन मी टग चल रही है।” पूरी भीड़ को लगता, ये ज र कोई साहब के खास आदमी ह गे, इ ह सब पता है। कई लोग उनके सामने हाथ जोड़कर खड़े हो जाते जैसे उनके दे खने मा
से ही इनक जन सुनवाई सफल हो जाएगी,
ब कुल वैसे ही जैसे एक भ
अपने ख म बड़ी उ मीद से कसी मू त
के सामने हाथ जोड़कर भाव- वभोर हो जाता है। बीच-बीच म कुछ नेता जैसे लगने वाले लोग या दलाल भी हॉल के अंदर-बाहर च कर लगा रहे थे। उ ह दे खकर भी कई लोग जोश से भर जाते, यह सोचकर क हमारे बीच के नेता भी अ धका रय जैसी है सयत रखते ह। कभी-कभी ऐसे कचहरीनामा / मनीष भागव / 10
नेताजी कसी पर हाथ रखकर कह दे त,े “ चता मत करना, बॉस से फोन करा दया है।” यह सुनकर अ य कई लोग सोचते क काश! हमारा भी कोई बॉस होता, फर ई र पर भरोसा कर कहते, “बड़े साहब ब त अ छे ह, वो कसी भगवान से कम नह ह।” इसी उ मीद से मनोहर लाल अपनी माँ को गोद म उठाए खड़ा था। ऐसी तपती मई क गम और उसम भी दोपहर हो चुक थी। सभी लोग पसीने से भीगे ए थे। बाहर लू चल रही थी। पर बीच-बीच म कसी के अंदर जाते या बाहर आते समय सभागार या हॉल का दरवाजा खुलने पर एक ठं डी-सी हवा आती थी, जससे आगे खड़े ए चार-पाँच लोग खुश हो जाते। उनम से कोई न कोई कह दे ता, “एसी लगा है अंदर। जो भी साहब के पास जाता है उसे गम म नह बैठना पड़ता।” बीच-बीच म इस तरीके से कोई न कोई साहब क द रया दली और आम आदमी के त ेम को बताते ए तारीफ करता जससे और लोग क उ मीद बढ़ जात । आ खर दोपहर बारह बजे के कुछ दे र बाद कले टर साहब आते ह। पु लस अधी क (एसपी) और अपर कले टर उनके साथ ही ह। अपर कले टर राज व (एडीएम), अपर कले टर वकास ( जला पंचायत सीईओ), सम त अनु वभागीय अ धकारी, सभी वभाग मुख व जला मुख, तहसीलदार, सभी जनपद पंचायत के मु य कायपालन अ धकारी, नगरीय नकाय के मु य कायपालन अ धकारी, सम त उप वभाग मुख आ द सभी कार के जले, अनुभाग, तहसील और जनपद तर के अ धकारी उप थत ह। अ य वभाग के सभी मुख को भी पहले से उप थत होने के नदश दे दए गए थे, ता क जस वभाग का मु ा है उसे तुरंत हल कया जा सके या मौके पर ही समाधान हो सके। कले टर साहब अंदर आकर बैठते ह। सभी कमचारी स मान के कारण या कुछ डर के कारण खड़े हो जाते ह, या यूँ कह क उनके पास इसके अलावा कोई वक प भी नह है। हॉल के अंदर एक बड़ी-सी गोलाकार मेज बनी है जसने पूरे हॉल का बीच का ह सा कवर कर रखा है। मेज एक तरफ से खुली ई है कचहरीनामा / मनीष भागव / 11
जहाँ से चाय-पानी दे ने के लए चपरासी अंदर जा सकता है। उसके चार तरफ सोफे वाली ग दार कु सयाँ लगी ई ह जहाँ लगभग सभी
तीय
ेणी या इससे ऊपर के अ धकारी बैठ सक। जमीन से जुड़े ए छोटे अ धकारी व कमचा रय के बैठने के लए उन ग दार कु सय के पीछे द वार से सटाकर ला टक क कु सयाँ लगवाई गई ह। कले टर साहब हॉल क बड़ी मेज के बीच अपनी सबसे बड़ी सोफानुमा कुस को पहचानकर उसके पास जाकर खड़े हो जाते ह। कले टर साहब सबक तरफ उड़ती नजर डालते ए कुछ दे र चार तरफ दे खते ह, बैठने का इशारा करते ह, फर बोलना शु
करते ह। “म चाहता ं क आप सब
मेरी कायशैली से प र चत हो जाएँ। हम सब लोक शासन का ह सा ह। इसम जो लोक है वो जनता है, हम सब जनता के लए ही ह। यह हमारी ज मेदारी है क सभी को याय मले, और सफ इतना ही नह आजकल पारद शता का युग है, इस लए यह और भी यादा ज री है क याय मलता आ भी दखे।” सभी बड़े गौर से सुन रहे थे। कले टर ऑ फस के अधी क सभी के लए ना ते और चाय क
व था करते ह। चाय-ना ते क
व था प रसर के अंदर थत कट न से होती है। लगभग 15 वष पूव कले टर के कायालय अधी क ने त कालीन साहब से नवेदन कर कट न का ठे का अपने साले को दलवाया था। तभी एडीएम साहब कले टर क तरफ गदन झुकाकर धीमे से बोलते ह, “सर, ब त लोग आए ह, सुनवाई शु
कर?”
“हाँ-हाँ, सबको बारी-बारी से बुलाते जाओ।” कले टर साहब आदे श दे ते ह। मनोहर लाल का सातवाँ नंबर था। एक साथ चार लोग को अंदर भेजा जाता था। जो शु
के आठ-दस लोग होते उन पर यादा
समय दया जाता, इसके बाद कले टर साहब को और भी कई काम याद आने लगते या ऊपर से राजधानी से कसी अजट मी टग क खबर आ जाती। सभी कमचा रय का लंच टाइम भी होने लगता था। पछली बार यही आ था, मनोहर लाल का नंबर आने तक कले टर साहब जा चुके थे, उनक जगह कोई और साहब सुनवाई कर रहे थे। इस बार वह दो घंटे कचहरीनामा / मनीष भागव / 12
पहले से आकर लाइन म लग गया था, ता क उसका नंबर ज द आए। जन सुनवाई का समय सुबह 10 से 12 नधा रत था, पर आज तो शु आत ही दोपहर 12 के बाद ई। ऐसा कई बार होता था। आ खर कले टर ब त बड़ा पद है। उ ह कई काम करने होते ह, वो सफ इसी के लए तो नह बैठे। मनोहर लाल अपनी बूढ़ माँ को गोद म उठाकर अंदर प ँचा। उसे दे खते ही, यह सोचकर क कले टर साहब मौजूद ह और कोई बवाल न हो, एसडीएम और तहसीलदार ने उसक माँ को एक जगह पड़े टू ल पर बठला दया और ेम से कहा, “माताजी आप य आ , अपने ब चे को ही भेज दे त , बैठ जाओ इस पर।” अगली बारी उसक ही थी। एक हरे कागज पर मनोहर लाल ने पहले से आवेदन बनवा लया था, जसके लए वक ल साहब ने दो सौ पचास पये लए थे। वक ल साहब के पास ड ी तो नह थी पर थानीय नवास, आय माण प , जा त माण प क दलाली करते-करते वक ल बन गए थे। चूँ क उ ह ने अपने
े के नामी- गरामी लोग को वकालत क ड ी हा सल
करने के बाद भी यही सब करते दे खा था, तो उ ह अपने गाँव के मा टरजी क सलाह पर लगा क जब दलाली ही करनी है तो फर ड ी क ज रत ही या है! साथ ही वक ल साहब खानदानी
ापारी प रवार
से ता लुक रखने के कारण यह भी जानते थे क जब लागत कम लगेगी तो मुनाफा भी यादा होगा और जनता क सेवा भी कम दाम लेकर क जा सकेगी। वो हर कसी से कहते थे, “हमने ऐसा लखा है क कले टर दे खते ही तु हारा काम कर दे गा।” मनोहर लाल ने आवेदन पेश कया। उस आवेदन पर माननीय मु यमं ी व कले टर महोदय को संबो धत करते ए लखा था, “म और मेरी माँ साथ रहते ह। हमारे पास दो बीघा जमीन है। मेरे पताजी और मेरे बड़े भाई के वगवास के बाद यही हम दोन क आमदनी का एकमा ज रया है, जस पर हम फूल उगाते ह और उसे बेचकर अपना जीवन यापन करते ह। परंतु कुछ दन पहले राज व नरी क व ह का पटवारी ने उस जमीन का सीमांकन कर, उसे हमसे छ नकर, कसी और को कचहरीनामा / मनीष भागव / 13
क जा स प दया। साथ ही हम दस वष का जरीबाना (राज व कर) भरने के लए भी तहसीलदार साहब ारा नो टस दया गया है।” तभी उस तहसील के तहसीलदार साहब, जो आवेदक को पहचानकर उस पर नजर रखे ए उसक हर बात यान से सुन रहे थे, बोल पड़े, “सर, इस मामले म ये गलत कह रहा है। वो जमीन नयारी क है जो इसके बड़े भाई क जो
थी।”
“साहब वो तो शाद के एक साल बाद ही मेरे भाई को छोड़कर सरे मद के साथ चली गई थी। वहाँ उसके दो ब चे भी ह, और वो अपने प त के साथ रहती है।” मनोहर लाल बोल पड़ा। “पर अ भलेख म वो तु हारे भाई क जो
है, इस लए तु हारे
भाई का ह सा उसे मल गया।” तहसीलदार ने उसको संबो धत करते ए कले टर साहब क तरफ आँख झुकाकर दे खते ए कहा। इस बीच म हला सश
करण अ धकारी
सब दे ख-सुनकर बोल पड़ , “आजकल म हला
यंका शेरावत यह पर काफ अ याचार
कया जाता है, ये लोग समझते ही नह ह, सु ीम कोट भी काफ स त है।” “ऐसा है तो हमारी दो ब हन ह, उनका ह सा कहाँ गया?” मनोहर लाल ने तहसीलदार और उन च मे वाली मैडम क तरफ दे खते ए पूछा। “उनका नाम तो पहले ही तु हारे बाप ने कटवा दया था!” तहसीलदार ने बताया। “और उसके बाद य द आधी जमीन इनक है भी, तो आधी कहाँ गई?” मनोहर लाल ने फर पूछा। “वो बंदोब त के समय गलती से न शे म कम हो गई थी, उसके लए तु ह केस करना पड़ेगा।” तहसीलदार महोदय ने अपने ान का लाभ दे ते ए उसे सलाह द । “जब आपको सब पता है, तो सही कर द जए। आप ही अ धकारी हो, सब आपको ही करना है।” मनोहर लाल हाथ जोड़कर उन सभी क तरफ दे खते ए बोला। कचहरीनामा / मनीष भागव / 14
“वो राज व यायालय का मामला है, उसके लए हमारे यायालय म व धवत आवेदन दे ना होगा।” एसडीएम साहब ने भी तहसीलदार का समथन करते ए कहा। कले टर साहब आवदे न पढ़कर और उन सबक बात सुनकर सारा माजरा समझ गए। वो तो वैसे भी ब त संवेदनशील थे, आवेदन पर लखते
ए बोले, “इसी आवेदन को यायालय के
करण के लए
आवेदन मानकर, इसी के आधार पर करण दज करते ए भू राज व सं हता के अनुसार सुनवाई कर।” साथ ही एसडीएम और तहसीलदार को मौ खक नदश दे ते ए कहा, “ कसी अ य आवेदन क ज रत नह है।” तभी जनसंपक वभाग का फोटो ाफर कैमरा लेकर साहब और मनोहर लाल एवं उसक माँ क त वीर लेने लगा। उसे समझ म आ गया था साहब ने कसी गरीब को याय दया है, इसक त वीर द ली तक गूंज करेगी, और ट् वटर और फेसबुक पर तो आज से ही करनी है। कले टर महोदय ने एक अलग से सॉ टवेयर भी बनवाया था, जसम जन सुनवाई के सभी आवेदन क
मानुसार जानकारी व उनक
वतमान थ त दज कराते थे जससे कोई भी घर बैठे अपने करण को जान सके। उसी म मनोहर लाल का करण दज कर, नराकृत भी लख दया गया, य क उसका नराकरण कले टर साहब कर चुके थे। अब तो यायपा लका का मामला था, जो अपने नयम से ही चलेगा। साल 2021 आठ वष बीत चुके ह। फाइल दो बार पुनरावलोकन म जा चुक है। समय-समय पर पटवारी, राज व नरी क, तहसीलदार, अनु वभागीय अ धकारी अपनी तरफ से रपोट लगाकर आगे भेज दे ते ह। उनक रपोट हमेशा कानूनी भाषा म होती है, जसका अथ आम आदमी नह लगा सकता। वैसे सभी अ धकारी मनोहर लाल से पूरी सहानुभू त रखते थे और उसक मदद भी करना चाहते थे, पर याय म सहानुभू त क जगह नह होती, याय अपने आप म एक सरकार है। याय अपने तरीके और अपनी अ भजा यता को अपने तबे के साथ कचहरीनामा / मनीष भागव / 15