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डर - कोई तो है चैप्टर 1

निरं कार स हं चौहाि "िीरु"

पेि पॉकेट बुक्

PEN POCKET BOOKS Shivaji Nagar, Govandi, Mumbai 400043

First Published by Pen Pocket Books 2022 Copyright © 2022 by Nirankar singh chauhan All rights reserved. No part of this book may be reproduced, or stored in a retrieval system, or transmitted in any form or by any means, electronic, mechanical, photocopying, recording, or otherwise, without express written permission of the author and publisher. ISBN: 978-93-94104-07-5 Cover design: Samar Khan Marketing: Asgar Ali Typeset: Maaz Printed by: Repro India ltd.

"ॐ नम शिवाय" सादर समशपित प्रिय बाबा श्री जदुनाथ प्र िंह चौहान(1925-1994)

ii

प्रस्तावना रहस्य!डर और रोमाचां !ये तीन िब्द हम इसां ानों के जीवन मे बहुत मायने रखते हैं!जीवन तो सब जीते हैं लेशकन जीवन मे अगर इन तीन िब्दों समावेि न हो तो लगता है जीवन मे कुछ न कुछ अधरू ा सा है!हर इसां ान के जीवन की अपनी एक अलग गाथा होती है,उसकी एक अलग जीवन िैली होती है,शकसी की शनम्न.शकसी की मध्यम तो शकसी की उच्चतम।...और हर इसां ान के जीवन की गाथा में कभी न कभी और कहीं न कहीं ये तीन िब्द अवश्य प्राप्त हो जाएांगे!शजसने इन तीन िब्दो का अपने जीवन मे अनुभव कर शलया समझो उसके जीवन का अहम पड़ाव उसे प्राप्त हो गया!डर कै सा भी हो सकता है।जैसे बच्चे को अपने माता शपता से शपटने का डर…,पढ़ाई करने वालों को एक्जाम और फै ल हो जाने का डर…,मजु ररम को सजा का डर....,रोड पर चलते समय एक्सीडेंट का डर या गलत काम करते समय पकड़े जाने का डर।जब डर की अनुभशू त होती है तो उसके साथ'रहस्य और'रोमाांच'ये दोनों िब्द ऑटोमेशटक अपने आप ही जुड़ जाते हैं!'डर-कोई तो है'-चैप्टर वन शलखने का यही उद्देश्य था शक आप जब इसे पढ़े तो इन तीन िब्दों को अपने अांदर महसूस करें ,उन्हें कुछ समय तक जीएां!आज के इस जमाने मे भी डर को महसूस सब करते हैं और उसे मानते भी हैं लेशकन उसका सामना करना कोई नही चाहता।बस इस उपन्यास शलखने का यही उद्देश्य है शक आप जब इसे पढ़ें तो आप उस डर का सामना करें शजससे अब तक रूबरू नही हुए! भगवान श्री महादेव का हाशदिक आभार एवम धन्यवाद के साथ साथ अपने पूरे पररवार के अलावा मैं अपनी पत्नी श्रीमती शनमिला शसांह का हाशदिक आभारी हूँ,क्योंशक आपकी वजह से ही मैं अपना लेखन कायि दोबारा िरू ु कर पाया।अपनी शप्रय प्रशतशलशप के साथ साथ समस्त पाठकों का आभार।समस्त गुरुजनों का आभार।शप्रय शमत्रों एवम समस्त िभु शचांतकों का आभार।श्री िफीक खान जी का शदल से िशु िया।श्रीमान प्रकािक महोदय एवम पेन पॉके ट बुक्स का हृदय की अनन्त गहराइयों से आभार एवम धन्यवाद! iii

अतां मे,समस्त सुशध पाठकों से शविेष अनुरोध है अपना अमल्ू य मत देकर मझु े अनुग्रशहत करें ताशक प्रस्तुत पुस्तक का अगला भाग और भी बेहतर बनाया जा सके ! "प्रस्तुत पुस्तक मेरी अथक मेहनत एवम शनरन्तर लेखन कायि के प्रयासों का पररणाम है!महादेव की असीम कृ पा एवम अपने कमािनुसार मैंने लेखन कायि बारह वषि की आयु में िुरू कर शदया था और शलखते शलखते कब बाइस साल बीत गए पता ही न चला!'डर-कोई तो है-चैप्टर वन,मेरी प्रथम रचना है जो पेन पॉके ट बुक्स के द्वारा प्रकाशित हो रही है।इस कथा को शलखने में मझु े तकरीबन एक वषि से ज्यादा का समय लगा,क्योंशक इस कथा को मैं कोई अन्य हॉरर स्टोरी टाइप नही रखना चाहता था,इसशलए काफी सोच समझकर अपने व्यस्त समय से समय शनकालकर मैंने इस कथा को रचा और आप सुशध पाठकों के समक्ष पेि कर शदया! पस्ु तक के प्रस्ततु सस्ां करण में इस बात का ख्याल रखा गया है शक आपका शविद्ध ु मनोरांजन हो एवम आपका ये रोमाचां कारी सफर पणू ि रूप से आपको अतां तक बाधां कर रखे! मैं अत्यतां आभारी हूँ श्री प्रकािक महोदय पेन पॉके ट बक्ु स का,अपने िभु शचतां कों एवम शमत्रों का एवम आप समस्त पाठक गणों का,शजनके सहयोग से यह पस्ु तक सफलता के नतू न सोपान की ओर अग्रसर है! हाशदिक िभु कामनाओ ां सशहत,

ननरंकार नसंह चौहान'नीरू 'श्री महादेव नस्िप्ट एडं आयवु ेनदक औषधालय बााँदा -242042(शाहजहांपुर) (उत्तर-प्रदेश)

iv

Contents प्रस्तावना ............................................................................................................ iii 1 ......................................................................................................................... 2 2 ....................................................................................................................... 12 3 ....................................................................................................................... 25 4 ....................................................................................................................... 40 5 ....................................................................................................................... 53 6 ....................................................................................................................... 69 7 ....................................................................................................................... 72 8 ....................................................................................................................... 80 9 ....................................................................................................................... 89 10................................................................................................................... 108 11................................................................................................................... 134 12................................................................................................................... 149 13................................................................................................................... 175 14................................................................................................................... 206

v

1

निरंकार न ंह चौहाि "िीरु"

1

सन 1998 !सम्पूणि नगर आज एक अच्छा खासा कस्बे में तब्दील हो चक ु ा था ! बड़ी बड़ी माके ट , बड़ी बड़ी दक ु ी थी कुल शमला कर ु ाने ,और तो और दो फै शक्ियाां भी स्थाशपत हो चक एक अच्छा खासा शबजनेस हब बन चक ु ा था सम्पूणि नगर ! इस कस्बे में बाहर से भी कई व्यापारी आ कर अपना धांधा शदन दनू ा और रात चौगुना कर रहे थे , मतलब सब अच्छा अच्छा कमा खा रहे थे !यहाां के स्थायी शनवाशसयों को भी इस चीज का लाभ शमल रहा था ,रोजगार प्राप्त हो रहा था !सब खि ु थे लेशकन..इस खि ु ी में भी एक खौफनाक डर समाया हुआ था ! वो डर था सम्पूणि नगर कस्बे के बगल में उपशस्थत एक बाग था वो बाग लगभग चार एकड़ कर क्षेत्रफल में फै ला हुआ था !उस बाग के आसपास भी कोई नही जाता था उसके अांदर जाने की बात तो दरू थी और कारण था उस बाग में एक पुरानी हवेली जो अब खण्डहर का रूप ले चक ु ी थी ! इमारत को देखकर ही अांदाजा लगता था शक शकसी जमाने मे वो आलीिान और िानदार रही होगी लेशकन अब आलम ये था शक कोई भी उसके बारे में बात भी नही करना चाहता था ! उस बाग में आम,लीची,अांगूर और कई फलदार पेड़ थे और सीजन आने पर फलों से लद भी जाते थे ! लेशकन उन फलों को भी लोग श्राशपत मानते थे ! इसशलए वहाां अांधेरा होने से ही पहले सभी दक ु ानदार और खरीददार अपने अपने घर चले जाते थे क्योंशक लोगो का मानना था शक रात में इस कस्बे में कयामत आती है ! शकिनपाल बड़ी जल्दी जल्दी दक ु ान बदां कर रहा था क्योंशक आज दक ु ान पर ग्राहक ज्यादा होने से देर हो गयी थी वो दक ु ान अांधेरा होने से पहले ही बांद कर देता था लेशकन लालच बरु ी बला है इसशलए आज उसे देर हो गयी थी !उसने जल्दी जल्दी ताला लगाया और साइशकल से चल शदया उसका घर का रास्ता उसी बाग के शकनारे वाली रोड पर पड़ता था !वो चल तो शदया लेशकन उसका शदल बहुत जोरों से धड़क रहा था अब उसे दक ु ान देर तक खोलने का पछतावा हो 2

डर कोई तो है चैप्टर 1

रहा था ! लेशकन अब तो देर हो ही चक ु ी थी अब क्या हो सकता था ऐसा कोई शठकाना भी नही था जो वहाां कहीं रुक जाता !मन ही मन भगवान को याद करते हुए वो सतकि और डरी हुई शनगाहों से इधर उधर देखता हुआ चलने लगा !बाग वाली रॉड जब नजदीक आने लगी तो उसे ऐसा लग की उसकी आूँखों के आगे अांधेरा छा रहा है उसकी डर की सीमा न रही एक पल के शलए वो रुका लेशकन रुकने से बात बनने वाली तो थी नही सो एक गहरी साांस लेकर और भगवान को याद कर उसने अपने आप मे शहम्मत का सांचार शकया और आगे बढ़ने लगा ! तभी उसको लगा शक कोई उसका पीछा कर रहा है उसका शदल जैसे हलक में आके अटक गया उसने डरते डरते पीछे देखा तो कोई भी नही शदखाई शदया ! उसकी साांस बहुत तेजी से चल रही थी तभी एक कुत्ता पेड़ के पीछे से शनकला तो उसे देख कर उसकी जान में जान आयी !वो शफर आगे बढ़ने लगा आगे बढ़ते बढ़ते जब वो बाग पार कर गया तो उसको एक आदमी आगे पैदल जाता है शदखाई शदया उसको देख कर वो अशत प्रसन्न हो गया और तेजी से साइशकल चला कर वो उसके नजदीक पहुचां गया उसने देखा शक वो तो उसके गाांव का मनोहर है उसने उसको पुकारा "मनोहर भैया ओ मनोहर भैया तशनक रुक जाओ मैं भी आ रहा ह"ूँ मनोहर ने पीछे मड़ु कर देखा और रुक गया शकिनपाल उसके नजदीक आकर बोला"मनोहर भाई क्या बात है आज पैदल" मनोहर ने शसफि मस्ु कुरा भर शदया शकिनपाल बोला"आओ मनोहर भाई पीछे बैठ जाओ दोनो साथ मे चलते हैं" दरअसल मनोहर और शकिनपाल में जरा भी नही बनती थी दोनो एक दसू रे से बात भी करना नही पसांद करते थे लेशकन आज उसी शकिनपाल को मनोहर शकसी फ़ररश्ते से कम नही लग रहा था !मनोहर शबना कुछ बोले पीछे बैठ गया शकिनपाल साइशकल चलाने लगा शकिनपाल मनोहर से अपनी आज की आप बीती सुनाने लगा मनोहर चपु चाप बैठे सुनता रहा ! तभी अचानक शकिनपाल को लगा शक साइशकल बहुत वजनदार हो गयी हो और उसको खींचना मशु श्कल हो रहा है वो बोला"अरे मनोहर भैया ये अचानक साइशकल इतनी भारी क्यों चलने लगी ऐसा लग रहा शक मैं कई कांु तल वजन खींच रहा ह"ूँ मनोहर ने कोई भी जबाब नही शदया जब साइशकल खींचना मशु श्कल हो गया तो उसने उसको रोक शदया !अरे ये क्या पीछे तो कोई भी नही था ये देख कर शकिनपाल डर गया उसने आसपास देखा लेशकन उसे कोई भी शदखाई नही शदया !"अरे मनोहर भाई क्यों मजाक कर रहे हो क्या इतने शदन की बुराई का बदला ले रहे हो भाई.देखो भाई इस तरह का मजाक ना करो मैं वैसे भी शदल का बहुत कमजोर आदमी ह"ूँ शकिनपाल आसपास देखता हुआ बोला िायद उसे लग रहा था शक उसके साथ मनोहर मजाक कर रहा है लेशकन वहाां तो कोई था ही नही ! जब काफी देर तक जबाब नही शमला तो शकिनपाल को जैसे खौफ का दौरा से पड़ने लगा शदमाग मे यही चल रहा था शक क्या उसे भरम हो गया था या कोई तो था या"कोई तो है"! तभी अचानक मनोहर उसे शदखाई शदया जो 3

निरंकार न ंह चौहाि "िीरु"

पास वाले खेत की झाशड़यों में छुपा बैठा था ये देख कर उसका डर गुस्से में तब्दील हो गया साइशकल को वहीं डाल कर वो बड़बड़ाते हुए आगे उसकी तरफ बढ़ रहा था"इस साले मनोहर को आज नही छोडूांगा साला मझु े डराता है साले ने जान ही शनकाल दी थी साला झाशड़यों में छुप कर बैठ गया लेशकन मेरी भी शनगाह काफी तेज है" कहते कहते वो उसके पास पहुचां ा और उसके कांधे को शझझोड़ कर अपने तरफ घमु ा कर बोला"तू क्या समझता है मैं डर.... बाकी िब्द उसके हलक में अटक गए मानो उसके गले मे सूखी रे त भर गई हो आांखे बाहर को उबलने लगी शदल और शदमाग सुन्न पड़ गए थे !नजारा ही कुछ ऐसा था क्योंशक मनोहर का चेहरा ही नही था ,चेहरा शबल्कुल सपाट था न आांखे ,न नाक, न होंठ बस शबल्कुल सपाट ! शकिनपाल मानो लकवे का शिकार हो गया था वो आांखे फाड़ फाड़ कर के वल उस चहरे को ही देख रहा था ऐसा लग रहा था शक उसके िरीर ने काम करना बदां कर शदया था !शदमाग अदां र ही अांदर भागने की चेतावनी दे रहा था लेशकन मानो उसके पैर जमीन से शचपक गए हो ! तभी उसके अदां र मानो चेतना का सचां ार हुआ और वो लम्बी चीख मारते हुए भागने को हुआ लेशकन उस शबना चेहरे वाले इसां ान ने उसके हाूँथ पकड़ शलए और घरघराती और रीढ़ में शसहरन पैदा करने वाली भयानक और बफि जैसी ठांडी आवाज में बोला “मैं मनोहर नही ह”ूँ ये सुनते ही शकिनपाल हाथ छुड़ा कर भागने लगा और भागते भागते ठोकर खाकर शगरा ! शफर उठ कर भागने को हुआ तो क्या देखता है वो तो उसी बाग के शकनारे खड़ा है ये देख कर उसे गि आने लगी और वो बेहोि होकर शगर गया ! ***** शकिनपाल की समझ मे कुछ नही आ रहा था शक ये हुआ क्या है? क्या वो कोई सपना देख रहा था? या सचमचु उसके साथ कोई घटना हुई है? अभी वो खड़ा यही सोच रहा था शक अचानक उस बाग से एक कुत्ता टाइप का कोई जानवर आया और उसको खींच कर उस बाग में ले जाने लगा उसकी चीख पूरे वातावरण में गूांज उठी जो िायद उसकी अांशतम चीख थी..उसके बाद वहाां ऐसी िाशां त हो गयी मानो कुछ हुआ ही न हो...!!! जब रात में शकिनपाल नही लौट कर आया तो उसके पररवार वालों ने सोचा शक िायद रात होने के कारण वो दक ु ान में ही रुक गया हो लेशकन जब सुबह वो घर नही आया तो उसकी पत्नी रूपा ने अपने बेटे सोहन को उसको देखने भेजा लेशकन वहाां शकिनपाल होता तो शमलता न.. दक ु ान भी बांद थी सोहन ने आसपास के दक ु ानदारों से उसके बारे में पूांछा तो सबने अशनशभज्ञता जाशहर 4

डर कोई तो है चैप्टर 1

की...हैरान परे िान सोहन अपनी माां के पास आया और उसको सारी बात बताई..उसकी माां तो रोने ही लगी शक उसका पशत आशखर कहाां चले गए सब पररवार वालों ने शमलकर पुशलस के पास उसकी गुमिदु गी की ररपोटि कर दी!!! बाजार में अफवाहों का माहौल गमि था सभी शकिनपाल की बात कर रहे थे शक शकिनपाल जरूर रात में बाग वाली सड़क से गया है और उस िैतानी आत्मा ने उसको बाग में ले जाकर मार शदया है! इस बात को काफी शदन हो गए पुशलस शकिनपाल का पता नही लगा पाई...हाां उसे शकिनपाल की साइशकल उसी रास्ते पर एक गहरी खाई में पड़ी शमली! आधार जयशकिन जी का लड़का था जो िहर में पढ़ाई कर रहा था और पढ़ाई पूरी करने के बाद वो आज सम्पूणि नगर आ गया था... साथ मे उसका दोस्त अशभनव भी कुछ शदनों के शलए गाांव घमू ने आया था!जयशकिन जी सम्पूणि नगर के जानेमाने रईस व्यशि थे..आधार उनका इकलौता बेटा था जो पैरानॉमिल साइसां एांड एशक्टशवटीज से ग्रैजुएिन कम्प्लीट कर गाांव आया था उसको और अशभनव को एक जाने माने यटू यबू चैनल ने पैरानॉमिल पावर पर एक डॉक्यमू ेंिी बनाने का प्रोजेक्ट शदया था शजसके शलए उन्हें अच्छी खासी रकम भी शमली थी और इशत्तफाक से उस प्रोजेक्ट की शलस्ट में सम्पणू ि नगर का वो मनहस बाग और हवेली भी थे..! अभी तक उस प्रोजेक्ट को बनाने के चक्कर मे वो शजस शजस हॉन्टेड लोके िन पर गए उन्हें वहाां कोई खास ररजल्ट नही शमला..और अगर शमला तो वो भी बहुत कम..अब उनके गृहनगर की बारी थी...! उन दोनों ने गाांव वालों से उस बाग और हवेली की जानकारी जुटानी िुरू कर दी.लेशकन शकसी गाूँव वाले ने उनको सांतोषजनक जानकारी नही दी! तभी शकसी बड़े बुजुगि ने उन्हें बताया शक गाांव के आशखर में एक साधु बाबा रहते हैं जो काफी उम्रदराज हैं िायद उनको उस बाग और हवेली के बारे में जानकारी हो?.! आधार और अशभनव उन बाबा के पास पहुचां े उस समय बाबा ध्यानमग्न थे! वो दोनों बाहर बने एक चबूतरे पर बैठ गए और बाबा का ध्यान टूटने का इतां ज़ार करने लगे करीब आधा घण्टा इतां ज़ार करने के बाद बाबा ने आख ां े खोली और उन दोनों के आने का मकसद पूांछा.आधार ने पहले अपना और अपने दोस्त का पररचय शदया शफर अपने आने का मन्तव्य जाशहर शकया...उसकी बात सनु पहले तो बाबा चौंक गए कुछ पल उनके चेहरे पर परे िानी हावी रही शफर एक हल्की मस्ु कान के साथ उन्होंने उनसे कहा"बेटे मेरी मानो तो उस बाग और हवेली के बारे में भल ू जाओ तो ज्यादा बेहतर है...क्योंशक उस बाग और हवेली का रहस्य इतना गहरा है शक कोई भी आज तक खल ु कर उसके बारे में जान नही पाया है.और शजसने भी उसके बारे में गहनता से जानने की कोशिि की वो शजांदा वाशपस नही आ पाया है शजसकी शकस्मत ज्यादा अच्छी थी वो या तो पागल हो चक ु ा है या शजांदा लाि बन गया...अां.तुम पढ़े शलखे क्या कहते हो.हाां.कोमा.कोमा में चला गया.इसशलए मेरी मानो तुम लोग उस हवेली और उसके बाग के चक्कर मे न पड़ो.और आराम से अपनी शजांदगी शजयो..."!अशभनव बोला"लेशकन बाबा आशखर ऐसा क्या है उस हवेली का राज 5

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