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Story Transcript

साधना मंतर् िसद्धी िसद्धांत

शर्ी गुरूजी

Copyright © Shree Guruji All Rights Reserved. ISBN 979-888530570-9 This book has been published with all efforts taken to make the material error-free after the consent of the author. However, the author and the publisher do not assume and hereby disclaim any liability to any party for any loss, damage, or disruption caused by errors or omissions, whether such errors or omissions result from negligence, accident, or any other cause. While every effort has been made to avoid any mistake or omission, this publication is being sold on the condition and understanding that neither the author nor the publishers or printers would be liable in any manner to any person by reason of any mistake or omission in this publication or for any action taken or omitted to be taken or advice rendered or accepted on the basis of this work. For any defect in printing or binding the publishers will be liable only to replace the defective copy by another copy of this work then available.

साधना मागर् में हम जो भी कायर् करते है , या जो भी साधना हम करते

है | वो सभी कायर् गरु ु हम से खद ु करवा लेते है | हमें इस कायर् में बहुत सारे ऐसे अनभ ु व आये है जो मानवी शिक्त से असंभव है | इस पस् ु तक को िलखते समय खद ु गुरु हमे मागर्दशर्न कर रहे थे |

इस पस् ु तक में दी गई सभी जानकारी अनभ ु िू त जन्य है और अपने साधना मागर् में मागर्दशर्न स्वरूप रहे गी | ये सब साधना के कायर्

गरु ु शिक्त हमसे करवा लेती है | अब तक जो कायर् हुआ है वो गरु ु

चरणों में अपर्ण करके ये पस् ु तक हम वाचकों को समिपर्त करते है | शर्ी सद्गरु शरणंं । ु शरण

कर्म-सच ू ी पर्स्तावना

vii

भिू मका

xi

1. साधना की पंच सतर् ु ी

1

2. िसिद्धदातर्ी माला

6

3. िदशा रहस्य

11

4. मंतर् रहस्य

14

•v•

पर्स्तावना || शर्ी गरु दे व दत्त || ुरुदे

|| पर्स्तावना ||

साधना मंतर् िसिद्ध - िसद्धांत ये पस् ु तक आप तक पहँुचने में मझ ु े बहुत ही आनंद अनभ ि त हो रही है , और साथ में ही ग रु आज्ञा प ि तर् की ु ू ु ू अनभ ि त और आनं द भी है | बह त िदनों से ये िवचार मन में चल रहा ु ू ु था, की साधकों को एक सरक साधना पद्धित कैसे बताये | तो एक िदन सब ु ह साधना में गुरु आज्ञा पर्ाप्त हुई और लेखन कायर् आरं भ हुवा | खद ु सद्गुरु जब मागर्दशर्न कर रहे थे,तो दे खते ही दे खते कायर् शरू ु हुआ और

चंद िदन में ही पस् ु तक बनकर तैयार हो गयी, इस पस् ु तक में जो भी बातें बताई गई है , वो गरु परम्परा से पर्ाप्त परन्त बह त से साधकों की अनभ ु ु ु ु व

की बाते है | तो ये पस् ु तक आपको मागर्दशर्न करे गा और साधना की गह् ु य

रहस्य के बारे में बताएगा |

ये पस् ु तक उन साधनों के िलए भी है िजन्होंने अपनी साधना क्षेतर्

में बहुत साल गुजारे है , परन्तु उनके हाथ कोई भी अनभ ु िू त नहीं है | ये पस् ु तक पढ़ने के बाद आपको साधना के ऐसे रहस्यों के बारे में पता

चलेगा, जो िबलकुल सरल िकन्तु अत्यंत गुप्त है | बहुत साधक ऐसे होते है िजनके पास िसद्ध मंतर् होते है , या गरु ु मंतर् होते है | वो सोचते है की केवल मंतर्जप से ही िसिद्ध पर्ाप्त हो जाएगी और वो साधक अनेक वषर् साधना करते है , परन्तु कुछ भी हाथ नहीं लगनेपर िनराश हो जाते है | इसिलए ऐसे साधक जो मंतर् िसिद्ध चाहते है या अनष्ु ठान

में अनभ ु िू त पर्ाप्तकरना चाहते है तो जरूर इस पस् ु तक को पढ़ने के बाद

आपको साधना में आगे बढ़ने का मागर् दीखेगा, तो ये पस् ु तक साक्षात ्

गरु ु मागर्दशर्न के समान है |

गरू बर्ह् ह्मा र् मा गरू िवष्ष्ण र् णःु गरू देर् व वोो मह महेेश्श्वरः। वरः। ुरूबर्र् ुरूिवर् ुरूदेर्

गरु सार्क्षात परबर्ह्म तस्म तस्मैै शर्ी गरुरवे वे नमः । ुरुसार्

• vii •

पर्स्तावना

मत्त्य बारेे में एक सािधका ु का अिधकार कै से चलता है , उस बार ृ यु पर भी गरु का साक्षात अनभ व: ुभव

गुरु साक्षात ् परबर्म्ह ऐसे कहा गया है | साक्षात ् जन्म और मत्ृ यु भी

गुरु शिक्त कैसे िनयंितर्त करती है ? ये एक साक्षात अनभ ु व में आपको बताने वाला हु | ये घटना मैंने खद ु दे खी है | िजनका ये अनभ ु व है उन्होंने

उनका नाम गुप्त रखने को कहा है | तो इसिलए उनका नाम नहीं िलख रहा हु |

तो ये सािधका पण ु े , महाराष्टर् में रहने वाली है | बचपन से ही इनके

घर मे गुरु परं परा से साधना की जाती थी | इनको भी बचपन से ही गुरु मागर्दशर्न का लाभ हुवा , तो इन्होने अपने गुरु से आगे दीक्षा भी ले ली

, तो ये बताती है की, वो काम के िलए हमेशा हाईवे से होकर जाती थी

| वहाँ पे वैसे तो बहुत ज्यादा एक्सीडेंट होते ही रहते थे | काफी िदनों से

इनके मन में भी थोड़ा डर लगा रहता था, की इनके साथ कुछ बरु ा होने वाला है परन्तु इन्होने उस तरफ ध्यान नहीं िदया | उसके बाद इनके लगातार दो बार छोटे एक्सीडेंट होते होते रहगये थे | िफर एक िदन इनको

कुछ िविचतर् सपना आया िजसमे उन्हें कुछ िविचतर् चीजे दे खने को िमली परन्तु इन्होने ध्यान नहीं िदया | तो वो सामान्य सा िदन था, उस िदन इनको उठने को थोड़ी दे री हुई | इनकी गाड़ी भी उस िदन लेट हो गई और

बाद मे टर्िफक लगा, तो ऑिफस पहंु चने में बहुत दे र होगी ऐसा उन्हें लगा | तो गाडी का रुट उन्होंने बदल िदया, िफर दे खा की सामने बहुत बड़ा एक्सीडेंट हुवा था और चार-पांच लोगों की जान जाचक ु ी थी | उस घटना

के बाद इनके मन में कुछ िविचतर् सी घबराहट चल रही थी | कुछ आगे जाने पर इनका छोटा एक्सीडेंट हो गया पर िसफर् हाथ को ही थोड़ा लगा

था, बािक कुछ नहीं हुवा | उसके बाद हाथ को बहुद ज्यादा ददर् होने लगा

| तो वो डॉक्टर के पास जाकर आइ | उन्हें डॉक्टर ने 7 िदन िक छूट्टी

लेने के िलए बोला |

श्याम को जब ये हमसे िमली तो मझ ु े इनकी तरफ दे खकर ऐसा आभास होने लगा जैसे,मत्ृ यु इनके काफी करीब से गुजरी है | मैंने उनको

पछ र् ना हुई है क्या ? तो उन्होंने बोला नहीं ू ा क्या आपके साथ कोई दघ ु ट मेरा छोटा एक्सीडेंट हुआ है | मझ ु े यकीन नहीं आया तो मैंने उनकी जन्म • viii •

पर्स्तावना

कंुडली दे खी तो वहां पर मत्ृ यु योग स्पष्ट िदख रहा था | मैंने जब ध्यान लगाकर दे खा तो ध्यान में इनके पीछे इनके गुरु को दे खा | तो बात समज में आई की इनके गुरु ने वो योग टाल िदया था |

जब ये साधना में शाम को बैठी थी, तब उनको साक्षात दत्तातर्ेय के

दशर्न हुए और दत्तातर्ेय के रूप में गुरु के भी दशर्न हुए | जब हमारी बात

हुइ तो इनको बताया की आप का मत्ृ यु योग था | आप के गुरु ने उसको होने नहीं िदया | तो उन्होंने दत्तातर्ेय के दशर्न के बारे में मझ ु े बताया,

तब मैंने उनको उस िदन का घटनाकर्म पछ ू ा िजस िदन की ये घटना है | उन्होंने जो घटना बताई वो सन ु कर मझ ु े पता चला की साक्षात ् दत्तातर्ेय ने ही उनको दे र की और उनकी जान बचाई क्योंिक अगर वो पंदर्ह िमनट पहले वहां पर होती तो उनकी मत्ृ यु िनिश्चत थी |

आगे उनको एक सपना आया िजसमें उन्होंने दे खा की अन्त्य िविध

चल रही है और वो खद ु की ही है | तो उसके बाद इनको भी ये महसस ू

हुवा की कोई बड़ी घटना हमारी िजन्दगी मे घटने से टाल दी गई ,उन्होंने मन में भगवान दत्तातर्ेय को और गुरु को पर्णाम िकया और ये अनभ ु व

इस पस् ु तक के िलए िलखकर िदया | उन्होंने बताया की िसफर् गुरु मंतर् पर ही शर्द्धा रखो बाकी सारी चीज़े गुरु दे खलेंगे |

इस पस् ु तक में कौन सी साधना में कौन सी माला और कौन सा

आसन लेना चािहए इसके बारे मे िलखा है ,ये आसन और माला हमसे भी आप पर्ाप्त कर सकते है | तो अंत में यही कहना चाहंू गा की, गुकारं च गुणातीतं | रुकाररं रूप विजर्तं

गुण िनगर्ुण रूपाय | तस्मै शर्ी गुरुवे नमः||

• ix •

भिू मका साधना की िसिद्ध के िलये िजन पंचांग का हमने वणर्न िकया है । वो

हमारा खद ु का अनभ ु व है । संकल्प मातर् से कायर् होना ही साधना की िसिद्ध का फल है ।

ज्ञान ना उपज उपजेे गरु ु िबना | िबन गरु ु भिक्त ना होय | मनका सश ंशय य ना मोह मोहेे |

िबन गरु क्त ना होय || ु मिुिक्त

तो गुरू मागर् पर चलते हुये साधना करके पण ु त्र् व पर्ाप्ती चाहने वाले

साधक को अपने साधना िसद्धी के लीये िविवध साधनो की आवश्यकता

पड़ती है । जब तक आपके पास योग्य सामगर्ी नहीं होगी तब तक आपका संकल्प और साधना को पण ू र् िस्थित आना असंभव है ।

साधना में आसन, माला, िदशा, ध्यान ये सब िमलकर साधना को

पण र् ा पर्दान करते हैं। अगर इनका योग्य संगम हो गया तो अनष्ु ठान ू त भी सफल हो जाता है ।

साधना के रहस्यों मे से आसन ही सबसे बड़ा रहस्य माना गया

है । तभी रामायण काल से ही हमारे ऋषीमन ु ी व्याघर्ासन, जैसे िसद्ध

आसनों का पर्योग करते है । साथ में ही िवशद् ु धानंद जी जैसे िसद्ध महात्मा जो ज्ञानगंज जैसे जगह पर जाकर आए, वैसे शर्ेष्ठ - िसद्ध संत और ज्ञानी परु ु ष ने भी ‘नवमंड ु ासन' जैसे िसद्ध आसन की िनमीर्ती की। जब वो िसद्ध थे िफर भी उनको आसन िनमार्ण का क्या पर्योजन होगा?

क्योंिक जो सामान्य साधक है उनको ऐसे ही िसिद्ध पर्दान नही होगी ये

जानकर ही आसन की िनिमर्ित की गई। तो इसिलए आसन माला, िदशा का अनन्य साधारण महत्व है |

इस पस् ु तक में जो ज्ञान िदया है वो आप इस्तेमाल करके दे खो और

अनभ ु व करके दे खो। क्योंिक अनभ ु व से ही अध्यात्म िसद्ध होता है । शर्ी सद्गरु शरणंं । ु शरण

• xi •

इस पिुिस्तका स्तका में दी गई साधन सामगर्ी िबकर्ी के िलए उपलब्ध है | आसन :

१) दभार्सन

२) घोंगडी आसन ३) रे शीम आसन

४) िसद्ध आसन

माला :

१ ) रुदर्ाक्ष माला २ ) चंदन माला

३) तल ु सी माला

यतर् ं :

१) दत्त यंतर्

२) शर्ी यंतर्

३) िवशेष फलदायी दत्त यंतर्

साधन सामगर्ी के िलए िनचे िदए गए ईमेल पर संपकर् कीिजए| [email protected]

• xiii •

1 साधना की पंच सतर् ु ी बहुत सारे लोग साधना करते है । तंतर् मंतर् यंतर् िसद्ध करने का पर्यास करते है । परं तु बहुत सारे लोगों के हाथ कोई भी अनभ ु िु त नहीं आती। तो इस पस् ु तक में हमने कुछ ऐसे िसद्धांतों को बताने का पर्यास िकया है । िजसकी वजह से साधना में मंतर् िसिद्ध पर्ाप्त हो सकती है ।

कई साधकों को ये पर्श्न होते है िक हमें मंतर् िसिद्ध क्यों नहीं

िमलती? मैने इतने साल साधना की है िफर भी मझ ु े कुछ भी हाथ नहीं लगा। इसी तरह बहुत सारे लोग साधना मागर् छोड़ दे ते है । अगर आप को भी ऐसा लगता है , की आप के साधना को एक िदशा की आवश्यकता है । तो ये िकताब आपके िलए मागर्दशर्न स्वरूप है ।

इस िकताब को पढ़ने के बाद शायद आप साधना मागर् में आगे बढ़ें गे

और अपना अंितम लक्ष्य पर्ाप्त करने में सक्षम होंगे। इस िकताब में

बहुत सी ऐसी गोपनीय िकं तु सरल बातें बताई गई है , जो अगर आप परू ी तरह से जैसे बताई है , वैसे ही करोगे तो मैं यकीन से कह सकता हँू, की

आप को िसिद्ध पर्ाप्त जरूर होगी। साधना िसिद्ध की पंच सतर् ु ी: १. आसन

२. जप माला ३. िदशा

४. ध्यान •1•

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