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Story Transcript

अनकही बातें

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अनकही बातें

लेखक: नेहा राजपूत प्रकाशक:

Authors Tree Publishing Authors Tree Publishing House W/13, Near Housing Board Colony Bilaspur, Chhattisgarh 495001 First Published By Authors Tree Publishing 2022 Copyright © Neha Rajput 2022 All Rights Reserved.

ISBN: 978-93-94807-05-1

प्रथम संस्करण: 2022 भाषा: हहदिं ी सर्ााधिकार: नेहा राजपत ू

यह पुस्तक इस शर्त पर हिक्रय की जा रही है हक लेखक या प्रकाशक की हलहखत पूिाानुमहत के हिना इसका व्यािसाहयक अथिा अन्य हकसी भी रूप में उपयोग नहीं हकया जा सकता। इसे पुनःप्रकाहशत कर िेचा या हकराए पर नहीं हदया जा सकता तथा हजल्द िदिं या खल ु े हकसी भी अन्य रूप में पाठकों के मध्य इसका पररचालन नहीं हकया जा सकता। ये सभी शतें पुस्तक के खरीदार पर भी लागू होंगी। इस सिंदभा में सभी प्रकाशनाहिकार सुरहित हैं। इस पुस्तक का आिंहशक रूप में पुनः प्रकाशन या पुनःप्रकाशनाथा अपने ररकॉर्ा में सुरहित रखने, इसे पनु ः प्रस्तुत करने की पद्धहत अपनाने, इसका अनहू दत रूप तैयार करने अथिा इलैक्ट्रॉहनक, मैकेहनकल, फोटो कॉपी और ररकॉहर्िंग आहद हकसी भी पद्धहत से इसका उपयोग करने हेतु समस्त प्रकाशनाहिकार रखने िाले अहिकारी तथा पुस्तक के लेखक या प्रकाशक की पूिाानुमहत लेना अहनिाया है। .

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समर्पण यह कहानी समधपात है, हमारी माता जी स्र्र्गीय श्रीमती उषा देर्ी जी को। र्ह बहुत ही शांत एर्ं सहनशील स्र्भार् की मधहला थीं। उनकी मृत्यु के र्ल पैंतीस र्षा की आयु में हो र्गयी थी । अपने छोटे से जीर्न में जब तक र्ह रही, उन्होंने अपने र्गृहस्थ जीर्न में सहनशीलता एर्ं दृढ़ता का पररचय धदया।

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लेखिका की कलम से धप्रय पाठको! मैं नेहा धसंह राजपतू आपके बीच एक रोमांस एर्ं भार्नाओ ं से भरी कहानी लेकर आयी ह,ूँ यह कहानी आपको बेहद पसंद आएर्गी, क्योंधक इसमें दशाायी र्गयी प्रमख ु बातें कहीं ना कहीं हम सब के जीर्न से ही प्रेररत है, साथ ही यह एक औरत की प्रबलता एर्ं साहस का भी पररचय है। यह कहानी हमारे समाज एर्ं पररर्ार के बीच के संबंिों को भी दशाा रही है, इस कहानी की प्रेरणा मझु े अपने पधतदेर् सजं य धसहं राजपतू जी से धमली, धजनके नर्ीन धर्चारों एर्ं बातों ने मेरे अदं र की लेधखका को धनखारा एर्ं मैं इन पात्रों का चयन कर पायी। मझु े आशा है धक आपको यह कहानी अर्श्य पसंद आएर्गी एर्ं आनंधदत करे र्गी। अर्गर आपको मेरी लेखनी में कोई त्रधु ट लर्गे या आप कुछ सझु ार् देना चाहे तो अर्श्य बताए।ं िन्यर्ाद!!

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अनुक्रमणणका 1. प्यासी नजर

1

2. समय की प्रबलता

9

3. रमा का बचपन

33

4. सख ु ों के पल

54

5. रमा का सघं षा

70

6. माूँ के आूँचल का कोना

98

7. काश! मैं र्हाूँ होती

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अनकही बातें

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प्यासी नजर X

पा

नी.....पानी! ऐसी कराहती हुई आर्ाज के साथ रमा देर्ी जी के हाथों से पानी भरा धर्गलास, उठाने का असफल प्रयास करते हुए जमीन पर धर्गलास धर्गर पड़ता है और एक तेज आर्ाज होती है, धजसे सनु कर घर के सारे लोर्ग उस ओर दौड़ते हैं, अथाात उनके बेटे-बहु, पोते- पोती, नाधतन इत्याधद। इसके तरु ं त बाद रमा देर्ी जी बेहोश हो जाती हैं। ग्लास उठाते हुए उनकी मझं ली बह बदु बदु ाती हुई कहती है- "अब मर क्यों नहीं जाती, इनकी सेर्ा करते-करते थक चक ु े हैं सभी, पर यह हैं धक पता नहीं धकस कारण इस 1

ने हा राजपूत

धस्थधत में भी धटकी हुई हैं। कल मैंने दिू धपलाने की कोधशश की तो र्गले के नीचे जाने से पहले, इन्होंने मेरे ऊपर ही उल्टी कर दी, खाना पीना सब छोड़ धदया है इन्होंने, लर्गता है जैसे ये ठीक होना ही नहीं चाहती हैं।" इतने में छोटी बह जो ठीक उसके पीछे खड़ी सब सनु रही थी, र्ह कहती है- "ठीक ही कहती हो दीदी! मैं भी अपने बटु ीक का काम छोड़ कर आयी ह,ूँ पाूँच धदन र्गजु र र्गए, पर अभी तक धस्थधत ज्यों की त्यों बनी हुई है, ना उठ कर बैठ पाती है, ना भर्गर्ान इन्हें मधु ि प्रदान कर रहे हैं।" इसके तरु ं त बाद रमा देर्ी जी की आूँखें सहसा ही खल ु जाती हैं, मानों र्ह सब कुछ सनु रही है, पर कुछ भी कर पाने में शारीररक रूप से असमथा हैं। आूँखें खल ु ते ही, टकटकी बाूँिे, र्ो धफर से कमरे की दरर्ाजे की ओर देखती हैं, और आूँसओ ु ं की िारा आूँखों से ऐसे बह रही है, जैसे दख ु ों का ज्र्ालामख ु ी, उनकी मन को भेदता हुआ आूँखों से बाहर आ रहा है । घरर्ाले हैरान थे धक, आधखर रमा देर्ी जी धकसकी राह देख रही है, मानों कोई बात अिरू ी रह र्गयी है, धजसे र्ो परू ा करना चाह तो रही है, पर अस्र्स्थ शरीर उनका साथ छोड़ता जा रहा है। इतने में उनका छोटा बेटा कमरे में प्रर्ेश करता है और उनके धसरहाने आकर बैठ जाता है, उनके माथे को सहलाते हुए कहता है- "माूँ तझु े क्या परे शानी है तू बताती क्यों नहीं? कम से कम एक इशारा तो कर देती। तेरे धलए ही तो मैं छुट्टी की अजी देकर आनन–फानन में फ्लाइट की धटकट लेकर आया ह,ूँ र्रना तो मेरा बॉस मझु े नौकरी से धनकाल देने की िमकी तक दे रहा था, क्योंधक मैंने ऑधफस में सबसे ज्यादा छुरट्टयां ली है, इस एक र्षा के दौरान। धपछले महीने भी, तम्ु हारी अस्र्स्थता के कारण, मैंने शरुु आत में ही दस धदनों की छुट्टी ली थी।"

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अनकही बातें

मानों, र्ह अपनी माूँ के हाल चाल पछ ू ने की बजाए, उन्हें अपनी छुरट्टयों का ब्यौरा देकर, उन पर कोई एहसान कर रहा हो, जबधक सच तो कुछ और ही था, धपछले महीने, उनका छोटा बेटा बटं र्ारे की बात करने के धलए एक र्कील को साथ लेकर आया था, ताधक अपने धहस्से की जमीन लेकर यहाूँ से धनधचंत हो जाएं और अपने धलए एक अलर्ग घर, जो पररर्ार से अलर्ग हो, र्ह तैयार कर सके , पर रमा देर्ी जी ने इसके धलए साफ-साफ मना कर धदया था, यह कह कर धक अभी यह सब करने का समय नहीं आया है। छोटे बेटे की ये बातें सनु कर मानों, रमादेर्ी जी अच्छी तरह समझ रही थी धक, यह सब बस धदखार्ा कर रहा है, असल में इसे मेरी कोई परर्ाह नहीं है। हालाूँधक, यह रमा देर्ी जी का शरू ु से सबसे धप्रय पत्रु रहा था, पर अब चीजें बदल चक ु ी थीं। इतने में डॉक्टर कमरे में प्रर्ेश करता है, जो धनयधमत समय पर दोपहर तीन बजे प्रधतधदन धपछले पाूँच धदनों से रमा देर्ी जी के स्र्ास््य का परीक्षण करने आ रहा था। उसने जाूँच करके बताया धक, "अब इनके पास बहुत कम समय शेष है, पर इनकी इच्छा शधि ने इनकी प्राणों की डोर को पकड़ रखा है, र्रना ऐसी धस्थधत में जब रोर्गी का शरीर धबल्कुल धशधथल पड़ चक ु ा है, तब कुछ भी कहना मधु श्कल हो जाता है।" धफर, सारा परीक्षण करने के बाद, डॉक्टर ने उन्हें एक इजं क्े शन लर्गाया, जो उन्हें धपछले पाूँच धदनों से प्रधतधदन लर्ग रहा था, और दर्ाइयों की खरु ाक थोड़ी और बढ़ाई तथा छोटे बेटे को सारी जानकारी देकर चला र्गया। क्योंधक, रमा देर्ी जी का खाना–पीना सब छूट र्गया था, तो र्गले से एक खाने की नली, ऑपरे शन के द्वारा जोड़ी र्गयी थी तथा मत्रू धर्सजान की एक अलर्ग नली लर्गी हुई थी एर्ं एक नसा को रखा र्गया था, जो उनकी साफसफाई में सहायता करती थी। 3

ने हा राजपूत

शाम का र्ि हो चला था, रोज की तरह नसा ने रमा देर्ी को दर्ाइयाूँ दी, और अपने पसा से अपना मोबाइल धनकाल कर देखने लर्गी। उसने देखा धक, उसके मोबाइल पर उसके पधत ने तीन बार कॉल धकया था, उसने जल्दबाजी में र्ापस से कॉल धकया, तो उसके पधत ने क्रोि में भरे शब्दों के साथ कहा धक –"कहाूँ है त?ू अभी तक आई क्यों नहीं? घर की कुछ धफक्र भी है, तझु े या नहीं? बटं ी को दस्त लर्ग र्गए हैं और र्ह ददा से कराह रहा था। मैंने उसे धफलहाल दर्ा दे दी है और र्ह सो र्गया है, इिर, सनु ीता (नसा) चपु चाप उसकी बातें सनु रही थी, बंटी उसका बेटा था, धजसकी एक दो बार उसने घर र्ालों के सामने चचाा की थी। र्ह भी मजबरू थी। रमा देर्ी जी की ऐसी हालत थी धक, उन्हें छोड़ कर दो पल के धलए भी हटना, उसके धलए मधु श्कल था, उसने जर्ाब में पधत से कहा–"बस धनकल ही रही ह।ूँ " इतने में अचानक रमा देर्ी जी ने आूँखें खोली और उनके मख ु से एक शब्द धनकला–"र्गौरी!" इसके साथ ही उनकी हरकतों में, बेचैनी सी धदखी, जैसे उनको साूँस लेने में कधठनाई महससू हो रही हो, यह देखकर नसा ने घरर्ालों को सचू ना दी और जैसे धक, डॉक्टर ने उसे (नसा) धनदेश धदया था, तरु ं त ऑक्सीजन की मशीन उसने लर्गायी और नब्ज़ र्र्गैरह का परीक्षण धकया। कुछ समय बाद ही, धस्थधत धनयंत्रण में आ र्गयी। घरर्ालों ने यह सब देखा तो, तपाक से बड़ी बह ने कहा –"अब माताजी के पास समय नहीं है, इनके मख ु में र्गर्गं ाजल और तल ु सी पत्र स्पशा करर्ा देना चाधहए, र्रना हमें भी अफसोस ही रह जाएर्गा।" नसा यह सब मक ु हो कर देख रही थी, और सोच रही थी धक, "कै से लोर्ग हैं, इन्हें जरा भी मोह नहीं है, इस र्ृद्धा पर", धफर भी, उसने अपने सदं हे को दरू करते हुए बड़ी बह से पछ ू ा-"दीदी यह र्गौरी कौन है? माता जी के मख ु से अचानक ये नाम धनकला था, उसके बाद ही उनकी यह धस्थधत हो र्गयी।" इतना सनु ना था धक बड़ी बह की भौहें चढ़ र्गयी, मानों र्गस्ु से से तन र्गयी, और कहने लर्गी धक4

अनकही बातें

"हाूँ-हाूँ, हमने तो कुछ धकया ही नहीं है, तभी तो इनके मख ु से अधं तम समय में उसी का नाम धनकल रहा है।" रमा जी के बड़े बेटे ने अपनी पत्नी को चपु रहने का इशारा धकया और नसा को कहा धक,"अब तमु जा सकती हो, काफी देर हो र्गयी है, कल समय पर आ जाना।" नसा चपु चाप र्हाूँ से चली र्गयी। रात में रमा देर्ी जी की मझं ली बह भी उनके पास लर्गे, दसू रे धबस्तर पर उनके देखभाल के धलए सोती थी, रात में कभी भी जब र्ह उठती थी तो देखती थी धक, रमा देर्ी बस कमरे के दरर्ाजे को ही टकटकी लर्गाए देख रही हैं। जैसे, र्ह धकसी की राह देख रही हों। यह सब देखते हुए, आज छः धदन र्गजु र चक ु े थे, मझं ली बह को। उसने रातों-रात मन बनाया धक, सबु ह उठते ही नसा से र्ह बात करे र्गी, ताधक, नसा पता लर्गा सके धक, "माता जी क्या कहना चाहती हैं, जब तक उनके मन की बात बाहर नहीं आएर्गी, इनके प्राण अटके ही रहेंर्ग"े , ऐसे र्गदु बदु ाया उसने। रात बीत र्गयी। सरू ज की धकरणें रोज की तरह रमा जी की धखड़की के पदे से मानों झाूँक रही थी। सभी लोर्ग अपनी धनत्य के काम में लर्ग र्गए, देखते ही देखते सबु ह के नौ बज र्गए, रोज की तरह नसा ने कमरे में प्रर्ेश धकया और रमा जी के धबस्तर से लर्गे हुए मेज के ऊपर रखे फूलदान में से परु ाने फूलों को धनकालकर उसमें ताजे फूल डालें। नसा जैसे ही, कमरे में दाधखल होती, मानों सर्गु िं का सचं ार हो रहा हो, क्योंधक इत्र की शौकीन सनु ीता (नसा) की उम्र मात्र सत्ताईस की होर्गी और चेहरे से र्गल ु ाबी यौर्न की आभा साफ-साफ धदखती थी। साथ ही, व्यर्हार से इतनी कोमल, धजससे यह स्पष्ट प्रधतत था धक, मानों सेर्ा का भार् उसमें बखबू ी भरा था, जो धक, एक नसा की धर्शेषता होती है।

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ने हा राजपूत

रमा जी का छोटा बेटा स्नान करके उसी कमरे से थोड़ा आर्गे लर्गकर जो मधं दर था, उस ओर बढ़ रहा था, क्योंधक रमा जी ने अपने घर में यह धनयम बनाया था धक, हर सदस्य नहाने के बाद पजू ा-पाठ, ईशर्् र को याद करने के बाद ही अन्न ग्रहण करे र्गा। रमा जी के बचपन में धदए र्गए इन संस्कारों को घर के सदस्यों ने आज भी कायम रखा था, तभी, आर्गे बढ़ते हुए छोटे बेटे के पाूँर्, अचानक से र्ही मानों जड़ हो र्गए, उस कमरे से आती हुई इत्र की तीक्ष्ण खश ु बू ने जैसे उसे रोक धलया हो, उसकी नजरें कमरे की तरफ घमू र्गयी और ज्यों ही, सनु ीता नसा के ऊपर उसकी नजर र्गयी, मानों, उसके चेहरे से टपकते हुए यौर्न ने उसे मदहोश कर धदया। इतने में उसकी पत्नी यकायक, पीछे से रमा जी के कमरे में सपू लेकर आर्गे बढ़ी और आर्ाज लर्गायी –"अजी जल्दी करो! यह सपू देकर मझु े और भी काम धनपटाने हैं।" उसकी आर्ाज सनु कर जैसे रमा जी का छोटा बेटा ठर्गा सा रह र्गया और लज्जा से पानी-पानी होते हुए हड़बड़ाहट में "धशर्-धशर्" कहता हुआ आर्गे बढ़ र्गया। धनत्य की भाूँधत नसा ने रमा जी का रिचाप, नब्ज, र्र्गैरह का परीक्षण धकया और धफर र्हीं कुसी पर बैठ र्गयी, इतने में मझं ली बह रमा जी के कमरे में आयी और नसा से माताजी के बारे में जानने की जार्गरूकता धदखायी, ताधक उसे पता चल सके धक, "कौन सी बात है, जो माता जी को ना तो मरने दे रही है, ना जीने देती है।" नसा ने आश्वासन धदया की, मैं बातचीत के माध्यम से जानने की परू ी कोधशश करुूँर्गी धक "क्या बात है?" बहु ने नसा को अर्र्गत कराया धक, माताजी रात भर टकटकी लर्गाए कमरे के दरर्ाजे की ओर ना जाने धकस के आने का इतं जार करती रहती हैं, र्ह तो बोल ही नहीं पा रही हैं, जो हम उनसे उनकी मन की बात जान सकें । नसा ने पहले रमा जी को सपु धपलाया, जो धक छोटी बह देकर र्गयी थी, धफर, र्गनु र्गनु ाने के क्रम मे कहा -“माताजी आप क्या धकसी की राह देख रही हैं? क्या कुछ ऐसा है 6

अनकही बातें

जो घरर्ालों को बताना चाहती हैं?” इतना सनु ना था धक रमा जी ने हाथों की उंर्गधलयों से मानों, कुछ इशारा धकया। सनु ीता ने उनके हाथों को अपने हाथों से सहलाते हुए कहा- "क्या बात है माता जी? क्या आपको धकसी चीज की जरूरत है?" रमा जी ने र्ही मेज पर रखे कलम और कार्गज की ओर इशारा धकया, जो सनु ीता ने ही र्हाूँ रखा था, क्योंधक र्ह रोज उनका परीक्षण करने के बाद का ररपोटा, उस में दजा धकया करती थी ताधक, डॉक्टर को धदखा सके । नरस् ने तरु ं त कलम और कार्गज रमा जी के हाथों में पकड़ाया। रमा जी ने टूटे-फूटे अक्षरों में कुछ धलखने की कोधशश की क्योंधक शरीर में इतना बल शेष ना था धक, र्ह ढंर्ग से धलख भी सकें । नसा ने काफी प्रयासों के बाद समझा। यह तो र्ही नाम है जो की माताजी ने कल अपने मख ु से धलया था, "र्गौरी!" उसने मझं ली बह को बल ु ाकर यह जानकारी दी धक, रमा जी ने र्गौरी नाम धलखा है, इस पन्ने पर। यह बात छोटे बेटे तक पहुचूँ ी तो र्ह रमा जी के कमरे में र्गया, उनसे कहने लर्गा –"माूँ क्यों याद कर रही हो उस धनष्ठु र को? र्ह तो तम्ु हारी इतनी सी भी धचंता नहीं करती, हमने दो बार तम्ु हारी तबीयत की जानकारी दी थी उसे, पर उसने बहाना कर धदया यह कहकर धक, यहाूँ कोरोना महामारी की र्जह से परू े शहर में जाूँच-पड़ताल चल रही है, मैं जल्दी ही आऊूँर्गी, माूँ से धमलने और देखो आज सातर्ां धदन होने को है, उसकी कोई खबर नहीं है।" नसा चपु चाप खड़ी ये बातें सनु रही थी, उसे यह समझते हुए देर न लर्गी धक "र्गौरी" कोई और नहीं रमा जी की बेटी है। घर र्ालों में तो मानों र्गस्ु सा भर र्गया, इस बात को लेकर। सभी का यही कहना था धक, "अर्गर उसे अपनी माूँ की परर्ाह नहीं तो, इन्हें क्यों इतनी पड़ी है उसकी" पर, रमा जी को तो मानों, इन बातों से कोई प्रभार् नहीं था, उन्होंने तो जैसे र्गौरी के धलए, अपनी साूँसों की डोर को पकड़ रखा था, जबधक यहाूँ परू ा पररर्ार उनकी आूँखों के सामने था। तीन बहुए,ं दो बेटे, एर्ं उन लोर्गों का पररर्ार, परंतु यह 7

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