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Story Transcript

चलो िकसी लम्बे सफर पे चलें

PAHAD, SAMANDAR, JUNGLE AUR RET KI YATRA

मुरारी गुप्ता

Copyright © Murari Gupta All Rights Reserved. ISBN 979-888606777-4 This book has been published with all efforts taken to make the material error-free after the consent of the author. However, the author and the publisher do not assume and hereby disclaim any liability to any party for any loss, damage, or disruption caused by errors or omissions, whether such errors or omissions result from negligence, accident, or any other cause. While every effort has been made to avoid any mistake or omission, this publication is being sold on the condition and understanding that neither the author nor the publishers or printers would be liable in any manner to any person by reason of any mistake or omission in this publication or for any action taken or omitted to be taken or advice rendered or accepted on the basis of this work. For any defect in printing or binding the publishers will be liable only to replace the defective copy by another copy of this work then available.

पिरवार और िमतर्ों के िबना यातर्ा में कोई आनंद नहीं होता। इन

यातर्ाओं में हर बार पिरवार और िमतर्ों का साथ रहा है । उनके िबना ये

यातर्ाएँ अधरू ी थी। शर्ीमान पर्णेश गुप्ता-शर्ीमती लीली, शर्ी यश मंगलशर्ीमती पर्गित और शर्ी मनीष कुमार-शर्ीमती पर्शंषा तथा डॉ. पर्ेरणा, अद्वैत और इवा के िबना ये यातर्ाएं संभव तो थी, मगर वे रसहीन

होती। और रसहीन यातर्ा में कोई स्वाद नहीं होता। पवर्तारोही और िमतर् कृष्ण कुमार के िबना कुरुक्षेतर् अधरू ा था।

कर्म-सच ू ी सैर कर दिु नया की

vii

पर्स्तावना

ix

भिू मका

xi

पावती (स्वीकृित)

xiii

1. अरुणाचल पर्दे शः सय ू ोर्दय का पहला साक्षी

1

2. काठमांडुः िशव को संगीत सन ु ाती बागमती

8

3. दाजीर्िलंगः पहाड़ों की रानी

18

4. िसिक्कमः भारत के माथे की िबंदी

28

5. मसरू ीः गुस्से में है शैल संद ु री

38

6. कश्मीरः िचनार ने कहा था

45

7. जोगबनीः दो मल् ु कों का संगम

58

8. धमर्क्षेतर्े कुरुक्षेतर्े

64

9. माउं ट आबःू दे व भिू म

72

10. दीवः समंदर का दीदार

83

11. सोमनाथ और द्वािरकाः जीवंत भारत

89

िनवेदन

95

•v•

सैर कर दिु नया की “सैर कर दिु नया की ग़ािफ़ल िज़ंदगानी िफर कहाँ िज़ंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी िफर कहाँ।” • ख्वाजा मीर ददर्

• vii •

पर्स्तावना मनष्ु य सिृ ष्ट के आरं भ से यातर्ा करता रहा है । यातर्ाओं से ही सीखता रहा है । यातर्ाएं ही वे माध्यम हैं िजनसे िवचारों और संस्कृितयों का आदान-

पर्दान होता रहा है । दिक्षण एिशयाई दे शों में सनातन और बौद्ध धमर् का पर्चार-पर्सार इन दे शों में यातर्ा करने वाले िभक्षुओं और संतों ने अपनी

यातर्ाओं के माध्यम से िकया। यातर्ाएं चेतना का भी पर्सार करती हैं।

यातर्ाओं ने परू ी दिु नया को एक पिरवार में बांधने का कायर् िकया है । भाषाओं, िवचारों, रहन-सहन, सभ्यताओं, कारोबार के साथ आध्यात्म

के िवकास में यातर्ाओं ने अपनी भिू मका िनभाई है । िबना यातर्ा के क्या नरें दर् स्वामी िववेकानंद हो सकते थे। िबना यातर्ा के क्या केदारनाथ

पांडय े राहुल सांकृत्यायन हो सकते थे। िबना यातर्ाओं के क्या कोलंबस को हम आज भी याद कर पाते? यातर्ाओं ने इन जैसे सैकड़ों व्यिक्तयों के व्यिक्तत्व को नई ऊंचाइयों पर पहंु चा िदया था।

यातर्ा केवल एक शहर से दस ू रे शहर, या एक राज्य से दस ू रे राज्य

या िफर एक दे श से दस ू रे दे शभर की भी नहीं होती। यातर्ाएं एक पिरवार से दस ु ाय से दस ू रे पिरवार, एक समाज से दस ू रे समाज और एक समद ू रे

समद ु ाय की भी होती है । और इन्हीं यातर्ाओं से हम एक बेहतर कस्बा, गांव, शहर, राज्य और समाज दे श बनाते हैं। सरकारें भी आजकल अपने

शहर और राज्य में िवकास की नई गाथाएं िलखने के िलए अपने अफसरों

और जनपर्ितिनिधयों को अन्यान्य शहरों, राज्यों और दे शों की यातर्ाएं

करवाती हैं। अिखल भारतीय स्तर पर चन ु े जाने वाले अिधकािरयों को भी अपनी िनयिु क्त से पहले भारत भर्मण और िवदे श भर्मण करवाया

जाता है तािक उनके िदमाग की तमाम अवरुद्ध िखड़िकयां खल ु जाएं और उनमें नवीन िवचारों को गर्हण करने की क्षमता िवकिसत हो सके।

यातर्ाएं हमें बोलना िसखाती है । िलखना और पढ़ना िसखाती हैं।

समझना िसखाती हैं। इशारों की भाषा िसखाती हैं। यातर्ाओं से बहुत सी चीजों को हम िबना पैसे िदए ही सीख जाते हैं। राजस्थान में तो सैकड़ों

वषोर्ं से मारवाड़ी अपने कारोबार के िलए दे श और दिु नया की यातर्ा करते

• ix •

पर्स्तावना

रहे हैं। अपने कारोबार को स्थािपत करते रहे हैं। भारत का आज शायद ही कोई शहर, कस्बा, राज्य होगा जहां िकसी मारवाड़ी का कारोबार नहीं हो।

केवल भारत ही नहीं, बिल्क दिु नयाभर के दे शों में उन्होंने इन्हीं यातर्ाओं के रोमांच के साथ कारोबार के क्षेतर् में बड़ी सफलताएं पर्ाप्त की है ।

यातर्ाएं असल में िसफर् एक संस्मरण भर नहीं है । इन्हें यातर्ा कथाएं

कहना चािहए। इनकी यातर्ाएं िसफर् भग ू ोल की यातर्ा भर नहीं है । उनमें स्थानों का सरल मानवीकरण है जो पाठकों को आकिषर्त करता है ।

घम ू ने का शौक और उस पर अिखल भारतीय सेवा में होने के कारण

लेखक ने खब ू यातर्ाएं की हैं। इन यातर्ाओं ने उन्हें दे श दे खने और जानने

का सन ु हरा अवसर िदया है । दे खी और अनभ ु व की गई यातर्ाओं का अगर दस्तावेजीकरण कर िदया जाए तो उनका लाभ यातर्ा कथा पढ़ने वाले और यातर्ा करने के इच्छुक पाठकों को भी िमल सकता है ।

डॉ डॉ. रे व वन्त न्त

(किव और समीक्षक)

जयपरु

•x•

भिू मका हर यातर्ा के बाद उनका अनभ ु व िलखने की आदत रही है । इसका लाभ

यह होता है िक वषोर्ं बाद भी उन स्थानों के बारे में पढ़कर रोमांिचत हुआ जा सकता है । समाचार पतर् और पितर्काओं ने कई यातर्ाओं को पर्कािशत कर अनगर् ु िहत भी िकया है । जब यातर्ाएं पर्कािशत होती हैं, तो स्वभािवक

ही अच्छा लगता है । कुछ यातर्ाएं ऐसी होती हैं, िजनके अनभ ु वों को शब्द दे ना किठन होता है । उन्हें िकसी आकार में ढालना और पाठकों को वही

अनभ ु व करवाना जो यातर्ी ने खद ु िकया है , एक बड़ी चन ु ौती होती है ।

लेिकन चंिू क कहािनयां िलखना अच्छा लगता है , इसिलए इन यातर्ाओं में भी पाठक उन स्थानों की कहािनयां ही पाएंगे। कहानी संगर्ह ‘मोगरी’ को भी पाठकों ने भरपरू प्यार िदया था।

बहरहाल, यह पस् ु तक िपछले एक दशक की दे श के अलग अलग िहस्सों की यातर्ाओं का कथाकरण हैं। इसमें उत्तर, पव ू ,र् पिश्चम और मध्य क्षेतर् की यातर्ाओं को एक दस्तावेज में समेटने का पर्यास िकया

है । अरुणाचल पर्दे श से लेकर द्वािरका और अमरनाथ के नजदीक पहलगाम से लगा सद ु रू पिश्चमी घाट पर मौजद ू दीव के समंदर की यातर्ा के अनभ ु वों को अनभ ु व में बांधने का पर्यास िकया है ।

इस यातर्ा कथा में अरुणाचल के ईटानगर की िजंदगी की हलचलें

नजर आएंगी। िसिक्कम की रपटीली वािदयों की बातें होंगी। नेपाल के काठमांडु और कन्याम की ओसभरी खब ू सरू ती िदखेगी। दाजीर्िलंग के घम ू और लामहट्टा जैसी अलहदा मगर खब ू सरू त कस्बाई संस्कृित के दशर्न होंगे। माउं टआबू की नक्की झील का सौंदयर्, पहाड़ों की संद ु री

मसरू ी का िनराला अंदाज और दीव के समंदर की दहाड़ का साक्षात भी इसमें है । यातर्ा कथा में सोमनाथ के ध्वंस और सज ु ाई ृ न की गाथा सन दे गी। द्वािरकाधीश भगवान कृष्ण के कुरुक्षेतर् के ऐितहािसक पराकर्म

और द्वािरका में उनकी दरू दृष्टी और भव्यता की िनशािनयां भी अनभ ु व होंगी।

• xi •

भिू मका

यह केवल पहाड़, समंदर, जंगल और रे त की यातर्ा भर नहीं है । इसमें

लोकजीवन का भी दशर्न है । इितहास को अनभ ु व करने का पर्यास है । आध्यात्म को महसस ू करने की कोिशश है । पर्कृित को छूने और उसे समझने का छोटा सा पर्यास है । मेरी िपछले एक दशक की ये यातर्ाएं लोकजीवन को समझने और उनसे रूबरू होने का पर्यास रही हैं।

इन यातर्ाओं ने खब ू समद् ृ ध िकया है । िचंतन का िवस्तार िकया है । यातर्ाएं जब पिरवार और िमतर्ों के साथ हो, तो आनंद कई गन ु ा हो जाता है । यातर्ाओं के साथ चस्पा कुछ िचतर्ों के माध्यम से पाठक भी उन स्थानों से जड़ ु पाएगा।

िवश्वास है िक इन यातर्ा कथाओं को पढ़ने के साथ पाठक मानिसक

तौर पर उन स्थानों की यातर्ा कर पाएंगे। जय हो।

मरु ारी गुप्ता

• xii •

पावती (स्वीकृित) • अरुणाचल पर्दे श • िसिक्कम • िबहार

• पिश्चम बंगाल • जम्म-ू कश्मीर • उत्तराखंड

• हिरयाणा

• राजस्थान और

• गुजरात राज्य के पयर्टन िवभाग तथा पर्शासन का आभार। • केंदर् शािसत दीव के पयर्टन िवभाग का धन्यवाद। • नेपाल के पयर्टन िवभाग का आभार।

इनके सहयोग के िबना ये यातर्ाएं संभव नहीं थी।

• xiii •

1 अरुणाचल पर्दे शः सय ू ोर्दय का पहला साक्षी भारतीय सच ू ना सेवा में चयन और पर्िशक्षण के बाद सबसे पहली िनयिु क्त के बारे में पछ ू ा गया तो िबना जाने-पहचाने अरुणाचल पर्दे श का नाम ले िलया था। बस, इस नाम के साथ एक रोमांच था। यह जल ु ाई

दो हजार दस के िदन थे। पर्िशक्षण परू ा होने के बाद पत्नी सिहत चल िदए अरुणाचल पर्दे श की वािदयों में । िदल्ली से पहले गुवाहाटी, असम की फ्लाइट और वहां से यातर्ी बस। यह पव ू ोर्त्तर भारत का हमारा पहला दशर्न था।

हमारी बस अरुणाचल की ओर रवाना हुई। हरी-भरी पहािड़यों, दिरयाओं, बांस के पेड़ों और गहरी खाइयों को पार करती हुई बस जब अरुणाचल पर्दे श के बांदरदे वा में रुकी, तो लगा िक शायद यही ईटानगर होगा। सब ु ह के लगभग सवा चार या साढ़े चार बजे होंगे। आंखों में नींदे

अभी जागी ही थीं। आंखें मसलते हुए िखड़की से बाहर दे खा, तो लोग मंजन कर रहे थे। मैंने मोबाइल की घड़ी में वक्त दे खा। अभी साढ़े चार ही बजे थे। मगर सरू ज लक ु ािछपी करता हुआ बादलों में आ बैठा था। मैं यही

सोच रहा था िक अभी जयपरु में लोग रात की नींद का आनंद ले रहे होंगे, •1•

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