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हिन्दी कक्षा 8

1

हिन्दी कक्षा 8 केरल सरकार सार्वजनिक शिक्षा वर्भाग 2021 राज्य िैक्षक्षक अिस ु ंधाि एर्ं प्रशिक्षण पररषद् केरल , निरुर्िंिपरु म 2

राष्ट्रगीि जि गण मि अधधिायक जय िे भारि भाग्य वर्धािा पंजाब शसंध गुजराि मराठा

द्रवर्ड़ उत्कल बंग वर्ंध्य हिमाचल यमुिा गंगा उच्छल जलधध िरं ग

िर् िुभ िामे जागे िर् िुभ आशिष मांगे गािे िर् जय गाथा जि गण मंगल दायक जय िे भारि भाग्य वर्धािा जय िे जय िे जय िे जय जय जय जय िे

प्रनिज्ञा भारि मेरा दे ि िै। समस्ि भारिीय मेरे भाई बहिि िैं।मैं अपिे दे ि से प्रेम करिा िूँ िथा मुझे इसकी वर्पुल एर्ं वर्वर्ध थानियों पर गर्व िै। मैं इसके योग्य बििे के शलए सदै र् प्रयत्ि करिा रिूँगा।मैं अपिे मािा वपिा अध्यापक एर्ं समस्ि बड़ों का सम्माि करूँ गा िथा प्रत्येकव्यक्ति के साथ शिष्ट्टिा

व्यर्िार करूँ गा।मैं अपिेदेि एर्ं दे िर्ाशसयों के प्रनि निष्ट्ठा बिाए रखिे की प्रनिज्ञा करिा िूँ ।मेरी प्रसन्ििा केर्ल उिके कल्याण एर्ं उिकी समद् ृ धध में िी िै। Prepared by : State Council of Educational Research and Training (SCERT) Poojappura, Thiruvananthapuram 695012, Kerala Website : www.scertkerala.gov.in e-mail : [email protected] Phone : 0471 – 2341883, Fax : 0471 – 2341869 Printed at : KBPS, Kakkanad, Kochi © Department of Education, Government of Kerala

3

प्यारे बच्चो , अब आपके हाथ में हहिंदी की नई पाठ्यपस् ु तक है । इसमें आपके पसिंद की साहहत्ययक विधाएँ – कहाननयािं , कविताएिं , आहद सत्ममलित है । इनके साथ दै ननक व्यिहार में आने िािी कुछ व्यिहाररक विधाएिं भी है । इनमें से गुज़कर हहिंदी भाषा और साहहयय के बुननयादी अिंशों को समझने की कोलशश करें इकाइयों से जीिनमूल्यों का प्रनतबिंध जरूर पाएिंगे l उन्हें अपनाने का प्रयास करें । इसी आशा के साथ,

डॉ जे . प्रसाद ननदे शक राज्य शैक्षक्षक अनस ु िंधान एििं प्रलशक्षण पररषद, केरि

4

HINDI Class Vlll TEXTBOOK DEVELOPMENT TEAM Mohamed Ashraf Alungal Irimbiliyam ,Govt. HSS, Malappuram Vahid. K.P ,GHSS Pang, Malappuram Murali Krishna.G ,GHSS Pottassery, Palakkad Dr. S. Sivaprasad, GHSS Aazhchavattom, Kozhikkode M. Venugopal ,Govt. Central HS Attakulangara, Thiruvananthapuram N.V. Somarajan , Ayyankavu, Ernakulam Abdul Razak. V. , PTMYHSS, Edapalam, Palakkad Abdul Raof. T.K , DUHSS Thootha, Malappuram O. Pramod GHSS Achoor, Wayanad Sreela. S. Nair IKT HSS, Cherukulamba, Malappuram Mohanan. T.K Govt. Sanskrit HS Charamangalam, Alappuzha SOUBHAGYA SL EXPERTS Dr. H. PARAMESWARAN Prof. M. JANARDHANAN PILLAI Dr. N. SURESH Dr. B. ASOK ARTIST C. RAJENDRAN ACADEMIC CO-ORDINATOR Dr. REKHA. R. NAIR Research Officer, SCERT STATE COUNCIL OF EDUCATIONAL RESEARCH AND TRAINING – Kerala Thiruvananthapuram

5

अिुक्रमणणका

इकाई 1 जादई रोटी

किािी

मैं इधर िूँ

कवर्िा

सफेद गुड

किािी

मरिा

कवर्िा

दोिे

कवर्िा

11

इकाई 1

13

जादई रोटी किािी एक गाँि में राम और दे ि नाम के दो व्यत्क्त रहते थे। दे िा अच्छा था िेककन राम िोगों को धोखा दे रहा था। एक बार िे ििंबी यात्रा पर ननकिे और जब चिते-चिते थक गए तो राम ने कहा। “मैं भूखा हूँ, मुझे रोटी दो।“ अच्छे दे ि ने रोटी िी और खाया और अपनी यात्रा जारी रखी।दस ू रे हदन िे चिकर एक जिंगि में पहुिंचे।राम ने कहा कक िह बहुत थक गया है और कुछ आराम के बाद जा सकता है और दे ि भी मान गया।िे एक पेड़ के तने पर िेट गए।

19

िेटने के तुरिंत बाद, थकािट के कारण दे ि को नीिंद आ गई और जब िह सो गए, तो राम िहािं से चिे गए। जब दे ि जाग गया, तो राम ने उसे हर जगह खोजा िेककन िह नहीिं लमिी। कफरघने जिंगि से गुजरते हुए िह एक सुनसान घर में आया और मेज पर एक बडा रोटी था।दे ि को बहुत भूख िगी थी िेककन िह

रोटी नहीिं खाना चाहता था। क्योंकक उसे िगा कक शायद उस घर में कोई रह रहा है।उसने सोचा कक सारा भोजन िह खा लिया तो पररिार िािों ने आकर क्या करे गा खाएगा?

के छोटा सा

हहस्सा उसने खाया । इस समय उन्होंने बाहर एक शोर सुना और यह एक भािू, एक भेडड़या और एक चूहा था । दे ि ने बबस्तर के नीचे नछप गया । भािू , भेडडया और चूहा घर में प्रिेश ककया । भािू ने कहा” कोई रोटी िे गया।“ भेडड़ये ने कहा कक उसने रोटी से केिि एक छोटा सा टुकड़ा लिया है और िह एक अच्छा आदमी होगा। चह ू ा ने कहा कक इस घर की रसोई में मटके में

सोने का

लसक्का है । रोटी खाते हुए भािू बोिा कक मेज के नीचे सोने की बड़ी-बड़ी छड़ें हैं । खाने के बाद, भािू , भेडड़या और चूहा चिा

20

गया, राम बबस्तर के नीचे से ननकिे, सोने के लसक्के और सोने की छड़ें लमिीिं, उनमें से कुछ को अपने बैग में रखा और घर चिे गए। यात्रा के दौरान में एक पेड़ के नीचे बैि गया ।आधी रात

होने

पर दो राक्षस आए और त्जस पेड़ के नीचे दे सो रहा है उस पर केस आके पर ये राक्षसों बैि गए । एक राक्षस ने कहा कक इस पेड़ के फि खाने पर राजकुमारी को दृत्र्षट िापस आ जाएगी । सब ु ह होने पर पेड की सारी फिों को िेकर दे ि ने महि में जाकर राजकुमारी को फि हदया । फि खाने पर राजकुमारी को अपने दृत्र्षट िापस लमि गया ।राजा ने खुशी से राजकुमारी और अपना आधा राज्य दे ि को दे हदया। एक हदन

दे ि राम को दे खा । उसने सम को प्यार से महि में

स्िीकार ककया । अपनी सारी सौभाग्य का कारण भी राम से कहा । सारी बाते जानने के बाद उसी प्रकार भाग्य लमिने केलिए िे भी राम द्िारा बताये गये जिंगि के उस घर पर आया । घर के अन्दर रोटी था। भख ू के कारण राम ने सारा रोटी खाया और बबस्तर के नीचे नछप गया।भािू , भेडडया और चूहा घर में प्रिेश ककया ।

21

भािू ने कहा” कोई आकर सारा रोटी िे गया।“ भािक ू ो गज़ ु ा आया। चह ू ा ने कहा कक पििंग के नीचे चोर है । भेररया राम को गज ु े से पकडने का प्रयास ककया । राम डरकर भागने िगा

| िहािं से ननकिकर िह गािंि पहुिंच गया । इसके

बाद राम को अपना अपराध समझ गया और िह ककसी को मूखा बनाने का कोलशश नहीिं ककया ।

धचत्र में आप ककि ककि जािर्रों को दे खा ।

किािी पढें ..... राम और दे र् के चररत्र में अन्िर शलखें

22

जंगल से घर आकर दे र् एक डयरी शलखे िोंगे र्ि कैसे िोंगे शलणखए | पदसयव िैयार करें .....

जंगल

किािी का सारांि शलणखए।

23

कविता

मैं इधर िूँ

पी.मधस ु दिि खश ु बू से और रिं गों से एक फूि बोिा – मैं इधर हूँ । गानों से और िहररयों से धचडड़या बोिी – मैं इधर हूँ |

ओ लशलशर ! हिा को भेज हदया कर बोिा सामिंदर – मैं इधर हूँ ।

चाँद ! तम ु चािंदनी उड़ेिते रहो जुगनू बोिे – हम भी हैं । 24

सागर पहाड़ नदी हम सब कहते हैं हम इधर हैं ।

रिं गों से , आिाज़ों से, िौ से गिंध, िहर सब यही कहते है – मैं इधर हूँ।

मेरे वप्रय साथी तम ु भी बोिो न , जोर से मैं इधर हूिं ।

चचाव करें : मैं इधर िूँ साबबि करिे में ज्ञाि की तया भशमका िै ? 25

कवर्िा पाठ करें कवर्िा का आिय शलणखए ।

पी मधुसदिि का जन्म एनााकुिम में हुआ । आप ‘अबुदाबी

शत्क्त अिाडा' और ‘केरि बाि साहहयय इिंत्स्टट्यट ू अिाडा ' से सममाननत है । आप श्रीमि ू नगर माध्यलमक स्कूि में प्रधानाध्यापक है ।

26

किािी

सफेद गड ु सर्ेश्र्रदयाल सतसेिा

दक ा था। उसे दे खकर बार-बार ु ान पर सफेद गड़ ु रखा था। दि ु भ उसके मुँह में पानी आ जाता था। आते-जाते िह ििचाई नज़रों से

गड़ ु

की

ओर

दे खता,

कफर

मनमसोसकर

रह

जाता।

आखखरकार उसने हहममत की और घर जाकर माँ से कहा। माँ बैिी फटे कपड़े लसि रही थी। उसने आँख उिाकर कुछ दे र दीन दृत्र्षट

से उसकी ओर दे खा, कफर ऊपर आसमान की ओर दे खने िगी और बड़ी दे र तक दे खती रही। बोिी कुछ नहीिं। िह चुपचाप माँ के पास से चिा गया। जब माँ के पास पैसे नहीिं होते तो िह इसी तरह दे खती

थी।िह

यह 33

जानता

था।

िह बहुत दे र गम ु सम ु बैिा रहा, उसे अपने िे साथी याद आ रहे थे जो उसे धचढ़ा-धचढ़ाकर गुड़ खा रहे थे। ज्यों-ज्यों उसे उनकी

याद आती, उसके भीतर गड़ ु खाने की िािसा और तेज़ होती जाती। एकाध बार उसके मन में माँ के बटुए से पैसे चुराने का भी खयाि आया। यह खयाि आते ही िह अपने को धधक्कारने

िगा और इस बुरे खयाि के लिए ईश्िर से क्षमा माँगने िगा। उसकी उम्र ग्यारह साि की थी। घर में माँ के लसिा कोई नहीिं था। हािाँकक माँ कहती थी कक िे अकेिे नहीिं हैं, उनके साथ ईश्िर है। िह चँकू क माँ का कहना मानता था इसलिए उसकी यह बात भी मान िेता था। िेककन ईश्िर के होने का उसे पता नहीिं चिता

था। माँ उसे तरह-तरह से ईश्िर के होने का यकीन हदिाती। जब िह बीमार होती, तकिीफ में कराहती तो ईश्िर का नाम िेती और जब अच्छी हो जाती तो ईश्िर को धन्यिाद दे ती। दोनों घण्टों आँख बन्द कर बैिते। बबना पूजा ककए हुए िे खाना नहीिं खाते। िह रोज़ सब ु ह-शाम अपनी छोटी-सी घण्टी िेकर, पािथी मारकर सिंध्या करता। उसे सिंध्या के सारे मिंत्र याद थे, उस समय से ही

जब उसकी ज़बान तोतिी थी। अब तो िह साफ बोिने िगा था। िे एक छोटे -से कस्बे में रहते थे। माँ एक स्कूि में अध्यावपका

थी। बचपन से ही िह ऐसी कहाननयाँ माँ से सुनता था त्जनमें यह 34

बताया जाता था कक ईश्िर अपने भक्तों का ककतना खयाि रखते हैं। और हर बार ऐसी कहानी सुनकर िह ईश्िर का सच्चा भक्त

बनने की इच्छा से भर जाता। दस ू रे भी उसकी पीि िोंकते, और कहते, “बड़ा शरीफ िड़का है। ईश्िर उसकी मदद करे गा।” िह भी

जानता था कक ईश्िर उसकी मदद करे गा। िेककन कभी इसका कोई

सबूत

उसे

नहीिं

लमिा

था।

उस हदन जब िह सफेद गुड़ खाने के लिए बेचैन था तब उसे

ईश्िर याद आया। उसने खद ु को धधक्कारा, उसे माँ से पैसे माँगकर माँ को दख ु ी नहीिं करना चाहहए था। ईश्िर ककस हदन के लिए है? ईश्िर का खयाि आते ही िह खुश हो गया। उसके अन्दर एक

विधचत्र-सा उयसाह भर आया क्योंकक िह जानता था कक ईश्िर सबसे अधधक ताकतिर है। िह सब जगह है और सब कुछ कर सकता है। ऐसा कुछ भी नहीिं जो िह न कर सके। तो क्या िह

थोड़ा-सा गुड़ नहीिं हदिा सकता? उसे जो कक बचपन से ही उसकी

पूजा करता आ रहा है और त्जसने कभी कोई बुरा काम नहीिं ककया। कभी चोरी नहीिं की, ककसी को सताया नहीिं। उसने सोचा

और इस भाि से भर उिा कक ईश्िर ज़रूर उसे गड़ ु दे गा। िह तेज़ी-से उिा और घर के अकेिे कोने में पूजा करने बैि गया। तभी माँ ने आिाज़ दी, “बेटा, पज ू ा से उिने के बाद बाज़ार से नमक

िे

35

आना।”

उसे िगा जैसे ईश्िर ने उसकी पुकार सुन िी है। िरना पूजा पर बैिते ही माँ उसे बाज़ार जाने को क्यों कहती। उसने ध्यान िगाकर

पज ू ा की, कफर पैसे और झोिा िेकर बाज़ार की ओर चि हदया। घर से ननकिते ही उसे खेत पार करने पड़ते थे, कफर गाँि की

गिी जो ईंटों की बनी हुई थी, कफर बाज़ार की ओर चि हदया। उस समय शाम हो गई थी। सूरज डूब रहा था। िह खेतों में चिा जा रहा था, आँखें आधी बन्द ककए, ईश्िर पर ध्यान िगाए और

सिंध्या के मिंत्रों को बार-बार दोहराते हुए। उसे याद नहीिं उसने ककतनी दे र में खेत पार ककए, िेककन जब िह गाँि की ईंटों की गिी में आया तब सूरज डूब चुका था और अँधेरा छाने िगा था। िोग अपने-अपने घरों में थे। धुआँ उि रहा था। चौपाए खामोश खड़े

थे।

नीम

सदी

के

हदन

थे।

उसने पूरी आँख खोिकर बाहर का कुछ भी दे खने की कोलशश नहीिं की। िह अपने भीतर दे ख रहा था जहाँ अँधेरे में एक खझिलमिाता प्रकाश था। ईश्िर का प्रकाश और उस प्रकाश के आगे िह आँखें बन्द

ककए

मिंत्र

पाि

कर

रहा

था।

अचानक उसे अज़ान की आिाज़ सन ु ाई दी। गाँि के लसरे पर एक छोटी-सी मसत्जद थी। उसने थोड़ी-सी आँखें खोिकर दे खा। अँधेरा काफी गाढ़ा हो गया था। मसत्जद के एक कमरे बराबर दािान में िोग नमाज़ के लिए इकट्िे होने िगे थे। उसके भीतर एक िहर-

36

सी आई। उसके पैर हििक गए। आँखें पूरी बन्द हो गईं। िह मन-

ही-मन कह उिा, “ईश्िर यहद तम ु हो और सच्चे मन से तुमहारी पज ू ा

की

है

तो

मझ ु े

पैसे

दो,

यहीिं

इसी

िक्त।”

िह िहीिं गिी में बैि गया। उसने ज़मीन पर हाथ रखा। जमीन

िण्डी थी। हाथों के नीचे कुछ धचकना-सा महसस ू हुआ। उल्िास की बबजिी-सी उसके शरीर में दौड़ गई। उसने आँखें खोिकर दे खा। अँधेरे में उसकी हथेिी में अिन्नी दमक रही थी। िह मन-ही-मन ईश्िर के चरणों में िोट गया। खश ु ी के समद्र ु में झि ू ने िगा।

उसने उस अिन्नी को बार-बार ननहारा, चूमा, माथे से िगाया। क्योंकक िह एक अिन्नी ही नहीिं थी, उस गरीब पर ईश्िर की

कृपा थी। उसकी सारी पूजा और सच्चाई का ईश्िर की ओर से

इनाम था। ईश्िर ज़रूर है, उसका मन धचल्िाने िगा। भगिान मैं तुमहारा बहुत छोटा-सा सेिक हूँ। मैं सारा जीिन तुमहारी भत्क्त करूँगा। मुझे कभी मत बबसराना। उिटे -सीधे शब्दों में उसने मनही-मन कहा और बाज़ार की तरफ दौड़ पड़ा। अिन्नी उसने ज़ोर से

हथेिी

में

दबा

रखी

थी।

जब िह दक ु ान पर पहुँचा तो िािटे न जि चक ु ी थी। पिंसारी उसके सामने हाथ जोड़े बैिा था। थोड़ी दे र में उसने आँख खोिी और पछ ू ा,

“क्या

चाहहए?”

उसने हथेिी में चमकती अिन्नी दे खी और बोिा, “आि आने का 37

सफेद

गुड़।”

यह कहकर उसने गिा से अिन्नी पिंसारी की तरफ गद्दी पर फेंकी।

पर यह गद्दी पर न धगर उसके सामने रखे धननए के डडब्बे में धगर गई। पिंसारी ने उसे डडब्बे में टटोिा पर उसमें अिन्नी नहीिं लमिी। एक छोटा-सा खपड़ा (धचकना पयथर) ज़रूर था त्जसे पिंसारी ने

ननकािकर

फेंक

हदया।

उसका चेहरा एकदम से कािा पड़ गया। लसर घम ू गया। जैसे शरीर

का

“कहाँ

गई

खून

ननकि

अिन्नी!”

गया

हो।

पिंसारी

ने

आँखें

भी

छिछिा

हैरत

से

आईं।

कहा।

उसे िगा जैसे िह रो पड़ेगा। दे खते-दे खते सबसे ताकतिर ईश्िर की उसके सामने मौत हो गई थी। उसने मरे हाथों से जेब से पैसे ननकािे,

नमक

लिया

और

जाने

िगा।

दक ु ानदार ने उसे उदास दे खकर कहा, “गुड़ िे िो, पैसे कफर आ जाएँगे।” “नहीिं,”

उसने

कहा

और

रो

पड़ा।

“अच्छा पैसे मत दे ना। मेरी ओर से थोड़ा-सा गुड़ िे िो,” दक ु ानदार

ने प्यार से कहा और एक टुकड़ा तोड़कर उसे दे ने िगा। उसने मँह ु कफरा लिया और चि हदया। उसने ईश्िर से माँगा था, दक ु ानदार से

नहीिं।

दस ू रों

की

दया

उसे

िेककन अब िह ईश्िर से कुछ नहीिं माँगता।

38

नहीिं

चाहहए।

निक्म्न्लणखि र्ातय पर घ्याि दें — माूँ बैठी फटे कपड़े शसल रिी थी । बिाएूँ, रे खांककि िब्दों में तया संबंध िै ? र्ि अपिे को धधतकारिे लगा और इस बरु े ख्याल के

शलए ईश्र्र से क्षमा माूँगिे लगा’ -यिाूँ लड़के का कौिसा मिोभार् प्रकट िै ? र्ातय वपराशमड पिी करें ।

39

सर्ेश्र्रदयाल सतसेिा (1927-1983): जाने-माने हहन्दी के िेखक, कवि, कहानीकार, समीक्षक थे। खूहटयों पर टिं गे िोग नामक कविता सिंग्रह के लिए साहहयय अकादमी पुरस्कार से सममाननत। ये उन सात कवियों में से एक थे त्जनको तार सप्तक पबत्रका ने छापा था, त्जससे प्रयोगिाद युग की शरु ु आत हुई और

त्जसने आगे जाकर नई कविता आन्दोिन .

का रूप िे लिया।

• लड़के की गड़ ु खािे की इच्छा सफल ििीं िुई। उसके वर्चारों को डायरी के रप में शलखें।

40

कविता

मरिा उदय प्रकाि

आदमी मरने के बाद कुछ नहीिं सोचता । आदमी मरने के बाद कुछ नहीिं बोिता । 41

कुछ नहीिं सोचने और कुछ नहीिं बोिने पर आदमी मर जाता है ।

42

. आदमी कब आदमी बन जाते है ? मानिता के बारे नारा लिखखए। पदसूया तैयार करें

आदमी

उदय प्रकाश जन्म :1 जनिरी, 1952 गाँि- सीतापुर, अनूपपरु त्ज़िा, मध्य प्रदे श उल्िेखनीय काया :मोहनदास (कहानी), सन ु ो कारीगर, अबत ू र कबत ू र (दोनो कविता) 43

दोिे

.

कवर्िा

बडा िुआ िो तया िुआ, जैसे पेड़ खजर | पंथी को छाया िाहिं , फल लागे अनिदर ।।

कबीर दास जन्म स्थाि

:1398 ई. में उत्तर प्रदे ि के र्ाराणसी

के लिरिारा िामक स्थाि में िुआ था। गुरु का िाम

: स्र्ामी रामािंद

साहित्य

: साखी, सबद, रमैिी, सारित्र्, बीजक

मत्ृ यु

:कबीर दास की मत्ृ यु कािी के पास

44 मगिर में सि 1518 में िुई थी

.

रिीम र्े िर धन्य िै , पर उपकारी अंग । बॉटर्ारे को लगै , ज्यों मेिंहद को रं ग ॥

रिीम पुरा नाम : अब्दरु ाहीम खान-ए-खाना जन्म नतधथ

: 17 हदसिंबर 1556 , िाहौर

रचनाएँ

: रहीम ‘कविताििी,

रहहमन चिंहद्रका, रहीम रयनाििी

45

ककसको छोडे और ककसको अपिाएूँ .... सयय , घण ृ ा , प्यार , हहिंसा , दया

छोडिा

अपिािा

. दोिे का आिय शलणखए ।

46

अधधगम उपलक्ब्धयां ❖

कहानी पढ़कर आशय प्रस्तुत

करता है । ❖

कविता पाि करता है ।



कविता का आशय लिखता है ।



चाररत्र पर हटप्पणी लिखता है ।



डायरी तैयार करता है ।



नारा तैयार करता है ।



दोहे पढ़कर आशय प्रस्तुत करता

है । ❖

शीषाक और रचना का सिंबिंध

पहनचानकर लिखता है

47

मदद लें ...

..

आदमी

- मािर्

क्जद

- िठ

िलाि

- खोज

िाकिर्ार

- िक्तििाली

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- परोपकारी

पंथी

- यात्री

बाूँटिा

- वर्भाजि

बेचैि

- व्याकुल

मिज

- केर्ल

िशि

- चाूँद

48

अपिी पिचाि

49

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