काव्य_सुरभि Flipbook PDF

इस ईबुक के लेखक डॉ. सुरभि जैन "श्रुति" हैं । वह एक महान लेखक हैं और इसमें आपको एक अलग विषय में कविता का संग्रह

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Story Transcript

का _सुर भ

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का _सुर भ

BundelkhandPublicationHouse Presents

kavya _surabhi 2

का _सुर भ

सवा धकार सुर त© बुंदेलखंड प लकेशन हाउस रेलवे पुल के पास र बानी नगर, बाँदा (उ. .) एम. एस. एम. ई. के अंतगत पंजीकृत इस पु तक का कोई भी अंश बना संपादक/लेखक क अनुम त के इले ॉ नक, मैकै नकल, मै ने टक, फोटोकॉपी, ह त ल खत, रकॉडड इ या द कसी भी प म पुन पा दत या ह तांत रत नह कया जा सकता। पु तक ेणी – अका प नक पु तक व पण - बुंदेलखंड प लकेशन हाउस आवरण नमाण - अ ल रहमान सवा धकार सुर त @ 2022 डॉ. सुर भ जैन " ु त"

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का _सुर भ

अ वीकरण हम इस सोलो बुक को (बीपीएच) बुंदेलखंड काशन हाउस के तहत का शत कर रहे ह। हमने इस पु तक के लेखक के लेखन म सा ह यक चोरी क जांच करने क पूरी को शश क है और इस पु तक म उनके काम को दखाया गया है। हमारे संपादन ट म के सद य ने साम ी का व ष े ण करने के लए कड़ी मेहनत क है और यह सा ह यक चोरी और वतनी क गल तय से मु करता है। लेखक अपनी साम ी के लए पूरी तरह से ज मेदार होगा।

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का _सुर भ

आभार ापन म हमारे वचार और वचार को मं मु ध करने वाले श द म रचना मक प से हम श , ान और अनु ह दान करने के लए दल से ध यवाद दे ती ं। म बीपीएच के लए भी आभारी ं मुझे यह अवसर दे रहा है। इस ई-पु तक का नमाण लेखक के लए आभार के बना संभव नह होगा, जो इस ई-पु तक के सफल होने के लए सभी यास म मदद करते ह और इस ई-पु तक को बेहतर बनाने म सहायता करते ह।

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का _सुर भ

कताब के बारे म इस ईबुक के लेखक डॉ. सुर भ जैन " ु त" ह । वह एक महान लेखक ह और इसम आपको एक अलग वषय म क वता का सं ह मलता है। सभी कार क क वता इस ईबुक ेम, रोमांस म सभी कार क क वता है।

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का _सुर भ

अ ल रहमान बुंदेलखंड काशन के सं थापक

अ ल रहमान s / o ी अ ल अजीज खान जो बाँदा जले के रहने वाले ह व वह यां क अ भयंता ह। वह वतमान म बांदा म सहायक प रयोजना अ भयंता के प म कायरत ह व काशक के प म भी काय कर रहे ह। उ ह ने क बंधक, मशन बंधक, परी क और श क के प म भी काम कया। वे लोग को एक साथ लेकर चलने पर यादा व ास रखते ह , इसी लए वे कहते ह क ह , मु लम, सख और ईसाई सभी आपस म भाई ह। वह "चल क़लम" नामक कताब के लेखक भी ह व कई संकलन म सह-लेखक के प म भी ह। “लेखन एक अ छा जुनून है " इस लए जुनून से लेखक ह। हमारा सामा जक कने शन: Fb:- bphbup

Twitter:- BundelkhandPub1

Insta:- bphbup Youtube:- BPH Bundelkhand Publication House

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का _सुर भ नर कुमार रायकवार

बुंदेलखंड काशन के संपादक

नर कुमार रायकवार एक सॉ टवेयर अ भयंता ह जो उ र दे श के झाँसी जले के रहने वाले ह। इनके पता का नाम ी द नदयाल रायकवार व माता ीम त ौपद दे वी रायकवार जो क एक गृहणी ह। इनका सपना है क एक बड़ा पारी बनकर गरीब क मदद करना है। ये एक मो टवेशनल व ा भी ह इस लए यू ब ू के मा यम से भी सभी को े रत करते ह। Instagram ID: - narendrag278

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का _सुर भ

ले खका डॉ. सुर भ जैन " ु त"

इनका नाम डॉ. सुर भ जैन " ु त"है। ये सरकारी श क के पद पर कायरत है। इ ह ने m.a,b.ed,m.phil aur ph.d ( Hindi)से कया है। इनको लेखन ,संगीत और च कला मे ब त च है।ये सदै व सर वती जी क सेवा करना चाहती है। ये सभी वधाओ म लेखन काय कर रही है।ये का पाठ म भी भाग लेती है। इनके इस दशा म कई काशन भी हो रहे है।

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का _सुर भ

सूची क वता

Pg. no.

आग

12

अहसास

13

अमर यो त

14

अ तसवेदना

15

अनुभू त

16

दद

17

दे श- ेम

17 - 18

दो ती

19

माँ

20

मेरा भारत महान

21

मु

22

नारी क ममता

23

ेम गीत

23-24

ेरणा

25

यार का अहसास

10

26

का _सुर भ तू मले दल खले और जीने को या चा हए

26

शायद

27

त व नणय

28

ठं ड क यारी खु शयाँ

29

अनुभू तयाँ

30

याद

31

क वता

31

भाई ब हन का ये र ता

33

अमर शहीद

34

होली के रंग

35

जीवन साथी

36

कूल क याद

37

समपण

38

11

का _सुर भ

"आग" "वह जो आग        उस पार से आती है बुझाती नह       बस जलाती ही जलाती है जलने से कोई गम नही होता गर वो ना आए तो वह गम कयामत से कम न होता पर वो आये और उ ह ने कहा क वो जलाए तो हम बुझाने क कहे तो दम न होता यूँ तकरार  का सल सला बस फर कभी ख म ही न होता "

12

का _सुर भ

"अहसास" एक अनोखा सा अहसास है ज़ दगी, कुछ खोने, और पाने का नाम है ज़ दगी, बस जो भी है खु शय का भ डार है ज़ दगी, कभी हँसना, कभी रोना है ज़ दगी, कभी हार, कभी जीत है ज़ दगी, अपन कजी अनजान कहानी है ज़ दगी, जीने और मरने के बीच का सफ़र है ज़ दगी, संघष और हष के बीच क कड़ी है ज़ दगी, यार और नफरत का काल है ज़ दगी, अरे साहब, क वता के श द का वाद है ज़ दगी, अरे ज़ दगी है तो सब है नह तो कुछ भी नह , ऐ ज़ दगी| ऐ ज़ दगी|

13

का _सुर भ "अमर यो त" अमर यो त उन दे श ेमी क , द यो त उन दे श भ क , सदा दै द यान रहे जग म, नत-नवीन वीण व प दे श म, जनके समपण सुर भ से धरती महकती, जनके गीत गा के पावन धरा चहकती, उन भ ेमी को शत-शत नमन, जीवंत श है इस भारत वसुंधरा के, सजग है, सरल है, सम पत है धरा ेमी, नील गगन पर सदा तारे बन झल मला ते, सूरज क खर है, व है, वजेता है, सदै व, दे श क ग त म स य है, समृ दे श के भ व य को बहाने उ त है, वशालता, सृजनश , सहयोगी व, दे श के लए सम पत इनका अ त व, इनक ास पर टका है भारत दे श, उन सै नक को शत-शत णाम है, अ खलेश, " ु त" नमती है, सदा हे दे शभ , तुम ही तो धरती माँ के लाडले स चे सुपूत, सृजन रस क व णम धारा बहती, "अमर यो त" सदा व लत होती, महकती दे श भ कजी सुर भ हर व लत, सुनहरा है, उ जवल है, आने वाला कल,

14

का _सुर भ “अ तसवेदना” " र- र जब जाते है बछड़ कर अपने लगता लेकर जैसे उड़ जाते है पंछ सपने लग जाते है बकने ,बारी बारी सपने अ तस पीड़ा के वर से लगता है तपने वेदना तरसती है कही पर छु पने तपश ही समझा है इसे सबने  जाते-जाते कुछ मौका न दया तुमने गम के आंस,ू रस से पी लए हमने बछा द फूल क सेज हाथ से अपने बखेर दये सब मीठे से सपने  बस पहचान लया तु हे हमने र- र जब जाते है बछड़ कर अपने" 

15

का _सुर भ "अनुभू त" हो रहा तपल दद का आमास खो रहा पल पल मीठा अंतनाद लगता है अभी     थी कुछ है शेष     हो रहा जो अ वशेष     बांधता है अ त लेश      दे रहा है म थलेश     करता है नस ष े     खोज जारी है अ खलेश हे अ खलेश!     हे अ खलेश! हे अ खलेश!

16

का _सुर भ "दद" दल के ज़ म उभर जाया करते ह जब मुझे वह याद आया करते ह लोग त वीर से सजाते ह अपने घर को हम तो याद से दल को सजाया करते ह याद आती है जब उ फत क बड़ी मु कल से दल को मनाया करते है बेवफा कह नह सकता उनको जनके याद के साथ जीते है र है मुझसे वह तो या आ ऐ दल मेरी याद म तो आया करते है याद ही दद और दवा अपनी  जनाब अब तो न जीते और न मरते है

"दे श- ेम" सुनहरा अवसर है आज, दे श भ म डू बा भारत आज, सु दर सारग भत सम पत गीत, वष से अनवरत चलती रीत,

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का _सुर भ ऊँ दे श के नौजवान को सलामी, जो दे श म थी स दय से गुलामी, नवभारत क संक पना से यु , सृजन, संवेदना और ेरणा से ओत ोत, इस व णम वसुंधरा का सदै व ेय है, ु त रखती दे श से सदा नेह, जीवंत महापु ष क ज म भू म, महा यो ा क यह समर भू म, श ा और ान क बहती है गंगा, नाम कर रही नव पीढ़ रोशन तरंगा, नारी भी श त होकर कर रही अलंकृत, धरती माँ के शीश को कर रही सुशो भत, अपने दे श के धू ल को म तक पर रखते, सदा वक सत रा क संक पना करते, सभी सा र हो समृ हो आगे बढे , दे श क उ त म हो आगे खड़े, बन कर दये से धरती माँ के सुपु , रौशनी से भर दे धरती माँ को सव , दय से शत-शत नमन हमारा, भारत दे श है सबको यारा, सबसे यारा सबसे यारा, सबसे यारा दे श हमारा, जहाँ है कई री त रवाज़ सं कृ त, कई धम, भाषा, वेद क अ भ , सामान है दे शभ क अनुभू त, सहजानुभू त, समानानुभू त, सृजनश , सब संक पत होकर चर यो त जलाये, अपनी भारतीय सं कृ त और दे श के गीत गाए,

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का _सुर भ "दो ती" दो ती एक व ास है मानवता क आस है र ते कजी सौ यता क उजास है श ुता का प रहास है  नव जीवन का यास है अपनेपन क मठास है स चे साथ क वा हश है ठे दल क मीठ फ हश है एक परी ा क आजमाइश है या? रय क गुज ं ाईश है

19

का _सुर भ "माँ" माँ, माँ तू याद आती है ब त, हर पल लाती है ब त, पराए घर क चहार द वारी म, तेरी ेम क खुशबू सताती है ब त, माँ तू याद आती है ब त, यूँ तुने इन सुख- :ख क , ल ड़य म उलझा यह संसार दया, यूँ  रोता आ पराधीनता का आ य  दया,  तूने यूँ  यह अजनबी घर का उपहार दया,  तेरी ममता क आंगन म हर दन, चहकती थी, फुदकती और खलती थी, आज यूँ  इन बंधन का आधार दया, माँ तू याद आती है ब त, यूँ तू लाती है ब त, इन यारे से बचपन के सुहाने दन को, भुलाने म ज़दगी नकल गाई, पर वह तेरी डांट, यार, समपण, मन को, नही भुला पाई, माँ तू याद आती है ब त, हर पल सताती है ब त, माँ तू याद आती, लाती है ब त।

20

का _सुर भ "मेरा भारत महान" वतं भारत का सं वधान, गणतं दवस है महान, गव होता सदा है णाम। आशीष है सं कृ त का सदा, सा रत है व म वजा, पुल कत प ल वत वक सत होती, नवीन व णम उ जवल यो त, समीचीन संत परंपरा महान, मेरा भारत महान मेरा भारत महान, स दय से बहती धम गंगा अनवरत, शु चता, म हमा, समरसता अ भ , भारत क वसुंधरा ध य ह, जहाँ राम महावीर बु ईसा ज मे, जहां धम ,अ या म नी त क धारा उमड़े, वशालता, एक पता, स दयता भी प ल वत, होता पावन, धारा का आंचल, नश दन, झलके आभा मय दे शभ त दन हे भारतीय सं कृ त णाम! तुझसे म, नत चार धाम। सादर णाम, सादर णाम, सादर णाम। 

21

का _सुर भ "मु

"

हम त त शखर सेनीचे गरे एसी सोच नह हम नम सर से ऊपर खरे सोच ऐसी रही इस तरह हम अ वरल बढ़ते जाय  वकृ त सारी खोते जाय  ण फु टत तूफ़ान  आये या जाय पाय नह आनंददाय जाय तो  शवधाम जाय  शवधाम जाय

22

का _सुर भ "नारी क ममता" कैसे तेरे उपकार को भुला पऊँ तूने ही तो ये अ त ु जीवन दया, सब कुछ सखा कर, पढ़ा कर, यूं एक दन रोते-रोते वदा कर दया  कैसे तेरा, यह ऋण अदा कर पाउँगी, जीवन के इन ण म तु हे भुला न पाउँगी, माँ तू उपकारी, दाता ममता क मूरत हो तुझे है शत-शत णाम, शत-शत णाम ! है न ल, धीर, स ह णु एवं न काम यह है सं कृ त क प व तमू त अनवरत वाहमान जीवन क कृ त  तेरे बना सब अधुरा है, अजीव, तू है तो सब नज व भी है सजीव, तू ही तो है क वता का रस स दय, माँ ही तो है इस जीवन का मू य , आतं रक संवेदना, मू य का उ कष हो तुम, श , सुख और शव का स दय ँ तुम , माँ, माँ, माँ तुम हो तो सब है पूण , तेरे बन अजनबी सा जीवन अपूण, तू कभी न वा स य क छाँव को हटाना, हर पल मेरे अ त व को तू ही, सजाना, संवारना, नखारता, साथ नभाना, मेरी माँ मेरी माँ मेरी माँ |

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का _सुर भ " ेम गीत" तेरी इन अदायो पर म द वाना वह नाजक से होठ, सुख लाल तेरी सु दर आँखे है बे मसाल दे ख कर, दे खता रहा अपलक ये जा ई अदा है मोह बत क तेरी  बस र न जाना ये चाहत है मेरी  एक बार तू दे ख न मुझे यार से  दल को मला दो, ये बेक़रार से सदा तेरी, सफ तेरी हसरतो का खज़ाना तूने बना दया इस कदर द वाना  तेरे ेम क सुर भ वखर गई है हवा म भुला नही सकता कभी तुझे, तू हबी  याद रखना | तू और म स झी जुदा हो अ ह सकते  चाहे जा लम हो कतना जमाना  तुझे याद करना, तुझे याद आना यही  जीवन क आधार है, बाक सारी नया के चल- दखने सब बेकार है तुझ पर समपण हमदद मेरे, ये ेम का अनमोल उपहार मने हफाज़त से रखा है, ओ यार मेरे, ऐ दल क यारी मुहो बत

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का _सुर भ " ेरणा" नवीन अहसास  आपका है तो फर हमारा      और उनका  जो मरे     उसी अंजाम  कह गये     कुछ नए सल सले बड़े अलबेले     जैसे ऊपर  चद्ती बेले      लगी बड़ी अटकले ए घृ णत चुटकले     बनी महरी शले  जलती गई मशाले     पर एक बार  आ व वंस     उड़ चला हंस  कह गया म श     मत करो स े   मारे जीवो लेश     हो जाओ  अ खलेश      सो जाओ म थलेश खो जाओ व े ष     उठ खरे हो नवीन घरंतन      अवदे श      कृ त का अंश      अ भनेश

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का _सुर भ " यार का अहसास" यार का अहसास सदा था, एक द पश य मम था, सुलझी सी इस पहेली को, जो कही-अनकही बात को, प च ँ ता एक अ त ु जगह यार, जहाँ हर श द महकने त पर, मीठ सी खुशबु लए मन डोलता, राज कुछ मन म लए रस घो लता, चमकती सी नयन म दा मनी, ये ेम रस क धरा ान दयानी, एक उ कृ अनुभू त क पराका ा, है सम पत लेखनी, है मन म न ां, " ु त" संजोय मन क द प याँ, प, स दय, रस, यौवन से भी पार है, अलौ कक अनुभू तय का ये सार है, वचरण करती दय जगत म ये रश मयाँ, सु दर सलोने पल को सजाती आकृ तयाँ, व साकार करती, भरती है, दय म ख़ु शयाँ, पाकर मन, चैत य पावन, खली ेम क लयाँ, "तू मले दल खले और जीने को या चा हए"  तू मले जाय तो,सब मले जाए, जब तेरी नज़र से, मेरी नज़र मल जाए, तेरी याद ही तो, जीने का तराना है, मेरा और तेरा, र ता नभाना है, अपने दल को ही, अजमाना है, गहरे समंदर से इ क का फ़साना है, दल क बात तुमसे या छु पाऊं, खल जाता, आनंद से पूण हो जाना,

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का _सुर भ यही तो है स चे ेम का आ शयाना, न इ रयाँ, न फासले बस यार ही यार हो, जीवन म तेरी ही खु शय क बरसात हो, तू ही सुबह, तू ही शाम का आना, तेरे यार म, हम भूल गए जमाना, इस तरह लख गया ेम अफसाना, यार इस कदर द वाना, न याद हँसना न रोना बस तड़पना, भीनी सी याद म खो गए हम तेरी, तुझसे ही शु और तुम पर ख म, ये ज़ दगी मेरी अब यारा तराना, तू र न जाना, सदा यार नभाना |

"शायद" शायद उनको याद है,  शायद उनको याद है एक अजनबी फ़ रयाद है, ठना तो बेबु नयाद है उनक हंसी ेम का साद है, उनसे ई नया आबाद है, अजनबी नगाह अमू य जायदाद है, चाहने वाल क गजब तादाद है, शायद उनको याद है, हां! शायद उनको याद है, भुलाना उनको मुम कन नह ,

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का _सुर भ वह बसे है दलो दमाग पर, शायद द दार कर लेते, ये उ मीद मुझे आज भी है, सदा थी, सदा है, सदा रहेगी, शायद उनको याद है, एक मीठ सी फ़ रयाद है, एक अजनबी फ़ रयाद है, शायद उनको याद है, शायद उनको याद है,

"त व नणय" त वनुधान     त वनुशासन         त वनुशीलन है सभी त व नशेष      अभी न य नयमावली ओढ़कर आगे होगे और नशेष     पर छलना उनको बना ही न दे     अ वशेष होगा फर व े ष, अ त लेश,     सम उ े ग, सम उ े ग |

28

का _सुर भ O

"ठं ड क यारी खु शयाँ"γ

ठं ड अजब सी यारी , हर ऋतु से यारी , ठं ड क नया नराली, ठं ड क शोख अदाए मतवाली , ठं ड एक ऐसा श द है, जसके नाम से आये कंपकपी, तन और मन थरथराने लगे , जब ठं ड करती है वापसी, दांत भी गुनगुनाते है ठं ड म गाना, चाय पीते याद आता ज़माना , जलती आग म हाथ सकते सब , भुलाकर जब सारी रं जशे , उमड़ती है सुमधुर युईश , बस यही तो मज़ा है ठं ड का , ऊनी कपड़ो म बक रहती सास, करती रहती मधुर अठखे लयाँ, ज़ दगी क सुलझाती पहे लयाँ , कुछ कही-अनकही ब तयाँ , सूरज दादा के आने पर झूम उठते, गुनगुनी धुप मसाथ बैठते, चाँद मामा के आते ही तन म, सहरन और क पन से भर जाते , यह ही ठं डी य क सूर तया, सुन सखी हँसती ब तयाती स खयाँ, ठं ड क यही है ख़ु शयाँ , आग तापते घर म कट जाती र तयाँ , होती फरसे गरम सी सुबह , गरम याले के साथ गुनगुनी धुप म, ु त' ले लेती है मज़ा ज़ दगी का, जो चाँद पैसे महल और तबे म ,

29

का _सुर भ नही मलता, बस अपन के साथ अपन , जैसे आम बन जाना ही , ख़ास होता है , उन यारी सी खु शय को जी लेना , उन अनमोल मधुर सुनहरे पल म , गज़ब सा अहसास होता है, साहब! ये गज़ब सा अहसास होता है , "अनुभू तयाँ" नवीनता और ाचीनता बस  त ब ब है जीवन का  स य और अस य बस  उ ार है वचन का  पु य और पाप बस  कम है इ सान का  म ता और श ुता बरसात हवार है इंसान का  शां त और अशां त बस उपज है मन कजी समता और वषमता बस  उ प होती इ छाश से यथाथ और क पना बस  ा त होती मन: थ त से कृ त और वकृ त बस करती मनु ज श से हष और शोक बस लहरता बस मनु य से ेम और वैरा य बस प ल वत होते स चे दय से

30

का _सुर भ "याद"     याद एक ऐसा अनोखा अहसास है,      जस पर नया यक न रखती है,     याद ही तो ऐसी र ते को डोर है,     जो बाँधती है दल को दल से,     मधुरता, सहजता, सरलता से जाती है, याद एवं चर सजीव साथी है, अकेले चलते इस भीड़ म, वे इंसान को अकेला नह रहने दे ती , बस नवीन उजा, उ मीद से सराबोर कर दे ती, वे याद ही तो जीवन का अनमोल उपहार है,     याद हम ेम और संवेदना दे ती है,     वे कती ेम वाह को वा हत करती है,     सदा ही बढ़ते रहने क ेरणा दे ती है,     वे एक असीम ेरक श का काय करती है,      याशाली, भावनाओ से जोड़ दे ती है, याद वचार और भावनाओ का सतत वाह है, जनसे हम सदै व कुछ नै अनुभू त करते है, अनवरत असीम अनंत आकाश क तरह, हमारी श को एक दशा दे ती है, ते याद सव व अनोखेपन से हम भरती है,     याद ही अनुभू त संवेदना ेम का व तार करती है,     वे उड़ान मन को एक प व र ते से बाँध दे ती है,     इस भागती नया म मन को थर कर दे ती है,     बस अपने को अपन से अपन ले जाती है,     ये याद एक अनूठा सा उपहार है कृ त काय,     मानव को मानव, ब चे को ब चा रहने दे ती है,

31

का _सुर भ     वह याद ही तो है जो याद म ही जदा है, खो जाना हमेशा उस याद म, रख लेना संजो कर अपन के अहसास को, ब त क मती ये र न है मानव का,  इस कभी न भुलाना अहं म, दखावे म, ोध म, ू रता म, यह तो इक मधुर सजीला सा अहसास है,     याद क इस छोट से ब गया म,      वचार क खुशबु महकती रहे,     सदा सभी इस यारी सी याद म रहे,     उनमे याद और याद म सब बसे रहे,     याद क वेश क मती दौलत को ही याद रखना |

“क वता” क वता,  क वता तू एक नद क तरह है,  जो बहती है सदा नमल सी लोगो के दय मे,  दे ती है आ मक शां त, सहज से वचार, अपनो का यार,  ये क वता है,क वता क सुंदरता,   जो है नमलता से भरी,  उ च आदश के साथ,   बढ़ती जाती है,  समपण दशा दे ती है,  सं कृ त को एक का शत तीक भी दे ती है,,

32

का _सुर भ

“भाई ब हन का ये र ता” भाई ब हन का ये र ता अमू य है, ये प व र ता सब र तो क शान है, इनके अपने यारे मधुर अरमान है, बचपन के ही ये यारे से नशान है, एक ेम है, जो वा स य से जुड़ा है, न वाथ नेह से रंगा आ भी है, न ख क घड़ी आये, साथ है, समपण क आस से जुड़े है, सदै व रहते है,साथ साथ, हर मुशीबत को पार भी करे, खुशी के पल को गुना कर दे , लड़ाई और झगड़ा भी करे हर दन, फर पल मे साथ खेलने लग जाये,  हर सपना भाई का पूरा करे वह, दे खता है,उ मीद से भर कर हमेशा, न रोकता है, उसक उड़ान को, दे ता है, अ छ श ा सदा ब हन को, नया म आगे बढ़ने क सीख भी दे , भाई ब हन के इस अनमोल र ते को याद रखना, जीवन मे इन घ ड़य को स हाल कर, नत नवीन आयाम भरना,  आगे बढ़ना,आगे बढ़ना,आगे बढ़ना।।

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का _सुर भ “अमर शहीद” अमर शहीद,  अमर शहीद उनके नशान है,  उनके व लदान से ही  भारत का मान है,   नस दन नमन बार बार है  उनके बना जीवन असार है   उनक पावन ेरणा से कर लो मन को पावन  बढ़ते रहो  अ वरल हर पल चलते चलो हर पल  उनके खून के कतरे से लखी सफल कहानी  आजाद क व णम कहानी,  इन शहीद से सीखो   ह मत और समपण  कर दो दे श के लए सब कुछ अपण  जय भारत, अमर भारत

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का _सुर भ "होली के रंग"  आई खु शय से भरी होली,  सखी खेले आँख मचौली  ये जीवन के सुंदर रंग सुनहरे  सुख से भर गई सबक झोली  आई होली, आई होली, आई होली,   स री रंग छटक गया है सजनी पर  साजन क हो गई है अब वो सारी उमर,  आई है खु शय से भरी ये फुलवारी,   ेम रंग है,बरस गया है ,वह यारी।  आई होली, आई होली,आई होली  इं धनुषी रंग से सजी है ये नया तो  रंग से भरी है सुंदर,सलोनी अँ खयाँ तो,  सपनो के रंग भरे है इनमे सजनी के  उड़ती फरे ततली क तरह रंगीन फूलो पे  आई होली ,आई होली ,आई होली   ेम ,समपण के रंग से भरे ये र ते ,  सहज रंग मे रंग गई है ये सजनी रे,  पाकर रंग खु शय के सजनी उमंग भरे,  खुश होकर झूमे ,नाचे,गाए जब रंग उड़े,  आई होली ,आई होली ,आई होली  " ु त"क सुद ं र ब गया ,चमके ,हर रंग  सुर भत कुसुम से ह षत ई बनी यारी,   दय से दय मले जब हो एक ेम का रंग  सतरंगी ई चेतना मधुर य के संग  आई होली, आई होली ,आई होली,,,,। 

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का _सुर भ “जीवन साथी” जीवन साथी,  ये है एक जदगी क स चाई,  एक पल का साथ मटा दे ता त हाई।  खुश रहो ,उनके साथ जो र ते रब ने बनाये है,  ये तो अपनेपन के यारे साये है,  वह ही जी लेता है इसे जसे दल से नभाये हो,  अब सदा साथ रह कर   जीवन पथ पर साथ चलना, आगे बढ़ने क ेरणा दे ना,  साथ कदम से कदम मला कर चलना   य पथ है काँटो से भरा इसमे ेम के पु प ख़लाते चलना,  हमेशा साथ मे चलना, अं तम वास तक इस अनोखे र ते को सजाए रखना,  जीवन साथी साथ नभाना,  कभी न कना ,कभी न थमना, कभी न थकना,  इस यारे से पल क मधुरता को बनाये रखना,  जीवन साथी साथ म चलना,  हर पल साथ मे चलना,,।

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का _सुर भ “ कूल क याद”  मेरे कूल क यारी यादे    सवसे पीछे जब टे ट हो  सबसे आगे जब मठाई मलनी हो  खूब हँसना,  लंच म पैसे दे कर चीजे खाना  याद आता है वह जमाना   जब ट चर को फूल ग ट दे ते थे  कभी पेन ,और खुसी खुसी दो तो के साथ खेलते थे,  छु होते ही तेजी से दौड़ लगाते। बड़े याद आते ,वह दन बड़े याद आते,

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का _सुर भ “समपण” समपण,  जीवन क खुशी , आ मक सुकून सब दे ने म है,  आ मक आनंद परोपकार म है  स य, समता, ऊजा, फू त,यही तो न ा है  जीवन का दशन ,समपण म ही छपा है,लौ कक, पारलौ कक,अ युदय ,नवीनता के रस से अ भभूत यह आ मक स दय,  वशेष है,अबलोकनीय है,   कृ त क व था का नयमन करती है सदा।  इन आ मक गुण को सदा आ मसात कर आगे बढे , बढ़ते चले,इस मु कल सी राह पर,अ वरल बढ़ते चलो यही ेय कर है   ेय है ेय है अ भनव है, संस ु य है,  समपण क नया ब त सुंदर है, एक गहरा समंदर है जो हर मानव के अंदर है।   ु त,उस गहनता को पा लेना,जीवन सफल बना लेना। 

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