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मदर्स-डे स्पेशल
मां चाहती क्या है , मां के मन में क्या है ? दे श में पहली बार सिर्फ
‘मां’ पर हुए भास्कर सर्वे में 10 राज्यों से 6,962 मदर्स ने हिस्सा लिया...
35% मां बोलीं, जिम्मेदारियों से मुक्त होकर कुछ नया सीखूंगी
59% मां चाहती हैं - बच्चे जिंदगी में उनकी 48% गलतियां न दोहराएं । मांएं सबसे दख ु ी होती हैं , जब बीमार 31% हों, कुछ न कर पाएं । मांओ ं की इच्छा है , बच्चे उनकी बात 31% सुनें, उन्हें समय दें। मां बोलीं- बच्चों को सही संस्कार देना सबसे बड़ी चुनौती।
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मां होने के बारे में सबसे सुखद क्या है ?
56% बोलीं, संतान से प्यार का अनुभव व ईश्वर के दायित्व जैसा अहसास होना 40%
बच्चे को सीखते और बढ़ते हुए दे खना।
28%
संतान और मां में प्यार का अनुभव। 2
04%
बच्चे को मदद देने में सक्षम होना।
28%
ईश्वर का दायित्व पूरा करने जैसा अहसास होना।
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मदरहुड ने आपका व्यक्तित्व कैसे बदला?
41% बोलीं- अपनी जिम्मेदारी और निस्वार्थ भाव ज्यादा मजबूत हुआ 30%
अधिक धैर्यवान और समझदार बनाया।
19%
छोटे पल व खुशियां संजोना सीखा।
10% 41%
परिवार की प्राथमिकता का भाव बढ़ा।
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जिम्मेदारी और निस्वार्थ भाव ज्यादा मजबूत हुआ।
मां होने का सबसे चुनौतीपूर्ण हिस्सा क्या था?
21% ने कहा, काम-परिवार और खुद के समय में संतुलन बनाकर रख पाना 59%
बच्चों को सही संस्कारसही दिशा देना।
03%
21%
काम, परिवार, अपने समय में संतुलन।
17%
3
रातों की नींद और थकावट संभालना। भावनाओ ं और तनाव के स्तर को नियंत्रित करना।
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बड़े हो गए बच्चों से मां क्या उम्मीद करती है ?
21% चाहती हैं , बच्चे देखभाल करें और किसी से उनकी तुलना न करें 17%
31%
बच्चे अपने साथ उनका भी ध्यान रखें।
साथ वक्त बिताएं , उनकी बात सुनें।
04%
48%
अन्य सदस्यों से उनकी तुलना न करें ।
जो गलतियां मैंने की हैं वो बच्चे अपने जीवन में कभी न करें ।
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मां सबसे ज्यादा दुखी कब होती हैं ?
50% ने कहा, जब बच्चों की जरूरतें पूरी न कर पाएं या वे असफल हों 26%
जब बच्चे की जरूरत पूरी न कर पाएं ।
24%
बच्चे असफल होते हैं तब।
31%
बीमार हों और कुछ ना कर पा रही हों।
19%
बाहर रहने वाले बच्चे कई दिनों से घर ना आ पाएं तब।
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जिम्मेदारी से मुक्त हो क्या करें गी?
23% ने कहा, मैं अपने लिए जीना शुरू करूं गी 27%
23%
बच्चों के बच्चों को संभालूंगी।
अपने लिए जीना शुरू करूं गी।
35%
15%
कुछ नया सीखना शुरू करूं गी।
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दे श-दनि ु या की यात्राएं करूं गी।
सर्वे में 35 से 44 आयुवर्ग की मदर्स की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा रही। 46 से 60 साल की मांएं दस ू रे नंबर पर रहीं। सर्वे में बड़े शहरों से लेकर छोटे-छोटे गांवों तक की मांओ ं ने भागीदारी की।
मां की सबसे बड़ी ख्वाहिश क्या है ?
बच्चे न सिर्फ मुझे, बल्कि हर महिला को उचित सम्मान दें
जो ओपन सवाल भास्कर ने पूछा था, उसके जवाब में मदर्स ने अपनी इच्छाएं कुछ यूं बताईं... 1. बच्चों को रहमदिल, समझदार, सच्चा, अच्छा और ईमानदार इंसान बनाना चाहती हूं। ईश्वर मेरे बच्चों की हर मनोकामना पूरी करें । अपने लिए कम से कम एक दिन फुल छु ट् टी चाहिए। 2. बच्चे फोन करें और कहें कि मैं तुमसे मिलने आ रहा हूं। बच्चों को खुश, स्वस्थ और सफल जिंदगी जीते देखना चाहती हूं। उन्हें वो सब कुछ देने की इच्छा है , जो हम हासिल नहीं कर पाए। 3. बच्चे मेरी बात सुनें। बच्चों और परिवार के साथ छु टि् टयों पर जाना चाहती हूं। बच्चों से प्यार, समय व केयर की ख्वाहिश है। मेरे अंतिम पल में मेरे बच्चे मेरी आंखों के सामने हों। 4. बच्चे न सिर्फ मुझे, बल्कि हर महिला को उचित सम्मान दें। बच्चों के साथ पूरा एक दिन बिताना चाहती हूं। मेरे बच्चे अपने पिता से भी कहीं ज्यादा कामयाब बनें। वे कभी दूर न जाएं । 5. अपने बच्चों के लिए इतना कर जाऊं कि उन्हें कभी किसी के आगे हाथ न फैलाना पड़े। वे कुछ ऐसा करें, जिस पर हम गर्व कर सकें। 6. मेरे बच्चे कर्जमुक्त और तनावमुक्त जीवन जिएं । धनवान, ज्ञानवान और संस्कारवान हों। 5
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मां है तो सब कुछ संभव है...
मां के जज़्बे और हौसले की 3 कहानियां मां है तो कुछ भी नामुमकिन नहीं... यकीन न हो तो इन मांओ ं से रूबरू हों। मां के जज्बे की इन कहानियों में पढ़िए, कैसे एक मां दृष्टिहीन बेटी की जिंदगी में रोशनी ले आई। किसी ने दोनों पैर गंवा चुके बेटे को अपने पैरों पर खड़ा कर दिया। किसी ने बेटे को बचाने के लिए पूरा जीवन ही कुर्बान कर दिया...
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दृष्टिहीन बेटी के लिए अपनी जॉब छोड़ी, उसे 17 भाषाओ ं में गाना सिखाया, गाने लिखे
सीमा चौधरी की बेटी
अनिमा कुमारी की रिपोर्ट
पटना | ये कहानी है , अनामिका की। साल 2017 में दिमागी बीमारी और टीबी की वजह से जयश्री (अनामिका की बेटी) की आंखों की रोशनी चली गई। अनामिका ने दे श के हर बड़े अस्पताल और डॉक्टर से मुलाकात की, पर इलाज संभव नहीं हो पाया। एक मां के विश्वास की मिसाल देखिए कि जब डॉक्टरों ने बेटी को दिव्यांग का सर्टिफिकेट दिया तो अनामिका ने लेने से मना कर दिया। कहा- मेरी बेटी नॉर्मल है , उसे स्पेशल ट् रीट करने की जरूरत नहीं है। वह आम लोगों की तरह ही जिंदगी जिएगी। 3 साल में मैं इसे अपने पैरों पर खड़ा कर दूंगी। आरा डीएम ऑफिस में एग्जीक्यूटिव असिस्टेंट अनामिका ने जाॅब छोड़ दी। आरा शहर छोड़कर पटना आ गईं। बेटी जयश्री का सपना था शेफ बनने का। लेकिन, आंखों की रोशनी जाने के बाद किचन छूट गया। डॉक्टरों ने उसे कंप्लीट बेड रे स्ट की सलाह दी। इसी बीच, जयश्री ने स्पेनिश सॉन्ग डिस्पेसिटो सुनना शुरू किया। मां को सुनाया। गाने के बोल पूरी तरह मिलते थे। यहीं से उसके सिंगिग के सफर की शुरुआत हुई। वह कोई भी गाना 1-2 दिन में सीख जाती थी। अनामिका ने बेटी के लिए यूट्यूब चैनल बनाया और उसके वीडियो अपलोड करना शुरू कर दिया। अनामिका खुद भी बेटी के लिए गाने लिखती हैं , जिसके दो वीडियो शूट हो चुके हैं। जल्द जयश्री का ‘जय बिहार’ गीत रिलीज होने वाला है। बेटी आत्मनिर्भर कैसे बने, इसके लिए वे हर दिन तैयारी करती हैं। उनकी मेहनत का ही नतीजा है कि जयश्री आज तमिल, तेलुगु, बंगाली, गुजराती, अरे बिक और फ्रेंच जैसी 17 भाषाओ ं में गाती हैं। वह बिहार दिवस पर भी परफॉर्म कर चुकी हैं। बीते दिसंबर में दिल्ली में एक अवाॅर्ड शो में सम्मानित भी हो चुकी हैं। 7
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दोनों पैर गंवाने वाली बेटी के लिए अस्पताल से अदालत तक लड़ीं और डॉक्टर बनाया शाहेदा शेख के बेटे
जहीर शेख की रिपोर्ट
नासिक | 2008 की बात है। शाहिदा की बेटी रोशन मुंबई में परीक्षा देकर घर लौट रही थी। भारी भीड़ के कारण वह अंधेरी से जोगेश्वरी के बीच चलने वाली लोकल ट् न रे से अचानक गिर गई। हादसे में दोनों पैर काटने पड़े। 10वीं में 92% अंक लाने वाली रोशन को लगा कि सब कुछ खत्म हो गया। पर मां उम्मीद की ऐसी किरण बनकर आई, जिसने उसकी जिंदगी फिर रोशन कर दी। रोशन के पिता सब्जी विक्रेता हैं। आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं है। मगर बेटी को प्रोस्थेटिक पैर दिलाने के लिए मां बहुत भटकीं, लेकिन हिम्मत नहीं छोड़ी। रोशन ने 12वीं में 75% अंक हािसल किए। मेडिकल सीईटी में वह विकलांग कोटे से तीसरे स्थान पर रहीं। मगर मां का संघर्ष यहीं खत्म नहीं हुआ। मेडिकल बोर्ड ने 95% विकलांगता का हवाला देते हुए उसे प्रवेश के लिए अयोग्य घोषित कर दिया। फिर मां ने 2011 में इसके खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील की। कई दिनों तक कोर्ट के चक्कर काटती रहीं।हर सुनवाई पर वक्त से पहले पहुंच जातीं।जो भी वकील मिलता, उससे राय-मशविरा करतीं। आखिर में उनकी मेहनत सफल हुई और बेटी को एमबीबीएस में दाखिला लेने का माैका मिल गया। मगर, उनका संघर्ष यहीं खत्म नहीं हुआ। जज ने मेडिकल बोर्ड को दोबारा विकलांगता परीक्षण कराने का अादे श दिया। मेडिकल बाेर्ड ने फिर उसे अयोग्य करार दे दिया। मां की गुजारिश पर मुख्य जज ने रोशन को कोर्ट में रैं प पर चलने के लिए कहा। उसने बिना किसी परे शानी के चलकर दिखा दिया। यह देखकर जज ने मेडिकल बोर्ड का आदे श खारिज कर दिया और चिकित्सा विभाग को उसे एमबीबीएस में दाखिल करने का निर्दे श दिया। हर साल प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होकर उसने 2016 में प्रथम श्रेणी से एमबीबीएस डिग्री हासिल की। 8
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पति की मौत के बाद मजदरू ी की, फिर 30 साल के बेटे की जान पर बनी तो किडनी दे दी गंगा देवी के बेटे
राजेश सिंह की रिपोर्ट
बोकारो | एक मां अपने बच्चों की खातिर किसी भी हद तक संघर्ष कर सकती है , उसी की मिसाल है यह कहानी। ललिता सिंह मूल रूप से बिहार में बांका जिले के बेलहर की रहने वाली हैं। उनके पति जमशेदपुर में बिष्टु पुर के एक निजी स्कूल में काम करते थे। जिंदगी अच्छी चल रही थी। 2009 में एक सड़क हादसे में पति की मौत हो गई। इस दुर्घटना ने ललिता का पूरा जीवन बदल दिया। एक बेटा और दो बेटियों को पालने की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई। जिस स्कूल में पति काम करते थे, वहीं 150 रु. प्रतिदिन की मजदूरी पर काम करने लगीं। जैसे-तैसे बच्चों को बड़ा किया। बड़े बेटे प्रिंस की 2017 में शादी कराई। प्रिंस की तबियत अचानक बिगड़ने लगी। जमशेदपुर में इलाज कराया, लेकिन उसकी हालत में कोई सुधार नहीं आया। जैसे-तैसे पैसे जुटाकर उसे वेल्लोर ले गई। वहां जांच रिपोर्ट आई तो ललिता के आंखों के सामने अंधेरा छा गया। बेटे की दोनों किडनी खराब हो चुकी थीं। उन्हें लगा कि परिवार एकबार फिर बिखरने की कगार पर पहुंच गया है। मगर ललिता ने हिम्मत नहीं हारी। ललिता बताती हैं - ‘मैंने सोच लिया कि अपने बेटे को ऐसे तड़पते हुए तो नहीं देख सकती। उसे दिल्ली, एम्स ले गईं, लेकिन कई दिनों तक चक्कर काटने के बाद भी नंबर नहीं लग पाया, पर मैंने उम्मीद नहीं छोड़ी। बेटे को बड़े निजी अस्पताल में भर्ती कराया। वहां बेटे की डायलिसिस होने लगी। एक महीना में ही डेढ़ लाख से ज्यादा खर्च हो गए। बेटे की नौकरी चली गई। फिर पता चला कि किडनी ट्र ांसप्लांट कर जिंदगी बचाई जा सकती है। मैंने गांव की जमीन बेच दी। आज मुझे इस बात की खुशी है कि भले ही सारी पूंजी खत्म हो गई हो, लेकिन मेरे बच्चे की जिंदगी बच गई।’ 9
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सबसे खास दिन...
मदर्स-डे पर सर्वाधिक लोग मां को बाहर डिनर/लंच कराते हैं ...
अगर आप इस सोच में हैं कि मां के लिए क्या खास करें, तो स्टेटिस्टा के इस सर्वे से जानिए, दनि ु याभर में लोग मदर्स-डे कैसे मनाते हैं ...
28%
27%
21%
11%
16%
12%
17%
12%
लोग गिफ्ट कार्ड और गुलदस्ता देते हैं।
लोग मां को डिनर या लंच पर ले जाते हैं। लोग ज्वेलरी देते हैं।
लोग किताबें देते हैं।
लोग ब्यूटी प्रोडक्ट ्स आदि देते हैं।
लोग किसी इवेंट की टिकट तोहफे में देते हैं।
लोग कैंडी या स्वीट् स देकर सेलिब्रेट करते हैं।
6%
कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक गिफ्ट करते हैं।
लोग हाउसवेयर या बागवानी का सामान देकर मदर्स-डे मनाते हैं।
नेशनल रिटेल फेडरे शन द्वारा 8,164 लोगों पर किए सर्वे के मुताबिक, इस मदर्स-डे पर दुनिया में लोग करीब 2.87 लाख करोड़ रुपए खर्च करें गे।
मां की खुशी के लिए आप ये भी कर सकते हैं ... क्वालिटी समय दें; पूरा दिन मां के साथ बिताएं । साथ खाना बनाएं ; मां को मनपसंद डिश खिलाएं । वर्चुअल जश्न; वीडियो कॉल व वर्चुअल पार्टी दें। काम में हाथ बंटाएं ; रोजमर्रा के काम में मदद दें। चैरिटी करें ; मां नहीं हैं तो वृद्धाश्रम में सेवा करें । 10
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मां कहती हैं...
ं सबसे शक्तिशाली दे श की बागडोर संभाल चुके ओबामा व ओलिपि क चैम्पियन नीरज चोपड़ा से जानिए, मां ने कैसे जिंदगी बदल दी?
मां ने बहुत प्यार किया, उसी प्यार ने भरोसा दिया कि जिंदगी में कुछ भी हासिल कर सकता हूं : ओबामा एन डनहम के बेटे बराक ओबामा अमेरिका के पूर्व राष्ट्र पति मेरी मां, एन डनहम का मेरी जिंदगी पर सबसे बड़ा प्रभाव है। इंसानियत पर उनका गहरा यकीन था, तभी तो उन्होंने हमेशा इस बात पर जोर दिया कि मैं हर इंसान की गरिमा का ख्याल रखूं। पता नहीं कैसे, युवावस्था में ही वे यह अच्छी तरह समझ गई थीं कि अगर आप बच्चों से प्यार करते हैं तो बहुत सुविधाएं और साधन न होने के बावजूद आनंद और रोमांच से भर सकते हैं। और फिर जब आप उनसे कहते हैं कि वे कुछ भी हासिल कर सकते हैं , तो वे हर लक्ष्य, हर मंजिल को पा लेते हैं। जब मैं 12-13 साल का हुआ, तब वे मां होने के साथ-साथ एक दोस्त की तरह भी बर्ताव करने लगीं। हालांकि, मैं यह नहीं कहता कि यह पैरेंटिगं का कोई आदर्श फॉर्मूला है , पर मैंने इतना जरूर सीखा है कि बिना शर्त मां का यह प्यार आपको बहुत कुछ बना सकता है। 20 की उम्र के बाद मेरे जीवन में ऐसा दौर भी आया, जब काम की लगातार व्यस्तता के कारण मेरी उनसे बहुत कम बात हो पाती थी। मगर, मुझे हमेशा से यह लगता है कि आखिर में आप उन्हें ही ज्यादा याद करते हैं , जो आपसे सबसे ज्यादा प्यार करते थे। आज भी मैं कई बार सोचता हूं कि काश, उनके साथ और वक्त गुजार पाता, जान पाता कि वे क्या सोच रही थीं? क्या कर रही थीं? क्योंकि वे मेरी जिंदगी का बहुत अहम हिस्सा थीं। 11
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मां ने हमेशा सिखाया कि लक्ष्य हासिल कर लो, तो उसे पड़ाव मानकर उससे बड़ा लक्ष्य बनाओ : नीरज सरोज चोपड़ा के बेटे नीरज चोपड़ा ओलिंपिक चैम्पियन एथलीट जब मैं छोटा था, तब मेरी मां ने मुझसे सिर्फ इन चंद लाइनों को अपने दिल और दिमाग में रखने को कहा था। मुझे याद है , उन्होंने कहा था - तुम सिर्फ अपनी मेहनत करो, यह मत सोचो कि दूसरा शख्स क्या कर रहा है , कितना कर रहा है ? तुम सिर्फ खुद पर भरोसा रखो, जब कुछ हासिल कर लो तो यह मत सोचो, सब कुछ हासिल कर लिया है , बल्कि उस लक्ष्य को अपनी मंजिल का एक और पड़ाव मानते हुए अपने लिए नया और उससे बड़ा लक्ष्य बनाओ और फिर उसे हासिल करने में जुट जाओ। संतोष करो सिर्फ इस बात का कि तुमने अपनी ओर से सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है और जज्बा रखो इस बात का कि ना पहले हार मानी और ना अब हार मानोगे। मुझे जब भी जो सीख दी जाती, उस पर पूरा गौर करता। अब मेरा लक्ष्य ओलिंपिक मेडल के अपने रिकॉर्ड को और ज्यादा चमकदार बनाना है। वहीं नीरज की मां सरोज चोपड़ा कहती हैं कि अब व्यस्तता के कारण खेल को लेकर मेरी उससे ज्यादा बात नहीं हो पाती, लेकिन जब भी बात होती है तो वह कहता है कि मां अभी तो और आगे जाना है। मैं कामना करती हूं कि उसकी यह इच्छाशक्ति उसे जीवन में बहुत आगे ले जाए। वह ऐसी मिसाल पेश करे , जिसका हर मां अपने बेटे को उदाहरण दे।
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