9798128808189 Flipbook PDF


15 downloads 118 Views 11MB Size

Recommend Stories


Porque. PDF Created with deskpdf PDF Writer - Trial ::
Porque tu hogar empieza desde adentro. www.avilainteriores.com PDF Created with deskPDF PDF Writer - Trial :: http://www.docudesk.com Avila Interi

EMPRESAS HEADHUNTERS CHILE PDF
Get Instant Access to eBook Empresas Headhunters Chile PDF at Our Huge Library EMPRESAS HEADHUNTERS CHILE PDF ==> Download: EMPRESAS HEADHUNTERS CHIL

Story Transcript

लौह परुु ष सरदार पटेल का नाम लेते ही उनका एक विशेष विम्ि अनायास ही मनस पटल पर उभरता है। िह सच्चे अर्थों में भारत राष्ट्र के वनमााता र्थे। देश के वलए वकए उनके कायों को दो भागों में विभक्त वकया जा सकता है- स्िाधीनता प्रावि हेतु वकया गया संघषा और स्िाधीनता प्रावि के पश्चात् राष्ट्र के एकीकरण में उनकी भवू मका। देश की स्िाधीनता के िाद ररयासतों का भारत राष्ट्र में विलय करने में सरदार पटेल की भवू मका उनके जीिन का सिाावधक प्रशंसनीय अध्याय माना जाता है। उनकी अदम्य इच्छा शवक्त और कुशल राजनीवत से ही भारत एक राष्ट्र िन सका। िस्ततु ः िही आधवु नक भारत के वनमााता र्थे। इस पस्ु तक में राष्ट्र वनमााता सरदार पटेल के जीिन चररत्र को औपन्यावसक शैली में वलवपिद्ध करने का प्रयत्न वकया गया है।

सरदार पटेल

मीना अग्रवाल

© प्रकाशकाधीन प्रकाशक डायमंड पॉके ट बुक्स (प्रा.) लि. X-30 ओखला इडं वस्रयल एररया, फे ज-II नई वदल्ली- 110020 फोन : 011-40712200 ई-मेि [email protected] वेबसाइट : www.diamondbook.in ___________________________________________ Sardar Patel By - Meena Agarwal

प्रकाशकीय हृदय पर सहज ही अपनी छाप छोड़ जाने िालों को यवद दो िगों में िगीकृ त वकया जाये तो सिार्था उवचत होगा। एक ऐसा िगा है जो वदलों को जीतते हैं, लेवकन उनकी छाप िहुत समय तक अंवकत नहीं रह पाती। समय के सार्थ लोग उनको भल ू ने लगते हैं। दसू रे िगा में ऐसे लोगों को रखा जा सकता है, जो अपने जीिन काल में तो लोकवप्रय रहते ही हैं, लेवकन मृत्यपु रांत उनकी लोकवप्रयता और भी िढ़ जाती है। लोग उनको अक्सर यह कहकर याद करते हैं वक यवद आज िे होते तो िात कुछ और होती। आशय यह वक ऐसे लोग अमर होते हैं। उन्होंने िीते कल में कुछ ऐसे काया वकए होते हैं, वजनकी जरूरत ितामान में तो महससू होती ही है और आने िाले कल अर्थाात् भविष्ट्य में भी महससू की जाती रहेगी। शब्दजाल में उलझे विना यवद सीधे स्पष्ट शब्दों में कहा जाए तो ये हृदयों पर कोई छाप छोड़ते नहीं, िवल्क इनका व्यवक्तत्ि सहज ही मन को छू जाता है और इनकी छाप कभी न वमटने िाली अर्थाात् अवमट छाप होती है। सरदार िल्लभ भाई पटेल वनःसंदहे इसी श्रेणी में आते हैं। स्ितंत्रता संग्राम काल से भारत की स्िाधीनता के िाद तक सरदार पटेल ने जनवहत समाज वहत और अंततः राष्ट्रवहत में जो कुछ भी वकया, िह अपने आप में आने िाली पीढ़ी के वलए अनक ु रणीय िनता गया। उनके अटल इरादों ि अदम्य साहस के वलए उन्हें ‘लौह परुु ष’ कहा जाने लगा। यवद ‘लौह परुु ष’ शब्द यग्ु म का विश्ले षण करने हम िैठें तो कई भाि उपजते वदखाई देते हैं, लेवकन अपने अर्था में िे सीधे सरल ि सपाट हैं। िल्लभ भाई के संदभा में लौह परुु ष शब्द की सटीकता समीक्षा ि विश्ले षण की कसौटी पर खरी उतरती है। िह व्यवक्त जो हर पररवस्र्थवत में अपने संकल्पों के प्रवत दृढ़ हो, अटल हो, अवडग हो, लौह परुु ष हो सकता िह व्यवक्त जो पररवस्र्थवतयों को अपने अनरू ु प ढालना जानता हो और उनसे घिराए विना अपना संघषा जारी रखना जानता हो लौह परुु ष हो सकता है; िह व्यवक्त जो अदम्य साहस का धनी हो और जो ठान ले उसे परू ा करके ही दम ले, लौह परुु ष हो सकता है। सरदार पटेल में ये सभी गणु मौजदू र्थे। अपनी तका शवक्त के िलितू े कचहरी में अच्छे -अच्छे िकीलों को पटखनी देने िाले िल्लभ भाई स्ितंत्रता संग्राम के दौरान वफरंगी अवधकाररयों से भी अपनी िात मनिा लेने में सफल रहे। उन्हें लौह परुु ष कहे जाने के पीछे दसू रा भािनात्मक तका यह भी हो सकता है वक उनकी िवु द्ध और उनके अदम्य साहस का लोहा उनके जीिनकाल में तो दवु नया मानती ही र्थी लेवकन उनके वनधन के िाद शासन व्यिस्र्था के संदभा में देश की एकता अखडं ता के संदभा में, ग्रामीण अर्थाव्यिस्र्था के रास्ते खश ु हाली के संदभा में आज भी

उनकी योजनाएं उतनी ही प्रासंवगक हैं। आज के आदशश भारत के लनमाशण में उनका संपूणश जीवन ही एक योजनाबद्ध दशशन प्रतीत होता है। इन सिके होते हुए भी इसे विडंिना ही कहा जाएगा वक राजनीवतक दांि-पंचों के कारण उनकी गत्यात्मक सोच ि विकासोन्मख ु ी दशान को सरकारी दस्तािेजों में उन्हें िह सम्मान िहुत िाद में वमला वजसके िे शरू ु से ही सपु ात्र र्थे। इसे हम शासन की सोच की दुबशिता ही कहेंगे लक ‘भारत रत्न’ जैसा देश का सवोच्च सम्मान उन्हें बहुत बाद में लदया गया जबलक कलतपय अन्य िोगों को यह सम्मान उनके जीवनकाि में ही वे लदया गया। आप कह सकते हैं वक ऐसा क्या र्था सरदार पटेल में वक उनका नाम आते ही सभी समिेत स्िर में उनके सार्थ वदखाई पड़ते हैं; वजनके विषय में विरोध का तो जैसे कोई स्र्थान ही नहीं रह जाता गजंू ता है तो के िल एक ही स्िर, “काश आज िल्लभ भाई होते” एक िगा देश की ितामान हालत के वलए सरकार को दोषी ठहराते हुए सरदार पटेल के आदशों को स्र्थावपत करना चाहता है तो दसू रे का सोचना है वक सरदार पटेल आज वहदं स्ु तान की तरक्की को देखकर खश ु होते। तका अपने अपने हैं लेवकन पहले िगा का तका ज्यादा प्रासंवगक है। कुल वमलाकर िात यह है वक पटेल हर प्रकार से अविस्मरणीय हैं। आइए जानते हैं सरदार पटेल के जीिन ि कायाशैली के विविध व्यािहाररक, प्रायोवगक ि संिेदनात्मक पक्षों को। राष्ट्रभवक्त तो उन्हें विरासत में ही वमली र्थी। उनके वपता झिेर भाई स्ियं में स्ितंत्रता आंदोलनों के पक्षधर र्थे। िे अगली पीढ़ी को भी स्ितंत्रता संग्राम में सविय देखना चाहते र्थे। तभी तो िह चाहते र्थे वक उनके घर में, घर में नहीं तो गािं में कोई ऐसा जन्म ले जो िड़ा होकर भारत मां की जजं ीरें तोड़ सके । और हुआ भी कुछ ऐसा ही। अक्टूिर 1875 में जन्मे सरदार पटेल ने िह कर वदखाया जो वकसी के वलए भी गिा की िात हो सकती र्थी। नेतत्ृ ि के गणु तो उनमें िचपन से ही र्थे। उनके अध्ययन काल के समय वशक्षक पढ़ाने पर कम वकतािें िेचने पर ध्यान ज्यादा देते र्थे। इस पर उनकी प्रवतविया र्थी वक यवद वशक्षक व्यिसायी िन जाएगा तो वशक्षा की पवित्रता कहााँ रहेगी। काननू के प्रवत उनका िड़ा ही संिेदनात्मक दृवष्टकोण र्था। उनका मानना र्था वक कानून मनुष्य के लिए होता है और कानून का इस्तेमाि करने वािे अलधकारी में और उसके आधार पर फैसिा करने वािे न्यायाधीशों में मानवीय दृलि कोण भी उतना शलिशािी होना चालहए लजतना कानून पािन करने का भाव लवचार। यहााँ एक िात विशेष रूप से उल्लेखनीय है वक उन्हें आगे िढ़ाने में पत्नी का भी िरािर योगदान रहा। भले ही उनकी पत्नी उन्हें छोड़कर िहुत ही जल्दी ईश्वर को प्यारी हो गई हों लेवकन हमेशा आगे िढ़ते रहने की जो लौ उन्होंने िल्लभ के मन में जलाई िह उन्हें आजीिन साहस देती रहीं। पटेल आज भी िंदनीय ि अवभनंदनीय हैं। इसके पीछे वजन विशेष गणु ों का योगदान है उसमें उनकी मानि सेिा भी उल्लेखनीय है। इसका उदाहरण उनके समय गोधरा में फै ले प्लेग के दौरान उनके सेिा भाि से वलया जा सकता है। िल्लभ भाई वकसी न वकसी रूप में सामावजक कायािमों में िढ़-चढ़ कर वहस्सा लेते र्थे और इन्हीं

सामावजक कायािमों के अंतगात सांस्कृ वतक संघषों के अवतररक्त धावमाक संघषों में भी उनकी वहस्सेदारी िढ़ती गई। आज के पररप्रेक्ष्य में यवद देखा जाए तो सरदार पटेल ने धमा के वजस समभाि की कल्पना की र्थी िह आज भी परू ा नहीं हो पाया; उल्टे वदन पर वदन विकृ त ही होता चला गया। आज के धावमाक आडंिरों के प्रवत यवद उनके उस समय के विचारों को देखा जाए तो िे आज भी सिार्था समीचीन प्रतीत होते हैं। एक स्र्थल पर महाराज जी के संदभा में उनके विचार उल्लेखनीय हैं"ठीक है लपताजी िेलकन अगर मुझे िगा लक हमारे महाराज की जी की गिती है तो मैं के स तो िड़गं ा िेलकन कानून के लििाफ नहीं जा सकता...." उपयाक्त ु कर्थन से इतना तो अिश्य वसद्ध होता है वक काननू का स्र्थान उनके वलए पररिार से ऊपर र्था। उनकी सोच भी िहुत ही व्यािहाररक ि यर्थार्थापणू ा र्थी। एक स्र्थल पर िे स्ियं कहते हैंलकसी धालमशक स्थि का कताश धताश बन आने से आदमी एक दम से देवता नहीं बन जाता। आज से सौ िषा पिू ा भी िे वकसी पजु ारी को दोषरवहत नहीं मानते र्थे। आज जि साध-ु संतों की पोल खल ु ती है तो लगता है वक पटेल की दरू दवशाता आज भी प्रासंवगक है। यहााँ वफर से इस िात पर ध्यानाकषाण जरूरी है वक हम सरदार पटेल को आज भी िह सम्मान नहीं दे पाए वजससे िे सदा सदा के वलए जन नायक के रूप में स्मरण वकए जाएाँ। हम यह नहीं कहते वक उनकी लोकवप्रयता कम है, िेलकन यलद उनके लवचारों कायशप्रणालियों व समग्र योगदान को दृश्य-श्रव्य (Audio & Visual) प्रचार माध्यमों का शासकीय सहयोग लमिता तो वह गांव-गांव व शहर-शहर में और भी अच्छी तरह बच्चे-बच्चे की जुबान पर होते। अफसोस इस िात का है वक विकास के विविध सोपानों को वनधााररत करते समय हम वजसके आदशों का सहारा लेना नहीं भल ू ते उनकी लोकवप्रयता का प्रचार प्रसार करने में क्यों सकुचाते हैं। इससे भी अवधक हैरानी की िात यह है वक जब कोई उनकी पहचान लवश्व लवभूलतयों के रूप में कराना चाहता है; उनकी प्रलतमा को लवश्व की उच्चतम सवोच्चता प्रदान करना चाहता है तो उसे कभी राजनीलतक रंग दे लदया जाता है तो कभी सामालजक पररवेश की दुहाई दी जाती है। आवखर क्यों होता है ऐसा? क्यों नहीं हम सि परू े श्रद्धा भाि से इस गररमा मवं डत काया को स्िीकारते। स्िीकारते सि हैं लेवकन सािाजवनक रूप से स्िीकारोवक्त से कतराते हैं। वजसने आजादी की लड़ाई के दौरान और स्िाधीनता संघषा के िाद हम सिका सर ऊंचा वकया उसकी सिोच्च प्रवतमा पर ‘लेवकन परंत’ु की वस्र्थवत क्यों लाते हैं। आइए कुछ सीधी सपाट िात कर लें। भारतीय जनता पाटी प्रधानमत्रं ी पद के रूप में उतारे गए श्री नरें द्र मोदी द्वारा सरदार पटेल की भव्य प्रवतमा के वनमााण को समिेत स्िर में स्िीकारा जाना चावहए। वनवश्चत रूप से जो इस महाप्रयास को मर्त्ू ा रूप देने में जो लगा हुआ है िह भी अवभनंदनीय है। इस अनपु म काया के वलए सराहना ही िनती है इसमें वनंदा ि विरोध का

कोई स्र्थान नहीं। सरदार-पटेल लौह परुु ष र्थे अतः उनकी प्रवतमा भी फौलादी होनी चावहए। दसू री िात यह वक िे जनवप्रय र्थे अतः देश की संपणू ा जनता की वहस्सेदारी उनकी प्रवतमा में होनी चावहए। दसू री िात यह वक िे जनवप्रय र्थे अतः देश की संपणू ा जनता की वहस्सेदारी उनकी प्रवतमा में होनी चावहए। यहााँ यह स्पष्ट कर देना आिश्यक है वक सरदार पटेल ने कभी भी वकसी प्रशवस्त, परु स्कार ि सम्मान की आकांक्षा नहीं की। यह भी सत्य है वक कोई भी प्रशवस्त या सम्मान उनके योगदान के सामने छोटी ही लगेगी; वफर भी क्या हमारा दावयत्ि नहीं िनता वक वजसने भारत का सर परू ी दवु नया के समक्ष ऊाँचा वकया, हम उसके वलए कुछ ऐसा करें वक परू े विश्व में उसकी चचाा हो, परू ी दवु नया उसे समान रूप से आदरभाि से देखें। इस पवित्र अवभयान को भी यवद हम वसयासी रंग देते हैं तो यह हमारा दभु ााग्य ही है। सरदार पटेल ने कि चाहा वक उन्हें िहुत अवधक महत्ि वमले, आदर-सम्मान वमले। िे तो एक पष्ट्ु प की भावत वखलते गए; त्याग तपस्या यक्त ु कायों की सगु धं तो अपने आप चारों ओर फै लती गई। पष्ट्ु प की अवभलाषा की ये पंवक्तयााँ उन पर चररतार्था होती हैं“चाह नहीं मैं सुरबािा के गहनों में गूूँथा जाऊूँ , चाह नही देवों के शीश चढं अपने भाग्य पर इठिाऊं, मुझे तोड़ िेना वनमािी, उस पथ पर तुम देना फेंक, मातृभूलम पर शीश चढाने लजस पथ जायें वीर अनेक।।” आइए जानते हैं सरदार पटेल की भव्य प्रवतमा वनमााण के संदभा में विस्तार से। गजु रात के मख्ु यमत्रं ी ि भाजपा की ओर से समवर्थात भािी प्रधानमत्रं ी श्री नरें द्र मोदी की अध्यक्षता में गवठत राष्ट्रीय एकता पररषद् के तत्िािधान में परू ी दवु नया में लौह परुु ष के नाम से विख्यात सरदार िल्लभभाई पटेल की लोहे की विशालकाय प्रवतमा नमादा नदी के सरोिर िाधं तट पर स्र्थावपत वकए जाने का वनणाय वलया गया है। 597.1 फीट ऊाँची प्रवतमा विश्व की सिसे ऊाँची प्रवतमा होगी। इसके वलए हर गााँि से एक वकलोग्राम लोहा ि 1 सौ ग्राम वमट्टी इकट्ठी की जाने का वनणाय वलया गया है। लोहा और वमट्टी एकत्र करने का काया 20 वदसंिर से 2013 आरंभ होना तय हुआ है। प्रत्येक गांि के प्रवतवनवध के रूप में इस अवभयान में ग्राम प्रधान का फोटो होना भी शावमल है। वमट्टी के संदभा में गांि के खेत की वमट्टी एकत्र करने की िात कही गयी है। लोहा और वमट्टी एकत्र करना सिार्था प्रासंवगक है। सरदार पटेल को लौह परुु ष कहा जाता र्था। चंवू क उन्होंने अपने वसद्धांतों से अंग्रेजों को लोहा मनिा वदया या वफर यह कहें वक उनके इरादे लोहे की तरह मजितू होते र्थे तो इसमें अवतशयोवक्त। ऐसे में लौह परुु ष की प्रवतमा में लगने िाले लोहे में परू े भारत की भागीदारी होनी चावहए। चंवू क सरदार पटेल को वकसानों से अर्थाात अपनी वमट्टी से विशेष लगाि र्था अतः उनकी प्रवतमा वनमााण में परू े देश कोई वमट्टी

लगाने की सोच सिार्था अवभनदं नीय है। आत्म सम्मान से कभी समझौता न करने िाले सरदार पटेल का देशप्रेम भी अनोखा र्था। िे संभितः सभी को यह संदश े देते र्थे वकलजसको न लनज गौरव तथा लनज देश पर अलभमान है। वह नर नहीं पशु लनरा है और मृतक समान है।। आइए लौह परुु ष की उपावध को सार्थाकता प्रदान करने िाले कुछ ऐसे कायों को जानें वजन्होंने सरदार पटेल को लौह परुु ष िना वदया। पत्नी की मृत्यु का तार पाकर भी िे अपने काय से विचवलत नहीं होते यहााँ तक वक तार खोलते भी नहीं वनवश्चत ही यह उनके कड़े हृदय की वनशानी है। उस समय जि अंग्रेज मवजस्रेटों के समाने लोग अपनी जिान नहीं खोल पाते र्थे ति सरदार पटेल कचहरी में अपनी िल ु ंद आिाज में मक ु दमे का पक्ष रखते र्थे। एक संिाद देवखए“िल्लभ पटेल ने जरा ऊंची आिाज में कहा- यह शीशा यहााँ से हटिा वदया जाए। सिके सि यह सनु कर अचंभे में आ गए क्योंवक पहली िार कोई इस अदालत में इतनी तेज आिाज में िोला र्था।” यह प्रसंग उनकी वनभीकता को दशााता है। संगीन से संगीन मक ु दमे में भी िे अचक ू तका शवक्त से काम लेते र्थे। एक मामले में िलात्कार के मक ु दमे में िे पीवड़ता के पक्ष से नहीं िवल्क िलात्कारी की ओर से मक ु दमा लड़ना चाहते र्थे। इसकी पीछे नाररयों के प्रवत उनकी संिेदना ि कोमल भाि वनवहत र्थे। उनका स्ियं का कर्थन इस संिंध में देवखए“अगर चाहते हो वक लड़की की इज्जत कचहरी में न उछले तो मझु े िलात्कारी की तरफ से ही लड़ना पड़ेगा।” पररवस्र्थवतयााँ कुछ भी हों िल्लभ भाई अपने इरादों में अटल भी रहना जानते र्थे और कभी-कभी या तो पररवस्र्थवतयों को अपने अनक ु ू ल कर लेते र्थे या वफर पररवस्र्थवतयों के अनरू ु प खदु को भी ढाल लेते र्थे। प्रश्न िार-िार िही उठता है वक हम इतने अटल इरादे िाले, अच्छी सझू -िझू िाले अपने व्यवक्तत्ि से सहज ही आकवषात कर लेने िाले, चम्ु िकीय व्यवक्तत्ि के धनी, वकसानों के मसीहा एिं सच्चे अर्थों में स्िावभमानी सरदार पटेल को विश्व-स्तरीय सम्मान देने का िीड़ा उठाते हैं तो उसे वसयासी रंग क्यों दे वदया जाता है? यह सिाविवदत है वक सरदार पटेल गांधी जी की हत्या से दःु खी र्थे यही कारण र्था वक जि नार्थरू ाम गोडसे ने गांधी जी की हत्या की तो सरदार पटेल ने नार्थरू ाम गोडसे के इस कृ त्य की कड़ी भत्साना की सार्थ ही सार्थ राष्ट्रीय स्ियं सेिक संघ का भी िवहष्ट्कार वकया क्योंवक नार्थरू ाम गोडसे राष्ट्रीय स्ियं सेिक संघ से ही संिंध रखते र्थे। वदलचस्प िात यह है वक आज के पररप्रेक्ष्य में िनिाई जाने िाली विश्व की सिसे अवधक ऊंचाई िाली सरदार पटेल की प्रवतमा की पहल नरे न्द्र मोदी द्वारा वकया जाना राजनीवतक गवलयारों में चचाा का विषय इसवलए िना हुआ है क्योंवक िे भी संघ से संिंवधत हैं। िात स्िाभाविक है वक वजसने आपका त्याग वकया आपके संघ को िवहष्ट्कृत वकया उसके प्रवत आपका इस प्रकार का विश्वव्यापी अवभयान कहीं न कहीं कई सिावलया वनशान

खड़े कर जाता है। लेवकन हकीकत कुछ और है। हम इस अवभयान के दसू रे पक्ष को देखें तो यह स्पष्ट हो जाता है वक यहााँ िवहष्ट्कार वतरस्कार एिं स्िीकार जैसी संिेदनाओ ं को कोई स्र्थान नहीं है। मोदी तो एक ऐसे िौह पुरुष का पूरे लवश्व में लसर ऊंचा करना चाहते हैं लजसने 552 राज्यों को लमिाकार हमें एक भारत सौंपा। यह बात अिग है लक समय की मांग के साथ-साथ एवं शासन-प्रशासन द्वारा सुचारु रूप से इनके कायों का लनष्पादन करने की वलृ ि से हमने आज उन्तीस राज्य व सात के न्द्रशालसत प्रदेश बना लदए। विवभन्न राजनेताओ ं की मानें तो यह सािाभौवमक सत्य है वक सर्त्ा के विके न्द्रीकरण से शासक और प्रजा के संिंध गहराते हैं और वनवश्चत रूप से खश ु हाली एिं रक्षा-सरु क्षा के क्षेत्र में प्रगवत होती है। यहााँ यह िात ध्यान में अिश्य रखनी चावहए वक राज्य हम वकतने ही क्यों न िना लें लेवकन िे कभी-भी भारत से ऊपर नहीं हो सकते। सभी राज्य एक भारतीय संघ की इकाइयााँ हैं, कोई भी राज्य भारत से िड़ा नहीं हो सकता। हमें अनेकता में एकता का दशशन कराने वािे भारत का लनमाशण करना है। मोदी भी तो “एक भारत श्रेष्ठ भारत” का सपना संजोए हुए हैं। उनकी यह पररकल्पना लनलित ही सरदार पटेि की पररकल्पना से मेि िाती है। राष्ट्रवहत में, जनवहत में ि समाजवहत में दो विचारधाराएाँ जि एक हो जाती हैं तो उसमें विरोध कै सा? राजनीवत कै सी? पिू ााग्रह कै सा? दसू री िात यह भी है वक कुछ समय िाद वफर पटेल ने संघ को माना। इसका सीधा अर्था यह वनकलता है वक वकसी पररवस्र्थवत से उत्पन्न अिसाद के कारण वलए गए वनणाय को आजीिन िैमनस्यता का विषय नहीं िनाया जा सकता। मोदी के अवभमान को देश की सम्पणू ा जनता ने स्िीकारा है। अगर कहीं पटेल एिं संघ की िात को संघ ने वदल पर वलया होता तो मोदी की लोकवप्रयता पर कुछ असर जरूर पड़ता। उपयाक्त ु वस्र्थवतयों का विश्ले षण करने से कम से कम यह तो तय हो ही जाता है वक हमें “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” की प्रवतमवू ता अर्थाात् सरदार पटेल की भव्य प्रवतमा वनमााण अवभयान पर अपने आपको गौरिावन्ित महससू करना चावहए िढ़-चढ़कर इस अवभयान में वहस्सा लेना चावहए। इसे वसयासत का विषय ना मानकर गौरि का विषय मानना चावहए और भारत गौरि के इस अवभयान का िीड़ा उठाने िाले का भी आदर करना चावहए। लजसने लवलवधता में एकता की पररकल्पना से एक भारत का मान बढाया। लजसने भारत की एकता को लवश्व पटि पर दशाशया। आओ नतमस्तक हो उन पर श्रद्धा सुमन चढाए!ं भव्य प्रलतमा लनमाशण पर अपनी भागीदारी लनभाए!ं -नरेंद कुमार वमाश

सरदार पटेल उस समय आकाश में काले, लाल, पीले िादलों की झड़ी छाई हुई र्थी। कहीं-कहीं दवू धया सफे द िादल भी िीच में ऐसे वदखाई दे जाते र्थे जैसे दःु ख से सरािोर आदमी के चेहरे पर मस्ु कराहट चली आई हो। आकाश िादलों के परस्पर संघषा से गंजू जाता र्था इसी तरह नीचे धरती पर िड़े-चौड़े रास्तों के िीच वनकलती हुई पगडंवडयां धीरे -धीरे चलते हुए आदमी की पदचापों से कांप रहीं र्थीं। िीस िषा का एक यिु क सामान्य से कुछ अवधक कर गजु रने की इच्छा में इन्हीं छोटी पगडंवडयों पर चलता हुआ वकसी िड़े रास्ते की खोज में वनकल पड़ा र्था। पैर में हल्का-सा पत्र्थर अटका, उसे उठाने के वलए नियिु क नीचे झक ु ा और पत्र्थर उठाकर पीछे फें कने लगा। यिु क को लगा वक उसका करमसद गांि िहुत पीछे छूट गया है... उसकी दस एकड़ जमीन की लिं ाई-चौड़ाई जैसे इस छोटी-सी पगडंडी में आकर समा गई है। उसका तालक ु ा िोरसद वकनारे पर उगे पेड़ों के िीच कहीं खो गया है। िहुत पहले उसने अपने जनपद में आए वकसी साधु से सनु ा र्था वक िड़ी जमीन पाने के वलए छोटी जमीन छोड़नी पड़ती है और यवद जीिन में कुछ करना हो तो छोटी-छोटी िातों को भल ु ाना होता है। यिु क चलते-चलते अचानक रुक गया, क्योंवक उसे लगा वक घने पेड़-पौधों के िीच से कोई छाया सरकती हुई आ रही है। यिु क चौकन्ना हो गया। छाया धीरे -धीरे उसके करीि आ गई उसने गौर से देखा चालीस-पैंतालीस िषा का एक आदमी िाएं हार्थ में लगी हुई चोट को दाएं हार्थ से दिाए उसके सामने आकर खड़ा हो गया। आने िाले के चेहरे पर ददा झलक रहा र्था। िह यिु क के सामने र्था- “तमु कौन हो भाई?” “मैं....मैं भषू ण राि और तमु !” “मेरा नाम झिेर पटेल है और मैं गजु रात का रहने िाला ह।ं ” “कै सा िवढ़या संयोग है भाई वक हम पड़ोसी प्रदेश के लोग यहां इस इलाके में ऐसे वमले!” “सि संयोग की िात है। कि, कौन, कहां, वकससे वमलता है और क्यों वमलता है।"-झिेर ति तक देख चक ु ा र्था वक भषू ण के िाएं हार्थ से रक्त की िंदू ें वगर रही हैं। उसने जल्दी से अपने छोटे से गमछे को भषू ण के हार्थ में पट्टी की तरह िाधं वदया और वफर धीरे -धीरे दोनों पगडंडी पर चलने लगे। “कहां जा रहे हो?” भषू ण ने पछ ू ा। “रानी झांसी की सेना में भरती होने।” “अच्छा।” सरदार पटेल / 11

“और तमु ? कहां से आ रहे हो? यह खनू कै सा?” “जहां तमु जा रहे हो, मैं िहीं से आ रहा ह।ं ” “क्या मतलि?” “मतलि यह है नौजिान वक मैं भी रानी झांसी की सेना का एक सैवनक ह।ं िड़ी लड़ाई की तैयारी करते-करते हमारी एक छोटी मठु भेड़ हो गई और उसी मठु भेड़ में मझु े एक तीर लगा। ” “तो अि कहां जा रहे हो?” “पास में ही जहां यह पगडंडी खत्म होती है िहीं हमारे एक पररवचत हकीम रहते हैं। उनके पास जा रहा हं िह कुछ दिा लगा देंगे।” “चलो अच्छा हुआ तमु से मल ु ाकात हो गई। एक जैसे लोगों का सार्थ हो गया।” भषू ण और झिेर र्थोड़ी देर तक धीरे -धीरे चलते रहे। इस िीच भषू ण ने झिेर को रानी लक्ष्मीिाई की सेना और नाना साहेि के िारे में िहुत-सी िातें िताई।ं उसने झिेर को यह भी िताया वक रानी एक िहुत िड़ी लड़ाई की तैयारी कर रही है और यह अग्रं ेजों की गल ु ामी दरू करने के वलए हमारा पहला कदम होगा। झिेर और भषू ण काफी देर तक चलते रहे और इस िीच भषू ण तरह-तरह की िातें िताता रहा। भषू ण की िातें सनु कर झिेर के मन में उगा हुआ देशभवक्त का छोटा-सा पौधा अचानक िड़ा होने लगा। उसने महससू वकया वक धीरे -धीरे चलते उसके पैरों में ताकत आ गई है। अि िह लंिे-लंिे डग भरने लगा। भषू ण भी अपने ददा को भल ू कर उसका सार्थ देने लगा। जैसे दोनों िहुत जल्दी ही उस वशविर में पहुचं ना चाहते हैं जहां नाना साहेि ने सैवनकों को भरती वकए जाने का काम शरू ु वकया हुआ र्था। इसी दौरान िातचीत में भषू ण ने अनेक ऐसे सामतं ों और छोटे-छोटे तालक ु ों के अवधकाररयों का पररचय भी झिेर को वदया जो अपने को वकसी राजा से कम नहीं समझते र्थे। लेवकन िे सि अंग्रेजों के वपट्ठ र्थे-राष्ट्र देश और आजादी से उन्हें कोई िास्ता नहीं र्था। आवखर िह समय आया, जि झिेर भरती-वशविर में पहुचं गए। भषू ण ने ही झिेर का पररचय सदावशि होल्कर से करिाया। होल्कर अपनी एक छोटी-सी िांवतकारी सैवनकटुकड़ी तैयार कर रहा र्था। उसने उस यिु क झिेर में एक िहुत िड़ा राष्ट्रभक्त अनभु ि वकया। सदावशि की सेना तैयार हो गई और उसने अपनी तैयारी की सचू ना नाना साहेि को भेज दी। रानी लक्ष्मीिाई और नाना साहेि स्िाधीनता संग्राम के वलए अपने आपको तैयार कर चक ु े र्थे। इसी िीच अंग्रेजों ने झांसी को और भी पराधीनता की िेवड़यों में जकड़ना चाहा। लक्ष्मीिाई को अपनी धारणा को साकार रूप देने का एक मौका वमला और उसने अंग्रेजों के वखलाफ सशस्त्र लड़ाई का ऐलान कर वदया। सेना तैयार हो गई, लेवकन अिसर से पहले ही विस्फोट होने के कारण परू ी देशभवक्त और शवक्त के िािजदू महारानी को असफलता का महंु देखना पड़ा। झांसी से ग्िावलयर तक िीर घायलों की कतार छोड़ कर रानी िीरगवत को प्राि हुई।ं सरदार पटेल / 12

रानी लक्ष्मीिाई को िीरगवत प्राि हुई है-यह सनु ते ही िाकी की सेना वततर-वितर हो गई। झिेर ने अपना वसर उठाया तो देखा वक िह भी उन िंवदयों में है वजन्हें मल्हार राि होल्कर ने अंग्रेज-परस्ती के कारण िंदी िनाया र्था। यिु क झिेर कभी अपने लोगों से सनु ता वक यह 1857 की रानी की पहली लड़ाई है और कभी िह सनु ता वक यह अंग्रेजों के वखलाफ असफल विद्रोह है। िह ठीक तरह से समझ नहीं पा रहा र्था वक ‘लड़ाई और विद्रोह, में क्या अंतर होता है। देशभक्त वजसे स्ितंत्रता संग्राम कहते हैं उसे दसू रे लोग विद्रोह का नाम देते हैं।’ िदं ीगृह में ही एक वदन सरू ज की पहली वकरण के सार्थ उसने देखा वक उसे मल्हार राि होल्कर ने िल ु ा भेजा है। एक तरफ उसे आिाज लग रही र्थी और दसू री तरफ िह अपने आगे आने िाले जीिन की सिु ह और शाम के िारे में सोच रहा र्था वक ’ यह चाहे स्ितंत्रता संग्राम हो या विद्रोह हो, अि रुके गा नहीं, हमें सफलता नहीं वमली तो क्या हुआ! हमारे आगे आने िाली पीढ़ी हमारे अधरू े काम को परू ा करे गी। ’ यिु क झिेर के सामने जैसे शतरंज की एक परू ी की परू ी विसात विछ गई-और इस िार हार रानी की हुई। चालाक अंग्रेज ने जैसे रानी के ही घोड़ों से रानी को मात दे दी। झिेर सोच रहा र्था और अपनी िंदी हालत में आगे आने िाली घटनाओ ं के िारे में विचार कर रहा र्था। सोचते-सोचते उसने अपने सार्थी िंदी की तरफ आाँख उठाई “कहो कै सा लग रहा है?” “लगना क्या र्था, हार गए। मात हो गई।” “शह और मात तो शतरंज में होती है भाई।” “यह शतरंज ही तो र्थी, अंग्रेज जीत गए। हम हार गए।” “लगता है तमु शतरंज के िहुत अच्छे वखलाड़ी हो।” “हां, वसफा शतरंज का। लड़ाई का होता तो जीत जाता। झिेर शतरंज का वखलाड़ी है। एक शतरंज का वखलाड़ी िंदी िना वलया गया है।”.... झिेर िदु िदु ाता रहा और चलता रहा। झिेर की आंखें जो देख रहीं र्थीं, उन पर उसे विश्वास नहीं हो रहा र्था और जो कान सनु रहे र्थे, िह भी विश्वास करने योग्य िात नहीं र्थी। वफर भी िात तो र्थी। हार्थ-पैर िंधे हुए झिेर को मल्हार राि होल्कर ने शतरंज खेलने के वलए िल ु ा भेजा र्था। कुछ वदनों के िाद झिेर ने होल्कर को अपनी चालों से इतना प्रभावित वकया वक होल्कर ने झिेर को एक िदं ी के रूप से मक्त ु कर वदया और इदं ौर में ही रहने की अनमु वत दे दी। “अि तो तमु मक्त ु हो गए हो। क्या करने का इरादा है? भषू ण अकस्मात् झिेर के सामने आकर खड़ा हो गया। झिेर को िहुत आश्चया हुआ। “तमु कहां र्थे अि तक भाई।” “मैं और मेरे कुछ सार्थी अंग्रेजों को चकमा देकर कुछ वदन झांसी रहे और वफर यहां आ गए।” “अि यहीं रहोगे क्या?” झिेर ने। सरदार पटेल / 13

“नहीं अपने गांि चला जाऊंगा। और तमु ?" “मैं भी िापस जाने की ही सोच रहा ह।ं घरिालों को तो यह मालमू ही नहीं वक मैं कहां ह?ं अि घर जाऊंगा, ति उन्हें सि कुछ िताऊंगा।” “शादी-ब्याह!” “हां, यह तो होना ही होता है और मेरे वदमाग में अि भी यह िात घमू रही है वक जो काम हम नहीं कर पाए, िह हमारे िाद की पीढ़ी परू ा करे गी। मेरी तो इच्छा यही है। मेरे घर में, घर में नहीं तो मेरे गांि में कोई एक ऐसा जन्म ले जो िड़ा होकर भारतमाता की जंजीरें तोड़ सके । 31 अक्टूिर, 1875 को झिेर भाई का आंगन वफर गीतों से गंजू उठा और वजस िालक के जन्म के कारण आंगन में गीत गंजू े, ियार आई, फूल वखले, िही आगे चलकर सरदार िल्लभ भाई पटेल के नाम से प्रवसद्ध हुए। झिेर भाई का आंगन वजतना िड़ा र्था, उससे िड़ा आसमान उनकी भवक्त का र्था और इसवलए आसमान से िदंू ें तो िरसती, लेवकन उनकी तल ु ना में खेतों की फसलें कम ही रह जातीं। पररिार िड़ा र्था वजम्मेदाररयां िढ़ रही र्थीं, इसवलए झिेर भाई चाहते र्थे वक उनकी संतानें पढ़ें और नौकरी करें । लेवकन िल्लभ िचपन से वकशोर होते-होते न जाने वकतनी िार अपने वपता के सार्थ खेतों में जाते रास्ते में पहाड़े रटते और खेतों के वकनारे जाकर हल चलाते िीज िोते फसल काटते-इस तरह न जाने कि खेत के िजाय िल्लभ पेटलाद की पाठशाला के सामने खड़े हुए हार्थ में वकताि वलए दरू होते खेतों को देखने लगे। िल्लभ की वशक्षा का यह पहला चरण र्था और उन्होंने िड़े उत्साह और वनभीकता से यह चरण परू ा वकया। पेटलाद पाठशाला से प्रारंभ की हुई यात्रा का एक पड़ाि नावडयाद में हुआ। िल्लभ के अध्यापक ने ही झिेर भाई को प्रेररत वकया र्था वक िे खेती के लालच में िल्लभ की पढ़ाई न रोके । नावडयाद िल्लभ की पढ़ाई का दसू रा चरण-माध्यवमक वशक्षा और यहीं से वकशोर िल्लभ धीरे -धीरे वनभीकता और सच्चाई का िह पाठ भी सीखने लगे, जहां न्याय का विरोध ही धमा हो जाता है। नावडयाद के अध्यापक, अध्यापक कम और व्यापारी अवधक र्थे। अध्यापन के अवतररक्त पस्ु तकें िेचना उन्होंने अपना धमा समझ रखा र्था, लेवकन जि धमा-अधरम् के रास्ते से आता है तो िह धमा नहीं होता आचरण करने िाले का भ्रम होता है और कहना न होगा वक अध्यापकों के इस काम ने िल्लभ के जीिन में गलत के प्रवत विद्रोह की िह भािना पैदा की वजससे अध्यापक परास्त हुए और वकशोर िल्लभ के व्यवक्तत्ि में नेतत्ृ ि की चाशनी शरू ु हो गई। हुआ यह वक िल्लभ को अध्यापकों के व्यिहार के विरोध में छात्रों का नेतत्ृ ि करना पड़ा और अपनी िात मनिाने के वलए हड़ताल का भी सहारा वलया गया। पाचं -छह वदन विद्यालय िदं रहा। गरुु ओ ं को वशष्ट्यों से हार माननी पड़ी। “आवखर तमु जीत गए।” सरदार पटेल / 14

“नहीं-गरुु जी जीत-हार का सिाल नहीं। कुछ लोग वमलकर अपना मतलि साध रहे र्थे। उसका विरोध वकया है। हमने आपके वखलाफ क्यों कुछ नहीं िोला?” “मैं इन लोगों में हं ही कहां! मैं तो खदु कहता र्था वक वकतािें िेचने का काम ठीक नहीं। अध्यापक ही अगर व्यिसायी िन जाए तो वफर वशक्षा की पवित्रता कहां रहेगी? ” “हमें अपने अध्यापकों के विरोध में िोलना पड़ा। इसवलए हम माफी मांगते हैं।” “माफी की कोई िात नहीं वफर भी हमें आप माफ कर दें।” िल्लभ के सार्थ खड़े दसू रे विद्यावर्थायों ने भी हार्थ जोड़ कर माफी मांगी। िात यहीं समाि हुई। विद्यालय वफर से अपनी राह पर चलने लगा। िल्लभ की राह अभी िीच में ही र्थी। माध्यवमक स्कूल की पढ़ाई एक पड़ाि र्थी वजसके आगे वफर िल्लभ को जाना र्था। लेवकन इस स्र्थान पर इस पड़ाि के आगे कोई राह नहीं र्थी। दसू री राह दसू रा पड़ाि और िल्लभ की यात्रा शरू ु । मैवरक तक की पढ़ाई करनी र्थी। यह एक और मक ु ाम पर जाने की तैयारी की तरह र्था। इस िार िल्लभ का मक ु ाम र्था िड़ौदा। नावडयाद से िड़ौदा-और िल्लभ भाई ने िड़ौदा में पढ़ाई करते हुए अपने साहस और विद्रोही शवक्त को पहचानने के वलए एक नया कदम रखा। एक-एक पग जैसे उनके भीतर के लािे को कमा में िदलता हुआ एक नई उमगं भरता। िैकवल्पक विषय में संस्कृ त और गजु राती में विकल्प के कारण गजु राती विषय वलया और वफर झेलनी पड़ी एक अध्यापक की नाराजगी। नावडयाद की कहानी जैसे दोिारा उनके सामने आकर अपना रूप वदखाने लगी। गजु राती के अध्यापक छोटे लाल पढ़ाते गजु राती र्थे, लेवकन अपने संस्कृ त-प्रेम के कारण िे यह चाहते र्थे वक अवधक से अवधक विद्यार्थी संस्कृ त विषय लें। अध्यापक छोटे लाल ने िल्लभ को अपने दरिार में िल ु ाया। “कहां से आए हो?” अध्यापक की आिाज में रोष र्था। “नावडयाद से।” िल्लभ ने जिाि वदया। “अच्छा! संस्कृ त नहीं पढ़ोगे। गजु राती ले रहे हो।” “जी हां मेरी मातृभाषा गजु राती है।” “वकंतु संस्कृ त तो गजु राती की भी मां है।” ति तक िल्लभ को अपने अध्यापक छोटे लाल की िात समझ में आ गई र्थी। िह समझ गया र्था वक गजु राती के अध्यापक होने के िािजदू गरुु जी संस्कृ त के उपासक हैं। िल्लभ ने िड़ी विनम्रता से कहा, “गरुु जी यवद हम गजु राती नहीं पढ़ेंगे तो आप वकसको पढ़ाएगं े?” अध्यापक को िल्लभ से ऐसे उर्त्र की आशा नहीं र्थी। वकशोर की तका िवु द्ध की प्रशंसा करने की िजाय िह उनसे और वचढ़ गए। सरदार पटेल / 15

175

Get in touch

Social

© Copyright 2013 - 2024 MYDOKUMENT.COM - All rights reserved.