प्यासी नदी
लेखक : रानू
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Pyasi Nadi By : Ranu
प्यासी नदी वर्ाा कुछ देि पहले ही रुकी थी, स्ट्फि भी दिू या आस-पास कहीं न कहीं अवश्य स्ट्बजली कौंध जाती थी। स्ट्बजली की कौंध में दिू औि आस-पास के पवात यंू झलक पड़ते जैसे स्ट्कसी पहाड़ी सदंु िी की छाती से आच ं ल सिक गया हो। यह पहाड़ी इलाका रवयं एक सन्ु दिी है। इस सन्ु दिी ने इस समय अपनी काली घनी लटें स्ट्बखिा कि सािे वाताविण को अपनी लपेट में ले िखा है। वर्ाा आज स्ट्दन भि होती िही थी औि जब शाम होते-होते यह थमी थी तो िाजीव यंू ही टहलने के स्ट्लए सड़क पि स्ट्नकल आया था। तब घास्ट्टयों से उठते बादल समीप से गजु िकि जाने कहां एकत्र हो िहे थे। पिन्तु िाजीव इस बात से स्ट्नस्ट्िन्त था, यहां के वाताविण से अपरिस्ट्चत। इस इलाके में वह आज ही सबु ह आया था औि आते ही उसे उसके िहने योग्य एक कोठिी स्ट्मल गई थी... एक बंगले की चहािदीवािी से सटकि। बंगले के बढ़ू े चौकीदाि ने ही उसे यह कोठिी स्ट्दला दी थी। कोठिी में उसने पग िखा ही था स्ट्क वर्ाा आिम्भ हो गई थी। शाम को यह रुकी तो उसे भख ू भी सता िही थी पिन्तु वाताविण इतना सहु ावना था स्ट्क स्ट्दन भि की सािी उकताहट भल ू कि वह सड़क पि दिू तक स्ट्नकलता चला गया। वह यहां नौकिी के स्ट्लए आया था। नौकिी मनष्ु य को कहां-कहां भटकने पि स्ट्ववश नहीं किती? इस इलाके से बहुत दिू , वािाणसी क्षेत्र में, स्ट्सगिा गांव के समीप उसका अपना एक छोटा-सा मकान था जहां अपने बढ़ू े बाप औि बीमाि मां की देख-िे ख में वह अपनी तीन छोटी बहनों को छोड़कि चला आया था। उसके स्ट्पता ने उसकी पढ़ाई पिू ी किने के स्ट्लए अपना छोटा-सा मकान भी स्ट्गिवी िख स्ट्दया था। प्यासी नदी
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लगभग साल भि पहले की बात है जब उसने वािाणसी की सनु सान सड़क पि एक सेठ जी को गण्ु डों से लटू ने से बचाया था। रुपए के लालच में गडंु े शायद उनका खनू भी कि देते पिन्तु ऐन समय पि उसका वहां पहुचं जाना ही उनके स्ट्लए विदान सास्ट्बत हुआ था। सेठजी ने कृ तज्ञ होकि उसे दो हजाि रुपए देने चाहे तो उसने इनकाि कि स्ट्दया। ‘अभी मैं बी. कॉम. कि िहा ह।ं ’ उसने कहा था, ‘इसके बाद मझु े नौकिी की आवश्यकता पड़ेगी। यस्ट्द सम्भव हो तो उस समय यहां मझु े अवश्य कोई नौकिी दे दीस्ट्जएगा।’ ‘यहां?’ ‘जी...।’ लेस्ट्कन मैं तो सन्ु दि नगि का िहने वाला ह।ं सन्ु दि नगि में ही मेिा अपना कािोबाि है। वािाणसी में तो मैं स्ट्कसी को जानता भी नहीं। यहां तो मैं अपनी बेटी के स्ट्ववाह के स्ट्लए कुछ स्ट्वशेर् जेविात खिीदने आया था।’ सेठ जी ने अपनी लाचािी प्रकट की। ‘ओह।’ वह स्ट्निाश होने के पिात भी मरु किाया, ‘तो कोई बात नहीं।’ वह जाने के स्ट्लए पलटा। ‘सनु ो....।’ सेठ जी ने उसे िोककि कुछ सोचते हुए कहा। स्ट्फि अपना काडा उसकी ओि बढ़ा स्ट्दया, ‘कभी स्ट्कसी औि बात की आवश्यकता पड़े तो स्ट्लखने में संकोच मत किना। तमु ने मझु े नया जीवन स्ट्दया है। हां, तुम्हािा नाम क्या है?’ ‘िाजीव-।’ िाजीव ने काडा लेते हुए कहा। स्ट्फि पढ़ा, बी.एल. काि, पाटानि भाित िबि कम्पनी प्राइवेट स्ट्लस्ट्मटेड, सन्ु दि नगि, भाित। िाजीव ने सेठजी के व्यस्ट्ित्व को गौि से देखा। बी. कॉम. की पिीक्षा समाप्त किने के बाद उसने अपने ही घि के सामने स्ट्रथत एक मोटि कािखाने में नौकिी कि ली। कािखाना छोटा था इसस्ट्लए वेतन भी कम स्ट्मला, पिन्तु उसका स्ट्हसाब स्ट्कताब िखने के साथ-साथ उसे ड्राइविी सीखने में भी आसानी हो गई। पिीक्षाफल स्ट्नकलते-स्ट्नकलते उसने लाइसेन्स भी ले स्ट्लया। पिीक्षा में सफल होने के पिात उसने वािाणसी में ही नहीं, आस-पास के शहि में भी नौकिी तलाश की पिन्तु सफल न हो सका। दसू िे शहिों में उसे जहां कहीं नौकिी स्ट्मली, प्यासी नदी
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वहां वेतन इतना कम था स्ट्क उसकी अपनी ही गजु ि कस्ट्ठन थी, स्ट्फि घि की स्ट्जम्मेदािी क्या सम्भालता? स्ट्पता का रवार्य, मां का इलाज, बहनों का भस्ट्वष्य औि इसस्ट्लए सब जगह से थक हािकि वह आज सन्ु दि नगि चला आया था, अपने शहि, अपने देश से बहुत दिू । अच्छा हुआ जो उसके स्ट्दए काडा को उसके अनभु वी स्ट्पता ने सम्भालकि िख स्ट्दया था। सन्ु दि नगि पहुचं ने से पहले वह सेठजी से स्ट्लखकि पछू ा चाहता था पिन्तु इसकी िाय उसके स्ट्पताजी ने ही उसे नहीं दी। उनकी जान बचाए तो महीनों बीत गए। अब स्ट्लखने के बजाए रवयं जाकि स्ट्मले तो सेठजी उसे नौकि िख सकते हैं। सेठजी से वह आज ही स्ट्मलने जाता पिन्तु आज िस्ट्ववाि था। कािखाने का बन्द होना आवश्यक था। घि का पता उसके पास था नहीं। इसीस्ट्लए उसे सबु ह अपने योग्य एक कोठिी तलाश किने का भी समय स्ट्मल गया था। टहलते-टहलते वह काफी दिू स्ट्नकल गया था। पहाड़ी िारते यंू ही लम्बे मालूम नहीं पड़ते। यहां तक स्ट्क वह एक जगमगाते बाजाि में पहुचं गया। उसे पता चला स्ट्क यह माल िोड है। जहां से वह आया है वह चाि मील दिू जगह है। चाि मील। उसने एक गहिी सांस ली इतना लम्बा िारता कट गया औि उसे पता नहीं चला। पिन्तु स्ट्फि उसने सोचा वािणसी में स्ट्जस जगह वह िहता था वहां से स्ट्वश्वस्ट्वद्यालय भी तो तीन मील दिू है। कालेज भी तो वह पैदल ही जाया किता था जब कभी उसकी साइस्ट्कल खिाब हो जाती थी। एक छोटे से होटल में उसने खाना खाना आिम्भ स्ट्कया तो वर्ाा स्ट्फि आिम्भ हो गई। खाना खाने के बहाने उसने देि तक वर्ाा रुकने की प्रतीक्षा की पिन्तु वर्ाा थी स्ट्क रुकने का नाम नहीं लेती थी। लगभग बािह बजे वर्ाा कम हुई तो सड़क पि लोग छतरियों में स्ट्बखिकि छाया समान छा गए। दक ु ानें बन्द होने लगीं मानो उन्हें भी वर्ाा के रुकने की प्रतीक्षा थी। होटल बन्द होने लगा तो उसे भी उठना पड़ा। उसके शिीि पि सतू ी पैंट तथा सतू ी कमीज के ऊपि एक गिम नीला कोट था-ब्लेजि-स्ट्जसे कालेज के स्ट्दनों से उसने अपना पेट काटकि ट्यश ू न के पैसे से बनवा स्ट्लया था। यही एक गमा कोट उसके पास था स्ट्जसे वह इस समय स्ट्कसी भी अवरथा में स्ट्भगोना नहीं चाहता था। इस कोट को पहनकि ही उसे कल नौकिी के स्ट्लए भी जाना था। होटल बन्द हुआ तो वह कुछ देि तक एक स्ट्टन प्यासी नदी
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के छज्जे के नीचे खड़ा िहा। वर्ाा रुकी तो वह लम्बे-लम्बे पग उठाता हुआ अपनी कोठिी की ओि चल पड़ा। बादल अब भी घास्ट्टयों से उठ िहे थे। स्ट्बजली चमक िही थी। वर्ाा दबु ािा होने को तड़प िही थी। यस्ट्द यह कोट भीग गया तो उसके पास दसू िा कोई कोट भी नहीं है। टैक्सी उसे के वल रटेशन पि ही स्ट्दखाई पड़ी थी वह भी दो तीन ही। बस का समय स्ट्नकल चक ु ा था। मानव रिक्शे वालों की चाि मील यात्रा की मांग उसकी पास्ट्कट गवािा नहीं किती थी। उसे पैदल ही चलना पड़ा। माल िोड पाि किके जब वह खल ु ी सड़क पि आया तो ठण्ड औि बढ़ गई। उसने अपने कोट का कालि उठा स्ट्लया पिन्तु चभु ती हवाएं हलक के अन्दि प्रवेश कि जाना चाहती थीं। उसका शिीि स्ट्ठठुिने लगा। सतू ी पैंट के अन्दि उसके पैिों का िि मानो जम जाना चाहता था। इसस्ट्लए उसने अपनी चाल की गस्ट्त औि बढ़ा दी। सहसा एक हल्की िोशनी उसकी छाया को स्ट्लए सामने सड़क पि फै ली तो उसने पलटकि पीछे देखा, एक काि उसकी ओि बढ़ी आ िही थी। उसकी हैड लाइट में भीगी सड़क दिू तक यंू चमक उठी मानो सपा ने अपनी कें चल ु पहन ली हो। आस-पास के देवदाि औि स्ट्चनाि देव समान झमू उठे । इनसे टकिाती हवाएं पहले ही वाताविण को भयभीत बनाए हुए थीं। एक बाि उसने अपनी आख ं ें ऊपि उठायीं। घटाटोप अंधेिा-बदली ही बदली। बादल गिजे तो वह कांप गया। अब! कुछ सोचकि वह सड़क के बीज खड़ा हो गया। उसने सनु िखा था स्ट्क ऐसे इलाके में कुछ भले लोग कस्ट्ठनाई के समय अपनी कािों में स्ट्लफ्ट दे स्ट्दया किते हैं। काि की गस्ट्त काफी तेज थी, स्ट्फि भी उसे िारते में खड़ा देखकि समीप आते-आते रुक गई। सन सफे द काि, लम्बी, ऐसा मालमू पड़ा मानो बफा की एक सफे द छोटी चट्टान उसके समीप सिक आई हो। वह झट लपककि चालक के समीप जा पहुचं ा। ठण्ड के कािण स्ट्खड़की का शीश बन्द था। चालक ने उसकी बात सनु ने के स्ट्लए उसे थोड़ा नीचे सिका स्ट्दया। ‘क्षमा कीस्ट्जएगा-।’ थोड़ा झक ु कि समीप होते हुए उसने स्ट्वनती की, ‘कुछ दिू तक यस्ट्द मझु े स्ट्लफ्ट दे दें तो बड़ी कृ पा होगी, िात का यह भयानक पहि, ऊपि से इतनी ठंड। प्यासी नदी
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यस्ट्द वर्ाा हो गई तो...।’ पिन्तु तभी अचानक वह कांपकि चौंक गया। आवाज लड़खड़ाकि अटक गई। गाड़ी के रटेयरिंग पि एक लड़की बैठी हुई थी। अन्धकाि में उसका मख ु ड़ा चन्रमा समान चमक िहा था। जवान-सन्ु दि-अके ली, तब भी उसे देखकि वह कापं गया। अपनी गलती का अहसास किके वह पीछे हट गया। उस लड़की ने शीशा ऊपि चढ़ाया औि गाड़ी आगे बढ़ा दी। शायद उस लड़की ने चलते-चलते उसे बहुत घिू कि देखा था। जाने कौन लफंगा है? िाजीव ने अपने धड़कते स्ट्दल पि काबू स्ट्कया। आगे बढ़ते हुए उसने भगवान को धन्यवाद स्ट्कया। जाने कौन थी वह िईसजादी? यस्ट्द घबिाकि शोि मचा देती तो अच्छी खासी मसु ीबत आ जाती। यस्ट्द काि िोकने के बजाए उस पि चढ़ा देती तो सबु ह यहां एक लावारिस लाश पाई जाती। सहसा उसने देखा, कुछ दिू जाकि काि की ‘बैक लाइट’ रुक गई है, स्ट्फि वह उसकी ओि भी वास्ट्पस आ िही है। शायद उस लड़की को उस दया आई है। यस्ट्द वर्ाा हो गई तो स्ट्निय ही वह ठण्ड में स्ट्सकुड़कि यहीं मि जाएगा। उसने भी अपने पग तेज कि स्ट्दए। काि रुकी तो लपक कि वह स्ट्फि स्ट्खड़की के समीप पहुचं गया। लड़की ने पीछे झक ु ते हुए स्ट्पछला गेट खोल स्ट्दया। ‘आप बैठ सकते हैं-।’ उसने कहा। उसका रवि सख्त होने के पिात मीठा भी था। लपककि झट वह अन्दि बैठ गया, एक स्ट्कनािे , कुछ दबु ककि, स्ट्सकुड़ कि। अपने घटु नों को उसने जोड़ स्ट्लया औि हाथों को सीने पि बांध स्ट्लया। जीवन में पहली बाि ऐसी काि में बैठने का अवसि प्राप्त हुआ था। उसके अन्दि अपनी हकीकत के कािण एक छोटेपन का एहसास था औि इस एहसास के कािण घबिाहट में वह उसको धन्यवाद भी न कह सका। गाड़ी अपनी गस्ट्त में आ गई। खामोशी-स्ट्बल्कुल खामोशी। औि इस खामोशी पि काि की हल्की-हल्की घबिाहट सगं ीत के समान छाई हुई थी। काि के अन्दि उस लड़की की सांसों से स्ट्नकलता फूलों का इत्र फै ला हुआ था। स्ट्फि भी िाजीव ने अपने छोटे-पन के एहसास के कािण एक बाि भी लड़की को आंख उठाकि ठीक से नहीं देखा। प्यासी नदी
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कुछ देि बाद एक मोड़ आया तो आस-पास कुछे क मकानों की स्ट्खड़स्ट्कयों से प्रकाश झलकता स्ट्दखाई पड़ने लगा। काि धीमी हुई तो िाजीव उतिने को सतका हो गया। ‘कहां जाना है आपको-?’ लड़की ने अचानक पछ ू ा। ‘डाक बगं ले....।’ िाजीव की कोठिी डाक बगं ले के समीप ही थी, पिन्तु उसके मंहु से ये नाम इस प्रकाि स्ट्कला मानों वह डाक बगं ले में ही ठहिा हुआ है। काि रुकते-रुकते तेज हो गई लड़की को शायद उधि ही जाना था। िाजीव खामोशी से बैठा िहा, पिन्तु इस बाि उसने चोि दृस्ट्ि से उस लड़की को देखने का साहस स्ट्कया। उसकी िे शमी काली लटें सफे द कास्ट्डागन पि फै ली हुई थीं। हाथों में सफे द दरताने थे औि कलाई में सनु हिे कंगन। कुछ ही पलों बाद काि एक नाव के समान डोल कि डाक बगं ले के सामने रुकी तो उसने गेट खोला, बहुत कोमलता के साथ, मानों स्ट्कसी की नमा औि नाहुक कलाई थामकि स्ट्कनािे की हो। स्ट्फि वह नीचे उतिकि वहीं झक ु ा हुआ बहुत कृ तज्ञता से बोला, ‘बहुत-बहुत धन्यवाद। ईश्वि आपकी सािी मनोकामनाएं पिू ी किे ।’ लड़की के होंठों पि एक हल्की मरु कान कांप गई। गाड़ी पहले ही रटाटा थी, उसने एक्सीलेटि दवा स्ट्दया औि आगे बढ़ गई उसकी ओि देखा भी नहीं, उसकी बात का उत्ति तक नहीं स्ट्दया। िाजीव एक पल वहीं खड़ा िहा। खड़े-खड़े देखता िहा जब तक स्ट्क ढाल पि जाकि वह गाड़ी अपनी ‘बैक लाइट’ समेत ओझल न हो गई स्ट्फि वह आगे बढ़कि एक पगडण्डी पि चढ़ गया। टेढ़ी-मेढ़ी पगडण्डी, वर्ाा से भीग कि स्ट्चकनी भी थी, स्ट्फि भी समीप के खंभे में लगे स्ट्बजली के बल्ब ने उसकी काफी सहायता की। वह पगडण्डी ऊपि उसकी कोठिी को जाती थी औि यह तािकोल की सड़क घमू कि उस बंगले के सामने से स्ट्नकलती थी स्ट्जसके पीछे उसकी कोठिी थी। नया देश, नया कमिा, नया वाताविण। काफी देि तक उसे नींद नहीं आ सकी तो अपने घिवालों को याद किता िहा। स्ट्फि उसने दीवाि की ओि किवट ली औि स्ट्सि तक कम्बल खींच लेना चाहा। पिन्तु तभी उसकी आख ं ों पि प्रकाश की एक स्ट्किण पड़ी तो वह चौंक गया। दीवाि में एक दिाि थी। इस दिाि से बगं ले की स्ट्पछली स्ट्खड़की पि शीशे प्यासी नदी
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चमकते स्ट्दखाई पड़ िहे थे। कुछ सोचकि उसने अपनी आख ं ें इसके समीप की तो स्ट्खड़की के शीशे के अन्दि एक छाया स्ट्थिकती हुई प्रतीत हुई। उसने इस दिाि को चौड़ा किना चाहा तो ईटेंं स्ट्हल गयीं। उसने एक ईटं को अन्दि खींच स्ट्लया। बगं ले का एक अच्छा खासा स्ट्पछला भाग उसके सामने था। दो बड़ी बड़ी स्ट्खड़स्ट्कयां, पिदे सिके हुए थे इसस्ट्लए अन्दि के प्रकाश में काफी वरतुएं स्ट्दखाई पड़ िही थीं। सहसा वह चौंककि उठ बैठा। एक छाया स्ट्फि उसकी दृस्ट्ि के पिदे पि स्ट्थिक आई थी। उसने लेटकि स्ट्फि देखा, आख ं ें फाड़कि। एक पल को उसे सन्देह हुआ स्ट्क वह स्ट्कसी भतू बगं ले के पीछे आ स्ट्टका है। उसका स्ट्दल जोि-जोि से धड़कने लगा। पिन्तु तभी उसने देखा, एक छाया आगे बढ़कि लप्तु हो गई है औि दसू िी ओि से एक जीती जागती लड़की आकि अब स्ट्थिकने लगी है। स्ट्वस्ट्रमत! वह कुछ समझ नहीं सका स्ट्क यह सब क्या है? पिन्तु स्ट्फि उसने अनमु ान स्ट्कया स्ट्क अन्दि िे स्ट्डयोग्राम पि कोई धनु बज िही है-बहुत आस्ट्हरता-आस्ट्हरता, मानो अपनी स्ट्बजली-सी चमकती नग्न बाहों को फै लाकि बादलों पि चल िही हो। उसका मख ु ड़ा कुन्दन के समान सन्ु दि तथा गोिा था, लटें सनु हिी.... शायद आंखें भी सनु हिी हों। अपने शिीि के िंग से ही स्ट्मलती जल ु ती उसने िे शमी साड़ी भी पहन िखी थी स्ट्जसका आचं ल जब उसकी छाती पि से टल जाता तो वह एक हाथ से इसे ठीक कि लेती थी। दसू िे हाथ में एक जाम था स्ट्जसकी बदंू ें छलकतीं तो कमिे के प्रकाश में पािे के समान चमक उठतीं। रतब्ध वह इसे देखता ही िह गया-चपु चाप-अपनी सांसें िोके हुए। जीवन में पहली बाि उसने अपनी आंखों के सामने स्ट्कसी जीती-जागती लड़की को इस प्रकाि देखा था। पिन्तु स्ट्फि उसने देखा, एक नवयवु क भी उसकी नजिों के सामने आ गया है। शायद यही बंगले का मास्ट्लक है। चौकीदाि ने बताया था स्ट्क मास्ट्लक का नाम शैवाल है। बगं ले में अके ले िहते हैं। स्ट्ववाह होने वाला है। अपनी इस स्ट्छपी चोिी पि उसे लज्जा आई। दसू िों के स्ट्नजी जीवन से उसे क्या सम्बन्ध? उसने ईटं अपने रथान पि वापस िख दी औि कम्बल स्ट्सि तक ओढ़कि आख ं ें बन्द कि लीं। पिन्तु मन था स्ट्क बंगले के दृश्य की ओि स्ट्खंचा ही जाता था। ऐसा दृश्य तो उसने स्ट्सनेमा में भी नहीं देखा था। पलकें अस्ट्धक देि प्यासी नदी
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सब्र नहीं कि सकीं तो उसने इन्हें खोल स्ट्दया। ईटं हटाकि स्ट्फि देखा। दोनों बांहों में बांहें डाले बहुत प्रेम से स्ट्थिक िहे थे। उसके होंठों पि एक मरु कान आई। मन-ही-मन इस जोड़े को उसने शभु कामनाएं दी। कुछ देि बाद वे अलग हुए। शायद रिकाडा समाप्त हो गया था। लड़की अपना फिदाि कोट पहनने लगी तो नवयवु क ने अपना जाम समाप्त स्ट्कया। स्ट्फि लड़की को कमि से थामकि वह उसी नजि से आगे बढ़ गया। कुछ देि बाद उसने सनु ा, बगं ले के पोस्ट्टाको में काि रटाटा हुई है। शायद वह लड़की जा िही थी। स्ट्फि कुछ देि में बगं ले के अन्दि का प्रकाश बझु गया तो उसने भी अपनी कोठिी के दीवाि की ईटं अपने रथान पि वापस िख दी औि आंखें बन्द किते हुए इनके बािे में सोचने लगा। िईसों की अय्याशी के ठाठ भी स्ट्निाले ही होते हैं। कुछ देि बाद जब वर्ाा झमू कि बिसी तो नींद आ गई। सबु ह का समय था। पहाड़ी सन्ु दिी ने अपनी घनी-घनेिी लटें समेट ली थीं। आसपास तथा दिू -दिू के पवात पहाड़ी सन्ु दिी के कसे हुए शिीि के समान फूट िहे थे। पवात के होंठों पि सयू ा की स्ट्किणें चांदी समान स्ट्झलस्ट्मला िही थीं। पस्ट्ब्लक नल पि जाकि उसने सबु ह ही सबु ह रनान कि स्ट्लया था। हि सबु ह गंगा रनान किने वाला उसका शिीि यहां का ठण्डा पानी छूते ही कांप गया था। दक ु ी थीं इसस्ट्लए तैयाि होकि ु ानें अभी नहीं खल वह अपनी कोठिी के सामने खड़ा पहाड़ी वाताविण की सन्ु दिता देख िहा था, कुछ ही दिू पि डाक बगं ला था। स्ट्चनािों के वृक्षों के मध्य स्ट्घिा होने के पिात भी उसकी ढलवानी कलाकृ स्ट्तयां खपिै ल की भिू ी छत रपि स्ट्दखाई पड़ िही थी। छत पि दो पक्षी आपस में चोंच लड़ा िहे थे। हि तिफ बहाि ही बहाि थी-फूलों की मरु किाहट-कस्ट्लयों की सिगोस्ट्शयां-स्ट्ततस्ट्लयों का झण्ु ड में उड़ना। जब धपू थोड़ा चढ़ आई तो वह पगडण्डी से नीचे उतिकि तािकोल की सड़क पि आया, स्ट्फि चढ़ाई पि चल कि बगं ले के सामने पहुचं ा स्ट्जसके पीछे उसकी कोठिी थी। बगं ला पिु ाना था। लान उजड़ा-उजड़ा। वर्ों से मानो इसकी पिवाह नहीं की गई थी। गेट पि खड़े होकि उसने देखा, चौकीदाि अन्दि एक ओि लगे नल द्वािा बाल्टी में पानी भि िहा है। चौकीदाि का के वल नाम भि ही था। बढ़ू ा, स्ट्नबाल। बगं ले के बाप-दादों की उसने सेवा की थी। अब तो वह चलता भी था तो झक ु -झक ु कि। जब इस इलाके में जाड़े के प्यासी नदी
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स्ट्दनों में बफा पड़ने लगती है तो बगं ले का मास्ट्लक उसी की देख-िे ख में इसे छोड़कि नीचे के देश में चला जाता है। पहली भेंट में चौकीदाि ने उसे यही बताया था। चौकीदाि उसे देखकि मरु किाया तो वह अन्दि पहुचं गया। ‘काका...’ कुछ देि इधि-उधि की बातें किके उसने पछ ू ा, ‘यह तुम्हािे मास्ट्लक किते क्या हैं?’ ‘स्ट्बगड़े हुए िईस हैं बेटा! स्ट्पता बहुत जमींदाि थे। रवतन्त्रता के पिात काफी जमीन स्ट्छन गई तो उनका देहान्त हो गया, बची हुई दौलत अब तक इनके काम आ िही है। स्ट्वधवा मां यहां से दिू स्ट्नचले देश में िहती हैं। चाहती हैं स्ट्क इनका स्ट्ववाह हो जाए पिन्तु कोई लड़की इन्हें पसन्द ही नही आती।’ ‘लेस्ट्कन कल तो तुम बता िहे थे स्ट्क इनका स्ट्ववाह होने वाला है।’ ‘स्ट्ववाह तो होगा ही-‘चौकीदाि ने जैसे भेद भिे रवि में कहा, ‘पिन्तु स्ट्कससे, यह वही जानें।’ िाजीव को शैवाल पि सख्त क्रोध आया। जैसा नाम-वैसी बिु ाई। शैवाल-अथाात् स्ट्सवाि, कांटा। ‘जब तमु यहां िहने लगे हो तो दो-चाि स्ट्दन में इसके िंग-ढगं रवयं ही देख लोगे।’ चौकीदाि ने दबु ािा अपने आप कहा। उसकी बातों से प्रकट था स्ट्क उसे अपने मास्ट्लक से कोई लगाव नहीं है। के वल जीवन के अस्ट्न्तम स्ट्दन ही इज्जत से काट देना चाहता है। सहसा स्ट्कसी ने बंगले के अन्दि से आवाज लगाई, ‘चौकीदाि-’ आवाज में झंझु लाहट थी। ‘मालूम पड़ता है साहब आज जल्दी जाग गए हैं।’ चौकीदाि ने आिया प्रकट स्ट्कया, ‘क्या बज गया?’ ‘नौ...’ िाजीव ने अपनी कलाई पि बंधी पिु ानी घड़ी देखी। ‘अच्छा स्ट्फि स्ट्मलेंगे...’ चौकीदाि पानी की बाल्टी उसी प्रकाि छोड़कि अन्दि भाग गया। बाल्टी भि चक ु ी थी। िाजीव ने नल बन्द स्ट्कया औि सड़क पि स्ट्नकल आया। प्यासी नदी
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2 लगभग दस बजे फै क्िी का दफ्ति खल ु ने के समय वह भाित िबि कम्पनी, प्राइवेट स्ट्लस्ट्मटेड के सामने जा खड़ा हुआ। गेट पि वदी में बैठा दिबान जाने वाली कािों के स्ट्लए उठ-उठकि दिवाजा खोलने के बाद सलामी माि देता था। पैदल जाने वाले बड़े गेट के अन्दि बने एक छोटे गेट द्वािा रवयं झक ु -झक ु कि अन्दि प्रवेश कि जाते थे। इतनी बड़ी फै क्टिी-कािखाना अन्दि जाने का साहस नहीं हुआ तो वह दिबान के समीप जा पहुचं ा। ‘बड़े साहब से स्ट्मलना चाहता ह-ं ‘अपनी जेब से काडा स्ट्नकालते हुए उसने कहा। दिबान ने उसे ऊपि से नीचे तक देखा, इस प्रकाि मानो रवयं ही बड़ा साहब हो। स्ट्फि कुछ कहने के स्ट्लए उसने मंहु खोला ही था स्ट्क दिू एक काि देखकि वह चौंक पड़ा। लपक कि उसने झट बड़ा गेट खोला औि सीधे होकि एक फौजी सलामी दागी। िाजीव ने देखा, काि के अन्दि एक वृद्ध व्यस्ट्ि बैठा है। दिबान की सलामी देखकि भी उसने स्ट्सि स्ट्हलाकि उत्ति नहीं स्ट्दया। गेट बन्द किके दिबान उसके समीप आया। ‘जाओ’ वह बोला, ‘अन्दि जाकि तिु न्त ही स्ट्मलने का काडा बनवा लेना। अभी आए हैं इसस्ट्लए स्ट्मल सकते हो। काम में लग गए तो घण्टों समय नहीं स्ट्मलेगा।’ ‘क्या?’ िाजीव ने चौककि पछ ू ा, ‘क्या यही बड़े साहब हैं?’ ‘हां-हां! क्यों?’ दिबान ने उसी आिया से देखा। िाजीव ने काडा को गौि से देखा। ‘पछू ा, तो स्ट्फि यह बी.एल. काि कौन हैं?’ ‘बी.एल. काि! बड़े सिकाि?’ दिबान ने उसे गौि से देखा, ‘तमु बड़े सिकाि से स्ट्मलने आए हो?’ ‘हां।’ ‘उनका देहान्त हुए तो चाि महीने बीत चक ु े है।।’ ‘क्या?’ िाजीव को स्ट्वश्वास नहीं हुआ। सािी आशाओ ं पि पानी पड़ गया। ‘अब बड़े साहब यही हैं- सेठ जमनु ा दास। उनके पाटानि ही नहीं बस्ट्ल्क भाई समान हैं। यह भी इतने ही नमा स्ट्दल तथा दयालु हैं स्ट्जतने बड़े सिकाि थे। क्या काम है तुम्हें?’ प्यासी नदी
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‘ऊंह?’ वह इस प्रकाि चौंका मानो दिबान की बात ही नहीं सनु ी हो। स्ट्फि बोला, ‘कुछ स्ट्वशेर् काम ही था पिन्तु अब...’ ‘सेठ जमनु ा दास से नहीं बनेगा?’ ‘मालमू नहीं...’ उसने एक गहिी सासं भी स्ट्फि अन्दि की ओि जाते हुए बोला, ‘जब इतनी दिू आया हं तो एक बाि प्रयत्न किने में हजा ही क्या है।’ िाजीव अन्दि पहुचं ा। रिसेप्शन दफ्ति में एक सन्ु दि लड़की गमा कपड़ों में स्ट्वस्ट्रमत उसी को देख िही थी। िाजीव उसके समीप जाकि खड़ा हो गया। ‘यस, व्हाट कै न आई डू फाि यू (हां, मैं आपके स्ट्लए क्या कि सकती ह)ं ? उसने अंग्रेजों समान उच्चािण स्ट्कया। ‘मैं बड़े साहब से स्ट्मलना चाहता ह।ं ’ उसने डिते-डिते कहा। लड़की ने अपनी टेबल पि से एक फामा उठाकि उसकी ओि बढ़ा स्ट्दया बोली, ‘इसे भि दीस्ट्जए।’ िाजीव ने न चाहते हुए भी फामा ले स्ट्लया मगि स्ट्फि अपने हाथ का काडा उसकी ओि बढ़ाते हुए बोला, जी दिअसल मैं इन सेठजी से स्ट्मलना चाहता था। इन्होंने वािाणसी में मझु से रवयं यहां आने को कहा था।’ लड़की ने काडा ले स्ट्लया तो िाजीव रवयं खामोश हो गया। उसके देखते ही उसने स्ट्फि कहा, ‘यहां आया तो पता चला स्ट्क ...’ इस बाि उसने बात अधिू ी छोड़ दी। लड़की ने उसे गौि से देखा। स्ट्फि टेलीफोन का नम्बि स्ट्मलाते हुए उसने पछू ा, ‘आपका नाम?’ ‘िाजीव...’ टेलीफोन कनेक्ट हो चक ु ा था। लड़की ने फोन पि बातें किते हुए उसकी बातें दोहिायीं स्ट्फि कोई आज्ञा पाकि फोन िखती हुई उसकी ओि पलटी, ‘आप अन्दि जा सकते हैं। अब बड़े साहब सेठ जमनु ा दास हैं-दफ्ति वह िहा, सामने।’ ‘धन्यवाद।’ उसने कहा औि झट आगे बढ़ गया। कमिे के सामने चपिासी बैठा था। उसे देखते ही उठ खड़ा हुआ। दिवाजे के समीप उसने वतामान सेठ का नाम पढ़ा। स्ट्फि अन्दि पहुचं ा। वातानक ु ू स्ट्लत दफ्ति, सन्ु दि, माडना वरतुओ ं से भिा हुआ। एक बड़ी मोटे शीशे की मेज के आगे रिवास्ट्ल्वगं कुसी पि बैठा प्यासी नदी
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बढ़ू ा व्यस्ट्ि अपने चश्मे के अन्दि से उसे देखते हुए मानो उसी की प्रतीक्षा कि िहा था। नमरते के स्ट्लए उसने झट उन्हें हाथ जोड़ स्ट्दए। ‘बैठो...’ सेठ जमनु ा दास ने उसे सामने का कुसी पि बैठने का इशािा स्ट्कया। ‘धन्यवाद...’ उसने बड़ी कस्ट्ठनाई से कहा पिन्तु हाथ को उसी प्रकाि जोड़े िखा जैसे इतने बड़े दफ्ति में प्रवेश किके उसने बहुत बड़ी गलती की हो। सेठ जी ने िाजीव की घबिाहट को देखा तो होंठों पि एक हल्की मरु कान आते-आते िह गई। पीठ को पीछे टेक कि उन्होंने पछू ा, ‘तो तुम ही िाजीव हो?’ ‘जी...’ उसने अपने गले का थक ू स्ट्नगला। ‘मैं ही नहीं कािखाने के सभी लोग तुम्हािे कृ तज्ञ हैं स्ट्क तमु ने एक बाि मेिे पाटानि की जान बचाई थी।’ िाजीव ने आिया से उन्हें देखा। ‘मझु े सब मालूम है-’ सेठ जी ने बात जािी िखी, ‘उन्होंने वािाणसी से लौटकि तम्ु हािी बहुत प्रशसं ा की थी। जबु ान पि अक्सि तम्ु हािा नाम आ जाता था। ऐसा शायद इसस्ट्लए था क्योंस्ट्क उन्हें जीवन का सख्त आवश्यकता थी। अपनी आख ं ों के सामने ही वह अपनी बेटी का घि बसा लेना चाहते थे। बेटी की स्ट्जद के स्ट्वरुद्ध शायद सफल भी हो जाते पिन्तु जीवन ने इसकी आज्ञा ही नहीं दी। जो होना था वह होकि ही िहा। खैि, मैं तुम्हािे स्ट्लए क्या कि सकता ह?ं ’ ‘जी मैं...’ वह कहने में स्ट्हस्ट्कचाया, पिन्तु कहना तो था ही। उसने बात पिू ी की, ‘मैं यहां नौकिी के स्ट्लए आया था।’ ‘तुमने बी.कॉम. कि स्ट्लया?’ उन्होंने इस प्रकाि पछ ू ा, जैसे मृत्यु से पहले सेठ बी.एल. काि उसके बािे में सब कुछ बता चक ु े थे। ‘जी...’ उसने कहा। ‘गडु ....’ स्ट्फि वह कुछ देि सोचते िहे, टेबल पि झक ु कि अपने हाथ में शीशे के एक पेपि वेट को मेज पि नचाते हुए। स्ट्फि इसे िोककि पछ ू ा ‘कोई औि भी काम सीखा है?’ ‘ड्राइविी भी आती है।’ ‘ड्राइविी?’ सेठ जी ने उसे इस प्रकाि देखा जैसे बी.कॉम. से ड्राइविी का क्या सम्बन्ध। पिन्तु स्ट्फि रवयं ही चौंक पड़े। उसके योग्य मानो कोई काम उन्हें याद आ गया प्यासी नदी
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था। उन्होंने चश्मा उताि कि मेज पि िखा औि बोले, ‘काम तुम्हे स्ट्मल सकता है। वेतन भी बड़ा होगा, पांच सौ, पिन्त.ु ..’ ‘पांच सौ’ उसे स्ट्वश्वास ही नहीं हुआ। कुसी पि उचकते वह िह गया। ‘हां, पांच सौ।’ उन्होंने उसे यकीन स्ट्दलाया, ‘साथ ही क्वाटाि भी स्ट्दया जा सकता है लेस्ट्कन पता नहीं तुमसे यह काम हो सके गा भी या...’ ‘आप मझु े काम देकि तो देखें।’ उनकी बात पिू ी होने से पहले ही उसने झट कहा, कोई भी काम होगा मैं पिू ी मेहनत, लगन तथा ईमानदािी से स्ट्नभाने का वादा किता ह।ं ’ ‘मेनत, लगन तथा ईमानदािी से तमु अवश्य काम किोगे, इसका मझु े पिू ा यकीन है। जो व्यस्ट्ि मफ्ु त के दो हजाि रुपये नहीं रवीकाि कि सकता वह इस तिह काम नहीं किे गा तो स्ट्कस तिह किे गा? लेस्ट्कन जो काम मैं तुम्हें सौंपना चाहता हं उसकी रूप िे खा ही अलग है।’ ‘जी!’ वह कुछ समझा नहीं। ‘तुम्हािे घि में कौन-कौन हैं?’ कुछ सोचकि उसकी स्ट्चन्ता न किते हुए उन्होंने पछू । ‘एक बढ़ू ा बेकाि कमजोि बाप, बीमाि मां औि तीन छोटी बहनें।’ ‘सबका भाि तुम्हीं पि है?’ ‘जी।’ ‘गडु ...’ उनके होंठों पि एक मरु कान उभि आई। ‘जी?’ उसने आिया से देखा। ‘मेिा मतलब’ उन्हें जैसे अपनी बात का अफसोस हुआ। बात साफ किने के स्ट्लए उन्होंने स्ट्फि कहा, ‘काम वही आदमी स्ट्दल लगाकि कि सकता है स्ट्जसके ऊपि बहुत सािी स्ट्जम्मेदारियां हों।’ उसने सन्तोर् की सांस ली। ‘अच्छा िाजीव....’ कुछ सोचकि मेज के ऊपि सेठ जी स्ट्फि झक ु गए औि शीशे का िंगीन पेपिवेट उठाकि बोले, ‘मान लो काम में तुम्हािी कोई गलती न हो स्ट्फि भी अपने क्रोध के कािण मैं यह पेपि वेट उठाकि तुम्हािे स्ट्सि पि दे मारूं तो?’ प्यासी नदी
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Rs. 150/-