जहा ँ चा हतहै
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सफ़र
जह ाँ च हत है ---------
सफ़र
राजमंगल प्रकाशन An Imprint of Rajmangal Publishers
ISBN : 978-9391428877
Published by :
Rajmangal Publishers Rajmangal Prakashan Building, 1st Street, Sangwan, Quarsi, Ramghat Road Aligarh-202001, (UP) INDIA Cont. No. +91- 7017993445 www.rajmangalpublishers.com
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प्रथम संस्करण : अप्रैल 2022 – पेपरबैक प्रकाशक : राजमंगल प्रकाशन राजमंगल प्रकाशन बबल्डिं ग, 1st स्ट्रीट, सांगवान, क्वासी, रामघाट रोड, अलीगढ़, उप्र. – 202001, भारत फ़ोन : +91 - 7017993445 --------------------------------------------First Published : April 2022 - Paperback eBook by : Rajmangal ePublishers (Digital Publishing Division) Copyright © सफ़र यह एक काल्पनिक कृति है। िाम, पात्र, व्यवसाय, स्थाि और घटिाएँ या िो लेखक की कल्पिा के उत्पाद हैं या काल्पनिक िरीके से उपयोग ककए जािे हैं। वास्तकवक व्यनियों, जीकवि या मृि, या वास्तकवक घटिाओं से कोई भी समाििा कवशुद्ध रूप से संयोग है। यह पुस्तक इस शित के अधीि बेची जािी है कक इसे प्रकाशक की पूवत अिुमति के बबिा ककसी भी रूप में मुद्रिि, प्रसाररि-प्रचाररि या बबक्रय िहीं ककया जा सकेगा। ककसी भी पररस्थस्थति में इस पुस्तक के ककसी भी भाग को पुिकविक्रय के ललए फोटोकॉपी िहीं ककया जा सकिा है। इस पुस्तक में लेखक द्वारा व्यि ककए गए कवचार के ललए इस पुस्तक के मुिक/प्रकाशक/कविरक ककसी भी िरह से लजम्मेदार िहीं हैं। सभी कववाद मध्यस्थिा के अधीि हैं, ककसी भी िरह के कािूिी वाद-कववाद की स्थस्थति में न्यायालय क्षेत्र अलीगढ़, उत्तर प्रदेश, भारि ही होगा।
खूबसूरत शायर वसीम बरेलवी के नाम
कववता क्या है? कबवता क्या है? शब्दों में भाव ककस तरह उतरते हैं? यादें ककस प्रकार वततमान की चौखट पर दस्तक देती हुई कल्पनाओ ं का आकार ले लेती हैं? कबवता से जुडे हुए सभी सवाल प्रबतक्षण अपना रूप बदलते हैं। वे कभी कबीर की माटी बनकर कुम्हार को आडे हाथों लेते हैं तो कभी मीर का धुआँ बनकर ददलो-जाँ की रग-रग में समा जाते हैं। जजस प्रकार सददयों से जीव-आत्मा के संबंध में बवचार जारी हैं। कभी जीव, आत्मा की तुदि का साधन बनता है तो कभी आत्मा, जीवन के तमाम पहलुओ ं को समेटती हुई पार हो जाती है या कभी वह पार ही ददखाई देती है। वह कहाँ से आती है? ककतनी पार होती है? अब इन सवालों का तो कोई पार नहीं। हर जवाब अपने अधूरप े न की सीमा इन सवालों के साथ जोडता चला जाता है। सवाल और अजधक मुखर होते जाते हैं। तब आगे चलकर कहीं कबीर की माटी कनगुतण का राम गढ़ लेती है तो कहीं मीर का धुआँ इश्क़ का रूप लेकर पूरे आलम पर छा जाता है। ठीक उसी प्रकार कला के महत्त्वपूणत आयाम जैसे सौंदयत बोध, रस और आं नद आदद भी हमेशा से बवचार के बबिं दु रहे हैं।
शब्द से भाव, भाव से सौंदयत बोध अथवा रस अथवा आं नद की यात्रा ककतनी सुगम है और ककतनी जकटल? यह जानने के ललए कबव काग़ज़ पर खुशबू उतारने की कोजशश करता है। और कहीं बेनाम फूलों के सहारे, मधुमक्खियों द्वारा तैयार आनंद रूपी शहद तक पहुँचना चाहता है। जैसे जीवन की खूबसूरती आत्मा या जजजीबवषा में देखी जा सकती है ठीक वैसे कबवता का जमाल एहसासात की अबवरल धारा में कनहारा जा सकता है। कब आत्मा, एहसास में ढल आती है? और कब एहसास, जजजीबवषा को सींचता हुआ सौंदयत के नए-नए उपमान गढ़ता चला जाता है? रस के मागत में कभी हसीन वाददयाँ खखलखखलाती हैं, कभी रंगीन मोर रक़्स भरते हैं तो कभी आँ सुओ ं की क़तारें फूट पडती हैं। कलाकार इन सभी नज़ारों का दृिा भाव से रसास्वादन करता हुआ मंजज़ल की ओर चलता चला जाता है। सभी भावों में सबसे सुंदर बोध है प्रेम का। जजस तरह जीवन के दाशतकनक पक्ष में आत्मा का अस्तस्तत्व है ठीक उसी प्रकार जीवन के सामाजजक, सांस्कृबतक आदद पक्षों में प्रेम को देखा जाना चादहए। इश्क़ सामाजजक मनुष्य का आधारभूत अं ग है और इसी से समाज में फैले हुए तमाम प्रकार के रोगों को दूर ककया जा सकता है। प्रेम में डू बकर, बहुत ही सरलता से जीवन का ममत समझा जा सकता है। मानवता की राह में सबसे खूबसूरत पडाव प्रेम है जो
हरदम हमारे साथ रहता है। मेरा ललखना इन्साकनयत से प्रेम करना है। पंकज से सफ़र बनने का सफ़र अभी शुरू हुआ है जहाँ मंजज़ल भी एक सफ़र ही है। इस ककताब में हुई ककसी भी प्रकार की भूल के ललए क्षमाप्राथी हँ। धन्यवाद्। - सफ़र
ग़ज़लें
अनुक्रमणिका शीर्षक
पृष्ठ संख्या
दिल में एक मक़ाम है मौल़ा
15
आते-ज़ाते बेग़ानों पर कौन करे विश्व़ास भल़ा
16
रस्मे-फ़ुक़त क़ा कोई और बह़ाऩा भी नहीं
17
ये मेरी ख़ाक क़ा खस़ाऱा है
18
एक उमर की पगडंडी पर छोट़ा रस्त़ा आय़ा है
19
िो अपने आप से म़ुज़्तर ज़ऱा नहीं होत़ा
20
म़ुझसे कौन पऱाय़ा मेऱा
21
मेरे ग़म पर हँसने ि़ालों आओ िेखो कैस़ा हँ मैं
22
खखल रही ख़्व़ाब में कली जैसे
23
कौन करे विश्व़ास रे जोगी
25
जल्वों की मस्ती में स़ाकी डोल सत़ाइश कौन करे
26
रक़्से-िहशत को जी च़ाहत़ा है मगर
27
िो दिल को लफ़्ज़ क़ा पैकर कऱार िेत़ा है
28
लबों से इश्क़ ज़़ादहर क्यों नहीं होत़ा
29
आब़ाि ग़मों की सूरत और बस्ती है िीऱान सखी
30
ख़ाक कर िे िेह क़ा हर ऱाग सरगम जोवगय़ा
31
हर पल ज़ख़्मों की रंगत में लम्ह़ा-लम्ह़ा तीर हुआ
32
कहीं आँ सू भी गर हो ज़ान ऱाहत में
33
पहले तो िल िल आते हैं
34
खय़ाले-िस्ल नहीं और कहीं विस़ाल नहीं
35
िेख फस़ानों क़ा भोल़ापन जब हमने यह ज़ान ललय़ा
36
जब कभी हमसे प्य़ार होऩा है
37
ससफ़ कह़ानी गढ़ते ज़ाओ और कोई ककरि़ार नहीं
38
मन की गठरी खोल रे स़ाधो
39
यूँ मोहब्बत की ढ़ाल है म़ुझमें
40
मैं लम्हों क़ा एक ससत़ाऱा मेरी म़ुश्किल कौन कहे
41
िि़ आखखर कह़ा नहीं ज़ात़ा
42
यूँ अधूरे सि़ाल लौट आए
43
जैसे आए थे िीि़ाने िैसी ि़ुकनय़ा छोड़ चले
44
ये ज़मीं और ये आसम़ाँ स़ाऱा
45
पलक को छोड़कर ये नफरतें ये तीरगी अज़़ाब की
46
दिल में कोई ग़ुम़ान है ज़ाऩाँ
48
और तो आखखर इस ि़ुकनय़ा में क्य़ा बनते हैं
49
ऐ ख़ुि़ा इस तरह इब़ाित क्यों
50
धीरे-धीरे ऱाह बढ़ेगी मंसज़ल ख़ुलती ज़ाएगी
52
उसके होंठों पे ब़ात क़ुछ तो है
53
कैसे कहँ ये ि़ाककआ भी ग़ुफ़्तगू में है
54
सजस कऩाअत से तीर आय़ा है
55
मंसज़लों क़ा नूर पल-पल च़ाँिनी में खखल रह़ा
57
रफ़ाकत क़ा ररश्त़ा कनभ़ाऩा पड़ेग़ा
58
उसक़ा दिल में घर होग़ा
59
ब़ुझती य़ाि बिलते गेसू ठहऱा है िीि़ार कह़ाँ
60
हम-स़ुखन कोई हम-नि़ा है क्य़ा
61
उन्हें हम़ारी मोहब्बत पे एतब़ार आए
62
िो जो फनक़ार हम रहे होंगे
63
जैस-े जैसे रस्ते आए िैसे मंज़र ओढ़ ललए
64
कौन स़ुलगत़ा है ऱाहों में
65
िेह की कच्ची म़ाल़ा में सब मोती, फूल दपरोते हैं
67
हम-सफर म़ान क़ुछ कह़ा मेऱा
68
जब-जब ख़्व़ाब सँि़ाऱा होग़ा
69
चऱाग़े-अक़्ल ब़ुझ़ात़ा है यूँ ज़म़ाने क़ा
71
ककसी आि़ाज़ में ढलकर त़ुम्ह़ारी य़ाि आती है
72
एक त़ुम्ह़ारी आस है य़ाऱा
73
प्रेम को िो कनख़ार िे य़ा-रब
74
इस तरफ िररय़ा न कोई ध़ार है
75
जब-जब ब़ात हुई बवग़य़ा की तेरी य़ािें चूमीं हैं
76
टू ट गय़ा है य़ार सफर में
77
ग़म वमले ऩा िि़ा वमले स़ाथी
78
िो म़ुसव्विर कम़ाल करत़ा है
80
कैस़ा ठोर ठठक़ाऩा है
81
ककसी को रूप से रंगत की ओर ज़ाऩा है
83
मन में ख़्व़ाब सज़ाए होंगे
84
रोशनी क़ा शजर कह़ाँ ज़ाऩाँ
85
रफ़्त़ा-रफ़्त़ा नूर ब़ुझेग़ा श़ाम ढलेगी आँ चल पर
86
तेरी य़ािें मश़ाल है जोगी
87
ज़ाते-ज़ाते क्यों न जह़ाँ से दिल की ब़ाज़ी ह़ारी ज़ाए
89
मोहब्बत इक कय़ामत इश्क़ क्य़ा कीजै
90
सोचकर ये ज़ान में कैस़ा ग़ज़ब खटक़ा रहे
91
आँ खों की ज़ाकनब तन्ह़ा-तन्ह़ा होते हैं
92
इश्क़ दिल क़ा शब़ाब है कोई
93
िो नूर ऩाज़ ललए दफर कम़ाल ही न रहे
95
शहर में िो गली नहीं वमलती
96
जल़ाकर सजस्म की हर श़ाख ब़ािल हो नहीं सकत़ा
97
जब िो उनसे वमल आत़ा है
98
तहों की ख़ाल से होते हुए ग़ुज़रऩा है
99
रंग स़ारे नूर से नौश़ाि कर
100
ज़ख़्म लफ़्ज़ों की स़ाँसों में भरत़ा हँ मैं
101
ख़ुिी के ब़ाि भी उल्फफत में श़ावमल दिल अगर होत़ा
102
बेज़ान सरीखे आँ चल पर जब प्रेम क़ा आलम छ़ाएग़ा
103
सफर में पहले-पहल एतब़ार आत़ा है
104
कौन रुक़ा है िर पर स़ाथी आऩा है तो आओ त़ुम
105
ढल रह़ा च़ाक पर बिन मेऱा
106
कनखरते ख़्व़ाब लफ़्ज़ों से त़ुम्ह़ाऱा ि़ास्त़ा होऩा
107
ये रफ़ाकत ये ज़ाँ इब़ाित भी
108
ज़ख़्म ऩासूर बन गय़ा श़ायि
109
ज़ाने ककतने अफस़ानों में जीत़ा हँ और मरत़ा हँ
110
कभी हय़ात में श़ावमल कभी ज़ुि़ा होत़ा
111
ििे-ग़म पर लग़ाम िे स़ाकी
112
दफरते-दफरते भटक ज़ुनूँ में िेह क़ा जंगल प़ार ककय़ा
113
स़ुख़रू तन ग़ुल़ावबय़ाँ म़ुझसे
114
छोड़ के ज़ाएग़ा हर ग़म को ि़ुकनय़ा के िीऱाने में
115
ये ब़ात और के अं िर नहीं गय़ा हँ मैं
116
ज़ुस्त़ुजू में अगर नहीं होते
117
कह़ाँ तलक ये मोहब्बत तेरी वमस़ाल रहे
118
ज़ान में आय़ा जी पकनह़ारी
119
हमने अपऩा ि़ुखड़़ा रोय़ा त़ुम क्यों ज़ाँ रंजीि़ा हो
120
लगत़ा है ज़ाऩा पहच़ाऩा
121
है ख़ुि़ा दफर सनम कनह़ाँ क्यों है
122
जीते जी इस जीिन क़ा सच ससफ़ ग़ुज़़ाऱा ज़ाऩा है
123
म़ुझमें ख़ुलत़ा ऱाम है मेऱा
124
दिल में एक मकाम है मौला मेरी मंजज़ल राम है मौला।
मुझको मुझसे छीन ललया है तेरा ही इक नाम है मौला। कैसे खरीदूँ तन की माटी इतना ऊँ चा दाम है मौला। ध्यान लगा ले उसका ज्ञानी सबसे उजला धाम है मौला। एक पलक में जचत को सँवारे बाली उम्र तमाम है मौला। ढलती आँ खों में रानाई प्रेम, खुमारी, जाम है मौला। चाँद उगा दे मन के भीतर देख 'सफ़र' की शाम है मौला। मक़ाम= ठहराव,
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