9789394104143 Flipbook PDF


71 downloads 111 Views 3MB Size

Recommend Stories


Porque. PDF Created with deskpdf PDF Writer - Trial ::
Porque tu hogar empieza desde adentro. www.avilainteriores.com PDF Created with deskPDF PDF Writer - Trial :: http://www.docudesk.com Avila Interi

EMPRESAS HEADHUNTERS CHILE PDF
Get Instant Access to eBook Empresas Headhunters Chile PDF at Our Huge Library EMPRESAS HEADHUNTERS CHILE PDF ==> Download: EMPRESAS HEADHUNTERS CHIL

Story Transcript

कॉफ़ी वाली चाय आँचल सोनी ‘हिया’

पेन पॉके ट बुक्स

PEN POCKET BOOKS PEN POCKET BOOKS GSTIN:27ABBFP4929M1ZR 612, Mastermind no 5, Royal Palm Estate, Aare Colony, Goregaon East, Mumbai-400065. Maharashtra India. www.penpocketbooks.com [email protected] First Published by Pen Pocket Books 2022 Copyright © 2022 by AANCHAL SONI (HIYA) All rights reserved. No part of this book may be reproduced, or stored in a retrieval system, or transmitted in any form or by any means, electronic, mechanical, photocopying, recording, or otherwise, without express written permission of the author and publisher. ISBN: 978-93-94104-14-3 Cover design: Samar Khan Marketing: Asgar Ali Typeset: Maaz Printed by: Repro India ltd.

कॉफ़ी वाली चाय

प्रस्तुत उपन्यास एक वृिद उपन्यास िै। इसे हलखने के दौरान अनहिनत बार हनराशा हुई। कई बार अंतर्मन असर्ंजस र्ें था कक, र्ैं सिी हलख रिी हं अथवा निीं? पाठकों को यि पसंद आएिा अथवा निीं? ऐसे तर्ार् सवाल जिां र्ेरे िौसलों को कर्ज़ोर करने र्ें जुटे थे। विीं कु छ ख़ास लोिों ने र्ुझर्ें धीरज व िौसला बनाए रखा। हजसके पररणार्स्वरुप यि उपन्यास आज आपके सर्क्ष प्रस्तुत िै। इस प्रस्तुहतकरण का श्रेय र्ैं अपने पररवार के सर्स्त सदस्य हवशेषकर छोटी बिन अंजहल व सहखयों को देना चाहंिी। इस श्रेय का एक बड़ा हिस्सा आदरणीय पंकज जी को जाता िै, हजन्िोने उपन्यास के प्रत्येक हिस्से र्ें अपना साथ व र्ािमदशमन बनाये रखा। लेहखका पररचय िेतू आदरणीया 'सन््या िोयल' जी को धन्यवाद देना चाहंिी और साथ िी 'पेन पॉके ट बुक' प्रकाशन कें द्र के पुरे सर्ूि के प्रहत आभार प्रकट करना चाहंिी। यि एक पारम्पररक व हन:शुल्क प्रकाशन कें द्र िो कर भी लेखक के प्रहत सर्र्पमत भाव से कायम करते िैं। आशा व्यक्त िै कक, इस कें द्र से जुड़ने वाले प्रत्येक लेखक का अनुभव र्ेरी िी तरि बेितर िोिा।

अहतहवहशष्ट श्रेय -: र्ैं अपने ईश्वर को देना चाहंिी, जो प्रत्येक क्षण र्ुझ र्ें हनहित िै और र्ेरी ख़ूब परवाि करते िै।

आँचल सोनी 'हिया'

1

आँचल सोनी ‘हिया’

2

कॉफ़ी वाली चाय

'वक़्त'... आपने नाम तो सुना ही है । ककतना ननष्ठुर, ककतना ननर्द यी, ककतना खुर्गर्द होता है । अपने ही चाल में मस्त मलंग बस चलता जाता है ... चलता जाता है ... चलता जाता है ....। इस बेपरवाह अमूतद प्राणी (मैं समय को प्राणी ही कहूंगी क्योंकक,) को कोई परवाह नहीं कक इसके ववशाल पैरों के नीचे ककतने लोग र्बते कुचलते जा रहे है , ककतनी ज़र्न्र्गगयााँ ख़त्म हो रही है , ककतने ररश्ते टूट कर बबख़रते जा रहे है , ककतने ही ऐसे कमर्ोर है, जो चलना तो चाहते है इसके साथ, लेककन उनकी ककस्मत कुपोषण का शशकार है, अतः अभागे पीछे ही छूट जाते है , लेककन मर्ाल है!! जो यह वक़्त पीछे पलट कर उन्हें एक नर्र र्े ख ले। उन पर सहानुभूनत जता र्े ... नहीं! कर्ावप नहीं। इनतहास हो या ववज्ञान हो, चाहें वेर् हो या परु ाण... ककसी ने भी वक़्त के रहमदर्ल की पुज़ष्ट नहीं की है क्योंकक सभी को यह ववदर्त था कक, इस अमूतद प्राणी को बनाया ही बेरहमी की शमट्टी से गया है । वह शमट्टी जो पहले पाषाण था, सैकड़ों अब्र् में वह कुछ कुछ शमट्टी सा बन पाया। तो ररश्तों के उसल ू व नाजक ु ता को पररभावषत करने के साथ ही वक़्त के इस खुर्गर्ी का हाल सुनाएगी मेरी कहानी "कॉफ़ी वाली चाय"। 'कॉफ़ी वाली चाय' एक ऐसा उपन्यास नहीं, जो मात्र कॉफ़ी अथवा चाय के ही इर्द गगर्द घूमता हो, वरन यह ऐसी कहानी है जो कक आपके ररश्ते, वक़्त व ज़र्ंर्गी को पररभावषत कर आपको आपके ररश्तों की व्याख्या समझाती है । एक कहानी... ज़जसमें जीवन है, एहसास है, अनभ ु व है । जो आपको कहीं गुर्गुर्ाएगी, कहीं रुलायेगी, कहीं रोएं खड़े कर र्े गी, तो कहीं रोमांगचत हो उठें गे आप। वक़्त की इस बेरुखी और ररश्तों के बर्लते शसलशसले को आप नर्र्ीक

3

आँचल सोनी ‘हिया’ से र्े ख पाएंगे। एक इंसान जन्म से ले कर मरण तक क्या खोता है .. क्या पाता है ... और अंत में उसके समक्ष उसके दहस्से में क्या बच जाता है । पूरी कहानी से रूबरू होने के शलए बने रदहये मेरे साथ इस कहानी के हर एक भाग में। हमें ऐतबार है , इस कहानी का कोई न कोई दहस्सा आप अपने आप और अपनी ज़र्ंर्गी से र्रूर जोड़ पाएंगे। यक़ीनन ये कहानी आपको बहुत कुछ शसखायेगी, आपके मुरझाये ररश्तों में प्राण फूंक जायेगी... ररश्तों को ननभाने का अर्ब बताएगी। :}

प्रिय पाठक हे तू संदेश यह एक संवार् उपन्यास है, अत: तननक धीरज से पढें । यकीनन ककस्से आपको रास आयेंगे, और आशा व्यक्त है कक.... इस उपन्यास को पूरा पढने के बार् आप पाएंगे कक बीते बारह घंटों में आप अपने वास्तववक समय से बहुत आगे की एक र्स ू री ज़र्ंर्गी जी कर अब अपने असल ज़र्ंर्गी में वापस लौट आये हैं। :》

'खुश रदहये, मस्त रदहये, व्यस्त रदहये।।‘ (*˘︶˘*).。.:*♡

आँचल सोनी 'हिया'

4

कॉफ़ी वाली चाय

भाग-1

शुरुआत एक कारवां की याहर्नी ििराती जा रिी थी। व्याख्या के लोचन र्ें नींद ने भी दस्तक दे दी थी। उसने घड़ी की ओर देखा तो ठीक पौने दो बज रिे थे । व्याख्या जब भी पौने सर्य को देखती थी, उसे स्वाभाहवक रूप से भावाथम की बातें याद आ जाती थी। भावाथम कोई भी अच्छा कार् पौने बजे निीं करता था, और उसे भी ऐसा करने को र्ना भी ककया करता था। व्याख्या कॉपी ककताब बंद कर अपने अ्ययन र्ेज पर रखती िै, और अपने हबस्तर पर आ जाती िै। सदैव की भांहत वि सोने से पूवम हसरिाने से अपनी डायरी हनकालती िै, और डायरी के ठीक बीच के पन्नों को खोलती िै, हजसर्ें 8’'×10’' आकार की एक तस्वीर रखी िोती िै। यि तस्वीर व्याख्या के कर्रे के र्ेज़ पर रखी फ़्रेर् की थी, हजसर्ें से तस्वीर हनकाल कर व्याख्या ने चंडीिढ़ से कदल्ली आते वक़्त अपनी डायरी र्ें रख हलया था । उस तस्वीर र्ें व्याख्या के संि एक लड़का भी था। वि लिभि व्याख्या का िर्उम्र कदखता िै, हजसके शरीर का रं ि पीला िै, िजार्त से हचकना, आँखें र््यर् आकार की ( ना छोटी, ना बहुत बड़ी ), बालों का रं ि काला, छरिरा बदन व लंबाई भी कु छ पांच फीट सात या आठ इं च के आस पास की र्ालूर् िो रिी थी। व्याख्या उस तस्वीर को रोज़ाना की भांहत इस हनशा भी खूब हनरे खती िै। अपने दाएं िाथ की उं िहलयों से सिलाती हुई, हनिािों से दीदार करती िै। व्याख्या की आँखें नर् थीं। वि अपने डायरी र्ें लिे कलर् को उठाती िै, और कु छ हलखने लि जाती िै... बेइंतिां-बेशुर्ार-बेहिसाब र्ुिब्बत िै र्ुझे बदले र्ें कोई ख़ास ख़्वाहिश निीं बस, तुम्िारे इं तज़ार की जरूरत िै, र्ुझे।

5

आँचल सोनी ‘हिया’ व्याख्या इतनी सी पंहक्त हलख कर पूणमहवरार् लिाती िी िै कक उसके लोचन से एक अश्रु बूंद कपोल तक का सफ़र तय ककए बिैर िी लोचन से पलकों और पलकों से सीधा डायरी के पन्नों पर उसके द्वारा लिाए िए पूणमहवरार् के ठीक बिल जा हिरता िै। "तूम्िें भी तो र्ेरी याद आती िोिी न...! ज़रुर आती िोिी। र्ुझे बख़ूबी खबर िै, तूम्िें िर रोज़ र्ेरी कर्ी र्िसूस िोती िोिी। ठीक िै, िर्ने कसर् दे रखी िै कक, तुर् र्ुझे कोई कॉल, र्ैसेज निीं करोिे तो क्या तुम्िारे पास कोई और तरीका निीं हजससे तुर् र्ुझ तक अपनी बात पहुंचा दो। ख़ैर जो भी िो कफ़लिाल कु छ िलती तो र्ेरी भी िै, लेककन र्ैं र्जबूर हं। तुर् अपना ख़्याल रखना। बाकी र्ेरी दुआ तो िर्ेशा तुम्िारे संि िै। र्ैं जल्द िी आऊंिी।" व्याख्या स्वयं से आलाप करती, डायरी और एक तककया अपने सीने से लिाए, कु छ सोचते हवचारते अिले आठ घंटे के हलए आँखें र्ूंद लेती िै।

एक दीघामवहध पूवम ........ "रहमर्...रहमर्... किां िो बाबा?" इं द्राणी आसर्ानी रं ि की साड़ी पिने िाथ र्ें एक छोटा सा थैला हलए, फु ती से चली आ रिी थी। "आई बाबा आई।" रहमर् अपने भींिे बाल को तवली करती हुई, धीरे धीरे अपने कर्रे से िॉल र्ें आ रिी थी। "क्या बताऊं इं द्रा...िालत एकदर् खस्ता िो िई िै। अब तो नौ र्िीने पूरे िोने को आ िए, पिले र्िीने के छठवें-सातवें कदन से ले कर आज तक र्ुझे एक कदन भी सार्ान्य र्िसूस निीं हुआ िोिा। िर कदन हर्जाज़ अजीब सा रिता िै। कु छ ना कु छ लिा रिता िै। जाने कै से लोि तीन चार बच्चे कर लेते िै। र्ेरी तकलीफ़ तो उद (उद - रहमर् का पहत) को भी निीं देखी जाती। कल रात िी कि रिे थे... भिवान करे तूम्िे जुड़वाँ बच्चे िो जाएं। एक िी बार र्ें दोनों बच्चे िो जाय तो बहुत अच्छा िोिा। क्योंकक र्ैं दुबारा तूम्िें इस अवस्था र्ें निीं देख पाऊंिा।" अपनी व्यथा बताती हुई, रहमर् सोफे पर कु शन के सिारे बैठ जाती िै। "िा िा िा.... कर्ाल का लॉहजक लिाया उदय भाई सािब ने। र्तलब एक िी बार र्ें दो बार का िल हनकालने को सोच हलया। चलो अच्छा ककया तुर्ने बता कदया। अब र्ैं भी भिवान से अरदास करूंिी कक उदय भाई सािब की र्नोकार्ना पूरी िो जाए।" इन्द्राणी रठठक कर िँस पड़ती िै।

6

कॉफ़ी वाली चाय "अब घर का कार् भी निीं िो पाता इं द्रा। हझनकी चाची झाड़ू पोछा और बतमन तो कर जाती िै, पर खाना और उपरी कार् तो र्ुझे िी करना िोता िै, और अब वो भी कर पाना र्ुहमकल िो रिा िै।" रहमर् ने किा। "तो तुर् र्ायके से ककसी को बुला क्यों निीं लेती?" इं द्रा ने किा। " ककसको बुलाऊं इं द्रा! पापा की तबीयत खुद ठीक निीं रिती और र्म्र्ी की भी उम्र िो चली िै। भाभी आएिी निीं, और दीदी पर उसके ससुराल की पूरी हजम्र्ेदारी िै, कफ़र वो आने से रिी।" रहमर् "ओि ! चलो तुर् कफ़क्र र्त करो। र्ैं हं न। जिां तक िोिा करूंिी िी। किीं-किीं चाि कर भी निीं कर पाती तो तुर् सर्झ िी सकती िो। भाव (भावाथम) अभी एक साल का िी िै। उसे भी संभालना िोता िै। अभी तो भाव को प्रभु (प्रभु - प्रभात इं द्राणी का पहत) भरोसे छोड़ कर आई हं।" इन्द्राणी “ इं दु तुर् ककतनी अच्छी िो। आज कल तुर् जैसी दोस्त या बिन का हर्ल पाना आसान निीं िै। ख़ैर! इस थैले र्ें क्या िै? कोई कार् की चीज़ िो तो बािर हनकालो वरना ठं डी िो जाएिी।" रहमर् ने र्ुस्कु रा कर किा। असल र्ें जब भावाथम निीं हुआ था, और इं द्राणी दोिरे हस्थहत र्ें थी, तो रहमर् ने ककस्र् ककस्र् के पकवान बना कर इं द्रा को पहुंचाए थे। तो स्वेच्छा पूवमक अबकी बारी इं द्रा की थी। इं द्रा और रहमर् दोनों की शादी आिे पीछे हुई थी। शादी से पिले दोनों का एक दूसरे से कोई ताल्लुक निीं था। इं द्रा हिंदी साहित्य की प्रोफे सर व कायर् हर्जाज़ र्हिला थी और रहमर्, घरे लू व व्याविाररक थी। दोनों की र्ुलाकात चंडीिढ़ के र्हनर्ाजरा के एक पाकम र्ें हुई थी। जब िर रोज़ भोर र्ें इं द्रा और रहमर् विां टिलने जाती थीं, तो इत्तफ़ाक से दोनों की र्ुलाकात िो िई। विीं बातचीत के दौरान दोनों को खबर हुआ कक दोनों िी वाराणसी से संबंध रखती िै। इं द्रा वाराणसी के र्िर्ूरिंज व रहमर् िोदौहलया की रिने वाली िै। दोनों की शादी चंडीिढ़ हुई थी, और संयोि से दोनों का घर भी आसपास िी था और वक़्त के साथ एक दूसरे की बहुत ख़ास िो ियी थीं। "वैसे लाई क्या िो?" रहमर् ने किा। "र्ैं क्यों बताऊं...? तुर् िी खोल के देख लो।" इं द्रा ने थैले से दो छोटे िोलाकार रटकफन हनकाल कर रहमर् की ओर बढ़ाते हुए किा " खुशबू तो जानी पिचानी सी आ रिी िै। वाि क्या बात िै, सूजी की खीर। ओि र्ैं अब क्या बताऊं, तुर् कदल की आवाज़ सुन लेती िो क्या! पता िै, कल रात उद से र्ेरी यिी बात िो रिी थी, उन्िोंने पूछा कक हडलीवरी के बाद सबसे पिले अपने िाथों से क्या बनाओिी? और र्ैंने किा सूजी की खीर। और देखो आज तुर्ने लाकर दे िी कदया। अब इस दूसरी रटकफन र्ें क्या िै? वाि वाि वाि के ले के कोफ्ते आज तो र्ज़ा आ िया। थैंक्यू थैंक्यू थैंक्यू सो र्च इं द।ु " " पर तुर्ने इतना कु छ बना कै से हलया? भाव ने भी काफी परे शान भी ककया िोिा।" रहमर् र्ुँि र्ें एक हनवाला भरती हुई।

7

आँचल सोनी ‘हिया’ "िां सच कहं तो उसने बहुत परे शान ककया, पर र्ैंने जब र्न बना िी हलया था तो बना कदया। सोचा बस कु छ कदन की और बात िै, र्ैनेज कर लेते िै। वरना र्ेरी आने वाली हबरटया का लार टपकने लिेिा।" इं द्रा ने किा। "एक बात बताओ इं द्रा तुर् बार-बार बेटी की िी हजक्र करती िो। अिर बेटा हुआ तो क्या तूम्िें ख़़ुशी निीं िोिी!" रहमर् ने किा। "रहमर् असल र्ें र्ुझे बेरटयों का बहुत शौक िै और र्ैं चािती थी कक र्ुझे पिले बेटी िो। लेककन कान्िा की र्जी से बेटा हुआ। भाव बहुत प्यारा बच्चा िै। लेककन अब भी र्ेरे कदल से बेटी हखलाने की इच्छा िई निीं िै, और तो और र्ुझर्ें डायहबटीज की हशकायत आ िई िै। िालांकक अभी शुरुआती दौर िै, अिर र्ैं परिेज करुं और अपना ्यान दूं तो यि हबल्कु ल ठीक िो जाएिा। पर अिर यि पूरी तरि ठीक निीं िोता िै, तो र्ेरा दूसरी बार र्ां बनना ठीक निीं िै। क्योंकक उस बच्चे को भी कर् उम्र र्ें डायहबटीज िो जाने की संभावना बहुत िद तक िै, और पता निीं क्यों र्ेरा कदल किता िै कक, तूम्िें बेटी िी िोिी।" इं द्रा किती िै। "तूम्िें डायहबटीज की हशकायत िै, और यि बात र्ुझे अब बता रिी िो?" रहमर् "लो जी कर लो बात, र्ुझे पता था, कक तुर् अब छोटी र्ोटी बात का टेंशन ले बैठोिी। इसहलए तो सोचा था, कक ना बताऊ और सच र्ें निीं बताना चाहिए था। तुर् परे शान क्यों िोती िो र्ुझे कल िी तो पता चला और तुर् कफ़क्र र्त करो। र्ैं ठीक िो जाऊंिी। तूम्िें पता िै ना! र्ैं जीवन, स्वास््य, हशक्षा को लेकर ककतनी जािरूक हं।" इं द्राणी रहमर् को हचंतार्ुक्त करने के हलए सर्झाने का भरसक प्रयास करती िै। "िां िां र्ुझे खूब पता िै, तुर् ककतनी जािरूक िो। अब एक बात का ख़ास ख्याल रिे, आलू चावल र्ीठा यि सारी चीजें तुर् छु ओिी भी निीं। बहल्क र्ैं तो किती हं, घर र्ें बनाना िी निीं। और सच सच बताना सूजी की खीर बनाया तुर्ने तो, खाए भी िोंिे?" रहमर् " निीं बाबा! प्रभु को जानती िो ना वि र्ुझे ले कर ककतने िंभीर िै। हबल्कु ल खाने निीं देते" "वाि क्या बात िै। दोनों सखी की परस्पर िुटरिूं चल रिी िै। ज़रा िर्ें भी बताया जाए क्या बात िो रिी िै।" उदय रहमर् की चेकअप के हलए डॉक्टर के पास से कल का नंबर लिवा कर आया था। "आप आ िए। कल ककस नंबर पर िै िर्?" रहमर् ने पूछा। "26 वां नंबर िै। कल घर से 10:00 बजे िी हनकलना िोिा। इं द्राणी जी आज कफ़र कु छ ले आई?" उदय "िां देखो ना र्ेरे हलए सूजी की खीर और के ले के कोफ्ते बना कर लाई िै। इस पर खुद इतनी हजम्र्ेदाररयां िै, और कफ़र भी र्ेरे बारे र्ें इतना सोचती िै।" रहमर्

8

कॉफ़ी वाली चाय "देख लीहजए इं द्राणी जी एक कदन र्ें कर् से कर् दो-तीन बार तो आपके िुन िा िी देती िै । हबल्कु ल बिन जैसी र्ानती िै। इसहलए र्ैं किता हं, र्ुझे आप जीजा जी सर्झा करें । आप िी िै कक, खार्खा भाई सािब का संबोधन कदए कफरती िै।" उदय " िा िा िा... क्या करूं भाई सािब! हिंदी की प्रोफे सर हं ना, र्ज़ाक भी र्यामकदत िोकर करना पड़ता िै। इसहलए आपको भाई सािब का संबोधन देती हं।" इन्द्राणी "बस इतनी सी बात िै, तो आपको पिले बताना चाहिए था। आप संबोधन लिा लीहजए, िर् लॉहजक लिा लेंिे। आप हिंदी की प्रोफ़े सर िै, तो िर् भी कभी िहणत के छात्र रिे िै। आप भाई सािब बोहलए और िर् र्ाना कक एक्स बराबर दो (x=2) की जिि, र्ाना कक भाई सािब बराबर जीजा जी र्ान लेंिे। रक्षाबंधन पर आप राखी बांहधयेिा। िर् उसे हर्त्र सूत्र सर्झ लेंिे।" उदय र्स्त हर्ज़ाज व र्जाककया ककस्र् के शख्स थे। इं द्राणी, रहमर् और उदय संि-संि अट्टिास करते िै। " वैसे भाव निीं कदख रिा...उसे घर िी छोड़ आईं क्या? " 'उदय' "िां आज प्रभु ऑकफस निीं िए िै। तो भाव को संभाल रिे िै।" इं द्राणी " भाव को क्यूं छोड़ आईं? उसे ले कर आना था, न। आज तीन कदन िो िए उसे िोद हलए।" "ना भाई सािब िर्ने भी सोचा कक भाव को साथ ले चलूं। लेककन प्रभु अब तक निाए निीं िै, और निाए हबना किीं जाते निीं। उनका फोरव्िीलर र्ुझे ड्राइव करना निीं आता िै। और भाव स्कू टी पर संभलता निीं तो र्ुझे अके ले आना पड़ा।" " कु ल हर्ला कर आप अके ली आई िै। कफर चहलए घुर्ाते कफराते घर तक छोड़ आते िै।" उदय ने र्ज़े र्ज़े र्ें किा। " ना ना भाई सािब! कभी जरूरत रिी तो बेहिचक कहंिी। आज तो िर्ारे स्कू टी र्ें तेल पयामप्त िै। र्ैं घर तक पहुंच जाऊंिी।" इं द्रा ने उदय के लिज़े र्ें जवाब कदया। "अच्छा अब र्ैं चलती हं। कोई बात िोिी तो र्ुझे सूहचत करना, और िां बस कु छ कदन की बात और िै, तो अपना ख़्याल रखना।" इन्द्राणी " ऐसे कै से चलती िो....अभी अभी तो आई िो। अरे ! पूरा कदन अके ले बोर िो जाती हं। ज़रा तो ठिरो।" रहमर् इन्द्रा को रोकती हुई। "रहमर् सर्य हनकाल कर कफ़र आ जाऊंिी। अभी जाने दो, पूरा घर अस्त व्यस्त पड़ा िै। राधे राधे भाई सािब!" इं द्राणी चली जाती िै। "जी राधे राधे।" उदय

"उद र्ुझे कु छ िो जाएिा...अब और निीं सिा जाता। उद...उद...." रहमर् प्रसव पीड़ा से ग्रस्त थी। वि उदय का िाथ ज़ोर से पकड़े चीखी जा रिी थी। 9

आँचल सोनी ‘हिया’ "रहमर् तुर् ज़रा भी घबराओ निीं। र्ैं हं, न। र्ैं अभी िॉहस्पटल ले चलता हं। तूम्िें कु छ निीं िोिा रहमर्। र्ुझपर भरोसा रखो।" उदय रहमर् को अपने आिोश र्ें भर कर िाड़ी र्ें बैठता िै, और इं द्रा को फ़ोन हर्लाता िै। "इतनी सुबि ककसका फोन था, इं द? ु " प्रभात पूछता िै। "उदय भाई सािब का... कि रिे िै, रहमर् को उदर र्ें ददम उठ रिा िै। अभी उसे ले कर वि िॉहस्पटल हनकले िै। िर्ें भी जाना िोिा। वो अके ले निीं संभाल पाएंिे।" "ठीक िै, कफ़र तुर् भाव को तैयार करो। र्ैं िाड़ी हनकालता हं।" "निीं प्रभु... र्ैं अके ले जाऊंिी। भाव को िॉहस्पटल का र्ािौल ठीक निीं लिेिा। अिर रोने हचल्लाने लिा तो सब परे शान िोंिे। वैसे भी कु छ घंटे की तो बात िै, कफ़र र्ैं आ िी जाऊंिी। रसोई र्ें र्ैं दूध िरर् कर के रख देती हं। भाव जब सो के उठे तो उसे हपला देना।" रहमर् हनरं तर अपने चीख से उदय के कान व हृदय पर ििरा वार करती िै। उदय घबरािट के र्ारे िाड़ी ढंि से निीं चला पाता िै। वि पुनः इं द्रा को फोन करता िै, और िॉहस्पटल चलने के हलए अपने िी िाड़ी र्ें रहमर् के साथ बैठने को किता िै। ताकक रहमर् को सिारा हर्ल सके । उदय सावधानी को र्द्देनजर रखते हुए, उहचत रफ़्तार से िाड़ी चला रिा था। इं द्रा रहमर् को अपने बांि से सिारा कदए, बैठाए रिती िै। "उद... र्ैं निीं बचूंिी। अब और निीं सिन िोता। र्ुझे कु छ िो जाएिा...पर िर्ारे बच्चे को कु छ निीं िोने देना। इं द.ु ..इं द.ु .. तुर् संभाल लोिी न। इं दु संभाल लेिी बच्चे को उद तुर् अपना ख़्याल रखना। अब निीं बचूंिी उद...अब निीं बचूंिी।" रहमर् की पीड़ा पराकाष्ठा पर थी। अब उसके सिन शहक्त की बेड़ा पार िो चुकी थी। उदय और इं द्रा उसे भरपूर सिानुभूहत प्रदान कर रिे थे। कु छ िी देर र्ें वो पीजीआई अस्पताल पहुंचे और रहमर् को भती कराए। "इं द्रा जी र्ुझे तो बड़ी हचंता िो रिी िै। रहमर् को ददम बदाममत निीं िोता। र्न बहुत घबरा रिा िै। किीं कोई अनिोनी ना िो जाए...!" उदय भावुक स्वर र्ें किता िै। "भाई सािब आप तहनक भी ना घबराएं। अरदास करें ईश्वर से कक सब अच्छे से िो जाय। देहखएिा ईश्वर िर्ारी सुन लेंिे, और कु छ िी देर बाद आपकी ख़़ुशी की सीर्ा निीं रिेिी।" कु छ दो घंटे सोलि हर्नट के इं तज़ार के बाद.... "हर्स्टर उदय... सर्य क्या िो रिा िै?" हडलेवरी वाडम से बािर हनकलते िी डॉक्टर पूछता िै। "जी छ: बज के चालीस हर्नट...रहमर् अब कै सी िै? उसे ददम से हनजात हर्ला?" "जी अभी तो वो ठीक िै। आप ये बताइए अब तक दुकान खुल िई िोिी न?" डॉक्टर "जी आप बताइए क्या चाहिए? िर् ले आएंिे।" "बताना क्या िै... पायल, हबंकदया, कं िन, काजल का इं तजार् कीहजए।" डॉक्टर र्ुस्कु राते हुए। "र्तलब र्ैं कु छ सर्झा निीं....." उदय अटक कर सवाल करता िै। "अरे ! भाई बेटी हुई िै। बधाई िो।" डॉक्टर 10

कॉफ़ी वाली चाय "क्या बेटी...रहमर् को बेटी हुई िै?" उदय की आँखें नर् िो जाती िै। चेिरे पर अलौककक चर्क हबखर जाती िै। "िां भाई सािब िर्ारे भावाथम की सखी आई िै। बहुत बहुत बधाई आपको। कान्िा का लाख लाख शुक्र िै।" इं द्रा हखलहखलाते स्वर र्ें किती िै। "डॉक्टर सािब! िर् रहमर् को घर कब तक ले जा सकते िै?" इं द्रा पूछती िै। "बस अिले एक घंटे र्ें हडस्चाज़म कर देंिे।" ' डॉक्टर ' "इं द्रा तुर्ने बहुत ककया र्ेरे हलए। किो क्या दूं तूम्िे...?" हबछौना पर आरार् करती रहमर् अपने हसरिाने बैठे इं द्रा से किती िै। "ओि! तो ये बात िै। ठीक अिर कु छ देना िी चािती िो तो र्ांि लेती हं। र्ेरा हृदय अलापता था, कक तूम्िे बेटी िोिी, और िकीकत र्ें बेटी िी हुई। तो तुर् हबरटया के नार् रखने का अहधकार र्ुझे दे दो। र्ुझे बड़ी ख़़ुशी िोिी।" इं द्रा रहमर् के र्ाथे पर तेल धरते हुए किती िै। "अच्छा अब बहुत सर्य निीं रिा िै। र्ात्र पांच कदन रि िए िै, छठी को। तो अभी से तैयारी शुरू कर दो। कु छ ख़ास लोि भी आएंिे तो कार् ज्यादा िै।" इं द्रा किती िै। "िां तूम्िारा किना ठीक िै, इं द।ु अिर तूम्िे अनुहचत ना लिे तो एक कार् करते िै। तुर् और प्रभात भैया भी भाव को ले कर कु छ कदन के हलए यिीं आ जाओ। बार बार का आना जाना थका देिा, और अके ले सब र्ेरे बस का िै, निीं। तो क्या किती िो कु छ कदन यिीं साथ साथ रि लेंिे सभी लोि...." रहमर् "वैसे कि तो तुर् ठीक रिी िो। िां ठीक िै। र्ैं प्रभात से बात कर लूंिी। कफ़लिाल चलती हं, भाव प्रभु से ज्यादा देर निीं संभलेिा। प्रभु से बात कर के तूम्िें फोन करूंिी। अिर अभी आना हुआ तो यिीं खाना बना दूंिी और कल तक आना हुआ तो र्ैं खाना बना के प्रभु से हभजवा दूंिी। तुर् अपना ख़्याल रखना।" *** इं द्राणी फोन करके कु छ िी देर र्ें अपने आने और छठी तक एक िी संि रिने की सूचना रहमर् को दे देती िै। आज रहमर् के बच्ची की छठी िै। घर की साज सज्जा, र्ेिर्ान की खाहतरदारी, खान-पान, नाच-िीत सारा हजम्र्ा इं द्राणी अके ले उठा रखी थी। प्रभात का कायम भाव को संभालना और उदय का कायम कु छ फु टकर कार्ों को देखना र्ात्र था। यिां तक कक रहमर् को भी िुलाबी रं ि के वाराणसी सूट सलवार र्ें इं द्रा ने सजा संवार रखा था, और बच्ची की सौंदयम को तो शब्दों की र्ाला र्ें हपरो पाना लिभि नार्ुर्ककन सा था। इं द्रा बच्ची को पीला तथा लाल रं ि सहम्र्श्रण लिंिा पिना कर, िाथो र्ें चांदी के बेरवे, पैरों र्ें पायल, चांदी की कर्धमन पिना कर आँखों र्ें चौड़ी काजल और र्ाथे पर अधमचंद्र का हतलक लिा दी थी। इस रूप र्ें वि साक्षात नवजात रर्णीय राधा लि रिी थी। उस कदन की सांझ भी र्न र्ोिने वाली थी। ििन र्ें सातों रं ि पंहक्तबद्ध िो कर हनरं तर अपने आप से इस 11

आँचल सोनी ‘हिया’ सांझ के कायमक्रर् को दोिुना रोर्ांहचत बना रिे थे। ऐसा प्रतीत िोता था, र्ानों आज कृ ष्ण भी बहुत आनंद र्ें थे। वो भी इस बच्ची र्ें स्पष्टत: नवजात राधा का अवलोकन कर पा रिे थे। यि सारा हजम्र्ा बड़े सिजता से इं द्रा हनभा ले जा रिी थी। सर्य सर्य पर वि भाव की भूख भी हर्टा आती थी। धानी रं ि की साड़ी र्ें र्ुख पर िररयाली की दीहप्त हलए वि बड़े फु ती से प्रत्येक कायम करती जा रिी थी। उसके हजम्र्ेदारी विन करने की शहक्त र्ें इतनी लचक थी, कक उसे स्वयं ज्ञात न था, उस पर ककतना भार िै। जब वि धानी रं ि की इस साड़ी र्ें फु ती से चल कर चारों ओर की व्यवस्था देखती थी, तो ऐसा र्ालूर् पड़ता था, र्ानो वि र्नी प्लांट की िरी भरी लता िो हजसकी शाख़ चारो ओर फै ला दी िई िै। कायमक्रर् का रुख हवरार् की ओर र्ुड़ िया था। अब नार्करण का प्रोग्रार् र्ात्र शेष रि िया था। सभी के बीच बच्ची के पुकार का नार् रखना था। इसी नार् का उच्चारण कर के सभी बारी बारी बच्ची को आशीवामद देते। सभी रहमर् से बच्ची का नार् बताने को किते िै। लोि उत्सुक रिते िै, कक रहमर् ने अपने पिले बच्चे के हलए कौन सा अनोखा नार् सोच रखा िै। रहमर् इं द्रा को बुलाती िै, और बच्ची को िोद र्ें लेकर बैठने को किती िै। "र्ैंने र्ेरी बच्ची को जन्र् जरुर कदया िै, पर इं दु ने यशोदा सा फज़म अदा ककया िै। और र्ुझे पूरा हवश्वास िै, इं दु र्ेरी बच्ची को ले कर र्ुझसे ज्यादा िंभीर रिेिी। यि सदा अपनी लाडली पर अपना स्नेि लुटाएिी। तो बच्ची के नार्करण का पूणमतः अहधकार इं दु को जाता िै। चलो बताओ इं दु कौन सा अनोखा नार् सोच रखा िै, तुर्ने भावाथम की सखी के हलए..?" रहमर् संतूष्ट दृहष्ट से इं द्रा की ओर ताक कर किती िै। "अरे , बिन जी! आपने भी कौन सा अहधकार इसके हिस्से दे कदया। अब ये हिंदी साहित्य की िंिा र्ें डु बकी लिाएिी और रीना-र्ीना, सीता-िीता जर्ाने वाला कोई नार् रख देिी। कफ़र बच्चे बड़े िो कर िर्से पूछेंिे, र्ेरे दोस्तों के इतने आधुहनक नार् िै। आप सब को कोई ढंि का नार् निीं सूझा ..? अब भाव को िी देख लीहजए...जन्र् के पिले से र्ैंने ना जाने ककतने बकढ़या बकढ़या नार् सोच रखे थे। पर चली इन्िीं की। रख कदया नार् 'भावाथम'। जब भी अथम पूछता हं, कि देती िै, एक्सप्लनेशन।" प्रभात रहमर् से कि कि कर इं दु की कफरकी लेता िै। "निीं निीं भाई सािब! इं दु ने बहुत बकढ़या नार् रखा िै, और र्ैं आपको भरोसा कदलाती हँ कक बच्चे इं द्रा पर कभी सवाल निीं करें िे, वरना हजस कदन इन्िें इस नार् का अथम सर्झ आएिा। उस कदन अपने नार् पर यि िवम करें िे। इं दु ने बहुत सोच सर्झ कर रखा िै।" रहमर् भावाथम को अपने िोद र्ें लेते हुए किती िै। "िां प्रभात भाई, आप जो भी किें िर् पर कोई फ़कम निीं पड़ने वाला। बच्ची का नार् तो इं द्रा जी िी रखेंिी।" उदय र्ुस्कु रा कर किता िै। "चहलए इं द्रा बिन अब अपने अहधकार को चररताथम कीहजए। बताइए िर् सबको भी कक हबरटया का क्या नार् सोचा िै।" आस पड़ोस की कु छ औरतें इं द्रा से किती िै। इं द्रा बच्ची को िले से लिा कर, उसे र्न भर के हनरे खती िै, कफर र्ाथे पर चुंबन करती हुई किती िै... 12

कॉफ़ी वाली चाय 'व्याख्या।' व्याख्या रिेिा भावाथम की सखी का नार्। यि अहद्वतीय नार् हजसके सर्झ र्ें आता िै, वि अंतर्मन सहित र्ुस्कु राते िै, और हजसे सर्झ र्ें निीं आता वि सभी को र्ुस्कु राते देखकर र्ुस्कु राते िै। सभी व्याख्या का नार् पुकार के उसे आशीवामद देते िै। कायमक्रर् सर्ाप्त िो जाता िै। सभी अपने घर चले जाते िै। अब उदय रहमर् व प्रभात इं द्रा र्ें परस्पर कदन भर के चुहनंदा पलों पर चचाम िोने लिती िै। "वैसे इं द्रा बुरा ना र्ानो तो एक सवाल करना था। लेककन िुस्सा ना करो तो िी पूछूं, वरना कोई बात निीं। िूिल नार्क िुरुदेव तो िै िी अपने पास, उन्िीं से जान लेंि,े लेककन तुर्से जानने का र्न था, तो सोचा तुर् िी से पूछ लूं।" प्रभात किता िै। "प्रभु आप सवाल तो दािें। िर् ज़वाब ज़रुर देंिे।" इं द्रा र्स्ते हर्ज़ाज िोकर किती िै। "व्याख्या नार् का क्या अथम िै?" 'प्रभात' "एक्सप्लनेशन।" 'इं द्रा' "दोनों के नार् का एक िी अथम..?" 'प्रभात' "जी िां दोनों के नार् का एक िी अथम। और कु छ...." "तो यि दोनों ककस कहवता के भावाथम और व्याख्या िै..?" प्रभात पुन: इं द्रा की कफरकी लेता िै। "यि भावाथम िै खुहशयों का, तो यि व्याख्या िै जीवन की। यि भावाथम िै उम्र्ीद का, यि व्याख्या िै हवश्वास की। यि भावाथम िै सकारात्र्कता का, तो यि व्याख्या िै सफलता की।" इं द्रा िंभीरता पूवमक ओजपूणम स्वर र्ें एक कांहतर्य र्ुस्कान सहित एक िी प्रवाि र्ें बोलती चली जाती िै। "अरे ! बस बस इं दु तुर् तो िंभीर िो िई। अच्छा अिर तूम्िें बुरा लिा िो तो र्ैं र्ाफ़ी चाहंिा। लेककन सच किता हं, र्ैं चािता था इस नार् को तुर् पररभाहषत करो। इसहलए जानबूझकर र्ैंने ऐसा ककया। तुर् बहुत ख़ास िो। तुर् र्ेरे जीवन की प्रकाश िो। एक ऐसी अलौककक प्रकाश हजससे जुड़े िर ररमते, िर वस्तु प्रकाशर्य िो जाते िै।" प्रभात एक ओर से इं दु को अपने बािों र्ें लेते हुए किता िै। "भाई जी र्ैं आपके प्रत्येक पंहक्त से सिर्त हं। इं द्रा एक शख़्स और एक शहख्सयत दोनों िी रूप र्ें अहद्वतीय िै।" रहमर् की इस बात र्ें उदय भी िार्ी भरता िै। "आप सभी के द्वारा अपने प्रहत इतनी तारीफ़ सुन कर, र्ेरे ख्याल र्ें िर्ारे हिन्दी साहित्य का एक अर्ूल्य हवचार उतर आया िै।" इं द्रा हवचरण की हस्थहत र्ें किती िै। "कृ पया इस हवचार से िर्ें वंहचत ना रखें। िर्ें भी अवित कराया जाय। क्यों प्रभात भाई..." उदय प्रभात को अपनी बात र्ें िार्ी भरवाते हुए किता िै। "जी हबल्कु ल हबल्कु ल। िर्ें भी उस हवचार से अवित कराया जाय।" प्रभात उदय की बात र्ें जबरदस्त िार्ी भरता िै।

13

Get in touch

Social

© Copyright 2013 - 2024 MYDOKUMENT.COM - All rights reserved.