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Story Transcript

जाट संत JAT SANT

रनवीर िसंह

Copyright © Ranvir Singh All Rights Reserved. ISBN 979-888591323-2 This book has been published with all efforts taken to make the material errorfree after the consent of the author. However, the author and the publisher do not assume and hereby disclaim any liability to any party for any loss, damage, or disruption caused by errors or omissions, whether such errors or omissions result from negligence, accident, or any other cause. While every effort has been made to avoid any mistake or omission, this publication is being sold on the condition and understanding that neither the author nor the publishers or printers would be liable in any manner to any person by reason of any mistake or omission in this publication or for any action taken or omitted to be taken or advice rendered or accepted on the basis of this work. For any defect in printing or binding the publishers will be liable only to replace the defective copy by another copy of this work then available.

समपर्ण जाट संत, समाज की नहीं अिपतु राष्टर् धरोहर हैं, उनके मागर्दशर्न, िचंतन, समाज, दे श सेवा के िलए िकए गए कृतत्व जो हमेशा अनक ु रणीय हैं, उन संतों के िलए समपर्ण .

कर्म-सच ू ी पर्स्तावना

vii

भिू मका

xi

आमख ु

xvii

1. संत लोक दे वता तेजाजी

1

2. भक्त िशरोमिण धन्ना

32

3. राना बाई राजस्थान

37

4. बाबा हिरदास िदल्ली (डागर)

39

5. करमा बाई राजस्थान

40

6. बाबा दीप िसंह

44

7. संत बाबा गरीब दास

47

8. संत बाबा गंगादास

57

9. राधा स्वामी सत्संग ब्यास

90

10. बाबा जयमल िसंह जी महाराज

92

11. संत बाबा सावन िसंह

95

12. बाबा जगत िसंह जी महाराज

98

13. हजरू महाराज चरण िसंह

100

14. बाबा गिु रन्दर िसंह िढल्लों

102

15. स्वामी केशवानन्द

103

16. भक्त फूल िसंह हिरयाणा

141

17. स्वामी ओमानन्द सरस्वती

146

18. राधा स्वामी ताराचन्द

149

19. जगदे व िसंह िसद्धान्ती (अहलावत) हिरयाणा

153

20. बाबा उदासनाथ (तेवितया) उत्तर पर्दे श

159

सन्त बाबा गंगादास की कंुडिलयां

161

जाट धमर्शालाएं एवं जाट भवन

171

लेखक

175

•v•

पर्स्तावना जाट संत पर्स्तावना

ऐसा कहा गया है िक अपने पव र् ों के संघषर् की ओर मड़ ू ज ु कर नहीं दे खने वाले लोग कभी

भिवष्य में समिृ द्ध की उम्मीद नहीं कर सकते, और यही कारण है िक मानव अपने भत ू काल से पर्ेिरत होकर सध ु ारात्मक दृिष्ट अपनाते हुए िनरं तर पर्गित पथ की ओर अगर्सर होता रहा

है . जो लोग कहते हैं िक पर्ेरणा हमेशा नहीं बनी रह सकती है , ठीक ही कहते हैं आिखर हम

एक बार नहाकर भी तो हमेशा साफ़ नहीं रह सकते . इसिलए तो रोजाना और िनयिमत रूप से पर्ेरणा पर्ाप्त करने के िलए कहा जाता है . दस ू रा कुछ पाने के िलए कुछ खोना नहीं बिल्क

कुछ करना पड़ता है . जाित ही मानव को उच्चतम गुणों को गर्हण करने, िविकिसत करने के योग्य बनाती है . यह िनयम है िक दे खना केवल सजातीय में ही संभव होता है अथार्त दृश्य, दशर्न और दृष्टा

के एक ही जाित के होने से दे खना होता है , अन्यथा नहीं . जो जाती नहीं वह जाित है . गें हू की तल ु ना गें हू से, चने की तल ु ना चने से की जाती है . तब शर्ेष्ठता का पता लगता है .

जाट जाित िवश्व की गौरवमयी जाित है . अन्यों की अपेक्षा पिरशर्मी, िकसान, बहादरु ,

िवद्वान और उत्कृष्ट हैं .

13 वीं शताब्दी तक जाटों में रक्त, भाषा और धमर् की एकता थी, परन्तु वत्तर्मान में

उनमें लगभग 50 पर्ितशत िहन्द ू जाट, 30 पर्ितशत मिु स्लम जाट, तथा 20 पर्ितशत िसक्ख

जाट हैं . वत्तर्मान में कृिष कायर् के अितिरक्त सेवा, व्यापार, व्यवसाय व अन्य कायर्क्षेतर् के कारण मख् ु यत: सम्पण ू र् िवश्व में िविशष्ट स्थानों पर रहकर जातीय गौरव को गौरवािन्वत कर रहे है . स्वतंतर्ता के पहले भारत और पािकस्तान आिद में जाट िरयाशते/जागीर थी .स्वतंतर्ता

आन्दोलन में अहम ् भिू मका िनभाने वाले जाट भी थे . स्वतंतर्ता से पहले आजाद िहन्द फ़ौज

के संस्थापक नेताजी सभ ु ाष (जन्म - 23 जनवरी 1897, मत्ृ यु - 18 अगस्त 1945) का

इितहास में उल्लेख है . परन्तु दभ ु ार्ग्यवश उनके समकालीन राजा महे न्दर् पर्ताप (आयर्न पेशवा) (जन्म - 01 जनवरी 1886, मत्ृ यु - 29 अपर्ैल 1979) का इितहास क्यों िशक्षा में शािमल नहीं िकया गया ? महाराजा सरू जमल (जन्म - भरतपरु - राजस्थान), शहीद

भगत िसंह, महाराजा रणजीत िसंह (पंजाब) आिद, शर्ी गुरुबक्स िसंह िढल्लों, शर्ी पर्ीतम िसंह िढल्लों, शर्ी िनंरंजन िसंह िगल, शर्ी मोहन िसंह, शर्ी राजा महे न्दर् पर्ताप (राजा मरु सान

तत्कालीन िजला अलीगढ़, वत्तर्मान िजला हाथरस उत्तर पर्दे श) जो आिद आजाद िहन्द

फ़ौज के संस्थापकों में से थे . रहवरे आजम सर दीनबन्धु चौधरी छोटूराम जो िकसानों के मसीहा रहे िजनकी स्मिृ त में समाज द्वारा जिसया रोहतक हिरयाणा में भारतीय पर्शासिनक सेवा (आईएएस) तथा अन्य सेवाओं से सम्बिन्धत पर्िशक्षण संस्थान स्थािपत िकया जा रहा है . राजा महे न्दर् पर्ताप ने अपने समय में ‘पर्ेम धमर्’ की स्थापना की थी . वन् ु दावन • vii •

पर्स्तावना

(मथरु ा) में पर्ेम महािवद्यालय और पोलीटे किनक कालेज की स्थापना की थी, अलीगढ़

मिु स्लम िवश्विवद्यालय स्थापना हे तु अपनी जमीन दान दी थी . वषर् 2021 में राजा महे न्दर् पर्ताप स्मिृ त में राजा महे न्दर् पर्ताप िसंह राज्य िवश्विवद्यालय अलीगढ़ उत्तर - पर्दे श की आधार िशला (14 िसतम्बर 2021) रखी गयी है . राजा महे न्दर् पर्ताप ने अपने यौवन काल के लगभग 34 वषर् दे श के बाहर 21 दे शों में घम ू कर दे श की आजादी के िलए कर्ांितकारी कदम उठाए और संघषर् िकया तथा पर्थम िवश्व यद् ु ध के दौरान काबल ु , अफगािनस्तान में

िनवार्िचत सरकार का गठन िकया . राजा जी एक महान स्वतंतर्ता सेनानी के अितिरक्त

िशक्षािवद, महान दाशर्िनक, यग ु दृष्टा, दान दाता (जो राजा से फ़कीर हुए) तथा िवश्वबंधु भी थे .

राजनीितक क्षेतर् में भारत में िजनका जन्मिदवस िकसान िदवस (23 िदसम्बर) के रूप

में मनाये जाने वाले िकसानों के मसीहा चौधरी चरण िसंह (जन्म - 23 िदसम्बर 1902, मत्ृ यु 29 मई 1987) भारत के पर्धानमंतर्ी रहे .

आपके अितिरक्त चौधरी महे न्दर् िसंह (पव र् हिरयाणा वल्हारा जाट) िफजी दे श के ू ज

पर्धानमंतर्ी रहे .

पािकस्तान के पर्थम पर्धानमंतर्ी चौधरी िलयाकत अली मिु स्लम जाट थे .

ईराक के राष्टर्पित सद्दाम हुसन ै (जन्म - 28 अपर्ैल 1937, मत्ृ यु - 30 िदसम्बर 2006) भी मिु स्लम जाट थे .

जाट समाज के राजनीित क्षेतर् में भारत को एक - पर्धानमन्तर्ी, 2 उप - पर्धानमंतर्ी तथा

लोकसभा स्पीकर, राज्यपाल, पर्दे श मख् ु यमंतर्ी, सांसद आिद दे ने का सौभाग्य पर्ाप्त है .

समरवीर गोकुला जाट (शहीद िदवस 1 जनवरी 1670) - पर्ाय: हल्दीघाटी यद् ु ध (18 जन ू 1576) और पानीपत की तीन लड़ाईयों (21 अपर्ैल 1526, 5 नवम्बर 1556, 14 जनवरी 1761) की चचार् सन ु ने पढ़ने को िमलती हैं, लेिकन समरवीर गोकुला के िवषय में िकतने जानते हैं, चचार् होती है , नहीं मालम ू । हल्दी घाटी पर शर्ी श्यामनारायण पाण्डेय द्वारा हल्दी घाटी खण्ड काव्य िलखा गया है । उसी पर्कार समरवीर गोकुला पर पर्बन्ध काव्य शर्ी बलवीर िसंह करुण द्वारा िलखी जा चक ु ी है । किव के संक्षेप िवचार -

हल्दी घाटी का समर िवकट, कुछ ही घंटों में गया िनपट । ये तीन िदवस बाहर जझ ू ,े ितलपट में जझ ू े तीन िदवस ।। अब लगे हाथ बतला दें , पानीपत के तीनों रण भी ।

एक एक िदवस में िनपट गए, दे खा न दस ू रा तो िदन भी ।।

यहां यह उल्लेख करना भी आवश्यक है िक उपरोक्त विणर्त यद् ु ध दो शासकों के बीच

हुए, जबिक ितलपट यद् ु ध में एक तरफ शासक (औरं गजेब) तो दस ू री तरफ िकसानों का पर्ितिनिध समरवीर गोकुला (मत्ृ यु 1 जनवरी 1670) और िकसान िजनके पास न हिथयार थे न सेना थी उनके द्वारा केवल नीितयों का िवरोध था .

• viii •

पर्स्तावना

जाट – समाज कृिष क्षेतर् के अितिरक्त राजनीित सेवा, सेना, खेल - कूद, व्यापार, व्यवसाय, संत समाज क्षेतर् में अपनी भिू मका िनभाने में अगर्णीय और अनक ु रणीय रहा है .

भारत की स्वतंतर्ता के िलए झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का बिलदान सब जानते हैं लेिकन

उनके मददगार जाट संत बाबा गंगादास नाम इितहास के पन्नों में बहुत कम दे खने - पढ़ने को िमलता है केवल वन्ृ दावन लाल वमार् जी द्वारा िलिखत पस् ु तक (झांसी की रानी, पष्ृ ठ – 322), संत गंगादास पर िलखी गयी पस् ु तक संत गंगादास आिद को छोड़कर . ग्वािलयर

में जहाँ झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की समािध स्थल है वहीं पर आज भी संत गंगादास की बिगया नामक स्थान है जहां वतर्मान में भी उनके अनय ु ायी रहते है . समािध स्थल के पास

ही संत गंगादास ने रानी का दाह संस्कार अपनी कुिटया में उपलब्ध लकड़ी आिद से िकया और रानी की इच्छा अनस ु ार उनका पािथर्व शरीर अंगर्ेज न ले सके . संत गंगादास संत के अितिरक्त खड़ी बोली के आिद किव भी थे . संत गंगादास मल ू त: गांव रसल ू परु वतर्मान िजला हापड ु उत्तर - पर्दे श से थे .

जाट समाज के संतों का समाज में ही नहीं अिपतु संत समाज में एक िविशष्ट स्थान,

मान सम्मान है . संतो के िवषय में कहा गया है िक – जाित न पछ ू ो साधू की, पछ ू लीिजए ज्ञान.

मोल करो तलवार का, रखी रहने दो म्यान ..

संत सम्पर्दाय में िफर भी चचार् होती है वहां पर भी जाित िवषय चिचर्त होता है . िजस

पर्कार राजनीित क्षेतर्, सेवा क्षेतर् जैसे डॉक्टर, इंजीिनयर, आिद अपने पद व स्थान उस कायर् क्षेतर् और िविशष्टता के अनरू ु प होती हैं परन्तु जाित से सम्बिन्धत िवषय भी आता है . पर्ाचीन संतों का उल्लेख –

नाई ‘सैना‘ नामदे ‘छीपी‘‘धन्ना‘ जाट ।

चमर्कार ‘रिवदास‘ और ‘नाभा‘ ‘पीपा’ भाट ॥ ‘नाभा‘‘पीपा‘भाट िवपर् ‘ितर्लोचन‘तारे ।

‘तल ु सी‘अरु ‘जैदेव‘गीत गोिवंद उचारे ॥

गंगादास ‘कबीर‘ जल् ु हाये ‘सदन‘ कसाई ।

‘सैन भगत‘काज आप हिर बनगे नाई ॥ (वही, 18) बाहय साधना का िवरोध –

िदल रं गा नहीं उस रं ग में , क्या है कपडे रं गने में . माला फेरो स्वास की, जपो अजपा जाप . सोहम सोहम सन ु े से, कटे हैं सब पाप ..

एक संत के अनस ु ार ही उन्होंने अपनी किवता में संतो की जाित सच ू क शब्दों का पर्योग िकया है , जबिक अिधकतर संत सम्पर्दाय जाित सच क शब्द को नगण्य रखते हैं . क्योंिक ू

संत का धमर् मख् ु यत: परिहत धमर् िवशेष रहता है . जाित के संतो की जानकारी से यह िविदत भी होता है िक संतों की कोई जाित नहीं होती, इसके साथ सवर् समाज के िलए आदरणीय

• ix •

पर्स्तावना

उनके कृतत्व के कारण, न िक जाित के कारण और यह िमथ्या भी टूटती है िक अमक ु जाित

समाज में संत से नहीं हैं . संत िकसी भी समाज से हो सकता है . संत अपने समय में िकए

गए िवशेष कायर्, क्षेतर् िवशेष में िकए गए कायर् आिद के कारण उनकी पहचान होती है . कुछ संत संस्थान के विरष्ठ पदािधकारी तो आरम्भ से लेकर वतर्मान तक जाट समाज के ही रहे

हैं लेिकन वे जातीयता से उपर उठकर मानव सेवा में संलग्न हैं . उनके िलए जाित ही मानव जाित है .

जाट समाज में अनेकों संत हुए हैं, उन सबका िववरण इस पस् ु तक के माध्यम से पर्स्तत ु करना संभव नहीं है . केवल िविभन कालों में िविभन्न क्षेतर् के िविशष्ट संतों का संकलन िकया गया है , िजससे उनकी जानकारी जन – जन तक पहँुच सके और उनका कोई मागर्दशर्न व्यिक्त िवशेष को िहतकर हो सके .

•x•

भिू मका भिू मका

जाट – संत पस् ु तक लेखन का उद्दे श्य यह है िक जाट समाज के ऐसे संतों का िववरण

समािहत िकया जा सके िजन्होंने तत्कालीन समय में समाज से ऊपर उठकर मानव सेवा को सवोर्पिर माना है तथा अपना सवर्स्व नौछावर िकया है , और उनकी सेवाएं आज भी कालजयी

हैं, जो आज भी एक आम मानव को मानव सेवा हे तु अपने को समपर्ण करने को पर्ेिरत करती हैं . यद्यिप सभी के जीवन पिरचय का संकलन इस पस् ु तक के माध्यम से सम्भव नहीं है

. तथािप िविभन्न क्षेतर्ो, िविभन्न कालों और िविभन्न कायर् क्षेतर्ों के समावेश की भरसक

कोिशश की गयी है . िजससे समाज में मानव सेवा की ललक जो पहले से ही िवद्यमान है , िनरन्तर बनी रहे . क्योंिक पर्ेरणा स्थायी नहीं होती है पर्ितिदन पर्ेिरत होना पड़ता है , पर्ेिरत होना चािहए . जैसे एक िदन के नहाने से क्या रोज नहाने की जरुरत नहीं होगी, रोज नहाना ही स्वास्थ्य के िलए िहतकर है .

संत शरू वीर, लोक दे वता तेजाजी, राजस्थान –

संत शरू वीर तेजाजी वासिु क नागवंशी धौल्या गौतर्ी नागौर के परगने के गणपित

ताहड़दे व की पत्नी रामकंुवरी की कोख से पतर् ु रत्न के रूप में हुआ िजसका नाम तेजपाल रखा . बाल्यकाल में ही तेजाजी की शादी पष्ु कर तीथर्राज में पनेर के राजा रायमल जी की

पतर् ु ी पेमल के साथ कर दी गयी . वे राजकुमार होकर जंगल में गाय चराने जाते थे . जंगल में मस्ती के साथ ईश्वर भजन करते थे. सपर् काटने पर पख् ु ता इलाज करते थे . उस समय छोटे - छोटे कबीले थे . गाय धन की चोरी कर लेते थे . सैकड़ों गांवों की रक्षा की िजम्मेदारी तेजाजी की थी. तेजाजी ने कई बार मीणों व गुजरर् ों से संघषर् िकया . तेजाजी की शरू वीरता

के आगे नागवंशी कबीले, मीणा, गुजरर् सभी कमजोर नजर आ रहे थे . जब तेजाजी अपनी

पत्नी पेमल को लेने पनेर गए थे . उस िदन पेमल की सखी लाछा गुज़री ने तेजाजी से गुहार

लगी िक उसकी गायें मीणा ले गए . तब तेजाजी लाछा गुज़री की गायों को छुडाने जाते हैं . रास्ते में बालू नाग को तेजाजी ने मरने से बचाया िक तेजाजी को डसना चाहा तो तेजाजी

ने वचन िदया की दश्ु मन से गायों को छुड़वाकर वािपस जरुर आउं गा . गायों को छुडाने के बाद लड़ाई में घायल तेजाजी नाग के पास पहंु चे . बालू नाग ने कहा िक घायल शरीर को मैं नहीं डसंग ू ा, तब तेजाजी ने अपनी जीभ पर्स्तत ु की और जीभ पर नाग ने डस िलया . तब उनकी लींलण नाम की घोड़ी ने खरनाल जाकर समाचार िदया . तब नागराज ने कहा, धन्य हैं तेजाजी तम् ु हारे जन्मदाता, धन्य है तम् ु हारी शरू वीरता और पर्ण . आप दे वता के रूप में

पज ू े जावोगे . सपर् का काटा हुआ और छोटे बालक तेरी तांती बांधने से ठीक हो जाएगा . हल जोतते वक्त िकसान तम् ु हारा नाम लेगा . यह मेरा अमर आशीष है . संत िशरोमिण धन्ना भगत, राजस्थान –

• xi •

भिू मका

भारत वषर् के कुछ संत अपनी साधना के बल पर परमात्मा से साक्षात्कार कर सके, उसी शर्ेणी के संत हुए हैं धन्ना भगत . धन्ना भगत का जन्म वैशाख बदी तीज संवत 147२ को चौरू अथवा चकवाड़ा गाँव िजला जयपरु राजस्थान में हुआ . िपता का नाम रतन िसंह (रामेश्वर) गौतर् - हरचरतवाल एवं माता का नाम गंगाबाई, गौतर् - गढ़वाल था . राना बाई, राजस्थान – हिरभक्ता एवं वीरांगना बाबा हिरदास िदल्ली (डागर) -

बाबा हिरदास (1594 - 1691 ईस्वी) िदल्ली के (डागर) वंश के एक पर्िसद्ध संत थे,

िजनका मंिदर िदल्ली के नजफगढ़ ब्लॉक के झरोदा कलां गाँव में मौजद ू है । करमा बाई राजस्थान -

करमा बाई राजस्थान ने अपनी तपस्या और हठ के बल पर भगवान ने करमा बाई के

यहाँ िखचड़ी खाई थी .

बाबा दीप िसंह, पंजाब -

बाबा दीप िसंह (26 जनवरी 1682 - 13 नवंबर 1757) िसखों केबीच िसख धमर् में सबसे

पिवतर् शहीदों में से एक और एक अत्यिधक धािमर्क व्यिक्त के रूप में सम्मािनत है । उन्हें

उनके बिलदान और िसख गुरुओं की िशक्षाओं के पर्ित समपर्ण के िलए याद िकया जाता है ।

बाबा दीप िसंह िमसल शहीद तरना दल के पहले पर्मख ु थे - िशरोमिण पंथ अकाली बद् ु ध दल के तत्कालीन पर्मख ु नवाब कपरू िसंह द्वारा स्थािपत खालसा सेना का एक आदे श । दमदमी टकसाल में यह भी कहा गया है िक वह उनके आदे श के पहले पर्मख ु थे । संत गरीब दास, हिरयाणा -

सत ं गरीब दास (1717 – 1778 ) भिक्त और काव्य के िलए जाने जाते हैं । गरीब दास

ने एक िवशाल संगर्ह की रचना की जो गरीबगर् गरीबगर्ंथ ं के नाम से पर्िसद्द है । िजसे रत्न सागर भी कहते हैं। इन्होने गरीबदासी नामक सम्पर्दाय की नींव रखी. स्वामी चेतन दास के अनस ु ार

इन्होने 18500 से अिधक पदों की रचना की. एच. ऐ. रोज के अनस ु ार गरीबदास की गर्न्थ सािहब पस् तक में 7000 कबीर के पद िलए गए थे और 17000 स्वयं गरीब दास ने रचे थे । ुस्तक गरीबदास का दशर्न था िक राम में और रहीम में कोई अन्तर नहीं है । संत गंगादास 1823 (मंड ु रे ) रसल ू परु (हापड़ ु ) उत्तर पर्दे श –

जन्म स्थान – महान दाशर्िनक, भावक ु भक्त, आधिु नक काल के संत काव्य में राष्टर्ीय

भावना के पर्थम पर्ेरक उदासी महाकिव संत बाबा गंगादास का जन्म िदल्ली – मरु ादाबाद राजमागर् पर िस्थत बाबग ू ढ़ छावनी के िनकट गांव रसल ू परु वतर्मान िजला हापड़ ु (उ. पर्.) में

सन (1823) की बसंत पंचमी को हुआ था । बसंत पंचमी के िदन आज भी इनके जन्म – िदवस के उपलक्ष्य में कुचेसर रोड चौपाले पर िस्थत इनकी समािध पर मेला पर्ितवषर् लगता है । इनके िपता चौधरी सख ु ीराम मंड ु रे गौतर् के जाट और एक बड़े जमींदार थे । संत गंगादास की माता का नाम दाखा था, जो बल्लभगढ़ के िनकट दयालपरु की रहने वाली थीं । ग्वािलयर में िनवास –

• xii •

भिू मका

तत्पश्चात भर्मण करते हुए ये 1855 ईसवी में मध्य पर्दे श के ग्वािलयर नगर के पास सोनरे खा (स्वणर् रे खा) नामक नाले के िनकट कुटी बनाकर रहने लगे । वहीं इन्होनें 18 जन ू , 1858 को झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का दाह संस्कार िकया था, िजसका उल्लेख वंद ृ ावनलाल वमार् कृत ‘झांसी की रानी‘ पस् ु तक में तथा अन्य ऐितहािसक गर्न्थों में भी उपलब्ध होता है ।

अपने ऐितहािसक उपन्यास ‘झांसी की रानी‘ में तो वंद ृ ावनलाल वमार् ने यहाँ तक िलखा

है िक एक बार लक्ष्मीबाई अपनी अंतरं ग सखी ‘मंद ु र‘ के साथ संत गंगादास की कुिटया पर

ग्वािलयर गई थी । वहां रानी ने संत गंगादास से स्वराज्य स्थापना के िवषय में िवस्तत ृ चचार् की थी । राष्टर्ीय पर्ेम और भारत – भिक्त से ओत - पर्ोत गंगादास का हृदय पहले तो यह

पर्श्न सन ु कर टालता रहा, िकन्तु बाद में रानी से उन्होने खल ु कर बात की । उन्होने झांसी की रानी को कहा िक सेवा, बिलदान और तपस्या से ही स्वराज्य की स्थापना हो सकती है ।

वन्ृ दावनलाल वमार् कृत झांसी की रानी (पष्ृ ठ – 322) भारत को स्वतंतर् कराने की पर्ेरणा दे ते हुए संत गंगादास ने यहां तक कहा िक यह मत सोचो िक हमारे जीवनकाल में ही

स्वराज्य पर्ािप्त हो जाए । आप नींव के पत्थर बन जाओ, और दे श भक्त भी बनते रहें गें, तब नींव भरने के पश्चात स्वराज्य का महल उन्नत होगा । बाबा जयमल िसंह जी महाराज,पंजाब -

बाबा जयमल िसंह जी महाराज (1839 - 1903) एक भारतीय आध्याित्मक नेता थे ।

वह एक दीक्षा और बाद में आगरा के संत सेठ िशव दयाल िसंह के आध्याित्मक उत्तरािधकारी

बने । दीक्षा के बाद, बाबा जयमल िसंह ने सतर्ह वषर् की आयु से िबर्िटश भारतीय सेना में एक िसपाही (िनजी) के रूप में सेवा की और हवलदार (साजेर्ंट) का पद पर्ाप्त िकया । सेवािनविृ त्त के बाद, वह ब्यास शहर (अिवभािजत पंजाब, अब पव ू ीर् पंजाब में ) के बाहर एक सन ु सान जगह पर बस गए और अपने गुरु सेठ िशव दयाल िसंह जी की िशक्षा का पर्सार करने लगे

। यह स्थान एक कॉलोनी में िवकिसत हुआ िजसे "डेरा बाबा जयमल िसंह" ("बाबा जयमल िसंह का िशिवर") कहा जाने लगा, और जो अब राधा स्वामी सत्संग ब्यास संगठन का िवश्व केंदर् है ।

बाबा जयमल िसंह 1903 में अपनी मत्ृ यु तक राधा स्वामी सत्संग ब्यास के पहले आध्याित्मक गरु ु और पर्मख ु थे । अपनी मत्ृ यु से पहले उन्होंने अपने आध्याित्मक उत्तरािधकारी के रूप में अपने िमशन को जारी रखने के िलए बाबा सावन िसंह को िनयक् ु त िकया ।

संत बाबा - सावन िसंह, पंजाब –

बाबा सावन िसंह (गर्ेवाल) (1858 - 1948) बढ़े महाराज (द गर्ेट मास्टर) के नाम से भी

पहचाने जाने वाले भारतीय संत थे । आप राधा स्वामी सत्संग व्यास के िद्वतीय सतगुरु थे ।

पर्थम गरु ु बाबा जाट - जयमल िसंह की मत्ृ यु वषर् 1903 से स्वयं की मत्ृ यु (2 अपर्ैल 1948) 45 वषर् तक राधा स्वामी सतसंग व्यास के सतगरु ु रहे । आपका जन्म 27 - जल ु ाई 1858 में

गाव जटाला पंजाब में हुआ था । आप बाबा जाट जयमल िसंह के मत्ृ यु के बाद सतगुरु बने

• xiii •

भिू मका

थे । और आपकी मत्ृ यु उपरान्त सरदार बहादरु जगत िसंह सदगरु ु बने थे, अपनी मत्ृ यु से पहले ही आपने सदगुरु बहादरु जगत िसंह, सदगुरु िनयक् ु त कर िदये थे । बाबा जगत िसंह जी महाराज, पंजाब –

पंजाब, भारत में एक समद् ृ ध िसख िकसान पिरवार में जन्मे, बाबा जगत िसंह जी

महाराज (1884 - 1951) एक सरू त शब्द योग िचिकत्सक बन गए और संत और राधा

स्वामी सत्संग ब्यास गुरु बाबा सावन िसंह की दीक्षा ली । उन्होंने एक कृिष कॉलेज में कॉलेज के रसायन िवज्ञान के पर्ोफेसर के रूप में काम िकया और उन्हें सरदार बहादरु के रूप में अंगर्ेजों द्वारा मेधावी सेवा के िलए सम्मािनत िकया गया । सेवािनविृ त्त के बाद उन्हें उनके

आध्याित्मक गुरु ने अपना उत्तरािधकारी चन ु ा, जो राधा स्वामी सत्संग ब्यास के तीसरे गुरु बने । एक बार उन्हें लायलपरु के मिु स्लम रहस्यवादी संत बाबा लसरू ी शाह द्वारा एक "संपण ू र् िशष्य" के रूप में विणर्त िकया गया था, जो एक "संपण ू र् गुरु" बन गए थे । हजरू महाराज चरण िसंह, पंजाब –

1951 में पव र् तीर् ब्यास गुरु सरदार बहादरु जगत िसंह जी महाराज द्वारा उत्तरािधकारी ू व नािमत िकए जाने के बाद, हजरू महाराज चरण िसंह जी (1916 - 1990), राधा स्वामी सत्संग ब्यास, डेरा बाबा जयमल िसंह के आध्याित्मक पर्मख ु थे । महाराज चरण िसंह ने

सेवा की । लगभग चार दशकों तक ब्यास संगत के गुरु के रूप में , 1990 में 73 वषर् की आयु में हृदय गित रुकने से उनकी मत्ृ यु तक । 1951 में अपनी िनयिु क्त से पहले, उन्होंने िहसार

और िसरसा, भारत में कानन ू का अभ्यास िकया था । वह महाराज सावन िसंह से दीिक्षत थे, जो उनके दादा और महाराज जगत िसंह के पव र् तीर् थे । महाराज चरण िसंह ने अपने ू व उत्तरािधकारी और गरु ु के कतर्व्यों को अपने दीक्षा और भतीजे बाबा गिु रंदर िसंह को सौंपा । बाबा गुिरंदर िसंह िढल्लों, पंजाब - 1954

गुिरंदर िसंह िढल्लों, िजन्हें उनके अनय ु ािययों के िलए बाबा जी के नाम से भी जाना

जाता है , राधा स्वामी सत्संग ब्यास (RSSB) के आध्याित्मक पर्मख ु हैं । उन्होंने 1990 में

अपने चाचा महाराज चरण िसंह की जगह ली । इस आध्याित्मक समद ु ाय का मख् ु यालय,

िजसे डेरा बाबा जयमल िसंह कहा जाता है , उत्तरी भारत में पंजाब के ब्यास शहर के पास

ब्यास नदी के िकनारे िस्थत है , और 1891 से सत्संग का केंदर् रहा है । राधा स्वामी सत्संग ब्यास (RSSB) के केंदर् दिु नया भर में िस्थत हैं । स्वामी केशवानन्द, राजस्थान –

स्वामी केशवानन्द जी का जन्म महात्मा गांधी से 14 वषर् पव ू र् राजस्थान में सीकर िजले

की सीमा पर सीकर िजले की लक्ष्मणगढ़ तहसील के अंतगर्त गाँव मगलण ू ा में पौष माह

संवत 1940 ( िदसम्बर, सन ् 1883) में िनधर्न ढाका पिरवार में हुआ । इनके िपता का नाम ठाकरसी और माता का नाम सारा था ।

उस समय का दीन - हीन गर्ामीण कृषक समाज सामन्तों, राजाओं - नवाबों और िवदे शी

शासकों की ितहरी गुलामी में दबा हुआ था। वह िशक्षा से रिहत, अंधिवश्वासों और िनरथर्क

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भिू मका

रूिढ़यों में जकड़ा हुआ था । गर्ामवािसयों का जीवन नरक के समान कष्टों से भरा हुआ था । इस पर्कार के सामािजक वातावरण में बीरमा के बालपन और िकशोरावस्था के 16 वषर् रे तीले टीलों के बीच, सदीर् - गमीर् में लगभग नंगे बदन सहते हुए गौचारण में बीते ।

सािहत्य - सदन के पर्बन्ध में इलाके के झूिमयांवाली, मौजगढ़, जंडवाला, हनम ु न्ता,

भंगरखेड़ा, पंचकोसी, रामगढ़, रोिहड़ांवाली, चह ू िड़यां वाला, कुलार, सीतो, बाजीदपरु , कल्लरखेड़ा, पन्नीवाला, माला आिद 25 गांवों में िहन्दी की पर्ाथिमक पाठशालाएं चलती थीं, िजनमें पर्ौढ़ - िशक्षा का भी पर्बन्ध था ।

स्वामी जी ने मरूस्थल में पर्चिलत मत्ृ यभ ु ोज, अनमेल िववाह, बालिववाह, नारी उत्पीड़न, पदार् - पर्था, शोषण और नशा - सेवन आिद, समाज को गरीबी और कष्टों में डालने वाली बरु ाइयों का भी खब ू अनभ ु व िकया था ।

गुण, कमर् और स्वभाव, इन तीनों से केशवानन्द संत िशरोमिण थे । इस महान िशक्षा

- संत, स्वतंतर्ता सेनानी, समाज सध ु ारक, िहन्दी के शर्ेष्ठ सेवक, कला - ममर्ज्ञ, त्यागी, तपस्वी, दृढ़ पर्ितज्ञ, िनष्काम कमर्योगी जनसेवक का जन्म िदसम्बर 1883 में सीकर िजले

के लक्ष्मणगढ़ तहसील के गांव मंगलण ू ा में हुआ । असल नाम था बीरमा । िपता का नाम ठाकरसी ढाका तथा माँ का नाम था सारां । िपता ऊंट गाड़ी से पिरवहन का काम करके पिरवार का पालन – पोषण करते थे ।

भक्त फूलिसंह (मिलक) हिरयाणा 1885 , गौ सेवक, स्वामी ओमानन्द सरस्वती, राधा

स्वामी तारा चन्द, जगदे व िसंह िसद्धान्ती (अहलावत) आयर् समाजी गांव बरहाना िजला झज्जर हिरयाणा तथा बाबा उदास नाथ (तेवितया) उत्तर – पर्दे श मख् ु य हैं ।

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