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Story Transcript

सरु जापरु ी

भारत की सीमा समाप्त

िट्वंकल शेख

Copyright © Twinkle Sheikh All Rights Reserved. This book has been published with all efforts taken to make the material error-free after the consent of the author. However, the author and the publisher do not assume and hereby disclaim any liability to any party for any loss, damage, or disruption caused by errors or omissions, whether such errors or omissions result from negligence, accident, or any other cause. While every effort has been made to avoid any mistake or omission, this publication is being sold on the condition and understanding that neither the author nor the publishers or printers would be liable in any manner to any person by reason of any mistake or omission in this publication or for any action taken or omitted to be taken or advice rendered or accepted on the basis of this work. For any defect in printing or binding the publishers will be liable only to replace the defective copy by another copy of this work then available.

“माता िपता और छोटे भाई फहद को समिपर्त।”

कर्म-सच ू ी आमख ु

vii

जमींदार बाबू नई कन्या तीन की ितकड़ी रुखसती ऑक्सफड ऑक्सफडर्र् ऑफ दी ईस्ट मेह हरर की गाड़ी चलती जाए कु ल्ह ल्हैैय याा बेग गम म

•v•

आमख ु “िफक्शन और िहस्टर्ी का जोड़ िफक्टर्ी” िबहार का िकशनगंज िज़ला िजसका भौगोिलक और सांस्कृितक

क्षेतर् मेल नही खाता। 1912 से पहले का िबहार जो बंगाल पर्ांत का िहस्सा

था। िवभािजत िबहार में 1956 के समय पिू णर्या परू ु िलया के कुछ क्षेतर् िबहार में रह गए कुछ बंगाल को हस्तांतिरत कर िदए गए। भौगोिलक स्तर से िकशनगंज िज़ले के पिश्चम में अरिरया िजला,

दिक्षण-पिश्चम में पिू णर्या िजला, पव ू र् में पिश्चम बंगाल के उत्तर

िदनाजपरु िजला, उत्तर में पिश्चम बंगाल के दािजर्िलंग िजला और नेपाल

से िघरा हुआ है । 14 जनवरी 1990 पिू णर्या से अलग कर िकशनगंज उपमंडल को िजला घोिषत कर िदया गया। कहानी िवभाजन से पव ू र् िफक्टर्ी पर आधािरत पातर्ों की है । हम

इितहास को भल ू जाए लेिकन कहानी नही भल ू ते कुछ तकर् िवतकर् भरी इन कहािनयों को इितहास से जोड़ कर सािहत्य का रूप िदया गया है ।

• vii •

जमींदार बाबू जमींदार अशफाकउल्ला साहब यानी अशहाबद् ु दीन के अब्बा हुजरू

इल्म के सौदागर रहे । दीन दिु नया दोनों ही तालीम के कायल। तभी अपने बेटे को िवलायत भेज िदया वकालत की पढ़ाई करने। अम्मा

सिू फया बेगम यानी अशहाबद् ु दीन की अम्मा िदल को धक से छुपाए अपने इकलौते बच्चे को जाने िदया।

जमींदार साहब िकशनगंज से ताल्लक ु रखते थे। अरिरया के िमयांपरु गांव में रह बस गए थे। सरु जापरु ी बोली साथ में उदर् ू भाषा इन्हीं का संगम था इनका पिरवार।

छोटी हवेली चारों तरफ से िघरी हुई थी। घेराव के अंदर चारों तरफ फूस के छोटे -छोटे घर थे। िजनमें वहां काम करने वाले लोग रहते थे। आस

पास के इलाकों में हर कोई जानता था इन्हें । बेटा िवलायत से वकालत परू ी करके वापस आ गया था। िजसने चार चांद लगा िदया इनके खानदान के नाम पर।

रज़ा साहब इनके पड़ोसी थे। अक्सर इनके यहां आया जाया करते। रज़ा साहब ने सिू फया बेगम से पछ ू ा "लड़का आपका पढ़ िलखकर वकील बन गया है । िनकाह करवाने का सोचा है िक नहीं?

सिू फया बेगम बोली सोचा तो है ! पर लड़की ऊंचे खानदान की होनी

चािहए रज़ा साहब। हम िकशनगंज से ताल्लक ु रखते हैं। अरिरया में रह बस गए तो क्या हुआ। लड़की िकशनगंज की ही चािहए हमें सरु जापरु ी िबरादरी की।

रज़ा साहब, दे िखए जरा आप ही कहीं। इनके अब्बा तो बाबू को भेज िदए थे पढ़ने िवलायत। वकील बन कर लौटा है । नाजाने िदमाग में

क्या चलता रहता है बाबू के? शादी के बारे में पछ ू ो तो जरा भी ध्यान

नहीं। वकालत की िकताबों में घस ु कर नाजाने क्या बद ु बद ु ाता रहता है । नई कन्या घर आए तो मैं भी पोते पोितयो का दीदार करूं। इतनी दे र में अशहाबद् ु दीन पीछे से आकर बोले "अम्मा की बात करोइस रज़ा साहब ऐर साथे"? अस्सलाम वालेकुम चाचा कैसे हैं? आ गए बाबू तम ु

वालेकुम अस्सलाम अल्लाह का शकर् ु है । तम ु बताओ ‘घोर बार आगू

बढ़ाबो की नी’? क्या चाचा आप भी िनकाह की बात को लेकर बैठ गए अम्मा की तरह।

बाबू थोड़ा िझझक कर बोले अब्बा हुजरू कहां है अम्मा? अम्मा

हड़बड़ाहट में बोली, गए हैं खेतों की तरफ आिद िदए हैं िजसे वो आया था घर। उसी के साथ गए हैं खेत खिलयान के तरफ, आते होंगे।

चाचा चाय लीिजए आप। नहीं बाबू जमींदार साहब से िमलने आया

था। कल िकशनगंज जा रहा हंू , लगेगा कुछ िदन लौटकर आने में । महें नगांव एस्टे ट में शादी है मोहम्मद यन ू स ु साहब की बेटी की। आता हंू दोबारा िमलने।

कर्ांित पाटीर् के लोग वकील बाबू के पास पहंु चे। उनमें से एक पाटीर् में

कायर्रत आदमी ने कहा। यह डाकुओं की समस्या का समाधान कैसे

िकया जाए वकील बाब?ू हम िछटपट ु लोग कर्ांित पाटीर् का आगाज तो कर िदए हैं।इन डाकूओं की डकैती अब हद पार कर बैठी है ।

कल का हादसा बताते हैं आपको। पास के गांव में शादी थी। बारात घर की तरफ दल् ु हन के साथ लौट रही थी। इन डाकू ने पहने हुए सोने जवाहरात लट ू िलए।

अब जरूरत है िक इस िछटपट ु पाटीर् में ज्यादा से ज्यादा लोग जड़ ु ें। इन बेलगाम घोड़ों को सबक िसखाने के िलए लोगों की तादाद भी बड़ी

चािहए। बाबू साहब बोले सही कह रहे हैं जनाब आप सब, मैं भी आपकी बात से मत ु ाफीक रखता हंू ।

खैर वकील बाबू नाम रोशन कर िदए आप। िवलायत से वकालत करके आ गए। जी जनाब वो क्या है ना हमारे अब्बा हुजरू एक बात कहते हैं।

“रोशन हुए गुलदान उनके, िजस घर डाला इल्म ने डेरा।”

नई कन्या वकील बाबू आंगन में चहल कदमी कर रहे थे। इतनी दे र में रज़ा साहब की ठक-ठक करती छड़ी की आवाज सन ु ाई दी। सलाम चाचा आ गए

िकशनगंज से? हां बाबू आ ही गए अब्बा और अम्मी को बल ु ा दो जरा। चिलए अंदर तशरीफ़ रिखए, अभी बल ु ा कर लाते हैं।

इतने में अशफाकउल्ला साहब आ गए। अरे रज़ा िमयां खश ु ामदीद। सलाम िमयां आया था मैं िमलने, आप खेतों की तरफ चहल कदमी करने गए थे।

भाभी ने अशहाबद् ु दीन बाबू के िलए लड़की ढंू ढने कहा था। िकशनगंज के महें नगांव एस्टे ट में अपने यन ू स ु साहब है । उन्हीं की बड़ी बेटी का िनकाह था। कह रहे थे उनकी छोटी बेटी के िलए लड़का ढंू ढें गे अब।

मैंने आपके खानदान के बारे में बताया। उन्हें भी मालम ू है िक बेटा आपका िवलायत से पढ़ कर लौटा है । बड़े नामचीन लोग हैं पैसा, जमीन, खानदानी। आप रजामंद हो अगर तो दे ख आइए।

अम्मा की ख्वािहश परू ी होने वाली थी। बेटे के िलए लड़की जो दे खने

जा रहे थे। िरश्ता तय करना ना करना अम्मा के हाथ में नहीं था। वह तो बस रजामंदी में अपना सर िहला सकती थी। लड़की से ज्यादा लड़की का खानदान दे खा जाता था।

इन दोनों िरश्ते में रज़ा साहब ने पिु लया का काम िकया। दोनों पिरवार िरश्ते में बंधने वाले थे। बड़ी धम ू धाम से दोनों खानदानों का िमलन हो गया। सारे नामचीन लोग िनकाह में शािमल हुए।

नई कन्या का नाम सबके सामने उजागर हो गया।

सायरा खातन ू , अपने नाम के मायने की तरह सायरा की परविरश भी

एक राजकुमारी जैसी ही हुई थी। कद लंबा, गहरा रं ग, काली आंखें, एक बार में सबकी आंखों को लभ ु ा जाए। ऐसा िकरदार था नई कन्या का।

अपने मायके में भी सायरा ऐसी ही रहती थी। ज्यादा तो नहीं पड़ी थी

खातन ू लेिकन उनके अब्बा अम्मी ने परविरश में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। उनके मायके में भी नौकर चाकर की कमी नहीं थी।

वकील बाबू का िमजाज़ थोड़ा सिू फयाना था। सादगी पसंद गस् ु सा ना के बराबर ही दे खा था कभी िकसी ने। आने वाली पीढ़ी को इससे अच्छी जोड़ी िमल ही नहीं सकती थी।

घर की आबोहवा बदल गई थी सायरा खातन ू के आते ही। बड़े घर

खानदान, जमींदार साहब की बेटी को पाकर अम्मा फूले नहीं समा रही थी। सायरा खातन ू को नई महं गी सस ु िज्जत करने वाली चीजें, ऐसे सामान िजनसे शानो शौकत िदखे बहुत पसंद थे।

कुछ महीने में नई कन्या ने अरिरया का नक्शा िकशनगंज में बदल िदया। घर की शोभा और रौनक दोनों ही िनखर आई दल् ु हन के आने से।

अम्मा के पोते पोितयो को दे खने की ख्वािहश भी जल्द परू ी होती जा रही थी। वक्त बीतता गया और वक्त के साथ घर के सदस्य भी।

घड़ी की सई ु भी इतनी तेजी से बढ़ चली िक पता ही नहीं चला कब घर के सदस्यों में तीन पीढ़ी आ चक ु ी थी।

तीन की ितकड़ी वकील अशहाबद् ु दीन और सायरा खातन ू के घर तीन बेटे एक बेटी पैदा

हुई। चारों बेटे बेिटयों के नाम वकील बाबू के अब्बा हुजरू ने रखे। अब हुजरू को दादा की उपािध िमल गई और वकील बाबू के नाम से बाबू की उपािध लेने वाले तीन बेटे आ गए। बच्चों के नाम शम्स जमाल, कमाल सबा, मित-उल-बारी और जाहे दा

खातन ू रखे गए । सभी बच्चों में उमर् का फासला तीन से पांच साल का था।

पहले बेटे शम्स जमाल का स्वभाव अपने अब्बा जैसा ही था । वकील बाबू से िजतने रसख ू दार लोग िमलने आते उस वक्त चल रहे

राजनीितक हलचल को लेकर चचार् में मशगूल हो जाते। शम्स वहीं बैठे सबकी बातें सन ु ते।

जाहे दा और कमाल का लगाव अपनी दादी से ज्यादा था। मित-उल-

बारी का नाम िजतना लंबा था उससे ज्यादा बड़े थे उनकी शैतािनयों के िकस्से। उन्हें सब मोती के नम से जानते थे। उनका नाम छोटा करके मोती रख िदया गया, लेिकन उनकी शैतािनयों के िकस्से छोटे नहीं पड़ते।

दादा हुजरू सभी बच्चों को हिटया ले जाते तो कभी खेतों की तरफ

घम ु ाने ले जाते। एक िदन दादा हुजरू मोती को हिटया लेकर गए। रास्ते में मिस्जद के इमाम िमल गए।

जमींदार बाबू बातों में इतने मशगूल थे। उन्हें मालम ू ही नहीं चला िक मोती पीछे से कहीं भाग गए हैं। जमींदार बाबू ने नजरें घम ु ाई लेिकन मोती नजरों से ओझल हो चक ु े थे।

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