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Story Transcript

जय रघनु ंदन जय सिया राम

गौरव गप्तु ा

जय रघुनदं न जय सिया राम-गौरव गुप्ता

1

िम्पर्ू ण श्री राम कथा श्रख ं ला की िभी कसियााँ १. जय रघनु ंदन जय सिया राम २. कर्-कर् में बिते श्री राम ३. अनासद अनतं अगोचर राम ४. मदृ लु -मनोहर छसब असभराम ५. ह्रदय बिें हनमु ान ६. उद्धार करें श्री राम ******

जय रघुनदं न जय सिया राम-गौरव गुप्ता

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िमपणर् 29 अप्रैल 2021 की िबु ह मेरे जीवन की िबिे असं ियारी िबु ह थी। मैंने अपने सपताजी श्री जगदीश गप्तु जी को हमेशा-हमेशा के सलए खो सदया। ये कोरोना काल का वो भयावह िच था, जो मैंने अपने दोनों बिे भाइयों श्री िसचन और डॉ िौरभ के िाथ अपनी आाँखों िे स्वयं देखा। इतने िहजिरल स्वाभाव के व्यसि इि िंिार में कम ही होते हैं। हम बहुत भाग्यशाली थे सक हमें ऐिं े सपता की िंतान होना निीब हुआ। सपताजी की आसखरी िााँिों के वक़्त, हम तीनों भाई उनके चरर्ों के िमीप थे। प्रभु श्री राम िे सनवेदन है सक अगर सपताजी िे जीवन में कोई भी भलू हुई हो तो उिे क्षमा करते हुए उन्हें मोक्ष की प्रासप्त दें। काव्य रचना "जय रघनु दं न जय सिया राम " परमपज्ू य सपताजी स्व. श्री जगदीश गप्तु जी को िमसपणत करता ह।ाँ डॉ. ििु ा गप्तु ा 'अमृता' मेरी मााँ, ये िासहसययक सवराित उन्हीं की देन है, मैं उनके सदखाए मागण पर िदैव अग्रिर रह,ाँ यही प्रभु श्री राम िे प्राथणना है। मेरे जीवन में सलखने की शरुु आत ही "मााँ" कसवता िे हुई थी। सजिका परू ा श्रेय मेरी मााँ को ही जाता है। "जय रघनु ंदन जय सिया राम " आपको िमसपणत है। गृहस्थ जीवन में रहते हुए स्वयं के सलए िमय सनकाल पाना तब तक िंभव नहीं है जब तक आपकी जीवन िसं गनी आपका िाथ ना दे। मैं अपने आपको िौभायशाली मानता हाँ जो मझु े डॉ गजंु ा का िाथ समला। हर कदम, हर पल, हर क्षर् उन्होंने मेरा िाथ सदया है , मेरा तन-मन-िन और िारा जीवन उन्हें िमसपणत है। प्रभु श्री राम और मााँ िीता की जोिी जगत में आदशण जय रघुनदं न जय सिया राम-गौरव गुप्ता

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जोिी है, मझु े परू ा सवश्वाि है सक प्रभु श्री राम की कृ पा िे गौरव और गजंु ा की जोिी एक दिू रे के सलए हमेशा िमसपणत रहेगी। और अतं में "तेरा तझु को अपणर् क्या लागे मेरा"। "जय रघनु ंदन जय सिया राम " और भसवष्य में प्रकासशत होने वाली प्रभु श्री राम की िंपर्ू ण श्रृंखला की िारी कसियााँ श्री हनमु ान जी और प्रभु श्री राम को िमसपणत करता ह।ाँ ******

जय रघुनदं न जय सिया राम-गौरव गुप्ता

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अपनी बात मनष्ु य रोजमराण के िािं ाररक जीवन यापन में इतना व्यस्त हो जाता है सक सबना सकिी उद्देश्य के ही िारा जीवन व्यतीत कर देता है। कई बार हम अपने लक्ष्य को ढूढ़ते रहते हैं और वो हमें नहीं समलता क्यंसू क लक्ष्य का समलना भी िबके भाग्य में नहीं होता। िािं ाररक जीवन यापन करते हुए और नौकरी में कायणरत रहते हुए मैंने अपने कसवता, कहानी, ग़ज़ल सलखने के शौक को जनु नू में पररवसतणत सकया। िासहसययक सवराित मझु े मेरी मााँ डॉ ििु ा गप्तु ा 'अमृता' िे समली जो सक खदु एक ख्यासतलब्ि िासहययकार हैं। उन्हें वर्ण 2015 में पवू ण राष्रपसत स्व. डॉ प्रर्व मख ु जजी ्ारा सशक्षक िम्मान िे िम्मासनत भी सकया गया था। कसवताएं कहासनयां सलखते-सलखते, कब मझु े मेरे जीवन का लक्ष्य समल गया, पता ही नहीं चला। और वो लक्ष्य था प्रभु श्री राम की मसहमा का गर्ु गान करना। सजन प्रभु श्री राम ने सलखने-पढ़ने और िमझने की शसि दी, अगर उन्हीं का गर्ु गान अपनी कलम के ्ारा ना कर िकाँू तो ये जीवन व्यथण है। “अकं ु ररत होते बीजों में िही खाद पानी देंगे तो वृक्ष बनकर सनसित ही फल भी अच्छे ही समलेंग”े । 5 िे 16 वर्ण के बच्चों को ध्यान में रखकर एक नए अदं ाज में सलखी गई पस्ु तक है "िपं र्ू ण श्री राम कथा"। यह िसचत्र पस्ु तक बहुत ही िरल शब्दों में प्रभु श्री राम की मसहमा का वर्णन करती है सजिे पढ़कर बच्चे आिानी िे गोस्वामी तलु िीदाि कृ त श्री रामचररतमानि के भाव को िमझ िकते हैं। जय रघुनदं न जय सिया राम-गौरव गुप्ता

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हमारे आराध्य श्री राम की मसहमा को बच्चे आिानी िे पढ़ व िमझ िकें और पीढ़ी दर पीढ़ी यगु ों यगु ों तक अनवरत यह क्रम जारी रहे यही लक्ष्य है। "जय रघनु दं न जय सिया राम " मेरे िासहसययक जीवन की प्रथम पस्ु तक है जो सक प्रभु श्री राम के गर्ु गान की िंपर्ू ण श्रृंखला की एक किी मात्र है। "जय रघनु ंदन जय सिया राम " के बाद भसवष्य में मेरा प्रयाि रहेगा सक शीघ्र ही आपके िमक्ष इि श्रृंखला की अन्य कसियां प्रस्ततु कराँ। गोस्वामी श्री तलु िीदाि जी को प्रर्ाम करते हुए मैं अपनी काव्य रचना "जय रघनु ंदन जय सिया राम " पर अब आगे की बात रख रहा ह।ाँ गोस्वामी तलु िीदाि जी ने अवसि भार्ा का उपयोग कर श्रीरामचररतमानि को इतने िन्ु दर दोहों और चौपाइयों िे िजाया है सक पढ़ते-पढ़ते हम कब त्रेता यगु में प्रवेश कर जाते हैं, पता ही नहीं चलता। प्रभु श्री राम के चररत्र का सजतना िन्ु दर वर्णन गोस्वामी श्री तलु िीदाि जी ने सकया है उिकी तलु ना अिंभव है। वहीं आसद कसव ऋसर् वाल्मीसक जी ने िस्ं कृ त भार्ा में असत िन्ु दर रामायर् महाकाव्य की रचना की थी। परन्तु आज की हमारी यवु ा पीढ़ी के सलए िंस्कृ त भार्ा तो जैिे सवलप्तु िी होकर रह गई है और अविी कुछ एक राज्य तक ही िीसमत है। ऐिे में काव्य रचना "जय रघनु ंदन जय सिया राम " एक प्रयाि है , सजिमें श्रीरामचररतमानि के मलू भाव िे सबना सकिी छे िखानी सकए िरल सहदं ी भार्ा के शब्दों में सपरोने की कोसशश की गई है तासक बिे लोगों के िाथ बच्चों को भी "जय रघनु ंदन जय सिया राम " आिानी िे ना के वल िमझ में आए बसल्क िनु कर और पढ़कर आनंद भी आए।

जय रघुनदं न जय सिया राम-गौरव गुप्ता

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"जय रघनु ंदन जय सिया राम " की शरुु आत प्रभु श्री राम के जन्म िे होती है। स्वयं नारायर् देवताओ ं को िीरज बंिाते हुए पृथ्वी के भार को हरने जन्म लेते हैं और मसु न सवश्वासमत्र के िाथ चलते हुए तािका,िबु ाहु,मारीसच िे मसु ि सदलाते हैं। अतं में जनकपरु ी में िनर्ु भगं कर श्री राम, सिया के हो जाते हैं एवं बारात िसहत वापि अयोध्या आ जाते हैं। तो पसढ़ए और िसु नए मेरे िाथ "जय रघनु दं न जय सिया राम " और एक बार जोर िो बोसलये जय श्री राम

गौरव गप्तु ा

जय रघुनदं न जय सिया राम-गौरव गुप्ता

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अनक्रु मासर्का

पेज नंबर

1. श्री राम जन्म 2. सवश्वासमत्र का राजा दशरथ िे राम-लक्ष्मर् को मााँगना, तािका वि 3. सवश्वासमत्र-यज्ञ की रक्षा 4. असहल्या उद्धार 5. श्री राम-लक्ष्मर् िसहत सवश्वासमत्र का जनकपरु में प्रवेश 6. पष्ु पवासिका-सनरीक्षर्, िीताजी का प्रथम दशणन, श्री िीता-रामजी का परस्पर दशणन 7. राजाओ ं िे िनर्ु न उठना, जनक की सनराशा 8. श्री लक्ष्मर्जी का क्रोि 9. िनर्ु भगं 10. जयमाला पहनाना 11. परशरु ाम लक्ष्मर् और श्री राम 12. दशरथजी के पाि जनकजी का दतू भेजना, अयोध्या िे बारात का प्रस्थान 13. बारात का जनकपरु में आना और स्वागतासद 14. श्री िीता-राम सववाह, सवदाई 15. बारात का अयोध्या लौिना और अयोध्या में आनंद

9-18 19-23 23-24 24-25 26-27 28-29 30-32 33-36 37-40 41-43 44-45 46-52 53-55 56-58 59-62

*****

जय रघुनदं न जय सिया राम-गौरव गुप्ता

8

(1) श्री राम जन्म जग में फै ला डर का िाया चहुाँ ओर रावर् की माया िािु िंत के डर को हरने लंकेश के वि को करने नारायर् ने सदया वचन ियू णवंश में लंगू ा जनम रघकु ु ल के दशरथ के घर में ब्रम्ह ऋसर् के श्राप को फलने कौशल्या की गोद को भरने वैदहे ी के भार को हरने नारायर् ने सदया वचन ियू णवंश में उनका जनम िनु कर ये नारायर् वार्ी ब्रम्हा जी ने सदया िंदिे जाओ भू पर देवों िारे रहना लेकर वानर भेि

जय रघुनदं न जय सिया राम-गौरव गुप्ता

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जंगल जंगल वानर िेना बाि जोहती वानर िेना आएगं े श्रीराम हमारे राह देखती वानर िेना अविपरु ी में दशरथ राजा िमण वेद गर्ु ों के राजा परम भि थे सशव के ऐिे मन बि गए हों शकं र जैिे

जय रघुनदं न जय सिया राम-गौरव गुप्ता 10

कौशल्या थी उनकी रानी रानी थी वो बिी ियानी दशरथ लेसकन बिे दख ु ी पत्रु चाह में बिे दख ु ी

श्रृगं ी ऋसर् िंग ऋसर् वसशष्ठ सकया यज्ञ तब असत सवसशष्ट असग्न देव सफर प्रकि हुए पायि लेकर प्रकि हुए

जय रघुनदं न जय सिया राम-गौरव गुप्ता 11

असत प्रिन्न दशरथ गभं ीर राजा ने बािं ी सफर खीर कौशल्या ने आिी खाई िसु मत्रा कै कई को भी भाई

जय रघुनदं न जय सिया राम-गौरव गुप्ता 12

अनकु ू ल हुए िब योग लगन अनकु ू ल हुए ग्रह वार सतसथ थे गभण में पलते नारायर् था चैत्र का महीना नवमी सतसथ था शक्ु ल पक्ष और सदन का िमय ना िदजी बहुत ना गमजी बिी रतन की भासं त तगंु िज रहे मंद-मंद िी हवा बह रही

जय रघुनदं न जय सिया राम-गौरव गुप्ता 13

पष्ु प की वर्ाण अबं र-अबं र देवों ने मस्ु कान भरी थे ढोल नगािे दरू गगन में ब्रह्म-देवता-नाग-मसु न श्याम िलोने चार भजु ाएं अस्त्र-शस्त्र और वनमाला आभर्ू र् िे िजा बदन और प्रकि हुए सफर दीनदयाला नैन लभु ावन, असत मनभावन दशरथ नदं न प्रकि हुए आसद-अनंता, जनकल्यार्ी ितु कौशल्या प्रकि हुए हाथ जोिकर कौशल्या ने श्रीहरर का गर्ु गान सकया बालक रप में आओ भगवन माता ने आह्वान सकया िनु कर सवनती कौशल्या की सशशु रप में आए हरर दशरथ राजा िगं प्रजा अविपरु ी हरिाए रही जय रघुनदं न जय सिया राम-गौरव गुप्ता 14

कै कई और िसु मत्रा ने भी सदए जन्म असत िंदु र लाल अविपरु ी में िाझं हो गई ऐिा उिा रंग गलु ाल

जय रघुनदं न जय सिया राम-गौरव गुप्ता 15

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