Story Transcript
आयुध िनमाणी खम रया राजभाषा पि का
िविवधा
दनेश कु मार
सरं क ी एस.के .िस हा महा बंधक
धान संपादक ी बी. बी. सह अपर महा बंधक
संपादक ी दनेश कु मार उप महा बंधक ी एन.डी.ितवारी सहा. काय बंधक
सह संपादक
ा फ स एंड िडजाइ नग ी पंकज वमा काय क
है ।
येक रा क अपनी अलग-अलग भाषाएं होती ह । ले कन उनका राज-काय
िजस भाषा म होता है और जो जन-स पक क भाषा होती है उसे ही रा -भाषा का दजा ा
होता है । भारत म भी अनेक रा य ह । उन रा य क अपनी अलग-
अलग भाषाएं ह । इस कार भारत एक ब भाषी रा है ले कन उसक अपनी एक रा भाषा है - हदी ।
लेखक के िवचार से संपादक म डल का सहमत होना आव यक नह है । रचना संबध ं ी कसी भी िववाद हेतु रचना देने वाले रचनाकार वयं िजमदार ह गे ।
दनांक 14 िसतंबर 1949 को हदी को यह गौरव ा
आ । 26 जनवरी 1950 को भारत का अपना संिवधान बना । हदी को राजभाषा का दजा दया गया । हदी का योग करने म हम गव का अनुभव करना चािहए । हम सरकारी कायालय, बक, अथवा जहाँ भी काय करते ह, हम हदी म ही काय करना चािहए । इससे हदी का
चार और
अिनवाय िवषय के
सार होगा ।
ाथिमक तर से
ातक तक हदी
प म पढ़ाई जानी चािहए ।
आयुध िनमाणी खम रया, भारत सरकार क राजभाषा नीित के अनुसार िनमाणी के सरकारी कामकाज को हदी म ही करने हेतु कृ त संकि पत है । जब िव
के अ य देश अपनी मातृभाषा म पढ़कर उ ित कर सकते ह, तब
हम रा भाषा अपनाने म िझझक य होनी चािहए । रा ीय और अ तरा ीय तर पर प - वहार हदी म होना चािहए । कू ल के छा पढ़ने क
को हदी प -पि काएं
रे णा देनी चािहए । जब हमारे िव ाथ हदी ेमी बन जायगे तब हदी
का धारावाह सार होगा । हम संक प लेना चािहए:
सहयोग
ी मोिबन जोसफ काय क ी वीण उसरे टे एम.टी.एस. ी बुधराम यादव फोटो ाफर
साधन है । जब मनु य
बोलना िसखाते ह । इस तरह भाषा िसखाने का यह काम लगातार चलता रहता
ी जय काश सह किन. अनु. अिधकारी
समझने के िलए भाषा एक सश
इस पृ वी पर आकर होश संभालता है तब उसके माता-िपता उसे अपनी भाषा म
ी अजय कु मार सोनी अनु. मुख /राजभाषा
ारा मनु य अपने िवचार का आदान- दान
करता है । अपनी बात को कहने और दूसरे क बात को
उप महा बंधक
अंक 37 संपादक म डल
भाषा के
गूज ं उठे भारत क धरती, हदी के जय गान से । पूिजत पोिषत प रव
त हो, बालक वृ जवान से ।।
पाठक क ब मू य ित याएं हमारा मागदशन करती ह, अतः आप सभी बु
पाठक से िवशेष आ ह है क “िविवधा” के इस 37व अंक पर अपने िवचार
से हम अव य अवगत कराने का क बनाया जा सके ।
कर ता क आगामी अंक को और बेहतर
अनु मिणका ं माक
रचना
रचनाकार सव ी/ ीमती/ पदनाम/ अनुभाग
पृ
ं.
01
सर वती वंदना
राज शेखर ि पाठी, क.का. ./ सी.ई
11
02
आ.िन.खम रया, एक सफर ....
एन.डी.ितवारी, सहा.काय. बंधक
12
03
सुदढ़ृ हदी और उसका भिव य
अजय कु मार सोनी, अनुभाग मुख/राजभाषा
15
04
िम ता
05
ीमती अिह या िव कमा, सचर/सुर ा
वामी िववेकानंद का
रे क संग
17
अिवनाश भुरभुरे.क.का. ./आई.टी.सी.
18
06
आ.िन.खम रया के हिथयार ...
संतोष कु मार ीवा तव, एम.टी.
19
07
म मजदूर ँ
अिभषेक कु मार, दूषण िनयं ण
20
08
ग़ज़ल
लोके श माथनकर,ए जािमनर/ यू.ए.मैट
21
09
संवध ै ािनक आधारिशला
िहमांशु चक, काय क/ पी. ही.
22
10
िनमाणी के सम चुनौितयाँ ...
राजेश झा, काय क/एफ.टी.आई.
24
11
कोिशश कर, हल िनकलेगा
ि यंका ठाकु र, एच.एस./एफ-11
26
12
हदी किवता का इितहास
मनोज सह, अनुभाग मुख/ मा.सं.िव. अनुभाग
27
ीमती िस धु म े , काय क/ देयक कायालय
33
13
काय म िवराम
14
मानव अगर फ ऱ ता होता
अकरम खान, पी.एस.
34
15
भारत क बे टयाँ
संतोष कु मार ीवा तव, एम.टी.
35
16
हमारी हदी
17
रे क संग
ीमती बुशरे ा खान, अ. .े िल./ थापना
36
राजेश झा, काय क/एफ.टी.आई.
36
18
3ऩ म
राजरानी, एम.टी.एस./जी.ए.
37
19
बेटी का आशीष
रामकृ पाल सा , काय क/ एल.बी.
38
20
अपने हाथ से जो तकदीर िलखा ..
शेखर कु मार गजिभये, क.का. ./ ही.एल.सी.
39
21
एक माह म तीन हण
संदीप कु मार ीवा तव,क.का. ,/संर ा.अनुभाग
40
22
पैगाम
अकरम खान, पी.एस.
41
23
चाहत
24
अबला नह
25
कहानी -भरोसा
26 27
ीमती अिह या िव कमा, सचर/सुर ा ँम
हदी समय बंधन क उपयोिगता
42
कु .ए.सुगन ु ा, पयवे क/ पशन सेल
43
स ये
44
रावत, काय क/वाई. ए ड.ई.
ओउम् कु मार जापित, . .े िल./ िमक कायालय
47
पंकज कु मार वमा, काय क, पी.आर.सेल
48
अनु मिणका ं माक 28 29 30 31
रचना कल हदी सीखने के आसान तरीके दो ग़ज़ल हदी का स मान
रचनाकार सव ी/ ीमती/पदनाम/ अनुभाग
पृ
ं.
पी.के .गुमा ता, क.का. ./जन संपक को
50
सुरेखा रहाटे बाजपेयी, क.का. ./ रोकड़ ..
51
िवजय कु मार यादव, डी.बी.ड यू/एफ-6
53
वीण कु मार ीवा तव, काय क /एफ-1
32
चौसठ योिगनी मं दर.....
33
नारी शि
34
छायावाद
अनुराग सोनी, क.का. ./ एफ.-1
57
35
भीड़ तं
नीरज गौतम, एच.एस.-I /ई.एस.
60
36
2 ग़ज़ल
िवनीत कु मार पंथ, ए जािमनर/ यू.ए.मट
61
37
माँ बाप को भूलना नह
फु दी लाल ग टया, क.का. ./पे शन सैल
62
38
“
जय काश सह, किन.अनु.अिध./राजभाषा
63
39
न े
तू य घबराए
स”
क ू र
राघवे
कु रा रया,सहा. .क.आयु
54
दीप कु मार िबसेन, . .े िल./एल.बी.
दीप शमा, क.का. ./ कटीन
55 56
66
40
एम.पी.अजब है. एम.पी.गजब है.
राम गोपाल यादव, मशीिन /ए-5
70
41
िनमाणी क
देवजीत चटज , काय क/ए-10
71
42
छोटी-छोटी बात - बडे-बडे सवाल
राजानंद हराले,क.का. ./ई.एस.ओ.
72
43
िमनी ए स लोिसव वैन
ए. ही. साद, िमल राइट/ एम.ई.
73
44
जीवन क स य व मह वपूण बात
राधा कशन मीणा, लाईन िम ी/एफ-11
74
45
कोिशश कर .........
मोहन सह, काय क / मा.सं.िव. अनुभाग
75
46
फोटो गैलरी
ितभा
76
संदेश मुझे यह जानकर हा दक स ता ई है क आयुध िनमाणी खम रया क राजभाषा काया वयन सिमित के त वावधान म राजभाषा गृह पि का " िविवधा " के 37 व अंक का काशन होने जा रहा है । हदी एक स म भाषा है िजसे अिधक से अिधक
योग म लाने पर उसक
साम यता वतः उभर कर आती है । राजभाषा हदी के चार- सार म पि का
क भूिमका
मह वपूण होती है । इनके मा यम से जहाँ िनमाणी के कमचा रय को अपनी सािहि यक ितभा द शत करने का अवसर िमलता है वह दूसरी ओर ये बु
ानवधक लेख को अपने
पाठक तक प च ँ ाने का काय भी करती ह । मुझे पूण िव ास है क " िविवधा " का 37 वॉ अंक अपने उ कृ
प म कािशत
होगा एवं राजभाषा काया वयन क दशा म अव य सफल होगा । पि का के सफल काशन क कामना के साथ संपादक मंडल को शुभकामनाएं ।
( रिव का त ) अ य एवं बंध िनदेशक यूिनशंस इं िडया िलिमटेड
संदेश यह हष का िवषय है क आयुध िनमाणी खम रया अपनी गृह पि का "िविवधा" के 37 व अंक का काशन करने जा रही है । िनमाणी का मक क सािहि यक अिभ िच को, पि का के मा यम से, एक मंच दान करना काशन का एक साथक पहलू है । यह िव दत ही है क पि का ने िनमाणी म राजभाषा हदी के
चार- सार म मह वपूण योगदान दया है । "िविवधा"
क रचनाएं िनमाणी का मक के िनमाणी, समाज, कमचारी एवं सामियक प रदृ य के ित उनक वतमान सोच, नज रए क अिभ ि अिभ
ह, िजसे उ ह ने राजभाषा हदी म
करने का साथक यास कया है । पि का काशन के िलए म, स पादक मंडल के साथ-साथ इसके
य
एवं अ य
काशन म
प से जुड़े सभी अिधका रय एवं कमचा रय को इसके सफलतम
काशन क शुभकामनाएँ देता ँ । पुनः शुभकामना
सिहत..... ( एस.के .िस हा ) महा बंधक
संदेश यह
स ता का िवषय है क आयुध िनमाणी खम रया अपनी राजभाषा गृह
पि का "िविवधा" के 37 व अंक का काशन करने जा रही है । प -पि काएं भाषा के िनमाणी के "िविवधा" के
हदी सािह य
चार- सार म मह वपूण भूिमकाएं अदा करती ह । ऐसे म
म े ी अिधका रय , कमचा रय क रचना
को गृह पि का
काशन से सा रत कर, राजभाषा हदी का चार- सार सुिनि त करने का
यास सराहनीय व शंसनीय है । आयुध िनमाणी खम रया म उ पादन के साथ-साथ ऐसे काशन से का मक सािह यक अिभ िच भी प लिवत होती है, जो िनसंदह े
क
शंसा का िवषय है । मुझे पूण
िव ास है क िपछले अंक क भांित यह अंक भी सुधी पाठक क आशा के अनु प होगा । म "िविवधा" के इस अंक के सफलतम
काशन क शुभकामनाएँ करता
संपादक मंडल के साथ इसके काशन से जुड़े सभी का मक को बधाई देता ।ँ शुभकामना
सिहत.....
( बी.बी. सह ) अपर महा बंधक
ँ और
11
आयुध िनमाणी खम रया- एक सफर, ार भ से अब तक
जैसा िव
यु
ि टश के क या मीन खान ने िलखा है – “ि तीय
पर पहले ही कमी हो चुक थी, इस कानून के आने से
ि टेन ने नह बि क ि टश सा ा य ने लड़ा
वदेशी हिथयार का िवकास पूणतः अव
था ।” ि टेन ने भारतीय का मत जाने िबना एकतरफा फै सला करते ए ि तीय िव
यु
था क ि टश शासन को यु सहयोग के
मा
का मानना
समा
ोत रह ग । व
वि थत करने के िलए
म सहयोग कया जाए एवं
एक स य देश होने के नाते वे यु
हो गया।
आयुध िनमािणयाँ ही इनके िनमाण और आपू त का एक
म पदापण कया ।
य िप देश म इस बारे म दो मत थे एक प
भु व के कारण वदेशी हिथयार के िवकास
1914 म व
होने पर इस
संबध ं ी साम ी के िनमाण को थम िव यु
िनमाणी,शाहजहाँपरु क
के ठीक पहले थापना क गई।
भारत ि टश सा ा य का िसरमौर आ करता
ितफल म देश को आजाद कर दगे। जब क
का मानना था क अं ज े भारतीय और उनक
था और अं ज े यहाँ पर अपने कदम मजबूती से थािपत
स यता तथा सं कृ ित को हेय दृि से देखते ह और यहाँ के
करना चाहते थे । ि टश कालोिनय से क ा माल
िनवािसय के िलए उनके मन म कोई स मान नह है ।
आयात कर ि टेन म इनका उपयोग कर बने ए सामान
इसके बावजूद जब ि तीय िव यु
को िविभ
दूसरे प
समा
आ तो
देश को िनयात कया जाता था । कतु
ि टश भारतीय सेना म वयं सेवक सैिनक क कु ल
उ ीसव शता दी म भारतीय सेना के इं जीिनयर-इन-
सं या 22,50,000 थी जो क िव
चीफ ने यह समझा क सैिनक साजो-सामान का आयात
के इितहास म सबसे
बड़ी थी । इसके साथ ही ि टश सा ा य के िलए यु क
करना महंगा होने के साथ-साथ अपया भी था और यह
साम ी और हिथयार म भी भारत का योगदान ब त
से भारत म आयुध साम ी जैस-े गन पाउडर, छोटे अ -
बड़ा था ।
श , गोला-बा द, मोटार , होिव जर आ द के िनमाण
ि टश रा य के िनमािणय क
को गित िमली । तोप और गािडयाँ जो ि टेन से मंगाई
दौरान भारतीय आयुध
जाती थ , उनके िनमाण के िलए सन 1801 म काशीपुर
थापना तोप और गोला-बा द िनमाण
के िलए क गई थी । पहली आयुध िनमाणी क
म गन कै रीज फै
थापना
साम ी िनमाण संबध ं ी कोई यास ह िजससे क ि टेन
े म कु छ काय
क
कए टेलीक युिनके शन संबध ं ी काय भी कए गए कतु यह
ाइवेट फ स को चुनौती िमले। इसिलए िनमािणय के
मुख (िज ह उस समय सुप रटडट कहा जाता था) के
सारा काय सतही तर पर ही रहा । पहले इन िनमािणय क
थापना क गई।
अं ज े नह चाहते थे क भारत म वदेशी यु क
काशीपुर म सन 1801 म क गई । डायरे टोरे ट ऑफ टे कल डेवलमट ने तकनीक उ यन के
ी(जी.एस.एफ.) क
चाहने पर भी उ ह प रवतन या अनुसध ं ान क अनुमित नह दी गई । ि टश उ ािधकारी नये मंहगे सै य
थापना का उ े य
सामान म कसी भी कार के सुधार आ द के िलए कए
ित ं दयो को हराना, शांित और भु व थािपत करना
जाने वाले योग या नये सै य साम ी िनमाण के िलए
था कतु बाद म सरकारी कं पनी बन जाने के बाद इंिडयन
सहमत नह थे । वा तिवकता यह थी क आयुध िवभाग
आ स ए ट 1878 के तहत सरकार ने हिथयार आ द के
के महािनरी क और महािनदेशक के वल भारत के रा य
िनमाण, िब , रखने, लाने-ले जाने और मारक हिथयार
सिचव (से े टरी फार
के आयात आ द पर लाइसस क अिनवायता कर दी।
आदेश का ही पालन कर रहे थे।
12
टेट फार इंिडया) के िलिखत
ि तीय िव यु
म ि टेन को बड़ा आघात प च ँ ा
सन 1939 म यु
से
संबध ं ी सभी क म के सामान क खरीद के िलए भारत
और लंदन क सरकार को यह समझ म आ गया क
सरकार ने आपू त िवभाग (िडपाटमट ऑफ स लाई)
ि टश कालोिनय से क ा सामान आयात कर, बने ए
बनाया था । र ा उ पादन और नजदीक सम वय के िलए
सामान को िनयात करने क नीित अब नह चलने वाली थी। िहटलर से यु
ार भ होने से पहले, यु
यु के समय उठाये गए कदम के
म िवरोिधय क सबमरीन ने, ि टेन
प म आयुध िनमािणय
को आपू त िवभाग (िडपाटमट ऑफ स लाई) के अधीन
क क युिनके शन समु ी लाइन को बािधत कर दया ।
कर
दया गया था। आयुध िनमािणयॉ सीधे डेपटु ी
उस समय के द तावेज बताते ह क ि टश सरकार ने
डायरे टर जनरल ऑफ आमामट ोड शन (डीडीजीएपी)
वयं अपने यहाँ यु क सामि य का उ पादन न कर इस
के िनयं ण म थी, जो आपू त िवभाग (िडपाटमट ऑफ
संबध ं म अपने उपिनवेश से सहयोग मांगा और यही वह
स लाई) के इं जीिनय रग उ पादन के महािनदेशक के अधीन काय करते थे। ज द ही डीडीजीएपी के पद का
व णम अवसर था जब भारतीय आयुध िनमािणय ने पराधीन
प से काय न करते
अवसर को समझा । काशीपुर और इसके संब ने अपनी यु क साम ी िनमाण
नाम बदलकर डायरे टर जनरल
ए वयं के िवकास के
इसका कायालय कोलकाता थानांत रत कर दया गया।
मता का िव तार कया
ि टश भारतीय सेना ने ि तीय िव यु
उस समय भारत के औ ोिगक करण के िलए
थे)िजससे
ब त अनुकूल प रि थितयाँ जैस-े स ता
से तैयार बाजार आ द थ । सारे बड़े उ ोग पर ि टश का क जा था। इसिलए
सर अले जडर रोजर क अ य ता म रोजर
लाभ के िलए
टील के उ पादन या मशीनरी के उ पादन के िलए बड़े
सरकार का एक तकनीक िमशन था िजसे भारत म
लांट एवं मशीनरी के अभाव म ती औ ोिगक करण
के िलए गोला-बा द और तैलीय भंडार के संबध ं
क ठन था। भारत म पहली बार टील उ पादन ही 1913
म रपोट देना था । इसी िमशन क सं तुितय के आधार
म
पर भारतीय आयुध िनमािणय के िव तार के संबध ं म प रयोजनाय लागू क ग । इन प रयोजना
पूज ं ीपती उ
भारतीय बाजार क ओर आक षत ए। कतु लोहा और
िमशन का सन 1940 म भारत आगमन आ । यह ि टश
ुप ऑफ ोजे
म, क े माल
क उपल धता, एवं सामान क खरीददारी के िलए पहले
क चुनौितय
का सामना कया ।
सेना
ोड शन
(डीजीएमपी) कर दया गया और बेहतर सम वय के िलए
सं थान
(के वल इ ही म 40,000 कमचारी िनयु
यूिनशंस
ार भ
आइल ,इलेि
को ई टन
आ।
टील मटलज , मशीन, के िमकल,
क पावर के
े
म िपछड़े होने से र ा
उ ोग भी िघसटते ए आगे बढ़ता रहा ।
स के नाम से जाना गया। इसके अलावा
धीरे -धीरे अं ज े को यह एहसास आ क भारत
आठ नई आयुध िनमािणयाँ- कटनी ,अ बरनाथ, देहरादून, अमृतसर, िसकं दराबाद, दोहद, लखनऊ और खम रया भी
सरकार ि टश सा ा य का अिभ
अि त व म आ । ि तीय िव यु
वेश के
एक उ रदायी सरकार का होना आव यक है और इसी
बाद बंगाल म कसी नई िनमाणी को न बनाने का िनणय
गितशील सोच के प रणाम व प ि टश सरकार ने
िलया गया। साथ ही ई टन प रयोजना
म जापान के प ु ऑफ
ोजे
स क
अंग है इसिलए वहाँ
अग त सन 1917 म एक नीित क औपचा रक
को भी थानांत रत कर दया गया। िजससे
प से
घोषणा क िजससे उ ह ने शासन के हर सं थान के
माल आ स फै टरी कानपुर और आडनस फै टरी
शासन म भारतीय क भागीदारी सुिनि त क ।
मुरादनगर अि त व म आ ।
13
इस
कार
शासन चलाने म भारतीय मह वपूण
आगे चलकर आयुध िनमाणी खम रया ने गोला-
प से जुड़।े भारतीय आयुध िनमािणय के िव तार म
बा द उ पादन के
बाधा का एक कारण िशि त का मक का न होना भी था । उ
पद पर ितिनयुि
कए
पर आए ि टश अिधकारी
ही िनयु
(स ट फके शन ) ा
पद पर भारतीय को
करना आव यक आ। उ
इसे
े ता के नये ितमान थािपत
ISO
9001:2008,
OHSAS
18001:2007, ISO 17025:2005 जैसे कई
तैनात थे। बंधन तर पर कोई भी भारतीय अिधकारी तैनात नह था। इसिलए भी उ
और
े म
माणन
ए ह।
लघु, म यम और दूर तक मार करने वाले तीन
पद पर तैनात होने
ही क म के उ
वाले थम भारतीय का स मान ी आर.बी.साठे को ा
मता वाले गोला-बा द का िनमाणी
उ पादन करती है । यहाँ इिनिशयेटर, डेटोनेटर,
है जो 07.10.1931 को इस सेवा म शािमल ए। ि तीय
यूज,
ाइमर, शेल, काट रज के स, वार-हेड, आ टलरी, एंटी
के समय अिधकारी कै डर के 135 अिधका रय
एयर ा ट ए युिनशन, ब ब, माइन, टारपीडो ,
म मा 11 ही भारतीय थे । नई िनमािणय के गठन के
िमसाइल , पावर काट रज इ या द सभी क असे बली
िव यु
साथ ही अराजपि त अिधका रय क भी भत
एवं भरण का काय होता आया है । िनमाणी ने वयं के
ई । कतु
अनुसध ं ान एवं िवकास
उनक भत ,पदो ित आ द ि टश अिधका रय क मज
30MM AK-630 HE/I , 30MM AK-630 PRAC,
के ऊपर थी । उनम से भी ब त से मै क भी पास नह थे। भारत क
ारा कई ए युिनशन जैसःे -
40/60 HE TCR FUZED, 76.2 MMNAVAL
वतं ता ाि के समय भारतीय अिधका रय
PRAC, 76/62 SRGM TP, 76/62 SRGM TPT, 76/62 SRGM AAF, AK-630HET, 40/60PRAC,
के पास बंधन का ब त सीिमत अनुभव था । के दौरान ई टन प ु ोजे ट के
WARHEAD P20-4G-20, 250-120 KG PLAB
तहत आयुध िनमाणी खम रया 1942 म अि त व म आई।
BOMB, 3PDR BLANK, 76.2 PFHE & DEPTH
ि तीय िव
CHARGE और 20 MM AMR िवकिसत कए ह और
ि तीय िव यु
यु
क समाि के प ात 1943-1946 के
इनक आपू त सेना को क है।
दौरान आयुध िनमाणी खम रया म यूज के साथ-साथ
य िप शीत यु
काट रज 25 पीडीआर एचई और मोक, काट रज 3.7
समा
हो चुका है कतु भारत
एचई और मोक, का िनमाण कया जाता था। सन
को अि थर पड़ोसी देश क ि थित देखते
1946 म के .एम.पिणकर ने िलखा था क
िव तारवादी चीन क आ ामकता को देखते ए भिव य
“ यह बात िस
क यु
करने के िलए कसी तक क
आव यकता
के अनु प, अपने र ा
ए और े के ती
आव यकता नह है क आधुिनक ढंग से ग ठत िमिल ी का
िवकास के िलए सही नीितयाँ िन मत करते ए उनका
सामना भारतीय सेना आने वाले कई दशक तक नह कर
या वयन करना होगा । आयुध िनमाणी खम रया
पायेगी। सावधानीपूण संगठन और दूरदृि यु
सरकार के इस काय म मील का प थर सािबत हो
नीित
सकती है।
िनमाण ारा धीरे-धीरे और असीिमत धैय के साथ सेना को ताकतवर करना होगा। आधुिनक वै ािनक उ ोग
एन.डी.ितवारी
ारा यह कया जाए और पूरे भारतीय सागर {इंिडयन ओशन} क र ा म लगी िविभ
शि य के साथ
सहा.काय. बंधक
सामंज य के साथ इसका िवकास हो।”
14
सुदढ़ृ हदी और उसका भिव य
हदी भाषा क
हदी के सार हेतु क ीय शासन के िवभाग म हदी अिधकारी िनयु ह और हदी के योग को बढ़ावा देने हेतु हदी स ाह मनाया जाता है। य िप ब रा ीय कं पिनय म अभी हदी के मा यम से नौकरी पाना स भव नह है, परं तु िजस कार अम रका यूरोप और चीन भारत म उभरते ामीण म यवग म अपना माल बेचने को लालाियत हो रहे ह, वह दन दूर नह जब ब रा ीय कं पिनय म भी हदी जीिवकोपाजन का साधन बन जायेगी। य िप भारत म अं ज़ े ी आिभजा य वग क भाषा रही है, तथािप देश म उपल ध सार मा यम यथा िसनेमा, नाटक, किव समलन, टी.वी., आ द म हदी अथवा अ य भारतीय भाषा का ही वच व रहा है और अब तो उनम हदी क आंचिलक भाषा यथा अवधी, भोजपुरी, ज, ह रयाणवी, राज थानी आ द का भी वेश हो गया है । हदी के समाचार प एवं उनके पढ़ने वाल क सं या म िनरं तर वृि हो रही है । हदी के किव स मलन एवं सािहि यक गोि य क तो देश एवं िवदेश दोन म धूम मची ई है। क पयूटर पर हदी का योग बढ़ रहा है। भारत म कािशत ई-पि काएं यथा अनहद कृ ित, सृजनगाथा, आ द भी हदी क ीवृि म मह वपूण भूिमका िनभा रही है । हदी म अ य भाषा के चिलत श द को अपनाने क पर परा रही है। अरबी, फ़ारसी, अं ज़ े ी, गुजराती एवं दि ण भारत क भाषा के श द का समावेश हदी म अनवरत हो रहा है।
वतमान ि थित एवं उसके
भिव य के िवषय म ायः हताशापूण िवचार सुननेपढ़ने को िमलते है । परं तु व तु-ि थित यह है क आज हदी क ि थित पूव से अिधक सुदढ़ृ है एवं उसका भिव य अिधक उ वल है । कसी भाषा का भिव य मु यतः चार मानक से नापा जा सकता हैः जनमानस म उस भाषा क ित ा, जीिवकोपाजन हेतु भाषा क उपयोिगता, भाषा के सार मा यम क िनरावरोध उपल धता एवं भाषा म अ य भाषा के आव यक श द को समािहत कर लेने क मता । इन चार ही मानक पर हदी क ि थित पहले से ब त अ छी है । वतं ता के प ात बीिसय वष तक ि थित यह रही क हदी बोलने वाल को कोई भी अं ज़ े ी म बोलने वाला ि अपने से े लगने लगता था । आई.ए.एस., पी.सी.एस. आ द परी ा का मा यम के वल अं ज़ े ी होने के कारण भी सभी भारतीय के मानस म अं ज़ े ी का वच व था । आज हदी बोलने वाला ि अं ज़ े ी बोलने वाले के सामने िबना हीन-भाव क अनुभिू त कए अपनी भाषा म बोलना जारी रखता है। जनमानस म हदी क ित ा िनरं तर बढ़ रही है । आज हदी भाषी देश क सम त शासक य सेवा एवं आई.ए.एस. सिहत सम त क ीय सेवा म हदी के मा यम से वेश संभव है । सेना के जवान सिहत सम त क ीय कमचा रय को हदी सीखना अिनवाय होता है । 15
अब तो दैिनक जागरण समूह के 'आईने ट (Inext)' अख़बार ने ' हि लश' को अपना िलया है एवं अमर उजाला आ द ने अपने कितपय लेख को ' हि लश' म िनकालना ार भ कर दया है। टी.वी. के अिधकांश काय म भी ब भाषीय हदी का योग कर रहे ह। इस कार चाहे प रव तत प म ही सही हदी का सार त ु गित से हो रहा है। हदी का यह प अं ज़ े ी कू ल म िश ा पाए लोग को भी समझ म आता है एवं उनम वीकाय है ।
यू. के . से कािशत पुरवाई, अम रका से िव िववेक, कै नेडा से हदी चेतना एवं ईपि का म शारजाह क अिभ ि एवं अनुभिू त, कै नेडा क सािह य कुं ज, अम रका क ई-िव ा, भारत म अंबाला से संपा दत व अम रका से कािशत अनहद कृ ित, आ द बड़ा मह वपूण योगदान दे रही ह । फर भी रा ीय एवं अंतरा ीय तर पर हदी के िलए अभी ब त कु छ कया जाना शेष है, यथा हदी का यू. एन. ओ. क भाषा म वेश, हदी को िव ान एवं तकनीक िश ा क भाषा बनाना, हदी को उ यायालय म थािपत करना, हदी को रा भाषा के समुिचत व ावहा रक थान पर िति त करना तथा हदी को कं यूटर एवं जीिवकोपाजन क भाषा बनाना आ द । हम यह नह भूलना चािहए क हदी क ित पधा अं ज़ े ी, मंदा रन, पैिनश, अरे िबक आ द भाषा से है िजनके पास हमसे अिधक संसाधन उपल ध ह । हदी िे मय को हदी क वीकायता एवं उपयोिगता बढ़ाने के साथ-साथ अ य भारतीय भाषा क अिभवृि के िलए भी सतत यास करते रहना चािहए । हमारा यह यास ही देश क सं कृ ित का अवलंब एवं संवाहक होगा । अजय कु मार सोनी अनुभाग मुख/ राजभाषा
िवगत 15-20 वष से िवदेश म हदी का सार तेज़ी से आ है।100 से अिधक िव िव ालय म हदी पढ़ाई जा रही है और बाज़ारवादी पधा म आगे रहने क ललक म कसी - कसी देश म हदी म ै श कोस भी चलाये जा रहे ह। िव हदी समलन , किव समलन , िव हदू प रषद ारा संचािलत ाथिमक पाठशाला एवं संत के वचन ने िवदेश म हदी के सार म मह वपूण भूिमका िनभायी है
16
िम ता िम
अगर जीवन म न होते,
नेह बंधन या जग म होते। न आ था न िव ास जगत म जीवन कतना दूभर होता । संसार क इन ज टल पगडंिड़य पर, कांधे पर हाथ रखकर कसके चलते । इमली अिमयॉ के चटकार म चटक धूप या बौछार म । साथ िम का साया बनकर रहते सदा हम आगे क कतार म । क ठनाइय का कोई प थर जब देता है जीवन म ठोकर तब िम के हाथ का पश देता है सदा सहारा हौसला बनकर । र त म इतनी पिव ता और अपनेपन का आभास िम ता तो के वल िम ता है य क औरो से ये र ता है खास ।
ीमित अिह या िव कमा 17
वामी िववेकानंद का ेरक संग वामी िववेकानंद भारत के
अित
यह देखकर अ यापक ने सभी ब
भावशाली
को हाथ ऊपर
करके दंड व प खड़ा रहने का िनदश दया । उन सभी
लोग म से एक थे । उनके जीवन क तमाम ऐसी घटनाएं
ब
ह, जो आज के युवा वग को े रत करती ह । उ ह ने अपने
देखकर क ा अ यापक ने च कत होते ए कहा - "नर
जीवन काल म भारतीय स यता और सनातन धम को
तुम बैठ जाओ ! तुमने सभी सवाल का जवाब ठीक-ठीक
अंतररा ीय तर पर द शत कया । वामी िववेकानंद का
म नर
भी हाथ ऊपर करके खड़े हो गए । यह
दया है।"
ि गत जीवन साधारण था । ले कन जब वे कसी
क ा अ यापक क इस बात को सुनकर नर
ने
िवषय पर गंभीरता से बात करते थे या फर भाषण देते
जवाब देते ए कहा - " मा कर गु जी ! मरी वजह से
थे, तो लोग उनक ओर आक षत हो जाया करते थे। इस
सभी छा दंड के पा बने ह, य द म इनसे बात ना करता
लेख म हम वामी िववेकानंद जी के जीवन से जुड़े कु छ
तो यह पढ़ाई पर यान देते और ये दंड के पा नह होते ।
रे णा मक क स का िज करगेः-
इसिलए गलती मने क है और सजा का हकदार भी म ही ँ । आप जो सजा देना चाहते ह, मुझे
यह क सा उसी दौर का है, जब
मंजरू है।"
नर एक रोज अपने क ा के छा
नर
से बात करने म मशगूल
थे । ले कन उनका
उ ह ने गदगद होते ए उसी समय भिव यवाणी क
क ा के बाक ब े भी क ा
महसूस
अखंड भारत के िलए एक
को
िमसाल बनेगा और संपण ू
आ क ब े पढ़ने के
बजाए बात करने म
भारत का नाम रोशन करे गा"। यह
त ह, तब
उ ह ने ब
को खड़ा करके
संबिं धत पा
म से सवाल पूछना शु कर दया।
बालक कोई और नह
मरणशि
काफ ती
आगे चलकर कई बड़े काय कए और संपण ू िव
थी, और वे बीच-बीच म
पढ़ाई पर गौर भी कर रहे थे । इसिलए नर ने क ा
क.का. ./ आई.टी.सी.
यह देखकर अ यापक ने उ ह बैठने का िनदश दया, और से सवाल पूछने लगे । ले कन बा क छा
म भारत का नाम रोशन कया ।
अिवनाश भुरभुरे
अ यापक के सभी सवाल का जवाब सही-सही दे दया । अ य छा
वामी
िववेकानंद ही थे, िज ह ने
सबसे पहले नर से शु आत क गई । ले कन नर क
-
"यह लड़का आगे चलकर
त थे । अ यापक
बात
मन क णा से भर उठा ।
भी था । नर के साथ-साथ
जब
यह
सुनकर क ा अ यापक का
यान
सामने पढ़ा रहे अ यापक पर
बात करने म
क
का
यान बात म होने क वजह से एक भी छा सवाल का सही -सही उ र नह दे सके ।
18
आयुध िनमाणी खम रया के हिथयार क गाथा ध य खम रया नर तु हारा, या हिथयार बनाया | तेरे ही हिथयार के दम पे, दु मन ने पीठ दखाया || दु मन को िमटाने के खितर, ऐसा अ त बनाया | बालाकोट क
ाइक को, तूने सफल बनाया ||
एक बार म आधी रात म, दु मन का कै प उड़ाया | तूने भारत के झंडे को, दुिनया म लहराया || जब-जब भारत देश म मरे , है संकट गहराया | तब-तब तेरा द
अ , आकाश म है लहराया ||
िवदेशी फौज ने कारिगल म, जब उ पाद मचाया | तेरे ही हिथयार के दम पे, दु मन को मार भगाया || सन 1965 और 1971 म , जब हमको ऑख दखाया | तब भारत के वीर ने, उसको औकात बताया || जब भारत क सीमा म, दु मन है पैर जमाया | तब तेरे हिथयार ने, भारी कोहराम मचाया || तूने अपने देश क खाितर, ऐसा कवच बनाया | तूने भारत के झंडे को, दुिनया म लहराया || ध य “खम रया” नर तु हारा, या हिथयार बनाया | तेरे ही हिथयार के दम पे, दु मन ने पीठ दखाया || संतोष कु मार ीवा तव एम. टी.
19
म मजदूर ँ हाँ म मजदूर ँ थोड़ा हैरान ,ँ थोड़ा परे शान ँ समय के घाव से पूरा ल लुहान ँ हाँ म मजदूर ँ ......... अंत म, शु आत क खामोशी म चघार क दुख के बादल से, अमृत क बरसात क मुसीबत के सामने दीवार पर खड़ा ँ हाँ म मजदूर .ँ ........ झोपड़ी म रहकर, महल क सौगात दी सद म िसहरकर गम सी आँच दी कतना भी िगरा ले तेरी सोच से बड़ा ँ हाँ म मजदूर .ँ ........ पहाड़ के गुमान को हाथ से तोड़ दया नाज कर रही सड़क को पैर से नाप दया हर सांस के िलए मौत से लड़ा ँ हाँ म मजदूर .ँ ........ तेरे उजाले के िलए जीवन म अंधरे ा कया काली घनी रात म तेरे िलए सवेरा कया अम रक दुिनया का बस म हण ँ हाँ म मजदूर .ँ ........ मरी आंख ने आँसु का खूब साथ िनभाया पेट भर खाना तो बस सपन म ही खाया क मत क चौखट से चाँद सा सुद ं र ँ हाँ म मजदूर .ँ ........ एक रोटी के वा ते दन भर कमाता ँ सूरज से पहले खुद को जगाता ँ सबक खुशी के वा ते हर मजे से दूर ँ हाँ म मजदूर .ँ ........ हाँ म मजदूर .ँ ........
अिभषेक कु मार क.का. ./ दूषण िनयं ण
20
ग़ज़ल मेहरबां
हम पर जमाना हो नह सकता
और सर अपना झुकाना हो नह सकता l बात िनकली दो त
उनके
वफ़ाओ क
और ऐसे म बहाना हो नह इस तरह
यूँ रा ते को देखता
जैसे तेरा लौट आना हो नह र स
करते
सकता l
ह
िसतारे
ँ म
सकता l
सामने
ले कन
ये दया हमसे बुझाना हो नह सकता l याद
उसक
चैन
से
जीने नह
देती
और उसको भूल जाना हो नह सकता l जा मरे हम बेवफ़ा के बाम तक ले कन प थर का दल दवाना
हो नह सकता
झूठ से भी खूब त ख़ी यार ह तुमको सच भी उसका आज़माना हो नह सकता
लोके श माथनकर परी क/ यू.ए.मैट
21
संवैधािनक आधार िशला जैसा
क सभी को िव दत है क भारतीय
संिवधान ही भारत क एकता, अखंडता और गित का संर क है, जो क इसक
तावना से वतः ही
प हो जाता है । हम संिवधान म कई तरह क सुर ाएं मौिलक अिधकार के
ारा द
क गई है िजससे क हम
समाज म ग रमापूण जीवनयापन कर सक । परं तु आज यह सोचना भी ज री हो गया है क या िसफ मौिलक अिधकार के बारे म जाग क रहने से ही हम संवैधािनक आधारिशला को सुरि त रख पाएंगे ? हम आज यह समझना होगा क कई लोगो के मौिलक अिधकार को सुरि त रखने के िलए सभी को अपने मौिलक कत
को समझना
होगा व इनके ित अपनी संवैधािनक सचेतता को बढ़ाना होगा । ारं भ म संिवधान म मौिलक कत
शािमल नह थे, पर तु इसे 42व संिवधान संशोधन 1976
ारा वण सह सिमित क अनुशस ं ा पर संिवधान म शािमल
कया
गया।
संिवधान म िन मत नये भाग 4(क) के अनु छेद 51 (क) के तहत 10 मौिलक कत गया संिवधान संशोधन 2002 ब
को शािमल कया ।
बाद
म
ारा माता-िपता
86व ारा
को ाथिमक िश ा दान कराना भी मौिलक
कत ो म जोड़ा गया अब कु ल 11 मौिलक कत
है, जो क िन वत् है:
22
येक नाग रक का यह कत होगा क वह संिवधान का पालन करे व उसके आदश , सं थाओ, रा वज और रा गान का आदर कर । वतं ता के िलए हमारे रा ीय आंदोलन को े रत करने वाले उ आदश को दय म संजोए रखे और उनका पालन कर । भारत क भुता, एकता और अखंडता क र ा करे और उसे अ ु ण रखे । देश क र ा कर। भारत के सभी लोगो म समरसता और समान ातृ व क भावना का िनमाण कर । हमारी समािजक सं कृ ित क गौरवशाली पर परा का मह व समझ और उसका प रर ण कर। ाकृ ितक पयावरण क र ा और उसका संवधन कर । सावजिनक संपि को सुरि त रखे। वै ािनक दृि कोण और ानाजन क भावना का िवकास कर । ि गत एवं सामूिहक गितिविधय के सभी े म उ कष क ओर बढ़ने का सतत् यास कर। माता-िपता या संर क ारा 06 से 14 वष तक के ब को ाथिमक िश ा दान कराना । मौिलक कत के संदभ म संवध ै ािनक सुझाव के अनुसार हम सभी को अनुसरण करना होगा और जब बात सरकारी तं , राजक य अिधकारी, ािधकारी या अ य अिधकारी क हो तो यह कत और मह वपूण हो जाते ह । इसे एक उदाहरण के ारा समझा जा सकता है – 86 व संिवधान संशोधन 2002 ारा 06 से 14 वष तक के ब को िश ा का मौिलक अिधकार दान कया गया व इस संिवधान संशोधन के तहत
येक माता-िपता को यह सुझाव भी दया गया क वह अपने ब को िश ा दान कराने हेतू े रत रहे व इस सुझाव को मौिलक कत के प म शािमल कया गया । अतः यहाँ इस बात का सं ान वतः ही हो जाता है, क य द माता-िपता अपने मौिलक कत को पूरा न करे तो ब े के मौिलक अिधकार भािवत हो सकते ह । अब बात आती है सरकारी तं क तो जैसा क िव दत है, क भारत म िश ा का अिधकार अिधिनयम लागू है और सरकारी तं के यास से इसे कई े म सफलतापूवक याि वत कया जा रहा है , परं तु य द कसी िवशेष प रि थित म सरकारी तं से िश ा का अिधकार अिधिनयम को लागू कराने म चूक ई होती तो हजार ब के मौिलक अिधकार भािवत हो सकते थे । अतः मौिलक अिधकार मौिलक कत
के
का
या वयन
ित सजग रहते ए ही कया
जा सकता है । अतः अब हम अपने मौिलक कत पर और अिधक यान देना होगा िजससे हमारी आने वाली पी ढ़य और वतमान पीढ़ी के अिधकार क र ा हो सके । हम ण लेना होगा क अिधकार के
ित सजग रहते
ए हम कत
का पूरी
िज मेदारी के साथ िनवहन करगे ।
िहमांशु चक काय क/ पी. ही.
23
िनमाणी के सम चुनौितयाँ एवं उनका समाधान ज म दया।
तुत िवषय पर िनबंध लेखन का आमं ण ा
िश ण - जीवन सतत िश ण का नाम है। तेज
होते ही मन म कई तरह के िवचार उमड़ने
तकनीक प रवतन ने हम िनरं तर
लगे क कस िवषय का चुनाव कया जाये। अंतत:
द ता
यही िन य कया क सारे िवषय पर ही लेखन
ाि
हेतु िववश कर दया है क, हम
नवसृजन करते ए उ पादन
एक मा रा ता है, य क सभी
हमारे अनुगमन के िलए
एक िवषय का चुनाव लेखन को
िववश ह ।
संक ण करता है और वत: दूसरे के
िविभ
िवकास –
प
सबसे बढकर
ारा चुना
(पयावरणीय
िवषय भी अपने संदश े ष े णम कु छ
दन
संतल ु न
िवकास)
ही
हमारा
वा तिवक िवकास है, यह
उपि थत चुनौितयां
हम
और उनका समाधान” िवषय पर िनबंध
ाकृ ितक
इन सभी म सम वय और
पूव
िनमाणी बंधन ारा “िनमाणी के सम
,
हमारी आव यकता है।
अधूरा ही रह जाता है। अभी
तकनीक
सामािजक,औ ोिगक,और
अिलिखत, अप ठत रह जाते ह। प रणामत: हमारे
या का नेतृ व कर
सक और हमारे ित पध
िवषय अंतसबंिधत ह और कसी
िवषय
िश ण एवं
सुिनि त
करना
होगा।
ितयोिगता का आयोजन कया गया।
यह िवषय इतना िव तृत और समयानुकूल है क,
गुणव ा- गुणव ा कसी भी काय म हमारी महती
इसम सभी
आव यकता है। चाहे वह िश ा हो, सं कृ ित हो ,या
तािवत िवषय समािहत हो जाते ह।
काय क
आइये, शुभारं भ करते ह। उ पादन- आयुध िनमािणय
क गुणव ा म उ रो र कृ ित ही हमारा येय
का आधार,
भी है और ल य भी।
औिच य और ल य उ पादन है। सन 1802 म कोलकाता(पूव म कलक ा) म पहली आयुध िनमाणी क
थापना
संर ा- संर ा हमारी ाथिमकता है हम वयं जड़
ई। पूरा देश ि टश
व तु
सा ा य का उपिनवेश था,यानी गुलाम था और पूरी दुिनया यु रत थी। अ - श
क
कृ ित हो। िनमाणी के संदभ म उ पादन
ा
व रत
के उपयोग -उपभोग म संर ा सूचनाय कर इनके “ या कर और
िनदश का अ रश: पालन कर।
आपू त और आव यकताय न आयुध िनमािणय को 24
या नह कर”
रख - रखाव िनमाणी म अधुनातन मशीन, उपकरण और सहायक उपकरण पया
शासन- िनमाणी का संचालन शासन ारा कया
सं या म
जाता है िनरं तर खडी होती चुनौितय का सामना
उपल ध ह । इनका दीघकालीन जीवन समुिचत
सीिमत संसाधन से
और िनयिमत रख -रखाव से ही संभव होता है इस
शासन यह काय
शंसनीय
या से करता आ रहा है । आयुध िनमाणी
िलए हम इनके रख रखाव का यान अपने शरीर
खम रया के चार वग कलोमीटर
क भांित ही करना होगा । भंडारण- तकनीक हम
हजार कमचारी कायरत ह । िनमाणी संचालन इस
रयल व ड से वचुअल और िडजीटल व ड क ओर
वैि क महामारी के दौर म भी सु वि थत तरीके
ले जा रही है जैसे सूचनाय अब कं यूटर म सुरि त
से कया जा रहा है ,कोई िववाद नह , कोई
रखी जाय, पेपर का उपयोग
अवरोध नह । आधारभूत संरचना ,आवासगृह,
मश: कम होता जाये
। भंडारण उिचत थान पर, उिचत ताप म म िनधा रत नवीनतम
या से कया जाये ता क
य
माण है । सुर ा – सुर ा के तर पर भी हम वयं ब त ही
दीघकालीन हो सके ।
यादा प रव तत होना होगा । कोरोना महामारी के समय काल म जांच म सुर ा क मय क मदद
भंडारण - तकनीक हम रयल व ड से वचुअल और
कर, उ ह समय कम लगे और सोशल िड ट सग
िडजीटल व ड क ओर ले जा रही है जैसे सूचनाय उपयोग
म पांच
प रसर का संपण ू िवकास इस सुशासन का
उ पादन का जीवन काल बढ़े और उपयोग
अब कं यूटर
े
बनी रहे, मा क लगाकर कोई अनिधकृ त वेश ना
म सुरि त रखी जाय, पेपर का
हो सके । वतमान दौर चुनौितय का दौर है ।
मश: कम होता जाये । भंडारण उिचत
िनमाणी हमारी आजीिवका का मूल साधन है। यह
थान पर,उिचत ताप म म िनधा रत नवीनतम
सुरि त रहे । इसक सुर ा हम सभी क मय का
या से कया जाये ता क उ पादन का जीवन
ि गत दािय व है ।
काल बढ़े और उपयोग दीघकालीन हो सके । और
गोला बा द- गोला बा द िनमाणी का आधारभूत
म क आव कता हमशा से रही है
उ पाद है । सेना ने इसका िनरं तर योग कया है ।
और रहेगी । चाहे तकनीक उ ता कसी भी तर
सैिनक, अधसैिनक बल, पुिलस बल हमारे
तक प च ं जाये। अत: मानव संसाधन िवकास
स मानीय ाहक ह । इस गलाकाट पधा म हमारे
िवभाग को िन य नये उपाय को कायाि वत करके
ाहक क संतिु बढ़े । हमारी गित नये आयाम
मानव संसाधन िवकास - उ पादन के िलए द कु शल मानव
कु शल का मक क उपल धता सुिनि त करने क
को छू सके , इस ल य क
सतत् आव यकता बनी रहेगी ।
अनुपालन, अनुशासन,नवसृजन क राह पर चलना ही होगा । 25
ाि
के िलए हम
सतकता क आव यता आन पड़ी है धनहािन, नेट बै कग,ई- मल है कग
ि गत तौर पर आम
सम या हो गई है तो रा ीय तौर पर साम रक उपकरण को नुकसान , लैकम लग कर अपने प म इ तेमाल क सम याय तेजी से बढ़ रही ह। हम सभी सम या मानते
को अपनी
ि गत सम या
ए इनका अवलोकन और िनदान िनरं तर
करना होगा। टीपीएम – टोटल
ोडि टव मटेनस अथात सम
औघोिगक संबध ं - उ पादन एक सामूिहक काय है,
उ पादक संधारण एक नई अवधारणा है ले कन
सामूिहक काय तभी सफल होते ह, जब समूह म
अिनवाय भी। “पांच जापानी एस” का समुिचत
सम वय और काय संतल ु न हो। सहज और मया दत
पालन हम जापान (इसे उगते सूरज के देश कहा
औघोिगक संबध ं उ पादन म
जाता है।) क तरह गित क राह पर ले जायेगा और
िलए अिनवाय है।
हम संपण ू िवकास क मंिजल ा कर सकगे।
म क याण-
गित और वृि द के
म क याण एक
ापक अथ का
सतकता- साइबर ाइम,आतंकवाद,जासूसी, हनी ैप
श द है ।
जैसे
(उ पादन+ िमक+अिधकारी) के प रमाण देने लगे
करण लगातार बढ़ रहे ह । अब अित र
सतकता क आव यता आन पड़ी है धनहािन, नेट बै कग,ई- मल है कग
म क याण जब सव क याण
तो यही वा तिवक क याण होगा।
ि गत तौर पर आम सम या
राजेश झा
हो गई है तो रा ीय तौर पर साम रक
काय क / एफ.टी.आई
कोिशश कर, हल िनकलेगा कोिशश कर हल िनकलेगा
जदा रख, दल म उ मीद को
आज नह तो, कल िनकलेगा
गरल के सम दर से भी, गंगाजल िनकलेगा
अजुन के तीर सा सध
कोिशश जारी रख, कु छ कर गुजरने क
म थल से भी जल िनकलेगा
जो आज है थमा-थमा सा,चल िनकलेगा
महनत कर, पौध को पानी दे
कोिशश कर हल िनकलेगा
बंजर जमीन से भी फल िनकलेगा
आज नह तो कल िनकलेगा
ताकत जुटा, िह मत को आग दे
ि यंका ठाकु र
फौलाद का भी, बल िनकलेगा
एच एस-1/ एफ-11
26
हदी किवता का इितहास ‘‘वह ब त पहले क बात है
आलेखः मनोज सह,
जब कह कसी िनजन म
अनुभाग मुख/मानव संसाधन िवकास अनुभाग
आ दम पशुता चीखती थी और सारा नगर च क पड़ता था
किवता अथात् का ा मक रचना (किव क
मगर अब-
कृ ित)। का
अब उसे मालूम है क किवता
श द के
कसी बौखलाए ए आदमी का
योग से
मागत
िन तर भावि थित म रखा जाता है। ग िवप ी
कसी क य क कला मक
अिभ ि
है और किवता सािह य क सव
िवधा है।
िस
लोकोि
प है, जो छ दोब
सीिमत है। मा छ दोब का
है क
का
किव‘‘। अथ ये क यथाथ िच ण
क
कला
का
रचना के िलए प
शद
योग उिचत है, पर तु से ऊँची ि थित
ोतक है और उसम किवता
को अिधक मह व दया गया है।
तुत कए किवता
प
(किव-कम), अथात् का कला
को यथे कला मकता दान करते ए सरसता के साथ
प से
या िवचार तक
किवता श द प
‘‘ जहाँ न जाए रिव, वहाँ जाए
और
धानता िमलती है। का ,
किवता, प , इन तीन श द को
‘‘धूिमल‘‘
जाने
ायः उसके कलाप
पा मक स दय को
एकालाप है।‘‘
सािह य मूलतः
और
अ तःस दय का अिधक बोध होता है, वहाँ किवता
घेराव म संि
से जहाँ रचना के भावप
इितहास
है।
वीरगाथा काल से लेकर आधुिनक
येक देश का सािह य वहाँ क
काल तक किवता ने अनेक सोपान
जनता क िच वृि
को पार कया है। एक समय था
का संिचत
ित बब होता है, जनता क
जब किवता वामी के शौय तथा
िच वृि
बल को अितरे क के साथ
साथ सािह य के
तुत
के प रवतन के साथव प म भी
करने के िलए िलखा जाता था ले कन आधुिनक
प रवतन होता चला जाता है। आ द से अंत तक
काल म किवता अपना
इह
े िव तार करते ए आम
जन क पीड़ा और िन य पैदा होते के मा यम के
को पूछने
िच वृि य
क
परं परा को परखते
ए
सािह य परं परा के साथ उनका सामंज य दखाना
प म थािपत हो चुक है।
ही सािह य का इितहास कहलाता है।
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जनता क िच वृि
ब त कु छ राजनीितक,
अतः
येक काल का वणन इस णाली पर
सामािजक, सां दाियक तथा धा मक प रि थित के
कया जाएगा क पहले तो उ
अनुसार होती है। इस दृि
वृि
से हदी सािह य का
िववेचन करने म यह बात यान म रखनी होगी क कसी िवशेष समय म लोग म
िचिवशेष का
उनके अित र रचना
व था के अनुसार हम हदी सािह य के
900 वष के इितहास को चार काल म िवभ
कर
कार क
यान देने यो य
का उ लेख होगा।
सव
थान रखता है। इस काल का सािह य
राजिनितक दृि से पतनो मुख, सामािजक दृि से
आ दकाल (वीरगाथाकाल, संवत् 1050-1375)
दीनह न तथा धा मक दृि
पूव म यकाल (भि काल, संवत् 1375-1700)
से असंतिु लत है। इस
काल के सािह य म आ यदाता
उ र म यकाल (रीितकाल, संवत् 1700-1900)
क
शंसा,
ऐितहािसकता का अभाव, अ मािणक रचना ,
आधुिनक काल (ग काल, संवत् 1900-1984)
वृि
और
वीरगाथाकाल आलोचना के दृि कोण से
सकते ह।
य िप इन काल क रचना
का वणन होगा जो उस
काल के ल ण के अंतगत ह गी, पीछे सं प े म
संचार और पोषण कधर से और कस कार आ। उपयु
सूचक उन रचना
काल क िवशेष
यु
के
सजीव वणन, संकुिचत रा ीयता,
अ यिधक वीर तथा
क िवशेष
ग ृं ार रस तथा जन जीवन के
िच ण के अभाव के कारण यह का
के अनुसार ही इनका नामकरण कया गया
के मूल
उ े य से मल खाता तीत नह होता।
है, पर यह न समझना चािहए क कसी िवशेष काल म और कार क रचनाएँ होती ही नह थ ।
भि काल क पृ भूिम पर यान देना भी
जैसे भि काल या रीितकाल को ल तो उसम वीररस के अनेक का क
आव यक है। देश म मुसलमान का रा य िति त
िमलगे िजनम वीर राजा
शंसा उसी ढंग क
हो जाने पर हदू जनता के
होगी िजस ढंग क
दय म गौरव, गव और
उ साह के िलए वह थान न रह गया। उसके सामने
वीरगाथाकाल म आ करती थी।
ही उसके देवमं दर िगराए जाते थे, देवमू तयाँ तोड़ी जाती थ और पू य पु ष का अपमान होता था और वे कु छ भी नह कर सकते थे। ऐसी दशा म अपनी वीरता के गीत न तो वे गा ही सकते थे और न िबना लि त ए सुन ही सकते थे। आगे चलकर जब मुि लम सा ा य दूर तक थािपत हो गया तब पर पर लड़ने वाले वतं रा य भी नह रह गए।
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इतने भारी राजनीितक उलटफे र के पीछे
रीितकाल तक हदी का
पूण
ौढ़ता को
हदू जनसमुदाय पर ब त दन तक उदासी-सी
प च ँ गया था। संवत् 1598 म कृ पाराम थोड़ा
छाई रही। अपने पौ ष से हताश जाित के िलए
ब त रसिन पण भी कर चुके थे। उसी समय के
भगवान क शि
लगभग
जाने के अित र यह तो
और क णा क ओर यान ले
अलंकार
‘किवि या‘ के एक िभ
के सब अंग का िन पण क
ायः 50 वष पीछे चला और वह भी
आदश को लेकर, के शव के आदश को हदी रीित थ ं
ान के िबना अंधा और
क
परं परा
चतामिण
ि पाठी से चली, अतः रीितकाल का आरं भ उ ह से
के िबना दयिवहीन और िन ाण रहता है
मानना चािहए। उ ह ने संवत् 1700 के कु छ आगे
ान के अिधकारी तो सामा य से ब त अिधक
जनसमुदाय क संपि
कार सू पात हो जाने
लेकर नह ।
एक के भी अभाव से वह िवकलांग रहता है। कम के
के कु छ थोड़े-से िविश
ही होते ह। कम और भि
और
अिवरल और अखंिडत परं परा का वाह के शव क
ान और भि , इन
से धम अपनी पूण सजीव दशा म रहता है। कसी
ि
रसिन पण
थ ं
के शव ने ही कया। पर हदी म रीित थ ं क
म चलता है। इन तीन के सामंज य
समु त और िवकिसत बुि
ग ृं ारसंबध ं ी िलखा।
का रीित का स यक् समावेश पहले पहल आचाय
चला जा रहा था।
भि
ने
शा ीय प ित पर कया। इसम संदह े नह
दय धम से कतनी दूर हटता
िबना वह लूला-लँगड़ा,
िलखे।
पर के शवदासजी ने का
सामा य जनता क धमभावना कतनी दबती जा
तीन धारा
संबध ं ी
अलंकारिन पण का इस
थे। इसी बात से इसका अनुमान हो सकता है क
वाह कम,
िम
‘ िु तभूषण‘ और ‘भूपभूषण‘ नामक तीन
नाथपंथी जोगी पि मी भाग म रमते चले आ रहे
धम का
मोहनलाल
नरह र किव के साथी करनेस किव ने ‘कणाभरण‘,
ई राजनीितक प रि थित। अब
, कापािलक आ द देश के पूरबी भाग म और
रही थी, उसका
के
‘ ग ृं ारसागर‘, नामक एक थ ं
दूसरा माग ही या था?
धा मक ि थित देिखए। आ दकाल म व यानी िस
चरखारी
ही सारे
पीछे
‘का िववेक‘,
‘का
काश‘ ये तीन
‘किवकु लक पत ‘ थ ं िलखकर का
अंग का पूरा िन पण
होती है। हदी सािह य के
छंदशा
आ दकाल म कम तो अथशू य िविधिवधान,
कया और
और के सब
पगल या
पर भी एक पु तक िलखी। उसके उपरांत
तो ल ण थ ं क भरमार सी होने लगी। किवय ने
तीथाटन और पव ान इ या द के संकुिचत घेरे म
किवता िलखने क एक
चला आता था। धम क भावा मक अनुभूित या
णाली ही बना ली क
पहले दोहे म अलंकार या रस का ल ण िलखना
भि , िजसका सू पात महाभारत काल म और
फर उसके उदाहरण के
िव तृत वतन पुराणकाल म आ था, कभी कह
िलखना।
दबती, कभी कह उभरती कसी कार चली भर आ रही थी। 29
प म किव
या सवैया
हदी सािह य म यह अनूठा दृ य खड़ा आ। सं कृ त सािह य म किव और आचाय दो िभ िे णय के
ि
रहे। हदी का
े
भारतदु ह र ं युग क किवता (1850-1900)
िभ
पं महावीर साद ि वेदी युग क किवता (1900-
म यह भेद
1920)
लु सा हो गया। इस एक करण का भाव अ छा
छायावादी युग क किवता (1920-1936 )
नह पड़ा। आचाय व के िलए िजस सू म िववेचन या पयालोचन शि िवकास नह
उ र-छायावाद युग-(1936-1943)
क अपे ा होती है उसका
गितवादी युग क किवता (1936)
आ। किव लोग एक दोहे म अपया
ल ण देकर अपने किवकम म
वृ
योगवाद-नयी किवता युग क किवता (1943-
हो जाते थे।
का ांग का िव तृत िववेचन, तक
1960)
ारा खंडन
मंडन, नए नए िस दांत का ितपादन आ द कु छ
ई वी सन 1850 से 1900 तक क
भी न आ। आधुिनक काल के
प म 1850 से
किवता
हदी
ह। उ ह ने भाषा को एक चलता आ
अंकु रत होने लगे थे। वतं ता सं ाम लड़ा और
रीितकालीन परं पराएं आपके का
साधन का
ि
आपक किवता धान,
भाव हदी
ब त तेजी से िवकास छायावादी युग,
आ। जहाँ का
गितवादी युग,
तथा
धान किवताएं क ह ।
जभाषा से खड़ीबोली क ओर हदी -
अ य कई महानुभाव ऐसे ह िज ह ने िविवध कार हदी सािह य को समृ द कया । इस काल के
योगवादी युग,
मुख
किव ह-
नयी किवता युग और साठो री किवता इन नाम भारतदु ह र ं युग और महावीर
देश- म े - धान
किवता को ले जाने का यास कया। आपके युग म
का
म इसे
से जाना गया, छायावाद से पहले के प
ग ृं ार- धान,
आपने
सािह य िपछली सदी म िवकास के अनेक
पड़ाव से गुजरा। िजसम अनेक िवचार धारा
म पाए जाते ह। आपने भि -
सामािजक - सम या-
सािह य पर अिनवायतः पड़ा । आधुिनक काल का हदी प
म देखी जा
सकती ह तो आधुिनक नूतन िवचार और भाव भी
का मौिलक
अिधकार। इन सब प रि थितय का
प देने क
नवीन का मल लि त होता है । भि कालीन,
िवकास आ, रे िडओ, टीवी व समाचार प हर घर का िह सा बने और िश ा हर
भाव
कोिशश क । आपके का -सािह य म ाचीन एवं
आ,
आवागमन के साधन आम आदमी के जीवन का िह सा बने, जन संचार के िविभ
का गहरा
पड़ा है। वे ही आधुिनक हदी सािह य के िपतामह
सािह य के इस युग म भारत म रा ीयता के बीज जीता गया। छापेखाने का आिव कार
पर भारतदु ह र ं
भारते दु ह र
को
,
ताप नारायण िम ,
ब ीनारायण चौधरी ‘ म े घन‘ , राधाचरण
साद ि वेदी
गो वामी, अि बका द
युग के दो और युग म बाँटा गया । इसके िवशेष कारण भी ह। 30
ास,
पं महावीर
साद ि वेदी युग क किवता
पं महावीर छायावादी युग क
(1900-1920)
किवता
(1920-1936 )
सन 1900 के
बाद दो दशक
पर
सन 1920 के आसपास हदी म क पनापूण
पं .महावीर साद ि वेदी का पूरा भाव पड़ा। इस
वछंद और भावुक किवता
क एक बाढ़ आई।
युग को इसीिलए ि वेदी-युग कहते ह। ‘सर वती
यह यूरोप के रोमां टिस म से भािवत थी। भाव,
‘ पि का के संपादक के
शैली, छंद, अलंकार सब दृि य से इसम नयापन
प म आप उस समय पूरे
हदी सािह य पर छाए रहे। आपक
रे णा से ज-
था। भारत क
राजनीितक
वतं ता के बाद
भाषा हदी किवता से हटती गई और खड़ी बोली ने
लोकि य
उसका थान ले िलया। भाषा को ि थर, प र कृ त
छायावादी युग का नाम दया। छायावादी किवय
एवं
क उस समय भारी कटु आलोचना ई परं तु आज
ाकरण-स मत बनाने म आपने ब त प र म
कया। किवता क दृि
से वह इितवृ ा मक युग
क सव े
उ वल अतीत, देश-भि , सामािजक सुधार,
उपलि ध इसी समय के किवय
ारा
ई। जयशंकर साद, िनराला, सुिम ानंदन पंत,
वभाषा- म े वगैरह किवता के मु य िवषय थे। मया दत हो गया। कथा-का
ने
यह िन ववाद त य है क आधुिनक हदी किवता
था। आदशवाद का बोलबाला रहा। भारत का
नीितवादी िवचारधारा के कारण
ई इस किवता को आलोचक
महादेवी वमा इस युग के धान किव ह।
ग ृं ार का वणन
उ र-छायावाद युग-(1936-1943)
का िवकास इस युग
यह काल भारतीय राजनीित म भारी उथल
क िवशेषता है। भाषा खुरदरी और सरल रही।
-पुथल का काल रहा है। रा ीय और अंतरा ीय,
मधुरता एवं सरलता के गुण अभी खड़ी-बोली म आ
कई िवचारधारा
नह
काल क किवता पर पड़ा। ि तीय िव यु
पाए
थे।
सव ी
मैिथलीशरण
अयो या सह उपा याय ‘ह रऔध‘,
गु ,
ीधर पाठक,
और आ दोलन का भाव इस
भयावह प रणाम के
के
भाव से भी इस काल क
रामनरे श ि पाठी आ द इस युग के यश वी किव ह।
किवता ब त हद तक
जग ाथदास ‘र ाकर‘ ने इसी युग म ज भाषा म
गांधीवादी, िव लववादी, गितवादी, यथाथवादी,
सरस रचनाएं
हालावादी आ द िविवध
अयो या
तुत क । इस युग के मुख किवसह
उपा याय
‘ह रऔध‘,
भािवत है। रा वादी, कार क किवताय इस
काल म िलखी गई। इस काल के मुख किव ह--
रामच रत उप याय, जग ाथ दास र ाकर,
माखनलाल चतुवदी, बालकृ ण शमा ‘नवीन‘,
गया साद शु ल
सुभ ा कु मारी चौहान, रामधारी सह ‘ दनकर‘,
ीधर पाठक, राम नरे श
ि पाठी, मैिथलीशरण गु , लोचन
साद
ह रवंश राय ‘ब न‘, भगवतीचरण वमा, नरे
पा डेय, िसयारामशरण गु
शमा, राम र शु ल ‘अंचल‘, िशवमंगल
सह
‘सुमन‘, नागाजुन, के दारनाथ अ वाल, ि लोचन, रांगय े राघव 31
इसी का िवकिसत प नयी किवता कहलाती है। दुब धता, िनराशा, कुं ठा, वैयि कता, छंदहीनता के आ प े इस किवता पर भी कए गए ह। वा तव म नयी किवता नयी िच का ित बब है। इस धारा के मु य किव हअ य े , िग रजाकु मार माथुर,, भाकर माचवे,, भारतभूषण अ वाल,, मुि बोध,शमशेर बहादुर सह, धमवीर भारती,, नरे श महता, रघुवीर सहाय, जगदीश गु , सव र दयाल स सेना, कुं वर नारायण, के दार नाथ सह।
गितवादी युग क किवता (1936) छायावादी का
बुि जीिवय के म य ही
रहा। जन-जन क वाणी यह नह
बन सका।
सामािजक एवं राजनैितक आंदोलन का सीधा भाव इस युग क किवता पर सामा यतः नह पड़ा। संसार म समाजवादी िवचारधारा तेजी से फै ल रही थी। सवहारा वग के शोषण के िव जनमत तैयार होने लगा। इसक किवता पर भी पड़ी और
ितछाया हदी
इस कार आधुिनक हदी खड़ी बोली किवता ने भी अ प समय म उपलि ध के उ तम िशखर को पश कया है। या बंध का , या मु क का , दोन म हदी किवता ने सुद ं र रचनाएं ा क ह। गीित-का के े म भी कई सुद ं र रचनाएं हदी को िमली ह। आकार और कार का वैिव य बरबस हमारा यान आक षत करता है। संगीत- पक, गीत-नाटय वगैरह े म भी शंसनीय काय आ है। किवता के बा एवं अंतरं ग प म युगानु प जो नये-नये योग िन यित होते रहते ह, वे हदी किवता क जीवनीशि एवं फू त के प रचायक ह। अब किवता क हार शि बढ़ चुक है। अब किवता के मायने बदल चुके ह। अब किवता श द से परे भी अपने अथ तुत करती है। अब किवता जनमानस के उ लास और ं दोन को तुत करने म समथ है।
हदी सािह य के
गितवादी युग का ज म आ। 1930 के बाद क हदी किवता ऐसी भािवत है। 1936 म
गितशील िवचारधारा से गितशील लेखक संघ के
गठन के साथ
हदी सािह य म मा सवादी
िवचारधारा से
े रत
गितवादी आ दोलन क
शु आत ई .इसका सबसे अिधक दूरगामी भाव हदी आलोचना पर पड़ा। मा सवादी आलोचक ने हदी सािह य के समूचे इितहास को वग-संघष के दृि कोण से पुनमू यांकन करने का
यास आरं भ
कया। गितवादी किवय म नागाजुन, के दारनाथ अ वाल और ि लोचन के साथ नयी किवता के किव मुि बोध और शमशेर को भी रखा जाता है।
योगवाद-नयी किवता युग क
‘‘प पर पानी िगरने का अथ पानी पर प े िगरने के अथ से िभ है। जीवन को पूरी तरह पाने और पूरी तरह दे जाने के बीच एक पूरा मृ यु-िच ह है। बाक किवता श द से नह िलखी जाती, पूरे अि त व को ख चकर एक िवराम क तरह कह भी छोड़ दी जाती है---------‘‘
किवता
(1943-1960) दूसरे िव यु द के प ात संसार भर म घोर िनराशा तथा अवसाद क लहर फै ल गई। सािह य पर भी इसका
भाव पड़ा। अ य े के संपादन म
1943 म ‘तारस क‘ का काशन आ। तब से हदी किवता म
योगवादी युग का ज म
आ ऐसी
‘‘कुं वर नारायण‘‘
मा यता है। 32
काय म िवराम सामािजक उप म है। देश , काल, प रि थितयाँ बदलने के साथ इस सामािजक व था के व प बदल अव य गए ह, परंतु उनके उ े य अभी भी वही ह, जो स दय पूव थे। कसी समय म राजा लोग आखेट इ या द पर िनकला करते थे तो जनसामा य गायन,वादन, उ सव, आयोजन के मा यम से अपनी मनोदशा प रव तत कया करते थे। ि गत तर पर खेल के प म ताश, शतरं ज, चौकड़ी जैसे खेल आ करते थे, तो सामूिहक तर पर बड़ी ित पधाएँ ज म िलया करती थ । आज वे ही खेल-आयोजन एिशयाड, रा मंडल खेल , ओलंिपक खेल , िव कप जैसी ित पधा म बदल गए ह । ि - ि के हाथ म मोबाइल आ गए है, िजन पर गे स से लेकर िसनेमा देखने तक क संभावनाएँ िव मान ह। सारांश म इन लोकरं जन तरीक के बदलने के साथसाथ ही यह प है क इनके उ े य अभी भी यथावत ह। इससे प है क, काय तथा िवराम दोन आव यक ह। पर तु दोन म से कसी एक क अिधकता मानव जीवन म असंतोष व दुःख का कारण बनती है। काय व िवराम म अनुशासन एक मह वपूण भूिमका अदा कर सकता है। य द अनुशासन म रहकर काय कया जाए और काय समय कर समा कर िलया जाए तब ही िवराम का आन द उठाया जा सकता है, इसी तरह िवराम का समय िनि त हो, तो वह समय बबादी का कारण नह बनता और आपका िवराम दूसर के िलए भी वीकाय हो जाता है। पर तु िवराम य द अनुशासनह न हो जाए तो खुद का व आपसे संबंिधत हर ि का समय बबादी का व असंतोष का कारण बनता है।
जीवन म संतोष ा करने के िलए ब आयामी संभावनाय मनु य को सदा से ा रही ह। िजतनी आव यकता आजीिवका उपाजन क है, उतनी ही आव यकता मनु य के िलए मनोरं जन क भी कही जा सकती है। एक मशीन या रोबोट के िलए तो यह संभव है क वह िबना के काय करता पर तु मनु य के िलए ऐसा कर पाना संभव नह है। मनु य के िलए यह एक अिनवाय आव यकता क तरह से है क वह मन को, शरीर को तनाव से हलका करने के िलए रह-रहकर कु छ मनोरं जन के काय को, गितिविधय को भी अंजाम दे अ यथा एक ही जैसा जीवन जीते रहने से जीवन तनाव त बन जाता है। ऊब, मन का उचटना इ या द अलग से तकलीफ देते ह। समाज म सा ािहक अवकाश का, छु य का, उ सव का िनधारण कया ही इसिलए गया था क ऐसी ि थित का सामना न करना पड़े एवं शरीर व मन के थक पड़ने क ि थित म कु छ हलका-फु लका काय कर पड़ने के बाद फर से नए उ साह के साथ काय म जुटा जा सके । सच पूछा जाए तो कृ ित ने मनु य को जो अंग- यंग दान कए ह, उनसे इसी कार दोन ही तरह के काय को अंजाम दे पाना संभव बन पड़ता है। वह शरीर जो प र म, महनत, मश त करने के िलए एक मह वपूण उपकरण है, उसी शरीर से खेल-कू द, नाचना-गाना, टहलना इ या द मनोरं जन के काय को कर पड़ना भी संभव हो जाता है। आँख से सािह य तो पढ़ने का काय भी कया जा सकता है एवं टी.वी., िसनेमा इ या द मनोरं जन के काय को प रपूण करने का भी। कहने का ता पय मा इतना है क मानवीय जीवन म काय क आपा-धापी म रह-रहकर कु छ आमोद- मोद का काय कर लेने क व था कृ ित ने इसी कारण बनाई है, ता क ज रत पड़ने पर शारी रक, मानिसक व भावना मक तनाव तो हलका कया जा सके । पयटन, पव-. योहार इ या द भी इसी तरह क गितिविधय को करने के िलए जम
ीमती िस धु म े काय क / िमक
33
मानव अगर फ र ता होता........ ज म - मृ यु का खौफ न होता, मानव अगर फ र ता होता, पाप - पु य के दोराहे पर भटका नह गुिल तॉ होता । षणयं , सािजश, िवकार का मैल न होता, तो यह मन कतना पावन होता । गंगा-जमुना-सर वती का यही ि वेणी संगम होता, पराधीनता इस समाज से, मुह ँ दुबकाकर भागी होती, ज म मृ यु का खौफ न होता, मानव अगर फ र ता होता । वतं ता का शंखनाद, य द करती दुिनया सारी होती, कत
का बोध अगर, कर रहा जगत म जन-जन होता,
शौय भरे संयम म िल सा का, अि त व झझोडा होता, ज म-मृ यु का खौफ न होता, मानव अगर फ र ता होता । पीले प रधान म लगती धरती, कतनी यारी होती, िबखरती माधुय चेतना, य द के शर क
यारी होती
रं ग-िबरं गे फू ल से सजता, धरती का आँचल होता, खुशबु अ बर और गगन से आती, हर उपवन से र ता होता, ज म-मृ यु का खौफ न होता, मानव अगर फ र ता होता । इस धरती को फर से, वग बनाने क तैयारी होती, सतयुग, त ै ा, ापर जैसी, घर-घर म खुशहाली होती, हर मन म ममता लहराती, सदभाव का संगम होता, अमृत क वषा होती, अ तमन म लेश न होता, ज म-मृ यु का खौफ न होता, मानव अगर फ र ता होता । अकरम खान पी.एस./ थापना काया.
34
भारत क बे टयाँ भारतवष क बे टयाँ नह कसी से कम | हर े म धाक जमाकर के दखलाया दम || जल- थल- नभ तीन सेनाओ म है परचम लहराया | भारत के मान को दुिनया म ब त बढ़ाया || अविन , अंजना ने भारती क सेना को अपनाया | भारतीय ना रय ने िव म क तमान बनाया || देश के इितहास म नारी ब त ही गौरवशाली ह | प िमनी, रानी दुगावती, ल मीबाई भी नारी ह || यह भारत क वीरांगनाएं यु म खूब धूम मचाई | िवदेशी आ मणका रय को रण म धूल चटाई || जब कभी िघर गई दु मन से, तब भी जौहर दखलाई है | देश क मान- ित ा म अपनी जान गवा है || नह दखाई पीठ कभी, वह रणभूिम सं ाम से | दु मन को दया जवाब भाला तीर कमान से || भारत के पुराण म भी गाया दैवीय गुणगान है | मेरे देश क ना रयाँ दुगा, चंडी के समान है || अब इनको अबला न समझना, ये पु ष से भी महान ह | भारत क बे टयाँ ब त ही महान ह || रा मंडल हो या ओलि पक देश का मान बढ़ाया | क पना चावला ने अंत र म जाकर ितरं गा लहराया || लेखनी के भी े म बड़ा ही इनका योगदान है | सरोजनी , महादेवी वमा और सुभ ा क लेखनी महान है || नए समय क ना रयाँ भी िव पटल पर छाय | दुतीचंद, मैरीकॉम, िस धू, सा ी ने भारत को पदक दलाई || वेद- पुराणो म भी नारी शि का गाते गुण गान ह | मॉ, बहन और बे टयाँ ये सारे प महान ह ||
संतोष कु मार ीवा तव एम. टी.
35
भाषा के
हमारी हदी य िप हमारी रा भाषा हदी है, पर तु हमारा चतन आज भी िवदेशी है । हम वातालाप करते समय अं ज े ी का योग करने म गौरव समझते ह, भले ही अशु अं ज े ी हो । हम इस मानिसकता का प र याग करना चािहए और हदी का योग करने म गव अनुभव करना चािहए । हम सरकारी कायालय बक, अथवा जहाँ भी काय करते ह, हम हदी म ही काय करना चािहए । िनम णप , नामपट्ट हदी म होने चािहए । अदालत का काय हदी म होना चािहए । जहाँ कह िबजली, पानी, गृह कर आ द के िबल जनता को अं ज े ी म दये जाते है उ ह हदी म दया जाना चािहए, इससे हदी का चार और सार होगा । ाथिमक तर से ातक तक हदी अिनवाय िवषय के प म पढ़ाई जानी चािहए । जब िव के अ य देश अपनी मातृ भाषा म पढ़कर उ ित कर सकते ह, तब हम रा भाषा अपनाने म िझझक य होनी चािहए । रा ीय और अ तरा ीय तर पर प वहार हदी म होना चािहए । कू ल के छा को हदी प -पि काएं पढ़ने क रे णा देनी चािहए । जब हमारे िव ाथ हदी ेमी बन जायगे तब हदी का शानदार सार होगा ।
ारा मनु य अपने िवचार का आदान-
दान करता है । अपनी बात को कहने के िलए और दूसरे क बात को समझने के िलए भाषा एक सश साधन है । जब मनु य इस पृ वी पर आकर होश स भालता है तब उसके माता-िपता उसे अपनी भाषा म बोलना िसखाते ह । इस तरह भाषा िसखाने का यह काम लगातार चलता रहता है । येक रा क अपनी अलग-अलग भाषाएं होती ह । ले कन उनका राजकाय िजस भाषा म होता है और जो जन स पक क भाषा होती है उसे ही रा भाषा का दजा ा होता है । भारत म भी अनेक रा य ह । उन रा य क अपनी अलग-अलग भाषाएं ह । इस कार भारत एक ब भाषी रा है ले कन उसक अपनी एक रा भाषा है हदी 14 िसतंबर 1949 को हदी को यह गौरव ा आ 26 जनवरी 1950 को भारत का अपना संिवधान बना । हदी को राजभाषा का दजा दया गया । यह माना गया क धीरे -धीरे हदी अं ज े ी का थान ले लेगी और अं ज े ी पर हदी का भु व होगा । आजादी के इतने वष बाद भी हदी को जो गौरवपूण थान ा होना चािहए था वह उसे नह िमला । अब यह उ प होता है क हदी को उस का यह पद कै से दलाया जाए ? कौन से ऐसे उपाय कए जाएं िजससे हम अपने ल य तक प च ँ सक ।
ीमती बुशरे ा खान
अ. .े िल./ थापना काया.
ेरक संग
डॉ टर हरगो वद खुराना
िस
वै ािनक ए ह । उ ह 1967 म
जेने ट स इं जीिनय रग म नोबल पुर कार िमला था । डॉ टर खुराना नाि तक थे और उ होन दरवाजे पर िलख रखा था क GOD IS NO WHERE (भगवान कह नह है) । समय बीतता गया और दरवाजे पर िलखी इबारत धुध ं ली पड गई। एक दन उ होन अपने ब े से इसे पुन: िलखने को कहा ब े ने तुरंत आदेश का पालन कया और दरवाजे पर िलखा GOD IS NOW HERE (भगवान अब यह है) के वल W को NO से जोड देने से NO, NOW म बदल गया और वा य का अथ ही बदल गया। डॉ टर खुराना ने इस वा य को पढ़ा और आि तक हो गए । इसके बाद उ होन वा य म एक पंि और जोडी, क “जीवन रह य है और इतना जानने के बाद म यही जान पाया ,ँ क म कु छ भी नह जानता और ना ही कभी जान पाऊंगा”। हम भी समझने क ज रत है क भाषा िवचार ष े ण का साधन है। भाषा सही और सटीक होगी तभी िवचार ष े ण भी सही हो सके गा। 36
राजेश झा
काय क/ एफ.टी.आई.
तीन ऩ म बेटी
ग़ज़ल
कसी ने रोजा रखा, कसी ने उपवास रखा !
आंसू न होते तो आंख इतनी खुबसूरत न होत
कबूल उसका आ ...... िजसने अपने म -बाप को अपने पास रखा ........
दद न होता तो खुशी क क मत न होती।
औलाद के रोने का एहसास तो बस म -बाप को ही होता है ! िजसके होने से म खुद को मुक मल मानती ँ !
अगर िमल जाता सब कु छ के वल चाहने से ही
मेरे रब के बाद म बस
तो दुिनया म ‘‘ ऊपर वाले , क ज रत ही न होती।
अपने म -बाप को जानती ँ ! या खूब जवाब था एक बेटी का !
तमीज, तहजीब, अदब जीवन म बोलती है,
जब उससे पूछा गया क
लाख छु पाये इं सान ले कन......
तु हारी दुिनया कहाँ से शु होती है
ले कन...शि सयत
और कहाँ पर ख म ?
िनशॉ छोड़ती है ।
बेटी का जवाब था - म क कोख से शु होकर िपता के चरण से गुजर कर , पित क खुिशय क गिलय से होकर , ब
के सपन को पूरा करने तक..
कु छ छोड़ दे तु िज दगी को जी, उसे समझने क कोिशश ना कर ! चलते व व
के साथ तू भी चल
को बदलने क कोिशश ना कर ! दल खोलकर स स ले
अंदर ही अंदर घुटने क कोिशश ना कर ! कु छ बात भगवान पर छोड़ दे सब कु छ खुद सुलझाने क कोिशश ना कर ! ीमती राजरानी एम.टी.एस. / जी.ए. 37
बेटी का आशीष
जाओ बेटी महल, अपनी कु टया म हम जी लगे। आँसू तेरे गंगाजल ह, चरणामृत सा पी लगे।।। कोयल मधुर गीत जब गाये, तेरे बचपन क याद सताए। सारा-सारा दन बगान म, फू लो संग हम जी लगे।। जब तेरे िबन रह न सके ग, याद के भँवर म डु बो लगे।। फर न क ग ँ ा दद कसी से, होठ को हम सी लगे। तुम खुश रहो ये दुआ है मरी, पल-पल बडे खुिशयां तेरी। तेरी खुिशय क खाितर, जहर जमान का हम पी लगे।। बचपन का हर पल लुभाता, कं धो पर जब तुझे िबठाता। इ ही सुनहर सपन म, जीवन को हम जी लगे।
रामकृ पाल सा काय क / िमक कायालय
38
अपने हाथ से जो तकदीर िलखा करते ह अपने हाथ से जो तकदीर िलखा करते ह, इस जमाने म वही लोग िजया करते ह। हम मुसा फर ह ये दुिनया है मुसा फर खाना, हम यहाँ आकर िबछडते ह िमला करते ह।।
उ भर दद से फु रसत नह िमलने वाली, दल म एक आस िलए लोग िजया करते ह। यार है एक ऐसी कमाई जो सदा साथ रहती है, िजनको िमलती नह वह सदा हाथ मला करते ह।।
हम समझते ह यह संसार हमारा होगा, अपने मतलब से यहाँ लोग िमला करते है। अपनी मंिजल का अगर प ा इरादा करा ले, दल म चाहत हो तो भगवान िमला करते है।।
शेखर कु मार गजिभये क.का. ./ ही.एल.सी.
39
एक माह म तीन हण हण श द दमाग म आते ही िज ासा, उ साह व
संदीप कु मार ीवा तव,
रोमांच के साथ एक अनजाने भय क ि थित बन जाती है ।
क.का. ., संर ा अनुभाग
च मा पृ वी का च र लगाता है। इस दौरान जब वह सूय
उसके Nodes पृ वी के साथ-साथ चलते है पर तु
व पृ वी के बीच आ जाता है तो सूय हण होता है तथा जब पृ वी के पीछे छु प जाता है तब च प रभाषा के अनुसार व
उनक दशा ि थर रहती है ।
हण होता है । इस
पृ वी ारा सूय क प र मा करते समय वष म दो
येक 15 दन के प ात अमाव या
येक 15 दन के प ात पू णमा आने पर हण होना
चािहए पर तु ऐसा नह होता है ।
बार ऐसी ि थित बनती है जब उपरो
Nodes सूय व
पृ वी क सीध म आ जाते है। इस समय य द च मा इन Nodes से गुजर रहा होता है तभी हण पड़ता है । अतः वष म सामा यतः दो बार च मा अपने अ
पर 5 झुका 0
हण पड़ने क संभावना रहती
है ।
आ है। प रणाम व प
उपरो
च मा ारा पृ वी का च र लगाने का पूरा माग, सूय व पृ वी के लेवल पर नह होता है बि क एक िनि त लंबाई
दोन ि थितय म, पृ वी
ारा सूय क
Nodes
वाले उसके दो छोटे-छोटे भाग, िज ह Nodes कहते ह, पृ वी व सूय के लेवल पर होते ह जो पृ वी के दोनो तरफ ि थत होते ह । ऊपर से नीचे क ओर दशा वाले को Descending Node एवं नीचे से ऊपर क ओर दशा वाले को Ascending Node कहते है। च मा ारा पृ वी का च र लगाने का पथ 50 झुका होने के कारण, पृ वी का च र लगाते समय
येक अमाव या को च मा सूय के
सामने नह आता है और
येक पू णमा को पृ वी के पीछे
नह छु पता है ।
प र मा करते समय, पृ वी को Nodes क कोणीय लंबाई
पृ वी सूय क प र मा करती है। इस दौरान आगे
क दूरी को तय करने म महीने भर से यादा का समय लग
बढ़ते ए पृ वी के थान एवं दशा म तो बदलाव होता है
सकता है ।
पर तु उसका च र लगाते ए च मा के रोटेशन पाथ म कोई बदलाव नह होता है ।
40
अतः उपरो
दोन ि थितय म पृ वी के आगे बढ़ने
पर जब Nodes सूय व पृ वी क सीध म आना
पृ वी सूय क प र मा ए टी लॉक दशा म करती
ार भ
है और च मा भी पृ वी का च र ए टी लॉक दशा म
करते है और य द संयोगवश जैसे ही पृ वी क छाया
लगाता है । च मा के गोलाकार माग के हॉफ स कल म
Nodes पर पड़ना ार भ होती है और च मा उस थान
च मा व पृ वी के आगे बढ़ने क
पर उपि थत हो तो ख ास च
जब क हॉफ स कल म एक दूसरे के िवपरीत। अतः
हण हो जाता है ।
इसके बाद के 15 दन म पृ वी के आगे ढ़ते रहने
अमाव या के दौरान जब सूय
दशा समान होती है
हण पड़ता है उस समय
पर च मा के रोटेशन पाथ के Nodes पूरी तरह से सूय व
च मा व पृ वी के चलने क
पृ वी क सीध म आ जाते है और च मा अपने माग पर
होती है और वे तेजी से एक दूसरे को
आगे बढ़ते ए सूय व पृ वी के बीच अथात् अमाव या क
सूय हण क अविध कम होती है । जब च
ि थित म आ जाता है िजससे पूण सूय हण क ि थित बन
तब पृ वी व च मा के चलने क दशा समान होती है और
जाती है ।
च मा पृ वी क छाया के साथ-साथ उसी दशा म चलता इसके बाद के 15 दन म पृ वी के आगे ढ़ते
है िजससे च
रहने पर Nodes का आिखरी िह सा सूय व पृ वी क सीध
दशा एक दूसरे के िवपरीत ॉस करते है िजससे हण पड़ता है
हण क अविध यादा होती है ।
रोचक त य - ऐसा भी हो सकता है क सूय
से िनकल रहा होता है और पृ वी क छाया Nodes के
हण का
ार भ वतमान तारीख को हो और समापन बीत चुक पूव
अि तम िह से पर पड़ रही होती है । उस समय च मा
क तारीख म हो अथात् सूय
घूमते ए इस थान पर प च ँ जाता है तो पुनः ख ास च
जनवरी को ार भ हो और उसका समापन बीत चुके वष
हण पड़ने क ि थित बन जाती है । अब हम पुरानी
हण कसी वष क 01
क 31 दस बर को हो ।
या क इसके कारण जहाँ पूरे वष म सामा यतः दो हण पड़ने क संभावना होती है, वही एक महीने म तीन हण भी हो सकते ह ।
पैगाम इंसान हो इं सान सा
वहार करो तुम ।
धनवान को लगाते, सब ही सदा गले,
चाहते हो अगर यार तो यार करो तुम
िनधन को लगा सीने वीकार करो तुम ।
नफरत और बदिमजाजी दु मन ह हमारे इं सान हो इंसान सा
वहार करो तुम
डर-डर कर जी रहे ह ,उनको मेरा पैगाम साहस से िजयो ,हर पल मत मरो तुम
जीवन म मोह बत का भंडार भरो तुम
इंसान हो इंसान सा
आ जाए अगर कोई क मत का सताया
वहार करो तुम
दल से उसे लगाकर उ ार करो तुम इंसान हो इं सान सा
वहार करो तुम
अकरम खान पी.एस./ थापना काया. 41
चाहत थक गई आंख वि ल अब म सोना चाहती ँ खडे शहरी बनावटी जंगल म अब खोना चाहती ँ । बचपन के सरल संगी वो हंसीन बात हमारी बेदज आज के नकली उबाऊ चलन अब छोडना चाहती ँ । बगैर मतलब के भी जो पूछ लेते थे हाल सबका हम आज क गैरलाजमी आदत को अब छोडना चाहती ँ । पहले तो जुड जाते थे र ते और से भी दली आज के नफा नुकसानी र ते अब तोडना चाहती ँ । आज के ब े कहाँ नजर आते है िम ी म खेलते इन कपोल को इनके पेड से अब जोडना चाहती ँ । लेता नह अब इनसे मशिवरे जदगी के कोई दो त इन बुजग ु को फर इनक अहिमयत देना चाहती ँ । बंद कमर म भूल गए तुम खुली ठं डी हवा
को
सूनी दालान को म फर बयार से जोडना चाहती ँ । नए जमाने के चलन ने छीन ली है खुशी सारी । िलखकर ेम प अब राधा फर कृ ण होना चाहती ँ । ीमती अिह या िव कमा सुर ा अनुभाग
42
अबला नह मोम सी िपघलती ,ँ म बाती सी जलती ँ । लहर सी मचलती ँ , अ ु सी बरसती ँ । जमाने से लडती ँ , मघ सी गजरती ँ । पंखडी सी िखलती ँ , दीप िशखा बनती ँ । पर अबला नह
ँम।
सामने कोई आये और मुझसे टकराये । श
कलम क लेकर सामना म करती ँ । पर अबला नह
ँम।
शनैः शनैः सुलगती ँ , दीप बनके जलती ँ । बुझ नह पाऊंगी िच ह छोड जाऊँगी । पर अबला नह
ँम।
घुमड - घुमड आऊंगी मघ बनकर छाऊंगी । नीर बनकर बरसूग ं ी वादा म ये करती ँ । पर अबला नह
ँम।
न ँ बं दनी सुन लो न ँ , अवलि बनी सुन लो । सृजन क शि
है मुझम अतुल अनुशि पर अबला नह
है मुझम ।
ँम।
कु ए सुगन ु ा काय क / पशन सेल
43
ँम
भरोसा मोिमनपुरा के मोह ले म स
ाटा पसरा आ था
स य कु मार रावत
कु ल 500 क आबादी वाले इस मौह ले म कु ल 60-70 घर
काय क / याड एंड इ टेट
ह गे । 8 दन पहले यहाँ एक कोरोना पेशट िमला था। उसके बाद सारे मोह ले को सील कर दया गया था। उसके बाद
मर म सईद िमयां पेशे से डाकघर के
रोज-रोज डॉ टर और शासक य टीम आकर मोह ले वाल
कमचारी थे। घर म उनक बेटी शािहदा और 8 साल क
का सपल लेकर जा रही थी। बीते इन 8 दन म उस पूरे मोह ले से कु ल 9 मरीज िनकल चुके थे। इस पूरे
नवासी सबीहा बानो ही रहती थी । उनके दामाद का
े को
इं तकाल 2 साल पहले एक सड़क दुघटना म हो गया था|
हॉट पॉट घोिषत कर दया गया था। परं तु कल इस मोह ले
प थर के साथ फै ला आ था डॉ सुमधा अ वाल का बंगला
क गिलय म अ पताल से िनकल कर एक बुरी खबर आ
वो बगल वाली गली म ही एक शासक य िच क सालय म
गई। मोह ले के एक बुजुग मोह मद सईद रजवी, जो अपने
डॉ टर थ ।
जीवन के 74 बसंत देख चुके थे कोरोना बीमारी से अ लाह
बावजूद इसके , क उ ह मोह ले का हर एक
को यारे हो गए थे।तभी कसी बदनीयत दमाग क उपज ने
रटायड
ि
जानता था फर भी उनके साथ
हा सएप पर एक मैसज े
फै ला दया। यह बीमारी नह
ऐसी घटना शमनाक थी।बावजूद
अ लाह क दी
ई सजा है।
इसके डॉ अ वाल अपना ज मी
“हमारी कौम के कु छ दु मन इस
िसर लेकर िच क सालय म आज
बात का फायदा उठा रहे ह और
ई सपल क
हम ले जाकर 1-1 को ख म कर दगे”
रपोट जानने को
बेताब थ । भगवान से मना रही
हाट पप पर ये मैसज े
थ क सईद िमयां के घर से कोई
तेजी से फै ल रहा था । शैतानी
और कोरोना पेशट ना िनकले।
सािजश ने मोह ले के कु छ
ले कन उनका डर हक कत म
खाली
दमाग
क
फरका पर त का दमाग घुमा दया और जब आज सुबह
बदल गया। मां सुरि त थी ले कन 8 साल क मासूम
हॉि पटल से डॉ टर और उनक टीम नए िसरे से शप लग
सबीहा बानो कोरोनावायरस पािज टव िनकली। डॉ टर
करने प च ं ी तो लोग ने पथराव शु
कर दया। पथराव
अ वाल ही थी जो िपछले 4 दन से अपने घर नह गई थी
ए कु ल 6 घंटे बीत चुके थे। मुह ले पर स ाटा सवार था
य क उनक भी अपनी एक 7 साल क ब ी थी। वो नह
सड़क पर प थर के साथ सड़क पर खून फै ला आ था ।
चाहती थी क डॉ टरी पेशे म उनके साथ साथ कोई और खतरे म पड़े। िपछले 4 दन से उ ह ने हॉि पटल को ही
हाँ वह लोग गायब थे िज ह ने इसे अ लाह िमयां
अपना घर बना रखा था।
के कहर क सं ा दी थी।कु छ को पुिलस ने उठा िलया था कु छ अभी भी लुका-िछपी का खेल खेल रहे थे।
44
शासक य िच क सालय के िनकट एक बड़े अ पताल को
कु छ ही देर म एक पूरे पुिलस अमले के साथ डॉ
आइसोलेशन वाड बनाया दया गया था। डॉ अ वाल के
सुमधा मोिमनपुरा मोह ले के बाहर खड़ी थी । पी ए
साथ-साथ कई और डॉ टर एक साथ कोरोना मरीज क
िस टम से अनाउं समट हो रहा था क आज इन लोग क
तीमारदारी म लगे थे|
सपल ई है, उनम िसफ एक करोना पोिस टव िनकला है और वह है सबीहा बानो व द मर म शा कम मंसरू ी।
कसी ने सईद क लाश को लेम कया उ होने अपने
शािहदा पसोपेश म थी क बाहर िनकले क ना िनकले ।
सािथय से पूछा |” कहाँ मैडम िसफ उपदेश देने म लोग मािहर ह जब अपने आप ऊपर खतरा
एक ओर उनके सामने वह अफवाह
आता है तो सब लोग अपने पांव पीछे
ही िजनके िजसके मुतािबक उनक
कर लेते ह ।
कौम के 1-1 लोग को चुन-चुन कर मारा जा रहा है। दूसरी और उनक
इस पूरे माहौल म शािहदा ब त परे शान थी जो सईद िमयां क
बेटी बुखार से तप रही थी और अब
बेटी और सबीहा क मां थी। सबीहा
पी ए िस टम के मुतािबक उसे
का पूरा बदन तप रहा था और सांस
कोरोना क पुि भी हो चुक थी।
लेने म लगातार तकलीफ हो रही
पी ए पर नाम अनाउं समट
थी।| डॉ सुिमता अ वाल ने अपनी
करते ए 45 िमनट बीत चुके थे।
कु स
मोह ले का कोई भी
से अचानक उठते
ए कहा
ि
बाहर
‘चलो’। “मैडम कहाँ”? उनके सािथय
नह आया था।हाँ कु छ लोग अभी
ने पूछा। “मोिमन मोह ला” डा साब
भी छत से हमले क ताक म थे ।
बोल । पूरा टाफ उनक ओर अचरज
तभी डा सुमधा ने पी ए िस टम
भरी िनगाह से देखने लगा|”
अपने हाथ म िलया और कहना
या
बात कर रही है मैडम अभी सुबह उसी मोह ले वाल ने हम
शु
सभी के ऊपर इतना बुरा हमला कया और आप उसी
िश त और अपनी पूरी ईमानदारी के साथ इस बीमारी के
मोह ले म जाकर फर से अपनी जान खतरे म डालने क
सभी पेशट क देखभाल क है। यह दुख भरी बात है क
कोिशश कर रही ह मरने दीिजए”। मेरा पेशा मुझे इस बात
सईद िमयां चल बसे वह मरे िपता समान थे और कई बार
क इजाजत नह देता ।
मरे अ पताल म आया करते थे। ले कन इस समय उनक
कया । ‘ मेरा भगवान जानता है क मने अपनी पूरी
बात को भुलाकर एक छोटी सी ब ी क जान बचाने का
मरे सुपद ु यह ए रया कया गया है और मरी िज मदारी है क इस ए रया के सभी लोग को म सुरि त
सवाल है। मरी आपसे
कर पाऊं। मेरा पेशा ही मरी पूजा है और अब तो बात यूं भी
हमारे हवाले कर दीिजए । इस धरती पर डॉ टर भगवान
मामूली नह रही क एक 9 साल क ब ी को ये रोग आ
का
है। कहकर वो मौन हो ग ।
ब ी दे दीिजए।
45
ाथना है उस छोटी सी ब ी को
प होता है य द आप हम ऐसा मानते ह तो हम वह
शािहदा क िनगाह बार-बार बाहर अपनी बेटी
रोनी सूरत और आंख म आंसू भरते ए सबीहा ने
और फर म ा मदीना क उस त वीर क ओर जाती जो
अपनी मां क ओर देखा|
उसने अपने घर म लगा रखी थी।अपनी बेटी के आगे वो फर पूरी सांस िससक से भरते ए कहा हाँ रह
अपने िपता क मौत क खबर से समझौता कर चुक थी। वह डॉ टर कहना जारी रखी
लूग ं ी| ब
ई थ वे अपने
का मन कतना सादा सरल िन ल और िनमल
वा य म बार बार भरोसा श द इ तेमाल कर रही थ ।
होता है| भगवान पर भरोसा करने के िलए बस इतना ही तो
भरोसा रिखए,,, हम सब ठीक कर दगे,,,,, भरोसा रिखए
चािहए और आज इस व
उस वह ब ी ठीक हो जाएगी ,,,,,,भरोसा रिखए हम आपके
से कम नह ह।
डॉ टर इस जमीन पर भगवान
मां क ओर से पलटते
साथ ह ।
ए सबीहा ने भरोसे क
तभी उनके मुह ं से िनकला आप हम पर नह तो
उं गली थाम ली ।डॉ अ वाल के सािथय का आ मिव ास
अपने अ लाह िमयां पर तो भरोसा क िजए और तभी पास
भी बढ़ा और भी त परता से अपनी डॉ टर के पास आ गए।
वाली मि जद से अजान क आवाज आई| मोह ले के लोग
एक भरोसे पर एक मां अपनी 9 साल क ब ी को
अपने-अपने घर से और कु छ लोग प थर िलए अपने-अपने े
से इस बात क
कसी और मिहला के साथ दूर तक जाती देखती रही। साथी
ती ा म थे क या तो सरकारी
कमचारी ने दरवाजा खोला और सबीहा एंबल ु स के भीतर
अमला भीतर आए या सबीहा के यहाँ से कोई बाहर िनकले।
वेश कर गई| 21 दन बाद सभी यूज़ चैनल म सबीहा क बहादुरी के साथ-साथ उसके ठीक हो जाने के चच भी थे|
तभी शािहदा ने तय कया क वो सबीहा भरोसे क
सारे अखबार डॉ सुमधा अ वाल क चचा
भट करगी और वो उसे लेकर अपने दरवाजे पर आकर खड़ी
और साथ ही साथ सबीहा के चच से भी। शािहदा और
हो गई| डा साब ने अपने सािथय को ओर देखा ले कन कोई
सबीहा ने समाज को भरोसे क एक नई प रभाषा से
टस से मस ना आ| शािहदा इंतजार कर रही थी कोई आए और सबीहा को ले जाए| जब कोई सूरत नह
से भरे ए थे ब
दखने पर
धीरे -धीरे डॉ टर सुमधा ही आगे बढ़ चली । सर पर बंधी प ी िजसम खून के िनशान साफ साफ दखाई दे रहे थे हाथ म प थर िलए लोग अपने-अपने थान पर ठठक कर क गए। वह देख रहे थे क कस तरह एक डॉ टर सुबह उ ह के हाथ को गंभीर घायल होने के बाद भी एक बार फर उनके मोह ले म एक न ही जान बचाने के िलए आ रही थी | सबीहा कभी अपने नाना के साथ, कभी मां के साथ लीिनक म, डॉ टर सुमधा से िमल चुक थी । कभी-कभी रा ते म भी उनके साथ हेलो हाय
ई है। वो उस एक
चाकलेट को भी नह भूली थी जो एक बार डा साब ने उसे
करवाया था। सैकड़
दी थी| म मी के बगैर हमारे साथ रह लोगी? डॉ सुनीता ने
कार के
सबीहा से पूछे जा रहे थे
तभी एक प कार ने सबीहा से पूछा बड़ी होकर
पूछा ।
बनोगी? सबीहा ने कहा – डा टर .......
46
या
** हदी ** जननी ज मभूिम भारत क “ हदी” है अ भुत पहचान । हदी मातृभूिम क भाषा, इसको िमले उिचत स मान ।। देवनागरी दैिवक भाषा, खर ई जन -जन क आशा सभी बोिलयां करे समािहत, गढ़े िन य नूतन प रभाषा िव
मंच पर प च ं ी हदी लेकर िह दु तान क शान
हदी मातृभूिम क भाषा, इसको िमले उिचत स मान देश क ब आयामी समृि
म, ब उपयोिगता है हदी क
जो बोलो, अ रश: िलख लो, यह िवशेषता है हदी क वै ािनक भाषा है हदी, िह दु तान का है अिभमान हदी मातृभूिम क भाषा, इसको िमले उिचत स मान भारत का नवयुवा, आज है हदी का स मान कर रहा िश ा म हदी को ाय: वरीयता दान कर रहा हदी भाषा से ही संभव है, भारत का उ कृ उ थान हदी मातृभूिम क भाषा, इसको िमले उिचत स मान जननी ज मभूिम भारत क हदी है अ भुत पहचान हदी मातृभूिम क भाषा, इसको िमले उिचत स मान ओम कु मार जापित . .े िल./ एल.बी.
47
समय बंधन क उपयोिगता अ सर जब हम अपने आसपास काय कर रहे का मक
तीन चीज ब त आव यक हैः-
को
देखते ह तो पता चलता
ल य िनधा रत करना
है क कु छ का मक अपने
काय क
काय को सुचा
काय स प करने का म तय करना
प से
ाथिमकता तय करना
एवं समय पर काय का समय जीवन म सबसे मह वपूण और मू यवान
िन पादन कर लेते ह
संसाधन है । समय ही एकमा
वह कु छ का मको का काय अ त
ऐसा संसाधन है िजसको
ित क पू त संभव नह है। मै यहाँ समय बंधन के कु छ
त तरीके
से होता रहता है । वो हमशा परे शान रहते ह और उन
सू
का मक के
तरीके से पूण हो
िन य ही इसका योग कर अपने जीवन म सु वि थत ढंग
ष े का भावना िवकिसत कर लेते
से काय िन पादन करने म ाथिमकता एवं म तय करने म
ित िजनका काय समयब
जाता है उनके
ित
तुत कर रहा
ँ और ये मानकर चल रहा
ँ क
मदद िमलेगी ।
है । इन दोन प रि थितय का अगर िववेचन कया जाए तो पता चलता है क जो का मक काय को सुिनयोिजत
समय बंधन के साथ िन प दत करते ह उनके काय करने
ित दन सुबह 10 िमनट का समय
िनकाल कर
क गित एवं गुणव ा काफ उ म होती है । जो का मक
पूरे दन भर के काय को सूची बनाएं और उन
अपने काय को समय
काय क
बंधन के बगैर करते ह वो हमशा
ाथिमकता के आधार पर म तय कर ।
इससे आपके दन भर के 80 फ सदी काय को पूरा
अिनि तता का भाव से िसत रहते है ।
करने म मदद िमलेगी । जीवन म थोड़े से अनुशासन को समािहत कर अपने
काय एवं दैिनक जीवन म प रवतन लाया जा सकता है । इन सबके िलए समय बंधन के
हमशा 20 फ सदी काय ही मह वपूण होते है उन काय को ाथिमकता के आधार पर िन पादन कर ।
िजससे सभी कार क सफलता का ताला खुलता है । समय ि य क सफलता का राज है।
कृ ित का सम त अवयव समय के िनयमो के सापे
से ही
ाथिमक काय का सुबह ही िन पादन करने यास कर
गित पाता है । तो अब
शि उठता है क
समय का या अपने मतलब है अपने िविभ
होकर योजना अनुसार
बंधन का
तरीके से सु वि थत
काफ अ छी होती है और अक मात काय आ
य कर मह वपूण काय करते समय
यान
करने वाले समय या थान का चुनाव न कर ।
करना । इस तरह हम कह सकते ह समय
य क सुबह - सुबह आपक ऊजा
काय भािवत नह होते ह ।
याकलाप को समय सापे मब
का
जाने से पहले पूरा हो जाता है िजससे मह वपूण
बंधन कसका करना है
याकलाप का । समय
कर 80 फ सदी और
20 फ सदी । काय िन पादन म सफलता का राज
ित थोड़ी सोच िवकिसत
करने क आव यकता है। योक समय बंधन वो चाभी है बंधन ही सभी सफल
काय को दो भाग म िवभ
बंधन के िलए
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भंग
िन य ही एका ता वाले काम के िलए बीच
अपडेट रह , आज का समय नई तकनीक का है
बीच म क े लेते रह ये आपको थकान से बचाता
िनत ित दन तकनीक का िवकास होता जा रहा
है और नई ऊजा पैदा करता है ।
है और िन य ही भिव य म आपके दािय व क
अपने आस पास सकारा मक सोच वाले
ि
बढ़ोतरी होनी है उसके िलए तैयार रह और
से
अपने आप को िवकिसत कर ।
वहार बनाए रख यह आपके । तनाव से मु रखता है ।
5 िमनट या 10 िमनट म होने वाले काय को
पंकज कु मार वमा
तुरंत करने क आदत डाल ।
काय क/पी आर सेल
49
कल यूं सुबह ई, यूं शाम ई, दन िनकला रात तमाम ई,..... फर सुबह ई.... युग बीत रहा है पल ितपल, बीता अतीत का व णम कल, कल, कल, कल करते युग बीता, म रहा कतु रीता, रीता.. म रहा आि त कल पर सब कल पर छोड़ा, वतमान को छोड़ सदा कल से मने नाता जोड़ा, ले कन कल से ना ई बात वतमान से ई, सदा ही मुलाकात कल, कल के इस कोलाहल म मेरा हर आज अतीत आ, समय रहा ि थर ले कन म शनैः शनैः
तीत आ ।
युग -युग से उलझा ँ म, इस कल क अिभलाषा म , मने कतने आज गंवाए, इस व णम कल क आशा म, ले कन है िनठु र “कल” तुमको, किचत दया नह आई , आया काल परं तु तेरी, एक झलक भी ना पायी । आकां ाएं रह गई अपूण, और जदगी मौत के नाम ई, यूं सुबह ई, यूं शाम ई, दन िनकला, रात तमाम ई ...... फर सुबह ई
पी के गुमा ता क.का. / पी.आर.सेल
इसके
हदी सीखने के आसान तरीके जो भाषा सीखनी है, उस भाषा म कािशत समाचार प पढने का यास करना आसान रहता है । आर भ म कोई भी सिच प रिचत िव ापन पढने का यास करना फायदेमद ं होता है। फोटो से िव ािपती चीज का पता चलता है, उस चीज का नाम उस भाषा म कै से िलखा गया है उसे नोट कर ल । िव ापन म अगर चमकदार जगह म कोई श द है, तो उसे यान से देख । यह मु त, नया, अब आ द वाचक श द हो सकते ह। िव ापन म दए गए को और दूरभाष रसीवर के जैसे िच और आंकड़ से चीज का मू य, उ पादक का दूरभाष मांक पता आ द मालूम हो सकता है । समाचार प म अ य दए गए पहचानवाले राजक य नेता , िखलािडय के छाया िच से उनके नाम उस भाषा क िलिप म कस कार िलखे गए ह, एक यान देनव े ाली बात हो सकती है। उ ारण के अ यास के िलए उस भाषा म समाचार सुनना फायदेमद ं होता है।
िलए आपको एक सवाल का जवाब देना
होगा, या आप तैरना सीखना चाहते ह? य द हाँ तो आपको पानी के संपक म रहना पड़ेगा, उसम डू बना, उतरना और हाथ पैर मारना सीखना होगा, तभी आप तैरना सीख सकगे, यही इस दुिनया म कु छ भी सीखने के संबध ं म सच है । कसी भी भाषा को सीखने के िलए उसे पढना, सुनना और वहार म लाने का यास करते रहना होगा, आप अपनी मातृभाषा इसिलए बोल पाते ह यूं क आप इसे अपनी माँ के गभ से सुन रहे थे । आप हदी समाचार, पि का, टीवी ो ाम देिखये सुिनए और खुद हदी िलखने बोलने का यास करते रिहए ऐसे लोगो क संगत म रिहए जो हदी भाषा का योग करते ह , कु छ समय बाद आप भी उन सभी क तरह हदी बोलना, िलखना सीख जायगे, इसे आज से ही शु कर दीिजये।
भाषा क तरह ही हदी सीखने के भी कई तरीके ह । जैसे क इसे कू ल या कॉलेज तर पर पा म म शािमल करके सीखा जा सकता है और भारत वष म कई गैर हदी भाषी रा य म ये तीसरी भाषा के िवक प के तौर पर पढ़ाई भी जाती है। इसके अित र िव िव ालय तर पर भी कई हदी कोस उपल ध ह, आप उनका चयन कर सकते ह। क सरकार के कायालय म भी कामकाजी हदी भाषा पढ़ाई जाती है और परी ा उ ीण करने पर बाकायदा माण प भी दया जाता है । इसके िलए गृह मं ालय के अंतगत राजभाषा िवभाग बनाया गया है जो क क सरकार के िविभ कायालय म हदी भाषा के चारसार के िलए काय करता है। ये तो ई पढ़ाई-िलखाई और सरकारी कामकाज क बात । इसके अित र हदी सीखने क ज रत उन ि य को अ सर होती है जो बचपन से जवानी तक हदी से अनजान रहे और फर अचानक पढ़ाई, नौकरी या वसाय के िलए ऐसी जगह प च ं गए जहाँ सामा य बोलचाल क भाषा हदी है
सव थम सही-गलत बोलना ार भ कर कसी हदी भाषी िम के साथ (यह िम असिमया, बंगाली, मराठी, गुजराती, पंजाबी या दि ण भारतीय भी हो सकता है ) । वह धीरे-२ आपक हदी सुधार देगा । हदी भाषी लोग के साथ रहकर उनसे लगातार बात करके हदी सीखी जा सकती है। य द ु टपूण (गलत) भी बोलते ह तो कम से कम ार भ म कोई िच ता न क रये। कोई भी एक दन म वाहन चलाना नह सीख लेता, पहले ु टयाँ करता है, फर एकएक करके उनका वयं िनवारण भी करता है । ब ा पहले बोलता है, फर समझता है और सबसे बाद म िलखता या पढ़ता है। जब िलखने -पढ़ने का समय आये तब ही देवनागरी िलिप सीखने का यास ार भ कर। यास कर क यादा से यादा हदी भािषय के संपक म रह और उनके भाषा योग, बोलचाल को समझने का यास कर। य क देखी और सुनी यादा भावी होता है, बजाय पढ़े ए के ।
51
जैसा क मरे कॉलेज के एक िम के साथ आ । वे नेपाल से ता लुक रखते थे, और इंजीिनय रग करने के िलए मरे साथ द ली के कॉलेज म उनको दािखला िमला । हालॉ क नेपाल म भी हदी बोली और समझी जाती है, ले कन िसफ शहरी े म । बाक नेपाल म नेपाली भाषा का चलन है, जो क हदी से िमलती-जुलती तो है, ले कन य द आप हदी को एक लय म लगातार बोलगे, तो उनको समझने म द त आएगी, और उसी कार बोलने म भी। तब उस िम ने िच कथा (Comics ) को पढ़ कर बोलचाल क हदी पर पकड़ बनाई और सही भी है, िच कथा म एक-एक व तु, दृ य, और यहाँ तक क भाव को भी अ छे से दशाया जाता है, और फर उसी के िलए वहाँ श द भी िलखे रहते ह । िजससे उन सब व तु , भाव को हदी म समझना ब त आसान हो जाता है। हालाँ क आजकल हदी कॉिम स लगभग गायब हो चुक ह, फर भी कोिशश करने से रे लवे के बुक टा स पर गाहे-बगाहे िमल जाती ह । कॉिम स पढ़ने के अलावा हदी सीखने का अगला आसान तरीका है हदी िसनेमा देखना । ये बात मुझे क मीर दौरे के समय पता चली । जी हाँ, य द काम चलाऊ हदी क जानकारी है तो उसे अ छी हदी म बदलने के िलए आप हदी िसनेमा का सहारा ले सकते ह, िवशेषकर वे ि िज ह देवनागरी िलिप का ान नह है । ीनगर के आगे के होटल और रे ो म िसफ क मीरी लोग ही काम करते ह, िजनक मातृ भाषा क मीरी या डोगरी है, उ ह से हदी फ म देखने के इस फायदे के बारे म पता चला ।
इं टरनेट के यू ब ू चैनल पर चाण य पर आधा रत एक धारावािहक है इससे आप सं कृ तिन हदी का अ छा अनुभव ा कर सकते है । य द आप उ तर क हदी -उदू िमि त हदी सीखना चाहते है तो आप हदी लोककथा , आधुिनक सािह य एवं सरल उदू लेखक के हदी अनुवाद पढ़ सकते ह ।आप एक काम और कर सकते ह क हदी को अपने मातृभाषा क िलिप या रोमन िलिप म ही िलखना ार भ क रये (transliteration ) । जब यह हो जाये तो धीरे-धीरे इनके अथ हदी म जानने का यास कर । फर जाने गए इन हदी अथ का योग सामा य बोलचाल क भाषा म करना शु कर । हदी श दकोष ( जैसे - हदी - हदी, हदी English, हदी - आपक मातृ भाषा, आपक मातृभाषा – हदी) का अथ जानने हेतु यथोिचत योग कर । िनयिमत हदी समाचारप ,उप यास,पि काएँ आ द पढ़ ।
हदी सीखने का सबसे आसान तरीका है पढ़ना एवं ऐसे लोग के संसग म रहना जो हदी म वातालाप कर सके । य द आप हदीतर भाषी े से आते ह और सामा य बोलचाल क भाषा सीखना चाहते ह तो हदी चलिच (movies ) देख । इस मा यम से मनोरं जन के साथ साथ आप हदी समझना सीख जाएँगे पर तु बोलने के िलए आपको कसी िम क खोज करनी होगी जो आपसे हदी म बात कर सके । य द आप सामा य हदी जानते ह और उ तर क हदी सीखना चाहते ह तो सािह य का अ ययन कर और जैसी हदी सीखना चाहते ह वैसे सािह य का अ ययन कर । जैसे क य द आप शु सं कृ त िन हदी सीखना चाहते ह तो छायावाद काल का हदी सािह य या धा मक पु तक का अ ययन कर सकते ह । इसके अ ययन से आपके श दकोष म अभूतपूव वृि होगी । छायावाद हदी का वह युग है िजसम जयशंकर साद , महादेवी साद वमा , सुिम ानंदन पंत एवं िनराला जी जैसे लेखक ने अपनी लेखनी से हदी सािह याकोश म अनेक न क रचना क ।
य द भारतीय ह तो भाषा चाहे जो हो श द लगभग ६०-७० % वही ह। दि ण भारतीय भाषाओँ के अिधकांश श द सं कृ तिन ह िजनको कोई भी भारतीय सरलता से आ मसात कर सकता है। इसके अलावा य द आपको हदी के कु छ श द आते ह तो हदी समाचार सुनकर और उ ही समाचार को अपनी मातृभाषा म सुनकर आप हदी के नये श द समझ सकते ह । हदी टीवी काय म देखकर भी आप ज दी इस भाषा को सीख सकते ह । म यह बता दूं क कोई भी चीज सीखना क ठन नह होता बस शु आत ठीक तरह से होनी चािहए , येक भाषा के िलए अ र व भाषा का ान होना आव यक है तो त प ात् अ यास करना ज री है।
ीमती सुरेखा रहाटे बाजपेयी क.का. . / रोकड़ काया.
52
दो गज़ल आसमान छू ने को वािहश ज री ह
कभी जो दल म रहे मरे धड़कन क तरह,
कामयाब होने को कोिशश ज री ह ।
बदल रहे ह वही लोग मौसम क तरह ।
मु क क िसयासत म चंद लोग ऐसे ह कह रहे िसयासत म सािजश ज री ह ।
तेरा खयाल, तेरी जु तजूं तेरी याद, म गम रे त म रहता ँ मछिलय क तरह । िखला िखला है अमलतास गुलमोहर,हर सू,
जब बयाँ न हो पाए दद- दल कसी सूरत
वह पर टहल चलो िपछली ग मय क तरह
बेजब ु ान आँख से बा रश ज री ह ।
मजाक ही तो है क मत का साथ है ले कन,
जब कदम बहकने क उ रं ग दखलाए
िमले न रे ल क दोन ही पट रय क तरह ।
ठीक दौरे नाजुक म बं दश ज री ह । आजमाइए खुद को जब कभी िमले मौका, िसफ अपनी पैमाइश ज री ह ।
अगर िनभा न सको साफ-साफ कह देना, भटक न पाऊँगा नाकाम आिशक क तरह दोबारा लौट के बचपन न आएगा, पकड़ना चां म उड़ जाओ िततिलय क तरह ।
िवजय कु मार यादव डी.बी.ड यू./ एफ.-6
53
हदी का स मान अपनी भाषा, अपना गौरव, हदी का स मान करो । यह समृ है भावपूण है इसका तुम गुणगान करो ।। दुिनया म
येक देश क अपनी अपनी भाषा है,
पर ना एक मत हो पाए हम मन म घोर िनराशा है, देश थम है इसक खाितर वाथ का बिलदान करो, अपनी भाषा अपना गौरव हदी का स मान करो ।। एक दूजे को समझ सक हम हदी म संवाद करो, अलग-अलग भाषा अपनाकर आपस म ना िववाद करो, हदी भारत क भाषा है कु छ तो इसका यान करो, अपनी भाषा अपना गौरव हदी का स मान करो ।। िनज माता को छोड़ पराई माँ का आंचल थाम रहे, यार उसी से करने बैठे िजसके कभी गुलाम रहे, सारे जग म हदी क राह को तुम आसान करो, अपनी भाषा अपना गौरव हदी का स मान करो ।।
वीण कु मार ीवा तव काय क/ एफ-1
54
चौसठ योिगनी मं दर, भेड़ाघाट अपने वैभव के
यह मं दर ि भुजाकार 81 कोण पर आधा रत है
िलए यात रही सं कारधानी म
एवं
येक कोण पर योिगिनय क
थापना क गई थी।
एक ऐसा थान भी है जहाँ कभी चौसठ योिगनीयॉ पहरा
इसी थान पर गु काल म 7 या 8 मातृकाएं थािपत थ ।
देती थ । भेड़ाघाट क संगमरमरी वा दय म ि थत 64
12 व शता दी म गुजरात क रानी कौशल देवी जो शैव
योिगनी मं दर एक जमाने म गोलक मठ के नाम से भी
थी, ने यहाँ गौरी शंकर मं दर बनवाया
िस
था। िव िव ालय का दजा ा यह मठ पंचांग एवं
सिमित क प रचा रका योिगनीयॉ
कालगणना का बड़ा क था। योितष का अ ययन करने के
तं साधना म योिगनी िवशेष मह व रखती ह यह
िलए दुिनया भर से िव ाथ
दुिनया शि
यहाँ आते थे।
तं साधना म इ ह योिगिनय
गोलक
मठ म
को िस
ग ठत
शाखाएं थ
करके उनसे वांिछत
काम करवाते ह।
योितष सं कृ त सािह य तं िव ान क
प रचायक
मानी जाती ह । तांि क अपने
अलग-अलग शाखाएं िव िव ालय
क
मं दर म
इनक मू तयां आज भी ब त ।
भावशाली लगती ह। बताया
इनम से क चुरी काल म
जाता है क इस दौरान यह तं
िन मत
साधना का िवशेष क
तं
साधना
क
आ
च सठ योिगनी मं दर अब भी
करता था । दूर-दूर से तांि क
मौजूद है ।
यहाँ
चौसठ
योिगनी
योिगिनय को िस
मं दर िजसे गोलक मं दर भी
करने
और
करने आते
थे ।
कहते ह , भारत के म य देश रा य के जबलपुर िजले क
शंकर और पावती क िववाह ितमा
भेड़ाघाट नगर पंचायत म ि थत एक हदू मं दर है । यह
चौसठ योिगनी मं दर के क म भगवान शंकर और
एक असाधारण एवं अ भुत मं दर है, य क इसम 64 छोटे
पावती क िववाह ितमा थािपत है, जो देश म एकमा है
मं दर सि मिलत होते ह एवं 81 योिगनी का मं दर है । यह
एवं मं दर के चार ओर 84 तंभ पर वृ ाकार दालान
भेड़ाघाट म नमदा नदी के पास ऊपर पहाड़ पर ि थत है ।
बनी है िजसम दो वेश ार ह । इितहासकार आनंद सह
इस मं दर का िनमाण 11व शता दी म ि प
राणा के अनुसार औरं गजेब के आदेश से उसक सेना ने इन
करवाया था ।कह कह यह भी उ लेिखत है क मं दर
मू तय को खंिडत कया था । उपरो
िनमाण क शु आत 10 व शता दी म कलचुरी शासक
त य म प है क
बीती शताि दय म यह थान ब त समृ एवं योितष तं
युवराज देव थम ने अपने रा य िव तार के िलए योिगय
िव ा क दृि
का आशीवाद लेने के उ े य से बनवाया था । ि भुज कोण
से ब त समृ
रहा होगा, िजसके कारण
अंतररा ीय तर पर जबलपुर क आज भी पहचान है
संरचना पर आधा रत इस मं दर म खंिडत मू तयां ह, जो देश-िवदेश के पयटक के िलए आकषण का क है । गुजरात
आर.के .कु रा रया,
क रानी गोशल क योिगनी पूजा परं परा पर िन मत इस मं दर म योिगिनय क
साधना
सहा. म क याण आयु
ितमाएं 64 नह बि क 81 है।
55
नारी शि
तू य घबराए
कसकर कमर उठा तलवार िनकल ऐसे पथ डगमगाए गजना से तेरी आंधी भी थराये द रदगी भी सामने तु हारे सर झुकाए दस दशा
म ललकार िलए
िजधर बढ़ो जय-जयकार हो जाये
नारी शि
तू य घबराए
नु ड़ म भी नारी शि ऐसी दृढ़ शि
का संचार हो
का पैगाम िलए
रोक न खुद को आह िलए तोड़ के बंधन आंचल लहराए यह जमी और आसमां थम जाय नाउ मीदी भी तुझे रोक न पाए
नारी शि
तू य घबराए
िवजय पताका तू फहराए गगन चूम बादल छंट जाएं कसकर कमर जो आगे आए तूफां भी टकराकर झुक जाए गूंज से तेरी व
भी
क जाए
अब जहाँ म तू य शरमाए
नारी शि
तू य घबराए दीप कु मार िबसेन, . .े िल./ िमक कायालय
छायावाद हदी सािह य के इितहास को मु यत: तीन भाग
डॉ रामकु मार वमा भी छायावाद को रह यवाद से जोड़ते ह। वे कहते ह- “जब परमा मा क छाया आ मा म पड़ने लगती है और आ मा क छाया परमा मा म तो यही छायावाद है ।
म बांटा जा सकता है, आ दकाल, म यकाल और आधुिनक काल । आधुिनक काल को हदी किवता के संदभ म आगे और भाग म बांटा जा सकता है:- भारतदु युग, ि वेदी युग, छायावाद, गितवाद, योगवाद/ नई किवता, साठो री किवता। यहॉ ‘छायावाद’ का िववेचन करना अपेि त है ।
” नंददुलारे वाजपेई ने ‘ हदी सािह य : बीसव सदी’ पु तक म इसे आ याि मक छाया का भान कहा है । उनके अनुसार – “छायावाद सांसा रक व तु म द स दय का यय है ।” डॉ नग के अनुसार- “ थूल के ित सू म का िव ोह ही छायावाद है ।” मु यतः िविभ िव ान ने छायावाद के संदभ म िन िलिखत िवशेषताएं उ ा टत क ह :– 1. छायावाद प ित िवशेष है । 2. यह आ याि मकता से यु है। 3. यह एक दाशिनक अनुभिू त है । 4. यह म े और स दय क अिभ ि है । 5. यह ढ़वाद का िव ोह है । 6. यह एक तीका मक अिभ ि है । 7. यहाँ थूल के ित सू म का िव ोह है ।
छायावाद : आधुिनक हदी का म छायावाद को ‘आधुिनक हदी सािह य का वण युग’ कहा जा सकता है । यह युग सािह य के े म एक ांित था िजसम कला प तथा भाव प दोन दृि कोण से उ कष का चरम दखाई देता है। सन 1920 से सन 1936 तक के का को छायावाद कहा जाता है । छायावाद का आरं भ – मुकुटधर पांडय े ने 1920 ईo म जबलपुर से कािशत होने वाली पि का ‘ ी शारदा’ म ‘ हदी म छायावाद’ शीषक से चार िनबंध एक ख ृं ला के प म छपवाए थे जो छायावाद के संबध ं म सव थम लेख ह । इसके अित र 1921 ईo म ‘सर वती’ पि का म सुशील कु मार ने ‘ हदी म छायावाद’ शीषक से एक संवादा मक िनबंध िलखा था । इस कार सव थम छायावाद श द का योग मुकुटधर पांडय े ने कया था छायावाद को ‘िमि टिसजम’ के अथ के प म योग कया गया था । आरं भ म छायावाद श द का योग ं य के प म कया गया था ले कन बाद म इसे सहष वीकार कर िलया गया । जयशंकर साद के का ‘आँस’ू को छायावाद क पहली रचना माना जाता है । छायावाद का अथ व प रभाषा : छायावाद के अथ को लेकर िव ान म मतभेद है आचाय शु ल छायावाद का संबध ं रह यवाद और िवशेष का -शैली से जोड़ते ह। आचाय महावीर साद ि वेदी ने 1927 ई वी म ‘सर वती’ पि का म ‘सुकिव ककर’ छदम नाम ‘आजकल के हदी किव और किवता’ नामक लेख िलखा था इसम उ ह ने छायावाद के संबध ं म िलखा था – “छायावाद से लोग का या मतलब है कु छ समझ म नह आता । शायद उनका मतलब है क कसी किवता के भाव क छाया य द कह अ य जाकर पड़े तो उसे छायावादी किवता कहना चािहए ।” छायावाद के सु िस किव सुिम ानंदन पंत ने छायावाद को ‘िच भाषा प ित’ कहा है ।
छायावाद के मुख किव जयशंकर साद ( 1889 ईo से 1937 ईo ) – कानन कु सुम, महाराणा का मह व, क णालय, म े पिथक, झरना, आंस,ू लहर, कामायनी । सूयकांत ि पाठी िनराला ( 1899 ईo – 1961 ईo ) – अनािमका, प रमल, गीितका, तुलसीदास, कु कु रमु ा, अिणमा, नए प ,े बेला, अचना, आराधना, गीत कुं ज, सां य-काकली । सुिम ानंदन पंत ( 1990 ईo से 1977 ईo ) – िगरजे का घंटा ( पंत क पहली किवता ), िं थ, प लव, वीणा, गुज ं न, युगांत, युगवाणी, ा या, वण करण, वण , युगपथ, उ रा, अितमा, वाणी, पतझर, कला और बूढ़ा चाँद, लोकायतन, स यकाम । महादेवी वमा ( 1907 ईo से 1987 ईo ) – िनहार, रि म, नीरजा, सां यगीत, यामा ( इसम पहली चार का शंकर को एक साथ संकिलत कया गया है ), दीपिशखा । छायावादी का क मुख वृि यां ि वाद क धानता: छायावादी का म ि वाद क धानता है । शायद आधुिनक युग क अनेक सम या के कारण ि वाद का ज म आ ।
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साद क ‘कामायनी’ और िनराला क ‘तुलसीदास’ रचनाएं मानवतावाद क भावना से ओत ोत रचनाएं ह । छायावादी का म रा वाद क भावना भी संक ण नह अिपतु मानवतावादी है। यही कारण है क छायावादी का म मानवेम, उदारता, क णा और िव -बंधु व क भावना आ द के दशन होते ह । पंत जी मानव म े के िवषय म कहते ह :“सुद ं र है िवहग, सुमन सुद ं र मानव तुम सबसे सुद ं रतम ।”
छायावादी का म कसी जाित, महाजाित के सुख-दुख क नह अिपतु साधारण ि के सुख-दुख क बात है । किव अपनी किवता क िवषय-व तु क खोज बाहर से नह अिपतु अपने भीतर से करता है । इसीिलए छायावादी का म कह -कह अहम भावना क अित है परं तु यह अहम भाव असामािजक नह है इसम ‘सव’ िमला आ है । इस किवता म किव का रोना या हंसना उसका ि गत नह है अिपतु येक संघषरत ि का रोना या हंसना है ।
कृ ित-िच ण : छायावादी किवय ने कृ ित का सुद ं र िच ण कया है । इनके का म कृ ित का आलंबनगत व उ ीपनगत दोन प म वणन कया गया है । इ ह ने अपने का म कृ ित का मानवीकरण कया है । सभी मुख छायावादी किवय ने कृ ित का िच ण नारी प म कया है । छायावादी किवय ने कृ ित के मा यम से सुद ं र व साि वक िच ख चे ह परं तु कह -कह इनके कृ ित-िच ण म भी अ ीलता के दशन होते ह । िनराला क किवता ‘जूही क कली’ को कु छ लोग भले ही कृ ित- िच ण का े उदाहरण मान ले कन वा तव म इस किवता म पु ष-नारी के संगम का िच ण है ।
यथा :- “मने ‘म’ शैली अपनाई देखा सब दुखी िनज भाई ।” मानवतावाद : छायावाद का सबसे उ वल प मानवतावाद है । वह युग वा तव म िव यु और मानवतावाद का युग था । यु के भयंकर प रणाम को देखकर अनेक महापु ष मानवतावाद का चार कर रहे थे ।
एक उदाहरण देिखए :” सरकाती पट िखसकाती लट शरमाती झट वह निमत दृि से देख उरोज के युग घट” । रह यवाद : छायावादी का
क एक मुख वृि
है-रह यवाद।
यही कारण है क कु छ िव ान ने तो छायावाद को रह यवाद से जोड़कर ही इस को प रभािषत कया है । उदाहरण के िलए आचाय रामचं रह यवाद से जोड़ते ह ।
शु ल छायावाद को
डॉ टर रामकु मार वमा भी
रह यवाद को क छायावाद मानते ह। वे कहते ह– “जब परमा मा क छाया आ मा पर तथा आ मा क छाया परमा मा पर पड़ने लगती है तो यही छायावाद है ।” व तुतः सभी छायावादी किवय
ने अपने का
म
आ याि मकता को थान दया है । इन किवय ने आंत रक अनुभिू तय को कट करने के िलए रह यवाद का सहारा िलया है ।
58
वतं ता ेम : साद ने परम स ा को बाहर खोजा, महादेवी वमा ने ेम
छायावादी किवय के का
म रा ीय जागरण का
और वेदना म, पंत ने कृ ित म तथा िनराला ने त व ान म;
वर भी िमलता है । यह किव अनेक थान पर वतं ता
ले कन इनम से कसी का भी रह यवाद कबीर या दादू जैसा
का आ वान भी करते ह । रा ीय आंदोलन का भाव इन
गहरा नह । इनके रह यवाद म मा मकता का अभाव है ।
किवय पर पड़ना वाभािवक ही है । साद के का
व छंदतावाद :
नाटक दोन म ही रा ीय भावना देखने को िमलती है
छायावादी किवय ने अहमवादी व
ि वादी होने
। माखनलाल चतुवदी क रा ीय भावना का एक उदा. :“मुझे तोड़ लेना वनमाली उस पथ पर तुम देना फक मातृभिू म पर शीश चढ़ाने िजस पथ जाएं वीर अनेक ।” कला प :
के कारण व छंदतावादी कृ ित को अपनाया है । उ ह ने का -रचना करते समय कसी भी कार के शा ीय बंधन को वीकार नह कया । िवषय का चयन करते समय भी उ ह ने इसी िनयम को अपनाया । यही कारण है क छायावादी का वणन,
कला प
म िवषयगत िविवधता है । स दय
म े -िच ण,
वेदना,
कृ ित-वणन, रा
म े ,
का
किवय ने परं परा छंद’
त कालीन वातावरण क देन है य क उस समय भारत
म ‘मु
क
मुख िवशेषता रही है ।
रह यवादी भावना के कारण कन किवय क
थे।दूसरा, छायावादी किव मानते थे क वेदना और िनराशा
किवता
उपजता है । पंत जी िलखते ह :-
म
तीका मकता व सांकेितकता िमलती है ।
किवय ने श दालंकार अथालंकार दोन
“िवयोगी होगा पहला किव, आह से उपजा होगा गान उमड़ कर आंख से चुपचाप, बही होगी किवता अनजान ।”
का
योग कया है । का
पुन ि ,
कार के अलंकार
म अनु ास, यमक,
पक, उपमा, उ े ा,
ष े ,
पक, अितशयोि ,
मानवीकरण आ द अलंकार का सुद ं र योग कया है ।
नारी म े और स दय का िच ण :
अंतत: छायावाद आधुिनक हदी किवता का वण
छायावादी किवय ने नारी- ेम और स दय के
युग था । छायावादी किवय ने खड़ी बोली हदी को चरम
तुत कए ह । नारी स दय का िच ण कह -
उ कष दान कया । हदी किवता को नई ित ा िमली ।
कह दैिहक बन पड़ा है । यथा :“नील प रधान बीच सुकुमार खुल रहा मृदल ु अधखुला अंग ।”
साद, पंत,िनराला, महादेवी वमा जैसे महान किवय ने इस काल म हदी किवता को नए आयाम दान कए । इस काल क किवता को पढ़कर पहली बार लोग ने माना क खड़ी बोली का माधुय
छायावादी किवय ने नारी के क णा, दया, ममता
आधुिनक काल का सव े
आ द भाव का भी सुद ं र िच ण कया है । साद ने नारी के िवषय म िलखा है :- “नारी तुम के वल
को तोड़ा है । िनराला ने का
क न व रखी । फर भी गेयता इन किवय क
किवता
का गुलाम था और आंदोलन असफल हो रहे
अनेक िच
योग कया है व सं कृ तिन
भाषा पर बल दया है । छंद के दृि कोण से छायावादी
म वेदना और िनराशा सव
ई है । कु छ आलोचक मानते ह क यह िनराशा
से ही का
म खड़ी बोली हदी अपने चरम उ कष पर प च ं गई
कोमलकांत श दावली का
वेदना और िनराशा :
अं ज े
उतना
। इन किवय क भाषा िच ा मक है । इन किवय ने
अपनी लेखनी चलायी । छायावादी का
के दृि कोण से भी छायावादी का
ही उ कृ है िजतना भाव प के दृि कोण से । छायावादी
रह यवाद,
िनराशा, उ साह आ द सभी िवषय पर इ ह ने
अिभ
तथा
काल क देन है ।
ा हो ।”
ज या अवधी से कम नह है। महाका
‘कामायनी’ इसी
अनुराग सोनी क.का. ./ भरण-1
59
भीड़ तं अरे ! देखो फलां वहाँ चो टल आ यह देखने भीड़ का मजमा जमा आ । र
रं िजत श स देख भी
न कान म जूँ रगती है । कै से आ क जगह कसका आ क खबर फै लती है । जो सबक ल वे होश म ह वरना न द म या बेहोश ह । छोटी सी है जदगी वयं के अनुभव पया नह , दूसरे क गलती से सीख जदगी के कटु अनुभव का िहसाब नह ।
गजल देता नह यह व
भी मोहलत कभी-कभी ।
जाने या वाब जदगी का है ।
दुिनया उजाड़ देती है आफत कभी-कभी कु छ
हर तरफ शोर एक कमी का है ।
सोचता नह है मेरा जािनसार * वो ।
हम क अपना इलाज कर ना सके ।
कर देता है अजीब सी हरकत कभी-कभी ।
दद कै सा ये बेबसी का है ।
वैसे तो आसमां थी प च ं पर है आदमी ।
दु मनी से इधर जो सोचो तो ।
लेती है फर भी जान यह चाहत कभी-कभी ।
हाथ यह अब भी दो ती का है ।
आते नह जमीन पर हर रोज शहंशाह ।
इतना डरते हो य जमाने से ।
सर चढ़कर बोलती है कू मत कभी-कभी ।
यह जमाना कहाँ कसी का है ।
यावर क सोच देिखए कतनी अजीब है ।
ह ती िमटती नह अंधेरे क ।
जी चाहता है आए मुसीबत कभी-कभी ।
चचा योग योग से रोशनी का है ।
*जािनसार = जान कु बान करने वाला
पचोखम् # आदमी के है "यावर" । रा ता सीधा बंदगी का है । #
पचोखम = ज टलता उलझन
िवनीत पंथ यावर ए जािमनर / यूएमट अनुभाग
61
माँ बाप को भूलना नह फु दी लाल ग टया क.का. ./ पे शन सैल ।। मातृ देव भवः ।।
।। िपतृ देव भवः ।।
भूलो सभी को मगर ,माँ – बाप को भूलना नह , उपकार अगिणत है उनके ,इस बात को भूलना नह । प थर पूजे कई तु हारे , ज म क खाितर अरे , प थर बन माँ बाप का, दल कभी कु चलना नह । मुख ँ का िनवाला दे अर, िजनने तु ह बडा कया, अमृत िपलाया तुमको, जहर उनके िलए उगलना नह । कतने लडाए लाड सब, अरमान भी पूरे
कए,
पूरे करो अरमान अब तुम उनके , यह बात भूलना नह । लाखो कमाते हो भले, माँ बाप से यादा नह । सेवा िबना सब राख है, मद म कभी फू लना नह । संतान से सेवा चाहो, संतान बन सेवा करो, जैसी करनी वैसी भरनी, याय यह भूलना नह । सोकर गीले म सुलाया, तु हो सूखी जगह, माँ क अभीमय आँखो को, भूलकर कभी िभगोना नह । िजसने िबछाए थे फू ल हरदम, तु हारी राहो म,
उस रहबर क राह के कं टक, कभी बनना नह । धन तो िमल जायेगा पर , या माँ-बाप कभी िमल पायेगे पल-पल पावन उन चरणो क , चाह कभी भूलना नह ।
( याद रहे पृ वी से भी भारी माता है, वग से भी ऊँचे िपता है। माता-िपता, शा
एवं गु जनो का आदर करने वाला िचर आदरणीय बन जाता है
62
“ ेन इस धरती के ऊपर ऐसे ब
स”
त सारे जीव है जो क
कोई भी इंसान िबना खाना खाये 30 दन या उससे
शारी रक इंसानो से ब त यादा ताकतवर है। ले कन फर
भी यादा जदा रह सकता है। ले कन वह अगर हमारे
भी िसफ हमारे मि त क का
मि त क को 5 िमिनट ऑ सीजन न िमले तो वो गंभीर
इतनी तर
योग करके हम इंसानो ने
से हमशा के िलए ित
कर ली है जो क हम कभी सोच भी नह सकते
को
थे। इसीिलए अगर आप बस ये समझ लीिजए क मि त क
प
त हो सकता है और अगर मि त क
ित दन कम ऑ सीजन िमले तो उसके सोचने क
कस प रि थित म अ छा काम करता है तो आप अपने
मता पर भी असर पड़ता है। इसिलए हर कसी को ह ते
ि गत और सामािजक जीवन म वो सब ा कर सकते
म 2 दन (एरोिबक ए सरसाइज करनी चािहए। एरोिबक
ह, जो भी आप चाहते ह। आइये मि त क काय मता संबध ं ी
ए सरसाइज वो
कु छ
तेजी से काय करते ह, जैसे तैरना,साइ कल चलाना,चलना
िनयम
को
समझते
ह।
ायाम होते ह िजसम हमारे शरीर काफ
इ या द। )
िनयम मांक - 1
िनयम मांक - 2
( ायाम से मि त क क
मता बढ़ती है)
(मानव
मि त क प रि थितय
बदलता
के अनुसार है)
आज से लगभग 2 लाख साल पहले हम इंसान दूसरे जानवर से खुद को बचाने के िलए एक दूसरे से सहयोग करते थे । आज के समय म भी हम लोग हर जगह एक दूसरे के साथ सहयोग करके ही अपना काम कर पाते ह ।चाहे वो कू ल हो, कॉलेज हो या फर कोई कॉरपोरे ट ऑ फस। इसीिलए अगर कोई कमचारी अपने िनयो ा के साथ या कोई छा अपने अ यापक के साथ य द सहज महसूस नह करता है तो वो अपने मि त क को पूरी नह
मता से योग
कर पायेगा । कोई भी इंसान तभी अिधकतम
रचना मकता और उ पादकता ा कर पाता है जब उसके आस-पास के लोग उसके साथ सहयोग कर और उसको ित दन र
समथन और ो साहन दान कर।
ायाम करने या पैदल चलने से हमारे शरीर म
िनयम
का वाह बढ़ता है जो क लूकोज और ऑ सीजन को
अलग है)
हमारे मि त क तक प च ँ ाने म और मि त क के आस-पास
हम अपने जीवन म जो भी काय करते ह या जो भी
जमा जहरीले त व (Toxic Waste ) को बाहर िनकलने म मदद करता है। और इसके प रणाम मि त क
यादा
मांक - 3 (हर मि त क का गठन अलग-
कु छ नया सीखते है उससे हमारे मि त क म सतत कु छ
व प हमारा
प रवतन होते रहता है।
भावी ढंग से सोच सकता है। .
इस दुिनया म हर इंसान का
मि त क एक दूसरे से अलग होता है
63
यािन क सारे िव ाथ , कमचारी और ाहक के मि त क एक दूसरे से अलग तरीके से बने होते ह । यहाँ तक क दो जुड़वाँ ब
के मि त क भी समान नह होते ले कन हमारा
एजुकेशन िस टम इस बात को नकारता है । वह यू
ब ू
वो संगठन सबसे कम उ पादक होते ह जहाँ कमचारी काम के दौरान ई-मल या फोन कॉ स का उ र देते रहते ह । यूं क जब कमचारी ऑन-लाईन होते ह तब उनका यान भटकता है ।
और फे सबुक जैसी क पिनयॉ इस बात को अ छे से समझती ह। वे आपको आपके पूव
याकलाप के आधार पर साम ी
दखाते ह। िजससे आप लंबे समय तक उनके लेटफाम का
यान भटकना उ पादकता का दु मन है इसिलए कोई भी काम करते समय खुद का यान न भटकने वाले माहौल म डालने क कोिशश कर ।
.
उपयोग करते रह और वो पैसे बनाते रह।
िनयम मांक - 5
िनयम मांक - 4
(याद करने के िलए दुहराय)
(हम उबाऊ चीज क ओर यान नह देत)े
हम अपने िव ालय म जो भी पढ़ते है उसका 90 % हम 30 दन के अंदर ही भूल जाते है और इस 90 % म से अिधकतम
हमारा
आपने शायद ये अनुभव भी कया होगा। हमारा दमाग एक
मि त क उबाऊ
चीज
के ऊपर यादा देर तक यान देने के नह
तो हम लास ख म होने के कु छ घंटो के अंदर ही भूल जाते है।
िलए
बना है
इसिलए अगर आप चाहते हो क कोई आपक बात को यान से सुने तो
साथ 7 अंक तक क सूचना को अिधकतम 30 सेकंड तक याद रख सकता है । यािन क आप कोई भी 7 अंक क सं या को अिधकतम 30 सेकंड तक याद रख सकते है और इससे यादा देर तक याद रखने के िलए आपको सूचना को दुहराना होगा।
िनयम मांक -6 (अ छा सोचने के िलए अ छी न द ज री है)
आपको हर 10 िमिनट म कु छ ऐसा िचकर करना होगा
जब भी हम सो रहे होते है तब हमारा मि त क उस समय भी
िजससे सामने वाले
जगा रहता है और पूरे दन म हमने जो भी सीखा उसको
ि
के मि त क को आपक बात
उसक जगह पर संिचत करता रहता है। इसिलए चीज को
उबाऊ न लग। हमारे
कॉरपोरे ट
हाउसेज
म
ब कायण
(Multitasking ) करने को बढ़ावा दया जाता है ले कन अनुसध ं ानकता
के अनुसार हमारा मि त क ब कायण के
िलए नह बना है । ब कायण करने क वजह से गलती होने क संभावना लगभग 4 गुना तक बढ़ जाती है । इसिलए ब कायण न तो आपके काय के िलए अ छा है और न ही आपक उ पादकता के िलए ।
अ छे से समझने और याद रखने के िलए अ छी न द मह वपूण है। लगभग पूरी दोपहर और खास तौर पर 3 बजे के करीब हमारे मि त क म बायोके िमक स क जंग चल रही होती है िजसम से एक बायोके िमकल हमको जगाये रखना चाहता है तो वह दूसरा हमको सुलाना चाहता है। इसीिलए अगर आपको दोपहर म 3 बजे के आस-पास न द आये तो वो सामा य बात है और दोपहर म 30 - 40 िमिनट
क झपक लेना आपक
काय मता और उ पादकता बढ़ाने म भी मदद करे गा।
64
.
ले कन वह अगर आप कु छ देखकर याद करते ह तो
िनयम मांक - 7 तनाव से मि त क क सीखने क
तीन दन बाद आपको उसका 65 % तक याद रहता है।
मता कम होती है
इसिलए कु छ भी ल बे समय तक याद रखने के िलए उसे
मानव मि त क लंबे समय तक तनाव झेलने के
सामने से देखने क कोिशश कर।
िलए नह बना है। इसिलए हमारा दमाग कसी भी तनाव
.
िनयम मांक - 10
का अिधकतम 30 सेकंड तक िबना कसी सम या के सामना कर सकता है। ले कन वह अगर तनाव ल बी अविध का हो
(पु ष और
ी मि त क अलग-अलग ह)
तो ये हमारे ितर ा तं को कमजोर और हमारे सोने क
मि त क के अनुसध ं ान से जुड़े बताते आएं है क पु ष और
मता को कम या ख म कर सकता है। एक िव ाथ के सीखने क यो यता को कम
ावसाियक साल से ये बात ी मि त क अलग अलग
तरीके से सूचना का िव ष े ण करते ह।.
करने से लेकर एक कमचारी क उ पादकता को कम करने
िनयम मांक - 11
तक, होने वाले तनाव म, सबसे
(हम शि शाली और वाभािवक
बड़ा
और
मु य
अ वेषक ह)
तनाव,भावना मक तनाव ही
हम इं सान अपनी
है।
कृ ित से ही
अपने आस-पास क चीज को समझने के
िनयम मांक - 8
िलए बने ए ह। इसिलए अगर हम कसी
(इं य को सचेत/ े रत
ब े को कोई व तु देते ह तो वो उसे
कर)
देखकर, सूघ ं कर, मुह ँ म डाल के और लगभग हर संभव तरीके से समझने क कोिशश करता है और ऐसा इसिलए है यूँ क आज से 20
हमारी इं याँ एक साथ िमलकर काम करने के िलए बनी वसाय चलाने वाले अ छे से समझते ह।
लाख साल पहले हमारे पूवज होमो सैिपयंस इसी तरीके से
इसिलए कसी िव यात कॉफ शॉप के अंदर जाते ही
अपने आस-पास क चीज को समझ कर िन कष िनकाला
आपको कॉफ क सुगध ं आती है और वे अपनी कॉफ के
करते थे। इस िनरंतर
ह और ये बात
वाभािवक अ वेषण करने वाली
कृ ित क वजह से ही हम इं सान आज इतना यादा गित
िलए रं ग और सुगध ं का ऐसा िम ण तैयार करते ह क य द
कर पाए ह। यह सारी अ भुत बात आपको जॉन मिडना क
आपका कॉफ पीने का मन न भी हो तो भी उस दुकान के
यूयाक टाइ स बे टसेलर कताब “ न े
अंदर जाने के बाद आपका मन कॉफ पीने का हो जाये।
स” से बताई ह।
अगर आप मि त क के िनयम को और िव तृत ढंग म समझना चाहते ह तो इस पु तक को ऑनलाइन खरीद
िनयम मांक - 9 (आंख सबसे मह वपूण इं ीय है)
सकते ह।
हमारी सारी इं योँ म से सबसे ज री इं ी दृि यािन क हमारे देखने क मता है। इसिलए जब भी आप कु छ सुनते
जय काश सह
है तो 3 दन बाद आपको उसका बस 10 % याद रहता है
किन.अनु.अिधकारी/ राजभाषा
65
क ू र दीप शमा क.का. / औ ोिगक कटीन
ू
कर.............
इितहास
एक डंडे वाला खेल है जो एक बड़े हरे बनात से ढ़के
यह आमतौर पर वीकार कया जाता है क
ए मेज पर खेला जाता है। िजसके कोने म और
क उ पि
19 व सदी के उ रा
क ू र
म ई । भारत म तैनात
येक चार
ि टश सेना के अिधका रय के बीच िबिलय स एक
येक लंबे लचीले कनारे के बीच म पॉके ट
लोकि य गितिविध रहा था और अिधक परं परागत
होते ह। इसम एक िविधवत् 12 फ ट× 6फ ट (3.7 मी.×
िबिलयड खेल म बदलाव क
1.8मी.) (पूण आकार का) मेज होता है।
1874 या 1875 के दौरान जबलपुर के अिधका रय के मस
इसे एक डंडे और से
क ू र गद : एक सफे द गद िजसम
योजना बनायी गई ।
म कि पत एक बदलाव िपरािमड पूल और लाइफ पूल म
येक का मान एक अंक होता है और पीले (2 अंक), हरे
यु
होने वाले लाल और काले रं ग के अलावे
(3), भूरे (4), नीले (5), गुलाबी
रं गीन गद को िमलाना था ।
(6) और काले (7) रं ग क अलग-
उ पि
अलग छह गद का
योग करके
भी सै य मूल क है , िजसका योग
थम वष के कै डेट या अनुभवहीन क मय के
खेला जाता है।
िलए बोल-चाल क भाषा के
डंडे वाली गद को लाल और रं गीन गद के साथ
क ू रशदक
जाता था ।
प म कया
ितयोिगता का एक
प यह
योग
कहता है क जब डेवनशायर रे िजमट के
करते
ए एक िखलाड़ी (या दल)
कनल सर नेिवल चै बलन इस नए खेल को
अपने
ित द ं ी के िव
खेल रहे थे, तो उनका
अंक
ा
कर
अिधक
क ू र का एक
िनशाना लगा कर पॉके ट म डालने म असफल
े म ( ि गत खेल) जीतता है।
रहा और चै बलन ने उसे एक
जब एक िनि त सं या म े म को
क ू र कहा.इस
कार यह नाम िबिलय स के खेल से जुड़ गया
जीत िलया जाता है तो एक िखलाड़ी मैच जीत जाता है।
ित ं ी एक गद को
िजसम अनुभवहीन िखलािड़य को गद के साथ
क ू र टेबल
क ू र कहा
जाता था।
क ू र, िजसे आम तौर पर भारत म ि टश सेना के अिधका रय
ारा आिव कार कया
आ माना जाता है,
कई अं ज े ी भाषी और रा मंडल देश म लोकि य है, िजसम शीष पेशेवर िखलाड़ी इस खेल से कै रयर क कमाई ब -िमिलयन पाउं ड तक अ जत करते ह। यह खेल चीन म िवशेष
प से ब त ही लोकि य ह ।
आधे आकार मेज पर गित म खेल. एक लाल गद िड बाबंद म.
66
ूकर के िनयम
जब कसी िखलाड़ी का ित द ं ी खेल के िनयम का उ लंघन करता है तब भी अंक
खेल का उ े य एक पूविनधा रत
म म ित ं ी
क तुलना म अिधक गद को िनशाना लगा कर
कए जा सकते ह ।
कारण से होता है, जैसे क
पॉके ट म
िखलाड़ी ारा लाल रं ग के गद को िनशाना लगाने के समय
म, दखाए गए तरीके से गद को
कसी रं ग से टकराना, डंडे वाली गद को िनशाना लगाना,
थान पर रखा जाता है और िखलाड़ी बारी-बारी
या एक ि थित से बचने म असफल होना (जहाँ िपछले
डालना है । े म के शु उपयु
िनयम का उ लंघन िविभ
ा
से डंडे क गद से एक ही
हार म िनशाना लगाते ह ,
िखलाड़ी ने अपनी बारी समा कर डंडे वाली गद को उस
िजसम उनका ल य कसी एक लाल गद पर िनशाना लगा
ि थत म छोड़ दया जहाँ ल य वाली गद को सीधे-सीधे
कर पॉके ट म डालना और एक अंक
िनशाना नह लगाया जा सकता है )।
ा
करना होता है।
य द वे कम से कम एक लाल गद को िनशाना लगा कर िनयम के उ लंघन से ा अंक यूनतम 4 अंक से
पॉके ट म डालते ह, तो वह पॉके ट म बना रहता है और उ ह
लेकर अिधकतम 7 अंक तक हो सकता है य द इसम काली
एक और िनशाना लगाने क अनुमित दी जाती है।
गद भी शािमल हो । इस बार ल य कसी भी एक रं ग क गद को आमतौर पर
िनशाना लगा कर पॉके ट म डालना होता है । य द वे सफल
े म क एक पूविनधा रत सं याएं
होते ह, तो वे िनशाना लगा कर पॉके ट म डाले गए रं ग का
होती है और जो िखलाड़ी सबसे अिधक े म जीतता है वह
मान ा करते ह । यह मेज पर अपनी सही ि थित म लौट
स पूण मैच जीत जाता है।
आता है और उ ह एक और लाल रं ग क गद पर िनशाना
अिधकांश पेशव े र मैच म एक िखलाड़ी को पांच
लगा कर पॉके ट म डालने क कोिशश करनी चािहए । यह
े म जीतने क ज रत होती है और उ ह "सव े नौ" कहा
या तब तक जारी रहती है जब तक वे वांिछत गद को
जाता है य क वह
िनशाना लगा कर पॉके ट म डालने म असफल रहते ह,
े म क अिधकतम संभव सं या है।
आमतौर पर ितयोिगता के फाइनल सव े 17 या सव े
िजसके आधार पर उनका ित द ं ी मेज पर दूसरा िनशाना
19 होते ह, जब क िव
लगाने के िलए वापस आ जाता है । खेल इस तरीके से तब
ितयोिगता म लंबे समय तक
चलने वाले मैच होते ह - िजसम ालीफाई करने वाले मैच
तक जारी रहता है जब तक सभी लाल गद को िनशाना
और और पहले दौर म सव े 19 मैच से लेकर, लंबाई म
लगा कर पॉके ट म नह डाला जाता है और िसफ 6 रं ग क
35 े म तक होते ह और यह दो दन तक खेला जाता है।
गद मेज पर बचे रह जाते ह; उस समय ल य तब रं ग (गद ) को पीला, हरा, भूरा, नीला, गुलाबी, काले रं ग के मानुसार िनशाना लगा कर पॉके ट म डालना होता है। जब
े म के इस चरण म कसी रं ग को िनशाना
लगा कर पॉके ट म डाला जाता है, तो वह मेज से बाहर ही रहता है । जब अंितम गद को िनशाना लगा कर पॉके ट म डाला जाता है, सवािधक अंक
ा
करने वाला िखलाड़ी
िवजयी होता है।
एक िव तार , जो बाधा डालने के शॉट के िलए इ तेमाल कया जा सकता है य क वह हाथ के शॉट के िलए ब त दूर ह
67
पेशव े र और
ित पधा मक गैर-पेशेवर (शौ कया)
मैच म एक रे फरी आिधका रक िन प
िविभ
कार के टेक (िजसक ज रत अ सर बड़े
प से काम करता है जो
आकार वाली मेज के कारण होती है), लाल रं ग को रखने के
खेल के िलए एकमा िनणायक होता है। रे फरी मेज
िलए एक रै क (ि भुजाकार उपकरण) और एक कोरबोड
पर रं ग को पुन: थािपत करता है और िखलाड़ी ारा एक क े के दौरान
ा
शािमल ह । बड़े आकार क मेज पर
कए गए अंक क घोषणा करता है।
आमतौर पर पेशेवर िखलाड़ी रे फरी
ारा चूक
िनयमो लंघन क घोषणा कर, अपने
क ू र खेलने का एक
दोष कमरे का आकार (22'X 16' या लगभग 5 मी X 7
कए गए
मी) है, जो डंडे को कमरे म सभी तरफ सुिवधाजनक
ित द ं ी के अ छे
घुमाने के िलए यूनतम
प से
प से आव यक है।[ यह उन थान
िनशान (शॉट ) क तारीफ कर, या भा यशाली शॉट के
क सं या को सीिमत कर देता है जहाँ खेल को आसानी से
िलए हाथ पकड़ कर माफ मांग कर खेल को एक खेल-
खेला जा सकता है। जब क पूल टेबल कई पब के सामान ही
भावना के साथ खेलते
आम होते ह,
ह।
िनजी
यु अय
क ू र
म
होने
वाली
श दावली
म
िखलाड़ी का एक
क े
मेज के िविभ
आकार ह: 10'x
5', 9'x 4.5', 8'x 4', 6'x3' और 4'x 2'. छोटे मेज िविभ
क म
के हो सकते ह, जैसे क मुड़ने वाले या खाने क
इक ा कया गया अंक
मेज के
प म
प रव तत होने वाले.
को क े
ा
उपकरण
करने वाला एक
िखलाड़ी, उदाहरण के िलए, अगले लाल रं ग क गद को
चाक
िनशाना लगाकर पॉके ट म डालने म असफल रहने के पहले,
डंडे और डंडे क गद के बीच अ छे संपक सुिनि त करने के िलए डंडे ( यू) क न क पर 'खिड़या'(चाक) लगाया जाता है।
एक लाल फर एक काला, तब एक लाल फर एक गुलाबी रं ग क गद को िनशाना लगाकर पॉके ट म डाल कर इसे ा कर सकता था।
क ू र हॉल म खेला
मेज पर भी खेला जा सकता है।
लगातार
छोड़कर) है। 15 अंक का
या
उपयोग कर इस खेल को छोटी
िखलाड़ी
(िनयमो लंघन
म
जाता है। थोड़े से लाल गद का
अथ मेज पर जाकर ारा
प रवेश
सावजिनक
शािमल है , िजसका एक
क ू र को या तो
क ू र म पारं प रक अिधकतम
यू
क े सभी
एक लकड़ी, जो लकड़ी या फाइबर लास से बनी होती है, िजसके न क का योग डंडे क गद पर हार करने के िलए कया जाता है।
लाल रं ग को काले से फर सभी रं ग को िनशाना लगाकर पॉके ट म डालना है िजससे 147 अंक अ सर "147" या "अिधकतम" के
ा
होते ह; इसे
प म जाना जाता है।
ए सटशन एक छोटी सी छड़ी (बैटन) जो डंडे ( यू) के िपछले िसरे पर इसे भावकारी प से लंबा करते ए फट बैठता है, या कस जाता है। इसका उपयोग िनशान (शॉट ) के िलए कया जाता है जहाँ डंडे ( यू) वाली गद िखलाड़ी से एक लंबी दूरी पर रहती है।
क ू र के िलए इ तेमाल क जाने वाली सहायक सामि य म डंडे के िसरे के िलए यु
होने वाला खिड़या,
68
टेक
िव ता रत पाइडर X शीष क आकार वाली एक छड़ी िजसका योग
वान और पाइडर का एक संकर. इसका उ े य
डंडे ( यू) को सहारा देने के िलए कया जाता है
लाल गद के िवशाल समूह को कम करना है। इन
जब डंडे वाली गद सामा य ए सटशन क प च ं से
दन यह पेशव े र
बाहर होती है।
ि थितय म इसका इ तेमाल कया जा सकता है जहाँ एक या एक से अिधक गद क ि थित
क का टेक
पाइडर को
सामा य टेक के समान होता है, फर भी इसम एक क (कांटा) लगा इसका
ाइकर के वांिछत थान पर जाने से
रोकता है।
आ धातु का िसरा होता है।
योग टेक को दूसरी गद के चार और
थािपत करने के िलए कया जाता है। क (कांटा) वाला टेक सबसे
क ू र म कम आम है ले कन उन
आधा ह था
क ू र म
आम तौर पर यह मेज के
का
नीचे क ओर ि थत होता
हाल
आिव कार है।
है, आधा ह था मेज क
पाइडर
लंबाई वाले टेक और गद का यह टेक के
एक
समान
संयोजन
होता
है
होता है ले कन उसका
िजसका
शीष
के
कभी कया जाता है जब
आकार का होता है;
तक क डंडे ( यू) वाली गद
वृ खंड
योग शायद ही
इसका योग डंडे क न क को डंडे ( यू) वाली गद
पर इस तरह से हार करने क ज रत नह होती है
से उं चा करने और उसे सहारा देने के िलए कया
क मेज क पूरी लंबाई वा तिवक बाधा नह बन जाए.
जाता है।
गद िच नक (माकर)
वान (या वान-नेक पाइडर) यह उपकरण, िजसम एक एकल िव ता रत गदन
एक ब -उ ेशीय यं
वाला टेक और िसरे पर दो न क वाला एक कांटा
एक िनशान होता है, िजसे एक रे फरी (1) एक गद
होता है, गद के समूह के साथ डंडे को अित र
के बगल म रख सकता है, ता क इसक ि थित का
दूरी दान करने के िलए यु
िच नांकन कया जा सके . वे तब गद को साफ
होता है।
िजसम एक 'D' आकार का
करने के िलए हटा सकते ह; (2) इस बात का िनणय
ि कोण/ रै क करने के
करने के िलए उपयोग कर सकता है क या गद
िलए क े के िलए आव यक रचना म लाल गद को
कसी रं ग को इसके थान पर रखे जाने से रोक रहा
इस उपकरण का उपयोग एक
े म शु
है;(3) इस बात का िनणय करने के िलए उपयोग
इक ा करने के िलए कया जाता है।
कर सकता है क या
िव ता रत टेक
बॉल क घोषणा
कए
जाने पर यू गद एक "गद" के अ यंत कनारे पर
िनयिमत टेक के सामान, ले कन ह थे के िसरे पर
हार कर सकता है (इसे बाधा डालने वाले
एक यं लगा रहता है जो इसके टेक को तीन फ ट
संभािवत गद के साथ-साथ रख कर).
तक िव ता रत करना संभव बनाता है।
--- 000---
69
एम.पी. अजब है एम.पी. गजब है म य देश का सोमनाथ - भोजपुर म य देश का डे ाइट - पीथमपुर म य देश क जीवन रे खा - नमदा म य देश का िज ा टर - वािलयर म य देश क सं कारधानी - जबलपुर म य देश क औ ौिगक राजधानी - इं दौर म य देश क माबल िसटी - जबलपुर म य देश क डायमंड िसटी - प ा म य देश क पहाड़ क रानी - पचमढ़ी म य देश का िनया ा फॉ स - धुआध ं ार म यपदेश का पशुपितनाथ - मंदसौर म य देश का मं दर का नगर उ न ै म य देश का लखनऊ िसवनी म य देश का बािगय का शहर - भड म य देश का नवाब का शहर - भोपाल म य देश का झील का शहर - भोपाल म य देश म संगीत का शहर - वािलयर म य देश म सफे द बाघ क ज मभूिम - गो वदगढ़ रीवा म य देश का ि वटरजरलड - सागर म य देश का अफ म का शहर मंदसौर - नीमच म य देश क खेल राजधानी - भोपाल म य देश क ऊजा राजधानी - सगरौली म यपदेश का अ भंडार - मालवा म यपदेश का सफे द सोने का
े
- िनमाड़
म य देश क िश ा राजधानी - भोपाल म य देश का सां कृ ितक क
- भारत भवन
म य देश क सां कृ ितक पहचान - खुजराहो म य देश क याियक राजधानी - जबलपुर एम.पी. अजब है एम.पी. गजब है
70
रामगोपाल यादव मशीिन / A-5अनुभाग
“ िनमाणी क “
ी देविजत चटज “
आयुध िनमाणी खम रया के
ितभा ” आप िवगत 6 वष से आयुध िनमाणी
काय क के पद
ी देविजत चटज जो क िवगत 30
खम रया
पो स
वष से शरीर सौ व खेल से जुडे ह , वष 1997 से
ोमोशन
बोड
2015 तक अिखल भारतीय आयुध िनमाणी शरीर
कोलकाता
सौ व ितयोिगता
शरीर सौ व के
पर कायरत
म आयुध िनमाणी खम रया
का ितिनिध व करते ए ित वष 60 कलो ाम भार वग म वण,रजत एवं कॉ य पदक ा
टीम मैनज े र के पद पर िखलािडय का माग –
कर
दशन कर रहे ह | आप रा ीय ओपन नेशनल
िनमाणी का नाम रोशन कर रहे है | ओपन नेशनल शरीर सौ व
ितयोिगता
ितयोिगता म अपने भार वग म
आप लगातार 7 वष तक िजला जबलपुर
कर िनमाणी एवं जबलपुर शहर का नाम रोशन कर
एवं म य देश रा य
ी देविजत चटज िवगत 6 वष से
तरीय
ितयोिगता
म
वण पदक के साथ ही जबलपुर के शरी एवं म य
इं िडयन बॉडी िब डस फे डरे शन ( IBBF ) मु बई
देश के शरी का िखताब जीत चुके ह |
(खेल मं ालय नई द ली से मा यता ा ) के जज ह, आप िविभ नेशनल ितयोिगता
म बे ट जजमट के िलए स मािनत
कए जा चुके ह |
लगातार 4 वष तक रजत एवं कॉ य पदक ा
चुके ह |
से
म सफलता
पूवक िनणायक क भूिमका िनभा चुके ह |
71
छोटी छोटी बात - बड़े बड़े सवाल
ऊजा संर
ण, पयावरण संर ण, दूषण िनयं ण आ द िवषय से जुड़ी ई छोटी छोटी
बात जो क देश एवं िव क हम म से
येक
रहे ह । इन 1
ि
तर पर ब त बड़े-बड़े
को ज म दे रही ह । ऐसे ही कु छ
के दैिनक जीवन से जुड़े ए ह, यानाकषण के िलए
एवं पाठक
या आप िबजली का कम से कम उपयोग करके
13
या आप धू पान करने के प ात बीड़ी िसगरे ट उिचत थान पर फकते ह ?
14
का यास करते ह ? या आप पे ोल डीजल से चलने वाले वाहन का
या आप पान गुटखा आ द का योग करते ह ?
15 या आप पान, गुटखा तंबाकू आ द के उपयोग के समय उिचत थूकदान का योग करते ह ?
कम से कम योग करने क कोिशश करते ह ? 3
16
या आप यातायात के िनयम
5
संपूण जीवन काल म कोई
17 या आप दवाली एवं
वृ ारोपण कया है ?
अय
या आपके
18
आप
का
योग
या आपके यहाँ अब
भी कु छ बचा
आ खाना
फक दया जाता है ? 19
सावजिनक
या आप के खेत म
कटाई बाद सफाई के िलए
साधन का उपयोग करते समय उसक
पर
करते ह ?
काटा गया
या आप अपने आसपास या
मौक
आितशबाजी
ारा कभी भी
सफाई का यान रखते ह ?
बाक फसल को जला दया
व छता का जाता है ?
यान रखते ह ? 8
या
तालाब म करते ह ?
या आपने कभी अपने
है ?
7
क मू तय का
िवसजन नदी समु
कोई बड़ा वृ 6
या आप अभी देवी
देवता
का हमशा पालन
करते ह ? 4
तुत कए जा
ारा इसके उ र को पाठक वयं मू यां कत कर एवं िव ष े ण करे ः
अपने घर, द तर एवं कारखान म िबजली बचाने 2
जो
या आप अपने घर द तर एवं कारखान का
कचरा उिचत थान पर फकते ह ? 9 या आप रे लवे लेटफाम बस टड एवं एयरपोट क व छता का यान ( उपयोग के समय ) रखते ह? 10 या आपने पानी के संर ण (वाटर हाव टग) के बारे म कभी सोचा है ? 11 या आप सफर के दौरान रे ल, बस अथवा हवाई
72
20 या आप समय-समय पर अपने वाहन का दूषण मु
होने का माण प
ा करते रहते ह ?
21 या आपके घर म काश क उिचत
व था है
िजससे दन म िबजली का उपयोग न करना पड़े ? 22 या आप अब भी लाि टक के ऐसे सामान का उपयोग कर रहे ह जो पुनः योगी (रीसाइ लेबल) नह है ?
राजानंद हराले, क.का. ./ ई.एस.ओ.
िमनी ए स लोिसव वैन
िनमाणी के िविभ के िमकल
फ ू
भरण अनुभाग
इस सपल प रवहन काय हेतु महा बंधक
ारा सपल
महोदय ने बैटरी क को, सपल टे टग प रवहन हेतु
यू.ए.ई. (एम.ई.) म परी ण के िलए
भेजा जाता है । पूव म
िमनी ए स लोिसव वैन ( Mini Explosive Van)
येक अनुभाग ारा यह सपल
लकडी के बॉ स म रख कर अपने अनुभाग से यू.ए.ई.
प रव तत करने के िनदेश दए । तदनुसार इस काय हेतु
(एम.ई.) तक पैदल ले कर जाते थे । इस काय के िलए
एम.ई. एवं एम.टी अनुभाग ने िमलकर संर ा व
तीन
ि य क
ूटी लगाई जाती थी । यह सपल
सुर ा का पालन करते
पैदल लेकर जाने म सुरि त नह था य क कभी भी
क को िमनी
ए स लोिसव वैन (Mini Explosive Van ) म बदल
कु छ दुघ टना होने क संभावना बनी रहती थी। जब यह सपल
ए बैटरी
दया । िजसका ब प फोटो ाफ म नीचे दया गया है।
येक अनुभाग से लेकर यू.ए.ई. (एम.ई.) तक
ले जाया जाता था, उस दौरान वहॉ पर प रवहन ( ांसपोटेशन) रोक
दया जाता था। इसके कारण
िनमाणी का कायालयीन समय ब त वे टेज हो रहा था एवं रा ते म बंदर
ारा हमला करने का खतरा भी
बना रहता था।
बाद म पहले
(
साद ए. ही.)
िमलराईट /एम.ई.
73
जीवन क स य व मह वपूण बात 1 लोग के साथ सामंज य थािपत कर पाना ही सफलता का एक अित मह वपूण सू है । 2 बुि मान लोग को सलाह क आव यकता नह होती है और मूख इसे वीकार नह करते ह। 3 र ते चाहे कतने भी बुरे हो, उ ह तोड़ना मत। य क पानी चाहे कतना भी गंदा हो अगर यास नह बुझा सकता तो या, आग तो बुझा सकता है । 4 एक छोटी सी च टी आपके पैर को काट सकती है पर आप उसके पैर को नह काट सकते इसिलए जीवन म कसी को छोटा ना समझे य क वह जो कर सकता है शायद आप ना कर पाए । 5 य द कोई
ि
आपको गु सा दलाने म
सफल होता है तो मान लीिजए क आप उसके हाथ क कठपुतली है । 6 अ छा या है यह सीखने के िलए 1000 दन भी अपया ह ले कन बुरा या है यह सीखने के िलए एक घंटा भी यादा है ।
राधा कशन मीणा लाइन िम ी / f11
74
कोिशश कर
सपने बुनना सीख लो बैठ जाओ सपन क नाव म,
कोिशश कर कु छ िमलेगा, आज नह तो कल िमलेगा ।
सपने बुनना सीख लो ।
बढ़ा कदम मंिजल नह तो तजुबा िमलेगा ।
खुद ही थाम लो हाँथ म पतवार,
कोिशश कर कु छ िमलेगा, आज नह तो कल िमलेगा ।।
मांझी का न इंतजार करो ।
नह जाती महनत बेकार कोिशश करने वाल क ।
सपने बुनना सीख लो ।।
िमल ही जाती है मंिजल हौसले रखने वाल क ।
पलट सकती है नाव क तकदीर,
कोिशश कर कु छ िमलेगा, आज नह तो कल िमलेगा ।।
गोते खाना सीख लो ।
पथ पर चलना सीखेगा, पथ चलने से पथ का अनुभव होगा । मंिजल ही न सही सफर का मजा होगा ।
सपने बुनना सीख लो ।। भंवर म फं सी सपन क नाव,
कोिशश कर कु छ िमलेगा, आज नह तो कल िमलेगा ।।
अब पतवार चलाना सीख लो ।
अजुन के तीर सा साध, म थल से भी जल िनकलेगा ।
सपने बुनना सीख लो ।।
महनत कर पौध को पानी दे, बंजर जमीन से फल िमलेगा । कोिशश कर कु छ िमलेगा, आज नह तो कल िमलेगा ।।
तेज नह तो धीरे चलना सीखलो, भय के
म से लड़ना सीख लो । सपने बुनना सीख लो ।।
कोिशशे जारी रख कु छ कर गुजरने क ,
मोहन सह
जो है आज अंधरे ा कल उजाला भी होगा ।
काय क / मा.सं.िवकास अनुभाग
कोिशश कर कु छ िमलेगा, आज नह तो कल िमलेगा ।। हार कर य बैठा है तू,ं हारना तेरी फतरत म नह । िज दा रख हौसला तू, हौसलो से कु छ िमलेगा ।
कोिशश कर कु छ िमलेगा, आज नह तो कल िमलेगा ।। 75
अित िविश अितिथय का आगमन
एडीशनल से े . (डी.पी.) ी संजय जाजू का िनमाणी आगमन
ी के .एस.सी.अ यर, डी.जी.ओ.एन.ए. का वागत करते ए महा बंधक
मेजर जनरल एस.के .िव ाथ का िनमाणी दौरा
रयर एडिमरल संजय िम ा का वागत करते ए महा बंधक
ले टी.जनरल सी.पी.क रय पा का िनमाणी दौरा
76
राजभाषा पखवाड़ा – झल कयॉ
77
आयुध िनमाणी दवस का आयोजन
78
राजभाषा स मेलन
79
िनमाणी म रा ीय पव
80
संर ा दवस / स ाह का आयोजन
81
संवाद काय म – झल कयॉ
82
िनमाणी म मिहला दवस क धूम
83
मिहला क याण सिमित, आ.िन.खम रया शाखा क गितिविधयॉ
84
मिहला क याण सिमित, आ.िन.खम रया शाखा क गितिविधयॉ
85
मिहला क याण सिमित, आ.िन.खम रया शाखा क गितिविधयॉ
86
कटीन भवन का नवीनतम प