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जम्बू द् वीपे भरतखं डे महर्षि मार्क्स के हथकं डे (एकल नाटक)

अतु ल ततवारवी

जम्बू द् वीपे भरतखं डे महर्षि मार्क्स के हथकं डे

जम्बू द् वीपे भरतखं डे महर्षि मार्क्स के हथकं डे अतु ल रतवारवी

 

जम्बूद्वीपे भरतखं डे महर्षि मार्क्स के हथकं डे अतुल ततवारवी पहला सं स्करण, फ़रवरवी 2022 वाम प्रकाशन 2254/2 ए, शादवी खामपुर न्बू रंजवीत नगर नयवी ददल्वी — 110008 वाम प्रकाशन और लेफ़्टवडक्स बुर् नया रास्ा पब्लिशसक्स प्रा.लल. की प्रकाशन शाखाएँ हैं। leftword.com ISBN 978-93-92017-10-0 © अतुल ततवारवी, 2022 इस ना्टक को कोई भवी तबना इजाज़त ललए, और तबना रॉयल्वी ददए, मं च पर खेल सकता है। के वल लेखक और प्रकाशक को सबूचना देना पयाक्सप्त है। इस ना्टक के अनुवाद पर भवी कोई रोक्टोक नहवीं है। के वल पुनः प्रकाशन के ललए प्रकाशक से अनुमतत लेना अतनवायक्स है।

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Jambudvipe Bharatkhande Maharshi Marx Ke Hathkande Play by Atul Tiwari

पापा के ललये! जजनकी मैं बेहद इज़्ज़त करता था . . . और जो मुझे बेहद प्ार

कॉमरेड शं कर दयाल ततवारवी (1 फ़रवरवी 1921 — 18 जनवरवी 1989)

सबू च वी

प्राक्कथन जम्बूद्वीपे भरतखं डे महर्षि मार्क्स के हथकं डे

9 15

प्ाक्कथन

अपनवी पहलवी प्रकाशशत पुस्क की एक चवीज़ के बारे में मैं पबूरवी तरह से आश्वत हँ । इस दकताब में आपको कोई और चवीज़ पसं द आये या ना आये, इसका कवर आपको ज़रूर पसं द आयेगा जजसे बेजोड़ का्टबू क्सतनस्ट श्वी आर. के . लक्ष्मण जवी ने बनाया है। भारत के सबसे सशक्त व्ं ग्यचचत्रकार लक्ष्मणजवी के बनाये कालक्स मार्क्स में उन्वीसववी ं सदवी के उस दाशक्सतनक की गररमा-गुरुता-गं भवीरता भवी है और साथ हवी एक तववेकीतवनोदवी-व्ं ग्य भवी। मार्क्स के जवीवन, दशक्सन और जवीवनोत्तर-जज़दं गवी पर ललखे इस ना्टक में शायद यहवी करने का प्रयास मैंने भवी दकया है। मेरा यह ना्टक अमरवीकी इततहासकार-दाशक्सतनक-नाट्यकार-अप्रततम अध्ापक और सदरिय युद्धतवरोधवी-समाजवादवी-चचतं क हॉवडक्स जज़न के 1999 में ललखे नाट्यालेख मार्क्स इन सोहो के भारतवीय रूपांतर से कु छ ज़्ादा है और एक नये ना्टक से कु छ कम। मेरे पापा से एक साल छो्टे, 1922 में जनमे जज़न इस साल सौ बरस के हो रहे हैं, इसललए यह उनके प्रतत भवी मेरवी श्द्धांजलल है। यह आलेख मैंने लॉकडाउन के दौरान 2020 में ललखा और मज़दूरददवस 1 मई को इसे पबूरा दकया था। दिर मार्क्स के जन्मददन 5 मई को मैंने इसका पहला पाठ कानपुर में दकया। जजन ममत्रो ं ने उस ददन मेरे कच्े-पक्के पाठ को झेला उन सबका धन्वाद। तबना मेरवी बहन डॉक्टर 9

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प्राक्कथन

अंजलल ततवारवी और बहनोई डॉक्टर अलोक बाजपई के इसका ललखा जाना सं भव हवी नहवी ं था, जजनोनं े पहले लॉकडाउन के सात महवीनो ं तक मुझे पनाह दवी और काम करने की पबूरवी मोहलत। मैं अपने ममत्र मुं बई के वररष्ठ रंग-तनददेशक श्वी मनोज शाह का शुदरिया करना चाहँ गा जजनोनं े हॉवडक्स जज़न का मबूल आलेख मुझे मुहैय्ा करवाया। जम्बूद्वीपे भरतखं डे महर्षि मार्क्स के हथकं डे को मैं 2021 में अपने पापा कॉमरेड शं कर दयाल ततवारवी की जन्मशतवी के समय खेलना चाहता था। दकंतु कोतवड-कोरोना जो ना करे वो कम है। मैं अपने अनन् ममत्र — उत्तर-प्रदेश के बेहतरवीन नाट्य-तनददेशक — श्वी सबूयक्समोहन कु लश्ेष्ठ का ममनबून हँ , जो पहले ददन से इस ना्टक में मार्क्स की भबूममका करने को तैयार थे। मगर यह हो न सका . . . . . . और अब यह आलम है दक पापा की जन्मशतवी वषिक्स के एक साल बाद मं च पर न सहवी, पुस्क रूप में यह ना्टक दशक्सको-ं पाठको ं के सामने आ रहा है। 2019 में पापा की ललखवी मार्क्स की जवीवनवी छापने वाले दोस् लेखक-तनददेशक-चचतं क-अशभनेता सुधन्ा देशपांडे अब LeftWord के साथ-साथ दहदं वी में वाम प्रकाशन भवी ले आये हैं। उनका मैं शुरिगुज़ार हँ दक एक बार कहने पर हवी वो मेरा ना्टक छापने को तैयार हो गये। आर. के . लक्ष्मण जवी की पुत्रवधबू और पुत्र श्वीमतवी उषिा और श्वी श्वीतनवास लक्ष्मण जवी का मैं हमेशा ऋणवी रहँ गा जजनोनं े अपने तपता की अमोल कृ तत मुझे तबन मोल हवी दे दवी। अम्ा — डॉक्टर पुष्पवतवी ततवारवी — के जाने के बाद से मेरे जवीवन में जो दो माँएँ बचवी ं है — डॉक्टर प्रेमवतवी ततवारवी और डॉक्टर आशा

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प्राक्कथन

यशवं त — उनें प्रणाम करके मैं अपनवी यह छो्टवी सवी रचना आप रससकजनो ं को समर्पत करता हँ । अतुल ततवारवी 1 फ़रवरवी 2022 पुनश्च : वाम/LeftWord की छापवी यह दकताब copyleft में तवश्वास करतवी है, और इस ना्टक के सवाक्ससधकार सारे रंग-प्रेममयो ं के पास सुरशषित हैं। आप इसे पदिये, खेललये, इस्ेमाल कररये। हाँ, एक सबूचना आप हमें अवश्य भेजें तादक हम आपसे जुड़ा हुआ महसबूस करें। मैंने इस ना्टक को अपने शहर लखनऊ में अवस्थित दकया है। दकन्ु रंगकममी उन थिान-तवशेषि प्रसं गो ं को अपनवी तरह, अपने पररवेश में बदलने को स्वतं त्र हैं।

जम्बू द् वीपे भरतखं डे महर्षि मार्क्स के हथकं डे

अंधकार में बिजलवी की कड़कने की आवाज़ के साथ, मं च के पवीछे की ओर [अप-स्ेज] मौजबूद एलईडवी-ववीडडयो-वॉल पर सौर-मं डल के तमाम ग्रहो ं के साथ पृथ्वी भवी डदखतवी है। कै मरा ज़बूम करते हुए पहले पृथ्वी और डिर भारत की ओर तेज़वी से िढ़ता है और एक नगर में आकर रुकता है। एक आम भारतवीय शहर — भवीड़ भरवी सड़कें , ट्ैडिक-जाम में गाडड़यो ं की चचल्लपो,ं गायें-िैल, ररक्े-तांगे-टेम्ो-ईररक्े, पैदल लोग, गगनचुंिवी इमारतें और ठवीक पवीछे झुग्वी-झोपड़वी-िस्वी, एक िड़ा सुं दर साि-सुं दर मॉल, पर पास हवी गं दगवी-कबू ड़ा-कीचड़, तभवी एक कचरे वाला डम्र-ट्क िवीच सड़क पर कबू ड़ा उड़ेल देता है जजससे तमाम धबूल उड़तवी है। बिजलवी डिर कड़कतवी है और मं च के मध्य में अचानक एक दडढ़यल — थोड़े गं जे — डिर भवी घुं घराले िालो ं वाले, कोट-पैंट धारवी, हाथ में चमड़े का एक िैग ललए कालक्स मार्क्स नज़र आते है। वो कचरे की धबूल में सने हैं और अपने हाथो,ं कपड़ो ं और सर से धबूल झाड़ते हैं। पर िहुत ख़ुश हैं। कचरे की िदिबू से नाक-भौ ं ससकोड़ने के िजाय अपने नथुनो ं में उस चचर-पररचचत गं ध को भर लेना चाहते हैं। वाह, वाह वाह! मज़ा आ गया! मैं तो बहुत डरा हुआ था। सुना था स्वच्छ-भारत अशभयान के बाद भारत बहुत स्वच्छ हो गया है। पर यह तो तबलकु ल मेरे लं दन की तरह है। आज के लं दन की तरह नहवी,ं मेरे ज़माने के लं दन की तरह, जब हर तरफ़ कबू ड़ा-कचरा-कीचड़-गं दगवी-बदबबू होते थे। हः! ससफ़क्स बड़े-अमवीर-सं भांत लोगो ं की बस्स्यो ं को छोड़ कर। वो

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जब कालक्स मार्क्स को मृत्ल ु ोक से धरतवी पर कु छ पल तबताने का मौका ममलता है, तो वे चुनते हैं हहदं स् ु ान की यात्ा करना। यहाँ पहँ चकर वे खोलते हैं अपने जवीवन के अध्ाय और इसवी क्रम में खुलने लगतवी हैं भारतवीय समाज की न जाने हकतनवी परतें . . .  “पता नहवीं आपको कै सा लग रहा होगा मुझे यहाँ मौजबूद देख कर? आप सोच रहे होंगे, ‘मार्क्स अभवी तक ज़दं ा है? हमने तो सुना था और सोचा था हक . . . वो तो मर गया। उन्वीसववीं सदवी में ना सहवी – तो 1989 में तो definitely मर गया था मार्क्स।’ आपने ठवीक सोचा था। मैं 1883 में हवी मर गया। पर अब तक ज़दं ा भवी हँ । जवी हाँ, ‘मर गया हँ – पर ज़दं ा हँ ’। हःहःहः! इसवी को तो कहते हैं dialectics या द्ंद्वाद – द्ंद्ात्मकता।” चचत्त से नाटककार-नाट्यतनददेशक, वृत्त्त से पटकथा-सं वाद लेखक, सं योग से एक सं कोचवी अजभनेता और अनुभतबू त-सं ग्रहालयों के समथक्ससक्षम रचययता – अतुल ततवारवी राष्ट्वीय नाट्य तवद्ालय, जमक्सन नेशनल थथयेटर तथा बर्लनर आंसाम्ब्ल से प्रजशक्क्षत हैं। उत्तर भारत के शहरों से लेकर दक्क्षण भारत के गाँवों और तवदेशों में भवी इनके हकये नाटक चर्चत रहे हैं। उनकी चलखवी दजक्सनों फिल्ें प्रशं त्सत-पुरस्ृ त हई हैं। फिल्ों में इनके अजभनय ने अपनवी अलग छाप छोडवी है। इनके बनाये अनुभतबू त-सं ग्रहालय और अजभव्यक्ति-प्रदशक्सन ददल्वी, लखनऊ, गांधवीनगर, वाराणसवी, करतारपुर, कु रुक्षेत्, जम्बू , श्वीनगर जैसे कई नगरों में स्ाई रूप से स्ातपत हैं। आवरण : आर के लक्ष्मण 978-93-92017-10-0 Rs 150 / USD 10 leftword.com

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