Story Transcript
निशी बलवं त सिहं उर्दू और हहन्दी के मशहूर नाटककार, उपन्ािकार, कहानदीकार और पत्रकार थे। उन्हनं े जगा, पहला पत्थर, तारोपुद, हहदं स् ु ान हमारा जैिे कहानदी िं ग्रह और कॉल कोस, रात, चोर और चाँद, चक पीरान का जस्ा जैिे प्रख्ात उपन्ाि्ह ं का िृजन हकया और अपने रचनात्मक गुण्ह ं िे िाहहत्य िं वरदून में ववशशष्ट य्हगरान हरया।
निशी
बलवं त सिहं
पेंगुइन रैंडम हाउस इम्प्टं
आमुख हम त्ह चुप थे मगर अब मौजे-िबा के हाथ्ह ं फै लदी जातदी है तेरे हुस्न की खुशबू हरिू
रेल का हडब्ा यह एक प्रेम-कहानदी है, और इिमें वे िब बेवकू हफयां और बेतक ु ी हरकतें ं शाममल हैं, ज्हहक ऐिदी कहावनय्ह में अक्सर नजर आतदी हैं। और यह बात त्ह आम ल्हग जानते हैं हक गम्दीर पाठक ऐिदी कहावनयां पढ़ना िमय नष्ट करना िमझते हैं, और लेखक इनें ललखना बेकार िमझते हैं। जहां तक इिे पढ़ने का िम्बन्ध है, पाठक पहलदी ितह रेखते हदी न पढ़ने का फै िला कर िकते हैं। लेहकन लेखक की जजम्ेरारदी त्ह बनदी हदी रहेगदी। लेखक क्ह त्ह इिका जवाब रेना हदी ह्हगा। मेरे पाि इिका क्हई माकल जवाब नहदी ं है। हफर भदी मैं इिे ललखे बगैर नहदी ं रह िका। वह क्ह ं ? इि िवाल का भदी एक वाक में जवाब रेना िं भव नहदी,ं लेहकन मैं अिल कहानदी ललखे रेता हूं, नतदीजा वनकालने का काम आपक्ह िौपं ता हूं। जैिाहक िब ल्हग जानते हैं हक िन् 1949 में, जबहक हमारा रेश आजार हुआ, हहन्स्त दु ान में बहुत खून-खराबा भदी हुआ। पं जाब में यह िब कु छ अगस्त में पेश आया, लेहकन लाहौर में माचदू हदी में हालत बहुत खराब ह्ह गई थदी। मैं उन हरन्ह ं वहदी ं था, जबहक अकालदी लदीडर मास्र तारासिहं ने लदीगदी झं डे क्ह तलवार िे काट मगराया और लाहौर शहर के एक सिरे िे र्िरे सिरे तक उपद्रव और रंगे के राषिि नाचने लगे। उन हरन्ह ं मैं लाहौर के एक फै शनेबल हहस्े में रहता था। मेरा फ्ैट तदीिरदी मं जजल पर था। नदीचे की मं जजल्ह ं पर कु छ रफ्तर थे, ज्ह उन हरन्ह ं बन् रहने लगे। हरन के वक्त िड़कें और गललयां िुनिान रहतदी।ं जगह-जगह 5
िे छु रे-कृ पाणे चलने की खबरें आतदी थदी।ं मौत हरन-रात आंख्ह ं के िामने नाचा करतदी थदी। लाहौर गमदू रेत पर पड़दी हुई मछलदी की तरह तड़प रहा था। िारदी-िारदी रात ‘अल्ाह्ह अकबर’, ‘हर-हर महारेव’ और ‘ित स्दी अकाल’ के नारे गूंजते रहते थे। जब हालत कु छ ररुदु स्त हुई, त्ह मैंने ि्हचा हक लाहौर में इि तरह िे जदीवन व्यतदीत करना बहुत कहठन है। मेरदी शारदी भदी नहदी ं हुई थदी, माता-वपता िं युक्त प्ररेश में थे। इिललए मैंने फै िला हकया हक चौबदीि घं टे फ्ैट में बन् रहने के बजाय कु छ िमय के ललए बाहर चला जाऊं, शान्ति ह्हने पर लौट आऊंगा। चुनांचे, एक वबस्तर और कपड़्ह ं का टट्ंक लेकर घर िे स्ेशन क्ह रवाना हुअा। मेरे र्ह हहन्् ममत्र भदी मुझे स्ेशन तक छ्हड़ने के ललए आए। रास्ते में जगह-जगह मुिलमान्ह ं के रल खड़े थे और हर जगह हमें लड़ाई ह्ह जाने का शक ह्हता था। परतिु हम स्ेशन तक िकु शल पहुंच गए। शाम ह्ह रहदी थदी। मैंने अपने हहन्् िासथय्ह ं िे कहा हक वे लौट जाएं , ताहक अंररे ा ह्हने िे पहले-पहले घर पहुंच िकें । उनके चले जाने के बार मैंने गाड़दी के कई चक्कर लगाए, हर हडब्े में बहुत भदीड़ थदी और कहदी ं भदी अन्र घुिना अिम्व नजर आता था। लेहकन हकिदी न हकिदी तरह िे भदी गाड़दी पर िवार ह्हना जरूरदी था। घूमते-हफरते इण्टर क्ाि का एक हडब्ा खालदीखालदी-िा नजर आया। मैं उिकी तरफ लपका त्ह कु छ लड़क्ह ं ने मेरा रास्ता र्हकना चाहा, लेहकन मैं जबरदूस्तदी अन्र घुि गया। कु लदी के सिर िे िामान उठाकर अन्र फें का और कु लदी क्ह पैिे रेकर रवाना कर हरया। इि हडब्े में एक हहन्् पररवार था—औरतें, बच्े, जवान िभदी। वे मेरदी ज़ारतदी क्ह रेखते रहे, और जब पहले ररवाजे के आगे मैंने अपना भारदीभरकम टट्ंक जमाकर अपना वबस्तर रख हरया, त्ह उनमें िे एक ने कहा हक यह पूरदी ब्हगदी ररजवदू ह्ह चुकी है, आपक्ह यहां िे उठना पड़ेगा। मैंने जवाब हरया—आजकल ररजवदू-उजवदू कौन पूछता है; हफर मुझे यहां िे जाना जरूरदी था, वनादू मैं आपक्ह हरमगज यह कष्ट न रेता। षिण-भर बार एक वृद्ध हहन्् िज्जन अन्र आए और मुझे रदीमदी आवाज में िमझाने लगे—रेखखए, यह हडब्ा ररजवदू है, यहां पर लेडदीज और 6
बच्े भदी हैं, इिललए बेहतर यहदी ह्हगा हक आप हकिदी और हडब्े में जा बैठे। मैंने उत्तर हरया—बेशक, मुझे यहां बैठने का क्हई हक नहदी,ं परतिु आप हदी रेख लदीजजए, का कहदी ं और जगह है। मेरा जाना बहुत जरूरदी है। मजबूरन मुझे यहां आना पड़ा। मैं आपकी िदीट नहदी ं चाहता। मैं अपने टट्ंक पर बैठा रहूंगा। मैं आपक्ह यकीन हरलाता हूं हक मेरे यहां बैठने िे आपमें िे हकिदीक्ह क्हई कष्ट नहदी ं ह्हगा। इिपर वे महाशय कु छ ि्हचने लगे। शायर उन्हनं े यह भदी ि्हचा हक इि हडब्े में एक म्हटे-ताजे िररार का ह्हना फायरेमन् भदी ह्ह िकता है। और र्िरे यह बात भदी थदी हक वैिदी अफरा-तफरदी में रजजे-वजजे का भदी क्हई ललहाज नहदी ं रहा था। जहां जजिक्ह जगह ममलतदी थदी, घुि पड़ता था। उन्हनं े कु छ रेर नौजवान लड़क्ह ं िे खुिर-पुिर की और हफर मैं अपने टट्ंक पर आजार छ्हड़ हरया गया। िच्दी बात यहदी थदी हक मेरदी वजह िे उनें क्हई तकलदीफ नहदी ं ह्ह िकतदी थदी। मेरे िामने की िदीट पर र्ह औरतें, र्ह बच्े थे। परले सिरे के क्हने की िदीट पर एक औरत सिर-मुं ह लपेटे ि्हई पड़दी थदी। उिके पांव की अ्हर लगभग अट्ाईि वरदू का एक इकहरे बरन का काला आरमदी म्हटे-म्हटे शदीश्हवं ालदी ऐनक चढ़ाए क्हई हकताब पढ़ रहा था। उनके ऊपरवालदी िदीट पर एक अट्ारह िाल का लड़का था, ज्ह मुझे अब तक अवनच्ा की दृवष्ट िे रेख रहा था। एक बुहढ़या और एक-आर और बच्े भदी थे। लेहकन मैंने यह िब कु छ िरिरदी नजर िे रेखा, क्हहं क मेरा हरमाग अपनदी हदी उलझन में था। उनमें िे हकिदीक्ह मुझिे न क्हई हमररदी थदी, न हरलचस्दी ; वे एक तरह िे इि इतिजार में थे हक मैं जल्द िे जल्द अपना ब्हररया-वबस्तर उठाकर वहां िे चल रं। अगले स्ेशन पर गाड़दी पहुंचदी त्ह रेखा हक प्ेटफामदू पर बहुत भदीड़भाड़ है। मैंने ररवाजे की अन्रवालदी रस्तदी पर पांव जमा हरया और उिकी खखड़की का शदीशा चढ़ा हरया। बाहर िे एक रेहातदी ने ररवाजा ख्हलने के ललए रस्तदी घुमानदी चाहदी, लेहकन मैंने उिे अन्र िे र्हका था, इिललए रस्तदी हहलदी नहदी।ं अब उन्हनं े चचल्ा-चचल्ाकर ररवाजा ख्हलने के ललए कहा, जजिपर मैंने क्हई ध्यान नहदी ं हरया, क्हहं क एक त्ह हडब्ा ररजवदू था, र्िरे अगर 7
रेहातदी िवाररयां अन्र आ जातदी,ं त्ह हम िबक्ह, ववशेरकर स्त्रिय्ह ं क्ह बहुत तकलदीफ उठानदी पड़तदी। जब मैंने हकिदी तरह िे भदी ररवाजा नहदी ं ख्हला, त्ह उि िररार ने मुझे गालदी रेनदी शुरू कर रदी। मैं मुस्करा हरया। इिपर उन्हनं े वनशाना बांरकर लाठदी खदीचं मारदी, जजििे शदीशा टू ट गया। मैंने वार खालदी हरया और उनकी लाठदी पकड़ लदी। अब उनकी मरर पर र्ह भाई और आ गए। न जाने इि टण्टे का नतदीजा का वनकलता, लेहकन ऐन उिदी वक्त गाड़दी चल रदी। उनके हाथ िे छू टकर लाठदी मेरे हाथ में रह गई। मैंने पांव िे शदीशे के टुकड़े एक तरफ हटा हरए और टट्ंक िाफ करके हफर उिपर बैठ गया। इि तरह हर स्ेशन पर इिदीिे ममलता-जुलता झं झट करना पड़ा और अमृतिर पहुंचे त्ह हमारे हडब्े पर बाकायरा हमला ब्हल हरया गया। हमने िारदी खखड़हकय्ह ं के र्ह-र्ह तख्े ऊपर चढ़ा हरए। ररवाजे की रस्तदी पर मैंने हफर पांव जमा हरया। बाहर िे भदी खूब ज्हर आजमाइयां हुई। रेहातदी िररार्ह ं ने रस्तदी में लाहठयां डाल-डालकर उिे घुमाने की क्हशशश की, लेहकन मैंने अन्र िे रस्तदी क्ह ऐिा काबू हकया हक उनकी राल गलने नहदी ं पाई। वहां गाड़दी रुकतदी भदी काफी रेर थदी। िब िवाररयां घबराई हुई थदी।ं लेहकन मैरान मेरे हाथ रहा। गाड़दी वहां िे आगे रवाना हुई। अब िब िवाररय्ह ं क्ह मेरे महत्त्व का ज्ान हुआ। उनें मालूम ह्ह गया हक वे नाहक मेरदी मौजूरगदी िे परेशान ह्ह रहे थे। अगर मैं न ह्हता त्ह उि हडब्े में िवाररय्ह ं का िमुन्र ठाठे मारने लगता। अब उनकी िूरत्ह ं पर मेरे ललए कु छ-कु छ हमररदी झलक रहदी थदी, उनकी अांख्ह ं का कं कड़ बाहर की िवाररय्ह ं के रास्ते की चट्ान बन गया था। यह म्हचादू फतह करके मैंने टांगें फै लाकर आराम करने के ललए पदीठ तख्े िे लगा रदी। उि वक्त हडब्े के बाकी ल्हग भदी खुश नजर आते थे। उनके पाि गरम-गरम चाय के थमदूि थे। म्हटे शदीश्हवं ालदी ऐनकवाले महाशय ने भदी प्ाले में चाय उं डेलदी और पाि लेटदी हुई औरत क्ह हहलानेडुलाने लगे। वह औरत कु छ किमिाकर उठ बैठदी। अभदी तक उिका चेहरा और हाथ-पांव चरर में ललपटे हुए थे। लेहकन जब उिके चेहरे िे कपड़ा 8
हटा, त्ह मैंने रेखा हक वह बाईि-तेईि वरदू की अत्यति िुन्र ्रिदी है। यूं त्ह कभदी-कभार बहुत अच्छी-अच्छी िूरतें रेखने में आ जातदी हैं, लेहकन उिे ं ा, जैिे जं गल की कांटेरार झाहड़य्ह ं की गहरदी छांव-तले रेखकर मैं ऐिे चौक रबे पांव घूमता हुना भेहड़या एकरम आकाश में पूरे चन्द्रमा क्ह रेखकर ं जाए। चौक शायर मैं उिे जरूरत िे कु छ ज्ारा िमय तक रेखता रहा ... मैं कह नहदी ं िकता ... लेहकन मुझे अपनदी इि हरकत का एहिाि उि वक्त हुया, जब मैंने म्हटे शदीशे की ऐनकवाले पुरुर के म्हटे ह्हठं ्ह ं पर म्हटदीिदी मुस्कराहट खेलते रेखदी। वह अपनदी कु छ फीकी, कु छ पदीलदी-पदीलदी-िदी आंख्ह ं िे मुझे रेख रहा था। अभदी मैं ि्हच नहदी ं पाया था हक ऐिे मौके पर का कहना या करना चाहहए हक उिने अपने हकंचचत् टेढ़े-मेढ़े लेहकन चमकरार रांत हरखाते हुए पूछा—चाय पदीजजएगा ? मैंने घबराहट में जल्ददी िे कहा—क्ह ं नहदी,ं —और यह कहते हदी मुझे बड़दी झेप-िदी महिूि हुई हक कै िे फटाक िे चाय पदीने पर तैयार ह्ह गया मैं ! —यहदी ं तशरदीफ ले आइए न ! —उिने कहा। मैं उठकर उिके िामनेवालदी िदीट पर जाकर बैठ गया। करदीब पहुंचकर वह पहले िे भदी ज़ारा हिदीन नजर आई, क्हहं क उिकी िूरत ऐिदी नहदी ं थदी हक जजिमें ऐब ह्ह और ज्ह र्र िे त्ह ढंके-छु पे रहें, लेहकन पाि जाने पर िाफ हरखाई रेने लगें। उिने मेकअप भदी नहदी ं कर रखा था। बाल भदी बेतरतदीब थे। कान्ह ं में कश्दीरदी लड़हकय्ह ं की तरह लम्बे-लम्बे रंग-वबरंगे फु रन्हवं ालदी बाललयां अलग बहार हरखा रहदी थदी।ं मैं ि्हच रहा था हक इन र्हन्ह ं का आपि में का ररश्ा ह्ह िकता है ? बहन-भाई ह्ह नहदी ं िकते, क्हहं क जहां लड़की में क्हई मामूलदी िे मामूलदी नुक्स भदी नहदी ं था, वहां वह आरमदी बरिूरत ह्हने िे बाल-बाल हदी बचा था। शायर वह लड़की हकिदी ररयाित की राजकु मारदी थदी, लेहकन उनके ऐिे ठाटबाट त्ह नजर नहदी ं आते थे। उनके ममयां-बदीवदी ह्हने का त्ह प्रश्न हदी नहदी ं उठता था, क्हहं क कौन ऐिदी लड़की ऐिे घ्हचं ूमल िे शारदी करेगा ! 9
ऐन उि वक्त म्हटे चश्ेवाले ने चाय का प्ाला मेरदी तरफ बढ़ाया और मैंने प्ाला पकड़ते हए एक बार हफर उिके चेहरे क्ह जांचा हक मैंने ठदीक हदी उिका नाम घ्हचं ूमल रखा था। —मेरा नाम जे० एल० खड़बन्ा ‘जदीयालाल खड़बन्ा है, उिने ऐिे कहा, जैिे मेरे मन क्ह उिने पढ़ ललया ह्ह। मैंने चाय का एक छ्हटा-िा घूं ट पदीते हुए हरल में ि्हचा, जदीयालाल खड़बन्ा हदी िहदी, यह नाम घ्हचं ूमल िे कु छ बहुत ज़ारा बहढ़या त्ह है नहदी।ं उि वक्त उि औरत ने िुरदीलदी आवाज में कहा—वबन्स्कट नहदी ं लदीजजएगा ? —आप रदीजजएगा, त्ह क्ह ं नहदी ं लेंगे ! जजि अन्ाज िे औरत ने पूछा और खड़बन्ा ने जवाब हरया और उनके जवाब िे जजि ढंग िे वह शरमाई, यह िब कु छ रेखकर मेरे कान खड़े ह्ह गए, का ये ममयां-बदीवदी हदी त्ह नहदी ं! —ये मेरदी बदीवदी हैं,—खड़बन्ा ने जैिे हफर मेरे मन क्ह पढ़कर कहा। मैंने काफी क्हशशश िे अपने ह्हठं ्ह ं पर मुस्कराहट लाते हुए कहा— आपिे ममलकर बड़दी खुशदी हुई। उि औरत ने अपने सिर क्ह हल्े -िे झक दु ाकर मुझे एक नजर रेखा और एक बहुत नरम-िदी मुस्कान षिण-भर क्ह उिके ह्हठं ्ह ं िे खखलवाड़ करतदी हुई गायब ह्ह गई। अब कु छ इरर-उरर की बातें ह्हतदी रहदी।ं हम ल्हग वबस्कु ट भदी खाते रहे और चाय भदी पदीते रहे। जब नाश्ा खतम हुआ, त्ह मैं उनका शुहक्रया अरा करके हफर िे अपने टट्ंक पर जा बैठा। वे ममयां-बदीवदी कु छ रेर तक आपि में खुिर-पुिर करते रहे और कभदीकभदी मेरदी तरफ भदी रेख लेते थे। मुझे हैरानदी ह्ह रहदी थदी हक आखखर मेरे बारे में ये ल्हग का बातें कर रहे हैं। मैंने अखबार अपने घटन्ह ं पर ललया, लेहकन बदीच-बदीच में मैं कनखखय्ह ं िे उनकी तरफ भदी रेख लेता था। 10
अब हफर वह औरत पहले की तरह सिर-मुं ह लपेटकर ि्ह गई। और उिके पवतरेव अके ले हदी अपने िामने की िदीट पर ताश के पत्ते फै लाकर क्हई खेल खेलने लगे। मैंने अपना ध्यान र्िरदी ओर लगाने की बहुत क्हशशश की, लेहकन बारबार हरमाग हफर उिदी उलझन में मगरफ्तार ह्ह जाता था। अजदीब बात थदी। अजदीब ज्हड़दी, हंि और कौवे की ! जजि अंराज िे उि औरत ने बातचदीत की, वबस्कु ट तक क्ह वबन्स्कट कहा, जजििे जाहहर ह्हता था हक वह एक खाि वातावरण में पलदी थदी। और पवतरेव यूं हरखाई रेते थे, जैिे गुड़ की भेललयां बेचे चले आ रहे हैं। शायर हमारे िमाज में यह बात इतनदी आश्चयदूजनक न भदी ह्ह, लेहकन मुश्किल यह थदी हक उि औरत का व्यक्क्तत्व मुझे ऐिे हरखा, जैिे उिे उिकी मजदी के खखलाफ झक दु ाया न जा िके । उिमें अन् घरेलू औरत्ह ं का िारारण-िा फू हड़पन नजर नहदी ं पाता था। िं भलदी हुई शरदीफ, लेहकन ह्हशशयार हरखाई रेतदी थदी। इन ख्ालात िे तं ग आकर मैंने अपने-आपपर लानत भेजदी हक मेरदी बला िे वे ज्ह भदी ह्ह,ं मुझे कु छ लेना न रेना। इतने में वे िाहब उठकर बाथरूम में घुि गए। वहां िे वनकले, तौललये ं े , ताश की गड्दी हाथ में लदी, पत्ते फें टे और हफर हाथ र्हककर मेरदी िे हाथ प्हछ तरफ रेखने लगे। हमारदी नजरें ममलदी,ं त्ह पूछने लगे—आपक्ह रमदी आतदी है ? —जदी नहदी।ं —आप पत्ते त्ह पहचानते हैं ?—उन्हनं े मेरदी ओर बढ़ते हुए िवाल हकया। —जदी, हां। वे बड़दी फू तदी िे टट्ंक घिदीटकर मेरे िामने हदी बैठे और मुझे रमदी का खेल िमझाने लगे। वनयम िमझाने के बार ब्हले—एक-र्ह बाजदी खेललए, त्ह आप िब कु छ िमझ जाएं गे। हमने खेलना शुरू कर हरया। इि रौरान में छ्हटदी-म्हटदी गप्ें भदी लगतदी रहदी ं और मैंने महिूि हकया हक वह अच्ा-खािा पढ़ा-ललखा इन्ान है। िदीरा-िारा जरूर है, लेहकन घ्हचं ू नहदी।ं इतने में उिकी बदीवदी उठके बैठ गई। हम र्हन्ह ं की नजर उिपर जा 11
पड़दी। पवत ने पूछा—रमदी खेलेंगदी ? उिने इन्ार करते हुए सिर हहला हरया और उिके ह्हठं ्ह ं पर चांर की पहलदी हकरण की िदी मुस्कान खेलने लगदी। सिर हहलाने िे उिके ढदीले-ढाले बाल आगे क्ह मगरकर चांर क्ह एक बहुत प्ारा-िा ग्रहण लगाने क्ह हदी थे हक उिने अपनदी िुनहरदी उं गललय्ह ं िे उनें पदीछे हटा हरया। हफर बाथरूम जाने के ललए जब वह खड़दी हुई, त्ह मुझे महिूि हुआ हक यह हफतना जागकर रेखनेवाल्ह ं में एक ज्ार-भाटा पैरा कर िकता है। बाथरूम िे वापि आकर उिने पवत िे पूछा—आप खाना अभदी खाइएगा या मैं हफर ि्ह जाऊं ? खड़बन्ा ने मुझिे िवाल हकया—बताइए, आप हकि वक्त खाना खाइएगा ? —जदी...मैं...नहदी ं मेरे ललए कष्ट मत कीजजए ! —कष्ट त्ह हम जरूर करेंगे !...क्ह,ं जदी ? यह ‘क्ह ं जदी’ का वनशाना उिकी पत्दी थदी। वह हफर मुस्कराई—जदी, जरूर ! इिपर मैंने कहा—अच्ा, त्ह हफर ऐिदी जल्ददी भदी का है ! खड़बन्ा ने बदीवदी िे कहा—त्ह ठदीक है, आप ि्ह जाइए...हम जगा लेंगे। वह हफर ि्ह गई। एकाएक उन्हनं े रदीमदी आवाज में मुझिे अंग्रेजदी में पूछा—इजण्ट शदी प्रेटदी (यह िुन्रदी है न) ? जदीयालाल खड़बन्ा का यह िवाल िुनकर मैं चहकत-िा रह गया। मैं कु छ ब्हल न िका। उन्हनं े हफर कहा—हमारदी लव मैरेज (प्रेमवववाह) हुई है। यह िुनकर मेरे पांव-तले िे जमदीन वनकल गई। वे शायर मेरे हरल की हालत क्ह िमझ रहे थे। हफर ब्हले—आपक्ह यह िुनकर और आश्चयदू ह्हगा हक शारदी िे पहले मैंने उनिे सिफदू एक बात कहदी थदी, जजिके जवाब में उन्हनं े इन्ार कर हरया। यह कहानदी अब वबलकु ल अललफलैला की िदी ह्हतदी जा रहदी थदी। यह त्ह 12
जाहहर था हक अगर मैं उि वक्त क्हई पूछताछ करता, त्ह वे मुझे िब बातें बता रेत,े क्हहं क जजि अन्ाज िे उन्हनं े खुर हदी अंग्रेजदी में मुझिे अपनदी रमदूपत्दी के िौन्यदू के बारे में प्रश्न हकया था, और यह भदी बताया हक उनका प्रेम-वववाह हुआ था, इििे मालूम ह्हता था हक वे मुझे अपना हमराज बनाना चाहते थे। यह त्ह ठदीक है हक हर आरमदी क्ह ऐिे मौके पर हरलचस्दी ह्ह िकतदी है। लेहकन न जाने में क्ह ं चुप था। अपने बारे में उनकी इतनदी ज्ारा बेतकल्ुफी जरा अजदीब-िदी बात थदी। शायर मेरे हरल में छु पा हुना िा यह डर भदी है हक ये ल्हग न जाने ररअिल कौन हैं। यह भदी ह्ह िकता था हक उन्हनं े बात्ह-ं बात्ह ं में यह जानकर हक मैं लेखक हूं, अपनदी जदीवन कहानदी िुना रेनदी चाहदी ह्ह, क्हहं क यह बात मेरे रेखने में अक्सर आई है हक ल्हग ज्ह बात हकिदी ममत्र िे भदी कहने में िं क्हच करते हैं, उिे लेखक के िामने ख्हल रेते हैं या ऐिा भदी ह्ह िकता है हक कभदी-कभदी हमारा मन वबला जझझक हकिदीिे ममल जाता है और हम उिक्ह अपने बारे में िब कु छ बता रेने में क्हई जझझक महिूि नहदी ं करते। खैर, ज्ह बात भदी रहदी ह्ह, मैंने उनिे कु छ नहदी ं पूछा। हम हफर रमदी खेलने लगे। घं टे डेढ़ घं टे बार उनकी पत्दी हफर बैठदी और कहा हक अब त्ह खाना खा लदीजजए ! खाना खाते िमय मैं उि ज्हड़े क्ह रेख-रेखकर हैरान हदी ह्हता रहा। उि औरत के हाथ-पांव, बातचदीत, रस्म-रवाज वगैरह रेखकर हैरानदी के िाथ मेरदी उलझन भदी कु छ बढ़तदी हदी गई। खाना खाने के बार ्रिदी हफर ि्ह गई और हम र्हन्ह ं हफर रमदी खेलने के ललए टट्ंक्ह ं पर बैठ गए। लेहकन खेल शुरू करने के बरले खड़बन्ा ने बगैर मेरे पूछे अचानक हदी अपनदी प्रेम-कथा िुनानदी शुरू कर रदी। कु छ अजदीब बेतक ु ीिदी कहानदी थदी, ज्ह मैं आगे पेश कर रहा हूं। कथा िुनाने के बार वे न जाने कौन-िे स्ेशन पर उतर गए। इिके बार मुझे उनका कभदी कु छ पता नहदी ं ममला। 13
जदीयालाल खड़बन्ा उम्र तेईि वरदू, रबदु ला-पतला बश्ल् मररयल, यतदीम और गरदीब इक हरन ममल गए थे िरे रह-गुजर कहदी ं
चदीड़ का अके ला पेड़ पहाड़्ह ं की ढलान्ह,ं झाहड़य्ह,ं पेड़-पौर्ह ं और बड़े-बड़े पत्थर्ह ं की बनदी हुई बेढब रक दु ान्ह ं क्ह मन्-मन् िुखराई रूप नहला रहदी है। यह राजपुर है। राजपुर का कस्ा रेहरार्न िे िात मदील र्र, पहाहड़य्ह ं की रानदी मिूरदी की जड़ पर स्तथित है। हहमालय पहाड़ के िुन्र और हरे-भरे सिलसिले इिदी जगह आनेवाल्ह ं के स्ागत में बांहें फै ला रेते हैं। बि्ह ं और कार्हवं ालदी िड़क कस्े की बगल हदी िे करवट लेतदी हुई, िांप की तरह बल खातदी, छ्हट्ह-बड़दी पहाहड़य्ह ं की छातदी िे ललपटतदी हुई मिूरदी के अड्े िनदी-ववयु तक पहुंचकर रम लेतदी है। पैरलवाल्ह ं की िड़क राजपुर के बदीच्हबदीच ह्हतदी हुई ऊपर चलदी गई है। इि िड़क के र्हन्ह ं तरफ बड़े-बड़े पत्थर्ह ं के बने हुए और टदीन की चारर्ह ं या खपरैल िे ढंकी हुई छत्हवं ाले बेढब मकान और फीकी-फी की रदीवार्हवं ालदी रुनां खाई हुई रक दु ानें र्र तक चलदी गई हैं। इि लम्बे और बेरौनक बाजार में खुजलदीमारे कु त्त्ह ं के िाथ-िाथ शरदीर पर मैल की तहें जमाए भुटानदी और बड़े-बड़े, बेडौल जेवर्ह,ं कौहड़य्ह ं और मनक्ह ं िे िजदी और लरदी-फं रदी उनकी औरतें, र्र टेहरदी गढ़वाल िे आए हुए पहाड़दी कु लदी, यू० पदी० के बवनये, ईर के ईर या जुम्ा-जुम्ा नहानेवाले ममयां ल्हग अपनदी गहरदी नदीलदी या कत्थई लूंगदी लहराते हुए इरर-उरर आ-जा रहे हैं। कु छ चढ़ाई चढ़कर बड़ा और पदीपल के वे र्ह पेड़ एक-र्िरे िे इि करर घुले-ममले-िे हैं हक रेखनेवाल्ह ं क्ह वह एक हदी पेड़ नजर आता है, भारदी-भरकम तना, रावण की बांह्ह ं की तरह फै लदी हुई उिकी शाखाएं और कालदी रेवदी के हाथ्ह ं की तरह उिके पत्ते, उिके 14
तने के चार्ह ं ओर एक ग्हल चबूतरा बना हुआ है। चबूतरा जगह-जगह िे टू ट गया है, और उिमें छ्हटदी-बड़दी अनमगनत ररारें पड़ गई हैं। तने िे लगदी एक छ्हटदी-िदी मूर्त है, जजिके मं ह, अांख, कान िाफ नजर नहदी ं आते। यह मूर्त गहरे गेरुए रंग िे रंगदीहई है और इिपर जगह-जगह चावल, सिन््र, और चं रन चचपके नजर आते हैं। इिके पांव के पाि की जमदीन भदी कु छ इिदी रंग में रंगदी हुई है। वहां लड्दुओ ं की बूं हरयां, बताशे, अमरूर के टुकड़े और कभदीकभदी गं डेररयां भदी हरखाई रे जातदी हैं। जब मैं लारदी िे उतरा, त्ह यह महिूि करके हक यह ऊंचे-ऊंचे मजबूत और अटल, अलग-थलग पहाड़ हमारदी हदी ररतदी का हहस्ा हैं, कु छ अच्ा और कु छ अजदीब-िा लगा। पैट्हट् ल की बू और लारदी की खड़खड़ाहट तथा सिक्ख डट्ाइवर की बात-बात पर बेमतलब की गाललय्ह ं की बौछार िे मेरा हरमाग भन्ा उठा था। उतरते हदी मैं चाय के स्ाल के आगे वबछछी हई घन खाई बेडौल-िदी बेंच पर बैठ गया, और एक मगलाि का आडदूर रे हरया। चाय आशशक के खूने-जजगर िे भदी ज्ारा िुख,दू भगवान के कहर िे भदी ज़ारा कड़वदी और माशूक की गुस्वे र नजर िे भदी ज्ारा गरम थदी ! इिे पदी लेने के बार िर िे पांव तक एक ऐिदी कै हफयत पैरा ह्ह गई, जजिमें शरदीर और हरमाग की िारदी तकलदीफें गकदू ह्हकर रह गईं। चाय पदी चुकने के बार मैंने अपने मैले पाजामा क्ह झाड़-झड़दु कर कु छ ररुदु स्त हकया, सिर के रूखे-िूखे बाल्ह ं क्ह उं गललय्ह ं िे हमवार हकया और हफर रांत्ह ं में बदीड़दी रबाकर उिका सिरा पनवाड़दी की रक दु ान पर लटकतदी हुई रस्दी के िुलगते हुए सिरे िे शभड़ा हरया। और हफर एक ऐिा गहरा कश ललया हक पांव के नाखून्ह ं तक एक अजदीब नशा-िा छा गया। मेरा िामान अभदी नहदी ं पहुंचा था, क्हहं क जजि लारदी में मुझे िदीट ममलदी, उिके क्दीनर ने मेरा िमान गलतदी िे र्िरदी लारदी की छत पर रख हरया था। माललक इन लाररय्ह ं का एक हदी था। मुझे बताया गया हक िामान थ्हड़दी हदी रेर बार मुझे राजपुर में ममल जाएगा। रेहरार्न िे आनेवालदी िड़क पर वनगाह जमाए मैं मटरगश्दी करता हुआ रक दु ान्ह ं िे जरा-िे आगे वनकल गया। हफर मुझे महिूि हुआ हक मेरे 15