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Story Transcript

है लो पैरेंट् स! आधुनिक समय में बच्चों की दे खभाल

मोंजू वानिष्ठ (मिु वानिष्ठ)

NOTION PRESS

NOTION PRESS India. Singapore. Malaysia. ISBN 9798885466646 This book has been published with all reasonable efforts taken to make the material errorfree after the consent of the author. No part of this book shall be used, reproduced in any manner whatsoever without written permission from the author, except in the case of brief quotations embodied in critical articles and reviews. The Author of this book is solely responsible and liable for its content including but not limited to the views, representations, descriptions, statements, information, opinions and references [“Content”]. The Content of this book shall not constitute or be construed or deemed to reflect the opinion or expression of the Publisher or Editor. Neither the Publisher nor Editor endorse or approve the Content of this book or guarantee the reliability, accuracy or completeness of the Content published herein and do not make any representations or warranties of any kind, express or implied, including but not limited to the implied warranties of merchantability, fitness for a particular purpose. The Publisher and Editor shall not be liable whatsoever for any errors, omissions, whether such errors or omissions result from negligence, accident, or any other cause or claims for loss or damages of any kind, including without limitation, indirect or consequential loss or damage arising out of use, inability to use, or about the reliability, accuracy or sufficiency of the information contained in this book.

पुस्तक लेखक द्वारा कॉपीराइट © 2021 सभी अनधकार सुरनित। लेखक की नलखखत अिुमनत के नबिा इस पुस्तक या इसके नकसी भाग कच नकसी भी तरीके से पुि: प्रस्तुत या उपयचग िहीों नकया जा सकता है। कृपया ध्याि रखें नक इस पुस्तक की जािकारी और तकिीक एक निनकत्सा सलाह का गठि िहीों करती है। गोंभीर बीमारी के मामले में एक यचग्य निनकत्सक से निनकत्सा सलाह लेिे की हमेिा नसफाररि की जाती है। यह पुस्तक पाठक कच सकारात्मक इरादचों के साथ प्रदाि की जाती है, हालाोंनक, लेखक नकसी भी स्थिति के नलए नजम्मेदारी स्वीकार िहीों कर सकता है जच पाठक के नलए यचग्य निनकत्सक से निनकत्सा सलाह िहीों लेिे के पररणामस्वरूप हच सकती है। जब आपकच आवश्यकता हच, कृपया नकसी प्रमानणत निनकत्सक से उनित परामिश लें।

निया यचग परम्परा के पोंिम गुरु श्री शैलेन्द्र शर्ाा के श्री चरण ों र्ें सादर सर्तपाि, तिनके आिीवाशद से ही यह सोंभव हच सका ।

लेखक का संदेश! हैल पैरेंट् स! “रे की हीतलोंग अवचेिन का तदव्य स्पशा ” पुस्तक के बाद, परवररश पर केंतिि अपनी दू सरी पुस्तक “हैल पैरेंट् स” के साि, सभी सुतििन ों से िल्दी ही रूबरू ह िे हुए बहुि अच्छा लग रहा है। सभी के अपने तवचार ह िे हैं, उसी के अनुरूप उनकी पसोंद या नापसोंद बनिी है। हालाोंतक इस पुस्तक र्ें वतणाि सारी या बहुि बािें सबक पिा है इसतलये यह नकताब आपकच नफर से याद नदलािे के नलए है । यह पुस्तक पररवार व्यवथिा र्ें यकीन रखने वाले सब ल ग ों के तलए है। बच्चों कच पालिा, उन्हें अच्छे व्यवहार की नििा दे िा भी पुिीत कायश है , क्चोंनक यह उिका जीवि सुखी बिाता है - सोंत रामसुख दास जी आि स्वच्छों दिा के र्ाहौल र्ें हर् तिर से वन र्ानुष ह िे िा रहे हैं (तकसी प्रकार का अनुशासन, र्याादा पसोंद नहीों) और स्वयों क बहुि बडा ज्ञानी सर्झने लगे हैं। आिुतनक तशक्षा प्रणाली का िहर पूरे सर्ाि, सोंस्कृति, दे श क तदशाहीन पररस्थितिय ों र्ें ले िा रहा है, ख खला कर रहा है, और हर् बेबस कठपुिली बन खुश ह रहे हैं, कई बार चाहिे हुए भी तवर ि नहीों कर पा रहे हैं। बच्चे आिुतनक तशक्षा प्रणाली र्ें ना ि तवपरीि पररस्थितिय ों से सोंघषा करना सीख रहे हैं, ना ही सोंस्कृति की सर्झ। भावनाओों की सर्झ, नैतिकिा, सभ्यिा सोंस्कार से ि दू र दू र िक सोंबोंि तदखाई नहीों दे िा, तििने र्होंगे स्कूल उिनी अतिक गतितवतिय ों का ब झ और तनरों कुशिा। भाव ों की, र्ािृ भाषा की िानकारी नहीों है, लेतकन तवदे शी नकल से छ टे -छ टे बच्च ों पर एक साि कई भाषाओों क सीखने का प्रेशर, बस अक्षरज्ञान प्राप्त कर रहे हैं। ऐसा लगिा है र्ान , स्कूल र्ें नहीों

बच्चे िैस्रि य ों र्ें िैयार ह रहे हैं, र्शीनी र्ॉडल, कल्पनाओों र्ें िी रहे हैं। और र्ािा तपिा स्वयों क िन्य र्हसूस कर रहे हैं। आि की िेि तिोंदगी र्ें सुतविाएों ि खूब बढ़ रही है उसके बाविूद, सबके पास वक्त की कर्ी र्हसूस की िा रही है । और इसी विह से युवाओों तथा बच्च ों का सब्र, िैया सब िैसे सर्ाप्त ह रहा है, उन्हें सब कुछ ित्काल चातहए। अभी के अभी, (कदर् ों िले दु तनया) सब कुछ भ ग लेने की चाह, यही आिुतनक िीवनदशान उनक आकतषाि कर रहा है । शारीररक, र्ानतसक स्वास्थ्य की परवाह ना करिे हुए इस िरह के खचे बढ़ रहे हैं, और पूरे ना ह ने पर उन्हें अपराि की दु तनया र्ें िकेल रहे हैं। िल्दी अर्ीर बनने की चाहि, “दु तनया र्ुट्ठी र्ें” िैसी भावना उनकी प्रेरक बन रही है। छ टे -छ टे बच्चे हत्या, आत्महत्या िैसे िघन्य कृत्य ों क अोंिार् दे रहे हैं, तिन्हें तक पुराने सर्य र्ें बच्चे सर्झिे भी नहीों िे। इों टरनेट कनेक्शन सतहि सवा सुलभ र् बाइल ि न, हॉस्टल लाइि का स्विोंत्र उन्मुक्त िीवन, हुक्का बार, रे व पाटी िैसे थिान, नशे की घर ों र्ें पहुोंच (शराब, तसगरे ट, डि ग्स तिनका कभी नार् िक नहीों तलया िािा िा, आि पनत-पत्नी, तपिा-पुत्र, पररिन साि बैठ कर नशे, शराब आतद का सेवन करिे तदखाई दे िे हैं), ओ टी टी प्लेटिार्ा की बेहूदा आपरातिक सीरीि, तिल्में भी (तिनर्ें अनावश्यक गातलयाों, अभि भाषा, तहोंसा, नशा, सेक्स पर सा िािा है) बच्च ों र्ें अपराि ों की वृस्ि का एक प्रर्ुख कारण बन रहा है। इों टरनेट र्ें छ टे बालक-बातलकाओों के वीभत्स िरीके से दशााए गए दृश्य हर्ारे छ टे बच्च ,ों नई युवा पीढ़ी के र्स्स्तष्क क तवकृि कर रहे हैं उन्हें लिी बना रहे हैं । अपररपक्व उम्र र्ें सर्य से पहले अनावश्यक िानकारी तर्ल रही है तिससे शारीररक बदलाव भी िल्द ही तदखने लगिे हैं। दू सरी ओर िीवन र्ें प्रेर् का अभाव, कुसोंस्कार, बुरी सोंगि, तविलिा, सोंरक्षक की दे खरे ख व तनयोंत्रण का अभाव, बच्च ों क

उच्छृों खल, उद्दों ड बना दे िा है। हर् सरकार का दातयत्व बिाकर अपनी तिम्मेदाररय ों से र्ुोंह नहीों र् ड सकिे हैं, तक सरकार ऐसी चीि ों पर उतचि तनयोंत्रण का प्रयास करे । आपकी अच्छी परवररश, प्रेरणादायी व्यस्क्तत्व से बच्चे नई ऊोंचाईयाों छू सकिे हैं। पैरेंट् स! यह आपकी भी पूणा तिम्मेदारी बनिी है, आपक ईश्वर की ओर से सवाश्रेष्ठ उपहार प्राप्त हुआ है आपकी सोंिान। और आपका बच्चे क सबसे बेहिरीन अर्ूल्य उपहार ही नहीों, बस्ि यह किाव्य भी है, तक अच्छी परवररश, तशक्षा, नैतिकिा व तिम्मेदारी के साि बच्चे क सर्ाि र्ें तसर उठाकर िीने लायक बनाना। आप बच्चे क अच्छा नैतिक, आध्यास्त्मक, स्वथि एवों बौस्िक रूप से सर्ृि नागररक बनिे हुए दे खना चाहिे हैं, ि आप परवररश पर ध्यान दीतिए िातक आपक क ई अिस स ना रहे। और अपने तलए ही नहीों, राष्ट्ि, सर्ाि, पररवार के उत्थान र्ें भी सहय गी बनें। बच्चे के शुरुआिी पाोंच से साि वषा िक की परवररश तवशेष ध्यान दे ने य ग्य र्ानी िािी हैं। इस सर्य की बािें, अच्छी या बुरी, उसके र्ानस पटल पर अोंतकि ह िािी हैं। ये बच्चे का भतवष्य तनिााररि कर सकिी हैं। ईश्वर क िन्यवाद दीतिए, तक उन्ह न ों े आपक इस र्हत्वपूणा काया के तलए चुना है, आप र्ात्र अतभभावक (सोंरक्षक, केयरटे कर) हैं, र्ातलकाना हक, अतिकार ििाना क्या ठीक है? केवल आदे श र्ानने वाले गुलार् ना बनाएों , उन्हें तवचारातभव्यस्क्त की स्विोंत्रिा ह नी चातहए। बच्च ों का भी एक स्विोंत्र व्यस्क्तत्व ह िा है, उनका भी आदर करना चातहए। उनके साि एक साझा र्ोंच, स्वथि सोंवाद ह ना चातहए, िातक वे बेतझझक अपनी बािें तिज्ञासाएों शेयर कर सकें। िभी बच्च ों के व्यस्क्तत्व की पूणा रूप से तनखरने की सोंभावना बढ़िी है। बच्च ों के तलए आपका उन्हें गले लगाना, हाि पकडना, कोंिे िपिपाना िैसे प्यार भरा स्पशा बहुि िरूरी है, इससे बच्चा अपने आप क सुरतक्षि र्हसूस करिा है। बच्च ों की भी सुतनए, अच्छे बुरे र्ें भेद सर्झा कर उसकी उन्नति र्ें सहय गी बनें। इस

िरह बच्चे आपकी बाि ों क सर्झेंगे, और सही र्ागा दशान पाकर आगे बढ़ें गे। ऐसा नहीों है तक आप (पैरेंट् स) ही बच्च ों क तसखािे हैं, बच्च ों की परवररश से आपक भी बहुि कुछ सीखने क तर्लिा है। स्वयों से पहले दू सर ों के तलए तचोंिा, तिक्र, प्रेर्, त्याग, अनुशासन, िैया, दया इन सब की अनुभूति, हर्ें सोंिान उत्पति के बाद ही र्हसूस ह िी है। इसी पर एक तकस्सा याद आ रहा है हर् तपकतनक पर गए हुए िे एक छ टी बच्ची हर्ारे पास आकर खाना र्ाोंगने लगी ि र्ैंने र्ना कर तदया तक अभी तिर भीड लगा दें गे। तिर भी र्ेरी प िी ने र्ुझे प्यार से कहा, ि उसक ि डा सा खाना दे तदया। र्ेरी प िी ने र्ुझे आकर सारा वाकया बिाया तक वह लडकी अपने तलए नहीों, अपने सािी के तलए खाना र्ाों ग रही िी। क्य तों क उसके पैर र्ें च ट लगी हुई िी और वह चलने र्ें असर्िा िा। वह ि र्ाोंग कर खा लेगी लेतकन उसके पैर र्ें र् च िी, वह कैसे चल पाएगा, इसतलए इसके तलए खाना िरूरी िा। र्ुझे बहुि अिस स हुआ साि ही एक बाि भी सर्झ र्ें आई तक हर्ें िुरोंि तकसी के बारे र्ें राय नहीों बना लेनी चातहए। ये बच्चे तिनके पास र्ें खाना िक नहीों है, वे भी अपने सातिय ,ों के प्रति तकिना प्रेर् भाव रखिे हैं, तक यह चल तिर नहीों सकिा ि इसके तलए खाने की व्यवथिा करना। काश! हर् बडे भी कुछ सर्झदार बन िािे, ऐसी ही भ ली र्ासूतर्यि से अनिाने र्ें हर् बहुि कुछ सीखिे हैं । बच्चे क सुनें, दे खें, सर्झें और क्षण भर के तलए बच्चे बन िाएों और तिर अपने अोंदर आए बदलाव क दे खें, आपक अपार सुख का, स्वगा का अहसास ह गा। व तनर्ालिा आपक खुतशय ों से भर दे गी।

नभ में गूोंजे, प्रनतभा, सोंताि की

ख्वाब सि हचों

पोंखचों पे बैठ, हौसलचों की उडाि छु एों आसर्ाों

र्ैं अपने र्ािा-तपिा एवों गुरु िी की बहुि बहुि ऋणी हूों , तिन्ह न ों े र्ुझे तशक्षा दी। गुरुिी के आशीवााद एवों र्ागादशान से ही इस पुस्तक की सोंरचना का काया सोंभव ह सका। दीदी र्ीना गौड एवों भाई (सोंिीव शर्ाा, सह लेखक भी है) क बहुि-बहुि िन्यवाद! ि र्ुझे अच्छे -अच्छे सुझाव दे िे रहिे हैं। तर्त्र गण, र्ायके एवों ससुराल के सभी पररिन, दीदी का पुत्र तवश्वास गौड, र्ेरा पुत्र आई टी इों िी अतभर्न्यु, पुत्रविू इों िी लीना एवों पौत्री तर्ष्ठी, पुत्री डॉ अनुिा व दार्ाद डॉ सत्येंि सदा ही र्ेरे प्रेरणा स्र ि रहे हैं, ि दू र रह कर भी हर्ेशा र्ुझे प्रेररि करिे हैं । र्ेरे लेखन के सबसे बडे आल चक हैं , र्ेरे पति दे व श्रीर्न् अश क वातसष्ठ! वे सबसे पहले र्ेरे लेख पढ़िे हैं, और उसके बाद तटप्पणी भी दे िे हैं। इन सबके ही सहय ग का पररणार् है ि यह पुस्तक आपके हाि र्ें है, सभी का हातदा क िन्यवाद!

मंजू वाशिष्ठ (मनु वाशिष्ठ)

शवषय-सूची अशिलाषा - उत्तम संतान की ........................................... 1 परवररि में मां का अहम योगदान .................................... 5 कुछ बातें, नये शपताओं के शलए......................................... 9 गिभधारण में सहयोगी आहार ......................................... 13 गिाभधान एवम् शदनचयाभ ................................................. 21 बच्ों में होने वाले रोग और उन्हें जानने का तरीका .......... 25 शििु और आहार .......................................................... 28 कैसे हो शजद्दी बच्ों की परवररि और खानपान .............. 32 शजंदगी से जुडी छोटी छोटी बातें ..................................... 35 बच्ों को समय दें पेरेंट् स ............................................... 38 एक पत्र - हेलीकॉप्टर पेरेंट् स के शलए ............................... 41 पशनिमेंट िी जरूरी,लेशकन बच्े को कारण पता होना चाशहए .......................................................................... 43 िाषा पर ध्यान दें - िाषा और संस्कृशत ........................... 46 बच्ों, शबना स्पष्टीकरण शदए ना कहना सीखें ................... 50 खेल! नई जानकाररयों, िारीररक/ मानशसक स्वास्थ्य के शलए आवश्यक ..................................................................... 52 आपके झगडों के शिकार बच्े, शजम्मेदार कौन? .............. 55 ग्रीन टाइम/स्क्रीन टाइम शनशित करें .............................. 64 बच्ों के हाथ में मोबाइल का झुनझुना दे ना बंद कररए ..... 69

बच्े क्ों बोलते हैं झूठ / बहाने बनाना ........................... 74 शचत्त को एकाग्र करने में मदद करें .................................. 80 मााँ के हाथ का खाना, वाह की स्वाद ............................... 83 जैसा खाओ अन्न, वैसा होगा मन..................................... 85 बच्ों को शसखाएं , कुछ सामान्य बातें .............................. 88 गलती मानने में शहचक कैसी .......................................... 93 बच्ों से िी धन्यवाद कहने में कंजूसी नही ं करें ................ 95 बच्ों को कही ं िी अकेले ना छोडें .................................. 97 बेटों की गलशतयों पर पदाभ न डालें ................................. 101 शकिोरावस्था 10 वषभ से 18 वषभ तक ............................ 104 शकिोर/शकिोररयों (युवाओं) के शलए ............................ 107 एक पत्र, युवा बच्ों व पैरेंट् स के शलए - सफलता और शनणभय क्षमता ........................................................................ 114 आचरण से शदखाएं /उम्र को हशथयार नही ं बनाएं ............ 118 कामकाजी अशििावक/ बच्ों की कुबाभनी पर कैररयर ... 122 संयुक्त पररवार ........................................................... 125 अच्छी परवररि एक शनवेि.......................................... 127 संवादहीनता का वायरस/ एक महामारी ....................... 129 प्रौढावस्था संघषभ / सामंजस्य ........................................ 134 अपसेट शदमाग/जीवन िैली ......................................... 138 याद रखें, अच्छी चीजें दे र से असर करती हैं................... 140 एक पत्र बच्ों के शलए!................................................. 142

प्रेम की अशिव्यक्तक्त बतभन हों या बच्े, गढना आसान नही ं होता। इसीशलए तो इनका काम शकसी इबादत से कम नही ं होता।

म ां ! पाई ये छशव तुझ से ही रूप ये िक्तक्त सरस्वती िक्तक्त मां करू ं मैं विनती!

अशिलाषा - उत्तम संतान की हैलच पैरेंट् स! आपकच यह जािकर आश्चयश हचगा नक परवररि सोंताि के पैदा हचिे से पूवश ही िारीररक ही िहीों मािनसक रूप से भी िुरू हच जाती है। िादी के बाद सोंताि की िाहत प्रत्येक दों पनत की िाहत हचती है, और यह कतशव्य भी है। माों बिकर ही स्त्री पूणशता का अिुभव करती है, वहीों पुरुष के नलए सोंताि नपतृ ऋण से मुखि प्रदाि करिे वाला मािा जाता है। िास्त्रचों में िार ऋण मािे गए हैं। दे व ऋण, ऋनष ऋण, नपतृ ऋण एवों मिुष्य ऋण और इन्हें उतारिा प्रत्येक नहोंदू का कतशव्य मािा गया है। सोंताि की िाह भला नकसे िहीों हचती, सोंताि सुख प्राप्त िहीों कर पािे का दु ख उिसे पूनछए, जच इस सुख से वोंनित हैं। कहते हैं सोंताि ि हचिे का दु ख बहुत ज्यादा, हचकर मृत्यु हचिे पर और भी ज्यादा दु ख, और सोंताि हचिे के बाद उसका िालायक निकल जािा तच मातानपता कच जीवि भर टीसता रहता है । श्रीमद् भागवत में धुोंधकारी का प्रसोंग इसका एक उदाहरण है , ऐसे और भी कई उदाहरण हैं। इसीनलए इस दौराि िव नववानहत इस ओर अपिा ध्याि अवश्य दें , प्रािीि भारतीय सोंस्कृनत इस तरह के उदाहरणचों से भरी हुई है। अनभमन्यु की कथा से तच सब भलीभाोंनत पररनित हैं, नक नकस प्रकार उसिे गभश में ही ििव्यूह भेदि रणिीनत कच सीख नलया था। भारतीय सोंस्कृनत में सचलह सोंस्कारचों के िम में बच्ा हचिे से पूवश ही, गभाशधाि कच प्रथम सोंस्कार मािा गया है, श्रेष्ठ सोंताि प्राखप्त के नलए आवश्यक है नक गभाशधाि सोंस्कार श्रेष्ठ मुहूतश में नकया जाए। गभश धारण के पश्चात तीसरे महीिे में पुोंसवि सोंस्कार नकया जाता है। आजकल आधुनिकीकरण कहें , अज्ञािता, पाश्चात्य सोंस्कृनत या स्वतोंत्र तरीके से जीवि जीिे की िाह, कारण िाहे जच भी हच 1

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