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Story Transcript

उड़ान

Keshavan

उड़ान © 2021 Keshavan

All rights reserved. No part of this publication may be reproduced, stored in a retrieval system, or transmitted, in any form or by any means, electronic, mechanical, photocopying, recording or otherwise, without the prior written permission of the presenters. Keshavan asserts the moral right to be identified as author of this work.

Presentation by BookLeaf Publishing Web: www.bookleafpub.com E-mail: [email protected]

ISBN : 9798201507794 First edition 2021

Acknowledgement {अभिस्वीकृति}

पुस्तक का लेखन एक कठिन परन्तु भीतर से बाहर तक तप्ृ त एवं पुरस्कृत करने वाला कार्य है, जिसे पूर्त य ः समाप्त कर मेरे अंतमयन ने प्रसन्न और आनजन्ित महसस ू ककर्ा।

इस ककताब का सफल समापन होने में , तथा मेरी रचनाओं से लेकर मेरी भाषा, मानससकता और समझ सभी के ननमायर् में; कुछ मेरे िीवन के अत्र्ंत महत्वपूर्य व्र्जततर्ों का अत्र्ावश्र्क एवं अववरल र्ोगिान है, जिन्हें मैं ननम्नसलखखत सूचीबद्ध करते हुए अपने हृिर् की गहराईर्ों से, अपनी ननष्कपट कृतज्ञता एवं आभार प्रस्तुत करता हूूँ।

सवयप्रथम,

पररवार;

मेरे

माता-वपता

जिन्होंने मेरे िन्म से लेकर िीवन के हर पड़ाव, हर अच्छे -बुरे में ; मेरा ननरं तर साथ तथा मेरे हर प्रर्ास में हौसला प्रिान ककर्ा है। जिनके सन्िभय में ककतने भी स्तर तक आभारी रहना कम ही है।

मेरे बड़े भाई, मेरा लेखन जिनके सुझाव से िन्मा था; िहाूँ तक स्मनृ त िाती है, इन्हीं के मागयिर्यन और पिचचन्हों का अनुसरर् ककर्ा है; परन्तु स्मरर् में एक अवसर भी र्ाि नहीं आता, िब इस ओर चलने के कारर् राह िश्ु वार हुई हो। बस इस ववश्वास को हर पल बनार्े रखने के सलए उनका असभनंिन।

मेरे पररवार के सभी सिस्र्; मेरे चाचा, जिनकी िे न है र्ह नाम "केर्वन"; मेरी हमेर्ा साथ िे ती बड़ी बहन, मेरे मामा, मेरे नाना-नानी,

सभी लोग। मेरे सभी पररचचत, जिन्होंने हर समर् मुझे प्रर्ंसा और स्तुनत से प्रेररत एवं प्रोत्साठहत ककर्ा है।

मेरी िसवीं कक्षा की ठहंिी अध्र्ावपका, जिन्होंने भाषा की मेरी समझ को ववद्र्ालर् के ठिनों से लेकर आि तक, बुननर्ाि और आधार िोनों प्रिान ककए हैं। जिनकी साठहत्र् की समझ और ननिे र्न ने अपने ज्ञान की छत्रछार्ा से मुझे कभी ओझल नहीं होने ठिर्ा।

अंनतम, पर र्ार्ि सबसे महत्वपूर्;य तर्ोंकक मेरा र्कीन है कक, प्रेक्षक के अभाव में कोई भी प्रिर्यनी अथयहीन होती है; अपने हर पािक, हर प्रेक्षक को तहे ठिल से र्ुकिर्ािा करना चाहूूँगा; िो अपना वक़्त प्रिान करके, मेरे र्ब्िों एवं ववचारों को ग्रहर् करने र्ोग्र् समझते हैं।

Preface {प्रस्िावना}

इतकीसवीं र्ताब्िी, मानवता के ज्ञान एवं ववज्ञान ने सफलता और उपलजब्धर्ों की अनेकों सीठिर्ाूँ पार कर ली हैं। प्रौद्र्ोचगकीर् प्रगनत इस असाधारर् गनत से आगे बढ़ी है, जिसने साधारर् िन-िीवन के मौसलक आधारों को तक पररवनतयत होने पर मिबूर कर ठिर्ा है।

बिलाव तो अब िैसे िीवनर्ैली का एक असभन्न अंग है; िो अब है वो कब तक है, इस बात की ज़मानत पेर् कर पाना संभवतः हम सबकी ही क्षमता से अचधक का कार्य बन बैिा है। ननमायर् और नार् का चि जिसका अहम भाग है , पररवतयन; भले ही लार्ा िाए र्ा नहीं, आ अवश्र् िाता है!

तबिीसलओं की इस अनंत सूची में सबसे प्रबल एवं उल्लेखनीर् नाम है , आधुननकरर् का; िो हम सभी में से बहुमत का एक अंर् ही नहीं, एक ज़रूरत बन चुका है।

जिसका अंिाम है, आि मनोरं िन तथा सकिर्ता से िुड़ी हर प्रकार की गनतववचधर्ों एवं क्षेत्रों में समर् व्र्तीत करने के साधनों की अनेकता; कक अगर एक िीवन का सम्पूर्य उपलब्ध वक़्त भी इन्हें भोगने में खचय कर ठिर्ा िार्े, तो भी इस व्र्ंिन को पर् य ः समाप्त कर ू त पाना असंभव होगा। इस सब कुछ के साथ में, कार्य तथा उत्तरिानर्त्वों को काूँधे पर उिार्े, प्रत्र्ेक ठिन को अत्र्चधक रफ़्तार में हमारी आूँखों के सामने प्रस्तुत होते और उतने ही वेग में हमारी पलकों से ओझल होते, हम सभी िे खते हैं। प्रनतठिन कुछ इस तरह की गनत में ही हमारे चारों ओर उपजस्थत अचधकांर् िन अपना समस्त

िीवन व्र्ापन कर िे ते हैं; समस्त लोक को िानपहचान कर भी, बबना एक भी िफ़ा अनुभव तथा महसूस ककर्े।

संसार के ननमायर् से इस तारीख़ तक मौिूि, हमारे इस िहाूँ की सौंिर्य के सठहत अनेकों र्ोभा र्ुतत ववर्ेषताएूँ हैं; िो नग्न दृजष्ट में भी अदृश्र्, गुप्त ख़ज़ानों के भाूँनत हैं; जिन्हें खोि पाने के सलए, केवल और केवल एक दृजष्टकोर् की आवश्र्कता होती है। सही नज़ररर्े के समक्ष र्े ठिल एवं बाहें , िोनों फैला कर, हर िे खते व्र्जतत का असभवािन, असभनन्िन तथा मनोरं िन करती हैं। रोज़ िगत की खींचतान में गुंथा हुआ र्े तन तथा आतंररक संघषों में िूझता र्े मन; कभी इस तरह के भार से इतना मुतत ही नहीं हो पाता कक बोझ लिी उन नज़रों को उिा, अपने वातावरर् से पर्ायवरर् तक ककसी का भी िर्यन कर आनन्ि के िो पल बबता सके।

ववचचत्र परन्तु अद्भुत हमारी इस िनु नर्ा में अवलोकन तथा पर्यवेक्षर् िैसे कार्य, िो बेरोक समर् की चाल को भी िो पल का िहराव प्रिान कर िे ते हैं; इस संग्रह की रीढ़ हैं। र्ह संकलन, उपर्त ुय त इस जज़न्िगी पर आधाररत एकलाप, आत्मभाषर् र्ा ठटप्पर्ी में वखर्यत हम सबके द्वारा की गर्ी इस आम ककं तु अज्ञात भूल को अचानक से सुधार तो नहीं सकता, लेककन अपने स्तर पर एक िोस प्रमार् ज़रूर प्रिसर्यत करता है; कक, मुमककन संभावनाओं का भंडार अत्र्न्त ववर्ाल है और उन्हें प्राप्त करने का रास्ता एवं उन तक पहुूँचने का द्वार खोलना अससलर्त में बहुत सहि; िो बस माूँग र्ा र्ुल्क के तौर पर आपसे कुछ क्षर् रुकने तथा िी भर के िे खने को कहता है।

~ समय ~

समर् तो िैसे उड़ चला है , बाहों में भरे हम सब को,

"कुछ क्षर् िहर िा", र्ातना र्े सब करें , बढ़ता चले वेघ में इस भाूँनत, िैसे कहीं समर् ही न हो बाकी...

1

#23 अप्रैल 2020#

कुछ भलखा है …

मम्मा... कहने को तो बस एक र्ब्ि, पर असल में भाव असीम है ;

इस प्र्ार से ही तो र्े िीवन है , इसके बबना िैसे अथयहीन है ।

हर अच्छे पर सराहा, हर बुरे पर फटकारा, ममता के उस आूँचल में रख के,

2

हर पल ननहारा, हर पल सवारा।

इस ममता से तो सात-समन् ु िर पार भी, िो पग बराबर लगता है;

उस गोि में तो हर पल, एक िीवन बराबर लगता है ।

पापा... आपकी डाूँट ने ही तो हमें चलना ससखार्ा, रोके बबना र्ूँू आगे बढ़ार्ा;

3

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