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Story Transcript

विभािरी

विभािरी तारों

भरी रात…

संजो लेती है ये आँखे अनकहे न जाने ककतने ख़्िाब

मुझे-मुझसे रू-ब-रू कराती है, ये तारों भरी रात । लेखिका मांडिी ससंह सहलेिक

शरद चौहान शशव भोले शसिंह अक्षत पष्ु पम

विभािरी

अनक्र ु मािंक प्रथम खंड शरद चौहान



बाद मद् ु दत के



ववलय



टूटी जो तारे जजिंदगी की



तू मेरी तकदीर नहीिं

विभािरी

द्वितीय खंड मांडिी ससंह •

नम हो रहे है



मैंने भटकते दे िा हैं



रह जाती है



अधूरा हैं ...



वो दरू दरू हो गए



इन हाथों

• •

ढलती हुई शाम ना जानें ककतनी शामें



बाद मद् ु दतों आज किर

• •

में वो लक़ीर नहीिं

ना जाने क्यों बे-पिंि पररिंदा

विभािरी

तत ृ ीय खंड सशि भोले ससंह • • • • • • •

सवालों का एक तूफान है

क्या जलना क्या इश्कक़ करना मुझे तो इश्कक़ है तुमसे

यूूँ करना बेइिंतहा मोहब्बत मेरा तुझसे यूूँ झुकना पालके तम् ु हारा तुमको याद करना

किर से उलझ ना जाएिं मेरी राहें



कभी ननकल मेरे ख़्वाबों से



जो मुझसे मुझसी मोहब्बत करता है



बेिबर



मसला ये नही



इश्कक में दो ही पहलू



ये अधरू ी सी शाम है



शायरी



मुकम्मल हर ख्वाब हो उसके



तरब से डूबा है आज वो भी

विभािरी

चतुथथ खंड अक्षत पुष्पम •

असिंभव



हक मेरा हो



नाम इश्कक़ का दे कर



आसान नहीिं है बेटा बन पाना



कुछ ख्वाब अधुरे

• • •

तेरा साथ चाहता हूूँ

"उदासी साथ ननभाती है

मुझसे ऐसी वाली दोस्ती करोगी न



किर शमलने का वादा कर हम अजनबी हो जाते



मािंगा जब खिलौना तो



वो चचराग था



हम दोस्त कािी अच्छे थे



मजी तुम्हारी है

• • • • • •

नाराज़ नहीिं हूूँ तुमसे बस इतनी ही आरजू ककया करते हैं हम तुझसे रूठ कर

घर से दरू अब वो कहाूँ िसाना होता हैं कुछ बाते बेवक्त कहना चाहता हूिं सन ु ो चप ु चाप मत रहना तम ु

विभािरी •

आज बैठे बैठे वो िसाना याद आया"



तम ु से रूठना आसान नहीिं होता मेरे शलए



हर पिंक्षी िश ु नसीब नहीिं होता



अकेले होने पर



एकलौता अिबार हो तुम



सात िेरों ने दस्तरु बदल ददया



बाप



पचास की उम्र में प्यार



मोहबत को बेविाई का नाम दे रहे हो



मैने ददवाली की रात ददया को जिंग लड़ते दे िा है



हर उस पल

विभािरी

प्रथम खंड शरद चौहान, मूल रूप से कानपरु उत्तर प्रदे श के ननवासी

हैं। वें पेशें से सॉफ्टवेयर इिंजीननयर है।

पठन पाठन में उनकी एक ववशेष रूचच हैं बचपन से ही

उन्हें जयशिंकर प्रसाद ,रामधारी शसिंह '

ददनकर',और अज्ञेय जैसे महान लेिकों को पढ़ना

अत्यनघक वप्रय हैं । "आूँसू "उनकी वप्रय रचनाओिं में से एक हैं । लेिन के अलावा में

भी उनकी गहरी रूचच

राजनीती

हैं । वें िुले ववचारधारा

के व्यजक्त हैं और अपनी बात ननभभयता से व्यक्त करते है। इस कववता सिंग्रह में उनकी कववताओिं होना मेरे शलए आशीवाभद समान हैं।

का

विभािरी 1. बाद मद् ु दत के समले है हम

बाद मद् ु दत के शमले है हम ,कैसे तम्हारा हाल पछ ू ू

कैसे बबताए ददन तम ु ने ,या तम् ु हारा घर िश ु हाल पूछू

बाद मद् ु दत के शमले है हम ,कैसे तम्हारा हाल पूछू ....

वो पहली बाररश का वो ददन पूछू , या दो आत्माओिं का शमलन पूछू ,

वो मेरी कववता में तुम्हारा छिं द पूछू , या साथ बबताये कुछ पल चिंद पूछू,

बाद मद् ु दत के शमले है हम ,कैसे तम्हारा हाल पूछू ...

क्यों िेर ली नजरें तुमने, या िुश हो तुम ये सवाल पूछू

बाद मद् ु दत के शमले है हम ,कैसे तम्हारा हाल पूछू

मेरी आूँिों में बसा तेरा अक्स पछ ू ू या ददल में बसा तेरा नक्स पूछू, वो मेरे

प्यार का िलक पछ ू ू ,

या हर आई तेरे पलक पूछू,

विभािरी

बाद मद् ु दत के शमले है हम ,कैसे तम्हारा हाल पछ ू ू ,

क्यों ना भेजे तन ू े ख़त या तेरे ददल का सारा गुबार पूछू ,

बाद मद् ु दत के शमले है हम ,कैसे तम्हारा हाल पूछू ...

वो आूँिों में गुजारी रात पछ ू ू , या कुछ अनकही बात पछ ू ू , वो तेरा रूठना मनाना पछ ू ू,

या तुझसे शमलने का बहाना पूछु , बाद मद् ु दत के शमले है हम ,कैसे तम्हारा हाल पूछू

कैसे बबताए ददन तुमने ,या तुम्हारा घर िुशहाल पूछू

बाद मद् ु दत के शमले है हम ,कैसे तम्हारा हाल पूछू ....

विभािरी

2. विलय

जीत भी तुम और हार भी तुम इस नैया के पतवार भी तुम

सज ृ न भी तुम सिंघार भी

तुम

प्रेम भी तुम श्िंग ृ ार भी तुम

ज्ञात में तुम अज्ञात में तुम अथभ में तुम अथाभत में तुम ददन में

शाम में

तुम रात में तुम

तुम

प्रात में तुम

व्यक्त में तुम अव्यक्त में तुम

इस रग में बहते रक्त में तुम

तुम रग रग में तुम पग पग में

तुम पल पल में तुम तुम जीवन

के

हरक्षण में

हर कण में

सारा जग है तुममे औ जग में तुम मै हूूँ तुममे

और

मुझमे

तुम

विभािरी 3. टूटी जो तारे जजंदगी की

वक़्त की शाि से किर किर वो लम्हे तोड़ लूँ ू टूटी जो तारे जजिंदगी की किर उन्हें जोड़ लूँ ू ! ……………………………………….. यूूँ तो वक़्त शमलता नहीिं पुरानी यादों के शलए अपने घर

वक़्त नहीिं

गाूँव और बबछड़े यारों के शलए

तारों

से भरी रातों के

शलए

वो मस्ती और बेकिक्री में भीगती बरसातों के शलए अब तो इन चौड़ी सड़कों को गाविं की गशलयों में मोड़ दूँ ू

टूटी जो तारे जजिंदगी की किर उन्हें जोड़ लूँ ू ! …………………………………………..

यूूँ तो वक़्त शमलता नहीिं पुरानी ककताबों के शलए प्यार के पहले ख़त औ सूिे गुलाबों के शलए वक़्त नहीिं है प्यार और चैन धडकते ददल और

की चिंद सासों के शलए

रोमानी एहसासों के शलए

ददल कहता है इन बेबसी की जिंजीरों को तोड़ दूँ ू टूटी जो तारे जजिंदगी की किर उन्हें जोड़ लूँ ू !

विभािरी ………………………………………….. यूँू तो वक़्त शमलता नहीिं घर औ ररश्कतेदारों के शलए अपने अम्मी अब्बू के बढ़ ु ापे के सहारों के शलए

वक़्त नहीिं है ककसी की ख़श ु ी औ गम में जाने के शलए

घर पररवार के साथ चिंद पल बबताने के शलए ददल करता है की जजिंदगी की भागमभाग छोड़ दूँ ू टूटी जो तारे जजिंदगी की किर उन्हें जोड़ लूँ ू !

विभािरी 4. तू मेरी तकदीर नहीं,

मैं जानता था तू मेरी तकदीर नहीिं,

पर आरज-ू ए-उल्फत पे ककसका जोर चला… मैं लाि मनाता रहा मगर ...

मेरे जज़दगी क हर शसरा तेरी ओर चला…

कुछ इस तरह से तेर इश्कक़ इन नजरों में समाया, कक मैं बेिुद मुझे होश नहीिं

मैं ककस ओर चला…

किर ददभ- ए-मुहोब्बत रुस्वाई और ये तन्हाई,

किर एक आग का दररया और कोई उस ओर चला …

नाकाम-ए-कोशशश तो कई की तुझे ददल-ए-बदर करने की

पर हर बार इस ददल-ए-िूूँ का क़तरा क़तरा तेरी ओर चला …

पर अब तो अपनी राह-ए-मोहब्बत जुदा हुई इस क़दर , कक मैं इस ओर तू उस ओर चला ...

इिंतज़ार-ए-क़यामत भी ना कर पाई मेरी रूह,

और मेरी कायनात का ज़राभ ज़राभ तेरी ओर चला...

विभािरी

द्वितीय खंड मांडिी ससंह आप सबका मेरी कविता संग्रह विभािरी में बहुत बहुत स्िागत हैं। मेरा नाम मांडिी हैं ,मैं कानपूर

उत्तर -प्रदे श की ननिासी हूँ मैं िही पाली और बढ़ी । विभािरी मेरी पहली कविता संग्रह जो मेरे सहसमत्रों की सहायता से परू ी हो पा रहीं हैं । आशा हैं आप सबको ये पहली कोसशश पसंद आएगी । विभािरी

को मैंने चार भागों में बाटा हैं ,प्रत्येक भाग अपना एक अलग लेखन अंदाज और अलग विचार धारा रखती हैं । अपने अनुभाि और प्रनतकिया हमसे साझा करने के सलए आप हमें ईमेल

([email protected])कर सकते हैं

या इंस्टाग्राम (singh_mandavi_) में साझा कर सकते है ।

विभािरी 5. नम हो रहे है नम हो रहे है आिों के ककनारे ददल में दबी क्या कोई बात हैं किर

मुस्कुरा रहे है लब तेरे

भीिंगे हुए क्यों तेरे जज़्बात हैं ख़्वाबों का ज़िीरा आूँिों में तो घर कर गया हैं अब उन्हें कैसे बताए,क्या मेरे हालात हैं

रह - रह के कुछ पछ ू बैठती हैं ख़ामोशी तेरी बड़े बेख़ुद से तेरे अल्फाज़ हैं

ये कैसा सबब हैं नज़दीककयों का की आज दरू रयािं भी हमरे साथ हैं नम हो रहे है आिों के ककनारे

ददल में दबी क्या कोई बात हैं

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