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Story Transcript

फ़लहाल

(न&म,ग़ज़ल*,कुछ /ाल)

i

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Website: - www.booksclinic.com B.D. Complex, Near Tifra Over Bridge, Bilaspur, Chhattisgarh, India, 495001

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ii

फ़लहाल (न&म, ग़ज़ल*,कुछ /ाल)

अ1धक3 शमा5 iii

iv

आपस क9 बात एक शाम हॉ(टल म+ एक िश-क के फोन से अपनी माँ से बात करते ह:ए क-ा सातव< के एक ब=चे ने एक ?वाब देखा था िकताब का.. किवताओ ं कF... और उसकF माँ ने भी हाँ म+ हाँ िमलाया कF KयL नह< िलख सकता ....बस उसी ब=चे का एक ?वाब आपके हाथL पर है...'िफ़लहाल वैसे तो यह आपके और किवताओ ं के बीच म+ आ जाना ह:आ लेिकन ये पहली दफा है जब हमारा सामना हो रहा है तो मQ इतनी तो आज़ादी ले सकता हTँ और अगर िक़ताब आपके हाथ म+ हQ तो मQ यह भी मान सकता हTँ कF आपने उतनी ही आज़ादी मझु े दी भी है कF हम थोड़ी आपस कF बात कर सक+ । पहला हमेशा ख़ास होता है ...है ना जैसे पहला \ेम, पहली नौकरी, पहला घर वैसे ही है पहली िकताब का होना भी ' िफ़लहाल ' मेरी पहली िकताब है और हमारी बात हो पाने का ज़_रया भी इसम+ िलखा एक-एक श`द मझु े कह< न कह< लोगL से िमला है और के वल एक सbू धार कF तरह मQने श`दL को िपरोया है और पह:चं ने का ज_रया बना हTँ लेिकन इन सब के पीछे एक लंबा वe है अ-र से श`द, श`द से वाKय और वाKयL से किवताएँ बनने का तब जाकर किवताओ ं से िकताब हो पाना सभं व ह:आ है... और शायद आगे चलकर किवताओ ं म+ आप देख भी पाएं। मQने कुछ छुटपन कF किवताएँ भी िबना सधु ारे रखी हQ वैसी कF वैसी दरअसल मQ ख़दु ही उनकF सरलता के साथ छे ड़-छाड़ नह< करना चाह रहा था। बचपन का वैसे ही कुछ कम बचा रह जाता है हमारे पास, िजसे दोबारा वैसा िलख पाना ममु िकन नह< होता,तो बेहतर है उसको दिू षत नह< िकया जाना चािहए और जैसा वो मौिलक था एक बारह साल के ब=चे का वैसा ही िकताब म+ रखा भी ह:आ है। मेरा मानना है किवता कभी भी एक किवता बन कर नह< रह पाती वो एक साथी बन कर साथ रहती है इस िकताब म+ छपी बह:तेरी किवताएँ कई v

जागती रातL म+ मेरे साथ रही है,लंबे सफ़र म+ बस कF िखड़कF वाली सीट पर बैठकर साथ म+ मीलL कF दरू ी तय कF हQ तो कई किवताएँ टूटने से बचाए रखने म+,िहiमत जगाए रखने म+, और कई बार मेरे अदं र के कोतहू ल को बाहर िनकाल देने म+ मेरा साथ द< है.... और ये सारा कुछ लेकर मQ आपके सामने हTँ और अब महज़ दो एक पjनो कF दरू ी है...और वो भी तय होगी जब यहाँ तक आ ही गए हQ। वैसे भी के वल िलखी किवता पणू l नह< हो सकती उसका पणू l होना पाठक के होने पर िनभlर करता है माने आप पर ....ऐसी मेरी राय है। िकताब िकसी एक कF कभी नह< हो सकती उसे बह:त लोग बनाते हQ ' िफ़लहाल ' को बनाने म+ भी बह:त लोगL का हाथ रहा है उसम+ मेरी माँ िपता जी भी है िजनका भरोसा िहiमत देता है इन किवताओ ं को सामने लाने म+ .... जानता हTँ एक-एक का नाम िलख पाना संभव नह< है िफर भी अिधकnप यदु सर, साथlक भैया, दादू (डॉ जीवन यद)ु और मेरे तमाम दो(त िजjहLने मझु े सनु कर मेरे िलखने के जrबे को मज़बतू बनाया रखा और तमु ... बस...छोड़े जाता हTँ किवताओ ं के साथ इससे rयादा दख़ल नह* याद करते Bए

vii

दादी मझु े उठा कर बैठ जाना परछी पर मेरे जाने के बाद वो तके गी तेरा रा(ता िसकुड़ गई सनु ाई ऊँचा देता है धंधु ला िदखता है करवट नह< ली जाती है कुछ रटे श`द दोहराता है थथू ना मेरा पेशाब िनकल जाती है िब(तर पर कुछ याद नह< पर याद है सब कुछ तेरा चलना रोना मेरा घबराना और मर जाना बेटा बेटी का जाना और आना मेरा उनके हाथ उनका हँसना उनका जाना डर जाना मेरा िहiमत मेरी ब=चL का बढ़ना सबको देखा मQने एक-एक तो अब याद नह

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