9789391428464 Flipbook PDF


75 downloads 102 Views 4MB Size

Recommend Stories


Porque. PDF Created with deskpdf PDF Writer - Trial ::
Porque tu hogar empieza desde adentro. www.avilainteriores.com PDF Created with deskPDF PDF Writer - Trial :: http://www.docudesk.com Avila Interi

EMPRESAS HEADHUNTERS CHILE PDF
Get Instant Access to eBook Empresas Headhunters Chile PDF at Our Huge Library EMPRESAS HEADHUNTERS CHILE PDF ==> Download: EMPRESAS HEADHUNTERS CHIL

Story Transcript

-

Mk W f c uk s ndq ek j

अनमोल खजाना ----------

डॉ. बिनोद कुमार

राजमंगल प्रकाशन An Imprint of Rajmangal Publishers

ISBN : 978-9391428464

Published by :

Rajmangal Publishers Rajmangal Prakashan Building, 1st Street, Sangwan, Quarsi, Ramghat Road Aligarh-202001, (UP) INDIA Cont. No. +91- 7017993445 www.rajmangalpublishers.com [email protected] [email protected] ---------------------------------------------

प्रथम संस्करण : अप्रैल 2022 – पेपरबैक प्रकाशक : राजमंगल प्रकाशन राजमंगल प्रकाशन बबल्डिं ग, 1st स्ट्रीट, सांगवान, क्वासी, रामघाट रोड, अलीगढ़, उप्र. – 202001, भारत फ़ोन : +91 - 7017993445 --------------------------------------------First Published : April 2022 - Paperback eBook by : Rajmangal ePublishers (Digital Publishing Division) Copyright © डॉ. विनोद कुमार This is a work of fiction. Names, characters, businesses, places, events, locales, and incidents are either the products of the author’s imagination or used in a fictitious manner. Any resemblance to actual persons, living or dead, or actual events is purely coincidental. This book is sold subjAt to the condition that it shall not, by way of trade or otherwise, be lent, resold, hired out, or otherwise circulated without the publisher’s prior consent in any form of binding or cover other than that in which it is published and without a similar condition including this condition being imposed on the subsequent purchaser. Under no circumstances may any part of this book be photocopied for resale. The printer/publishers, distributer of this book are not in any way responsible for the view expressed by author in this book. All disputes are subject to arbitration, legal action if any are subject to the jurisdiction of courts of Aligarh, Uttar Pradesh, India

लेखक के दो शब्द मानवीय संवेदना के एक शायर ने ललखा है - “इश्क में वहदत का मजा बमलता है - इश्क सच्चा हो तो बंदे को खुदा बमलता है”। मानव जीवन का एक ऐसा अनमोल खजाना जजस खजाने से अं जान रहकर अजिकांश मनुष्य इस संसार से बवदा हो जाता है। हाथ में आया रतन लेककन कदर जानी नहीं फिर क्या लाभ उस रतन िन का जब हम उसका लाभ नहीं उठा पाये। वह अनमोल खजाना कहााँ और ककस रूप में है, लेखक के द्वारा इस रहस्य पर से पदाा उठा फदया गया है प्रस्तुत पुस्तक “अनमोल खजाना” में। कहा है - मंजजल पर आकर मंजजल को ढाँढ़ते हैं - ए कैसी बदनसीबी है कक खुद को ढाँढ़ते हैं” परी पुस्तक में लेखक के द्वारा यही कोजशश की गई है कक आपके जीवन का अनमोल खजाना बड़ी आसानी से आपको बमल जाये। अगर एक भी पाठक को जीवन का अनमोल खजाना बमल गया तो लेखक अपनी मेहनत को साथाक समझेगा। लेखक आभार प्रकट करता है राजमंगल प्रकाशन, अलीगढ़ (उ. प्र.) भारत और श्री शम्भ कुमार (एस.आई) ईश्वर चन्द्र बवद्या सागर (सागर इं िोटेक) श्री मती जचिं ता देवी (पत्नि) श्री संजय कुमार (जशक्षक) श्री मती रीता कुमारी (जशलक्षका) एवं श्री रामाशंकर साह वभनगामा के प्रबत जजनके मानवीय सौजन्य से यह पुस्तक - “अनमोल खजाना” प्रकाजशत हो सकी है। शुभकामनाओं के साथ लेखक का सादर प्रणाम अपने सुजि पाठकों को। बतजथ - 31 जनवरी 2022 सीतामढ़ी, बबहार

डॉ. बिनोद कुमार लेखक

बिश्व बिख्यात मानितािादी लेखक डॉ. बिनोद कुमार

अनुक्रमाणिका शीर्षक

पृष्ठ संख्या

भरोसा किस पर

7

िहााँ है भगवान

19

मनुष्य है क्या

29

दुखों िा असली िारण और कनवारण

36

प्रेम

42

अं धेरे में िौन

50

जीवन िा गणणत

58

आाँ खें ज्ञान िी

66

सपने िा सच

73

िमम और भाग्य

79

जाग पपया अब क्या सोवे

83

वविास िा असली मतलब

91

सफल जीवन िैसे

99

अनमोल खजाना

103

आम्रपाली िी अद्भुत िहानी

110

बुणि िी ताित

113

हमारे अन्दर िैसी क्षमताएाँ

121

बीरबल जब संिट में पड़ा

125

मूखम िौन

130

िौन सच्चा िौन झूठा

132

भरोसा ककस पर एक मौलवी साहब थे और एक पंकडत जी। दोनों के बीच बड़ी घकनष्ठ बमत्रता थी। िमा और भगवान के नाम पर अक्सर दोनों बमत्रों में तका बवतका होता रहता था। पंकडत जी कहते की भगवान जजतने दयालु हैं तुम्हारा खुदा वैसा दयालु नहीं है। फहन्द िमा ही सबसे बड़ा और सनातन िमा है। मौलवी साहब अपने िमा और अपने खुदा को ऊाँ चा ठहराने की कोजशश में लगे रहते थे जो पंकडत जी के ऊपर नागवार गुजरता था। दोनों बमत्र एक ही मकान में ककराये पर रहते थे। एक फदन मौलवी साहब ने पंकडत जी से कहा” पंकडत जी आज परीक्षा हो जाये की आपके भगवान दयालु हैं कक मेरे खुदा रहमती हैं।” पंकडत जी अनचाहे तैयार हो गये। मौलवी साहब ने कहा कक यह तीन मंजजला मकान है इसके छत पर से कदा जाये। अगर तुम बच गये तो हम समझ लेंगे कक यिीनन तेरा भगवान दयालु है। अगर मैं बच गया तो आपको मानना पड़ेगा की मेरा खुदा रहमत वाला है। दोनों बमत्र मकान की छत पर जा पहाँचे पंकडत जी कािी बुलिमान के साथ - साथ चतुर भी थे। मौलवी साहब अजिक छ: पााँच नहीं जानते थे। पंकडत जी ने मौलवी साहब से कहा” बमत्र पहले तुम कदो छत से देखता हाँ तेरा खुदा रहमत वाला है या नहीं। मौलवी साहब को खुदा पर कािी भरोसा था। मौलवी साहब ने या खुदा कहते हए मकान की छत से जमीन पर छलांग लगा दी। मौलवी साहब का बाल भी बांका नहीं हआ। मौलवी साहब ने कहा” पंकडत जी अब तुम कदो अब देखता हाँ तेरा भगवान तुझे बचाता है या नहीं। मेरे खुदा ने तो अपना प्रमाण दे फदया की वह ककतना रहमत वाला है। पंकडत जी भी कदे मकान की छत से कक हे भगवान मुझे बचा लेना। पंकडत जी का भरोसा भगवान पर यह सोचकर जाता रहा की भगवान को वैकुण्ठ िाम से आने में अनमोल खजाना | 7

समय लग जायेगा क्यों न संकट मोचन हनुमान जी को पुकारा जाये। पंकडत जी पुकारे हे हनुमान जी मुझे बचा लेना। फिर पंकडत जी को यह लगा की हनुमान जी कहीं भगवान जी की सेवा में होंगे तो कैसे आ पाएं गे। क्यों न भोले शंकर को पुकारा जाये क्योंकक वे तो भक्त वत्सल हैं। पंकडत जी भोले शंकर बचाना बोले ही तब तक जमीन पर बगर गये। पंकडत जी का दोनों पैर टट गया पंकडत जी ने भगवान को कोसते हए बोले, हे प्रभु मैं आपकी पजा अचाना बचपन से करता आ रहा हाँ फिर भी आप मेरी लाज नहीं बचा सके। आकाशवाणी हई कक हे पंकडत जी आपका भरोसा मुझ पर नहीं रहा मैं आपको बचाने दौड़ा लेककन तब तक आप हनुमान जी को बुलाने लगे तब मैं रुक गया। फिर पंकडत जी ने दोनों हाथ उठाकर हनुमान जी से बोले, “हे हनुमान जी आप तो संकट मोचन हैं फिर भी आप मुझे संकट से उबार न सके जबकक मैं प्रबतफदन आप की पजा करता हाँ। फिर आकाशवाणी हई की हे पंकडत जी मैं तो भगवान की सेवा करना छोड़ आपको बचाने दौड़ा लेककन आपका भरोसा मुझ पर से उठ गया तभी तो आप भोले बाबा को पुकारे। पुनः पंकडत जी हाथ उठाकर भोले बाबा से बोले औघडदानी भोले नाथ मैं तो बचपन से आपकी पजा अचाना और उपासना करता आ रहा हाँ इसके वाबजद भी आप मुझे नहीं बचा सके। फिर आकाशवाणी हई की जब तक मैं कैलाश छोडाँ तब तक तो आप जमीन पर बगर चुके थे। मुझे समय ही नहीं बमला आपको बचाने के ललए। वास्तबवकता तो यह है कक मनुष्य की दृफि में भगवान वह है जो मनुष्य की मनोकामनाओं को पणा करता रहे। मनुष्य की दृफि में भगवान ऊपर वाला है जो वैिुंठ में क्षीर सागर में सपों की शय्या पर शयन करते हैं। मनुष्य की दृफि में भगवान वह है जो संकट काल में भक्तों के पुकारे जाने पर भक्तों को संकट से उबार लेता है। मनुष्य की दृफि में भगवान वह है जो अनमोल खजाना | 8

मनुष्य के पापों और पुण्यों तथा कमों का लेखा जोखा रखता है। पापी को नका तथा पुण्यात्मा को स्वगा में भेजता है। लोगों की दृफि में भगवान वह है जो पंकडत जी के मन्त्रों के आवाहन से मनुष्य कनबमि त मबति यों में समा जाता है। मनुष्य की दृफि में भगवान वह है जो सभी मनुष्यों का भाग्य ललखता है। ककसी का भाग्य अच्छा तो ककसी का भाग्य खराब ललखता है। मनुष्य की दृफि में भगवान वह है जो अपने भक्तों पर दया करता है। मनुष्य की दृफि में भगवान वह है जो िमा की हाकन होते देख अवतार लेते हैं। दुिों का संहार करते हैं और सज्जनों की रक्षा करते हैं। मनुष्य की दृफि में भगवान वह है जो जीव जन्तु से लेकर मनुष्यों के जन्म मृत्यु का फहसाब रखता है। मनुष्य के कमाानुसार नाना प्रकार के योकनयों में भेजता रहता है। मनुष्य की दृफि में भगवान वह है जो नारी - पुरुष का जोड़ी बंदी करता है। यह मनुष्यों की मान्यताएं एवं िारानएं हैं भगवान के संबंि में। हजारों वषों से भगवान आज तक वाद - बववाद का बवषय बना हआ है तभी तो परी दुकनया में 300 से भी अजिक िमा हैं। वेद है, पुराण है उपकनषद एवं आनेकानेक िमा शास्त्र है इसके वाबजद भी मनुष्य आज तक एक कनष्कर्म पर नहीं पहाँच पाया है कक भगवान है या नहीं। अगर है तो वह कैसा है और कहााँ रहता है। आइए एक कहानी सुनते हैं बुि की एक बार बुि और उनके जशष्य आनंद और स्वास्ति भ्रमण पर कनकले। राह चलते ही बुि के पास एक व्यजक्त आया। बुि से उस व्यजक्त ने कहा, “महात्मा मैं आपसे यह जानना चाहता हाँ कक भगवान (ईश्वर) है या नहीं है बुि ने कहा, “इस सृफि में ईश्वर नाम की कोई चीज नहीं।” वह व्यजक्त बुि पर बवश्वास करके यह मान ललया की भगवान या ईश्वर नाम की कोई चीज नहीं है इस सृफि में। व्यजक्त अपने रास्ते चला गया बुि भी आगे चलने लगे। कुछ दरी तय करने बाद एक दसरा व्यजक्त बुि के पास आकर पछा, अनमोल खजाना | 9

“हे महात्मा क्या ईश्वर है ? बुि बोले कक तुम्हें क्या लगता है कक ईश्वर है या नहीं ? उस व्यजक्त ने कहा, “यह तो मुझे बकवास लगता है अगर ईश्वर होता तो फदखाई देता”। बुि ने कहा, “एक ईश्वर ही है दसरा कोई नहीं है।” वह व्यजक्त बुि का यह उत्तर सुनकर चला गया। उसने सोचा कौन पड़े इस झंझट में। बुि फिर आगे बड़े। एक तीसरा व्यजक्त आया बुि के पास। तीसरे व्यजक्त ने पछा बुि से, हे महात्मा, आप तो देखने में ज्ञानी पुरुष लगते हैं कृपा कर हमें यह बतायें कक ईश्वर है या नहीं ? बुि कोई उत्तर न देकर वहीं बैठ गये और अपनी आाँ खें बंद कर ली। वह व्यजक्त कािी परेशान था इश्वर को जानने के ललए ईश्वर की खोज में कनकल पड़ा। बुि ने अपनी आाँ खें खोली और खड़े हो गये। पुनः आगे की सिर पर चल फदये। यह देखकर आनंद और स्वास्तस्त को आश्चया हुआ कि एक ही प्रश्न का तीन उत्तर आखखर बुि ने क्यों फदया। स्वास्तस्त ने बुि से पछा, “आपने एक ही प्रश्न का तीन उत्तर क्यों फदया। बुि ने कहा, “इस संसार में कुछ ऐसे लोग हैं जो दसरे की कही हई बात को मानकर चलते हैं जानना नहीं चाहते। कुछ ऐसे लोग हैं जजनका अपना मन जो कहता है उसी के आिार पर चलते हैं। तीसरे प्रकार के वे लोग हैं जो ककसी भी चीज को जानना चाहते हैं। मानने और जानने में बड़ा िका है। मान लेना अं ि बवश्वास पर आिाररत है। मााँ जानती है कक उसके पुत्र का फपता कौन है जबकक फपता मानता है कक वह उसका पुत्र है। तीसरा व्यजक्त ईश्वर को जानना चाहता था इसललए मैंने संकेत में कहा की आाँ ख बंद करके अपने अं दर में ईश्वर को खोजो। वास्तबवकता तो यह है कक इस संसार में बहत ही थोड़े से बगनती के लोग होते आये हैं जो ईश्वर को जानना चाहते हैं और जान पाते हैं। बुि, महावीर, कबीर, तुलसी, दादु, दररया जैसे लोग जान पाते हैं ईश्वर को। आगे जाने ईश्वर है या नहीं ? यहााँ सवाल फहन्द और मुसलमान होने का नहीं है। अनमोल खजाना | 10

यहााँ सवाल ईश्वर और खुदा पर भरोसा करने का नहीं हैं। यहााँ सवाल है ईश्वर या खुदा हैं या नहीं ? अगर हैं तो ककस रूप रंग का है। अगर हैं तो कहााँ हैं ? क्या उसे जाना जा सकता है या नहीं ? उस भगवान या खुदा को जानने से हमें क्या बमलेगा ? यहााँ सवाल मानने और जानने का है। एक कहानी आती है कश्यप मुकन और बुि की एक बार बुि कश्यप मुकन की कुकटया पर पहाँच।े कश्यप मुकन ने बुि से आज रात यहीं ठहर जाने का अनुरोि ककया। बुि ने उनका अबतथ्य स्वीकार कर ललया। बुि ठहर गये कश्यप मुकन के आश्रम पर सबेरा हआ। कश्यप मुकन अपने जशष्यों को सत्संग सुनाने लगे। बुि वहााँ से कुछ दरी पर एक नदी बह रही थी उसके ककनारे पर जाकर बैठ गये। कश्यप मुकन सत्संग में बुि को नहीं देखे तो उन्हें लगा कक शायद बुि चले गये। मुकन ने सत्संग सुनाना बंद कर बुि की खोज में कनकले। नदी के ककनारे बुि बमल गये। बुि से मुकन ने पछा, “बुि आपने सत्संग में भाग क्यों नहीं ललया बुि ने कहा, “मैं यह सोचकर सत्संग में नहीं था कक अगर मेरे मन में कोई प्रश्न उठता सत्संग सुनकर जजसका जवाव नहीं बमलता तो आपकी मान हाकन होती। बुि बात को आगे बढ़ाते हए कहा, “यह जो नदी बह रही है अगर इसके उस पार जाना होगा तब हमें इसके ललए क्या करना चाफहए ? मुनी ने कहा, “अगर पानी कम हो तो हम पैदल ही नदी पार कर जाएं गे। अगर पानी कांिे से ऊपर है तो हमें नाव का सहारा लेना होगा। अगर हम तैरना जानते हैं तो तैरकर उस पार चले जाएं गे”। बुि ने कहा, “ठीक इसी तरह संसार सागर से पार जाना है तो भरोसा खुद पर ही रखना होगा। अगर हम दु:खों की नदी में डब रहे हैं तो खुद ही प्रयास करना होगा दुःख की नदी को पार करने के ललए। सत्संग वह है जजससे हमारे अं दर बववेक जग जाये। बववेक के प्रकाश में हमें साफ़ - साफ़ फदखाई पड़ेगा की असली दुःख और असली अनमोल खजाना | 11

सुख क्या है। सत्य अनुभबत का बवषय है वणान करने का नहीं। कश्यप मुकन को बात समझ में आ गई। झुक गये बुि के चरणों में और बवजिवत बुि से दीक्षा लेकर फभक्षुक बन गये। वास्तबवकता यही है। मौलवी साहब और पंकडत जी दोनों में बववेक का अभाव था इसललए दोनों ने अपने कनजी स्वाथा के ललए भगवान को ही दाव पर लगा फदया। एक वही है चाहे आप उसे भाषा में कोई भी नाम क्यों न दें इससे उसे कोई िका नहीं पड़ता। जो सवा व्यापक है वह कहााँ से आयेगा और कहााँ जायेगा। भाषा की उत्पजत्त तब हई जब सभ्यता का बवकास होने लगा। अलग - अलग भाषाओं में उसे अलग - अलग नाम से पुकारा जाता है। वह फदव्य शजक्त न ककसी को मारती है और न ककसी को बचाती है। वह फदव्य शजक्त न ककसी पर नाराज होती है और न ककसी पर खुश होती है। उसे मनुष्यों के सारे फिया - कलापों से कुछ लेना देना नहीं हैं और न वह सत्य ककसी मनुष्य या प्राणी के कमों का लेखा जोखा रखता है। न वह ककसी एक जगह रहता है। वह तो सवा व्यापक है। परन्तु उस फदव्य सत्ता को अपने मन बुलि से समझना चाहता है। जो अनंत है अनाफद है और अखंड है, जो शजक्त स्वरूप है। जजसके द्वारा रजचत यह ब्रह्माण्ड ही अनंत है उसको ही हम मनुष्य सीमाओं में बााँि देते हैं। जो अनाफद और अनंत हैं। उसको हम अपने सांचे में ढालते रहते हैं। जो न स्त्री है और न पुरुष है उसे हम स्त्री पुरुष रूप में पजते हैं। जैसे पानी में मछली होती है वैसे ही हम सभी प्राणी उस परमात्मा के अं दर ल्ित हैं। सबसे आश्चया तो यह है कक हम उसमें हैं और वह हम में है प्राण शजक्त के रूप में। यह फदखाई पड़ा कबीर को तब कबीर ने कहा - बाँद समाना समुन्द्र में यह जाने सब कोय समुंद्र समाना बाँद में बुझे बबड़ला कोय। परन्तु यह हमें तब तक फदखाई नहीं पड़ेगा जब तक यह हमें अपनें अं दर में उतरना नहीं आयेगा। यह बात तब तक समझ में नहीं आयेगी जब तक हमारा बववेक नहीं अनमोल खजाना | 12

जगेगा। बववेक तब तक जाग्रत नहीं होता है जब तक सत्य की अनुभबत नहीं हो जायेगी। बववेक वह प्रकाश है जजसमें स्पि फदखाई पड़ता है कक क्या अच्छा है क्या बुरा है आज संसार की जो हालत है उसके पीछे अबववेकी मन का हाथ है। एक सत्य का ज्ञान न होने के कारण ही संसार में लड़ाईयााँ होती आ रही है। कभी िमा के नाम पर तो कभी जाती के नाम पर कभी क्षेत्र वाद के नाम पर तो कभी रंगभेद के नाम पर। इन सारी चीजों के पीछे अबववेकी मन खड़ा है। इस संसार में कोई एक ऐसा व्यजक्त नहीं है जो प्रेम शांबत का अफभलाषी न हो परन्तु बववेक जाग्रत न होने के कारण असली प्रेम शांबत की पहचान या परख नहीं कर पाता है। जजन्हें अवतार या मयाादा पुरुषोत्तम रूप में दुकनया जानती है जब वे सीता की खोज में वन - वन की ख़ाक छानते छानते थक गये तब थक कर बवश्राम करने लगे। भाई लक्ष्मण उनकी सेवा करने लगे। लक्ष्मण जी के मन में एक संदेह पैदा हआ की जो अवतार है वे इतना बवचललत कैसे हो सकते हैं। लक्ष्मण जी ने अपने भाई राम से पछा, “हे भाई जरा हमें माया क्या है और सत्य क्या है इस संबंि में कृपा कर बताएं । राम जी ने समझाया कक हे भाई जहााँ तक मन बुलि की पहाँच है वह माया है - गो गोचर जहााँ लबग मन जाई - सो सब माया जानहाँ भाई। मैं अरु तोर तोर तै माया - जेफह बस ककन्ही जीव कनकाया। भावाथा है मेरा और तेरा यही माया है। इसी तेरा और मेरा के पीछे परा संसार पड़ा रहता है जजसके िलस्वरूप लड़ाईयााँ होती आ रही है। सारे दुखों का कारण माया है यानी मेरा और तेरा है। जसिा मनुष्य के मन से मेरा और तेरा का भाव बवदा हो जाये मनुष्य के दुखी होने का कोई कारण नहीं बचेगा। राम - रावण युि क्यों हआ ? रावन की बहन थी सपानखा। रावण को झटका लगा कक मेरी बहन की नाक कट गई यह मेरे ललए प्रबतष्ठा का सवाल है। रावन ने सीता की चोरी न की होती तो रावण - राम युि नहीं होता। युि अनमोल खजाना | 13

हआ मेरा तेरा के चक्कर में। महाभारत भी मेरा तेरा के चक्कर में हआ। द्रोपदी पांडवों की पत्नि थी। न द्रोपदी दुयोिन को देखकर हाँसती न द्रोपदी का चीरहरण होता न महाभारत होता न खन की नफदयााँ बहती। क्योंकक द्रोपती पांडवों की पत्नि थी। न िृतराि अपने पुत्र का पक्ष लेता न महाभारत होता। मेरा बेटा, मेरी पत्नि, मेरा भाई, मेरा बाप, मेरा िन सम्पजत्त, मेरा िमा, मेरी जाबत, मेरा देश यानी सारा चक्कर मेरा तेरा का है। मेरा तेरा में ही सारा संसार उलझा हआ है। दसरी बात जो राम ने कही लक्ष्मण से - व्यापक एक ब्रहा अबवनाशी - सत चेतना िन आनंद राजश। भावाथा है कक हे भाई एक ही सत्य है जो सवा व्यापक है जो अववनाशी अथाात जजसका कभी नाश न होता है, वही चेतन है, वही आनंद का भंडार है। अगर जसिा इस एक बात को मनुष्य समझ जाये या मनुष्य को इसका अनुभव हो जाये तो संसार की सारी लड़ाईयों समाप्त हो जायें परन्तु अज्ञानता वश बववेक के अभाव में हम मनुष्य सत्य असत्य की परख नहीं कर पाते हैं जजसके कारण हम मेरा तेरा के चक्कर में नाना प्रकार के दु:खों को भोगते रहते हैं। यहााँ एक बहत बड़ा सवाल पैदा होता है कक जब राम अवतारी पुरुष थे ज्ञान के भंडार थे तो फिर सीता की चोरी होने पर इतने अिीर और दु:खी क्यों हो गये ? राम भी मनुष्य के रूप में आये थे। मनुष्य का यह प्राकृबतक स्वभाव है जो जन्मजात है। मनुष्य को हाँसना रोना कोई जसखाता नहीं है। जब मनुष्य दु:खों में होता है तब रोता है और जब सुख में होता है तब हाँसता है।। यहााँ सवाल यह है कक राम अं दर से दु:खी थे या दु:खी होने का मात्र अफभनय कर रहे थे क्योंकक जब उनके अं दर यह ज्ञान था कक एक सत्य है जो सवा व्यापक है और सभी के अं दर है जो आनंद का भंडार है तब फिर वे सीता के ललए इतने अिीर क्यों हो गये की वन में पशु पक्षी पेड़ पौिों से पछने लगे कक तुम लोगों ने सीता को देखा है - हे खग मृग मिुकर श्रेणी अनमोल खजाना | 14

तुमने देखी सीता मृगनैनी जबकक राम चररत मानस में उन्हें दसरों को ब्रह ज्ञान देते हए देखा जा सकता है। ए बातें सवाल खड़ा कर देती हैं राम पर। जब वे भगवान बवष्णु के अवतार थे तो फिर अपनी पत्नि और भाई के प्रबत इतना मोफहत कैसे हो गये। इसका उत्तर कबीर देते हए कहते हैं - माया मुई न मन मुवा मरर मरर गया शरीर, आशा तृष्णा न मुई कह गये दास कबीर। कबीर कहते हैं कक मनुष्य का मन और माया कभी नहीं मरती है मरता तो शरीर है। जब तक मनुष्य शरीर िारी है जब तक मन माया जीबवत है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कक जब हमारे साथ कोई घटना घटती है तब चाहे हम लाख ज्ञानी हों हम अिीर और दु:खी हो जाते हैं। दसरों को उपदेश देना तो बड़ा ही सरल है परन्तु अपने जीवन में अपने ही उपदेश को सिली भत करना बड़ा मुस्तश्कल है। आज तक मनुष्यों के साथ यही होता आ रहा है। लोग एक दसरे को संकट की घड़ी में समझाते आ रहे हैं। लोग एक दसरे को कहते हैं कक जो होनी थी सो हई अब िैया रखें संतोष करें। राम के साथ यही बात हई क्योंकक राम भी मलतः मनुष्य ही थे। इस संसार में कोई ऐसा एक भी व्यजक्त नहीं है जो कभी दु:खी और कभी सुखी नहीं हआ हो। एक कहानी आती है एक दु:खी औरत का एक स्त्री थी एक गााँव में उसका बेटा मर गया जजसके कारण वह कािी दु:खी और जचिं बतत रहती थी। उसे मालम हआ की एक बहत ही पहाँचे हए संत उसके गााँव में आये हैं जो लोगों के दु:खों को दर कर देते हैं। मफहला पहाँची संत जी के पास। वह मन में इतना अशांत थी कक संत जी का अफभवादन भी करना भल गई। संत जी ने उससे अपने पास आने का कारण पछा। मफहला ने अपनी परी राम कहानी सुना दी कक मेरे पबत भी मर चुके हैं और एक ही लड़का था वह भी परलोक जसिार गया है। मफहला ने संत जी से कनवेदन ककया कक अनमोल खजाना | 15

vk ys [k la xz g

e Book

Ava i l a bl e

ForSal ei nt heI ndi anSubcont i nentonl y

j k te a x y i z dk ’ k u

Get in touch

Social

© Copyright 2013 - 2024 MYDOKUMENT.COM - All rights reserved.