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Story Transcript

कविता-सं ग्रह

कवि

अलोक रंजन

Title : Qalam ki Dawat Author : Aalok Ranjan Published By

Anjuman Prakashan

942, Mutthiganj, Prayagraj, 211003 www.anjumanpublication.com [email protected] Printed and bound in India Paperback, First published by Anjuman Prakashan in 2022 ISBN : 978-93-91531-25-6 Copyright © Aalok ranjan 2022 Publishing rights reserved : Anjuman Prakashan 2022 Cover & Typeset by Anjuman Prakashan Price in india: 200.00 The author asserts the moral right to be identified as the author of this work This book is a work of Poetry. Names, characters, places, and incidents are the product of the author’s imagination. Any resemblance to actual persons, living or dead, events, or locales is entirely coincidental. All rights reserved. No part of this book may be reproduced or transmitted in any form or by any means, electronic or mechanical, and including photocopying, recording, or by any information storage and retrieval system, without the written permission of the Publisher, except where permitted by law.

समर्पण सब आप ही का है, जब मैं ही आपका हूँ । आपको समर्पत! बडी माूँ। मेरी इच्ा ना होने पर भी आप मुझे गोद में उठाकर ज़िद से शिक्षक के पास धर आती थी,ं मेरी पढाई के लिए। आज आप पास नही ं हैं मगर आपकी पकडाई हुई राह बहुत प्ारी िग रही है। बस यह कक आपकी कमी बहुत खिती है। माूँ, आपने हमेिा मुझे अपनी म़िज़ी का करने कदया, तभी तो आज िह हूँ जो होने की इच्ा रही। आपका मेरे साथ होने से ही मैं सं घर्षों से टू टकर भी जुड जाता हूँ और पुनः चि पडता हूँ अपने पथ पर, आपकी उूँ गलियाूँ थामें। वपता जी, आपकी बडी ख़्ाकहि थी, मैं भी आपके दोस्त के बेटे की तरह कहदं ी में बात करूँ । मैं उस बचपन के दौर में के िि क्षेत्ीय बोिी (अंगगका) ही बोि पाता था। आज आपके आिीिावाद से कहदं ी में बोिने और अपने विचारो ं को लिखने भी िगा हूँ । मगर सुनने के लिए आप नही ं हैं। आज आपके ना होने पर आपका महत्व समझ आता है। माँ जानकी देवी और परता स्व. गुदर राय जजनोंने मुझे अनमोल जीवन ददया एवं बड़ी माँ स्व. सातो देवी जजनकी पनश्छल ममता और अरार करुणा के साये में सं तार की टीस का कभी बोध नहीं हुआ। आर तीनों को मैं अरनी लेखनी काव्य-गुच्छ समर्रत करता हँ ।

मेरी क़लम की ज़बाँ काग़ज़ के घर यह जो 'क़लम की दावत' है ललखा वही, जो ददल, ददमाग़ और देश की हालत है मािूम ना था कक क़िम का यूूँ काग़़ि पर चिना ककताब का रप िे िेगी। किर िोगो ं ने कहा, 'काग़़ि-क़िम की गहरी दोस्ती से ही तो ककताब जन्म िेती है।' यक़ीनन, आज जब यह ककताब की िक्ल में है तो कवि मन मातृत्व की खुिी और जोि से भर आया है। साथ में िं का भी बनी हुई है और यह दूर तब होगी जब आप सबकी प्रवतकरिया गमिेगी। क़िम जब भी उठी तो अंत करके रुकी। ऐसे ही एक-एक कर बनी िह सारी कविताएूँ हैं इसमें। जब जो देखा, भोगा और महसूस ककया उसे ही बस लिख कदया। आिा करता हूँ मेरी ककताब आपके यहाूँ प्ार भरी जगह पायेगी। अब जो भी है जैसा भी है आपके सामने है। क़िम से ककताब तक की इस यात्ा में और भी नाम हैं िागमि, जजनके ज़िरि के वबना मेरी सारी कविताएूँ और यह ककताब अधूरी है:मैं िुरिगु़िार हूँ ! अपने पररिार िािो ं का, जजनोनं े मुझे मेरे सपनो ं को जीने कदया। मेरे पं ख काटे नही ं बल्कि आसमानो ं में उडने की खुिी छू ट दी। मैं िुरिगु़िार हूँ ! उन तमाम गुरजनो ं का, जजनोनं े मुझे शिक्षा-दीक्षा और दवु नया की समझ दी और सबसे बडी बात यह कक, मुझे सीखने के योग्य बनाया। विश्व के उन सभी िेखको,ं कवियो ं और साकहत्यकारो ं का जजनकी रचनाओ ं को पढने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ तदपु रांत मेरे व्यक्तित्व को रचा और आज उनकी रचनाएूँ मुझे कु छ रचने को प्रेररत करती रहती हैं। मैं िुरिगुजार हूँ ! पद्मश्ी से सम्ावनत रीता गांगि ु ी मैम, एन. एस.डी. के पूिवा वनदेिक, िेखक, ि रंग वनददेिक प्रो. देिेंद्र राज अंकुर सर, किल्म और रंगमं च के बेहतरीन अशभनेता, िेखक, रंग वनददेिक ि गायक पीयूर् गमश्ा सर, अशभनय के जादूगर मनोज बाजपेयी सर और एक बेहतरीन अशभनेता, िेखक, रंग वनददेिक ि एन.एस.डी. के अवतथथ प्राध्ापक आथसफ़ अिी हैदर खान सर का । आप सभी गुरजनो ं के सावनध् में रंगमं च को पढना, समझना, सीखना और प्रयोगात्मक मं चन करना मेरे लिए सौभाग्य की बात

है। आज मेरे िेखन के इस छोटे से प्रयास में आप सबो ं का मागवादिवान और आिीिावाद रपी दीपक ने मुझमें विश्वास और उम्ीद को जगाया है। जजससे मेरी ककताब और मैं हम दोनो ं वनखर गए हैं। मैं आप सबो ं के प्रवत वििेर् आभार प्रकट करता हूँ ! मैं िुरिगु़िार हूँ ! अपने रंग गुर सं तोर् भैया (डॉ. सं तोर् राणा, प्रोफ़े सर, िररष्ठ रंग वनददेिक, अशभनेता और िेखक) का, जो मेरे जीिन में रंग गुर, बडे भाई, अशभभािक और एक अच्े दोस्त की भूगमका में रहते हैं। उनसे मैंने अशभनय, जीिन और रंगमं च से सं बं थधत तमाम ची़िो ं के गुणो ं को सीखा और आज भी सीखता रहता हूँ । मैंने बडे-बडे कवियो ं की कविताओ ं को सही से पढना, बोिना और समझना भी सिवाप्रथम उनी ं से सीखा है। आज मेरे लिखने पर उनसे गमिी िुभकामना में कही बात, "अब तुम वबबं ो ं को समझने िगे हो। कविता अच्छी है िोगो ं को पसं द आयेगी।" मेरे लिए ककसी पुरस्ार से कम नही।ं मैं िुरिगु़िार हूँ ! मनोरंजन मधुकर भैया (‘‘नटककया’’ सं स्ा अध्क्ष, िररष्ठ रंगकमज़ी) जजनोनं े हमेिा मेरे काम को सराहा और कदि से साथ कदया है। आप सकहत ‘नटककया’ पररिार को बहुत-बहुत िुकरिया ! मैं िुरिगु़िार हूँ ! मदन दा (मदन द्रोण उफ़वा मोहन कु मार जी, जो रंग वनददेिक, अशभनेता, मं च सज्ाकार और एक अच्े मेकअप आर्टस्ट हैं) का, जजनकी डाूँट और िटकार ने मुझे रंगमं च के क़ावबि बनाया। उस िक़्त बहुत बुरा िगता था मगर अब समझ आता है कोई भी बाग़ मािी के बग़ैर िि-िू ि नही ं सकता। आपके थसखाए रंगमं च के सभी अनुभि आज काम आ रहा है। मैं िुरिगुजार हूँ ! विजय भैया (विजय कु मार रंगकमज़ी और पेिे से पत्कार हैं) का, जीिन के उतार-चढाि के हर मोड पर बडे भाई की तरह मेरी मदद की है। इनकी डाूँट में अथधकार और अपनापन है। इनकी सुरीिी आिा़ि ने मुझ बेसुरा को भी सुर में िा कदया। बात रंगमं च के िुरुआती दौर की है जब इनका सावनध् ने मुझे रंगमं च में जगह कदिाई । िह यात्ा अब तक जारी है। मैं िुरिगु़िार हूँ ! दीपक भैया (दीपक थसना जी, िररष्ठ रंग वनददेिक,

अशभनेता, िेखक और पेिे से अथधितिा) का, जजनके सावनध् में कई भूगमकाओ ं को मं च पर जजया है और बुगधिजीिी मं च के ज्ान मं थन में ज्ान रपी अमृत का स्ाद चखने का अिसर गमिता रहा है। इनका मेरे जीिन में हमेिा बडे भाई और अशभभािक की भूगमका से सं बिता गमिती रही, जो मुझे मेरे पथ पर चिने को म़िबूती देती है। मैं िुरिगु़िार हूँ ! अमन भैया (अमन भारती: एक बेहतरीन थसनेमैटोग्राफ़र) का, जो मेरे द:ु खो ं में सबसे ज़ादा दःु खी और मेरी खुिी में सबसे ज्ादा खुि होने िािे, मेरे तमाम सुख-द:ु ख के साथी अ़िी़ि गमत् जो हमेिा मुझे प्रोत्ाकहत करते रहते हैं। मैंने इनके 'अिाइि िॉट वपक्चसवा' स्टू कडयो में बैठकर बहुत-सी कविताएूँ लिखी है। इतना ही नही ं बहुत-सी कविताओ ं के लिए तो विर्य भी इनोनं े ही कदया है और जजतनी भी कविताएूँ लिखी सबसे पहिे इनोनं े ही सुना और अपनी समीक्षा रपी प्रवतकरिया भी दी है। मेरी रचनाओ ं को आप तक पहुूँ चाने में इनकी अहम भूगमका है, वबना इनके यह कायवा सं भि नही ं था। साथ ही मेरे अनुज अशभनीत रौिन, अमन िमावा और आयवान राज आप सबने कदि से साथ कदया है, मेरी इन कविताओ ं को ककताब की िक्ल तक के सफ़र में। आप सबो ं को हार्दक िुकरिया ! मैं िुरिगु़िार हूँ ! श्ीमती िीति देिा (MLPS ZEE SCHOOL बेगूसराय के प्रधानाचायावा मैम) का, जजनोनं े मुझे बचो ं को अशभनय थसखाते रिम में अिग-अिग विर्यो ं पर गीत और नाटक लिखने की चुनौवतयाूँ दी,ं जजससे मैं िेखन को आ़िमा सका और खुद में विश्वास जगा पाया। आपके इस भरोसे के लिए आपको मैं कदि से धन्यिाद देता हूँ । मैं िुरिगु़िार हूँ ! पल्लि दादा (अशभनेता ि िेखक, NSD पास आउट 2019 ) मेरे सीवनयर का, जजनोनं े मुं बई से मेरे पढने के लिए साकहत्य की ककताबें भेजते रहे। आपका यह अगाढ प्रेम मुझे अमीर बना गया है। मेरे कदि के दायरे में आपने जो जगह दखि की है उस पर आपका सदा हक़ रहेगा। आपके कोमि हृदय और सात्त्वक मन में जो आपने जगह दी है मुझ,े िह अनमोि है मेरे लिए। आपकी सोच, समझ और सचापन प्रेरणा देती है मुझ।े इस ककताब में िागमि 'ज़िदं गी' और 'ज्ान का बोझ' िीर्वाकिािी दोनो ं कविताओ ं को जन्म भी तो आप

ही ने कदया है मैंने तो के िि उसे पािा है। धन्यिाद दादा! मैं िुरिगु़िार हूँ ! मेरे प्ारे बैचमेटस् अशभनेता अशभर्ेक कौिि, विकास गौतम, जुनैद राथर, पाथवा प्रवतम ह़िाररका और वनददेिक भूर्ण सं जय पाकटि का। यह सभी िह चार कोना और एक छत है जहाूँ मैं छु पता और खुिता हूँ , सुनता और सीखता हूँ , आप सबो ं के प्रेम िािी बगगया में खेिता और उन्मुक्त्ा से जीता हूँ । जब बहुत दख ु ी होता हूँ इनी ं मखमिी कं धो ं पर थसर कटका देता हूँ । तब इन सभी के हाथ के िि आूँसू ही नही ं पूछते बल्कि खुिी का ़िररया बन जाते हैं मेरे लिए, उनके बढे हुए मददिािा हाथ। तन, मन और धन आप सबके यह तीन रप हैं जो मेरे लिए सं जीिनी है। इन सबो ं ने सारी कविताओ ं को पढा और बहुत सारे साथवाक सुझाि भी कदए । जजस पर अमि होना बहुत ही िाजजब था । अशभर्ेक कौिि के मुख से वनकिी पहिी ध्ववन, "लिखते हो अच्ा है इसे पब्लिि भी कराओ" और िही ं से थसिथसिा िुर हुआ और आज मूतवा रप आपके सामने है। अशभर्ेक कौिि और विकास गौतम आप दोनो ं ने तो कई कविताओ ं की पं क्तियो ं में उिटिे र कर उसे पहिे से ज़ादा सुं दर और सहज बना कदया है । प्रूिरीकडगं जैसे असाध् कायवा में भी पूरा सहयोग ककया है। भूर्ण सं जय पाकटि आप ने कु छ िीर्वाक में बदिाि कर उस कविता की महत्ा और बढा दी है। जुनैद राथर और पाथवा प्रवतम ह़िाररका आपने कविता और मेरे प्रवत प्रेम िुटा कर मुझ िक्कड को धनी होने का एहसास कराया है। आप सबो ं के प्रवत वििेर् आभार और ढेर सारा प्ार !!!!!! मैं िुरिगु़िार हूँ ! मेरे साथ NSD में पढ रहे मेरे पूरे बैचमेटस् , सीवनयसवा, सभी जूवनयसवा और साथ में रंगकमवा ककए हुए उन तमाम रंगकर्मयो ं का, जजनके साथ के अनुभिो ं ने मुझे बहुत कु छ थसखाया है। मैं िुरिगु़िार हूँ ! सुधांिु िेखर भैया का, आप म्ूज़िक क्षेत् के होने के बाि़िूद साकहत्य में आपकी गहरी रुचच, आपको आटवा कहस्टट्ी का अध्यन और समझ है। आपके साथ घं टो ं बातें करना बहुत कु छ थसखा जाता है। मैं िुरिगुजार हूँ ! छापकी का, जजनकी िेखनी ने मुझे प्रेरणा दी और भािनाओ ं को िब्द, जो आपस में जुडकर कविताएूँ बनती गईं। मैं िुरिगु़िार हूँ ! फ़े सबुक के उन तमाम गमत्ो ं का, जजनोनं े मेरी रचनाओ ं पर बेहतरी का सुझाि और अपने स्ेह रपी कॉमेंटस् से मुझे हमेिा प्रोत्ाकहत

करते रहे हैं। मैं िुरिगु़िार हूँ ! 'अंजमु न प्रकािन' का, जजनोनं े एक किाकार को कवि होने का अिसर कदया। और सबसे ज़ादा आप सबो ं का िुरिगु़िार हूँ ! ऐसे बहुत से नाम हैं जजनका यहाँ जज़क्र नही ं है, वह ऐसा ना समझें दक हमें उनकी द़िक्र नही ं है। आप ही की ख़ुशब़ुओ ं से महकते हैं हम वरना क़ाबबल ना था मैं, दक आलोक कोई इत्र नही ं है

आपका आलोक रंजन निांकुर कवि

अक्खड, िक्कड और भुिक्कड मरहम हल्ी-सा, गमचवा-सा तीखा, हूँ मीठा िक्कर गुण और दोर् घुिे हुए हैं हूँ थोडा आदमी, थोडा जानिर चुनौवतयो ं से िडना, बस इतनी-सी औकात है पर जगी आूँख के सपनो ं से रो़ि होती मुिाक़ात है ज़ादा न कहना है खुद के बारे में बस इतना, कक बेगूसराय में जन्मा, पिा, बढा, और पढा आज 'राष्ट्ीय नाट्य विद्ािय' नई कदल्ली का छात् हूँ किा है कमवा, किा है पूजा, किा ही मेरी जान है बाकी मेरी रचना कहेगी, बस इतनी-सी पहचान है

मुसीबतें सोनार होती हैं, खरा सोना चुनती हैं वपघिाती उनी ं को, जजनें कु छ बनना होता है

आलोक रंजन की रहली ककताब रर.... “इधर आिोक रंजन ने कु छ कदनो ं पहिे 'क़िम की दाित' नामक िीर्वाक से एक कविता-सं ग्रह मुझे पढने के लिए भेजा। 2018 से मेरा शिष्य है िेककन यह मेरे लिए सुखद आश्चयवा था कक िह कविताएूँ भी लिखता है। बाद में उसने बताया कक जब िगभग दो िर्वा िॉकडाउन के कारण अपने घर पर बं द होकर रहना पडा तो ऐसी स्स्वत में उसकी आंतररक छटपटाहट ने कविता के रप में अशभव्यक्ति पाई। पहिी रीकडगं के बाद मुझे िगा कु छ कविताएूँ बहुत अच्छी होने के बािजूद कु छ पर अभी काम करने की ़िररत है और मैंने इस धारणा को आिोक के साथ िेयर ककया। जब िगभग एक साि बाद उसने दोबारा मुझे कविताएूँ पढने को दी तो वनजश्चत रप से मुझे िगा कक उसने उनकी पुनरवाचना की है। कु ि गमिाकर िगभग साठ कविताओ ं में दो स्र साफ़-साफ़ कदखाई देते हैं। एक स्र है: प्रेम कविताओ ं का । जजनके अिग-अिग रप कदखाई पडते हैं। और दूसरा स्र है: आम आदमी की पीडा का। जो समकािीन राजनीवतक व्यिस्ा, समाज और पररस्स्वतयो ं के भीतर से मुखररत होकर हमारे सामने आता है। मुझे अच्ा िगा की प्रेम कविताओ ं के मुकाबिे आम आदमी की कविताओ ं का पिडा भारी है। सबसे अच्छी बात यह है कक यह कविताएूँ ककसी भी तरह की नारेबाजी, प्रोपेगेंडा और बाहरी िोर-िराबा से मुति हैं। इसीलिए बहुत गहरी बन पडी हैं। मैं आिोक रंजन को इस पहिे कविता-सं ग्रह 'क़िम की दाित' के लिए बहुत-बहुत िुभकामनाएूँ देता हूँ ! और मुझे विश्वास है िह आगे भी इसी तरह लिखना जारी रखेगा।“

कदनांक: 06-04-2022

देिेंद्र राज अंकुर

"मैंने आिोक रंजन की "क़िम की दाित" पढी। तीखी िेखनी है। कविता, गीत, ग़़िि और िे'र की सम्म्लित अनुभूवत देती है। मेरी िुभकामनाएूँ उनको !" पीयूष मिश्रा (अशभनेता, िेखक, रंग वनददेिक ि गायक) "वप्रय आिोक को इस पुस्तक के प्रकाशित होने के अिसर पर मेरी ढेर सारी िुभकामनाएूँ " िनोज बराजपेयी (अशभनेता)

अनुक्रम 1-घुिना 2-आिोक 3-ज्ान का बोझ 4-स्ती 5-औरत का पेट 6-सं िेदना का बीज 7-़िररया 8-अचरज! 9-अव्यति-सुख 10-भूख और वनिािा का प्रेम 11-ढाई आखर का प्रेम 12-इश्क़-ए-हक़ीक़ी 13-प्रेम की दक ु ान 14-उसका क्ा? 15-क़िम को उम्र क़ै द 16-ज़िदं ा िाि 17-िह मेरी सपना और मैं उसकी नीदं 18-सं विधान की प्रेयसी 19-बडी अजीब बात है! 20-आूँखो ं के हाथ 21-इं क़िाब 22-हमारी िडाई

16 17 19 20 21 22 23 24 28 32 36 37 38 39 40 42 43 45 48 51 52 53

23-अंतहीन बहस 24-नदी से बातचीत 25-दास्ताूँ 26-चेहरे 27-जूते 28-उसकी पहचान 29-आूँसू और नमक 30-झठू का सच 31-ज़िदं गी 32-हाय रे! 33-बािमुकं ु द जी का हाथ 34-अपने-पराये 35-आदतें 36-अथधकारो ं की हत्या 37-खूनी समय 38-हक़ गमि जाने से 39-तुमसे गमिके 40-अस्ाब 41-जीना िुर कर दूँ ू 42-तेरी हर खुिी में 43-बेनाम ररश्ा 44-मना कर दूँ ू गा 45-सािधान रहना है 46-जीतना

54 59 61 68 69 70 71 72 74 75 76 78 79 80 82 83 85 88 90 94 95 97 98 99

47-पत्थर 48-भ्रम 49-प्रिं सा के मायने

100 101 102

50-FANTASY

103

51-िह कौन है? 52-बरसाती मेंढक 53-मैं भी प्रेम करता हूँ 54-दोस्त 55-एहसास

104 105 106 108 109

56-WISH!

110

57-कै से कर िेती हो तुम? 58-सत्य

111 112

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