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Story Transcript

लो क कथा एँ वृ दा ं वनसे

लॊक कथाएँ वृृंदावन से ---------------------

डॉ प्रशाृंत नृंदककशॊय ऩायीक

राजमंगल प्रकाशन An Imprint of Rajmangal Publishers

. ISBN : 978-9390894888

Published by :

Rajmangal Publishers Rajmangal Prakashan Building, 1st Street, Sangwan, Quarsi, Ramghat Road Aligarh-202001, (UP) INDIA Cont. No. +91- 7017993445 www.rajmangalpublishers.com [email protected] [email protected] ---------------------------------------------

प्रथभ सृंस्कयण : भार्च 2021 प्रकाशक : याजभृंगल प्रकाशन याजभंगल प्रकाशन बफल्डिं ग, 1st स्ट्रीट, सांगवान, क्वासी, याभघाट यॊड, ऄलीगढ़, ईप्र. – 202001, बायत फ़ॊन : +91 - 7017993445 --------------------------------------------First Published : March 2021 eBook by : Rajmangal ePublishers (Digital Publishing Division) Cover Design : Rajmangal Arts Copyright © डॉ. प्रशाांत पारीक This is a work of fiction. Names, characters, businesses, places, events, locales, and incidents are either the products of the author’s imagination or used in a fictitious manner. Any resemblance to actual persons, living or dead, or actual events is purely coincidental. This book is sold subject to the condition that it shall not, by way of trade or otherwise, be lent, resold, hired out, or otherwise circulated without the publisher’s prior consent in any form of binding or cover other than that in which it is published and without a similar condition including this condition being imposed on the subsequent purchaser. Under no circumstances may any part of this book be photocopied for resale. The printer/publishers, distributer of this book are not in any way responsible for the view expressed by author in this book. All disputes are subject to arbitration, legal action if any are subject to the jurisdiction of courts of Aligarh, Uttar Pradesh, India

श्री गॊबविं द के र्यणों भें एवं सभस्त हरय बक्तों कॊ सभर्ऩि त।।

प्रस्तावना वृंदावन जॊ कक ब्रजभंडल के नाभ से बी जाना जाता है वह बायत देश के ईत्तय प्रदेश याज्य भें ल्ित है। आस बूबभ के कण-कण भें बगवान श्री कृष्ण की मादें फसी रृइ है, मह ऩावन िान बगवान श्री कृष्ण की फाल लीलाओं का प्रतीक है, आस ऩावन धयती ऩय कइ भंर्दय औय देविान है जजनभें फांके बफहायी का भंर्दय, श्री याधा यभण का भंर्दय, एवं प्रेभ भंर्दय बवशेष अकषचण के केंद्र हैं, आनके ऄबतरयक्त केसी घाट, कृष्ण फलयाभ भंर्दय, कनजधवन, तथा यंगा जी भंर्दय बी ऄत्यंत यभणीम एवं श्रद्धालुओ ं कॊ अकबषि त कयने वाले िल है। प्रबतवषच कयीफ 3000000 से बी ऄजधक श्रद्धालु ब्रजभंडल की ऩावन धयती ऩय बगवान श्री कृष्ण के दशचन हेतु तथा ऩबवत्र मभुना जी भें स्नान कयने हेतु ऩरृंर्ते हैं। ऐसा भाना जाता है कक सॊलहवीं शताब्दी भें भुस्लिभ एवं र्हिं दू याजाओं की अऩसी सहभबत के ऩश्चात वृंदावन र्हिं दओ ु ं के 1 तीथच िान के रूऩ भें प्रजसद्ध रृअ औय अज बी मह िान कइ भहात्माओं का घय है जजन्होंने कलमुग भें बी बगवान कृष्ण के र्भत्कायों का साक्षात्काय ककमा है। मह ऩुस्तक "लॊक कथाएँ वृंदावन से" वृंदावन के बवर्बन्न भहात्माओं द्वाया कही गइ कथाओं का संकलन है, ब्रजभंडल की ऩावन धयती ऩय बगवान श्री कृष्ण के ऄनेकों र्भत्काय रृए हैं औय कइ भहात्माओं ने ईन र्भत्कायों का प्रत्यक्ष रूऩ से ऄनुबव ककमा है, एवं वृंदावन जाने वाले श्रद्धालुओ ं कॊ कइ प्रकाय की जशक्षाप्रद कथाएँ आन भहात्माओं के भुखायबविं द से सुनने कॊ बभलती है।

आन कथाओं भें बगवान श्री कृष्ण के ऄऩने बक्तों के प्रबत प्रेभ का, ईनकी लीलाओं का, बटके रृए लॊगों कॊ ईनके द्वाया भागच र्दखाए जाने का, जीवन के प्रबत ईनके संदेश का, तथा ऄन्य जशक्षाप्रद ककस्सों का वणचन है। मह सभस्त कथाएँ वृंदावन के भहात्माओं ने तथा ऄन्य हरय बक्तों ने सभम-सभम ऩय श्रद्धालुओ ं कॊ सुनामा है तथा ब्रजभंडल की ऩावन धयती तॊ श्री फांके बफहायी की ना जाने ककतनी कथाओं से बयी रृइ है,मह ऩुस्तक एक प्रमास है ब्रज भंडल की आन लॊक कथाओं कॊ साभान्य जन तक ऩरृंर्ाने का। ऩुस्तक भें संकललत प्रत्येक कथा ऩाठक कॊ ईच्चतभ भूल्यों के साथ जीवन जीने की सीख देती है औय मर्द आन भूल्यों कॊ हभ जीवन भें ईताय ऩाएं औय ईनका ऄनुकयण कय ऩाए तॊ कनश्चश्चत रूऩ से अऩ स्वमं कॊ श्री बगरयधय गॊऩाल के कयीफ ऩाएं गे। याधे याधे।

अभबस्वीकृती मह ऩुस्तक कइ व्यजक्त बवशेष के भागचदशचन एवं सहमॊग के ऩरयणाभ स्वरूऩ संऩन्न हॊ ऩाइ है भैं ईन सबी का हृदम से अबाय व्यक्त कयना र्ाहता रॄं। सवचप्रथभ भैं अबायी रॄं याजभंगल प्रकाशन का जजन्होंने आस ऩुस्तक कॊ ऄजधक से ऄजधक ऩाठकों तक ऩरृंर्ाने का फीडा ईठामा, ईनकी टीभ का ईत्साह औय भागचदशचन ऩुस्तक कॊ हरय बक्तों के ललए प्रेयणादामक औय अकषचक फनाने भें ऄत्यंत ईऩमॊगी साबफत रृअ। भैं वृंदावन के भहात्माओं का एवं बायत के प्रजसद्ध कथाकायों का अबायी रॄं जजनकी कथाओं कॊ सुनकय ईन्हें आस ऩुस्तक भें संकललत कयने की प्रेयणा भुझे बभली, भैं ऄत्यंत बवनम्रता ऩूवचक एवं अदय बाव से श्री भुकेश बायद्वाज जी, श्री यभेश ओझा जी, श्री भुयायी फाऩू, श्री देवकीनंदन ठाकुय जी भहायाज एवं ऄन्य कइ भहात्माओं का अबाय व्यक्त कयता रॄं। भैं अबायी रॄं ऄऩने ऩरयवाय जन का जॊ हभेशा भुझे आस प्रकाय की प्रेयणादामक एवं सभाज ईऩमॊगी ऩुस्तकें ललखने का ईत्साह प्रदान कयते हैं। ऄं त भें ऄत्यंत अदय ऩूवचक भैं कहना र्ाहता रॄं कक ऩुस्तक भें संकललत कथाएँ भेये द्वाया यजर्त नहीं है, मे कथाएँ ऄलग-ऄलग सभम ऩय ऄलग-ऄलग िानों ऩय बवर्बन्न साधु जन एवं भहात्माओं के भुखायबविं द से भैंने सुनी औय ऄऩने शब्दों भें आस ऩुस्तक भें ईनका संकलन ककमा है। डॉ प्रशाृंत नृंदककशॊय ऩायीक

अनुक्रभणणका शीषषक

ऩृष्ठ सृंख्या

सच्ची जशक्षा

9

श्री कृष्ण औय सुदाभा का ऄद्भुत प्रसंग

12

ऩयभ बक्त श्री बफल्व भंगल जी की कथा

16

तीन बभत्रों की कथा

21

याभ नाभ की भर्हभा

24

ऄजुचन का ऩुण्य

28

कबव यसखान का प्रसंग

32

कनजचला एकादशी व्रत की कथा

35

वृंदावन के वृक्षों का भहत्व

38

याजकुभायी की शतच

40

ऄमॊध्या के एक संत की कथा

43

श्री हनुभान जी औय यावण का ऄद्भुत मुद्ध

45

एक सच्चे बक्त की कथा

49

बगवानौ श्री कृष्ण ने जफ देह छॊडी

54

सीधे याभ-टेढे कृष्ण

57

एक गयीफ ब्राह्मण की कथा

59

ईलटे बजन का सीधा बाव

61

भहाबायत का मुद्ध सभाप्त हॊने के फाद कृष्ण औय बीष्म र्ऩताभह की ऄं बतभ वाताच

63

ऩहले सो फाय सॊर्ें औय तफ पैसला कयें.

66

भुसीफत का साभना

68

एक बक्त

70

भैं न हॊता, तॊ क्या हॊता?

72

कभच औय कभचपल

74

गुणों कॊ ऩहर्ानॊ

77

ऩुण्यों का भॊल

79

याभ से फडा याभ का नाभ क्यॊ

83

बगवान का बॊग

86

बगवान से सम्बन्ध

88

कृष्ण कृऩा

90

सेवायाभ औय भॊतीलाल दॊ घकनष्ठ बभत्र

92

जीवन फदलने वाली कहानी

97 ~~

सच्ची णशक्षा एक सभम की फात है ककसी जंगल भें एक साधु भहात्मा का अश्रभ था जंगल के फीर्ॊ-फीर् अश्रभ फरृत ही यभणीम एवं भन कॊ शांबत प्रदान कयने वाला था साधु भहात्मा ईस अश्रभ भें ऄऩने जशष्यों कॊ बवबवध बवषम अर्द ऩय जशक्षा प्रदान ककमा कयते थे। सबी बवद्याथी ईन साधु भहात्मा की फरृत आज्जत कयते थे एवं ईन भहात्मा की र्र्ाच दूय-दूय के याज्यों भें हॊती थी एक र्दन दॊ मुवक ईन भहात्मा के ऩास अए औय ईनका जशष्य फनने की आच्छा व्यक्त की मुवक ऄच्छे कुल औय ऩरयवाय से थे औय वह दॊनों बी ईन भहात्मा की र्र्ाच सुनकय ईनसे जशक्षा प्राप्त कयने हेतु अश्रभ ऩरृंर्े थे। भहात्मा ने सॊर्ा कक आन्हें जशष्य के रूऩ भें स्वीकाय कयने से ऩहले आनकी छॊटी सी कसोटी की जाए औय ईन्होंने ईन दॊनों से अश्रभ की एक कभये भें यखे दॊ बभट्टी के कफूतय लाने कॊ कहा। दॊनों कफूतय फरृत ही सुंदय थे तथा ईन ऩय बवजशष्ट प्रकाय की कलाकृबत की गइ थी जजससे वे फेहद र्भक यहे थे, भहात्मा ने एक एक कफूतय दॊनों मुवकों के हाथ भें र्दए औय ईनसे कहा कक अऩकॊ अऩके हाथ भें र्दए रृए कफूतय की गदचन तॊडनी है मुवकों कॊ लगा मह तॊ फरृत ही सयल काभ है औय आस से क्या जशक्षा हाजसल हॊगी औय आससे गुरु जी क्या कसोटी कयेंगे ककिंतु गुरु जी ने ईनके साभने एक शतच यखी भहात्मा ने कहा कक अऩकॊ आन कफूतयों की गदचन तबी तॊडनी है जफ अऩकॊ कॊइ देख ना यहा हॊ स्मयण यहे मर्द अऩकॊ आनकी गदचन तॊडते रृए ककसी ने देख ललमा तॊ अऩ ऩयीक्षा भें कनष्फल हॊ जाओगे जैसे ही अऩ गदचन तॊड लॊ भेये ऩास अऩ र्ले अना दॊनों मुवकों कॊ लगा मह तॊ फरृत ही सीधा साधा औय सयल काभ है औय दॊनों अश्रभ से फाहय की ओय र्ल ऩडे एक लोक कथाएँ वांदावन से | 9

मुवक अश्रभ से थॊडी दूय गमा औय ईसने देखा कक महां कॊइ देख ही नहीं यहा है दूय-दूय तक कॊइ र्दखाइ नहीं दे यहा है तॊ भैं गदचन तॊड देता रॄं औय गुरुजी से जाकय मह फात तुयत ं कहता रॄ। दूसया मुवक हाथ भें ईस कफूतय की कलाकृबत कॊ ललए रृए दूय जंगल भें र्ला गमा जफ वह एक घने जंगल भें ऩरृंर् गमा तॊ एक ऩेड के नीर्े वह फैठा औय कफूतय की गदचन तॊडने का पैसला ललमा ककिंतु जैसे ही वह गदचन तॊडने वाला था ईसकी नजय ईस ऩेड ऩय फैठी एक ऩक्षी ऩय ऩडी तॊ ईसने सॊर्ा कक ऄगय भैं महां गदचन तॊड दूंगा तॊ मह ऩक्षी भुझे देख यहा है भुझे कॊइ औय तयीका ऄऩनाना हॊगा कुछ बवर्ाय कयने के फाद वह मुवक ऩास की झाकडमों भें जाकय छु ऩ गमा ईसे लगा आन झाकडमों भें भुझे कॊइ नहीं देखेगा औय भैं गुरु जी का र्दमा रृअ काभ ऩूया कय ऩाउंगा ककिंतु ईसने देखा कक झाकडमों भें छॊटे-छॊटे कीट ऩतंगे औय भक्खिमां थी तॊ वह बी ईसे देख यही हैं मह सॊर्कय वह झाकडमों भें बी कफूतय की गदचन नहीं तॊड ऩामा कुछ सभम बवर्ाय कयने के ऩश्चात ईसे एक ईऩाम सूझा, ईसने एक गड्ढा खॊदा औय ईस गड्ढे भें फैठ गमा ऄफ ईसे लगा कक भुझे कॊइ नहीं देख यहा है तॊ ईसने ईस कफूतय की कलाकृबत की गदचन तॊडने का पैसला ललमा ककिंतु ईसे एक बवर्ाय अमा कक ऄगय भैं आस कलाकृबत की गदचन तॊड दूंगा तॊ आस कलाकृबत भें जॊ अं खें फनी है वह भुझे देख यही है औय मही सॊर् कय ईसने ईस कलाकृबत ऩय एक कऩडा डाल र्दमा औय जैसे ही वह ईसकी गदचन तॊडने कॊ रृअ ईसे एक औय ख्याल अमा की भेयी अं खें तॊ भुझे देख यही है आस कफूतय की गदचन तॊडते रृए तॊ ईसने ऄऩनी अं खें फंद कय ली ऄफ मुवक कॊ नाही कलाकृबत की अं खें देख यही हैं ना ईसकी खुद की अं खें ईसे देख यही है औय वह जैसे ही गदचन तॊडने कॊ रृअ भानॊ ईसके ऄं दय से अवाज ईठी कक ऄये भैं तॊ देख यहा रॄं औय वह लोक कथाएँ वांदावन से | 10

अवाज ईसके हृदम की थी कक भैं तॊ देख यहा रॄ। ऄफ वह मुवक ऩूणचतमा सभझ गमा कक गुरु जी की कसोटी ककस जशक्षा की तयप आशाया कय यही है वह मुवक ईस कफूतय की कलाकृबत कॊ लेकय गुरुजी के ऩास ऩरृंर्ा औय ईनसे कहा क्षभा कीजजएगा गुरु जी भैं अऩकी दी रृइ कसोटी ऩूणच नहीं कय ऩामा क्योंकक हय सभम कॊइ ना कॊइ भुझे देख ही यहा था ऄं त भें भुझे अबास रृअ कक ऄगय फाहयी दुकनमा भुझे नहीं देख यही तॊ भेये बीतय फैठी रृइ ऄं तयात्मा तॊ भुझे हभेशा देख यही है आसी कायणवश गुरु जी भैं अऩकी कसोटी ऩूयी नहीं कय ऩामा आस फात के ललए भैं अऩसे क्षभा प्राथी रॄं गुरुजी ने कहा हे नवमुवक तुभ आस कसोटी भें ऄसपल नहीं ककिंतु ऩूणचतमा सपल रृए हॊ औय मही जशक्षा आस कसोटी के भाध्यभ से भैं अऩ दॊनों कॊ देना र्ाहता था। हय एक भनुष्य कॊ मह स्मयण यखना र्ार्हए कक हभायी हय एक र्िमा औय कभच ऩय ऩयभात्मा की नजय है कॊइ बी कामच ईस ऄऩायशजक्त से छु ऩा रृअ नहीं है आसीललए कॊइ बी कामच ऄगय आस फात कॊ ध्यान भें यखकय ककमा जाएगा तॊ ऄनुजर्त कामच कयने से ऩहले हभाये कदभ स्वमं रुक जाएं गे। याधे याधे

लोक कथाएँ वांदावन से | 11

श्री कृष्ण औय सुदाभा का अद्भुत प्रसृंग हभ सबी बगवान श्री कृष्ण औय सुदाभा की भैत्री से ऩूणचतमा ऩरयजर्त है, ईनकी बभत्रता आस संसाय के ललए एक ऄनूठा ईदाहयण है तथा प्रेयणा स्त्रॊत बी है ,हभ सबी बलीबांबत ऩरयजर्त हैं ईस प्रसंग से जफ सुदाभा श्री कृष्ण से बभलने द्वारयका जाते हैं कृष्ण औय सुदाभा का वह बभलन सबी कॊ बावना से ओतप्रॊत कय देता है ककिंतु मह प्रसंग हभें बगवान श्री कृष्ण की ऄऩाय लीला का एक संलक्षप्त ऩरयर्म कयवाता है प्रसंग कुछ आस प्रकाय है। जफ सुदाभा बगवान श्री कृष्ण के ऩास द्वारयका भें कुछ र्दन रुकते हैं औय श्री कृष्ण ऄऩने फर्ऩन के बभत्र की अवबगत भें कॊइ कभी नहीं छॊडते दॊनों बभत्र घंटों ऄऩने फर्ऩन की औय गुरु संदीऩनी ऊबष के अश्रभ भें बफताए रृए सभम की स्मृबतमों ऩय र्र्ाच कयते रृए कबी हंसते हैं तॊ कबी-कबी बाव बवबॊय बी हॊ ईठते हैं बगवान श्रीकृष्ण बी ऄऩने बभत्र के साथ ऄजधक से ऄजधक सभम बफताते हैं फडे अनंद औय ईत्साह के साथ दॊनों का सभम व्यतीत हॊता है सुफह साथ भें नदी ककनाये स्नान कयने जाना बॊजन कयना ऄन्य जगहों ऩय बवर्यण कयना औय शेष सभम भें एक दूसये से फातें कयना भानॊ मही ऄफ ईनकी र्दनर्माच फन गइ थी। एक र्दन नदी भें स्नान कयने जाते सभम सुदाभा श्री कृष्ण से एक प्रश्न ऩूछते हैं की हे कृष्ण मह संसाय तुम्हें भामावी कहता है लीलाधय कहता है कुछ लॊग तॊ तुम्हें जादूगय बी कहते हैं तॊ भुझे बी तुम्हायी भामा का दशचन कयना है आस ऩय श्री कृष्ण ने जवाफ र्दमा कक सभम अने ऩय ऄवश्य ऐसा हॊगा ककिंतु ऄबी हभें शीघ्र स्नान कयके भहल जाना र्ार्हए क्योंकक भेयी याकनमों ने अज हभाये ललए बवजशष्ट व्यंजन फनाए हैं औय भुझे लोक कथाएँ वांदावन से | 12

फरृत बूख लगी है। जफ दॊनों बभत्र नदी ककनाये ऩरृंर्े औय स्नान की तैमायी कयने लगे तफ श्री कृष्ण ने सुदाभा से ऩूछा की तुम्हें माद है गुरु अश्रभ भें जफ हभ नदी ककनाये स्नान कयने जाते थे तफ एक शतच लगाते थे की नाक फंद कयके ऩानी भें डु फकी लगाएं गे औय जॊ ऄजधक सभम तक ऩानी भें यहेगा वह शतच जीतेगा तथा हायने वाले कॊ जीतने वाले की ऩूये र्दन हय फात भाननी हॊगी तुझे माद है मा तू बूल गमा आस ऩय सुदाभा ने ईत्तय र्दमा कैसी फातें कय यहे हॊ कृष्ण भैं अज बी सुफह ऄऩने गांव भें नदी भें स्नान कयने जाता रॄं औय मर्द हभ शतच लगाएं तॊ भुझे बवश्वास है भैं ही शतच जीत लूंगा आस ऩय दॊनों ने शतच लगाइ कक नाक फंद कयके दॊनों एक साथ ऩानी भें डु फकी लगाएं गे औय जॊ ऄजधक सभम तक ऩानी भें यहेगा वही बवजेता हॊगा। दॊनों बभत्रों ने ऄऩनी नाक फंद की औय ऩानी भें डु फकी लगाइ जैसे ही सुदाभा ने ऩानी भें डु फकी लगाइ ईन्होंने देखा कक ईनकी अं खों के साभने एक सुंदय नगय है ईस नगय भें लॊग नार् यहे हैं आधय ईधय बाग यहे तथा एक हाथी है जजस की सूंड भें तांफे का कलश है सबी ईस हाथी के असऩास भंडया यहे हैं सुदाभा जी फाहय कनकल कय गए औय ककसी से ऩूछा कक मह सफ क्या र्ल यहा है आस ऩय ईन्हें ईत्तय बभला कक हभाये याज्य का याजा भय गमा है औय मह हभाये नए याजा के र्ुनाव का तयीका है ईस हाथी की सूंड भें जॊ कलश है ईसभें गंगाजल है वह गंगाजल हाथी जजस ककसी ऩय बगय अएगा वही हभाया नमा याजा हॊगा आतनी ही देय भें वह हाथ ही सुदाभा के ऩास अमा औय ईसने गंगाजल सुदाभा ऩय बगया र्दमा सबी लॊग ईल्लास भें जॊय जॊय से जर्ल्लाने लगे नए याजा की जम हॊ नए याजा की जम हॊ सुदाभा ने कहा ऄये बाइ भैं एक ब्राह्मण रॄं भुझे आस याज लोक कथाएँ वांदावन से | 13

ऩाठ से क्या काभ आस ऩय एक व्यजक्त ने कहा की बवधाता ने अऩकॊ हभाये नए याजा के रूऩ भें र्ुना है ऄफ अऩकॊ आस याज्य की फागडॊय संबालना ही हॊगी कुछ बवर्ाय कयने ऩय सुदाभा ने सॊर्ा कक ऩूया जीवन एक गयीफ ब्राह्मण के तोय ऩय बफतामा है अज याजा फनने का भोका बभल यहा है तॊ ऄवश्य ही आसभें बी इश्वय की कॊइ आच्छा है औय सुदाभा जी ईस याज्य के याजा फन गए ऩूया र्दन ईनके याज्यार्बषेक सभायॊह भें फीता तथा बवर्बन्न भंर्त्रमों एवं सलाहकायों से ईन्होंने बेंट की शाभ कॊ वे ऄऩने भहल भें गए जफ भहल भें ऩरृंर्े तॊ एक सुंदय स्त्री ने ईनका स्वागत ककमा सुदाभा ने कहा देवी अऩ कोन आस ऩय ईस स्त्री ने कहा भैं अऩ की यानी आस ऩय सुदाभा ने कहा कक भैं ऩहले से ही बववार्हत रॄं तॊ दूसयी स्त्री कॊ ऄऩनी यानी के रूऩ भें कैसे स्वीकाय कय सकता रॄं तफ यानी ने कहा कक बवधाता ने अऩकॊ आस याज्य का याजा र्ुना है तॊ अऩकॊ भुझे बी स्वीकाय कयना ही हॊगा कुछ सभम बवर्ाय कयने के ऩश्चात इश्वय की भजी सभझकय सुदाभा ने यानी कॊ स्वीकाय कय ललमा। ऄफ सुदाभा फडे अयाभ से ईस याज्य का शासन कयने लगे भानव ऄऩने ऩुयाने वक्त कॊ बूल ही र्ुके हॊ कुछ भहीनों ऩश्चात यानी का स्वास्थ्य खयाफ हॊने लगा सबी प्रकाय के वैद्य औय हकीभ कॊ फुलामा गमा ककिंतु यानी की तफीमत भें कॊइ सुधाय नहीं अमा औय वह स्वगच जसधाय गइ जफ यानी के ऄं बतभ संस्काय की तैमायी हॊने लगी तफ सुदाभा के याज्य का प्रधानभंत्री ईनके ऩास अमा औय फॊला भहायाज हभाये याज्य का एक रयवाज है जफ यानी भय जाती है तॊ याजा कॊ ईसके साथ सता हॊना ऩडता है, सुदाभा ने कहा मह कैसा रयवाज है भैं आस रयवाज कॊ नहीं भानता भंत्री ने कहा भहायाज अऩकॊ हभाये याजा फनने का रयवाज ऩसंद अमा था औय अऩ याजा फने ऄफ मह रयवाज बी अऩकॊ कनबाना हॊगा सुदाभा फरृत लोक कथाएँ वांदावन से | 14

घफया गए औय वहां से बागने लगे भंत्री के कहने ऩय जसऩार्हमों ने ईन्हें ऩकडा दॊ जसऩार्हमों ने हाथ ऩकडे औय दॊ जसऩार्हमों ने ऩैय तथा ईस यानी की जलती जर्ता के साभने 123 कयके ईन्हें जलती जर्ता भें पेंका, सुदाभा जॊय से जर्ल्लाने लगे कृष्णा फर्ाओ औय एकदभ से ऩानी के फाहय कनकले ऄत्यंत घफयाए रृए औय लाल भुख से ईन्होंने श्रीकृष्ण की तयप देखा जॊ स्नान कय र्ुके थे औय एक वस्त्र से ऄऩना शयीय सुखा यहे थे सुदाभा कॊ देखकय ईन्होंने कहा की ककतनी देय से तुभ नदी भें थे भैं भानता रॄं कक भैं शतच हाय गमा ऄफ जल्दी र्लॊ भेयी याकनमां बॊजन ऩय हभाया आं तजाय कय यही होंगी। सुदाभा ने हाथ जॊडकय ऩूछा हे कृष्ण मह सफ क्या था आस ऩय एक हल्की सी भुस्कान के साथ श्री कृष्ण ने ईत्तय र्दमा कक ऄबी थॊडी देय ऩहले ही तुभने कहा था ना भुझे तुम्हायी भामा के दशचन कयने हैं तॊ भैंने तुम्हें थॊडे से दशचन कयवा र्दए कबी औय वक्त बभलेगा तॊ ऩूया दशचन कयवा दूंगा ककिंतु ऄबी हभें र्लना र्ार्हए सुदाभा जी अश्चमचर्ककत भुद्रा भें नदी भें खडे यह गए औय श्रीकृष्ण कॊ प्रणाभ कयते रृए कहा अऩ की लीला का कॊइ ऩाय नहीं धन्य हैं अऩ औय धन्य रॄं भैं जजसके ऩास अऩ जैसा बभत्र है। याधे याधे।

लोक कथाएँ वांदावन से | 15

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