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EMPRESAS HEADHUNTERS CHILE PDF
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Story Transcript

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कुछ लम्हे

कुछ अल्फ़ाज़ -------------

सरफऱाज़

राजमंगल प्रकाशन An Imprint of Rajmangal Publishers

ISBN : 978-9390894215 Published by :

Rajmangal Publishers Rajmangal Prakashan Building, 1st Street, Sangwan, Quarsi, Ramghat Road Aligarh-202001, (UP) INDIA Cont. No. +91- 7017993445 www.rajmangalpublishers.com [email protected] [email protected] ---------------------------------------------

प्रथम संस्करण : अप्रैल 2021 प्रक़ाशक : ऱाजमंगल प्रक़ाशन राजमंगल प्रकाशन बिल्डिं ग, 1st स्ट्रीट, सांगवान, क्वासी, रामघाट रोड, अलीगढ़, उप्र. – 202001, भारत फोन : +91 - 7017993445 --------------------------------------------First Published : April 2021 eBook by : Rajmangal ePublishers (Digital Publishing Division) Copyright © सरफ़राज़ This is a work of fiction. Names, characters, businesses, places, events, locales, and incidents are either the products of the author’s imagination or used in a fictitious manner. Any resemblance to actual persons, living or dead, or actual events is purely coincidental. This book is sold subject to the condition that it shall not, by way of trade or otherwise, be lent, resold, hired out, or otherwise circulated without the publisher’s prior consent in any form of binding or cover other than that in which it is published and without a similar condition including this condition being imposed on the subsequent purchaser. Under no circumstances may any part of this book be photocopied for resale. The printer/publishers, distributer of this book are not in any way responsible for the view expressed by author in this book. All disputes are subject to arbitration, legal action if any are subject to the jurisdiction of courts of Aligarh, Uttar Pradesh, India

मेऱा पहल़ा कल़ाम मेरे खुद़ा- ज़ऩाब “भरत रेड्डी” के ऩाम -सरफऱाज़

आपके ऩाम चंद अल्फ़ाज़ सिसे पहले, मैं “राजमंगल प्रकाशन” समूह का शुक्रिया अदा करता हूँ कक इन्होंने मेरी कोशशशों को सराहा, खुद को साबित करने का मौका क्रदया मुझे और अपने पररवार का क्रहस्सा िनाकर मुझे ढ़ेर सारा प्यार क्रदया। वाकई इस पररवार से जुड़कर मैं खुद को खुशककस्मत महसूस कर रहा हूँ। स्व० भरत रेड्डी (रेड्डी सर) और काकीमाूँ का शज़ि लफ़्जों में मुमककन नहीं! सर ने ही मुझे कनखारा, संवारा और काबिल िनाया। शायरी करना तो मेरी झनकती सांसों ने मुझे शसखाया, मगर इसे अपनी पहचान िनाने का सिक मुझे सर से ही बमला। माूँ- िाप की कुिााकनयों ने मुझे कभी टू टने-बिखरने नहीं क्रदया। भाईयों, िहनों और दोस्तों का साथ ही मेरा हौंसला िना। कुछ लोगों ने शिक्कारा तो कुछ एक ने सराहा। पर, चंदन, संजना, अकिरी, गायत्री… कुछ ऐसे नाम हैं जो मेरा यकीन िनें। खैर, अि थोड़ी अपनी और थोड़ी अपने ककताि की भी िात कर लूूँ: “कुछ लम्हें कुछ अल्फ़ाज़ महज़ इक ककताि नहीं फ़कत ग़ज़लों की िारात नज़्मों की साज़ नहीं

कुछ लम्हे, कुछ अल्फ़ाज़ | 4

िरसों से बिनराह भटकती मेरी रुह की आवाज़ है कोशशशों की राख पर सुलगती इक शचिं गारी है मेरा आगाज़ है कुछ लम्हें कुछ अल्फ़ाज़ मेरे अरमां हैं मेरे ज़ज़्िात हैं सरफ़राज़ की ओर से आपको पहली सौगात है….” िेशक यह ककताि, क्रहसाि है- लम्हों में मेरी उम्र का और ियान है- लफ़्जों में मेरे ख़्याल का! मेरी अपनी दुकनया में मेरा पहला कदम, पहला पड़ाव है यह ककताि। कशमकश में हूँ कक खुद को कैसे पेश करूं? क्रिलहाल तो मैं इक िेनाम राही हूँ, पहचान की तलाश में सफ़र पे कनकला हूँ। आरज़ू है कक आपके क्रदलों पे राज करूं, आपकी रूह से कुछ िात करूं…। इल्िज़ा है- थोड़ी दूर साथ चलो, ज़रा हमारी नज़्मों में ढ़लो…। शुक्रिया। आपका मेज़िान, सरफ़राज़

कुछ लम्हे, कुछ अल्फ़ाज़ | 5

ससलससल़ा (अनुक्रम)

ग़ज़लें 1.

छु पा ले मुझको सीने में

2. कोई क्रहन्दू कहता है कोई मुसलमां कहता है 3. ये आज़ादी ककस काम की 4. ये चमचमाता खंज़र देखो 5. चांद को सि चांद कहते हैं आसमां को आसमां 6. मैं हार गया इन ररश्तों से 7.

ज़रा आक्रहस्ते चलो

8. बछपा सकता नहीं चांद तन्हा आसमां को 9. िेशक मुहब्बत का ये ककस्सा आम नहीं 10. ये नई दुकनया है यहां कुछ पुराना न रहा 11. सुना शज़न्दगी में अि कोई सहर न होगी 12. संग चलो तो हमनवां राह िदलो तो िेवफ़ा कहता है 13. इकरार मैंने ककया सरेआम नहीं 14. शजिर देखो उिर इश्क के िादल छाएं हैं 15. तुझे अपने क्रदल से कनकाला नहीं है 16. इस कदर भी कहीं शसतम होता है 17. मेरे शजस्म के खरीदार तो हजारों हैं 18. तुझे खोने के डर से िेहतर तो ज़हर है 19. खौि ज़रा भी नहीं तेरे क्रदल में 20. डर है कहीं िेवफ़ाई न डस ले 21. दूर तलक बिखरी तन्हाईयों के िीच

22. मज़ा कुछ और है 23. ककसी रोज़ बमलूंगा 24. खुदा ने मुहब्बत को आला मकाम क्रदया 25. वो ररश्तें भूल गए तुम 26. पागल क्रदवाना रहता है 27. हर लम्हा गुज़रा तेरी याद के साथ 28. तुम उिर खड़े थे हम इिर खड़े थे 29. ऐ वक्त ना पूछ 30. वक्त के साथ सि बमट गया

नई नज़्में 1.

अि पचपन का लगता हूँ

2. साइककल वाले अं कल जी 3. मां की नसीहतें 4. नया आदमी 5. वो एक कमरा

तऱाने 1.

आज और तुम

2.

वक्त से सिक ले

3.

तुमसा कोई बमला नहीं

4.

क्रदल पहली दिा तो नहीं टू टा है कुछ लम्हे, कुछ अल्फ़ाज़ | 7

5.

ले ले नाव मझिार क्रपया

नज़्में 1.

कुछ लम्हें कुछ अल्फ़ाज़

2.

इज़हार-ए-इश्क

3.

कतरा-कतरा लह

4.

तवायि

5.

लोग अक्सर पूछते हैं

6.

क्रदल के टु कड़ें

7.

वैश्या का मयखाना

8.

रात

9.

तन्हा-अकेला

10.

यादों के झोंकें

11.

मेरी अज़ा

12.

खुदकुशी

13.

पहेली

14.

इतने करीि न आओ

15.

नींद िहुत महंगी है

16.

मुकनया

17.

सोच उन क्रदनों की

18.

ज़माने की िातें

19.

आं सू

20.

खललश

कुछ लम्हे, कुछ अल्फ़ाज़ | 8

कुछ लम्हे कुछ अल्फ़ाज़ ग़ज़लों के ज़ररए क्रदल की िात

कुछ लम्हे, कुछ अल्फ़ाज़ | 9

1. छू पा ले मुझको सीने में अि डर लगता है जीने में कोई िागा प्यार का काट न दे कोई क्रदल टु कड़ों में िांट न दे कोई शजस्म को तेरे न मसले कोई यकीं को मेरे न डस ले मैं शज़िं दा हूँ तेरे हंसने में तेरे रोने में छू पा ले मुझको कहीं रुह के कोने में

कुछ लम्हे, कुछ अल्फ़ाज़ | 10

2. कोई क्रहन्दू कहता है कोई मुसलमां कहता है कहां कोई हमें यहां इनसां कहता है फ़का ईश्वर- अल्लाह का ज़माना खूि समझता है केसररया में देवता सफ़ेदी में फ़ररश्ता कहता है क्या अच्छा क्या िुरा पहचान िस मज़हि ही रहता है नंगी तलवार का वार कहां ककसी को अपना कहता है फ़साद में जंग में हर जान शससकता है ये लकीरें खुदा की नहीं गीता- कुरान कहता है कोई प्रणाम कहता है कोई सलाम कहता है कहां कोई यहां िुलद ं इन्कलाि कहता है

कुछ लम्हे, कुछ अल्फ़ाज़ | 11

3. ये आज़ादी ककस काम की कैद में है शज़न्दगी अवाम की शहीदों की कुिााकनयां ज़ाया हुई लग रही है िोली क्रहिंदूस्तान की हर तरफ़ शोर है फ़साद के अज़ान की अि घड़ी आ गई सब्र के इम्तहान की मैंने तो शीरनी से तौिा ककया जि बमठाईयां बमली हराम की

कुछ लम्हे, कुछ अल्फ़ाज़ | 12

4. ये चमचमाता खंज़र देखो दूर से ही सि मंज़र देखो आं िी को चुनौती दोगे ज़रा अपना पंज़र देखो िहारों की क्रफ़राक में हो सारी ज़मीं िंजर देखो चराग़ों पे गुमान है तुमको पहले ऊपर कंजर देखो

कुछ लम्हे, कुछ अल्फ़ाज़ | 13

5. चांद को सि चांद कहते हैं आसमां को आसमां क्यों घर घर न हुआ सुना पड़ा रहा मकां यहां- वहां हर ज़रें में ग़र है खुदा क्या हुआ रुख इिर रहा या उिर रहा शाह सि खाक हुए ग़ाललि को कौन बमटा सका दौर अभी गुज़रा कहां मेरा तो िस आगाज़ हुआ

कुछ लम्हे, कुछ अल्फ़ाज़ | 14

6. मैं हार गया इन ररश्तों से ददा बमलें जि ककश्तों में इन बिखरे-बिखरे लम्हों से ज़ख़्म बमले जि टु कड़ों में कतरा -कतरा लह िरसा पानी िनकर आं खों से कैद रहा मेरा सपना ररवाजों की सलाखों में

कुछ लम्हे, कुछ अल्फ़ाज़ | 15

i s ' k s ls va xz s thf ' k { k d];q o kf g U n hys [ k dlj Q+ j k t+ vg e nva lk j hi f ' pec a xk yds f lyh xq M+ h' k g jls r k Y yq dj [ k r s g S a Ab U g k s a u s mÙ k jc a xf o ' o f o |k y; ls va xz s thf o " k ;e s a L u k r d¼ c h ,v‚ u lZ ½dhf ' k { k k g k f lydhg S Alj Q+ j k t+ dhf y[ k hu T + e s a ;q o k vk s a ds c h p dk Qhyk s df ç ;g S a A' k k ;j hdj u sdk' k k S d c pi uls g hF k k ];q o k o L F k ke s a d+ n ej [ k r s ;s vk S j T + ;k n kc < + x;k A;s f tr u kf y[ k r s g S a mlls dg h a T + ;k n kn w lj k s a dk s i < + r s H k hg S a Aç L r q ri q L r db u dh ;q o ku T + e k s a dk, dla xz gg S A

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