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Story Transcript

दो बूँद जिन्दगी की सध ु ीर अधीर संपादक नेहा शर्ाा कुर्ार विक्ांत

NOTION PRESS

NOTION PRESS India. Singapore. Malaysia. ISBN xxx-x-xxxxx-xx-x This book has been published with all reasonable efforts taken to make the material error-free after the consent of the author. No part of this book shall be used, reproduced in any manner whatsoever without written permission from the author, except in the case of brief quotations embodied in critical articles and reviews. The Author of this book is solely responsible and liable for its content including but not limited to the views, representations, descriptions, statements, information, opinions and references [“Content”]. The Content of this book shall not constitute or be construed or deemed to reflect the opinion or expression of the Publisher or Editor. Neither the Publisher nor Editor endorse or approve the Content of this book or guarantee the reliability, accuracy or completeness of the Content published herein and do not make any representations or warranties of any kind, express or implied, including but not limited to the implied warranties of merchantability, fitness for a particular purpose. The Publisher and Editor shall not be liable whatsoever for any errors, omissions, whether such errors or omissions result from negligence, accident, or any other cause or claims for loss or damages of any kind, including without limitation, indirect or consequential loss or damage arising out of use, inability to use, or about the reliability, accuracy or sufficiency of the information contained in this book.

मेरी जजिंदगी की दो बिंद जिय अम्मा जी (श्रीमती रामदल ु ारी देवी) व बाबजी (स्व. श्री रघनु ाथ सहाय) को समजपित

ये क्षण

का

लचक्र से बरबस चरु ाये हुए ये अमल्य क्षण, आत्मसाक्षात्कार कराते से ये दल ु िभ क्षण, जचतिं न में डुबाते-उतराते से ये जवलक्षण क्षण, मन के दपिण में झााँकते से, भावजवभोर करते से ये अद्भुत, जदव्य, अलौजकक क्षण अनभु जत की इस लेखनी को डगमगाते हुए सब कुछ गड्डमड्ड सा कर रहे हैं. "अथ" और "इजत" अपना पता भल गये से लगते हैं. "क्या भलाँ" और "क्या याद कराँ" के बीच मन जिशिंकु सा लटक गया है. मैं जवज्ञान का जवद्याथी और पेशे से कागज िौद्योजगकी अजभयिंता ह.ाँ साजहत्य के िजत लगाव इस मरुस्थल में मरुद्यान सा लगता है या कुछ याँ समजझये, "सयिं ििं को सचिं ाजलत करते, किंप्यटर पर चलते हाथ जब लड़खड़ाने लगते हैं तो इस जववशता और पीडा को कागज पर जबछाने को आतुर हो जाता ह.ाँ " मेरी वृजि और रुजच के बीच सेतु बना " कागज" सिंयोग नहीं, जनयजत का ियोग सा लगता है और इस सेतु को एक नया आकार देने की िेरणा मझु े अशोक चक्रधर जी के कायिक्रम "वाह वाह " से जमली. "हर व्यजि में एक कजव जछपा होता है ", यह कहकर उन्होंने एक बार एक पजिं ि उछाल दी, परा कराने के जलए, "हर चेहरा दागदार है, जकस-जकसको धोइये" और मैंने टीवी के सामने बैठे-बैठे इसे लपक जलया, कुछ इस तरह, "अधिं े के आगे रोकर क्याँ, अपने नैन खोइये" और इस तरह आरिंभ हुई अनुभजतयों की यह शब्द-यािा मझु े आज यहााँ तक ले आयी. जीवन में मेरे िेरणास्रोत मेरे बाबजी भी साजहत्यरजसक थे और अम्मा 90 वर्ि की आयु में भी बचपन में पढी कजवताओ िं को गनु गनु ाती रहती हैं. मेरी पिु वध नेहा भी एक कवजयिी है ी़ और "साजहत्य अपिण " समह की सिंस्थाजपका है. मेरी रचनाओ िं को साविजजनक मचिं उपलब्ध कराने में उसकी मख्ु य भजमका रही है और आज स्वयिं के बारे में तो इतना ही कह सकता ह,ाँ "ना शब्द हैं, ना छिंद हैं बस भावों से अनुबिंध है"

और इसी अनुबिंध के एक सि में बाँधी है मेरी यह िस्तुजत, "दो बदाँ जजदिं गी की" भवदीय, सध ु ीर अधीर

vi

शुभकार्ना संदेश!!



दरणीय सधु ीर कुमार शमाि जी के सम्मान में अपनी दो पजिं ियााँ शभु कामनाओ िं सजहत समजपित करती ह!ाँ

काग़ज़ कलम से खेलना आसान नहीं है,भावों को यूँ उडेलना आसान नहीं है, मन में जो आए बात तो कहकर ही आए चैन,जज़्बात दिल पर झेलना आसान नहीं है।' श्री सधु ीर कुमार शमाि साजहत्य आकाश का एक ऐसा उज्जवल जसतारा हैं जो हम पाठकों की दजु नया से अब तक ओझल रहा है। आदरणीय श्री सधु ीर शमाि जी की शीघ्र िकाश्य पस्ु तक को मझु े पीडीएफ रप में पढ़ने का सौभाग्य िाप्त हुआ जजसे पढ़कर मझु े अत्यन्त िसन्नता हुई है। जिय नेहा शमाि जी ने जब आदरणीय सधु ीर कुमार शमाि जी की पस्ु तक पीडीएफ के रप में मझु े सस्नेह भेंट स्वरप भेजी तो इसे एक बार पढ़ना आरिंभ करने के पश्चात इसे पढ़कर परी समाप्त जकए जबना रुका नहीं गया..... सभी रचनाओ िं में एक ऐसा आकर्िण और तारतम्यता रही जक जबना जवश्राम जलए लगातार पढ़ती चली गई। नेहा शमाि जो जक आदरणीय सधु ीर शमाि जी की पिु वधु हैं और वतिमान समय में साजहत्य अपिण अिंतरािष्ट्रीय मचिं की सिंस्थाजपका हैं जजसकी स्थापना आदरणीय सधु ीर जी की ही िेरणा से लगभग तीन वर्ि पवि दबु ई में की गई। आदरणीया नेहा जी ने जब यह पस्ु तक मझु े समीक्षात्मक िजतजक्रया हेतु िेजर्त की तो मझु े अत्यन्त हर्ि हुआ जक इस साजहत्य गिंगा में आचमन का सौभाग्य मझु े िाप्त हुआ है मैं उन्हें इस पस्ु तक के जलए बहुत बहुत बधाई एविं हाजदिक शभु कामनाएाँ देती ह।ाँ

श्री सधु ीर शमाि जी ने इस पस्ु तक में ईश्वर से की गई िाथिना,माता जपता के िजत अपने भाव समु न, अपने जीवन के अनुभव और जीवन पर आधाररत रचनाओ,िं सम सामजयक जवर्यक रचनाओ िं को सिंकजलत करके अपने पज्य जपताजी स्व श्री रघनु ाथ सहाय जी एविं माताजी स्व श्रीमती राम दल ु ारी देवी को सादर समजपित जकया है। पेशे से इजिं ीजनयर /अजभयिंता (पल्प एिंड पेपर) सधु ीर शमाि जी अपनी सहज अजभव्यजि को काग़ज़ पर साकार करते आए हैं और सोशल मीजडया से दर रहकर अब तक लगातार लेखन करते रहे हैं। तकनीक के माध्यम से आज के समय में इन रचनाओ िं को साजहत्य िेजमयों तक पहुचाँ ाने के जलए सधु ीर कुमार शमाि जी की पिु वधु जिय नेहा शमाि जो जक एक सिु जसद्ध कवजयिी हैं और आई.टी. इजिं ीजनयर पिु राहुल शमाि ने पस्ु तक रप में िकाजशत करवाने का दाजयत्व जलया है और साविजजनक मचिं उपलब्ध कराने की जदशा में भी जनरिंतर अग्रसर हैं जजसके जलए मैं उन्हें बहुत बहुत साधवु ाद, हाजदिक बधाई एविं अनिंत शभु कामनाएाँ देती ह।ाँ काग़ज़ िौद्योजगकी अजभयिंता के रप में कायिरत होने के साथ भी सधु ीर जी की लेखनी अनवरत चलती रही है इनकी रचनाओ िं में इनके व्यजित्व की सादगी, सरलता एविं सहृदयता सहज ही पररलजक्षत होती है। सधु ीर जी का स्वयिं कहना है जक उन्हें सृजन का कौशल अपने माता जपता से ही जवरासत में िाप्त हुआ । इनके जपता साजहत्य रजसक थे और ये बचपन से ही माताजी के मख ु से कजवताएाँ सनु ते हुए बड़े हुए। आरिंभ में ही अपने मन की भावनाओ िं को कजव सधु ीर कुमार शमाि कुछ इस तरह से अजभव्यि करते हैं.... "सयिं ििं को सचिं ाजलत करते, कम्प्यटर पर चलते हाथ जब लड़खड़ाने लगते हैं तो मन की जववशता और पीड़ा को काग़ज़ पर जबछाने को आतरु हो जाता ह।ाँ " जवजवध जवर्यों पर भी इनकी रचनाएाँ मन को आशाजन्वत करने वाली हैं..... पस्ु तक का नाम सधु ीर जी की कजवता शीर्िक 'दो बदाँ जज़न्दगी की' पर आधाररत है जो दो खण्डों में है पहले भाग में अपने माता जपता और दसरे खण्ड में पिु वधु और पौिी को दो बाँद जज़न्दगी के रप में मानते हुए उनकी भावपणि अजभव्यजि है।.... सवििथम मााँ सरस्वती की आराधना में सधु ीर जी जलखते हैं... 'मााँ सरस्वती को माल्यापिण, वीणावाजदनी को माल्यापिण, इस भाव पष्ट्ु प माला से वीणावाजदनी को माल्यापिण!..... 'मााँ के चरणों की धल बना यह छिंद मेरे मन का दपिण, शब्दों के दोने में जसमटा, श्रद्धा रस का यह अपिण!' बहुत ही सिंदु र शब्दों से मााँ का आह्वान करते हुए इस पस्ु तक में जवजवध जवर्यों पर उनकी सिर मनोरम रचनाएाँ सिंकजलत हैं। viii

आगे अपनी एक रचना 'इन िश्नों की शरशय्या पर' वो स्वयिं ही जज़िंदगी से कुछ िश्न करते हुए कहते हैं.....' जचिंता ने छीना जचतिं न, जनस्तेज हुई क्यिं चेतना.....!' वहीं 'अतीत की परछाई िं ' कजवता में ,जीवन की आपाधापी में कुछ सख ु के पल जो छट गए.... परु वाई के झोंके जीवन उपवन से रिंठ गए... कुछ मीत जमले बनके अपने पर मन के सपने लट गए में बीते वर्ों के जीवन का अवलोकन करते हुए बहुत ही गभिं ीर भाव व्यि करते हैं। 'मााँ का चेहरा देखा है' कजवता में माता के िजत कजव सधु ीर जी के बालमन की की सहज अजभव्यजि का एक उदाहरण देजखए...दो बााँहों के झले में नया सवेरा देखा है.....इस दजु नया में सबसे पहले मााँ का चेहरा देखा है..... गिंगा जमनु ा सी छलकती आाँखों में..... ! 'इस वात्सल्य की िजतमा में जसमटे सब जीवन मल्य हैं एक मााँ नहीं है जग में तो जफर सारी सृजि शन्य है!' उि सिंदु र भावों से ससु जज्जत पिंजियों में अपनी माता के िजत िेम की सहज अजभव्यजि देखते ही बनती है। जकिंतु साथ ही दादा बनकर अपनी पौिी के िजत सधु ीर जी की रचना ' मेरे घर में मााँ आई है' में वात्सल्य भाव की सिंदु र अजभव्यजि मन को भावजवभोर करने वाली है। नन्हीं बाजलका को स्नेह भाव, और ममता की िजतमजति मानते हुए नारी के जवजभन्न रपों के िजत श्रद्धा एविं सम्मान भाव स्वत: दशी है। 'मेरे बाबजी' रचना में उन्होंने एक पिु के जपता के िजत हृदय के उद् गारों को बहुत ही सदिंु र शब्दों में जपरोया है सधु ीर जी जलखते हैं... िेम की श्रृख िं ला के सिधार, रचनाकार समीक्षक, सरिं क्षक, पालनहार...... जपता के िजत समपिण भाव एविं सविस्व मान लेने की स्वीकारोजि अद्भुत है । 'ढाई अक्षर िेम का','जज़दिं गी का चेहरा', सत्य का अज्ञातवास और 'सत्य का आह्वान' रचनाओ िं में जज़िंदगी के सत्य को बहुत सिंदु र ढगिं से पररभाजर्त करते हुए भावों की गागर छलक छलक आई है। 'धरती मााँ की व्यथा' में सधु ीर शमाि जी की पयािवरण के िजत सिंवेदना और जचिंता रचना में सहज ही पररलजक्षत होती है। इसके अजतररि सधु ीर जी ने कुछ कहानी, लघक ु था और व्यिंग्य रचनाएाँ भी जलखी हैं। .. अपने शब्दों को जवराम देते हुए अिंत में मैं लेखनी और शब्दों के धनी आदरणीय सधु ीर कुमार शमाि जी को उज्ज्वल भजवष्ट्य एविं अच्छे स्वास््य के जलए बहुत बहुत शभु कामनाएाँ देती ह।ाँ मााँ सरस्वती से मेरी िाथिना है जक आपकी लेखनी जनरिंतर सृजनशील रहे और जन कल्याण की भावना के जलए सिंदु र सृजन करती रहे। मैं चाहगिं ी जक सभी साजहत्य िेमी इस पस्ु तक को अवश्य पढ़ें। मझु े जवश्वास है यह पस्ु तक सभी पाठकों के मन को असीम आनन्द की अनभु जत कराएगी। ix

आपकी िथम िकाजशत पस्ु तक दो बदाँ जज़न्दगी की' के जलए बहुत बहुत बधाई एविं हाजदिक शभु कामनाएाँ! आने वाले समय में पाठकों को आपकी और सिंदु र रचनाएाँ पढ़ने को जमलती रहें, इसी आशा और शभु ेच्छा के साथ आपकी पस्ु तक की ितीक्षा में...! चंचल हरेंद्र िवशष्ट वहंदी प्राध्यावपका वशक्षाविद् वियेटर प्रवशवक्षका किवयत्री एिं सार्ाविक कायाकताा नई वदल्ली भारत

x

जिय पापा,

पा

पा आपकी इस पहली पस्ु तक के जलए सबसे पहले आपको खब सारी शभु कामनाएिं । यह पस्ु तक मेरे जलए जकसी तपस्या से कम नहीं है। क्योंजक जबसे मैं आपके साथ हाँ जदन रात आपकी इस पस्ु तक के जलए पररश्रम कर रही हाँ और आज जब यह फाइनली मैं आपके हाथों में देखती हाँ तो महसस होता है जक ८ साल की यह मेहनत अब जाकर सफल हुई है । आपका जलखना हमें सनु ाना पढ़वाना यह जनरिंतर ऐसे ही चलता रहे । आप आज सेवा जनवृि भी हो रहें हैं । यह छोटी सी भेंट मेरी और से स्वीकार कीजजये । आपकी इन सब रचनाओ िं में पररवार नज़र आता है और सही मायने में पररवार शब्द क्या है इन रचनाओ िं को पढ़कर ही एक पाठक समझ सकता है। आपकी यह पस्ु तक जसफि हमें ही नहीं समाज को भी नई जदशा िदान करे गी ऐसा मेरा अटट जवश्वास है । आपका बेटा राहुल शमाि, आपकी पौिी अपणाि शमाि और पत्नी सगिं ीता शमाि आज सभी आप पर गवि करते हैं जक आपने हमेशा हमें अपनी इन रचनाओ िं के माध्यम से आपके इतना करीब जकया है । न जसफि रचनाएाँ बजल्क बहुत कुछ नया व हमेशा सही जदशा में चलने को िेररत जकया है । आज आपके हाथ में यह पस्ु तक देखकर हमें समजझये सम्पणि ससिं ार का िेम जमल गया है । आशा है जक आपको यह छोटा सा तोहफा पसन्द आएगा। मेरी तरफ से इस पस्ु तक के जलए आपको खब सारी शभु कामनाएिं एविं बधाई । आपकी बहु नेहा शर्ाा



दरणीय सधु ीर अधीर जी की काव्य पस्ु तक को आप सबके समक्ष रखना एक बहुत ही हर्ि का जवर्य है । सामान्यतः श्रृगिं ार रस में डबी अनेको कजवताओ िं को पढ़ने के बाद जब आदरणीय सधु ीर अधीर जी की पस्ु तक हेतु चयजनत कजवताओ िं को पढ़ने के बाद पता लगा जक श्रृगिं ार रस से परे भी आदरणीय सधु ीर अधीर जी द्वारा रजचत काव्य का अथाह सागर है जजसमे जीवन के हर पहलु को छती हुई कजवता रपी एक से बढ़कर एक मोती चहु और जबखरे हुए है । पस्ु तक में सक िं जलत सभी कजवताएिं बहुत ही अच्छी है लेजकन हास्य व्यग्िं य लेखन जवधा से जड़ु े होने के कारण इस काव्य सिंग्रह में सिंग्रजहत हास्य कजवताएिं पढ़ना भी बहुत ही मजेदार रहा; कुल जमलाकर एक बहुत ही शानदार काव्य सिंग्रह । आशा है भजवष्ट्य में भी आदरणीय सधु ीर अधीर जी का हम पर अनग्रु ह बना रहेगा और उनकी रचनाएिं हमे पढ़ने को जमलती रहेंगी । कुर्ार विक्ांत

xii

लेखक के लेखन पर पाठको की प्रवतवक्याएं

दो बाँद जजन्दगी की

र्ााँ सरस्िती को र्ाल्यापाण मााँ सरस्वती को माल्यापिण वीणावाजदनी को माल्यापिण इस भावपष्ट्ु पमाला से जवद्यादाजयनी को माल्यापिण मााँ सरस्वती को माल्यापिण वीणावाजदनी को माल्यापिण मन की जदव्य तरिंगों का अधरों के तट पर सहज समपिण मााँ के चरणों की धल बना यह छिंद मेरे मन का दपिण शब्दों के दोने में जसमटा श्रद्धा-रस का यह अपिण मााँ सरस्वती को माल्यापिण वीणावाजदनी को माल्यापिण जनमानस से जड़ता के हर अधिं कार को हर लो, मााँ चैतन्य रजव की जकरणों से इस मन का आाँगन भर दो, मााँ एक नविभात से आलोजकत हो मन का यह धजमल दपिण मााँ सरस्वती को माल्यापिण वीणावाजदनी को माल्यापिण मन की वीणा के तारों में मााँ, कुछ ऐसी झिंकार करो मृतिाय चेतनाशन्य हृदय नविाणों का सचिं ार करो एक नवचेतन की आस जलये 1

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