राज बली पा डे य
इस पु तक का काशन एवं िव य इस शत पर िकया जा रहा है िक काशक क ल खत पूवानुमित के िबना इस पु तक या इसके िकसी भी अंश को न तो पुन: कािशत िकया जा सकता है और न ही िकसी भी अ य कार से, िकसी भी यावसाियक उपयोग िकया जा सकता है। यिद कोई यि
ऐसा करता है तो उसके िव
ISBN: 978-93-8985-172-4 eISBN: 978-93-89851-73-1 © काशकाधीन काशक: भाकर काशन पता: लॉट न. 55, मेन मदर डेयरी रोड, पांडव नगर, ई ट िद ी-110092 फोन: 011-40395855 हा स ऐप: +91 8447931000 ई-मेल:
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सं यास और अ य कहािनयाँ राज बली पा डेय
प म इसका
क़ानूनी कारवाई क जा सकती है।
िवषय-सूची 1. सं यास ................................................................ 9 2. मधुआ ................................................................ 25 3. बाप का सपना ........................................................ 40 4. फटीचर ............................................................... 49 5. गुिं गया चुड़ल ै ......................................................... 61 6. ल मरदार ............................................................. 69 7. शरणागत ............................................................. 76 8.
वण- ाि ........................................................... 83
9. रतनू .................................................................. 89 10. मेलापक .............................................................. 92
समपण जनक उं गली पकड़कर चलना सीखा एवं जनक गोद म बैठकर अ र- ान पाया, ऐसे अ ज य ी राम धारी पा डेय एवं ी राम ब ल पा डेय को सादर।
।। लेखक प रचय ।। राज बली पा डे य ज म ित थ:
12 जुलाई, 1949
ज म थल:
भेदौरा, आजमगढ़ (उ. .)
िश ा:
एम. ए. (सं कृत)
कािशत पु तक: बाल-सािह य:
भा य का खेल, मनु य और जानवर, शराब करे खराब, तमाशा त बाकू का।
स पादन:
शा
स ा त लेश सं ह सार, दशकु मार च रतम्, बृहत्
कमका ड र नाकर, रामच रत मानस कोश, सं कृत वयं िश क। स ित:
266 डबल टोरी, वेलकम, सीलमपुर III, िद
ी-53
ा कथन िकसी के जीवन-च र के िवषय म घटना- म को याद करके अ य ोताओं को सुनाने को ही कहानी का नाम िदया गया है। छोटे ब चे अपनी दादी-नानी से हमेशा एक ही आ ह करते ह, “दादी/नानी जी! कोई कहानी सुनाओ” और दादी/नानी जी उस जीवन-च र को रोचक बनाने के लए कु छ अपनी तरफ से िमलाकर ब च को सुनाया करती थ । रोचक बनाने म हर दादी या नानी अपने श द तथा अलग-अलग घटनाओं को सजाने म अपनी शैली का योग करती थ । अतः वभावत: कु छ अंतर आ ही जाता था। इस कार एक ही कहानी धीरे -धीरे देश काल के अनुसार कई संतुि
प धारण कर लेती थी। पर तु ोताओं क
तभी हो पाती थी, जब उसम कु छ नवीनता का आभास िमलता था।
यही जीवन च र आगे चलकर सािह य क एक िवधा बन गई। सािह यक िवधाओं म नाटक, कहानी, उप यास, बंध, या ा वृ ांत, डायरी तथा रपोताज के अलग-अलग बन गये, पर तु रोचकता क
ि
प
से जतना मह व कहानी का है, उतना अ य िकसी भी
िवधा का नह है। हाँ, उप यास भी अ यंत रोचक िवधा है, पर तु कहानी का कलेवर छोटा होता है, अतः पाठक एक बार के बैठने म और कम समय म भी पूरी कहानी पढ़ लेता है और उप यास के लए अ धक समय क आव यकता होती है। िहंदी के लेखक अपनी कहािनय क रचना म ाय: यह यान रखते ह िक इसका िन कष ऐसा होना चािहए, जो पाठक को कोई िश ा दे जाए। पाठक इससे िश ा हण कर अपनी जीवन शैली को बदल दे, अपने जीवन म सुधार ला सक। कहानी लेखन का लाभ पाठक वृ द को समुिचत
प म िमल सके। दुखांत कहानी से पाठक का मन बो झल न हो जाए,
इस लए बीच-बीच म हा य या हसन का पुट भी रहे। ार भ म तो कहािनयाँ केवल ऐितहा सक और धािमक ही हआ करती थ । बाद म लेखक का िचंतन सामा जकता क ओर मुड़ा। िफर भी तो सभी लेखक समाज म या
बुराइय के उ मूलन हेतु त पर हो गये।
येक कहानी म िकसी न िकसी बुराई के उ मूलन
िश ा िमलती है। फल व प कहािनय के ारा समाज सुधार होने लगा। तुत पु तक म ‘सं यास’ कहानी से यह िश ा िमलती है िक मनु य म केवल प र म और इमानदारी हो, तो ई वर वयं उसका भा य बदल देता है और प र मी का जीवन सुधर जाता है। ‘मधुआ’ कहानी हम यह बताती है क जीवन तर म सु धार होने पर अपने मूल तर को कभी भी भू ल ना नह चािहए, साथ ही अिभमान के अवगुंठन म आकर पू य का िनरादर और वयं को सव शि मान नह मान ले ना चािहए। ‘बाप का सपना’ कहानी का नायक अपने िपता क भावना को न समझकर और उनके ारा िकये गये सहयोग को िव मृत कर, अपने को चतुर मानकर अपने अहंकार क तु ि तो कर ले ता है, पर तु एक स मािनत यि उसक
ि
के जीवन को नक बना दे ने क ओर
नह जाती है। ‘फटीचर’ कहानी से पता चलता है िक समाज म उपेि त
एक मगलर या जेबकतर का सरदार अपनी जबान का िकतना स चा िनकलता है, जो सबको अचंिभत कर दे ने वाला िकरदार स
होता है। वह अपने छोटे से
उपकारकता को ई वर ही मान बैठता है। ‘गुंिगया चु ड़ैल ’ म अिशि त
ामीण क
भावना को उजागर िकया गया है, जहां िबमारी को न समझ पाने वाले भू त - ेत का च कर समझ बैठ ते ह और तां ि क के बहकावे म आकर भो ा के ाण को संकट म डाल दे ते ह या उसके ाण से हाथ धो बैठ ते ह। इसी कार ‘ल मरदार’ कहानी से पता चलता है िक ई वर
दत बु ि
के िवकास के लए िश ा ही मह वपू ण नह होती,
अिपतु उस पर अपने
ान तथा अनु भव क सान चढ़ाकर उसक धार को तेज िकया
जा सकता है। िफर उसके लए जिटल से जिटल सम या भी सहज एवं सु सा य हो जाती है। ‘शरणागत’ कहानी म नेह का आ ध य अंधिव वास म प रणत होकर सम या को जिटल बना दे ता है। पर तु ई वर ारा िदए गये दंड से यिद बोध हो जाए, तो सुबह का भू ला हआ यिद शाम को वापस आ जाए तो उसे भूला नह कहते । ‘ वणाि ’ कहानी म के वल लालच एवं बेई मानी, अ छे -अ छे र त को ख म कर दे ती है और उसक आड़ म ई वर ारा िदए गये दंड का भी अहसास उसे नह हो पाता।
‘रतनू ’ कहानी से यह पता चलता है िक यि
म यिद साहस है, तो बु ि
उस पर
सवारी साध कर बड़ी से बड़ी मुसीबत का सामना कर सकती है। तुत पु तक के लेखक ि य अनुज राज बली पा डेय क ये कहािनयाँ पाठक म ान का काश फैलाने वाली ह गी, ऐसा मुझे पूरा िव वास है। पाठक इससे लाभा वत अव य ह गे। हाँ, आलोचना मक सुधार के लए आ ह हणीय होगा। नाग पंचमी, 2020 ई.
आचाय राम बली पा डे य सेवामु
िश क एवं
कमकांड िवशेष
1 सं यास “कमला नेह
अ पताल के भवन-िनमाण हेतु च दा लेने कोई स जन आये ह,
उनसे या कहँ?” मुनीम छगनलाल ने हाथ जोड़कर
न िकया।
“उनको मेरे पास भेज दो।” सेठ जगदेव साद ने तिकये को बाय से दाय करते
हए कहा। “जैसी आ ा।” कहते हए छगनलाल बाहर चले गये। कुछ ही देर बाद सेठ जी ने देखा, खादी का कु ता-धोती-जैकेट पहने, सर पर गाँधी टोपी लगाये, दाय हाथ म कलम, बाय हाथ म रसीद बुक और बगल म एक चमड़े का बैग दबाये एक
अधेड़ उ का यि
दबे कदम से आ रहा है। आकर खड़े होते ही उन महानुभाव ने
एक हाथ से च मा सँभालते हए थोड़ा झुककर कहा, “सेठ जी, राम-राम! िकतने क रसीद काट द? ूँ ” एक ही वा य म कहकर रसीद बुक के प े पलटने लगे।
उनके ‘राम-राम’ का जवाब देते हए सेठ जी बोले, “ ीमान! मने तो आपको
अ दर इस लए बुलवाया था िक आप यहाँ आकर बैठगे, आप से बहत सारी बात
ह गी, चाय-पानी पीयगे, पर तु लगता है, आप बहत ही य त ह। इस लए म आपका
क मती समय बरबाद नह क ँ गा। मेरी है सयत के मुतािबक आप जो उिचत समझ, काट द।”
“ठीक है, दस हजार पये क काट देता हँ।” उस स जन ने रसीद काटनी शु
कर दी।
इधर सेठ जगदेव साद ने आग तुक को चाय िपलाने का इशारा करके मुनीम जी
से दस हजार पये का चेक काटने को कहा।
काम से कु छ फुसत िमलते ही मुनीम छगनलाल सेठ जी क ग ी के सामने खड़े
हए और बोले, “मेरा एक िवन िनवेदन है, सेठ जी।” “बोलो, या बात है?” सेठ जगदेव साद ने कहा।
सं यास और अ य कहािनयाँ | 9
“म चाहता हँ िक आप जसको भी च दा देते ह, उसका पूरा प रचय तो ले ही
लया कर और साथ ही आदेश देने से पहले यह भी देख लया कर िक आप जसको दान देने जा रहे ह वह उसका पा है भी या नह , य िक बुरा न मान,
आजकल यह एक कार का ध धा बन गया है। हर कोई रसीद बुक छपवा लेता है
और कू ल, अ पताल, म दर, धमशाला आिद के नाम पर च दा वसूल करता है।
छपा हआ पता भी गलत होता है। य िक वह पैसा उसके प रवार के पालन-पोषण म लगता है। सौ म से कह दो-चार ही स चे होते ह, बाक सब लूटने वाले होते ह।”
“हम दान देने के बाद उससे कोई अपे ा तो नह रखते। िफर हम यह सब
प ीकरण लेने क
या आव यकता है? दान तो दान ही होता है, वह चाहे सुपा
को िदया जाए अथवा कु पा को।” सेठ ने कहा। “नह , ऐसी बात नह है। य िक हमारे शा
म कहा गया है िक सुपा को िदया
गया दान ही फ लत होता है, कु पा को िदया गया नह । इसी कार िकसी धािमक
काय के लए लया गया च दा भी, यिद िकसी के प र म क कमाई से लया गया
है तो वह अ धक सुफल होता है, अपे ाकृत चोर, डाकू और बेईमान से लये गये
धन के।”
“यह कैसे स भव है? हम तो दान दे रहे ह, उसम हमारी
ा और िन ा है तो
वह फ लत होगा ही। हाँ, उस िदये गये दान से हम कोई अपे ा नह रखनी चािहए।”
“यह सच है, सेठ जी!” मुनीम छगनलाल ने कहा, “हम कोई अपे ा नह रखनी
चािहए, िफर भी यिद हम कोई भौितक अपे ा न रख तो भी आ या मक अपे ा तो रहती ही है। जस कार एक िकसान अपने बीज को उवर भूिम म ही बोना चाहता है, य िक उस भूिम से उसे अ छी फसल होने क आशा होती है। वह िकसान ऊसर भूिम म बीज कभी नह बोता, य िक वहाँ तो बीज के उगने क भी स भावना नह
है। उसी कार दान भी हम उसी पा को देना चािहए, जहाँ से अ छा पु य-लाभ हो सके। अ यथा कु पा को दान दे देना और पैसे को कु एँ म डाल देना बराबर ही है।
इससे पु य-लाभ होगा, न िक उससे।”
सं यास और अ य कहािनयाँ | 10
“दान क नीयत से कु पा को िदया गया दान और कुएँ म फका गया पैसा, दोन
बराबर कैसे हो सकते ह?”
“मान ली जए, आप एक पया िकसी िभखारी को दान देते ह, जो दो िदन से
भूखा है और उसके पीछे प रवार के दो अ य सद य भी भूखे ह। वह एक पये का स ू खरीदेगा और प रवार के तीन सद य बड़े आराम से स ू का घोल बनाकर पीयगे और तृ
होते हए रोम-रोम से आपको आशीवाद दगे। उससे आपके
आ या मक खाते म बहत सारा पु य जमा होगा। दस ू री तरफ, वही एक पया आप िकसी शराबी को देते ह, जो हाथ म लेते ही बुदबुदाते है, ‘धु साले! एक पौवा
खरीदने भर को भी नह िदया।’ अथवा कोई जेबकतरा आपके उसी एक पये से
जेब काटने वाला चाकू खरीदता है और कई जेब काटने के बाद कह बुरा फँस जाने पर वही चाकू िकसी क पेट म घुसा देता है तो आपका वह एक पया पु य-लाभ कर रहा है या पापाजन?” सेठ जगदेव साद िन
के लए भेज िदया।
र हो गये थे, इस लए मुनीम जी को बोट क जानकारी
आज िफर एक बोट डू ब गयी थी। सेठ जगदेव साद बहत बेचन ै ी महसूस कर रहे
थे। बेचन ै ी इस बात क नह थी िक आज एक बोट डू ब गयी, ब क आज यह
सातव बोट थी, जो नयी खरीदी गयी तो पुरानी बोट म से एक डू ब गयी। सेठ जी ने जब से बोट का ध धा शु
िकया, एक-एक करके ही िन यानवे बोट खरीदते गये,
लेिकन कभी भी ऐसा नह हआ। जैसे ही उ ह ने सौव बोट खरीदी, पुरानी म से एक डू ब गयी। इसी कार िन यानवे के बाद आज सातव बोट खरीदी गयी और पुरानी म
से आज सातव डू ब गयी। यह सौव बोट ही य डू बती है? इसी िच ता म सेठ जगदेव साद डू बे हए थे। म त क म एक नया िवचार पैदा हआ, ‘यह सौ क
सं या ही मेरे लए शुभ नह है। य न अबक बार एक साथ ही यारह बोट खरीद
लूँ! जब एक सौ दस हो जाएँगी, तब यह दुघटना नह ह गी।’ उनके चेहरे पर आशा
क िकरण झलकने लग । उ ह ने मुनीम छगनलाल और बेटे परमे वरी साद को
सं यास और अ य कहािनयाँ | 11
बुलवाया। इस बात पर काफ िवचार-िवमश के बाद एक साथ यारह बोट खरीद लये गये।
दभु ा य, जस िदन यारह बोट खरीदे गये, उसी िदन पुरानी बोट म से यारह बोट
एक साथ डू ब गये। आज सेठ जगदेव साद काफ बेचन ै थे। ‘हमने जीवन म कोई
भी पाप नह िकया, िकसी को सताया नह , यथाशि
सबक सहायता ही क , दान
िदया, यह िकस पाप का फल भुगतना पड़ रहा है? या यह क लयुग का भाव
है? लेिकन नह , ार ध भी तो कु छ होता है। या पता, िपछले ज म म कु छ पाप िकया हो। उसी ज म के कम ं का फल उदय हआ हो। आज क दघु टना से तो यह प
हो गया िक मेरे भा य म िन यानवे बोट ही ह। इससे अ धक क इ छा करना
ही बेकार है। मह वाकां ा ही द ुःख का सबसे बड़ा कारण है। आज मेरे पास जो है, या उतने से स तोष नह िकया जा सकता? आज तो मेरे पास िन यानवे बोट चल
रही ह, रो लंग िमल है, कागज बनाने का कारखाना है। कमी या है? जनता-सेवा के लए भी ‘सेठ जगदेव साद हायर सेकडरी कू ल, मानकपुर’, ‘सेठ जगदेव साद धमशाला, आजमगढ़’, ‘एस-जे-पी हॉ पटल’ और ‘राम-जानक म दर,
जगदेवपुरी’ खुल ही गये ह। उनम भी हजार का खच हर महीने जाता है। हजार
आदमी मेरे ही ध धे से अपना प रवार पाल रहे ह। इससे अ धक और या चािहए? और अ धक क इ छा य ? मेरे पास पहले या था?’ सेठ जगदेव साद अतीत म खो गये।
यह स य है िक हर यि
हर काम नह कर सकता। ज गा जाित का बिनया है।
वह यापार तो कर सकता है, लेिकन मजदरू ी नह कर सकता। गरीबी क मार से त था, इस लए कोई छोटा-मोटा ध धा करने क सोचकर अपने गाँव मानकपुर के
जम दार फे
संह के पास गया। हाथ जोड़कर बोला, “बाबू साहब, मुझे केवल सौ
पये दे दी जए। म कोई ध धा करके अपना प रवार भी पाल लूँगा और आपके पये
याज सिहत वापस भी कर दगूँ ा।”
कज देने वाला पहले यह अ छी तरह जानना-परखना चाहता है िक पय क
वसूली हो भी पायेगी या नह । जब उसे िव वास हो जाता है िक वसूली आसानी से सं यास और अ य कहािनयाँ | 12
हो जायेगी, तभी कज देता है, अ यथा बहाने बना देता है। ज गा क आ थक थित से फे
संह भली-भाँित प रिचत थे, इसी लए पहले भी कई बार मजद ूरी करने क
सलाह दे चुके थे। आज जब ज गा ने कज माँगा, तब वह बोले, “देख ज गा, म तेरे
भले के लए ही कह रहा हँ िक मेरे यहाँ मजदरू के साथ लग जा। मजदरू ी करेगा तो एक सेर अनाज रोज ही िमलेगा। ठाट से तू भी खाएगा और तेरे बीवी-ब चे भी खाएँग।े यापार का कोई भरोसा नह होता। चल गया तो दो-चार पैसे कमा लये, नह तो पूँजी भी गँवा बैठे।”
“िफर भी बाबू साहब, म बिनये का ब चा हँ। जाित का असर कह नह जाता।
आप सौ पये दे दी जए, म उसी से कमाकर अपना ध धा आगे बढ़ा लूँगा।” ज गा ने कहा।
ठाकु र फे
संह ने समझा िक सौ पये से कम म इसका काम नह चलेगा और
सौ पये क मोटी रकम यह दे नह पाएगा। इस लए बोले, “देख ज गा, तू कहता है तो म प चीस पये दे सकता हँ। आना महीना (सवा छह ितशत ितमाह) का याज है। एक महीने का एक पया नौ आने होता है। सौ पये का तो तू याज ही
नह दे पाएगा। हाँ, एक बात का यान रखना िक प चीस पये मूलधन तो जब तेरी
मज हो तब दे देना, लेिकन एक पया नौ आने हर महीने क पूणमासी को मेरे पास आ जाना चािहए। यिद याज नह दे पाया तो खेत म काम करना पड़ेगा।”
ज गा ने प चीस पये लेकर माथे से लगाये और ठाकु र साहब को आशीष देता
चला गया। घर पहँचकर प नी से राय-मशिवरा िकया और थोड़ा-थोड़ा िमच-मसाला
आिद लाकर घर पर ही िकराना क दक ु ान खोल ली।
गाँव म अ सर यही होता है िक कोई एक पाव चावल लेकर आया और उसके
बदले मसाला ले लया, कोई गेहँ देकर सुरती ले लया, कोई दाल देकर तेल लया तथा कोई अपने खेत से एक लौक लेकर आया और उसके बदले नमक ले लया।
इस कार गाँव वाल से िमलने वाला सारा सामान ज गा क रसोई म आता-जाता रहता। नकद पैसा कम िमलने के कारण दक ु ान के लए सौदा कम आने लगा। इस कार तीन महीने तक तो ज गा िकसी कार दक ु ान चलाता रहा और फे सं यास और अ य कहािनयाँ | 13
संह को
याज देता रहा, पर तु चौथे महीने दक ु ान क पूँजी ही टू ट गयी। अब मजबूरी म
ज गा को ठाकु र फे
संह के खेत म काम करना पड़ा।
बड़ी मेहनत और ईमानदारी से िदन-भर खेत म काम करने से शाम को एक सेर
अनाज िमलता और उसी से ज गा के चार सद य वाले प रवार का पालन-पोषण
होता था। ज गा के प रवार म बीवी के अलावा पु परमा और पु ी ल जो भी थे। िकसी तरह उनका गुजारा हो रहा था।
अपने िदये हए प चीस पये और मा सक याज वसूल करने के लए कभी-कभी
फे
संह रात-भर ज गा से काम लेते थे, जसक मजदरू ी नह देते थे। िदन-भर के
काम से थका-माँदा ज गा रात-भर खेत म पानी देता रहता, य िक याज के पये
चुकाने थे। िफर दस ू रे िदन खेत म हल चलाना ही था, य िक प रवार का पेट पालना था। अब तक उसे लगातार काम करते तीस घ टे हो चुके थे। पैर म जैसे च क बँध गयी थी और आँख क पलक म मानो ग द िचपक गयी हो। बड़ा जोर
लगाने पर ही पलक ऊपर उठ रही थ । खरिमटाव (ना ता) के लए ज गा क प नी
एक लोटा सीरे का शरबत और मु ी-भर चने लेकर खेत म ही आ गयी। खेत म काफ धूप थी, इस लए ज गा ने पास वाले बाग म चलने को कहा।
भूख- यास से याकु ल ज गा ने चने खाकर शरबत पी लया और थोड़ा आराम
करने के लए वह लेट गया। प नी सर पर हाथ फेरने लगी। वृ और म द-म द वायु के झ क ने पलक ब द कर द । इतने म फे
क घनी छाया
संह खेत पर आ
गये। दोन बैल एक तरफ घास चर रहे थे। ज गा वहाँ नह था। उसक तलाश म इधर-उधर िनगाह दौड़ायी, वह बाग म सोया हआ नजर आ गया। फे
संह के तन-
बदन म आग लग गयी। बैल को हाँकने वाला ड डा उठाकर, गाली देते हए ज गा क ओर बढ़ चले। उसक प नी हाथ जोड़े, दौड़कर उनके पैर पर िगरकर
िगड़िगड़ाने लगी। पर तु उ ह ने उसक एक न सुनी, वही ड डा ज गा क पीठ पर ताबड़तोड़ बरसाने लगा। उसक इित तभी हई जब ड डा टू ट गया, फे गये और ज गा बेहोश हो गया।
सं यास और अ य कहािनयाँ | 14
संह थक
डॉ. िगरीश दबु े पेशे से डॉ टर अव य थे, पर तु गरीब का इलाज वह िबना कु छ
लये ही करते थे। जब उनको पता चला िक ज गा चार घ टे से बेहोश पड़ा हआ है
और उसके घर म इलाज के लए एक भी पैसा नह है तो वह तुर त लीिनक ब द
करके ज गा के घर पहँच गये। उसको दो-तीन इंजे शन लगाये, शरीर म जगह-
जगह पि याँ बाँधी और होश म आते ही पीने क दवा देकर चले गये। दस ू रे िदन
िफर आकर पि याँ बदल , दवा और इंजे शन िदये। अब ज गा को काफ राहत महसूस हई।
रामनाथ चौबे ाइमरी कू ल के अ यापक थे और अपने वेतन से ही चार सद य
के प रवार का पालन-पोषण कर रहे थे। ज गा क ऐसी हालत सुनकर वह भी देखने गए। उ ह ने देखा, ज गा चारपाई पर पड़ा है, शरीर पर जगह-जगह पि याँ
बँधी ह। गाँव के कु छ
ी-पु ष अगल-बगल बैठे सहानुभूित कट कर रहे ह, ‘ऐसे
भी कह िकसी को मारा जाता है।’ ‘सही कह रही हो? ऐसे तो लोग चोर-डाकू को भी नह मारते।’ ‘चोर-डाकू नह , जानवर को भी कहो, बहन! गलती तो सभी से होती है तो या कर, मारते-मारते जान ही ले ल!’ ‘इसम गलती कौन-सी है, भाई साहब! एक आदमी लगातार तीस-ब ीस घ टे काम करे गा तो वह थकेगा नह ?
आदमी या मशीन है? और मशीन भी थकती है, लगातार काम करने से वह भी गम हो जाती है और तब उसे भी रोककर ठ डा करना पड़ता है।’ रामनाथ चौबे ज गा क ऐसी हालत देखकर फे
संह पर तो उबल ही रहे थे,
इनक ल छे दार बात उ ह और भी बुरी लगी, जो केवल श द से ही सहानुभूित
कट कर रहे थे। या इन श द से ज गा क चोट ठीक हो जाएगी? उसका दःु ख
द ूर हो जाएगा या उसके प रवार क भूख िमट जाएगी?
उनक सहायता ने मनु यता को चुनौती दी। इस अवसर पर कु छ करना चािहए।
अपनी जेब से दस-दस के दो नोट िनकालकर ज गा को देते हए बोल, “ज गा भाई,
इस समय तो जेब म ये बीस पये ही ह। इ ह लो, तब तक अपना काम चलाओ। कल तक म कुछ और पैस क
यव था कर दगूँ ा। तुम बहत ज दी ठीक हो
जाओगे, इसके लए िच ता करने क कोई आव यकता नह है। गरीबी का ही नाम सं यास और अ य कहािनयाँ | 15