KV JRC BLY E Mag 2021 Flipbook PDF

KV JRC E Mag 2021

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MAG
SOLDADURA MIG/MAG 2 2 - Soldadura MIG/MAG • Torchas MIG/MAG .................................................. 2-1 a 2-5 • Accesorios ...........

MAG
/ Perfect Welding / Solar Energy / Perfect Charging transsteel 3500/5000 / Sistema de soldadura MIG/MAG 2 / Sobre nosotros / Desde 1950 desarrolla

PROYECTO EDUCATIVO REGIONAL CARAL 2021
Dirección Regional de Educación PROYECTO EDUCATIVO REGIONAL CARAL 2021 Trabajando por una buena educación construimos el desarrollo de nuestra Región

Story Transcript

Ms Nidhi Pandey IIS Commissioner Kendriya Vidyalaya Sangathan

From the Principal’s desk…

It is a matter of immense pleasure and pride that K.V. No1, JRC ispublishing its e-magazine ‘Aruni’. First and foremost Iwould like to extend my heart felt gratitude to our patrons Shri D. K. Dwivedi, Deputy Commissioner, KVS, RO Lucknow and Brigadier Adarsh K Butail, Commandant JRC Bareilly, Chairman VMC, K. V. No1 JRC under whose guidance leadership . KV, JRC is continuously progressing towards attaining new heights. Our Vidyalaya family is also indebted to our mentor Assistant Commissioners, KVS, RO Lucknow for their unconditional support and backing. These extraordinary times have witnessed extraordinary zeal; endeavor and never say die attitude of our KVS family. Teachers and students both have taken up this new mode of teaching and learning i.e. online education with enthusiasm and excitement. The way teachers have adapted themselves to this new domain of teaching with technology is worth appreciating. The team of K.V. JRC is fully committed to deliver quality teaching and learning both offline or online. This magazine is not only an online mirror of the young creative minds but it also reflects last year’s achievements and laurels brought by our students both in academics and co-curricular activities. I am sure that this e-magazine would

bring recognition and admiration to the students who have been part of this magazine and motivate their peers to carve out their names; next time. I also congratulate the editorial team for taking up this creative challenge and accomplishing it successfully. Hope all of you are taking great care of yourselves, this pandemic season. Use masks; follow social distancing and other advisories issued by Govt. of India from time to time and keep yourself and your loved ones safe.

With blessings Suresh Singh Principal

मुख्य संपादिका की क़लम से.... दिय पाठकगण ! पठन कौशल एक उपयोगी स्किल है , जो सभी दिषयों के पठन-पाठन को िभादित करती है । इस दलहाज़ से दिद्यालय पदिका पठन कौशल को दिकदसत करने में महत्वपूणण भूदमका अिा करती है क्ोंदक दिद्यादथणयों को अपने सादथयों की रचनाएँ पढ़ना बहुत भाता है । भािी कणणधारों की चहुँ मुखी ज्ञान िदतभा के क्रमबद्ध िस्फुटन एिं उनके संपोषण अदभिद्धण न हे तु दिद्यालय में सतत कायणक्रम संचादलत होते ही रहते हैं । हमारा दिद्यालय दशक्षा के साथ- साथ सां िृदतक कायणक्रम, खेलकूि, कंप्यूटर दशक्षण एिं अन्य उपयोगी दिदिधता से छाि जीिन की संबद्धता को आयाम िे ता हुआ सृजन धदमणता की साक्षात ितीक

2020-2021 की दिद्यालय पदिका आपके समक्ष है । दिद्यालय दिगत िषों के शानिार परीक्षा पररणाम के क्रम को जारी रखते हुए तथा उसमें गुणात्मक और पररणात्मक पररिद्धण न के संकल्प को साकार रूप में पररणत करते हुए पररश्रम , उत्साह तथा दनष्ठा के साथ कतणव्य पथ पर अग्रसर है । िस्तुत अंक के दिदजटल रूप को साकार करने के दलए िाचायण श्री सुरेश दसंह , उप िाचायण श्री के एल दकशोर से समय- समय पर दमलने िाले सत्परामशण के िदत आभार व्यक्त करती हँ । सभी दशक्षक सादथयों ि दिद्यादथणयों का भी हृिय से धन्यिाि , दजनके सहयोग के दबना यह कायण िु रूह ही नही ं असंभि था। एक दिनम्र दनिेिन िबु द्ध िगण! यदि दकसी दिद्याथी ने उनकी रचना अपने नाम से छपिाने की धृष्टता की हो , तो उन्हें बाल स्वभाि समझ कर क्षमा करने की कृपा करें । मंगल कामनाओं के साथ... लक्ष्य अपना साधकर बन जा तू कंपास, तूफ़ानों से िरे दबना जा उत्तर के पास। यूँ ही िु दनया में नही ं दमलता है मुक़ाम , तन मन को दनत लगा कमण में होगी पूरी आस।।

िॉ.दमदथलेश राकेश मुख्य संपादिका

Tough times don’t last…Tough people do… I extend my warm wishes to all the readers. This magazine is a literal art work of the students, for the students, and by the students. Their zeal, creativity and efforts are commendable. This lockdown phase has witnessed how our students have participated in every activity with more enthusiasm and effort. Whether it is ‘dance’, ‘yoga’, ‘art n craft’, ‘toy-making’ or virtual celebration of special days; they have performed exceptionally well.It showcases not only their creativity but also the streak of optimism that never dims. In the presence of trouble some buy crutches others grow wings, and I must say with pride that our students have grown wings. We must keep trying in every trying situation. Let’s never forget…Fortune favours the brave. My dear children, patience, determination, will power, courage and confidence are the sterling qualities of every successful individual. “There is no failure”, I say. “No failure”, as every failure is a lesson, a step forward towards our goals and aspirations. Remember, Destiny is not a matter of chance, it is a matter of choice. Choice of your perception. As this is rightly reiterated innumerous times that sooner or later the man who wins is the man who thinks he can… Our present position is never our final destiny. Believe in hard-work, believe in people around you, believe in supernatural power and above all believe in yourself. Don’t let these trying times turn you into a cynic. Hold on to your belief, there is much, still remains, that life has to offer. Stay positive, vibe high and keep learning… Aditi Negi (PGT English) Co-editor

संरक्षक

★प्रधान संरक्षक्षका: सुश्री निनि प ां डेय, आयुक्त के नि एस, मुख्य लय, िई निल्ली

★उप प्रधान संरक्षक: श्री डी के नििेिी, उप युक्त, के नि एस, लखिऊ सांभ ग

★संरक्षक: क्षिगेक्षियर निग आिर्श के बुटेल सम िे ष्ट , जे आर सी,अध्यक्ष निद्य लय प्रबांिि सनमनि

★परामर्श दाता: श्री सुरेर् नसांह, प्र च यश

★क्षिर्ेष सहयोग: श्री के एल नकर्ोर, उप प्र च यश ★सहयोग:

श्रीमिी रुनच गुल टी, मुख्य अध्य नपक , प्र थनमक निभ ग

संपादकीय मंिल ★मुख्य संपाक्षदका

डॉ. नमनथलेर् र केर्, पी जी टी (नहां िी) ★सह संपाक्षदका:

श्रीमिी अनिनि िेगी, पी जी टी (अांग्रेज़ी) क्षहंदी क्षिभाग ★श्री एम पी नसांह, टी जी टी (नहां िी) ★श्री हररर् चांद्र, टी जी टी (नहां िी) ★श्री िमेंद्र नसांह, टी जी टी (नहां िी) ★श्रीमिी सुमि आय श , प्र थनमक नर्नक्षक

संस्कृत क्षिभाग ★श्री र म िरर् र म

टी जी टी (सांस्कृि)

अंग्रेज़ी क्षिभाग ★श्रीमिी गीि निप ठी, टी जी टी (अांग्रेज़ी) ★श्रीमिी िीरज नसांह, टी जी टी (अांग्रेज़ी) ★श्रीमिी मौली अग्रि ल टी जी टी(अांग्रेज़ी) ★श्रीमिी निनर् र्म श , टीजीटी (अांग्रेज़ी) ★श्रीमिी कल्पि नभिु री, प्र थनमक नर्नक्षक

आिरण पृष्ठ ★श्रीमिी र्ोभ य िि

टीजीटी(कल ) तकनीकी सहायक ★श्रीमिी िीिू सक्सेि

स्न िकोत्तर नर्नक्षक (सी एस) ★श्री सौरभ अिस्थी (क य श िुभि नर्क्षक) ★श्रीमिी पूिम र जपूि (प्र थनमक नर्नक्षक ) ★श्रीमिी ममि र िी (प्र थनमक नर्नक्षक )

छात्र प्रक्षतक्षनक्षध ★आनित्य कुम र नमश्र XII A

★आयशि नसांह XII C ★आस्थ िरि ि XII D

विद्यालय परििाि श्री सुिेश वसिंह

प्राचायय

श्री के एल वकशोि

उप-प्राचायय

श्रीमती रूवच गुलाटी

मुख्य अध्यावपका

डा(श्रीमती) वमविलेश िाकेश

स्नातकोत्ति वशक्षक वहन्दी

श्री कमलाकािंत

स्नातकोत्ति वशक्षक अिंग्रेजी

डा वशि कुमाि वसिंह

स्नातकोत्ति वशक्षक िसायन विज्ञान

श्रीमती नीतू सक्सेना

स्नातकोत्ति वशक्षक सिंगणक

श्री के के गिंगिाि

स्नातकोत्ति वशक्षक गवणत

विद्यालय परििाि श्रीमती ज्योवत मौयाय

स्नातकोत्ति वशक्षक िसायन विज्ञान

श्री अखिलेश वचत्ािंशी

स्नातकोत्ति वशक्षक जीि विज्ञान

श्री श्रीकािंत वमश्रा

स्नातकोत्ति वशक्षक भूगोल

श्री मनोज कुमाि यादि

स्नातकोत्ति वशक्षक अियशास्त्र

श्री लावलन प्रसाद

स्नातकोत्ति वशक्षक भौवतक विज्ञान

श्रीमती अवदवत नेगी

स्नातकोत्ति वशक्षक अिंग्रेजी

श्रीमती पायल यदु ििंशी

स्नातकोत्ति वशक्षक गवणत

विद्यालय परििाि कुमािी चारू

स्नातकोत्ति वशक्षक िावणज्य

श्रीमती गीता वत्पाठी

प्रवशवक्षत स्नातक वशक्षक अिंग्रजी

श्री महेंद्र पाल वसिंह

प्रवशवक्षत स्नातक वशक्षक वहिंदी

श्री िाम दशय िाम

प्रवशवक्षत स्नातक वशक्षक सिंस्कृत

श्रीमती व िंदु कुमािी

प्रवशवक्षत स्नातक वशक्षक विज्ञान

श्रीमती नीिज

प्रवशवक्षत स्नातक वशक्षक अिंग्रेजी

विद्यालय परििाि स्व. गौिि कुमाि त्यागी

प्रवशवक्षत स्नातक वशक्षक गवणत

श्री अवमत गगय

प्रवशवक्षत स्नातक वशक्षक गवणत

श्री हिीश चन्द्र

प्रवशवक्षत स्नातक वशक्षक वहिंदी

श्री धमेन्द्र वसिंह

प्रवशवक्षत स्नातक वशक्षक वहिंदी

श्री मौली अग्रिाल

प्रवशवक्षत स्नातक वशक्षक अिंग्रेजी

श्री सिंत विजय यादि

प्रवशवक्षत स्नातक वशक्षक समावजक अध्यनन

विद्यालय परििाि श्री हिी िाम

प्रवशवक्षत स्नातक वशक्षक गवणत

श्रीमती शोभा यादि

प्रवशवक्षत स्नातक वशक्षक कला

श्री अवनल कुमाि

प्रवशवक्षत स्नातक वशक्षक शािीरिक वशक्षा

श्री सौिभ अिस्िी

प्रवशवक्षत स्नातक वशक्षक कायायनुभि

श्रीमती चिंद्रकािंता

प्रवशवक्षत स्नातक वशक्षक गवणत

श्रीमती वशप्रा वमश्रा

प्रवशवक्षत स्नातक वशक्षक विज्ञान

श्रीमती चिंचल पिाि

प्रवशवक्षत स्नातक वशक्षक विज्ञान

विद्यालय परििाि श्रीमती वनवश शमाय

प्रवशवक्षत स्नातक वशक्षक अिंग्रेजी

श्री जगदीश प्रसाद मीणा

प्रवशवक्षत स्नातक वशक्षक समावजक अध्यनन

श्रीमती सुमन आयाय

प्रािवमक वशक्षक

श्रीमती िे नू शमाय

प्रािवमक वशक्षक सिंगीत

श्रीमती ममता गुप्ता

प्रािवमक वशक्षक

श्रीमती ीना वसिंह

प्रािवमक वशक्षक

श्री विजय कुमाि चौहान

प्रािवमक वशक्षक

श्रीमती कल्पना व धुिी

प्रािवमक वशक्षक

विद्यालय परििाि श्रीमती विनीता

प्रािवमक वशक्षक

श्रीमती वसिंह आकािंक्षा

प्रािवमक वशक्षक

श्रीमती पूनम

प्रािवमक वशक्षक

श्री अवभषेक व ष्ट

प्रािवमक वशक्षक

कुमािी ममता िानी

प्रािवमक वशक्षक

श्रीमती अन्नु पूवनया

प्रािवमक वशक्षक

श्रीमती गीवतका गुप्ता

प्रािवमक वशक्षक

श्री मोवहत कुमाि वसिंह

पुस्तकालय अध्यक्ष

विद्यालय परििाि श्री अरुण कुमाि

सहायक अनुभाग अवधकािी

श्री अशोक कुमाि भावटया

कवनष्ठ सवचिालय सहायक

श्री श्रीपाल िाल्मीवक

स स्टाफ

श्री सुिेश वसिंह

स स्टाफ

स्व। िाम सेिक

स स्टाफ

श्री िाज कुमाि

स स्टाफ

श्री िीिपाल

स स्टाफ

Vidyalaya Report 2020-21 विद्याददाविविनयंविनयाद्याविपात्रिाम्।पात्रत्वाद्धनमाप्नोविधनाद्धमंििःसुखम्॥ Source: Hitopadesha 6 विद्याविनयदे तीहै , विनयसेपात्रता, पात्रतासेधन, धनसेधर्म, औरधर्मसेसुखप्राप्तहोताहै . Knowledge makes one humble, humility begets worthiness, worthiness creates wealth and enrichment, enrichment leads to right conduct, and right conduct brings contentment. Kendriya vidyalayas are run by the Kendriya Vidyalaya Sangathan, an autonomous body formed by the Ministry of Education, Government of India, New Delhi in 1963 as a result of the recommendations of the second Pay Commission. We primarily cater to the educational needs of the children of thecentral government employees including defense personnel and floating population, liable to frequent transfers throughout India. Needless to say, therefore, Kendriya Vidyalayas have common syllabus and are affiliated to the central board of secondary education, New Delhi. In this era of technology and E-generation, KVS has also advanced and upgraded itself into E-KVS by introducing Online Fee Collection, Transfer Procedure and Admission. Not only this, KVS has also launched ‘Shala Darpan’ through which, parents can get entire information at a unified platform about their children in respect of attendance status, performance, health challenges and holistic academic record from classes I to XII. Students also access to the facilities of e-tutorial and learning aids to enrich their knowledge. Kendriya Vidyalays are setting new peakseven amidst the outbreak of COVID19 pandemic across the nation. This threat couldn’t daunt or deter the unwavering spirit of the KVS family. Innovation is another name for solution, with this mantra KVS launched much needed online education programme which is today’s new normal. In this, we are using platforms like Google meet, you tube, blogs, Swayam portal, and Diksha app etc. KVS family has effortlessly imbibed this new way of education which has become today’s normal. Google classrooms are in vogue and online tests through Google forms are a new standard witnessed in the world of online education. K.V. No1, JRC has taken on this new role with utmost perfection. All our staff members are putting in great efforts in making this online education a huge success. All the classes right from class I to XII are being provided with online classes through Google meet Google classrooms and other digital modes. Apart from this CCA activities and celebration of special days is also done on the digital platform. Every Vidyalaya, including our Vidyalaya at JRC, Bareilly Cantt, is a miniature India in itself and tries to inculcate in its students, feelings of patriotism, brotherhood and national integration. K.V. JRC is one of the 20 Regimental school under pinned by KVS in 1963. These 57 years has witnessed many land marks and milestones of excellent achievements in academics, co-curricular activities, games and sports, which aimed at improving the quality education and all-round development of the students.

The academic year 2020-21 has been a very purposeful and fruitful one. The year under review, has been full of activities, both curricular& co-curricular & has come to stay as a milestone in the life span of the Vidyalaya. K.V-No1 JRC, Bareilly, New plans &strategies are always underway to ensure better facilities, better ambiance, better choices & above all, a better education to our children.

Artificial Intelligence Artificial Intelligence (AI) is being widely recognized to be the power that will fuel the future global digital economy. AI in the past few years has gained geo-strategic importance and a large number of countries are striving hard to stay ahead with their policy initiatives to get their country ready. India's own AI Strategy identifies AI as an opportunity and solution provider for inclusive economic growth and social development. As India identifies the importance of skills-based education (as opposed to knowledge intensive education), and the value of project related work in order to “effectively harness the potential of AI in a sustainable manner” and to make India's next generation 'AI ready'. As a beginning in this direction, KVS has introduced Artificial Intelligence as an optional subject at Class VIII from the Session 2019-2020 onwards. Co-curricular ActivitiesThe entire school is divided into four houses. The competitions are conducted house-wise, inter class and intra class to promote mass participation. This year also innumerable CCA activities were conducted in the Vidyalaya through online mode. Our students have skillfully painted, danced, and sung away the pandemic year with the same vigor and thrill through online mode. Various activities like solo song competition, group song competition, Yoga day, Independence Day, Republic day, Apart from this, important days like Independence Day, Republic Day, Ek Bharat Shrestha Bharat Programme, Environmental Day, KVS foundation day, Hindi Pakhwada, Vigilance awareness week etc. were also celebrated in the Vidyalaya through online mode where students showcased their talents.

NCC Wing We have an authorized strength of 50 cadets including both girls and boys. The cadets are always available for drills, parades and other NCC activities, however most of the activities were suspended keeping in mind the safety of cadets. The regular classes were conducted in online mode. 24 out of 25 eligible cadets appeared in the A certificate examination and performed their level best. However, one of the cadets could not make it for the exam as he was out of station.

Scout and GuidesThe pages of books are the pleasure of life. Games for the body and books for the mind, both are equally important. Scouting in terms means building confidence and self-esteem within, learning important life skills and leadership skills, team building, outdoor adventure, education, and much fun. With this viewaround 86 scouts and 46 Guides have joined the Scout and guide wing of the Vidyalaya. Primary students have also participated in cub and bulbul. Guidance and counselling Anonline counselling session cum meeting was arranged to establish positive relation with parents. Counselling cum Guiding sessions was organized to create awareness regarding COVID- 19. They were also suggested ways to face its challenges. Online sessions were arranged by eminent persons for students of classes IX to XII in guidance and counselling. Personality development and awareness towards society as a whole is the main motto in this regard. A committee has also been formed to provide extra support to the students in building their character and give counselling whenever required. Regular PTA meetings help us to apprise the parents about the progress of their ward. Life skill and Value educationLife skill and value education components were strengthened particularly through morning assembly programme, seminars, display Boards. This helped in integrating values with curriculum. As a tradition, our students plant a sapling each on their Birthdays and take care of it.This is how we are instilling scientific approach and imbibing traditional Indian values in our students at the same time.

Work Education Our education has got to be revolutionized. The brain must be educated through hand. If I were a poet I would write poetry on the possibilities of the fingers. Those who do not train their hands, who go through the ordinary rut of education, lack of MUSIC in their life. Keeping in mind the ideology of Mahatma Gandhi, the subject Work Education has been introduced in the school education. Being a part of Kendriya Vidyalaya Sangathan, K.V. no 1 JRC Bareilly strictly follows the guidelines of CBSE and NCF, therefore the subject Work Education has been introduced in our Vidyalaya. Work Education is viewed as purposive and meaningful manual work: organized as an integral part of the learning process and resulting in either goods or services useful to the community.

In our Vidyalaya, under the work education subject, students are given chance to design innovative gadgets, understand the basic working principle of different electrical and electronic equipment / tools. They also get exposure through different digital platform like YouTube channel etc. Through the subject Work Education, we are transforming children into future entrepreneurs, who not only contribute to our society but also develop empathy towards their workers who toiled hard in raising the industry. Through Work Education, our aim is to inculcate the socially desirable values such as selfreliance, helpfulness, teamwork, perseverance, tolerance, in the pupil. It helps the pupil to develop respect and regard for manual work and manual worker. During the previous session under the subject Work Education, our students have designed innovative gadgets such as automatic water level indicator, electronic door bell, Fire Alarm, Automatic Traffic Light system, extension board, simple electronic siren, smart home security system, laser wall, Touch free liquid soap dispenser, divyang stick etc. A you tube channel has also been created to promote their skills and to inspire other students to develop their skills. Outdoor gym setup We all know that doing exercise is good for physical & mental health that helps us to live a healthy and happy life. Doing exercise on a regular basis result in increased energy levels and happiness followed by a better mood and a healthy lifestyle which also reduces the risk of heart diseases, increases strength and flexibility, improves self-confidence and memory. If you want to feel better, happier, more energetic, and want to add more years to your life … just do exercise. There are many studies found that people who exercise daily with our open gym equipment are more energetic and live a longer life. It is a matter of immense pride and happiness that an outdoor gym set-up has been installed in our lush green Vidyalaya . Numerous pieces of research show that outdoor activities are great for the mind. Exercising outdoors among trees and nature can help to boost your mood and reduce anxiety and stress. There are various advantages behind practicing out in the open. Natural air builds the progression of oxygen improving circulatory strain and pulse, it likewise makes the stomach related framework more productive and helps to abstain from excessive food intake. Doing outdoor exercises makes one more dynamic and mindful in any event when you return inside.K. V. No1, JRC’s Gym set-up includes Chest press cum seated puller, Leg-press, Rower, Triceps Puller, Back extension, Cross trainer, Double standing twister, and Situp board double. All these are such types of equipment that one can build our outdoor fitness gym at cost-efficient prices.

KVS CONNECTED CLASSROOM Establishment of KVS connected classroom under Pradhan Mantri Jan Kalyan Yojna which includes 1. 40 Chromebooks for students , 2. Multimedia Edication content for classes

1 to 12

3. Science Videos and virtual experiments. 4. English textbook content

Parent Teacher AssociationFuture of child depends on his school life. If a small plant gets sun shine, air and good soil, it grows well; similarly, if a child receives good education, he must make progress. This is only possible if parents cooperate with teachers. Keeping this in view we have formed the parent teacher association. This PTA meets regularly to critically appreciate the efforts for the holistic development of the students. We, devoted and hardworking, staff members are committed to quality education and holistic development of our students. In the end I would like to extend my gratitude to our wonderful parents who have always been helpful, appreciative and motivating. I again welcome the genuine concern of the parents for the education of their children. Suresh Singh PRINCIPAL

BOARD RESULT AT A GLANCE -2021

SCHOOL RESULT AISSCE (CLASS XII)- 2021

OVERALL ALL STREAMS 100% SCIENCE STREAM

- 100 %

COMMERCE STREAM - 100% HUMANITIES

-

100%

CLASS X (AISSE) 2021 - 100%

CLASS XII TOPPERS IN SCIENCE STREAM-2021

PRIYANSHI 95.4%

SHASHANK CHANDRA 92.0%

SNEHA RANA 92.4%

MOHIT SINGH 91.2%

JYOTI KUMARI 90.0%

TOPPERS IN COMMERCE ST REAM CLASS XII -2021

GUROOP KAUR 89.6%

YOGITA KUMARI 89.2%

KOMAAL BAJPAI

RIMJHIM RATHORE

80.4%

78.8%

GAURAV BISHT 77.4%

TOPPERS IN HUMANITIES CLASS XII -2021

KHUSHI SINGH 94.2%

ANJALI YADAV 88.8%

KHUSHI YADAV 89.8%

SIMMI PATHAK 87.4%

MANISHA BISHT 85.4%

TOPPERS IN CLASS X -2021

ABHIMANYU 99.00%

VANSHIKA MALHOTRA 94.8%

SHUBHAM SINGH 94.8 %

MOHD.ARAIB KHAN 94.8%

JYOTI BHANDARI 94.8%

VIRENDRA SINGH 94.8%

ANSHIKA SAXENA 94.8%

SAMIYA MASOOD 94.8%

HIMANSHU 94.8%

SANSKAR TYAGI 94.6%

AKANSHA 94.6%

KASHISH 94.2%

PRATISHTHA 94.4%

PUSHPENDER SINGH 94.2%

PRIYAMVADA 94.2%

Students’ Experience of SPIC MACAY “Anubhav 2021” SPIC MACAY(Society for the Promotion of Indian Classical Music and Culture Amongst Youth) organized a program “Anubhav 2021” for the students to experience an ashram like atmosphere at home. The week-long virtual program was held from June 21 to 27 where students got the chance to interact with the film directorShyamBenegal, actors Ranjit Kapur, Shabana Azmi and the legendary musicians Amjad Ali Khan, Shivkumar Sharma, Jayashri Ulhas Kashalkar and Shahid Parvez. Students of KV No.1 JRC Bareilly thoroughly enjoyed “Anubhav 2021” program and unleashed their own talents during the workshops handled by senior Gurus on music, dance, art and craft during the week.They were delighted to experience the intangible aspects of Indian cultural heritage during the workshops organized on Indian Classical music, Classical dance, Folk music, Yoga, Meditation, Craft and Cinema Classics. Here are the few glimpses of the students’ participation and experience of SPIC MACAY Program “Anubhav 2021”.

The initiative ‘Ek Bharat Shrestha Bharat’ was announced by Hon’ble Prime Minister on 31st October, 2015 on the occasion of the 140th Birth anniversary of sardar Patel. Through this innovative measure, the knowledge of the culture, traditions and practices of different states and UTs will lead to an enhanced understanding and bonding between the states, thereby strengthening the unity and integrity of India. Our paired state has been Meghalaya and K.V. NO.1 JRC, Bareilly has been on a relentless quest and expedition of knowledge, information and facts about the state. Our students got engrossed with writing Articles, painting culture, delivering message from Meghalaya in the form of posters, learning Khasi, wearing their traditional attire and singing in local languages. This elevates familiarity and acquaintance between, tomorrow’s youths living in two completely difference culturally rich localities which are miles apart. Without a doubt I can say EBSB has given multifold learning opportunities in mind and heart.

A glimpse of an array of activities conducted

Solo Song in Khasi language… dressed impeccably…straight from the lands of Meghalaya Nikunj Pathak VI-A Aditya Kumar Mishra, XII A

ह िं दी हिभाग

आत्मविश्वास पदन मे सूरज है अगर

=============================== ====बाल कविता

तो रात को भी चाूँ द तारे हैं !

मैं हूँ नन्हा वीर का बेटा

पर जीत तो वे लोग भी सकते हैं जो कभी हारे हैं

सरहद पर लडने जाऊंगा

कभी धूप कभी बाररश ये तो कुदरत के नजारे हैं

शहीद पपता का बदला लेकर

पर प्यासे तो वे लोग भी हैं जो समुद्र के पकनारे हैं !

दु श्मन को बतलाऊंगा।

कुछ न कर सके तो कहते हैं

तूने क्या समझा है हमको

हम तो पकस्मत के सहारे हैं

और तेरी औकात है क्या?

पर जान न सके तुम खुदको

भारत का ही फेंका टु कडा

की पकतने रूप तुम्हारे हैं !

है तू भूल गया अब क्या?

पहम्मत और हौसला हो अगर

मार पदया धोखे से पजनको

तो रास्ते कई सारे हैं

उनकी कसम पनभाऊंगा।

पर जीत तो वे लोग भी सकते हैं

मैं हूँ नन्हा वीर.......

जो कभी हारे हैं ! जो लोग वक्त के साथ ढल नही ं सकते

घर में तेरे ही घुसकर

वे लोग अपनी पकस्मत बदल नही ं सकते

तुझको मजा चखाना है

पगर जाते हैं राह पर पत्थरों की तरह

पाक-पाक अब बहुत हो गया

कौन कहता है वे लोग पफर चल नही ं सकते !!

तुझको खाक़ बनाना है

-पवपध राही

भारत माूँ के चरणों में अब

5ब

तेरी बपल चढाऊंगा। मैं हूँ नन्हा वीर का बेटा

सरहद पर लडने जाऊंगा शहीद पपता का बदला लेकर दु श्मन को बतलाऊंगा। -वेदां गी 2ब

छु ट्टी के विन

योग हमारी रीपत पुरातन।

खुपशयां लेकर आ जाते हैं , छु ट्टी के पदन।

जग को ऋपियों का संबोधन।

क्या क्या खेल खखला जाते हैं छु ट्टी के पदन।

सपदयों से यह प्रथा सनातन।

मम्मी डां ट लगाती रहती,

तन, मन प्राणों का अनुशासन।

पापा अक्सर आं ख पदखाते।

प्रपतरोधक क्षमता का मापन।

पकतनी गमी! लू चलती है ।

साूँ सों के बल का सत्यापन।

बाहर जाकर खेलना पाते

योग बनाता है दृढतर तन।

बोर हुए झुनझुना जाते हैं , छु ट्टी के पदन।

योग करें तो हपिकत हो मन।

क्या क्या खेल खेला जाते हैं , छु ट्टी के पदन।

सकल रोग से मुक्त बनें जन।

पढना - पलखना, पलखना - पढना,

तन महके ज्ों भीगा चंदन।

होमवकक की आफत भारी।

भोजन का समुपचत आस्वादन।

लो स्कूल घुस आया घर में ,

दोिों का हो सहज पवरे चन।

भोले बच्ों की लाचारी।

हो अपतररक्त वसा का भंजन।

दासी - दास बना जाते हैं , छु ट्टी के पदन।

आकिकक हो जाते लोचन।

मेहमानों के बच्े आते ,

हर नाडी का होता शोधन।

लेकर अपने सपन - सलोने।

जाग्रत होता है अवचेतन।

बचा न पाते खेल - खजाने।

भाल चमकता जैसे दपकन।

फटी पकताबें , खत्म खखलौने।

नवपनपमकत सा होता यौवन।

गजब मुसीबत ले आते हैं , छु ट्टी के पदन।

खुल जाएूँ प्राणों के बंधन।

क्या क्या खेल खखला जाते हैं , पी के पदन।

अंतस भी हो जाए पावन।

बदली बरसी, मौसम बदला,

संचाररत हों शुद्ध रसायन।

बहते अब समीर के झोंके।

कोमल भावों का अनुशीलन।

गली - गली में खेल गूंजते ,

सकल ऊजाक का संवद्धक न।

मेरे मौज - मस्ती के मौके।

कर्त्कव्ों का शुभ संपादन।

आजादी पदलवा जाते हैं , छु ट्टी के पदन।

दु ष्प्रवृपत का सहज पवसजकन।

क्या - क्या खेल खेला जाते हैं , छु ट्टी के पदन।

जीवन में पनत शुभ पररवतकन।

कुमकुम

योग पदवस का है आयोजन।

6अ

चलो उठो कुछ कर लो आसन।

अंतरराष्ट्रीय योग-वििस

-आराध्या पसंह

2अ कोरोना बाबा जल्दी जाओ 1. ना खेल - कूद, ना हल्ला-गुल्ला ना ही कोई शोर, घर मे बैठे-बैठे हो गए हम सब बच्े बोर। 2. कोरोना बाबा जल्दी जाओ,हम सब को अब यूूँ ना सताओ, अपनी नानी के घर जाओ वहाूँ हलवा पूडी खाओ। 3. घर मे खेल,घर मे ही पढाई बाहर ना हमको जाना भाई,

पबल्ली को ले जाते हुवे उसने अपना दाव खेला - जनाब। अब जब पबल्ली मैंने खरीद ही ली हैं तो आप इस दू ध पपलाने के कटोरे का क्या करें गे ? ये भी मैं 100 - 50 में खरीद लेता हूँ ...

दे हाती आदमी - नही ं साहब वो तो मैं नही ं बेचूंगा। आदमी तो चकरा गया और पूछा - ऐसा क्यू ?? क्या खास है इस कटोरे में ??

बाहर बैठा है कोरोना पजससे हमको पजतनी है लडाई। 4. सभी सावधापनयों का करके पालन हम एक पदन जीत जाएगें, हम सब भारतवासी पमलकर कोरोना को हराऐंगे ।

दे हाती आदमी - वो तो मुझे नही ं मालूम, ये मेरे पलए बहुत लकी हैं पपछले दो हफ्ते से मैंने जब से इस कटोरे में पबल्ली को दू ध पपलाना शुरू पकया हैं - मैंने पैसठ (65) पबखल्लयाूँ बेच दी हैं ।

5. उस पदन स्कूल खुलेगा,हम सब मौज मनाएगें , इन सभी बोररयतों से हम सब उबर जाऐंगे।

सानवी 4अ

-हपिकता चन्द्र

विव़िया

4अ पचपडया करती चूूँ -चूूँ-चूूँ एक आदमी एक गाूँ व की गपलयों में घूम रहा था , उसने दे खा की एक घर के बाहर एक पबल्ली कटोरे में दू ध पी रही हैं . वो कटोरा बहुत ही एं पटक था , उसकी कीमत बाजार में बहुत ज्ादा होगी। उसने सोचा - दे हाती इस कटोरे की कद्र नही ं जानते , इसपलए पबल्ली को दू ध पपला रहे हैं । उसने पास ही बैठे उस पबल्ली के मापलक से कहा जनाब।मुझे आपकी पबल्ली अच्छी लगी , मैं इसे 500 रुपयों में खरीद लूूँगा। वैसे भी इस साधारण पबल्ली की क्या कीमत, बस मेरे घर में चूहे बहुत है तो ये उन्हें भगा दे गी ।

पकतना मधुर वो गीत सुनाती। जब हम आते उसके पास वह फुरक फुरक करके उड जाती। जब हम दे खें खखडकी से तब वह वापस पफर आ जाती। जब हम होते थोडा उदास पचपडया आती हमारे पास। हमें सुनाती मधुर अपना गीत

उस दे हाती ने सर ना में पहलाया और बोला - साहब ! 500 बहुत कम हैं , हाूँ मुझे आप 5000 अभी नकद दे तो पबल्ली आपकी ।

पजससे पमलती हमें खुशी अपार।

आदमी ने कुछ मोलभाव करना चाह पर वो नही ं माना ।एं पटक कटोरे की लालच में उस आदमी ने उसे 5000 नगद भी दे डाले । सोचा कटोरे की कीमत तो कम से कम उससे पां च गुने ज्ादा होगी ।

नवीत 2ब

विता के वलए

2ब जल ही जीिन है

वो पपता ही होता है ,

____बस्ती वालो जल को बचाओ

जो अपने बच्ों को अच्छे

जल को बचाओ, कल को बचाओ

पवद्यालय में पढाने के पलए

जल के बल पर धन न बनाओ

दौड भाग करता है -----

धन को बहाओ , जल को बचाओ

उधार लाकर डोनेशन भरता है ,

बस्तीवालों

जरूरत पङी तो पकसी के भी

जल से छल कर मत कर समतल

हाथ पैर भी पङता है ,

जल की कल -कल सु न न सको कल

वो पपता होता है ।।

पनमकल, पवमल ,शु द्ध जल शीतल

हर कालेज में साथ साथ

नभ से अमृत रस छलके छल -छल

घूमता है , बच्े के रहने के पलए

पर होती नही ं धरा की दल तरल

हॉस्टल ढू ूँ ढता है ------

प्यासी भूपम का जी न जलाओ

स्वतः फटे कपडे पहनता है ,

इसे ढू ं ढ के लाओ, हर बूूँद को बचाओ

और बच्े के पलए जीन्स - टीशटक

बस्तीवालों ..........................!

लाता है ,

थल पे मल कर जल में पवसजक न

वो पपता होता है ।।

पनगुकण भ्रष्ट रसायन जल को अपकण

खुद खटारा फोन बरतता है पर

बे रं ग जल पवि से रं गती हर क्षण

बच्े के पलए स्माटक फोन लाता है , बच्े की एक आवाज सुनने के पलए, उसके फोन में पैसे भरता है , वो पपता होता है ।।

जल पथ रोध कर पवकास का दपकण

बच्े के प्रेम पववाह के पनणकय पर

इसको छु पाओ ,इसको बचाओ

वो नाराज होता है और गुस्से में

बस्तीवालों .....................!

कहता है सब दे ख पलया है ना, "आपको कुछ समझता भी है ?"

जल को बचाओ ,कल को

यह सुनकर बहुत रोता है , वो पपता होता है ।। बेटी की पवदाई पर पदल की गहराई से रोता है ,

बाूँ ध -बाूँ ध कर इस कदर न मारो

अक्ष कुमार पाल 3ब

मेरी बेटी का ख्याल रखना हाथ जोडकर कहता है , वो पपता होता है ।।

राभ्या पसंह

मेरे िािा

मेरे पापा का मुझसे

पदल का ररश्ता है ,

आरुपि गंगवार

कभी तकलीफ मुझको हो

3ब

तो ददक उनको होता है ।

मेरी टीिर

जब मैं रोती हूँ तो, पापा मुझे हूँ साते हैं । ड्यूटी से आकर मुझे बहुत दु लार करते हैं ।

अपदपत चौधरी 2स

िानी

प्यास लगे तो पपये पानी नहाने-धोने में भी पानी। पौधों में हम दें पानी कुर्त्ा-पबल्ली मां गे पानी।

मेरी टीचर सब से प्यारी, लगती सबको न्यारी-न्यारी। एक पढाती हम को पहं दी लगाती है वो छोटी पबन्दी। पहनती है वो साडी व सूट, कभी न बोलती हमसे झूठ। दू सरी पढाती हमको पवज्ञान, है वो बडी बुखद्धमान। बोलती है वो इतना मधुर, परन्तु है थोडी सी चतुर। तीसरी पढाती हमे अंग्रेजी, पबल्कुल लगती करीना जैसी। उनके बाल है इतने लंबे, कभी न करें कक्षा में दं गे। चौथी पढाती हमे इपतहास, है वो सब टीचरों में खास। पढाती है वो इतना अच्छा, उनका पदल है पबल्कुल सच्ा। मेरी टीचर सबसे प्यारी लगती सबको न्यारी-न्यारी।

पबन पानी हम जी न पाएं प़िर पानी क्यूूँ बेकार में बहाएं । नल में खु ला न छोडो पानी बहाओ मत पानी।

पमशा जैन 3ब

पानी को तुम बहुत बचाओ काम करे तभी उपयोग करें । जीिन िथ कैसे सुलझाऊं.. जल है तो कल है । जल को बचाएं गे , तभी आगे बढ पायेंगे।

जीवन पथ कैसे सुलझाऊं.. उलझे पथ कैसे सुलझाऊं..

सपनें हैं सब आं ख पबछाए

चल छोडें नपदया के धारे

दीपक मैं पकस ओर घुमाऊं..

रुककर एक पतवार बना दें

राह कौन सी मैं अपनाऊं.. जो सही है हमने उथल पुथल उलझे पथ कैसे सुलझाऊं..

उनसे कल का दौर बचा दें

उलझे पथ कैसे सुलझाऊं.. जो छूट गया उसको भूलूं उम्ों का अंबार रखा था

जो है उसको मीत बनाऊं..

कर लूंगा तय..ये सोच खडा था जीवन पथ ऐसे सु लझाऊं.. रह गया सोचते पफर जब दे खा

उलझे पथ ऐसे सुलझाऊं..

जीवन बस कुछ शेि बचा था.. दे दू ं जग को..जो दे सकता हं अब है पश्चाताप मगर,

उनका पथ सरल बना जाऊं..

पकसी युक्त समय पवपरीत घुमाऊं.. जीवन पथ कैसे सुलझाऊं..

जीवन पथ ऐसे सु लझाऊं..

उलझे पथ कैसे सुलझाऊं..

उलझे पथ ऐसे सु लझाऊं.. मानसी

धरती ने चलकर सतत् राह पदन सपदयां साल बदल डाले दु पनया ने खुद को कई बार पकतने रं गों में रं ग डाला

मुझमें भी था वो कलाकार अब कैसे वो हुनर पदखा पाऊं

उलझे पथ कैसे सुलझाऊं.. जीवन पथ कैसे सुलझाऊं..

9 'द' ियाािरण िर कविता पेडों को तुम काट रहे हो प्रदू िण को तुम पाल रहे हो इस जीवन को है मानव तुम संकट में क्यों डाल रहे हो जो पेड तुम्हें जीवन दे ते तुम उन्हीं का जीवन लेते हो पेडों को तुम काट काट संकट को बुलावा दे ते हो यूं ही पेडों को काटोगे तो स्वच्छ पवन को तरसोगे धरती बंजर हो जाएगी तुम तुम अन्न नीर को तडपाओगे ग्लोबल वापमिंग के खतरे से तुम कैसे पफर बच पाओगे हर जगह प्रदू िण पाओगे बीमारी से मर जाओगे

अभी मौका है सुन मानव पेडों को काटना बंद करो सुख में जीवन जीना है तो वृक्षारोपण का संकल्प करो। -जैनी कश्यप 6ब जल का महत्व 1.जल के पबना पृथ्वी पर कोई भी मनुष्य और जीव जंतु जीपवत नही ं रह सकता है । 2.जल के पबना कोई पेड पौधो का पवकास नही ं हो सकता है । 3.पानी का प्रयोग पीने के पलए तो होता कपडे साफ करने , घर की सफाई के पलए, बारतन धोने के और खाना पकाने के पलए भी पकया जाता है । 4.जल से पबजली बनती है जो मनु ष्य के पलए बहुत उपयोग होती है । 5.कृपि के पलए पानी का उपयोग पकया जाता है , विाक के रूप में जल का बहुत महत्व है l 6.पानी का हमारे जीवन में बहुत महत्व है । हम सब को पमल कर पानी को बचाना होगा।

शीश झुकाकर आदर से तुम, सदा इन्हें प्रणाम करो खुशी अग्रवाल 7ब माता विता

धर मेरा एक बरगद है मेरे पापा पजसकी जड है , धनी छाूँ व है मेरी माूँ , यही है मेरा आसमान।

पापा का है प्यार अनोखा, जैसे शीतल हवा का झोंका, माूँ माूँ की ममता सबसे प्यारी, सबसे सुंदर सबसे न्यारी।

हाथ पकड कर चलना पसखलाते , पापा हमको खूब घुमाते , माूँ मलहम कर बनकर लग जाती,

-वंपशका यादव

जब भी हमको चोट सताती।

7ब विक्षक पशक्षक--पथ प्रदशकक माता दे ती है नवजीवन, पपता सुरक्षा करते हैं । लेपकन सच्ी मानवता, पशक्षक जीवन में भरते हैं । सत्य न्याय के पथ पर चलना, पशक्षक हमें पसखाते हैं । जीवन के संघिों से लडना, आगे बढना बताते हैं । ज्ञान दीप की ज्ोपत पदखाकर, मनु उल्ला पसत करते हैं ।

माूँ पापा पबन दु पनया सुनी, जैसे तपती आग की धुनी, माूँ ममता की धारा है , पीता जीने का सहारा हैं । शौयक उपाध्याय 7ब सुबह

पवद्या धन दे कर हमको वे , जीवन सुख से भरते हैं पशक्षक ही मानव को सच्ी रहा पदखाते हैं । गुरु है ईश्वर से बढकर, यही कबीर पसखाते हैं जीवन में कुछ पाना है तो पशक्षक का सम्मान करो

गरम गरम लड् डू सा सूरज पलपटा बैठा लाली मे

सुबह सुबह रख आया कौन ऐसे आसमान की थाली में मूूँदी आं खे कपलयो ने

10 ब नेताजी और उनके िािे एक नेता जी मरने के बाद यमपुरी पहुं चे..

पचपडयो ने गाना गाया गुनगुन करे भवरे

वहां यमराज ने उनका भव् स्वागत पकया, और कहा :-

खखलते फूलों पर

इससे पहले पक मैं आपको स्वगक या नरक भेजूं पहले मैं चाहता हूँ पक आप दोनों जगहों का मुआयना कर लें पक आपके पलए कौन सी जगह ज्ादा अनुकूल होगी!

तभी आ गई फुदक फुदक कर एक पततली की टोली मधुमखियों मे मधु रस लेके भर डाली अपनी चोली

यमराज ने यमदू त को बुलाकर कहा पक नेता जी को एक पदन के पलए नरक और पफर एक पदन स्वगक घुमा कर वापपस मेरे पास ले आना…

उठो उठो हम लगे काम पर तब आगे बढ पायेंगे वे क्या पायेंगे जीवन पर जो सोता रह जाएं गे

शगुन गंगवार

यमदू त नेताजी को पहले नरक में ले गया.. नेता तो नरक पक चकाचौंध दे खकर है रान रह गया चारों तरफ हरी भरी घास और बीच में गोल्फ खेलने का मैदान, नेता ने दे खा उसके सभी दोस्त वहां घास के मैदानों में शां पत से बैठे है और कुछ गोल्फ खेलने का आनं द ले रहे हैं , उन्होंने जब उसे दे खा तो वे बहुत खुश हुए और सब उससे गले पमलने आ गए और बीते हुए पदनों पक बातें करने लगे पूरा पदन उन्होंने साथ में गोल्फ खेला, और रात में शराब और मछली का आनंद पलया!

7ब मााँ खुद भूखी रहती है , पर भूखा ना मुझे सुलाती है । पता नही ं तेरे पास कैसा जादू है , मेरे मन की हर बात पढ जाती है । खुद की कोई प़िक्र नही ं करती, और जान से ज़्यादा मुझे चाहती है। रात मे जब तक तेरी कहानी ना सुनूूँ, नींद मुझे न आती है ।

मुमताज

अगले पदन यमदू त नेता को स्वगक लेकर गया जैसे ही वे स्वगक के द्वार पर पहुं चे स्वगक का दरवाजा खुला, नेता ने दे खा रोशनी से भरा दरबार था स्वगक का! सभी लोगों के चेहरे पर असीम शां पत कोई भी एक दू सरे से बात नही ं कर रहे थे , मधुर संगीत बज रहा था, कुछ लोग बादलों के ऊपर तैर रहे थे नेता ने दे खा सभी लोग अपने अपने कायों में व्स्त थे, नेता उन सब को गौर से दे ख रहा था नेता ने बडी मुखिल से एक पदन काटा! सुबह जब यमदू त उसे लेकर यमराज के पास पहुं चा तो यमराज ने कहा हाूँ तो नेताजी अब आप अपने पलए स्थान चुपनए जहाूँ आप को भेजा जाये ! नेता ने कहा वैसे तो स्वगक में बडा आनंद है , शां पत है पफर भी वहां मेरे पलए समय काटना मुखिल है , इसपलए आप मुझे नरक भेपजए वहां मेरे सभी साथी भी है , मैं वहां आनंद से रहूँ गा यमराज ने उसे नरक भे ज पदया! यमदू त उसे लेकर जैसे ही नरक पहुं चा तो वहां का दृश्य दे खकर स्तब्ध रह गया वो एक पबलकुल बंजर भूपम पर उतरा, जहाूँ चारों ओर कूडे करकट का ढे र लगा था, उसने

दे खा उसके सभी दोस्त फटे हुए गंदे कपडों में कबाड इकट्ठा कर रहे थे , वो थोडा परे शान हुआ और यमदू त की तरफ दे खा और कहा मुझे समझ नही ं आ रहा है पक कल जब मैं यहाूँ आया था तो यहाूँ घास के हरे भरे मैदान थे , और मेरे सभी दोस्त गोल्फ खेल रहे थे , पफर हमने साथ बैठकर मछली खायी थी और खूब मखस्तयाूँ की थी! आज तो सब पबल्कुल उल्टा है …

हास-िररहास 1-पैसा काग़ज से बनता है , काग़ज लकडी से बनता है , लकडी पेड से पमलती है ! इसका मतलब है , पैसे पेड पर उगते हैं ।

यमदू त हल्की सी हं सी के साथ बोला :नेताजी *कल हम चुनाव प्रचार पर थे .. और आज आप हमारे पक्ष में मतदान कर चुके हो..!!

2-अध्यापक : अंग्रेजी में अनुवाद करो - राम आम खाता है । पचंटु : Ram is a general account

नैपतक:- अगर हम पकसी काम के पलए कहते हैं तो वह हमें समय पर पुरा कर दे ना चापहय... -पसखद्धपटे ल 7स

3-पचंटु : माूँ 10 रुपये दे ना बाहर एक गरीब को दे ना है ... माूँ बाहर आई , दे खा वहाूँ कोई नही ं था माूँ : कहाूँ है गरीब ? बच्ा : वह दे खो , धूप में बेचारा आइसक्रीम बेच रहा है

गााँि हमारा कहााँ गया गाूँ व हमारा कहाूँ गया दादा की हं सी

4-एक पकसी समाजसेवी को क्या कहते हैं ? दान पसंह ।

दादी की मुस्कराहट लेकर चला गया........ दादा जाया करते थे पजस बगीचे में

5-मछपलयाूँ पक्रसमस के पलए क्या गाती हैं ? झींगा बेल्स

वह अब सडक बन गई है पजसमें आम ़िरा करते थे वहाूँ अब गापडयाूँ चलने लगी हैं .........

6-एक potato ने ़िोन कैसे उठाया ? ' Aaloo ? '

गाूँ व जैसी शां ती कहाूँ शहरों में आवाजे गुूँजती हैं पचपडयों की चहचाहट सुनकर उठते थे अलामक लगाना पडता है ..........

7-अध्यापक : A B C सुनाओ ... पचंटू : A B C अध्यापक : और सुनाओ ... पचंटू : और सब बपढया , आप सुनाओ

प्रकृती रुष्ट हो गई इस बदले - बदले संसार से गाूँ व हमारा कहाूँ गया.........।

-शीतल गुप्ता 8स

8-़िक़ीर : आपके पडोसी ने पेट भरकर खाना खखलाया है , आप भी कुछ खखलाओ ! पचंटु : यह लो हाजमोला

9-टीचर : मैं जो पूछू उसका जवाब ़िटा़िट दे ना , सूँजू : जी सर , टीचर : भारत की राजधानी बताओ ? सूँजू : ़िटा़िट

10-खखडकी से दे खा तो रास्ते पर कोई नही ं था , खखडकी से दे खा तो रास्ते पर कोई नही ं था ! वाह - वाह , पफर रास्ते पर जाके दे खा तो खखडकी में कोई नही ं था .

11-अकबर - सेनापपत यह बताओ पक हम अनारकली को क्यों नही ं ढू ूँ ढ पा रहे हैं ? सेनापपत - महाराज , क्योंपक हम मुग़ल हैं , गूगल नहीं

शुभ राठी. 8स

धमायुद्ध का आह्वान 7 माचक, 1930 की बात है । नमक सत्याग्रह के माध्यम से राष्टरीय जागरण का आह्वान पकया जा रहा था। सरदार वल्लभभाई पटे ल गुजरात के एक नगर में पहुूँ चे। उन्होंने अपने कुछ पररपचतों से संपकक पकया ।

उन लोगों ने उनसे कहा, ‘हम लोग धमक -कमक और अपहं सा में पवश्वास रखते हैं । यपद इस आं दोलन में मार-धाड और पहं सा शुरू हो गई, तो व्थक में हमारा व्ापार ठप्प पड जाएगा।’

सरदार पटे ल ने उनसे कहा, ‘मैं कुछ समय बाद होने वाली सभा में आपकी शंका का समाधान करू ूँ गा।’ सभा में पटे ल ने कहा, ‘गुजरात में भगवान् श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है ।

उन्होंने हमेशा अन्याय और शोिण को अधमक मानकर उसके पवरुद्ध सतत संघिक करने की प्रेरणा दी थी। उन्होंने कहा था पक अन्याय व अत्याचार सहना भी घोर अधमक है ।

अंग्रेज हमारे साथ अन्याय कर रहे हैं । हमारी मातृभूपम को गुलाम बनाए हुए हैं । ऐसी खस्थपत में भगवान् श्रीकृष्ण के प्रत्येक भक्त का दापयत्व है पक वह पवदे शी सर्त्ा को उखाड फेंकने में सपक्रय हो ।’ - अंपशका शमाक 7द

कोरोना त्रासिी

इस कोरोना काल ने हमे कई तरह के सवालों और पवचारों से रूबरू करवाया या ये कहे ये मानव जापत की आं खे खोलने को ही आया था। इस कपठन समय में हमने इं सानों के कई रूप दे खे कुछ में मानवता की हद दे खने को पमली कही ं ये भी दे खने को पमला की अपनी स्वाथक पसखद्ध के पलए लोग पकस हद तक इं सापनयत भूल सकते है । अमीर हो या गरीब सब को एक जगह ला कर खडा कर पदया।

इं सानों ने सबक सीखा पक पैसा पजंदगी से ज्ादा अनमोल नही है एक छोटे से वायरस ने ऐसा पवकराल रूप पदखाया की न पसफक भारत में अपपतु सम्पूणक मानव समाज को कैद कर के रख पदया पजस भागदौड भरी पजंदगी में लोगो को बैठने की चैन से सां स ले ने की फुरसत नही ं थी वहां लोगों को महीनो घर में कैद होने को मजबूर होना पडा। यही वो वक्त था जब लोगो को समझ आया पक भागदौड में उन्होंने पजंदगी को पकतना पीछे छोड पदया था। लोगो ने समझा की पररवार और ररश्ते पैसों से कही ं ज्ादा अहम है ।

माना पक कई लोगो ने इस महामारी के दौर में अपनो को खोया है पर एक बहुत बडी संख्या में ररश्तों ने नया जन्म भी पाया है । पजस तरह लोगो ने इस कपठन समय में परस्पर सहयोग पदखाया है ये सापबत करता है की लोगो में आज भी इं सापनयत पजंदा है तभी तो इतना कपठन दौर हम पार कर पा रहे है । लाखों की नौकररयां चली गईं, गरीब वगक सडको पर आ गया पर ऐसे समय में कुछ लोग फररश्तों की तरह उनके जीवन में आए। ऐसा ही बहुत बडा नाम हम जानते है सोनू सूद के रूप में , ऐसे कपठन समय में पजस तरह उन्होंने मानवता की पमसाल पेश की है उससे हर भारतीय न पसफक उनका प्रशंसक है बखल्क एक बहुत बडा वगक उनका ऋणी है । चाहे वो मजदू रों को सलामत रूप से घर पहुं चाना हो, गरीबों को अनाज उपलब्ध करवाना हो नौकरी पदलवाना हो , ऑक्सीजन और बेड की जरूरतों को पूरा करने का काम हो। वो बंदा हर जगह पीछे नही हटा और हर संभव प्रयास पकया पजससे लोगों तक मदद पहुं च सके। ठीक उन्हीं की तरह हर शहर मे लोगों ने तथा कई समापजक संगठनों ने आगे आकर न पसफक लोगो का हौसला बढाया बखल्क जान की परवाह पकए पबना लोगो की मदद को आगे आए।यह दशाक ता है पक लोगो में आज भी इं सापनयत पजंदा है । वही दू सरी और ऐसे लोग भी हैं पजन्होंने मानवता को शमकशार करने में कोई कसर नही छोडी मौके का फायदा उठाया ।अनाज से लेकर दै पनक जरूरत की चीजे हो या दवा से लेकर ऑखक्सजन लोगो ने कालाबाजारी करने में कोई कसर नही छोडी।मैं समझ भी नही ं पाती पकस तरह के लोग है ! ये इनमे इं सापनयत नाम मात्र भी नही ,जहां एक ओर मौत तां डव कर रही है इस वही ं दू सरी तरफ मुनाफाखोरी और कालाबाजारी उन्हें सोने कैसे दे ती है ।मौत के आं कडे डराने वाले है । रोज हजारों की मौत की खबर मन पवचपलत कर दे ती है और ये पकस तरह के लोग है पजन्होंने मौत को भी व्ापार बना पदया। ये माहौल दे ख कर भी जो नही ं सीख पाया। इसीपलए कहा गया है प्रकृपत से छे डछाड न करो कल जब पानी के पैसे चुका रहे थे सब ठीक था आज सां से भी खरीदनी पड रही है ये कैसा समय आ गया है ! अब भी लोग नही ं समझे तो आने वाले समय में इसकी बडी कीमत चुकानी पडे गी।

अनन्या

जान के पीछे पडे हो । सारे जानवरों को क्या एक ही पदन

9अ

मे मार दोगे ? जा जा ,अपना रास्ता दे ख तुझे क्या, जो मेरा

हाथी की वमत्रता

पदल करे गा - करू ं गा हाथी को समझ आ गया पक लातों के भूत बातों से नही ं मानते उसने शे र को जोर से एक लात मारी और शेर की होश पठकाने आ गए और वह डर कर

बहुत पुरानी बात है । एक जंगल में एक हाथी पकसी पमत्र

भाग गया । हाथी ने सबको जब यह खुशखबरी सुनाई तो

की तलाश में इधर-उधर घूम रहा था । उसे पेड पर एक

सबकी खुशी का पठकाना ना रहा । सभी ने हाथी को

बंदर पदखाई पदया । हाथी बोला बंदर भाई क्या तुम मेरे

धन्यवाद पदया और कहा हमारा पमत्र बनने के पलए सचमुच

पमत्र बनोगे ? बंदर बोला आप तो बहुत बडे हैं आप मेरी

तुम्हारा साइज पबल्कुल ठीक है ।

तरह एक पेड पर झूल भी नही ं सकते तो पफर आपकी पशक्षा

दोस्ती कैसी ? अगले पदन उसकी मुलाकात एक खरगोशसे हुई ।क्यूं खरगोश जी क्या तुम मेरे पमत्र बनना पसंद करोगे

पमत्र वह जो मुसीबत में काम आये ।

? आप तो बहुत बडे हैं । आप मेरे बाडे मे घुस भी नही ं

-आपशफ रजा शाह

सकेंगे ।मेरी आपकी दोस्ती मुमपकन नही ं । हाथी मेंढक के

6द

पास पहुं चा और बोला- मेरा कोई पमत्र नही ं है मेंढक ! तुम अगर मुझे अपना दोस्त बना लो तो तुम्हारी बडी कृपा होगी । अरे वाह मान न मान मैं तेरा मेहमान तुम इतने बडे और मैं इतना छोटा कुछ तो सोचो यह बेमेल की दोस्ती नही ं हो

हक नही ं ?? क्या पसफक गुलामी के पलए हं मैं.. क्या मुझे जीने का हक नही.ं ??

सकती पफर तुम मेरी तरह फुदक भी तो नही ं सकते । जाओ भाई कही ं और अपनी दाल गलाओ । अचानक हाथी को एक लोमडी पदखाई दी । उसने उसे रोका और पूछा

सारी बंपदशे मेरे पलए ही है ... क्या मुझे चलने का भी हक नही?ं

लोमडी सुनो, क्या तुम मुझे अपना पमत्र बनाना पसंद करोगी? दे खो - न मत करना मैं बडी उम्मीद से तुम्हारे पास आया हं । बोलो बनोगी ना मेरी पमत्र। न बाबा न , अपना साइज तो दे खो गलती से मैं तुम्हारे पां व के नीचे आ

इस दु पनया में रहती हं मैं... क्या मुझे दु पनया दे खने का भी हक नही ?ं ?

गई तो मेरी तो चटनी बन जाएगी । न बाबा न कोई और घर दे खो । कमाल है कोई मुझे अपना पमत्र ही नही ं बनाना चाहता । अगले पदन हाथी ने दे खा पक जंगल के सभी

क्या पसफक काम करने के पलए मैं क्या पकसी पदन आराम करने का मुझे हक नही ?ं ?

जानवर बहुत तेजी से भाग रहे थे । उसने लोमडी से पूछा क्या हुआ - क्यों ऐसे भाग रहे हो ? हाथी दादा- पीछे शेर है और वह हम सब को मार कर खा जाना चाहता है तभी सभी जानवर अपनी - अपनी जान बचा कर कही ं छु प

क्या पसफक उडते पररं दे दे खो मैं... क्या मुझे उडने का हक नही.ं ??

जाना चाहते हैं । शेर तो जानवरों के पीछे हाथ धो कर पडा था। हाथी ने शेर से कहा- श्रीमान क्यू व्थक में इन सबकी

इस तरह कैद पकया है मुझे..

कोई मुजररम तो नही ं हं !!

जो गुना मैंने पकया ही नही.ं .. पफर क्यों मैं उसकी सजा भुगत रही हं ??

आज भी मुझ में फकक कर रहे हो. आपकी अपनी हं कोई गैर तो नही ं हं !!!!

अपदपत पसंह 10 स

अनमोल ििनपनकुंज पाठक 1- सफलता हमारा पररचय

7ब

दु पनया को करवाती है और

विव़िया

असफलता हमे दु पनया का पररचय करवाती है | "पचपडया रानी पचपडया रानी । 2-आप यह नही कह सकते पक आपके पास समय नही है , क्योंपक आपको भी पदन मे उतना ही समय (24 घंटे) पमलता है पजतना समय महान एवं सफल लोगों को पमलता है |

तुम हो पेडों की रानी ।। सुबह सुबह उठ जाती हो । ना जाने क्या गाती हो ।। क्या तुम भी पढने को जाती हो ।

3- दू र से हमें के सभी रास्ते बंद नजर आते है क्योंपक क्योंपक सफलता के रास्ते हमारे पलए तभी खुलते हैं , जब हम उसके पबल्कुल करीब पहुूँ च जाते हैं |

या नौकरी करने को जाती हो ।। शाम से पहले आती हो । बच्ो का दाना लाती हो ।।

4- पवश्वास में वह शखक्त है , पजससे उजडी हुई दु पनयाूँ में प्रकाश लाया जा सकता है | पवश्वास पत्थर को भगवान बना सकता है और अपवश्वास भगवान के बनाए इं सानों को भी पत्थर पदल बना सकता है |

भर -भर चोंच खखलाती दाना । चूूँ -चूूँ चहक सुनाती गाना ।।

- तरुन पसंह 5- हम चाहे तो अपने आत्मपवश्वास और मेहनत के बल पर अपना भाग्य खुद पलख सकते है | और अगर हमको अपना भाग्य पलखना नही ं आता तो पररखस्थपतयाूँ हमारे भाग्य को पलख दें गी |

12 स

मेरा सिना एक आशा जगी थी मेरे मन में ,थी जब में मेरे बचपन में ।

6-इस दु पनयाूँ में असंभव कुछ भी नही ं | हम वो सब कर सकते हैं ,जो हम सोच सकते हैं और हम वह सब वह सोच सकते हैं जो आज तक हमने नही ं सोचा |

ठान पलया था कुछ करके पदखाना है अपने दे श का गौरव बढाना है ।

7- बीच रास्ते से लौटने का कोई फायदा नही ं क्योंपक लौटने पर आपको उतनी ही दू री तय करनी होगी पजतनी दू री तय करने पर आप लक्ष्य पर सकते हैं

मन में पवश्वास और मेहनत से कुछ करके पदखाना है ,

इस जमाने को कुछ नया पदखाना है , लडपकयाूँ पकसी से कम नही ं यही बताना है ।

अपनी आशा को मुझे आग बनाना है । इतना तो सीख ही पलया था इस जमाने से ,

8- प्रसन्नता यह कोई पहले से पनपमकत कोई चीज नही ं होती इसे अपने कमों से कमाना पडता है

आत्म पवश्वास है तो कोई मंपजल दू र नही ं है ,

मन में बस लगन होनी चापहए, कोई मंपजल मुखिल नही ं है ।

मछली जाने लगी, तो एक सांप ने पूछा, “कहां जा रही हो?”

सोचा था बहुत सीख पलया है अब कोई जरूरत नही ं है ,

मछली बोली, “अब थक गई हं । पानी में तैरने जा रही हं ।”

क्या पता था यह तो पहली सीढी है मंपजल अभी पास नही ं है ।।

सां प ने हं सते हुए कहा, “आज की थकान तो दू र हो जाएगी। मगर कल क्या होगा?”

कर रही हूँ वो इच्छा पूरी ,जो अभी मेरे अंतमकन में है ,

मछली ने चौंकते हुए पूछा, “मतलब?”

चल रही हूँ उसी डगर पर जो मेरे सपने तक है ।

सां प ने जवाब पदया, “मतलब यह है पक हर कोई तुम पर रोब जमाता है । मोर, बगुले, चुपहया, पगलहरी तक तुम से अपना काम करा लेते हैं । क्यों?”

साक्षी पसंह

मछली सोच में पड गई।

12 स

सुबह हुई। बगुले का जोडा मछली के पास आया और वही बात कहकर उड चला। मछली को सां प की बात याद थी। उसने मुंह बनाया, “हुं ह! मैं नदी में तैरने जा रही हं । शाम तक बाहर नही ं आऊंगी।” बस पफर क्या था। सां प को इसी पल का इं तजार था। बगुलों के वापस आने से पहले वह उनके अं डे खा चुका था।

बहुत िुरानी मछली बहुत पुरानी बात है । उन पदनों मछपलयां तैरने के साथ उड भी सकती थीं। मछली का मन करता, तो वह दू र आसमान में जा उडती। तैरने का मन करता, तो नदी के अंदर चली जाती। एक पदन बगुले का जोडा कही ं जा रहा था। बगुला मछली से बोला, “हमारे अंडों का ध्यान रखना। हम पकसी से पमलकर आते हैं ।” दोपहर हुई, तो मोर ने मछली से कहा, “मोरनी न जाने कहां चली गई? उसे ढू ं ढने जा रहा हं । हमारे अंडों का ध्यान रखना।” उन सबके लौटने तक मछली ने अंडों का ध्यान रखा। शाम हुई, तो चुपहया ने मछली से कहा, “मैं घूमने जा रही हं । मेरे बच्े अकेले हैं ।” मछली पहरा दे ने लगी। चुपहया रात को लौटी। मछली जाने को हुई, तो पगलहरी ने आवाज लगाई, “अमरूद पक गए होंगे, तो मुझे बताना।” मछली उडी और अमरूद के पेड के फल दे ख आई। पफर पगलहरी को बताया, “अमरूद पक चुके हैं ।”

दोपहर हुई, तो मोर ने मछली से कहा, “मोरनी न जाने पफर कहां चली गई। मैं उसे ढू ं ढने जा रहा हं । अं डों का ध्यान रखना।” मछली ने मोर की बात को अनसुना कर पदया। वह घने पेड के पीछे आराम करने लगी। सां प ने मोरनी के अंडों को भी चट कर डाला। शाम हुई, तो चुपहया ने मछली को बुलाया। रोज की तरह वह टहलने चली गई। मछली उडी और आसमान में गायब हो गई। अब सां प चुपहया के बच्ों को पनगल गया। रात हुई, तो पगलहरी ने मछली से कहा, “अमरूद पक गए हैं । मैं भी कुछ अमरूद खा आती हं । मेरे बच्ों का ध्यान रखना।” पगलहरी के जाते ही मछली ने नदी में गोता लगाया। वह तैरती हुई नदी के दू सरे तट पर जा पहुं ची। सां प ने पगलहरी के बच्ों को भी अपना पनवाला बना पलया। सुबह हुई, तो सभी ने मछली को घेर पलया। बगुला आगबबूला होकर पचल्लाया, “मेरे अंडे कहां हैं ?” चुपहया और पगलहरी ने अपने बच्ों के बारे में पूछा। मछली ने जवाब पदया, “मुझे क्या पता?” बगुले को गुस्सा आ गया। उसने मछली को दबोच पलया। मछली ने डरते -डरते सारा पकस्सा सुनाया।

पकस्सा सुनकर चुपहया बोली, “एक सां प की बातों में आकर तुमने हमारा भरोसा तोडा है । मैं तु म्हें उडने लायक नही ं छोडूंगी।” चुपहया ने मछली के पंख कुतर डाले। पगलहरी ने कहा, “आज से तुम उड नही ं पाओगी।” मछली नदी में जा पछपी। बगुला बोला, “कहां जाती हो। मैं तुम्हें पानी में भी नही ं छोडूंगा।” तभी से बगुला मछली की ताक में रहता है । वही ं मछली अब उड नही ं पाती है । -वैष्णवी 6 ब’ भ्रस्टािार ( वनबंध ) “तुम्हारी फाइलों में गााँि का मौसम गुलाबी है मगर ये आं क़िे झूठे हैं ये िािा वकताबी है” ऋपिमुपनयों, साधू - संतोंऔरबुद्ध – गां धीकेइसदे शमेंभ्रस्टाचारका तांडव आश्चयक में जरुर डालता है परन्तु आज यह पहं दुस्तान का क्रूर यथाथक है । आजाद पहं दुस्तान की तकदीर में भ्रस्टाचार का दीमक कुछ इस तरह समाया है ,पक आज जीवन समाज और सरकार का कोई ऐसा क्षेत्र नही ं बचा है जो सुरपक्षत बचा हो । संसद से सडक तक ,मंपदर से दफ्तर तक तथा आम आदमी से खासो – खास तक , पजसको जहाूँ पमलता है ,लूटने में लगा हुआ है । १ लाख ७६ हजार करोड रुपये का 2G घोटाला ,१ लाख ८६ हजार करोड रुपये का कोयला घोटाला ,२३०० करोड रुपये का राष्टरमंडल खे ल घोटाला । पवदे शी बैंकों में पडा १२० लाख करोड रुपये का काला दहन क्या सापबत करता है ? जन - प्रपतपनपध सरकारी ठे के के नाम पर ठगता है , नयायाधीश गलत न्याय के नाम पर लूटता है । पत्रकार खबर तथा झूठे प्रचार के नाम पर मालामाल होता है , पशक्षापवद पशक्षा बेचने पर उतारू है , डॉक्टर इन्सान बेचने और न्यायाधीश ईमान बेचने पर उतारू है यानी “ सवे भवन्तु भ्रष्ट: अखस्त ” भ्रष्टाचार के इस दौर में धनवान इतराता है ,बुद्धजीवी खामीश है , मीपडया पबका हुआ है तथा आम जनता त्रस्त है । आज ईमानदार वही है पजसे लुटने का मौका नही ं पमला वरना इस हमाम में सभी नंगे है । धन की कुसंस्कृपत का

ऐसा नाच भारत ने हजारो साल के इपतहास में न कभी नही ं दे खा । क्या यही गांधी ,अम्बेडकर और भगत पसंह के सपनों का भारत है ? भ्रष्टाचार एक पवश्व व्ापी तश्य है , यह अनंत समय से प्रत्येक समाज में पकसी न पकसी रूप में पवद्यमान रहा है , मध्यकाल में रोमन कैथोपलक चचक द्वारा अनुग्रह शुल्क लेने की प्रथा को मॉपटक न लूथर पकंग द्वारा भ्रष्टाचार की संज्ञा दी गई थी । भारत में कौपटल्य भी अपने अथकशास्त्र में ५० प्रकार के गबन और भ्रष्ट तरीकों का वणकन पकया है , भारत में पकतने ही घोटाले सापबत हो गए है , पर कोई सरकार नही ं पगरी भारत जैसी वीभत्स खस्थपत बहत कम दे शों में हैं – भारत में अवैध चीजों के पलए भी पैसा पदया जाता है , अतः भारत में भ्रष्टाचार एक नासूर बन चुका है इसपलए लाजमी है पक भ्रष्टाचार होता क्या है ?

भ्रष्टाचार का शाखिक अथक है भ्रष्ट + आचार = बुरा या पबगडा हुआ आचरण पजसकी शुरुआत लोभ से होती है और नाजायज धन अजक न के बावजूद भी इसका समापन नही ं होता है क्योंपक लाभ बढता ही जाता है । भ्रष्टाचार के कारणों में स्वाथक , आपथकक पविमता , असंतोि , भाई भतीजावाद तथा नैपतक मूल्यों का ह्रास शापमल है । भ्रष्टाचार ने हमारे समाज को कई प्रकार से प्रभापवत पकया है , सककररन आं कडे चाहे कुछ कहे पर भ्रष्टाचार ने दे श के आपथकक पवकास को अवरुद्ध पकया है , इसने समाज में पहं सा और अराजकता को जन्म पदया है , इससे नैपतकता का अस्तर पगर गया है और व्खक्तत्व , चररत्र नष्ट हुआ है , इसने जनता की नजरों में अफसरों की पवश्वसनीयता को घटाया है तथा सरकार को अखस्थर बनाया है , भ्रष्टाचार ने अकुशलता और अनुसाशनहीनता को बढाया है । पजस दे श की संसद में ही एक पतहाई सां सद भ्रष्ट हो वहां तो ‘ आदम गोंडवी ’ की ये पंखक्तयाूँ पबलकुल सही प्रतीत होती है पक –

“ आूँ ख पर पट्टी रहे और अक्ल पर ताला रहे अपने शाहे वक़्त का यूूँ मतकबा आला रहे तापलबे – शोहरत है कैसे भी पमले पमलती रहे आये पदन अखबार में प्रपतभूपत घोटाला

रहे एक जनसेवक को दु पनयां में ‘अदम’क्या चापहए चार - छः चमचे रहे , माइक रहे ,माला रहे ”

परन्तु वह न ही सवककापलक है न स्थायी बस हमें अपने इरादों को मजबूत करने की जरुरत है क्योंपक महाकपव दु ष्यंत ने कहा है –

“ हो गई है पीर पवकत – सी पपघलनी चापहए इस पहमालय से कोई गंगा पनकालनी चापहए पसफक हं गामा खडा करना मेरा मकसद नही ं

पफर भी यह यक्ष प्रश्न है पक भ्रष्टाचार से उबार कैसे संभव है ? दरसल इसके पलए भ्रष्टाचार की मूल जड पर प्रहार करना जरुरी है और वह है आपथकक पविमता , उपभोक्तावादी संस्कृपत तथा नैपतक ह्रास । ़िोर्ब्क की तजा सूपच के मुतापबक हमारे दे श में अरबपपतयों की संख्या पहली बार १०० से ऊपर पहुूँ च गई हैं ।लेपकन आज भी भारत की एक - चौथाई आबादी भर – पेट भोजन को तरसती है , दू सरी बात है पक दे श में संसाधन सीपमत है , जबपक उपभोग की प्रकृपत बढती जा रही है , इसके अलावा संपदग्ध अपधकाररयों को संवेदनशील पदों से दू र रख , उदारवादी नीपतयों को सावधानी से लागू पकया जाए तथा पनयमों को उलं घन पर त्वररत व उपचत दं ड का प्रावधान सुपनपश्चत पकया जाए तो भुत हद तक भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सकता है । कालां तर में इमानदारी मूखकता का पयाक य बन गई है जबपक भ्रष्टाचार से अपजकत धन – प्रपतस्ठा का सूचक हो गया है । आज एक सदाचारी भ्रष्ट व्वस्था की चक्की में पपसाता है अतः जरुरत है सच्े जीवन आदशक की स्थापना की ।बेशक भ्रष्टाचार का नासूर हमारे राष्टर को जजकर बना रहा है , लेपकन अभी भी ऐसे लोगो९न की कमी नही ं है पजन्होंने सत्य का दामन नही ं छोडा है , इपतहासकार चोम्सी के अनुसार – “ सर्त्ा जानती है पक सत्य क्या है और जानकर भी है उसके खखलाफ काम करती है जैसे महभारत में दु योधन ने कहा था पक मई धमक के बारे में जनता हु लेपकन उस ओर मेरी प्रवृपर्त् नही ं है , अधमक भी जनता हु पर उससे पनवृपर्त् नही ं है ’’ अतः भ्रस्टाचार की लडाई को पसफक सरकार के भरोसे नही ं छोडा जा सकता बखल्क यह प्रत्येक जन –गण का नैपतक दापयत्व है इसमें सवाकपधक पजम्मेदारी युवाओं की है इपतहास गवाह है पक जब – जब युवाओं ने कमर कसी है बुरे परापजत हुई है ज्ञान ही युवाओं को पशष्ट और भ्रवाद का अंतर समझाता है तथा भ्रष्टाचार से लडने की पहम्मत और ताकत दे ता है । अंततः दु ष्यंत कुमार की इन् पंखक्तयों के साथ यही कहना समीचीन है पक भले भ्रष्टाचार पीडा का पहाड बन गया है

मेरी कोपशश है पक ये सूरत बदलनी चापहए ’’ -विाक

8 ‘ब’

मेरा िे ि है महान

मेरा दे श है महान पजसमें जीते लाखों वीर जवान, दे श के नाम पजन्होंने कर पदया अपना जीवन बपलदान, ऐसा दे श है मेरा महान……………….. पजसकी ख्यापत फैली पूरे पवश्व में , ऐसा दे श है मेरा महान…………… पजसके शीश पर रखा पहमालय का ताज एवं चरणों में महासागर महान, ऐसा दे श है मेरा महान……………. पजसमें दे श के खापतर लाखों सैपनक होते कुबाक न, ऐसा दे श है मेरा महान………….. हमारे दे श की यही पहचान पजसमें वीरों का होता सम्मान, ऐसा दे श है मेरा महान…………...

आदशक कुमार चंद्रा 6ब सब कुछ वबकता है यहाूँ सब कुछ पबकता है , दोस्तों रहना जरा संभल के !

बेचने वाले हवा भी बेच दे ते हैं ,

कौए के मुूँह में पानी आ गया। उसको बहुत भूख लगी

गुब्बारों में डाल के।

थी।वह वडा तभी खाना चाहता था। जब वह नीचे उस बूढी औरत के पास गया तो उसने दे खा की बूढी औरत

सच पबकता है , झूठ पबकता है , पबकती है हर कहानी! तीन लोक में फैला है , पफर भी पबकता है बोतल में पानी!

ने एक कौए को पहले से बांध रखा है । बूढी औरत ने उस कौए को भी यही कहाूँ की अगर तुमने वडा चुराने की कोपशश की तो तुमको भी इसकी तरह बां ध दू ं गी।कौए को समझ आ गयी की जब तक बूढी औरत वहाूँ पर है तब तक वह वडा नहीं चुरा सकता। उसने एक तरक़ीब सोची वह उस घर के पीछे गया और बच्ों

कभी फूलों की तरह मत जीना,

की आवाज में बोला दादी कहाूँ हो।इसके बाद बूढी

पजस पदन खखलोगे …..

औरत बोली आती हूँ । जैसे ही बूढी औरत वहाूँ से गयी

टू ट कर पबखर जाओगे।

कौए ने आकर एक वडा चुरा पलया और अपने पेड पर चला गया। जब वह अपने मुूँह में वडा दबाएूँ अपने

जीने है तो पत्थर की तरह पजयो; पजस पदन तराशे गए उसपदन “खुदा” बन जाओगे।। -मनीिा कुमारी

घोंसले में पहुंचा तभी एक चालाक लोमडी में कौए को दे ख पलया।वडे को दे खकर लोमडी के मुूँह में पानी आ गया। उसने कौए की तारीफ करनी शुरू कर दी। वह बोला पकतना अच्छा काले रं ग का कौआ है । इसके पंख पकतने अच्छे है। इसकी आूँ खे पकतने अच्छी है।लालची

10 स

बह ।अपनी तारी़ि सुनकर कौआ बहुत खुश हुआ और

बूढी औरत और कौिा

सब कुछ भूल गया। इसके बाद लोमडी ने कहा ऐसे

बहुत समय पहले की बात है एक गांव में एक पीपल का पेड था। पजसमे बहुत सारे कौए रहते थे। एक पदन सुबह के समय सभी कौए रोज की तरह खाने की तलाश में पेड से चले गए। लेपकन एक कौआ सोया रहा।जब वह उठा तो उसने दे खा की सभी कौए जा चुके थे। इसके बाद उसने अकेले ही भोजन की तलाश करने के पलए जाने की सोची।वह पेड से उड कर पुरे गांव में खाने की

अच्छे कौए की आवाज भी जरूर अच्छी होगी। उसने कौए से कहा क्या तुम मुझको एक गाना सुनाओगे इसके बाद कौए ने जैसे ही अपना मुूँह खोला वडा पेड से नीचे पगर गया। चालाक लोमडी ने वडा उठाया और वहाूँ से चला गया।कौए को पता चल चूका था की लोमडी ने उसको बेवकूफ बनाया है । उसने सोचा बूढी औरत से वडा चुराने की अब दू सरी तरक़ीब लगानी पडे गी।

तलाश करने लगा। लेपकन उसको कहीं भी भोजन नजर नहीं आया। इसके बाद वह एक घर की छत पर बैठ गया। उसको वहाूँ बहुत ही अच्छी खुश्बू आ रही थी।उसने पजस पदशा से खुश्बू आ रही थी। उस ओर जाने लगा। उसने दे खा की एक बूढी औरत घर के आूँ गन में बैठ कर वडा बना रही थी। वडा को दे खकर

ख : इस कहानी से हमें यह सीख पमलती है की हमें झूठी तारी़ि करने वालो से बचना चापहए। संजना 9स

िनों से होने िाले लाभ अब आपकी तस्वीरों को हर दम सीने से लगाये रखता हं |

वन, पृथ्वी के फेफडे होने के नाते , हजारों विों से लाखो जानवरों, पौधों, पेडोऔर मनुष्य के पलए एक घर

आपकी मेरी यादों को मेरे पदल मे जगाये रखता हं |

औरआजीपवका का स्रोत रहा है । इनसे भोजन और आश्रय प्रदान पकया है और समय की शुरुआत से ही जीपवत चीजों को वही प्रदान करता है सबसे सामान्य प्रकार के जंगलों में से कुछ भूमध्यवतीनम सदाबहार वन है पजन्हें

आपके घर अभी भी जाता हूँ मैं, आज भी उसे नानी घर कहलाता हूँ मैं, बस कमी इतनी है , की उस घर आप ही नही...

विाक वन,उष्णकपटबंधीय पणकपाती वन, भूमध्यसागरीय वन,शंकुधारी वन,समशीतोष्ण वन आपद के रूप में जाना जाता है । प्रत्येक जंगल का मानव और अन्य जानवरों को

बस कमी इतनी की उस घर मे आप ही नही... वो घर तो घर है , बस उस घर मे आपकी रूह ही नही...

आजीपवका प्रदान करने में अपना योगदान है । लेपकन दु भाक ग्य सेवैश्वीकरण,औद्योपगकीकरण,जनसंख्या पवस्फोट,

नजरो से दू र हो, पदल से नही

कृपि पवस्तार और पवपभन्न अन्यमौसमों जैसी घटनाओं के कारण, ग्रह पर पडने वाले प्रभावको महसूस पकए पबना

हर कदम पर आपका आशीवाक द हो बस यही चाहता हूँ मैं |

जंगलों को काट पदया जा रहा है । जलवायु पररवतकन से जानवरों के पवलुप्त होने से लेकर पमट्टी के कटाव और मरुस्थलीकरण, तक वनों की कटाई का पृथ्वी और उसके पररखस्थपत की तंत्र पर लंबे समय तक चलने वाला और घातक प्रभाव पडे गा।पजतनी जल्दी हम अपने जीवन में वनों

संगम पाठक 10 'स' सुखी जीिन के 8 मंत्र

को बचाने के महत्व को महसूस करते हैं , उतना ही यह हमारे और हमारे आने वाली पीपढयों के पलए भी बेहतर है ।

पूजा करते हो तो –पवश्वास करना सीखो

-अनन्या पजंदल

बोलने से पहले – सुनना सीखो

10 ‘अ’

खचक करने से पहले – कमाना सीखो

नानी मााँ

पलखने से पहले – समझना सीखो हार मानने से पहले – पफर से कोपशश करना सीखो

हर पदन के बाद एक नई सुबहआती है , और हर सुबह...एक सुनहरी याद लाती है |

ररश्ते बनाने से पहले – पनभाना सीखो मरने से पहले – खुलकर जीना सीखो रोने से पहले – पकसी को हं साना सीखो

सुनाती थी जो कहानी नानी मेरी, अब कहानी बनकर रह गयी,

-पवशाल कुन्तल

पजसमे कुछ पल थे खुशी के,

9स

कही हुई बातें ही राह गयी |

बूझो तो जाने?

9स

1) तीन अक्षर का नाम है , आगे से पढो या पीछे से मतलब

मेरा भारत "मेरे वतन में रहने वाले, जन जन का सम्मान हो, हम भारतवासी ये चाहे , पक मेरा दे श महान हो, सुनना चाहो सुनो ध्यान से एक संदेश हमारा है। अच्छा बुरा है जैसा भी है , भारत दे श हमारा है ।

एक समान है । उर्त्र: जहाज

2) अंधेरे में बैठी है एक रानी, पसर पर है आग और तन में है पानी। उर्त्र: मोमबर्त्ी

3) मैं सबको दे ता हं ज्ञान, काला रं ग है मेरी शान। उर्त्र: स्याही

4) काले घोडे पर सफेद सवारी, एक उतरते ही दू सरे की बारी। उर्त्र: तवा और रोटी

5) बताओ जरा, गोल है पर गेंद नहींं ं , पूंछ है पर पशु नही।ं बच्े उसकी पूंछ को पकडकर खलते -हं सते और हैं खखलखखलाते। उर्त्र: गु ब्बारा

6) दो लडके और दोनों के रं ग एक जैसे। अगर एक पबछड जाए, तो दू सरा काम न आए। उर्त्र: जूते

7) उसके चार पां व है , लेपकन वह चल नही ं सकता। उर्त्र: मेज

8) मेरा नाम एक फूल और पमठाई दोनों है । बताओ मैं कौन हं ? उर्त्र: गुलाब जामु न

9) मेरी चोटी पर है हररयाली, तन है मगर सफेद। आता हं मैं खाने के काम, बताओ मेरा भेद। उर्त्र: मू ली

10) पैसे से भी ऊपर है , यह पजसे पमले वो पंपडत हो जाए, न पमले तो मूखक रह जाए। उर्त्र: ज्ञान

-पवशाल कुन्तल

पदल हमारे एक है , एक ही है ,हमारी जान, पहन्दु स्तान हमारा है , हम हैं इसकी शान, जान लुटा दें गे वतन पे, हो जायेगे कुबाक न इसपलए तो हम कहते हैं , "मेरा भारत महान " -गौरव कुमार 12 स िमक उठे गा वहंिुस्तान वृक्षारोपन करें , ये वृक्ष ईश्वर का वर है .. बोल नहीं सकते पकंतु इनके अंदर भी स्वर है ... तरसेंगे कल काम तुम्हारे , सुनने को पक्षी की हलचल एक दोि बताओ वृक्षों का, है एकदम पनदोि चंचल बेघर हुए थे पक्षी तो एक साथ में रोए होंगे सब चहक उठे गी पफर धरती, पमलकर वृक्ष लगाएं गे जब जैसे हम रहते धरती पर, वैसे ही वृक्षों का हक है आशा है इस कपवता से, तुमको भी पमला सबक है रोज करें गे वृक्षा दान, तभी तो होगा जग कल्याण वृक्षों की उन्नपत से, चमक उठे गा पहं दुस्तान -संदीप कुमार 10 अ

आिा की वकरण नया सवेरा , नई पकरण हे ईश्वर सबको ज्ञान दे दे ना जीवन में खुपशयां आएं गी पवश्वास यह मन में भर दे ना यह जीवन , संग्राम सही लडना होगा , उठना होगा यह दु ख के बादल घने सही हमें डरे पबना हं सना होगा हम पजंदा हैं , महसूस करें हर पल को हमें जीना होगा मन में आशा की पकरण पलए जीवन - पथ पर चल रहे हैं हम दु ख और पनराशा के कां टों में कदम कभी रुक जाएं गे फस जाएं गे , पहल जाएं गे , अंधेरों से पगर जाएं गे पकतना हो कपठन जीवन का सफर सत्कमक ही रहा बनाएं गे जब ढला है सूरज पनकलेगा पकतनी भी अंधेरी रात हो दु ख ही सूचक सुख का है , हे ईश्वर ज्ञान यह दे दे ना -पनपकता पाल 9ब िे ि के िीर वसिाही खून जमाती ठं ड में भी सीना ताने खडे हुए बदन जलाती गमी में भी सीमाओं पर अडे हुए बाूँ ध शहादत का सेहरा मृत्यु से ब्याह राचाते हैं दे श के वीर पसपाही दे खो! माूँ का क़जक चुकाते हैं। ब़िीली वायु हो चाहें तूफानों ने दी हो चुनौती े़ मे से चाहें दु श्मन के खे गोली की बौंछारें होतीं चाहे हो कैसी भी पवपदा पर ये ना घबराते हैं दे श के वीर पसपाही दे खो! माूँ का क़जक चुकाते हैं। माूँ , पत्नी, बच्ों से दू र राष्टर धमक में रमे हुए पदल में पकतना ददक ये पाले

पर सीमा पर डटे हुए अपनी जान गंवाकर भी दु श्मन को धूल चटाते हैं दे श के वीर पसपही दे खो! माूँ का क़जक चुकाते हैं। धरती माूँ के सच्े बेटे सर पर क़िन बाूँ ध कर बैठे नींद नहीं उनकी आूँ खों में तापक हम सब चैन से लेटें दे श की रक्षा के खापतर वे वीरगपत को पातें हैं दे श के वीर पसपाही दे खो! माूँ का क़जक चुकाते हैं। कुबाक नी वीरों की जीवन पकतनों को दे जाती है उनके रक्त से पसंपचत धरती धन्य-धन्य हो जाती है मौत भी क्या मारे गी उनको जो मरकर भी जी जाते हैं दे श के वीर पसपाही दे खो! माूँ का क़जक चुकाते हैं। पदशाग्र वमाक 7ब

वहन्दी भाषा विक्षण पहं दी भािा पशक्षण में मेरा दशकन यह है पक सभी पवद्याथी अपद्वतीय होते हैं और उनके पास एक उर्त्ेजक शैपक्षक वातावरण होना चापहए | जहां वे शारीररक, मानपसक, भावात्मक और सामापजक रुप से पवकपसत हो सके पजससे पवद्यापथकयों को अपनी पूरी क्षमता का पवकास हो सके| एक अच्छी तरीके से तैयार पकया गया दशकन( पहं दी) पशक्षण कथन पशक्षक के रूप में एक स्पष्ट और अपद्वतीय पचत्र उपखस्थत करता है | यह है उन पवद्यापथकयों पर प्रकाश डालता है जहां वे पशक्षा प्राप्त करते हैं , पशक्षक की नजर के सामने और स्पष्ट रूप से बीचो बीच में पवद्याथी रहते हैं पवद्यापथकयों की जरूरत सभी पाठों और स्कूल के कायों को करने की प्राथपमकता होती है | पहं दी भािा पशक्षण में छात्रों को अपने पवचारों को साझा करने और जोखखम लेने के पलए आमंपत्रत पकया जाता है | पवद्यापथकयों को पहं दी भािा में पशक्षण दशकन सीखने के पलए अनुकूल पां च तत्व आवश्यक है :_________1. पहंदी भािा दशकन पशक्षण में पशक्षक की भूपमका एक मागकदशकक के रुप में कायक करना है |

2. पहं दी भािा दशकन पशक्षण में पवद्यापथकयों के पास हाथों की गपत पवपधयों तक पहुंच होनी चापहए| 3. पहं दी भािा दशकन पशक्षण में पवद्यापथकयों को एक सुरपक्षत वातावरण में कौशल का अभ्यास करने का अवसर पमलना चापहए| 4. पहं दी भािा दशकन पशक्षण में छात्रों के पलए सक्षम एवं जागरूक होना चापहए पजससे पवकल्प और उनकी पजज्ञासा को सीखने को प्रेररत पकया जाए| 5. पहं दी भािा दशकन पशक्षण में प्रौद्योपगकी( जीपवकोपाजकन) पवद्यालय के पदनों में शापमल पकया जाना चापहए| कक्षाओं के अनुरूप पहं दी भािा दशकन कथन पशक्षण:_______ कक्षा:- 6 पहं दी भािा दशकन कथन पशक्षण में मेरे पवचार से सभी बच्े अपद्वतीय होते हैं और उन्हें कुछ पवशेि प्रपतभाएं होती हैं उनकी पवलक्षण प्रपतभाओं के आधार पर पशक्षक के नाते अपने छात्रों को खुद को अपभव्क्त करने में सहायता करना, अथाक त पवद्यापथकयों की रुपच के अनुसार पढाने में पूणक योगदान पकया जाएगा | बच्ों की पजज्ञासा उनके अनुरूप शांत करने का भरसक प्रयास पकया जाएगा, उनके द्वारा होने वाली अशुखद्धयों, लेख सुधार, वतकनी सुधार इत्यापद करवाने पर जोर पदया जाएगा| कक्षा:- 7 ___ पहं दी भािा दशकन कथन पशक्षण में हर कक्षा का अपना एक पवपशष्ट समुदाय होता है पशक्षक के रूप में मेरी भूपमका प्रत्येक बच्े को अपनी क्षमता और सीखने की शैली पवकपसत करने में सहायता करना होगी| पवद्यापथकयों को अपना लेखन कायक रोचक एवं रुपचकर बनाने के पलए पशक्षक उन्हें प्रेररत करें गे और सामान्य गलपतयों को सुधार करवाने का भरसक प्रयास करे गा या नहीं पवद्यापथकयों के संपूणक पवकास के पलए पूरा सहयोग करे गा| कक्षा:- 8 _____ पहं दी भािा दशकन कथन पशक्षण में पशक्षक होने के नाते मैं एक पाठ्यक्रम प्रस्तुत करू ं गा पजसमें प्रत्येक अलगअलग सीखने की शैली को शापमल पकया जाएगा साथ ही सामग्री को प्रासंपगक बनाया जाएगा| पवद्यापथकयों का जीवन स्वयं हाथों से सीखने, सहकाररता सीखने, पररयोजनाओं, पवियों और व्खक्तगत कायों को करू ं गा जो सीखने में संलग्न और सपक्रय करते हैं | इस आयु के पवद्यापथकयों में सोचने समझने एवं तापककक शखक्त का पवकास होने लगता है| पशक्षक को पवद्यापथकयों को स्वयं कायक करने की पूणक स्वतंत्रता दे नी चापहए पजससे वह आत्मपनभकरता की ओर अग्रसर हो सके| कक्षा:- 9 ____

पहं दी भािा दशकन कथन पशक्षण में पवद्यापथकयों को नैपतक उद्दे श्य पर जोर दे गा वह प्रत्येक बच्े को सबसे अपधक उम्मीदों पर खरा रखने का प्रयास करे गा और यह सुपनपश्चत करे गा पक प्रत्येक पवद्याथी अपनी पढाई में मेहनती हो| पशक्षक पवद्यापथकयों से सकारात्मक लाभ को अपधकतम करवाएगा पजससे उनमें समपकण, दृढता, और कडी मेहनत से पवद्यापथकयों की प्रगपत होगी | पहं दी भािा दशकन कथन पशक्षण में पवद्यापथकयों पर पवशेि ध्यान पदया जाए पक उनमें अनुशासन कायम रहे पजससे प्रगपत के पथ पर अग्रसाररत रहे| पवद्यापथकयों में इस काल में तापकककता, काल्पपनक ता, सजकनशीलता का पवकास होता है , इसीपलए अपभभावकों को भी सूपचत करते रहें गे पक अपने बच्ों पर पवशेि ध्यान दे ने की आवश्यकता है कक्षा-: 10 ______ पहं दी भािा दशकन कथन पशक्षण में पशक्षक के नाते मेरा उद्दे श्य प्रत्येक पदन कक्षा में एक खुला पदमाग एक सकारात्मक दृपष्टकोण उत्कृष्ट उम्मीदें रखना है | मेरा पवचार यह है एक अच्छा एक सुरपक्षत दे खभाल करने वाला समुदाय होना चापहए जहां बच्े अपने मन की बात कहने के पलए स्वतंत्र हो और वह खखले और अपने प्रगपत के पथ पर आगे बढे | पहं दी भािा दशकन कथन पशक्षण में पशक्षक के छात्रों, सहकपमकयों, माता पपता और समुदाय से सीखने की एक प्रपक्रया है यह एक आजीवन प्रपक्रया है जहां आप नई रणनीपत नए पवचार और नए दशकन सीखते हैं| समय के अनुकूल अपना शैपक्षक वातावरण बदल सकता है | पशक्षक को अपने पवद्यापथकयों को प्रगपत पर ले जाने का भरसक प्रयास करे गा पजसके कारण उनका भपवष्य उज्जवल होगा| पहं दी भािा दशकन कथन पशक्षण में एक पररचय पनकाय और पनष्किक शापमल होना चापहए, सभी छात्र/ छात्राओं का सीखने का अपधकार है | हररश्चंद्र प्रपशपक्षत स्नातक पशक्षक ( पहंदी)

लालि एक समय की बात है । रामलाल नामक एक व्खक्त था। वह नाम से तो बहुत सीधा-साधा लगता था। लेपकन वह तो बहुत लालची व्खक्त था । वह दू ध बेचता था। कुछ समय बाद एक कोरोना नामक महामारी पूरे दे श में फैल गई , पजसके कारण पूरे दे श में लॉकडाउन लग गया। लॉकडाउन के कारण बहुत सारे व्खक्त बेरोजगार हो गए लेपकन रामलाल ने अपना दू ध बेचने का कायक जारी रखा और दू ध के दाम बढा पदए। कोई भी

कोरोनावायरस के कारण घर से बाहर नहीं जा रहा था। इसी कारण रामलाल ने दू ध के दाम बढा पदए थे। पजसके कारण लोगों को ज्ादा पैसे दे कर ही दू ध लेना पढता था , अब तो रामलाल ने दू ध मे पानी पमलाना शुरू कर पदया । पजसके कारण लोगों ने परे शान हो कर एक योजना बनाई । योजना के दौरान सब लोग एक बतकन में छे द कर उसमें रुपए रख कर एक पतली-सी रस्सी की मदद से रूपए को अपने पास रख लेते और अगर रामलाल कुछ बोलता तो बोलते की हमनै तो रूपए इसी में रखें थे। तुम झूठ बोल रहे हो क्योंपक तुम्हें ज्ादा रुपए चापहए थे। इस बात को सुनकर रामलाल उनका मुंह ताकते ही जाता था। उस पदन के बाद से रामलाल ने लालच करना छोड पदया। इसपलए कहते हैं , लालच बुरी बला है । पशक्षा - लालच कभी नहीं करना चापहए। कुमकुम 6अ पजन्दगी तू पजंदगी को जी उसे समझने की, कोपशश न कर सुंदर सपनों के, ताने-बाने बुन उसमें उलझनें की, कोपशश न कर चलते वक़्त के साथ, तू भी चल उसमें पसमटने की, कोपशश न कर। अपने हाथ को फैला, खुल कर सां स ले अंदर ही अंदर घुटने की, कोपशश न कर मन में चल रहे , युद्ध को पवराम दे खामख्वाह खुद से, लडने की कोपशश न कर। कुछ बातें, भगवान पर छोड दे

सब कुछ खुद सुलझाने की, कोपशश न कर जो पमल गया, उस में खुश रह जो सकून छीन ले, वो पाने की कोपशश न कर। रास्ते की सुंदरता का, लुत्फ़ि उठा मंपदर पर जल्दी, पहुचने की कोपशश न कर। आकाश 8अ

धमा का ममा एक साधु पशष्यों के साथ कुंभ के मेले में ब्राह्मण कर रहें थे । एक स्थान पर उनने एक बाबा को माला फेरते दे खा । लेपकन वह बाबा माला फेरते -फेरते बार बार आं खें खोलकर दे ख लेते पक लोगों ने पकतना दान पदया हैं । साधु हं से व आगे बढ गए। आगे एक पंपडत जी भागवत कह रहे थे पर उनका चेहरा यंत्रवत था। शि भावों से कोई संगपत नहीं खा रहे थे चेलों की जमात बैठी थी। उन्हें दे ख कर भी साधु खखलखखला कर हं स पडे । थोडा आगे बढने पर इस मंडली को एक व्खक्त रोगी की पररचायक करता पमला वह उसके घाव को धोकर मरहम पट्टी करता था साथ ही अपनी मधुर वाणी से उसे बार-बार सत्यमना दे रहा था साधु कुछ दे र उससे दे खते रहे उनकी आं खें छल छला आई आश्रम में लौटते ही पशष्यों ने उनसे पहले दो स्थानों पर हं सने व पफर रोने का कारण पूछा वे बोले बेटा पहले दो स्थानों पर तो मात्र आडं बर था पर भगवान की प्राखप्त के पलए एक व्खक्त आकुल पदखा वह जो रोगी की पररचायक कर रहा था उसकी सेवा भावना दे खकर मेरा हृदय द्रपवत हो उठा और सोचने लगा ना जाने कब जनमानस धमक के सच्े स्वरूप को समझेगा। पसमरन पसंह 9द

वहमालय खडा पहमालय बता रहा है , डरो न आूँ धी-पानी में। खडे रहो तुम अपवचल होकर, सब संकट तूफानी में।। पडगो न अपने प्रण से तुम,

सब कुछ पा सकते हो प्यारे । तुम भी ऊूँचे उठ सकते हो, छू सकते हो नभ के तारे ।। अचल रहा जो अपने पथ पर, लाख मुसीबत आने में। पमली सफलता जग में उसको, जीने में मर जाने में। पनपतका शमाक 8अ

यात्री का अनुसरण करें इसका न सहारा है! तुम्हारा मन क्यों हारा है ? इसने पपहन वसंती चोला कब मधुबन दे खा? पलपटा पग से मेघ न पबजली बन पाई पायल इसने नहीं पनदाघ चाूँ दनी का जाना अंतर

नारी िक्ति

ठहरी पचतवन लक्ष्यबद्ध, गपत थी केवल चंचल!

कहने को मैं एक नारी हूँ पर पडती सब पर भारी हूँ ,

पहुूँ च गए हो जहाूँ पवजय ने तुम्हें पुकारा है !

कोमल हूँ मैं , शां त हूँ मैं अपनी ही एक पहचान हूँ मैं, एक माूँ , एक बहन, और एक बेटी हूँ मैं शखक्त का हर एक रूप हूँ मैं,

तुम्हारा मन क्यों हारा है ?

नारी हूँ मैं इस युग की मैं सब को यह बताउूँ गी, क्या नारी का दजाक है? क्या नारी की शान है ?

प्रभात

कहने को मैं एक नारी हूँ पर पडती सब पर भारी हूँ । पसदरा हसन 12 द

-पशफा खान 12

भोग भऎ सूरज की पहली पकरण संदेशा लाई है , सोने वालों उठो वक्त ने झूम कर ली अंगडाई है ।। पचपडया चू - चू करती हैं , और कोयल कू - कू गाती हैं सूरज की लापलमा भी सारे पवकतों को नहलाती हैं लहर लहर लहराकर पेडों ने ली अंगडाई है ।। भोर भए सूरज की पहली पकरण संदेशा लाई है सोने वालों उठो वक्त ने झूम कर ली अंगडाई है ।।

तुम तो हारे नही ं तुम्हारा मन क्ों हारा है तुम तो हारे नहीं तुम्हारा मन क्यों हारा है ? कहते हैं ये शूल चरण में पबंधकर हम आए पकंतु चुभे अब कैसे जब सब दं शन टू ट गए

अंबर पर मेघा दल छाए बागों में कपलयां मुसकाई है धरती पर जब गुरा समीर तो धरती मां हरशाई हैं कपलयों पे मंडराते भवरों ने भी खुशी मनाई है ।।

कहते हैं पािाण रक्त के धब्बे हैं हम पर

भोर भए सूरज की पहली पकरण संदेशा लाई है सोने वालों उठो वक्त ने झूम कर ली अंगडाई है ।।

छाले पर धोएं कैसे जब पीछे छूट गए

खतम हुई जब भोर तो

दोपहरी ने आं चल फैलाया थका हुआ पपथक बैठ पेडों के नीचे हिकया शाम हुई गगन पे चंदा ने पनमकल छपव पदखाई है ।। भोर भए सूरज की पहली पकरण संदेशा लाई है सोने वालों उठो वक्त ने झूम कर ली अंगडाई है ।। आस्था वरदान 12 द

उठकर पफर आगे बढो, जब काले घने अंधेरो में भी, तुम ढू ं ढ लोगे रौशनी, उस पदन हर गम हारे गा, और जीतेगी तो बस खुशी । खुशी पसंह 12 द

िािा तुम िािस आते क्ों नही हो.... १) युं चलना तो पसखा पदया आपने.. अब भागना कौन पसखाएगा। अभी तो मुखिलो के बारे मे बताया ही था आपने... ये बताओ उनसे लडना कौन पसखाएगा। २) युं तो हर शाम वही है ... मगर पहले जैसी बात नही है । होने को सबेरा भी होता है ... मगर उस सुबह मे वो बात नही है । ३) और मेरी गलपतयों पर डां टते क्यों नही हो.. तेज आवाज मे बोलु तो धमकाते क्यों नही हो। बचपन मे जैसे गाल लडाते थे मुझसे... अब अपने गले से लगते क्यों नही हो। पापा तुम वापस आते क्यों नही हो।। सोनम 12 द

सफलता कोपशशो की राहो पर पैर चूमती सफलता, पकस्मत के सहारे गले लगती असफलता। कपठन पररश्रम ही सफलता की कुंजी है , अथक प्रयासों पमली सफलता गूंजी है । हौसलों की उडानों में सदा बुलंदी चूमी है , पस्त हौसलों के पास असफलता घूमी है । होगी हर मुखिल आसान गर इरादे पक्के, अपडग इरादों ने नाकामी के छु डाएं छकके। लक्ष्य पर पजसने साहस के पनशाने साधे है , सफलता ने उन्ही से पमलने के करें वादें है। शापलनी 12 द

ये वजंिगी की कहानी है

कागज की कश्ती...

ये पजंदगी की कहानी है ,

कागज की कश्ती सी, पपनयो मे चली आ रही थी वो।

बहता हुआ सा पानी है , हर पल कुछ नया पदखाता है , कभी खुपशयाूँ तो कभी मायूसी दे जाता है , भर कर अपने अंदर खुशी को, हर गम से सीखते चलो, जो पगर गए तो क्या हुआ,

मन मे ढे रों सवाल और, होठों पर उसका नाम पलए आ रही थी वो। मंपजल की खबर नही, पर राहो से दोस्ती कर रही थी वो। बयार आई, पर वो न डगमगाई, न सहमी, उडती पतंगो सी, आसमान को छु रही थी वो। उसे कहा, इल्प था, की पकसमत मे,

बस राहे है , मंपजलो को पाना नही। बरसात आई और एक पल मे पबखर गयी वो, न संभल सकी, और बेह गयी वो।। अंजाम की खबर नही पफर भी, चलती चली जा रही थी वो। सबीना खान 12 द

हााँ गिा है मैं नारी हाँ..... तोड के हर पपंजरा जाने कब मैं उड जाऊं गी चाहे लाख पबछा लो बंपदशे पफर भी दू र आसमान मैं अपनी जगह बनाऊंगी मैं हाूँ गवक है मैं नारी हूँ भले ही परम्परावादी जंजीरों से बां धे है दु पनया के लोगों ने पैर मेरे पफर भी उस जंजीरों को तोड जाऊं गी मैं पकसी से कम नहीं सारी दु पनया को पदखाऊंगी हाूँ गवक है मैं नारी हूँ ।। आरती 12 द

कल पकसने दे खा है अपने आज मे खुश रहो स्नेहा 12 द

मेरा विद्यालय ज्ञान का भंडार हैं जहां । इससे बेहतर जगह है कहां ।। पुस्तकों की यहां कमी नहीं। ज्ञान की जहां अल्पता नहीं।। गुरु का साथ है यहां । मेरा पवद्यालय से बेहतर पवद्यालय है कहां ंं।। ज्ञान का मंपदर है ये। मेरे पलए जन्नत है ये।। दोस्तों का साथ यहां । पजंदगी का आनंद यहां पमला।। यहां आकर ऐसा लगता। जैसे दे ख पलया हो काला सपना।। बच्ों के पलए है कोई जेल जैसा। अपने पलए है पजंदगी का बडा कोना।। पशक्षकों की डांट पमलती। पजंदगी हमेशा कुछ नया पसखाती।। रोज का वो लडाई झगडा। पफर से एक हो जाना।। कोई स्कूल जाने से डरता। तो पकसी की इच्छा नहीं होती।। हर रोज कुछ नया पसखाता। ऐसा है मेरा पवद्यालय।। नरें द्र पसंह 10 द

अिने आज मे खुि रहो छोटी सी है पजन्दगी हर बात मे खुश रहो

जािु ई घ़िा एक बार की बात है l एक गां व में राघव नाम का आदमी रहता था वह बेहद दयालू था वह

जो चेहरा पास ना हो उसकी आवाज मे खुश रहो

सबकी मदद पकया करता था पर गां व की एक समस्या थी वहां पानी की बहुत कमी थीl

कोई रूठा हो तुमसे उसके अंदाज मे खुश रहो

उस गां व में अकाल पडा हुआ था। राघव की एक दु कान भी थी l उस समय वह जैसे तैसे

जो लौट के नहीं आने वले उनकी याद मे खुश रहो

अपने घडे में पानी भर के लाया था। कुछ समय बाद उसकी दु कान पर एक बूढा आयाl राघव ने पूछा बाबा आपको क्या चापहए बूढे बाबा ने बताया बेटा मुझे पानी

चापहए क्या मुझे थोडा पानी पमलेगा मैं बहुत प्यासा हं l राघव ने कहा हां बाबा मैं अभी दे ता हं I राघव ने घडे में से थोडा पानी पनकाला और बूढे बाबा को दे पदयापर तब भी बाबा की प्यास नही ं बुझी बाबा ने पूरा घडा उठाया और सारा पानी पी पलयाl राघव का स्वभाव अच्छा था इसपलए उसने उन्हें कुछ नही ं कहा बाबा ने उसे ढे र सारा आशीवाक द पदया और वहां से चले गएI राघव ने घडा उठाकर अपने पीछे रख पदया बाबा के जाने के बाद गां व के सरपंच आए उसकी दु कान पर उन्होंने भी यही कहा राघव जरा पानी दे ना राघव ने कहा माफ करना जलपान जी अगर मे रे पास पानी होता तो मैं आपको जरूर दे ता पर अभी मेरे पास पानी नही ं है I. शैतान जी ने कहा क्यों झूठ बोलते हो और अगर तुम्हारे पीछे दे खो मटका तो भरा हुआ है I. राघव ने पीछे मुड कर दे खा उसे कुछ समझ नही ं आया पर उसने सर पर जी को पानी पदया मैं मन ही मन में सोच रहा था मटका तो अभी खाली था यह भर कैसे गया सरपंच जी ने पानी पपया और घर चले गए थोडी दे र बाद सरपंची वापस आए पर उनके साथ इस बार उनकी बेटी भी थी सरपंची ने कहा यह मेरी बेटी है I तुम्हारे घडे का पानी पीकर मेरी 3 साल पहले की चोट ठीक हो गई अगर तुम्हारे पानी में सचमुच जादू है तो तुम यह पानी मेरी बेटी को पपला दो यह बहुत समय से बीमार है यह ठीक ही होने में नही ं आ रही है राघव ने सरपंच जी की बेटी को पानी पपलाया और जैसे ही सरपंच की बेटी ने पानी पपया वह तुरंत ठीक हो गई यह बात पूरे गां व में फैल गई एक बात और भी थीI घडे में से जैसे ही पानी पनकालता राघव पानी अपने आप बढ जाता अब राघव को समझ आने लगा था पक बाबा ने जो मुझे आशीवाक द पदए थे उसी का पुण्य मुझे पमल रहा है मैंने बाबा की मदद की क्योंपक मैं सबकी मदद कर सकूं यही भगवान चाहता था इसपलए मुझे पनस्वाथक में रखा भगवान ने हे भगवान को धन्यवाद करता है और अपना काम लगन से करता है ढे र सारे पानी के एक ₹2 रुपए इकट्ठे करता है और उससे बहुत सारे पैसे जमा कर लेता है और वह बडा आदमी बन जाता है Iपूरा गां व से अपनी तबीयत ठीक करवाने आता है पकसी को कही ं चोट लगी होती है तो पकसी को बुखार आ रहा होता है तो इसे दे खकर उसे ढे र सारा पानी खरीद कर भी पी लेते हैं एक ग्लास पानी के कुछ रुपए उसने कर पदए थे उसकी अच्छी आमदनी होने लगी अबे मु फ्त में पानी बरसने लगा ईमानदारी से अपना काम कर रहा था ऐसे ही कुछ पदन तो ठीक चल रहा था पर 1 पदन को पसपाही आए और राघव और उसके घडे को उठाकर ले गए उन्होंने उससे कहा पक हमारी नानी की तबीयत अपधक खराब है हमें हमारे राजा ने यहां तुम्हें ले ने भेजा है सु ना है तुम्हारे घर में जादू है अच्छा चलो अब हमारे साथ चलो तभी वहां एक बूढा आदमी आता है वह उससे कहता है बेटा थोडा पानी पमलेगा राघव कहता है हां बाबा अभी दे ता हं तभी उसे सैपनक रोक लेते हैं वह उससे कहते हैं पक हमारे राजा रानी के ठीक हो जाने पर तुम्हें 2000 सोने के पसक्के दें गे राघव लालच में आ गया और वे सैपनकों के साथ चला गया उसने एक बार भी बूढे

आदमी के बारे में नही ं सोचा वे राजा के दरबार में गया राजा ने कहा जल्दी से पानी लाओ और जैसे ही घडे से पानी पनकालने गया उसने दे खा की घडा खाली है उसने राजा से राजा जी वह मेरा घडा खाली हो गया है lअब होना क्या था राजा को बहुत गुस्सा आया उसने राघव को दरबार से बाहर पनकलवा पदया तब उसे याद आया पक वह बुरा आदमी और कोई नही ं बखल्क वही बुरा था पजस ने उसके घडे को जादु ई बनाया था और उसे उसकी गलती का एहसास हो गयाl विक्षा- हमें कभी भी लालि नही ं करना िावहए I

साक्षी कुमारी 6अ

साहसी िररं िा साहसी पररं दे ने भर ली है अपनी उडान, पररश्रम, लगन और अथक प्रयास ही है उसकी पहचान ।। अपनी पजंदगी के मक़सद को पूरा करने की राह पर पनकला है वो, अपनी उडान से पकतनी ही पजंदपगयों को प्रभापवत कर रहा है वो ।। आसमान के बाजों से था वो पबलकुल अनजान, अपने आराध्य का हाथ थामे भरता गया उडान । माता-पपता से उसने सीखा था कभी नहीं घबराना, कभी पकसी भी पररखस्थपत में पकसी को नहीं पगराना । सहारा बनना कमजोरों का और हौसला बुलंद रखना, मंपजल जरूर पमलेगी यह पवश्वास बनाए रखना ।। कुछ कर गुजरने का जो जज़्बा रखते हैं , वो कहाूँ डरते हैं पकसी आूँ धी और तू़िान से । उन्हें तो बस अपने हुनर को पनखारने का जुनून सवार है , पफर जमाना क्या कहेगा उसकी प़िक्र उन्हें कहा है ।। साहसी पररं दे ने भर ली है अपनी उडान, पररश्रम, लगन और अथक प्रयास ही है उसकी पहचान ।। चारू मेहता स्नातकोर्त्र वापणज्

अवभलाषा

अब केवल एक उदासी है ।

पकतना सरल, पकतना मासूम।

खुशी नही ं ,जरा सी है ।।

सही गलत ,नही ं मालूम।।

सब कुछ अच्छा हो जाएगा, ऐसी हमको आशा है ।

न कोई अपना,न कोई पराया।

कोई लौटा दे बचपन मेरा,बस इतनी अपभलािा है ।

पजससे पमला स्नेह ,उसे अपनाया।। नआजकी पचंता, न कल की प़िक्र। न खुपशयों का जश्न,न बबाक पदयों का पजक्र।। पजसमें खुश था मेरा तन मन । याद आ रहा है मुझे बचपन।। बचपन की वह सच्ी खुपशयां । बागों वह कच्ी अपमयां ।। वो खेत, वो नदी, गली चौबारे । पकतने अच्छे पकतने प्यारे ।। गां व की वो तलैया। पजसमें खेले मैं और भैया।। पापा की वो डां ट और मार। दादी वो स्नेह दु लार।। जन्माष्टमी का वो गां व का मेला पकतनी भीड, कैसा रे ला।। नाग पंचमी के वो मेले पजसमें पमलकर हम सब खेले।। नीम की डाल, सावन के झूले। याद बहुत आते ,नही ं भूले।। पकतना उत्साह, पकतनी उमंग थी। हर तरफ खुपशयों की तरं ग थी।। जैसे- जैसे हम बडे हुए। अपने पैरों पर खडे हुए।। सच में हं सना हम भू ल गए। खुपशयों के रं गीन फूल गए।।

सत्यपाल (टीजीटी पहं दी संपवदा पशक्षक)

हमारे टोक्ो िैराओलंविक हीरो

ध्वजिाहकनाम- माररयप्पन थान्गािेलु खेल – ऊाँिी कूि माररयप्पन भारत के पैरा खेल में हाई जम्प के खखलाडी है । ररयो पैरापलखम्पक खेल में पुरुि वगक की हाई जम्प की प्रपतयोपगता में T-42 केटे गरी में गोल्ड मैडल जीत, भारत का नाम बहुत ऊूँचा पकया। सन 2004 के बाद माररयप्पन पहले पैरापलखम्पक खखलाडी है , पजन्हें इस खेल में गोल्ड मैडल पमला है । माररयप्पन के पपता उसके बचपन में ही पररवार को छोड कर कही चले गए थे। माररयप्पन का पालन पोिण उनकी माूँ ने अकेले पकया। वे एक मजददू र के रूप में ईंट उठाने का काम करती थी। तपबयत खराब होने के कारण उनकी माूँ ने पफर कुछ समय बाद सब्जी बेचने का काम शुरू कर पदया था। 5 साल की उम् में माररयप्पन का एक बस दु घकटना के कारण एक पैर काटना पडा और इस दु घकटना ने उसे जीवन भर के पलए अपापहज बना पदया। स्कूल में माररयप्पन के शारीररक पशक्षा प्रपशक्षक ‘आर राजेन्द्रम’ ने उनकी हाई जम्प खेल की प्रपतभा को जाना, और उनको बढावा पदया। उन्होंने माररयप्पन को हाई जम्प की अलग अलग प्रपतस्पधाक में भाग लेने के पलए प्रोत्सापहत पकया। 14 साल की उम् में अपनी पहली ही प्रपतयोपगता में माररयप्पन ने बापक सक्षम शरीर एथलीटों के सामने दू सरा स्थान प्राप्त पकया. उसके बाद उन्होने कभी पीछे मुडकर नहीं दे खा। 2021 में वे भारत की ओर से ध्वजवाहक होंगे। जज़्बे को सलाम।

नाम- अवमत कुमार सरोहा खेल – विस्कस थ्रो हॉकी के नेशनल खखलाडी थे । 22 साल की उम् में कार एक्सीडें ट से व्हील चेयर पे आ गए । रीढ की हड्डी टू टी, हॉकी छूट गयी पर इनका हौसला तोडने वाला कोई नही था। पैरा खेल शुरू कर पदए । आज पैरा में पडस्कस और क्लब थ्रो के चैंपपयन है । अब नैशनल नही ओलंपपक खेलने जाएं गे। इनके जज्बे को सलाम।

नाम- िे िेंद्र झाझविया खेल– जेिवलन थ्रो चूरू पजले के गांव झाझपडयों की ढाणी में 1981 में जन्में दे वेंद्र झाझपडया का हाथ आठ साल की उम् में पेड पर चढते समय करं ट आने से हुए हादसे के कारण काटना पडा। इसके बावजूद उनका हौसला कम नहीं हुआ। 2004 में एथेंस पैराओपलंपपक के पलए क्वालीफाई पकया और स्वणक पदक जीता और 6 2.15 मीटर जेवपलन फेंककर नया वल्ररड ररकॉडक कायम पकया। 2004 में अजुकन अवाडक से सम्मापनत पकया गया। माचक 2012 में उन्हें राष्टरपपत द्वारा भारत के प्रपतपित पद्मश्री अवाडक से भी सम्मापनत पकया गया। यह सम्मान प्राप्त करने वाले वह पहले पैराओपलंपपयन हैं। उन्होंने 2016 में ररयो ओलंपपक में स्वणक पदक जीता, पजसके बाद उन्हें सवोच् खेल पुरस्कार खेल रत्न अवाडक पदया गया। नाम- एकता भयान खेल – विस्कस थ्रो 2003 में एक सडक दु घकटना में गंभीर रूप से घायल हुई, और व्हीलचेयर पे आ गयी। जहां बाकी सभी ऐसे मौके पर पजंदगी से हार जाते है , वहीं एकता का जुनून इस सब पर भारी पडा। खेल शुरू पकया और आज पडस्कस और क्लब थ्रो की चैंपपयन है । हररयाणा सरकार में अफसर है । अपना दू सरा ओलंपपक खेलने जा रही है । हररयाणा से पैराओलंपपक जाने वाले एथलेपटक्स के खखलापडयों में अकेली मपहला खखलाडी है। दे श और प्रदे श का नाम गौरवाखित करती इस बेटी पर हमें गवक है ।

नाम- अिनी लखेरा खेल– िूवटं ग साल 2012 में मात्र 12 विक की आयु में सडक दु घकटना में रीढ की हड्डी चोपटल होने से पैरापलपसस का पशकार हो गईं। अवसाद से उबरने में उनके पररवार ने उनका साथ पदया। अपभनव पबंद्रा की बायोग्राफी से शूपटं ग करने की प्रेरणा पमली।

पैरालंपपक में शूपटं ग प्रपतयोपगता में आज तक भारत की झोली में गोल्ड नहीं आया है. ऐसे में इस बार उम्मीद है की राजधानी जयपुर की गोल्डन गलक अवनी गोल्ड पर पनशाना साधकर इस सूखे को खत्म करे गी.

नाम- िरुण वसंह भाटी खेल– ऊाँिी कूि बचपन में ही पोपलया होने की वजह से उन्हें चलने पफरने में समस्या आती थी। वरुण चाहते थी की उनके जीवन में पोपलयो उनकी कमजारी न बने इसके पलए उन्होंने स्कूल में स्पोट् स को चुना। खेल को ही जीवन मानने वाले वरुण की स्कूल के बाद कॉलेज में इसके प्रपत लगन और बढ गई। वो अपनी टर े पनंग पर ज्ाद फोकस करने लगे। पोपलया होने के बावजूद हार न मानकर लगातार वरुण की यह मेहनत उन्हें एक बडे मुकाम तक लेकर जाने वाली थी। वरुण भाटी को विक 2017 में टाइम्स ऑफ इं पडया स्पोट्क स ने पैरा एथलीट ऑफ ईयर के रुप में चु ना। विक 2018 में भारत के राष्टरपपत रामनाथ कोंपवद ने उन्हें अजुक न अवाडक दे कर सम्मापनत पकया।

नाम- वििेक विकारा खेल– तीरं िाजी पववेक पचकारा ने एमबीए पकया था और वह प्राइवेट कंपनी में काम कर रहे थे. विक 2017 एक सडक हादसे में उन्हें अपना एक पैर गंवाना पडा। हादसे के कारण उनकी नौकरी भी छूट गई। इसके बाद उनके पपता उन्हें मेरठ के गुरुकुल लेकर आए। इसके बाद से उन्होंने कोच सत्यदे व का साथ नहीं छोडा। 2004 के ओलंपपयन और ध्यानचंद अवाडी कोच सत्यदे व बताते हैं जहां भी वह गए पववेक उनके साथ रहे । 2019 में बैंकॉक में एपशयन पैरा आचकरी चैंपपयनपशप में गोल्ड मेडल हापसल पकया और ओलंपपक कोटा हापसल पकया।

नाम- मुकेि और िूनम खेल– टे बल टे वनस मुकेश पहले सामान्य वगक में टे बल टे पनस प्लेयर थे। एक नेशनल प्रपतयोपगता में पहस्सा लेने के पलए रे लवे स्टे शन पर टर े न का इं तजार कर रहे थे , इतने में एक बच्ा अचानक रे लवे टर ै क पर आ गया। मुकेश ने टर ै क पर पहुंच कर बच्े की जान तो बचा ली, लेपकन टर े न की चपेट में आने से अपना पांव खराब कर बैठे। वहीं, उनकी पत्नी को बचपन में पोपलयो था। दोनों ने पहम्मत नहीं हारी और टे बल टे पनस में

पूरी ताकत लगा दी। आज नेशनल और इं टरनेशनल लेवल पर मेडल बटोर रहे हैं।

धर्मेन्द्र ह िं प्रहिहित स्नातक हििक

World Environment Day On ‘World Environment Day’ people from various countries all around the world come together to take action and defend our planet from pollution and brutal technological advancement. Let’s Find out about some of the things people are doing to celebrate this special day. People celebrate World Environment Day (WED) in many numerous ways all over the world: planting trees, cleaning up local beaches, organising meetings, joining online protests. Each year the United Nations Environment Programme (UNEP) chooses a particular issue to focus on. One year it might be forests, another year ‘wildlife’ can be the theme. And each year there is a new host; a city which is the centre point for all the celebrations. Let’s see how

these celebrations first started; The United Nations (UN) named 5 June as international World Environment Day at the Stockholm Conference on the Human Environment in 1972. The idea was to draw attention to the many problems that are our environment is facing. They wanted to include as many people, organisations and governments, both at local and national level, as possible. They wanted to show that positive change is possible when people work together to fight for a common cause. The first World Environment Day, The first WED was celebrated in 1974 in the city of Spokane in the USA. The slogan for that first year was ‘Only One Earth’ and it was celebrated with the world’s first world fair to be dedicated to the environment. The exhibition lasted for six months. The issues Each year the celebrations focus on a particular problem. Over the last ten years key issues

have included wildlife, forests and plastic waste, among other things. Each issue has a slogan. Past slogans include ‘Think. Eat. Save.’, which asked people to think about the issue of food waste, and ‘Raise your voice, not the sea level’, to focus on the effect that global warming is having on small island nations around the world. As well as slogans, hashtags have become important for the campaigns too. In a recent campaign the hashtag #WildforLife became a strong symbol for the fight against all kinds of illegal trading in plants and animals. What you can do If you want to take part in the celebrations, or support this year’s special cause, here are some things that you can do. You can visit the official website to find out what this year’s slogan is. You can search for the slogan online to find organisations and events in your area or online. You can share information about the cause and the events on social

media or form a local action group of your own and organise an event in your community. Whatever you do, you won’t be alone. Millions of people all around the around the world will be joining the celebrations and fighting for a better future for our planet. Ananya 9A

THE NIGHTINGLE OF INDIA : SAROJINI NAIDU

One day a little Indian girl was shut up in a room alone for a whole day because she could not learn English. The child was Sarojini,who later on, as Sarojini Naidu became one of the most distinguished poets in the same language which she had refused to learn. Sarojini Naidu was an Indian political activist and poet. A proponent of civil rights, women's

emancipation, and antiimperialistic ideas, she was an important figure in India's struggle for independence from colonial rule. She was born on 13 February 1879 in a Bengali family in Hyderabad. Her father, AghorenathChattopadhyay, with a doctorate of Science from Edinburgh University, settled in Hyderabad, where he administered Hyderabad college, which later became Nizam College in Hyderabad. Her mother, BaradaSundari Devi Chattopadhyay, was a poet and used to write poetry in Bengali.Sarojini began writing hardly at 11. At the age of thirteen she wrote a long poem in the manner of the famous English poets.In this way, she began her poetic career. After passing the matriculation examination in India, and before she was fifteen, she went to England for higher education. It was

during her stay in London that she met Sir Edmund Gosse, a distinguished man of letters of the time. He was impressed by her knowledge, intelligence and learning. When he came to know from her that she wrote English verse, he asked her to show him some of her poems. On reading her poems, he was astonished to find that they were written in almost flawless English. The connoisseur said: “Why do you write about England, good lady? Write rather about India and I assure you of fame”. That settled the matter, Sarojini Naidu threw her poems on England into the fire. From that day on she devoted her poetic talent to the glory of India and Indian things. In 1905, her first collection of poems, named The Golden Threshold was published. The volume bore an introduction by Arthur Symons. Her poems were

admired by prominent Indian politicians like Gopal Krishna Gokhale. Naidu’s poem "In the Bazaars of Hyderabad" was published as a part of The Bird of Time with her other poems in 1912. "In the Bazaars of Hyderabad" was well received by critics, who variously noted Naidu's visceral use of rich sensory images in her writing. Naidu was awarded the Kaisar-iHind Medal by the British government for her work during the plague epidemic in India, which she later returned in protest over the April 1919 Jallianwala Bagh massacre. Talking about her political Career, Naidu joined the Indian independence movement in the wake of partition of Bengal in 1905. She soon met other such leaders as Gopal Krishna Gokhale, Rabindranath Tagore, Mahatma Gandhi and was inspired to work towards attaining freedom from the

colonial regime and social reform. Between 1915 and 1918, Sarojini Naidu travelled to different regions in India delivering lectures on social welfare, emancipation of women and nationalism. She also helped to establish the Women's Indian Association (WIA) in 1917.Following India's independence from the British rule in 1947, Sarojini Naidu was appointed as the governor of the United Provinces (present-day Uttar Pradesh), making her India's first woman governor . Sarojini Naidu died of cardiac arrest at 3:30 p.m. on 2 March 1949 at the Government House in Lucknow . Naidu's as a poetess earned her the sobriquet 'the Nightingale of India', or 'Bharat Kokila' by Mahatma Gandhi because of colour, imagery and lyrical quality of her poetry. Name:Atharv Agarwal Class:IXD

QUOTES ON ENVIRONMENT • “I only feel angry when I see waste. When I see people throwing away things we could use.” -Mother Teresa • “The earth is what we all have in common.” -Wendell Berry • “Time spent among trees is never time wasted.” -Anonymous • “Away, away, from men and towns, to the wild wood and the downs, -To the silent wilderness, where the soul need not repress its music.” -Percy Bysshe Shelley

• “He that plants trees loves others besides himself.” -Thomas Fuller • “Never doubt that a small group of thoughtful committed citizens can change the world; indeed, it is the only thing that ever has.” -Margaret Mead • “One of the first conditions of happiness is that the link between man and nature shall not be broken.” -Leo Tolstoy • “The environment is where we all meet; where we all have a mutual interest; it is the one thing all of us share.” - Lady Bird Johnson • “The earth will not continue to offer its

harvest, except with faithful stewardship. We cannot say we love the land and then take steps to destroy it for use by future generations.” -John Paul II APRAJITA KUMARI ‘XA’

ONLINE CLASSES Advantages 1. Online classes are convenient. 2. Online classes offer flexibility. 3. Online classes bring education right to your home. 4. Online classes offer more individual attention. 5. Online classes help you meet interesting people. 6. Online classes give you real world skills. 7. Online classes promote life-long learning. 8. Online classes have financial benefits. 9. Online classes teach you to be selfdisciplined. 10.Online classes connect you to the global world. Disadvantages

1. Online classes require good time-management skills. 2. Online classes may create a sense of isolation. 3. Online classes allow you to be more independent. 4. Online classes require you to be an active learner. 5. Online classes don’t have an instructor hounding you to stay on task. 6. Online classes give you more freedom, perhaps, more than you can handle! 7. Online classes require that you find you own path to learning. 8. Online classes require you to be responsible for your own learning.

By: Ananya Jindal Class: X A

INTRESTING FACTS 1. The number of trees on the earth are 12 times the number of planets in our galaxy. 2. Price of vomit of a whale is even more than that of gold. 3. Bees can sting other bees. 4. No number from 1 to 999 includes “a “in its word format. 5. A group of kittens is called a kindle. 6. White rainbows appear in night known as moonbows. 7. Every second our body produces around 25 million new cells. 8. Cows do have best friends and become stressed when they are separated. 9. The tongue of a lion is too rough, it can even lick the paint from walls of buildings and skin from bones.

10. Scotland’s national animal is unicorn.

MANYA SIROHI 9C

𝗖𝗼𝘃𝗶𝗱-19 𝗦𝗧𝗔𝗬𝗔𝗟𝗘𝗥𝗧𝗦𝗧𝗔𝗬𝗦𝗔𝗙𝗘 COVID-19 can be transmitted by people with the virus coughing or sneezing, releasing tiny contaminated droplets into the air, putting anyone within range in danger of inhaling them. These droplets can travel more than a metre from the infected person, allowing them to settle on any surfaces ready to be

transferred to anyone that touches the surface. The virus can live on some surfaces for several days. Data from the 2003 SARS outbreak, which was a similar illness to the latest coronavirus, showed the virus could contaminate plastered walls for up to a day and a half, plastic and stainless steel for 72 hours, and glass for 96 hours. So it’s likely the mobile phone, tablet or computer screen you are reading this on could harbour COVID-19 for up to four days, and be transferred to anyone touching the screen. Adopting good hygiene is one of the most effective weapons to slow or prevent the virus spreading. Here are six things you can do to protect yourself and others.

1. Avoid touching your eyes, nose and mouth Our hands touch door handles, keyboards, taps and numerous other surfaces, so the virus could easily be picked up this way. Rubbing tired eyes or touching your nose or mouth could transfer the virus from your hands into your body. 2. Wash your hands regularly Clean your hands thoroughly and often, using plenty of soap and water or an alcohol-based hand rub to kill any virus on your hands. Scrub for at least 20 seconds, making sure you clean fingers, thumbs and palms. 3. Practise respiratory hygiene

If you cough or sneeze, use a tissue and throw it in the trash afterwards. If you don’t have a tissue, cough into the crook of your arm instead of using your hand. If possible, avoid coughing or sneezing near other people. 4. Maintain social distancing Be aware of people around you and keep your distance from anyone coughing or sneezing. Stay at least 1 metre away to prevent inhaling the small liquid droplets sprayed by coughs and sneezes. 5. If any symptoms develop, seek medical care early Stay at home if you feel unwell, and if you develop a fever, cough or difficulty

breathing seek medical attention. Call in advance of your visit, and follow the advice of your local health provider – they will have the most up to-date information on the situation in your area. 6. Stay informed Accurate information about COVID-19 and its spread is essential. But beware, because there is a lot of misinformation, scaremongering and fake news floating around on social media that can hamper efforts to contain the virus. The latest information is available by visiting trusted sources like the World Health Organization’s (WHO) information page.

Sandeep Kumar

IX C

The hollow wind,

The Door

Even if Nothing

Go and open the door

Is there,

Maybe outside there’s

Go and open the door

A tree, or a wood, A garden,

Sanjay Kumar

Or a magic City.

VIII A

Go and open the door.

THE FEARLESS

Maybe a dog’s rummaging Maybe be you see a face, Or an eye, Or the picture Of a picture, Go and open the door If there’s a fog It will clear. Go and open the door. Even if there’s only The darkness ticking, Even if there’s only

Swami Vivekananda was 8 years old when this incident happened. He loved to dangle head down from a Champak tree in his friend’s compound . One day he was climbing the tree and an old man approached him asking him not to climb the tree .The old man was probably scared that Swami could fall and break his limbs or was just being protective about the chamapaka flowers . When the kid questioned him why the old man told him that there was a ghost

living on the tree and it breaks his neck if he climbed the tree again . Swami nodes and the old man walked away. The not so convinced 8- years old climbed the tree again, all the friends were scared and ask him why he was it despite knowing that he would be hurt ; he laughed and said `what a silly fellow you are ! Don’t believe everything just because someone tell you ' If the old granddaughter's story was true then my neck would have been broken long ago' . Now that’s exceptional common sense for an 8years old , isn’t it! NameSakshi PANT Class- 9A

ZOOS-SHOULD THEY BE ABOLISHED? Zoos have been popular for hundreds of years, introducing a wide variety of animals to visitors who

otherwise would never have seen them. Times change, however, and we must question whether zoos are still relevant in a world Where we wish to treat animals humanely. It is often said that zoos are educational. They teach people, especially children, about animal behavior and encourage an interest in animal welfare. This may be partly true, but does a captive animal behave like its counterpart in the wild? Zoo animals are often confined to a very small areas compared with their vast natural habitat. As a result, many animals develop unnatural habits such as pacing back and forth or swaying Another argument put forward in favor of zoos is that they help to conserve

endangered species through breeding programs. Thus, for example, a rare species can be protected and encouraged to reproduce in a 200 environment. For example attempts to breed pandas in captivity have been very castly and unsuccessful. Evidently zoo life does not prepare animals for the challenges of life in the wild. Supporters of zoos sometimes claim that the inhabitants are even better off than their counterparts in the wild. On the contrary, the zoo is an unnatural environment that exposes animals to numerous dangers Diseases often spread between species that would never co-exist naturally. For example, zoo animals are often exposed to chemicals, solvents and other toxic substances. Furthermore, it is not uncommon for visitors to

tease and provoke confined animals. In summary, therefore, the continued existence of zoos cannot be defended. They do not educate people they do not conserve wildlife and they do not treat animals humanely. They are cruel prisons and the time has come to abolish them.

By: Prachi , 9th B

WHAT THE NIGHT SAYS The darkness says: It’s night. The stars says : shine. Fantasy says: It’s magic. The valley says: No it’s mine. Mystery says: It’s all a puzzle.

The dream Gatherer says: Resolved. The brightness says: I’m fading. The moonlight: I’m dissolved. Memory says: remember. Demonic shouts out: scream. The Awakening whisper: sunrise The night says, it’s all a dream. Kritika 10 A

WOMEN EMPOWERMENT It is empowering women to understand their rights to be independent in every area for their proper growth and development. Women raise children means future of the nation… so only they can better involve in making the bright future of the nation through the proper growth

and development of the children. We must realize that despite the efforts being made to uplift women, most of them still suffer under patriarchy and suppression. Domestic violence is extremely common in countries like India. The society has always tried to curb the freedom of a woman because it is afraid of a woman who is strong and independent. We must recognize the ingrained misogyny in our society and work towards removing it. for example, we must teach both girls and boys to respect each other. Women fall victim to atrocities because men feel that they have the birthright to assert their power and authority over women. This can only be resolved by teaching boys from the very beginning that they are in no way superior to girls, and they have no right to touch a woman without her consent. The future is not a female.

The future is equal and beautiful. Nowadays, when women are capable of doing everything in every stream thinking that they are weak and dependent on others is totally wrong. If a women decides to be independent she can do that even in the worst situation, even though she may get failure but she won’t give up , she’ll always fight with her fears and will stand up for herself. Women are saving lives, protecting the nation from the enemies on the boarder, they are creating a lot of things for our nation and it’s our responsibility to respect them and encourage them.

Ritika 8A

IF I WERE A GIANT… If I were a giant…

I wonder if…. could stand on my tiptoe and paint the sky. Iwould fashion paint brushes from branches of trees, And paint all the cloud as they float on the bridge. I would wake up quietly early when morning was new, and paint all the daisies with pollen and dew. I would blend all the colour from desert so dry, and mix up a sunrise to splash on the sky. I would stride to the mountain and gather the snow, to paint snow white blossom were blossom should grow I would deep my tree brush in the yellow corn and, and i’d paint golden beaches by waving my hand.

I would grind autumn leaves, some pink one, some red, and cover the sun as she set off to bed. I would hunt all the shadow that hide from the light, and deep them in pen ink and blacken the night. I can dream I am a giant from the book on my shelf, but i know when I wake nature painted herself

While another is small Some families have children refined Some have roaring brats, never mind Whether we are together or far apart The people we love Fill the map of my heart Name: Ishika Class: VIB

Name-ShakshiSingh 7d

Family

MOM

Family are people

You are a wonderful mother,

Who care about you

So gentle, yet so strong.

My family is special

The many ways you show you care

Yours is too… Mother and father And sisters and brothers Grandma and Grandpa And so many other One family is Big

Always make me feel I belong. You are patient when I am foolish; You give guidance when I ask;

It seems you can do most anything; You are the master of every task. You are a dependable source of comfort; You are my cushion when I fall.

One day I decided to quit my job and to end my life. There seemed to be no reason for me to live any longer. I quit my job, my relationship, my spirituality…everything…I wanted to quit everything. I went deep into the woods to have one last talk with God.

You help in times of trouble;

“God” I asked, “can you give me one good reason to continue”

You support me whenever I call.

His answer surprised me…

I love you more than you know;

“Look around”, He said. “Do you see the fern and the bamboo?

You have my total respect.

“Yes”, I replied.

If I had my choice of mothers,

“When I planted the fern and the bamboo seeds, I took very good care of them. I gave them light, water and breeze. The fern quickly grew from the earth. Its brilliant green covered the floor. Yet nothing came from the bamboo seeds. But I did not quit on the bamboo. In the second year the fern grew more vibrant

You would be the one I would select Name: Rakhi Class: IXB

DO NOT GIVE UP…

and plentiful. And again, nothing came from bamboo seeds. But I did not quit on bamboo”, He said. “In the third year too, there was no growth from the bamboo seeds but I would not quit” added God with a smirk. In the fourth year, there was nothing from the bambooseed. I would not quit.” He said. “then in the fifth year a tiny sprout emerged from the earth. Compared to the fern it was seemingly small and insignificant…But just 6 months later the bamboo rose to over to 100 feet tall. It had spent the five years growing roots. Those roots made it strong and gave it what it needed to survive. I would not give any of my creations a challenge it could not handle.” He asked me, “Did you know, my child, that all this time you have been

struggling, you have actually been growing roots.” “I would not quit on the bamboo. I will never quit on you.” “Don’t compare yourself to others,” he said. “The bamboo had a different purpose than fern. Yet they both make the forest beautiful.” “Your time will come”, God said to me. “You will rise high”. “How high should I rise?” I asked. “How high will the bamboo rise?” He asked in return. “As high as it can?” I answered. “Yes”, give me glory by rising as high as you can.” I left the forest and brought back this story. I hope these words can help you see that God will never give up on you……Never, Never, Never give up Don’t give up world.

Manisha Kumari XC

The Life Life is like a football, Horrible toward the goals Life is like a book, Read it again and again Life is like a bubble, Enjoy every moment. Life is like a rose, It pricks and pleases both. Life is like a school, So serene and so innocent. Life is like a weather, Calm, stormy and unpredictable. Nikunj Pathak Class 7th B

Essay on India India is the 7th largest country by area and the second most populous country in the world, situated in Asia. Three sides are surrounded by water. Indian ocean on the south, the Arabian sea on the south west, and the Bay of Bengal on the south east. It shares land border with Pakistan, China, Nepal and Bhutan in the North; and Bangladesh and Mayanmar in the east. The national animal of India is the Roal Bengal tiger, National bird of India is Peacock, National fruit of India is Mango, National flower is lotus, and our National anthem iss Jan Gan Man… ShouryaUpadhyay Class 7B

Motivational Thoughts 1. Believe in yourself when no one else does if someone tells you cannot do it. Prove them wrong. 2. Never stop learning because life never stops teaching. 3. Self-belief and hard work will always learn your success. 4. You cannot say that you do not have time because you get the same amount of time as the great and successful people. Shikha Class IXC

Importance of books in sTUDENT’s lIfE Books are considered as the best friend of a student in the real sense. They play significant role in a student’s life. Books give plenty of joy to student’s life and they learn a lot of things from books that make them imbibe good qualities. Books take them into a unique world of imagination and improve their standard of living. Books help to inspire students to do hard work with courage and hope. They enrich the experience of students and sharpen their intellect. There are many benefits of reading books. It improves memory and builds vocabulary. Prashant VII A

LEAVES We see orange, We see brown, We see leaves, On the ground. We see yellow, We see leaves, Above our head. Rabhya Singh II B

DURING LOCKDOWN Before the virus, I went to school, Everything was happy. Now I see people with face masks and few cars But I am happier But I am happier to have more time with my mom and I have more days to play. I am afraid that my family and friends will get sick.

My Promise

I miss playing with my friends at school. I miss visiting my grandparents at their house. I dream about seeing my best friend and then us going to the beach.

Each day I will do my best, And I won’t do any less. My work will always please me,

While this (lockdown) happens, I draw pictures, I play and I do homework.

And I won’t accept a mess.

I hope that this ends so I can go back to seeing my friends.

My writing will be neat.

When all this ends, I will go to the park to skate. All this will pass, we will be fine, if we Take care of ourselves (and) wash our hands, the virus will die. Stay at home…No if…but…or why???

I will colour very carefully, And I simply won’t be happy Until my home-work is complete I will always do my work, And I will deliver in every test. I won’t forget my promise, To do my very best!

Amirah Sheikh

Aryan

II B

II C

िीरतां हिधेहि रे पिं ििं हनधेहि रे

संस्कृत विभाग महाकाव्ये रामायण महाभारतं

भारतस्य रक्षणाय जीिनं प्रिे हि रे ।।

संस्कृतसाहित्ये रामायण मिाभारतं चेत्येते द्व ऐहतिाहसक मिाकाव्ये उपलभ्यते। एतय ोः रामयणं संस्कृतसाहित्यस्य आहिकहिना मिर्षणा िाल्मीहकना हनबद्धम्। अतएि एतत् संस्कृतसाहित्ये आहिकाव्यमुच्यते। एतस्मिन् न केिलं युिानां हिजयाणां च र मिर्षकाहण िणषनाहन उपलभ्यन्ते प्रत्युत आलंकाररकभार्ायां प्रकते: अनेकशोः अनुपमाहन सजीिहन च हचत्राहण अहप दृश्यन्ते।

त्वं हि मागषिशषकोः त्वं हि िे शरक्षकोः त्वं हि शत्रुनाशकोः कालनाग तक्षकोः ।।

श्रेण्यसंस्कृतसाहित्ये केिलमेतिे ि एक मेिंहिधं मिाकाव्यं ितषते यस्मिन् ियं सिषप्रथम काव्यमयीं सजीिामालंकाररक भार्ामिल कयाम:। अत एिेिं हिद्वहभ: आहिकाव्यम् , एतस्य प्रणेता च आहिकहिनगध्यते।। न केिलमाहिकाव्यत्वािाहिकहिप्रणीतत्वािे िेिं मित्त्वपूणष ितषते अहपतु एतस्मिन्।अन्यान्यहप काहनहचत् साहित्यकाहन, सामाहजकाहन, ऐहतिाहसकाहन च

सािसी सिा भिेोः िीरतां सिा भजेोः भारतीय-संस्कृहतं मानसे सिा धरे ोः ।।

तथ्यभूताहन तत्त्वाहन सस्मन्त, यैहिद्वां स एतस्य मित्त्वं स्वीकुिषस्मन्त।। पिं पिं हमलच्चलेत् स त्सािं मन भिेत् शीतल गुप्ता

भारतस्य गौरिाय

कक्षा- आठिीं स

सिषिा जय भिेत् ।।

कविता

हनकुंज पाठक कक्षा- सातिीं ब

एहि एहि िीर रे

स्वतंत्रता वििस

एक-मातु: सुता: सिे भाहत हिव्या भव्यता। स्वतंत्रता सिेभ्य: प्राहणभ्योः हप्रया भिहत। जीिजन्तय ऽहप पराधीनतायां कष्टस्य अनुभिं कुिषस्मन्त। १९४७ तमस्य

यत्र भार्ा-िेर्-भूर्ा-रीहत-चलनैहिषहिधता।

िर्षस्य अगस्त'-मासस्य पञ्चिशे हिनाङ्के भारतगणराज्य

तथाप्येका ह्याहद्वतीया राजते जातीयता।

स्वतन्त्रम् अभित्। अत: अयं हििस: "स्वतंत्रताहििसोः"

ऐक्य-मैत्री-साम्य-सूत्रं परम्परया सम्भृतम्॥ जयतु…॥

इहत कथ्यते। अस्मिन् हििसे राष्टरपहत: राष्टर सम्ब हधतिान्। िे शभक्ता: इमं राष्टरीयपिषरूपेण िरस्मन्त। यद्यहप अिाकं िे शे अनेकाहन राष्टरीयपिाषहण सस्मन्त परन्तु इिं एकम् अत्यन्तं मित्वपूणष राष्टरीय पिष हिद्यते। अयं हििसोः इहतिासे सुिणाषक्षरै अंहकत: अस्मस्त। इमंहििसंसिे जनाोः मिता उत्सािन सम्मानयस्मन्ता बाला: िृद्धा: युिानश्च सिे प्रसन्ाोः दृश्यन्ते। सिषत्र भारतमातु: जयस्य तुमुलध्वहनोः श्रूयते।

रूद्र

गुप्ता कक्षा- निमी ि

जयतु जननी

जयतु जननी जन्मभूहम: पुण्यभुिनं भारतम्। जयतु जम्बू-द्वीपमस्मिलं सुन्दरं धामामृतम्। पुण्यभुिनं भारतम्॥

आत्महशक्षा-ब्रह्मिीक्षा-ज्ञानिीपैरुज्ज्वलम्। य ग-भ ग-त्याग-सेिा-शास्मन्त-सुगुणै: पुष्कलम्। यत् हत्ररं ग ध्वजं हििधत् िर्षमार्ं हिजयते। सािषभौमं ल कतन्त्रं धमषराष्टरं गीयते। मानिानां -प्रेमगीतं हिबुध-हृिये झंकृतम्॥ जयतु…

शुभ राठी कक्षा- आठिीं स

वििकानंिस्य जीिनपररचय : आधुहनकभारतस्य हनमाषणकतृषर्ु युगपुरुर्स्य हििेकानन्दस्य नाम सिोपरर अस्मस्त। सोः न केिलं भारते अहपतु सम्पूणषहिश्वे आध्यात्मल कं हिकीणषयहत ि। तस्य मिापुरुर्स्य जन्म 1863 तमे िर्े अभित्। हिश्वनाथित्तोः तस्य हपता आसीत्। बाल्यकाले

धररत्रीयं सिषिात्री शस्यसुफला शाश्वती।

हििेकानन्दस्य नाम नरें द्रनाथोः आसीत्। बाल्यकालािे ि

रत्नगभाष कामधेनु: कल्पिल्ली भास्वती।

रुहचोः आसीत्।

हिन्ध्य-भूर्ा हसन्धु-रशना हशिा-हिमहगरर शमषिा।

नरे न्द्रोः यिा स्नातक भ ं ित् तिा तस्य हपता परल कम्

रम्य-गंगा-यमुनया सि मिानद्यथ नमषिा। कमष-तपसां साथष-तीथं प्रकृहत-हिभिालंकृतम्॥ जयतु…॥

सोः अहत मेधािी आसीत्। आध्यात्महिर्ये तस्य मिती

अगच्छत्। एकिा एकस्यां सभायां सोः रामकृष्णपरमिं समि ियस्य स्पशषमहधगत्य समाहधस्थ भित्। तस्यैि गुर ोः स्पशेन च तस्य समाहधोः समाप्त भित्। तिात् क्षणािे ि नरे न्द्रोः तं स्वगुरुम् अमन्यत तपोः च आरभत।

आकुमारी-हिमहगरे नो लभ्यते सा सभ्यता।

1893 तमे िर्े अमरीकािे शे ‘हशकाग ’ नामनगरे हिश्वधमषसम्मेलनमभित्। तस्मिन् सम्मेलन सोः भारतस्य प्रहतहनहधत्वम् अकर त्। तिािे ि कालात् तस्य कीहतषोः सिषत्र प्रासरत्। अनेके जनाोः तस्य भक्ताोः अभिन्। हििेकानन्दोः ल कसेिायाोः उद्दे श्यं ‘रामकृष्णहमशन’

रात्रौ अङके मां स्वापयहत मधु मधु मधुरं गीतं गायहत आ, आ, आ, आ, ऽऽ

संस्थापयत्। 4 जुलाई 1902 तमे िर्े अयं हिव्यपुरुर्ोः पंचतत्वं गतोः।। नाम = भूहमका म नेली

प्रज्ञान कक्षा- छठिीं ब

कक्षा - छठिीं ब िीपािली: मम माता िे िता ----------------------

िीपािली: भारतिर्ीय एक: मिान उत्तसि : अहसत। हिपािली: इतयुतके िीपानाम् आिहल : । अयम् उत्तसि : काहतषकमासारस्य अमािस्यामा भिहत। काहत्तकमासस्य कृष्णापक्षस्य स्य िशीत: आरम्भय

मम माता िे िता।। अहतसरं ला, महय मृिुला गृिकुशला सा अतुला

काहतषक शुद्धहितीयापयत: आचयषते:एकत्र पि् सायंकाले सिे जनाोः िीपानां मालाोः प्रजिालयहत िीिाना प्रकाशोः अन्धकारम् अपनयहत | एतत्पिासरे गृिे, िे िालय, आश्रम, मेक, निी तीरे , समुद्रतीरे एं ि िीपान् जिालयत

मम माता िे िता ।। पाययहत िु ग्धं भ जयहत भक्तं लालयहत हनत्यम,त र्यहत हचत्रम्,त र्यहत हचत्रम्

िुशी धामी कक्षा- निमी ि

मम माता िे िता ।। सायड् काले नीराजयहत पाययहत च मां शुभम् कर हत, शुभम् कर हत

सिेभ्यःविविकाभ्यः च समहपषतम्

शुभम् कुरु त्वं कल्याणम् आर ग्यं धनसम्पिोः। िु ष्ट बुस्मद्ध हिनाशाय िीपज्य हतनषम स्तु ते ।। मम माता िे िता ।।

हकम् अस्मस्त तत् पिम् येोः लभते इि सम्मानम् हकम् अस्मस्त तत् पिम् योः कर हत िे शानाम्

हनमाष णम्

भारतीयभार्ासु बाहुल्येन संस्कृतशब्ाोः उपयुक्ताोः। संस्कृतात् एि अहधका भारतीयभार्ा उि् भूताोः। ताििे ि भारत-युर पीय-भार्ािगीयाोः अनेकाोः भार्ाोः

हकम् अस्मस्त तत् पिम्

संस्कृतप्रभािं संस्कृतशब्प्राचुयं च प्रिशषयस्मन्त।

यम् कुिषस्मन्त सिे प्रणामम् हकम् अस्मस्त तत् पिम्

व्याकरणेन सुसंस्कृता भार्ा जनानां संस्कारप्रिाहयनी

यस्य छायाया: प्राप्तम् ज्ञानम्

जगतोः सिाष सां भार्ाणाम् व्याकरणग्रन्थेर्ु अन्यतमा,

भिहत। अष्टाध्यायी इहत नाहि मिहर्षपाहणनेोः हिरचना िैयाकरणानां भार्ाहििां भार्ाहिज्ञाहननां च प्रेरणास्थानं इिास्मस्त।

हकम् अस्मस्त तत् पिम् योः रचयहत चररत्र जनानाम् 'गुरू' अस्मस्त अस्य पिस्य नाम सिेर्ाम् गुरूणाम् मम शंत शत प्रणामोः।।

संस्कृतिाङ्मयं हिश्विाङ्मये स्वस्य अहद्वतीयं स्थानम् अलङ्कर हत। संस्कृतस्य प्राचीनतमग्रनथाोः िेिाोः सस्मनत। िेि-शास्त्र-पुराण-इहतिास-काव्य-नाटक-िशषनाहिहभोः अनन्तिाङ्मयरूपेण हिलसन्ती अस्मस्त एर्ा िे ििाक्। न केिलं धमष-अथष-काम-म क्षात्मकाोः चतुहिषधपुरुर्ाथषिेतुभूताोः हिर्याोः अस्याोः साहित्यस्य श भां

कुमारी ताहनया कक्षा- सातिीं अ

िधषयस्मन्त अहपतु धाहमषक-नैहतक-आध्यास्मत्मक-लौहककपारलौहककहिर्यैोः अहप सुसम्पन्ा इयं िििाणी।

संस्कृत भाषाया महत्त्वम् ररहतका हसंि कक्षा- आठिीं स संस्कृतम् जगतोः अहतप्राचीना समृद्धा शास्त्रीया च भार्ा ितषते। संस्कृतम् भारतस्य जगत: च भार्ासु प्राचीनतमा।

सहसा वििधीत न वियाम्

संस्कृता िाक्, भारती, सुरभारती, अमरभारती, अमरिाणी, सुरिाणी, गीिाषणिाणी, गीिाष णी, िे ििाणी, िे िभार्ा, िै िीिाक् इत्याहिहभोः नामहभोः एतद्भार्ा प्रहसद्धा।

उज्जहयन्याम् माधिोः नाम हिप्रोः िसहत । एकिा तस्य भायाष हिप्रं कथयहत-अिम् तु स्नानाय गच्छाहम। भिान् बालस्य समीपे हतष्ठतु।तत्पश्चात् नृपस्य सेिकोः आगच्छहत

कथयहत च-िे ब्राह्मणिे ि! मया सि आगच्छ। राजा तुभ्यं श्राद्धाथं हनमन्त्रणं यच्छहत। हनमन्त्रणं प्राप्य ब्राह्मणोः

1.अस्मिन् संसारे मातुोः स्थानं सिौत्कृष्ट अस्मस्त । 2.मातृोः स्थानं गृिणां तु क ऽहप न समथषोः । 3.सा तु स्वगाष िीप गरीयसी ितषते।

हचन्तयहत-तत्र गन्तुम् इच्छाहम परम् बालस्य रक्षकोः अत्र क ऽहप न अस्मस्त। अधुना हकं करिाहण? हिप्रोः पुत्रेण

4.माता एिं परमं िै ितमसतुं ।

समम् नकुलं बालरक्षायै हनयुक्तं कृत्वा गच्छहत। नकुलोः

5.मातृरहधक हकमाहप पूज्यं नास्मस्त।

सपं दृष्वा हचन्तयहत-अये!एर्ोः सपषोः बालस्य समीपे आगच्छहत। नकुलोः सपं मारहयतुम् तत्परोः भिहत । नकुलोः इमं मारहयत्वा बालं रक्षाहम। यिा हिप्रोः गृिम्

6.िेतेर्ु पुरूर्ंगथेर्ु अहप मातुोः मिात्मय िहणि॓तम् । 7.सन्तहतपालने माता अन्याहन कष्टाहन सिते। 8.शैशिे पुत्रस्य कारण रात्रौअहप जागरणं कर हत ।

आगच्छहत तिा नकुलोः तस्य चरणय ोः लुठहत। ब्राह्मणोः रक्तहिहलप्तमुिपािं नकुलं दृष्वा हचन्तयहत कथयहत च हकम् अनेन मे बालोः िाहितोः?ब्राह्मणोः क्रुद्धोः भिहत।

नकुलं मारहयतुम उद्यतोः भिहत नकुलोः एि ि र्ी अस्मस्त । इहत हचन्तहयत्वा

9.स्वयं िु ोःिं सिते, हकन्तु पुत्राय सिं सुिं यच्छहत। 10.सा बालकस्य प्रथमोः गुरुोः अहप भिहत ।

जैनी कश्यप कक्षा- छठिीं ब

ब्राह्मणोः अहिचायष नकुलं मारयहत । अनन्तरं याित् समीपं गत्वा पुत्रं पश्यहत ताित् पुत्रोः

एषा मम धन्या माता

स्वस्थोः सपषोः च मृतोः हतष्ठहत । नकुलं ित्वा ब्रािमणोः आत्मानं मुहर्तं मन्यते । ब्राह्मणोः-िे

एर्ा मम धन्या माता । एर्ा मम धन्या माता।। ध्रुिपिम्।

नकुल! त्वं न, अिम् एि ि र्ी अस्मि। सत्यमेि उक्तम्सिसा हििधीत न हक्रयाम्।

या मां प्रातोः शय्यातोः जागरयहत सम्ब धनतोः।

अनन्या हसंि

िरस्मिरणं या कारयहत।

कक्षा- सातिीं ि

आलस्यं मम नाश्यहत।। एर्ा मम…।

"मातृिेिो भि "

कुरु ित्तं ग्रिकायषम् त्वम्,

कुरु सुत! पाठभ्यासं त्वम्। आिे श ििती एिम् य जयते काये हनत्यम्।। एर्ा मम…।

पुत्री आसीत्। अस्य पञ्चिशिर्ष पयषन्त हशक्षणं गृिे अभित्। सोः हिन्दी-उिू ष -आं ग्लभार्ा: पहठतिान्। हििे शात् ‘बैररस्टर' इत्युपाहधं प्राप्य स्विे शं भारतं प्रत्यागच्छत्। अस्य सम्पूणष पररिार िे शसेिातत्परोः आसीत्।' राष्टरसेिा' अस्य परम धमषोः आसीत्। कां ग्रेससंस्थायाम्-प्रहिश्य िे शस्य स्वतंत्रतायै

मधुरं िु ग्धं ििाहत या स्वािु फलं च ििाहत या। यच्छहत मिां हमष्टान्म् यच्िहत मिां लिणत्राम्।। एर्ा मम…।

संघर्षमकर त्। बहुिारं कारागृि यात्रामहप अकर त्। अयं मिान् िक्ता, मिान लेिकोः अहप आसीत्। स्वतंत्र भातस्य प्रथमप्रधानमंत्री अयं स्वराज्यस्थ रक्षकोः आसीत्। अस्य हिज्ञाने, साहित्ये, कलाक्षेत्रे रुहचोः आसीत्। अस्य हडस्किरी ऑफ इं हडया' इहत पुस्तक अतीि ल कहप्रयमस्मस्त। 1964 तमे िर्े िियगहत अिर धेन अस्य मृत्यु जातोः।

कायष सम्यक् न कर हम यिा,

हिश्व शास्मन्तिू त: अयं नेता सिाषहधकल कहप्रयोः आसीत्।

अपरांध हििधाहम यिा।

प्रधानमंत्री पिे स्मस्थतेन अनेन बहुहिधा राष्टरसेिा कृता।

कलिंकुिषन् र हिहम यिा तिा भ्रंश मां तजषयहत या।। एर्ा मम।

अस्य हृिये भारतीयानां प्रहत अपररहमत प्रेम आसीत् । अस्य चररतं सिे भारतीयैोः आचरणीम्। अस्य व्यस्मक्तत्वं सौम्यं प्रभािशाली, आकर्षकमासीत्। अतएि सोः सिेर्ा भारतीयानां हप्रय नेता अभित्। िैष्णिी म नेली

िहर्षता बजेठा

कक्षा - छठिीं ब

कक्षा- सातिीं अ मम विद्यालय: जिाहरलाल नेहरू जीिनपररचय:

नेिा- िंिने! ति हिद्यालय: कुत्रास्मस्त?

भारतिर्े अनेके मिापुरुर्ाोः जाताोः। तेर्ु मिापुरुर्ेर्ु

स हनया- मम हिद्यालय: अत्र एि नगरे अस्मस्त।

श्रीजिािर लाल नेिरू मिाभागस्य नाम क न जानाहत? स: स्वतंत्रभारतस्य प्रथम प्रधानमंत्री आसीत्। अस्य जन्म

नेिा- ति हिद्यालये कहत हशक्षका: सस्मन्त?

इलािाबाि नगरे आनन्दभिन नामके गृिे निम्बरमासस्य

स हनया- मम हिद्यालये एकािशाध्यापका: सस्मन्त।

चतुिषशताररकायात् भिन्। अस्य अयं जन्महििसोः एि अद्यहप ‘बालहििस' रूपेण सिे भारतीयाोः मानयस्मन्त।

नेिा- तत्र कती छात्रा: पठस्मन्त? स हनया- तत्र शताहधका:

अयं काश्मीर ब्राह्मणकुल त्पन्ोः आसीत्। अस्य हपतुोः नाम

छात्रा: पतठस्मन्त। ते सायं िेलस्मन्त।

श्री म ती लाल नेिरू, तथा मातु: नाम श्रीमती स्वरूपरानी आसीत्। मातास्य अतीि शालीना, धाहमषका च आसीत्। हपता म तीलाल मि ियोः प्रयागस्थ प्रहसद्ध िाक्कील: आसीत्। श्रीमती कमला अस्याोः धमषपत्नी, इस्मन्दरा चैका

नेिा - हकं ति हिद्यालये पररचारका: सस्मन्त? स हनया-आम् सस्मन्त , रमेश: िाम िर: चेहत हतस्न्: पररचाररका: अहप सस्मन्त।

नेिा- मम हिद्यालये एक: रामनाथनामक: पररचारक: अस्मस्त, य: पुस्तकालये कायष कर हत।

शुभ राठी कक्षा - आठिी स

स हनया - अिाकं हिद्यालये य: िाम िरनामक: पररचारक: अस्मस्त स: समय-समय घंटा िाियहत। नेिा- तिाग्रज: रहिंद्र:हकं कर हत?

संस्कृतस्य िैविष्ट्यम् - संस्कृत भारतस्य प्रवतष्ठा

स हनया- स तु संप्रहत िशम् कक्षायां पिहत।

_________

नेिा- श भनम्। एिंहिधा: छात्रा: जीिने सफला: भिस्मन्त। कुमकुम कक्षा- सातिीं अ

प्राचीनकाले भारतस्य जनभार्ा संस्कृतम् आसीत् इहत सिे जनाोः हििाङ् कुिषस्मन्त। संस्कृतस्य मित्त्वं ितषमानपररप्रेक्ष्ये अहधकम् अस्मस्त। अमेररकायाोः सिोकृष्ट

महात्मा गांधी

अनुसंधान संस्था "नासा" अस्मस्त। तस्याोः अहभमतम् अस्मस्त यि् आं तररक्षे संिािं प्रेर्हयतुं संस्कृतमेि उपयुक्तम् अस्मस्त। यत हि, यिा "नासा" इहत संस्थायाोः िैज्ञाहनकाोः अन्यभार्ायां संिािं प्रेर्यस्मन्त तिा संिािान् नैि सम्यकतया आन्तररक्षमुपगच्छस्मन्त। हकन्तु

मिात्मा गांधी एकोः मिापुरुर्ोः आसीत्। सोः भारताय

संस्कृतभार्ायाोः इिमेि िैहशष्यम् अस्मस्त, यत्

अजीित्। भारताय एि च प्राणान अत्यजत्। अस्य पूणं

संिािानाम् हिपरीत अिस्थायामहप न क ऽहप भेि भिहत

नाम म िनिास कमषचंि गांधी अस्मस्त। अस्य जन्म १८६९

एतिथं िैज्ञाहनकाोः संस्कृतभार्ायामेि संिािान् प्रेर्हयतुं

तमे ख्रीस्ताब्े अक्टू बर – मासस्य हद्वतीयायां हतथौ

समथाष ोः संजाताोः। इिानीं केचन जनाोः स्वीकुिषस्मन्त यत्

प रबंिर नाहि स्थाने अभित्। तस्य हपतुोः नाम कमषचंि

संस्कृतभार्ा केिलं पौर हित्य, कमषकाण्डाहि,

गां धी मातुश्च पुतलीबाई आसीत्। तस्य पत्नी कस्तूरबा

हनत्यनैहमहत्तक, कमषणान् कृते एि अस्मस्त। हकन्तु अयं

धाहमषका पहतव्रतानारी आसीत्।

हसद्धान्तोः तकषिीनोः ितषते। संस्कृते ज्ञानस्य सिाष ोः हिधाोः समुपलब्ाोः सस्मन्त। इहत िैिेहशकाोः हिद्वां सोः अहप स्वीकुिषस्मन्त। अिाकं परमकतषव्यमस्मस्त यि्

बाल्यकालािे ि एकोः सरलोः बालकोः आसीत्। सोः सिा

भारतीयसंस्कृतेोः रक्षणायोः भारतस्य प्रहतष्ठां स्थापनाय च

सत्यम् ििहत ि। सोः आचायाष णां हप्रयोः आसीत्।

संस्कृतभार्ायाोः अध्ययनम् अध्यापनम् च हनतराम् अिाहभोः कतषव्यम्।

उच्चहशक्षायैोः सोः आं ग्लिे शमगच्छत। स हििे शगमनसमये मातुोः आज्ञया सोः संकस्मल्पतिान् यत् अिम् मद्यं न सेहिष्ये, मां सस्पशषमहप न कररष्याहम एिं सिा ब्रह्मचयं आचररष्याहम। स्विे शमागत्य सोः िे शस्य सेिायाम् संलग्नोः अभित्। अस्य ईश्वरे दृढोः हिश्वासोः आसीत्। सोः आं ग्लशासकानां हिर धे सत्याग्रिां ि लनम् प्राितषयत। तस्य श्रद्धा अहिं सायाम् आसीत्। तस्य सिषोः समयाोः, सिषोः शस्मक्तोः, सिषोः धनम् च िे शाय एिासीत्।

ररहतका हसंि कक्षा- आठिीं स

सज्जन : िु जजन:च आचायष। हिद्याभ्यासाथषम् अिम् आगतोः। मूिषस्य पञ्च हचन्हाहन, गिो िु िषचनं तथा। क्र धश्च दृढिािश्च परिाक्येष्वनािरोः॥

पस्मण्डतोः हशष्यबुस्मद्धपरीक्षाथं पृच्छहत

मूिों के पााँच लक्षण िैं - गिष, अपशब्, क्र ध, िठ और िू सर ं की बात ं का अनािर॥

ित्स। िे िोः कुत्र अस्मस्त।

अतोः िमें इन िु गुषण ं से बचना चाहिए। हशष्योः ििहत अष्टौ गुणा पुरुर्ं िीपयंहत, प्रज्ञा सुशीलत्व-िमौ श्रुतं च। पराक्रमश्च-बहुभाहर्ता च,

गुर । िे िोः कुत्र नास्मस्त। कृपया भिान् एि समाधानं िितु।

िानं यथाशस्मक्त कृतज्ञता च॥ आठ गुण पुरुर् क सुश हभत करते िैं - बुस्मद्ध, सुन्दर

सन्तुष्टोः गुरुोः ििहत

चररत्र, आत्म-हनयंत्रण, शास्त्र-अध्ययन, सािस, हमतभाहर्ता, यथाशस्मक्त िान और कृतज्ञता।

आहित्य शमाष

िे िोः सिषत्र अस्मस्त। िे िोः सिषव्यापी। त्वं बुस्मद्धमान्। अतोः

हिद्याभ्यासाथषम् अत्रैि िस।

कक्षा - निमी ि

बुद्धिमान् विष्यः

काशीनगरे एकोः पस्मण्डतोः िसहत|

पस्मण्डतसमीपम् एकोः हशष्योः आगच्छहत।

सक्षम गौतमोः कक्षा - सातिीं ि

हशष्य ििहत

समय: समय: हनरं तरं चलहत |

िृक्षे हि कुिषस्मन्त हििगाोः नीडम् , केहचत् तु कुिषस्मन्त काष्ठे हि हछद्रम् । आतपे हतष्ठहत िर्ाषनुिर्षम् , अन्येर्ां कर हत छायाप्रिानम् ।।जलिातप्रकाशैोः हनमाष हत अन्म , तेन हि

न किाहप हिश्रामं कर हत |

अन्ेन िधषते हनत्यम् । िृक्षस्य दृश्यताम् सिषम् हि कायषम् ,

य: अस्य पालंन कर हत |

हििगाोः नीडम् , केहचत् तु कुिषस्मन्त काष्ठे हि हछद्रम् ।

स: सिषिा उत्तमं फलम् प्राप्न हत यहि अस्य क ऽहप िु रूप्रय गं कर हत | सोः किाहप प्रगहतम् न कतुषम् शकन हत | अयं जीिनस्य आधार: अस्मस्त | अयमेि जीिनस्य सार:अस्मस्त |

जीिनं तस्यास्मस्त पर पकाराथषम् ।। िृक्षे हि कुिषस्मन्त आतपे हतष्ठहत िर्ाष नुिर्षम् , अन्येर्ां कर हत छायाप्रिानम् ।। िृक्ष नैि अहत्त रे स्वकीयं फलम् , सिषम् हि अंगम् तस्य ल कहिताथषम् । जनाोः न िरस्मन्त तस्य उपकारम् , बहुधा कुिषस्मन्त िृक्षच्छे िनम् ।। मास्तु रे मास्तु ईदृशं पापं , यथाशस्मक्त हक्रयताम् िृक्षार पणम् । नैि रे नैिास्तु िृक्षकतषनम् ' , सिे हि

अत: अिाहभ: सिा समयस्य सिु पय ग: करणीय:

कुिषन्तु ति् संिधषनम् ।।

समय: गहतमान: अस्मस्त |

अचषना गौतम

समय: कस्याहप प्रतीक्षां न कर हत |

कक्षा- छठिीं स

नाम - प्रशांत

विधाधनम्

कक्षा - सप्तमी अ

हिद्या धनं सिषधनं प्रधानम् इहत सिेोः स्वीहक्रयते, यत हि हिधया एि सिे जनाोः सिाष हण कायाष हण साधहयतुं समथाष : भिस्मन्त | हिद्यां प्राप्य उन्हतं, कीहतं, सुिसमृस्मद्धं च लभंते

जय िृि ! जय िृि

हिद्वां सोः | यिु क्तं केनहचत्-

श्रूयताम् सिे िृक्षपुराणम् , हक्रयताम् तथा िृक्षार पणम् । िृक्षस्यास्मस्त सुन्दरम् याहत मूलं बहुिू रम् ।। मूलेपी अन्म् , तस्य काष्ठं कहठनम् , काष्ठं कहठनं भिहत इन्धनाथषम् । पणेर्ु भिहत िररतद्रव्यम् , अत हि अस्मस्त रे पणष िररतम् ।। पुष्पम् सुन्दरम् , अतीि म िकम , पुष्पम् तस्य भिहत रे िे िपूजाथषम् । फलम् रसमयं , तस्य फलं स्वािपूणषम् , फलम् हि अस्मस्त रे िगस्य अन्म् ।।

मातेि रक्षहत हपतेि हिते हनयुक्ते कान्तेि चाहभरमयत्यपनीयिेिम् | लक्ष्ीं तन हत हितन हत च हिक्षु कीहतष हकं हकं न साधयहत कल्पलतेि हिधा ।। हिधाधनं व्ये कृते िधषते, संचायत् च क्षयम् आप्र हत, एतिाि् इिं अपूिषम् एि धनं। अत एि क्तम् -

जलिातप्रकाशैोः हनमाष हत अन्म , तेन हि अन्ेन िधषते हनत्यम् । िृक्षस्य दृश्यताम् सिषम् हि कायषम् , जीिनं तस्यास्मस्त पर पकाराथषम् ।।

अपूिषोः क अहप क र् Sयं हिधते, ति भारहत। व्यत िृस्मद्धमायाहत क्षयमायाहत संचयात्।।

नृपाोः, राष्टर,- पतयोः, मुख्यमंहत्रण:, प्रधानमंहत्रण

अहप

हिहिधहिर्यहिशेर्ज्ञानां , किीनां , िैज्ञाहनकानां महतमतां हििु र्ां समािरं कुिाष णा: तेर्ां उत्साििधषनं कुिस्मन्त पुरस्कारै :। अत अिाहभरपी हिधा पूणषमन य गेन पठनीया, ग्रिणीया हिधाहििीना पशु इहत हनहिषिािे न हसध्यहत। मानसी कक्षा - निमी ि

सम्भािना मानिजाहत्तम् आक्रान्तां कर हत, येन हिश्वस्य भयंकर नाश भहितुं शक्न हत । अतोः आिश्यकता अस्मस्त यत् मानिोः मानिं प्रहत बन्धुित् आचरणं कुयाष त्। एकोः िे शोः अन्येन िे शेन सि बन्धुतायाोः व्यििारं कुयाषत् । सबलाोः िे शाोः िु बषलानां िे शानाम् उपरर आक्रमणं न कुयुषोः। स्वाथषस्य ल लुपत्तायाोः मित्त्वाकाङ्क्षायाोः च स्थाने पर पकारस्य, ियायाोः, त्यागस्य, परस्पर सिय गस्य प्रसार भिेत्। च यद्यहप शास्मन्तस्थापनाथं संयुक्तराष्टरसंघोः, हनगुषटान्द लनम्, अन्याहन संघटनाहन च सततं प्रयत्नं कुिषस्मन्त, तथाहप स्वाथषस्य, अिंकारस्य, शस्मक्तिधषनस्य च

विश्वबंधुत्वम्

िू हर्तेन भािेन भान्ताोः केहचि् िे शाोः

हिश्वस्य सिाष न् जनान् प्रहत बन्धुत्वस्य भाि एिं

संघर्षरताोः सस्मन्त, हिर धोः येन अशास्मन्त िधषते । अनेन

हिश्वबन्धुत्वम् इहत कथ्यते । शास्मन्तमय जीिना

मानिोः एि मानििन्ता सज्जातोः । सिषत्र प्रेम्णोः

हिश्वबन्धुत्वस्य भािना हनतरा मित्वं भजते। भािनेर्ा अपररिायाष आिश्यकता। सिषजनहित सिषजनसुि च बन्धुत्वं हिना न सम्भिहत। हिश्वबन्धुत्वम् एि दृष्टी हनधाय केनाहप मनीहर्ण। हनहिष ष्टम्

बन्धुतायाोः च अभाि ितषते, याभ्यां हिना शास्मन्तोः जीिने िु लषभा जाता।

अयं हनजोः पर ं िेहत गणना लघुचेतसाम् । उिारचररतानां

संसारे सिेर्ु मानिेर्ु समानं रक्तं प्रििहत, सिेर्ां च

तु िसुधैि कुटु म्बकम् ।।

हनयन्तैकोः एि अस्मस्त। एतत्सिं जानन्तोः अहप जनाोः स्वाथषपरायणतया परस्परं कलिं कुिषस्मन्त। अस्य मूल कारणं हिश्वबन्धुतायाोः अभाि एिं अस्मस्त। अत एि सिेर्ु

साम्प्रतम् जगहत सिषत्र कलिस्य अशान्तेोः च साम्राज्यं

हिश्वबन्धुत्वस्य भािना हनतान्तम् अपेहक्षता ितषते।

व्याप्तम् अस्मस्त। पेन साधनसम्पन्ोः अहप मानिोः सुिस्य

हिश्वबन्धुत्वे इयमेि भािना

स्थाने िु ोःिम् एि अनुभिहत। यद्यहप ज्ञानबलेन मानिोः इिानी िायुयानेन आकाशे हिचररतुं, जलप तेन सागरानू सन्ततुष, रे लयानेन हिश्वभ्रमणं कतुं ग्राध्यानेन चन्द्राहिग्रिे र्ु

सहन्हिता हिद्यते

च गन्तुं समथषोः अस्मस्त, तथाहप परस्परं सम्बन्धानां कटु तया स अशान्तोः एि दृश्यते, कष्टं च अनुभिहत। अस्य प्रधान कारण बन्युतायाोः अभािोः एि ।

"सिे भिन्तु सुस्मिनोः सिे सन्तु हनरामयाोः । सिे भद्राहण पश्यन्तु मा कहश्चि् िु ोःिभागू भिेत् ।।"

हिगतय ोः िद्वय ोः हिश्वयुद्धय ोः हिनाशलीलां सिे जानस्मन्त एि । इिानीं तृतीयस्य युद्धस्य

प्राची

कक्षा- निमीं ब

श हभत ऽस्मि हशिण्डे न िीघेोः पक्षैरलङ् कृतोः । राहष्टरय हििगश्चास्मि, नृत्यं पश्यस्मन्त मे जनाोः ।। 2 ।।

लुब्धः शृगालः

पहठत नास्म्यिं हकहञ्चत् तथाहप साक्षर ऽस्म्यिम् । पािै हिषनैि गच्छाहम कथयाहम हिना मुिम् ।।3।।

कश्चन व्याधोः आस्मस्त। सोः एकिा मृगयाथं िनं गतिान। बहु कालान्तरं सोः एकं िरािं हचत्रटिन । तं लक्ष्यीकृत सोः बाणप्रय गं कृतिान । िरािस्य शरीर मिान् व्रणोः जाप्ताि। व्रहणतोः िरािोः क प व्याधस्य उपररं कृतिानं।

क्वहचत् प्रस्तरतुल्य ऽस्मि क्वहचच्च तरलं पुनोः । क्वहचद्वायुसमं सूक्ष्ं, मां पश्यस्मन्त सिा जनाोः ।। 4 ।।

स्मस्वयाहभोः तीक्ष्णाहभोः िं ष्टराहभोः तस्य शरीरं हिहिनषिान। तेन व्याधोः मृतोः। बाणप्रिारिेिनया िराोः अहप मृतोः । तस्मिन्स िाने कश्चन शृगालोः आहसत् । सोः अतीि लुब्ोः ।

रे फािौ मकार ऽन्ते िाल्मीहकोः यस्य गायकोः । सिषश्रेष्ठं

सोः शृगालोः नाशन्वेशन कुरिन् तत्र इम्स आगतिान ।

यस्य राज्यं िि क ऽसौ जनहप्रय।। 5।।

व्याधस्य िरािस्य च मृतं शरीरं सोः हचत्रटिान । तत् हचत्रत्व सोः हचस्मन्ततिान ‘अद्य मम िै िम् अनुपयुक्तम् अस्मस्त। यहतष्टम्: हिनयसंस् ल्ब्ब्ोः। एर्ोः नाोः बहुहिनानां कृते: भहिष्यहत। अहि हकस्मििे ि िां इहत। नरं सोः व्याधस्य शरीरं पररशीहलतिान् । तस्यस्य पाश्वष पाश्वष

य हगता कक्षा- सातिीं अ

कक्कोः: मुख्य रूप से पहत आसीत। कचके चमाष िगाषबद्ध रज्जुोः आसीत् । तत् हचत्रत्वा शृगलोः ‘ अद्य एतां चमषणोः रज्जु िाहम । िू सर ं के साथ सबंहधत िााँ सम्बस्मनद्धत िान् । कड़कस्य एक क हटं मुिे स्थापत्य्िा सोः िन्तैोः रज्जु जग्धिान। यिा | रज्जुोः भग्ना तिाकाकस्य क हट: शृगलस्य मस्तकुंहिियष बहिोः आगता। शृगलोः शीता िेिनया प्रभाि मृतोः अभित् |

भारतीयसंस्कृते: कस्याहप राष्टरस्य जनानां योः साधारणतया पररष्कृत हिशुद्ध उत्तम आचार व्यििारश्च भिहत स एि तस्य राष्टरस्य संस्कृहतरुच्यते । भारतीयसंस्कृतेररिं िैहशष्य यत् प्राचीनकालािे ि या संस्कृहतरत्र पल्लहिता साँिाधुनाहप अक्षुण्णाऽत्र दृश्यते । अस्मस्त अस्यां संस्कृतौ हकहञ्चिे िंहिधं

भािेश कणष कक्षा- सातिीं ि

यि् उत्कृष्टतमं यच्च न किाहप क्षहय । अस्याोः संस्कृतेोः उिात्तत्विशषनं न केिलं संस्कृसाहित्ये एि भिहत, अहपतु ग्रामे ग्रामे नगरे नगरे ल कजीिने च भिहत । अहिं सासत्यास्तेयाहिधमाषस्तादृशा एि । समन्वय हि भारतीयसंस्कृतेमूषलतत्त्वम् । अिािे ि कारणाित्र बढ्य

प्रहेवलकाः

िैिेहशक्योः संस्कृतयोः समायाताोः परन्तु ताोः सिाष एि भारतस्य संस्कृती हिलीनाोः । भारतीयधाहमषककृत्यानां भारतीयपूजाहिधीनां च तादृशमस्मस्त स्वरूपं यत्तत्र

िन्तैिीनोः हशलाभक्षी हनजीि बहुभार्कोः । गुणस्यूहतोः समृद्ध ऽहप परपािे न गच्छहत ।।1।।

प्राचीनािाचीनय ोः पौरस्त्यपाश्चात्यय श्च ससुिं सम्मेलनं सम्भाव्यते । भारतस्य हिहिधेर्ु प्रिे शेर्ु हिहिधा जनाोः हिहिधिेर्धाररण हिहिधभार्ाभाहर्ण ऽहप हिहिधिे िान् पूजयन्त ऽहप हृिये समाना एि । सिष एि एकमेि

परमेश्वरं मन्यन्ते, सिेर्ु तीथेर्ु सिेर्ां समानािर

िैिेहशक्योः संस्कृतयोः समायाताोः परन्तु ताोः सिाष एि

दृश्यते गङ्गा सिेर्ामेि पूज्यतमा, गां च सिष एि मातरं

भारतस्य संस्कृती हिलीनाोः । भारतीयधाहमषककृत्यानां

मन्यन्ते । सिषत्र हििािाहिसंस्कारे र्ु त एिं िैहिकमन्त्री

भारतीयपूजाहिधीनां च तादृशमस्मस्त स्वरूपं यत्तत्र

उच्चायषन्ते । अमतषमनाहिमनन्तं परमम् आत्मानं सिष एि

प्राचीनािाचीनय ोः पौरस्त्यपाश्चात्यय श्च ससुिं सम्मेलनं

जना हिश्वस्य आधारभूतं मन्यन्ते । मद्यधूताहिव्यसनाहन

सम्भाव्यते । भारतस्य हिहिधेर्ु प्रिे शेर्ु हिहिधा जनाोः

सकले भारते हननद्यन्ते । कमषफलानुसारे ण पुनजषन्महन

हिहिधिेर्धाररण हिहिधभार्ाभाहर्ण ऽहप हिहिधिे िान्

सिषत्रैि हिश्वास दृश्यते ।।

पूजयन्त ऽहप हृिये समाना एि । सिष एि एकमेि

इयं समन्वयभािनैि सिषत्र साहित्येऽहप दृग्ग चरीभिहत । िेिेर्ु गीतायां च ियं ज्ञानकमोपासनासमुच्चयं पश्यामोः । अस्या भािनाया आधारे एि अिाकं मिहर्हभराचायैश्च पुरा समाजोः चतुर्ु िणेर्ु कमाष नुसारं हिभक्तोः यत हि समाज त्थानाय सिेर्ां िणाष नां समस्मन्वतोः प्रयास ऽपेक्ष्यते । तथैि च पूणष जीिनसाफल्याय मनुष्यजीिनं चतुर्ु ब्रह्मचयषगृिस्थिानप्रस्थसंन्यासाख्येर्ु आश्रमेर्ु हिभक्तम् ।

परमेश्वरं मन्यन्ते, सिेर्ु तीथेर्ु सिेर्ां समानािर दृश्यते गङ्गा सिेर्ामेि पूज्यतमा, गां च सिष एि मातरं मन्यन्ते । सिषत्र हििािाहिसंस्कारे र्ु त एिं िैहिकमन्त्री उच्चायषन्ते । अमतषमनाहिमनन्तं परमम् आत्मानं सिष एि जना हिश्वस्य आधारभूतं मन्यन्ते । मद्यधूताहिव्यसनाहन सकले भारते हननद्यन्ते । कमषफलानुसारे ण पुनजषन्महन सिषत्रैि हिश्वास दृश्यते ।।

एते चत्वार ऽहप आश्रमाोः समस्मन्वतरूपेणैि जीिनस्य

इयं समन्वयभािनैि सिषत्र साहित्येऽहप दृग्ग चरीभिहत ।

पूणषतां सम्पाियस्मन्त, न त्वेकैकशोः । अयं समन्वय एिं

िेिेर्ु गीतायां च ियं ज्ञानकमोपासनासमुच्चयं पश्यामोः ।

भारतीयसंस्कृतेोः प्राणाोः अनेनैि च सस्मम्मल्यािाहभोः

अस्या भािनाया आधारे एि अिाकं मिहर्हभराचायैश्च

स्वातनयमहधगतम् । सिषत्रैि भारते धामक त्सिेर्ु कृष्या

पुरा समाजोः चतुर्ु िणेर्ु कमाष नुसारं हिभक्तोः यत हि

सि सम्बन्ध ऽन्यि् िैहशष्यमस्याोः संस्कृतेोः । कृहर्प्रधाना

समाज त्थानाय सिेर्ां िणाष नां समस्मन्वतोः प्रयास ऽपेक्ष्यते ।

िीयं संस्कृहतोः ग्रामप्रधाना च । अत एि ियं सरलजीिनम्

तथैि च पूणष जीिनसाफल्याय मनुष्यजीिनं चतुर्ु

अनुसरन्त ऽहप उत्कृष्टानािशाष न्

ब्रह्मचयषगृिस्थिानप्रस्थसंन्यासाख्येर्ु आश्रमेर्ु हिभक्तम् ।

रामकृष्णबुद्धाहिमिापुरुर्ाणां धारयामोः ।।

एते चत्वार ऽहप आश्रमाोः समस्मन्वतरूपेणैि जीिनस्य

अनन्या ग स्वामी कक्षा आठिीं स

पूणषतां सम्पाियस्मन्त, न त्वेकैकशोः । अयं समन्वय एिं भारतीयसंस्कृतेोः प्राणाोः अनेनैि च सस्मम्मल्यािाहभोः स्वातनयमहधगतम् । सिषत्रैि भारते धामक त्सिेर्ु कृष्या सि सम्बन्ध ऽन्यि् िैहशष्यमस्याोः संस्कृतेोः । कृहर्प्रधाना िीयं संस्कृहतोः ग्रामप्रधाना च । अत एि ियं सरलजीिनम्

भारतीयसंस्कृते: कस्याहप राष्टरस्य जनानां योः साधारणतया पररष्कृत हिशुद्ध उत्तम आचार व्यििारश्च भिहत स एि तस्य राष्टरस्य संस्कृहतरुच्यते । भारतीयसंस्कृतेररिं िैहशष्य यत् प्राचीनकालािे ि या संस्कृहतरत्र पल्लहिता साँिाधुनाहप

अनुसरन्त ऽहप उत्कृष्टानािशाष न् रामकृष्णबुद्धाहिमिापुरुर्ाणां धारयामोः ।। अनन्या ग स्वामी कक्षा -आठिीं



अक्षुण्णाऽत्र दृश्यते । अस्मस्त अस्यां संस्कृतौ हकहञ्चिे िंहिधं यि् उत्कृष्टतमं यच्च न किाहप क्षहय । अस्याोः संस्कृतेोः उिात्तत्विशषनं न केिलं संस्कृसाहित्ये एि भिहत, अहपतु

चाणक्य नीवत श्लोक

ग्रामे ग्रामे नगरे नगरे ल कजीिने च भिहत । अहिं सासत्यास्तेयाहिधमाषस्तादृशा एि । समन्वय हि भारतीयसंस्कृतेमूषलतत्त्वम् । अिािे ि कारणाित्र बढ्य

कहश्चत् कस्यहचस्मन्मत्रं, न कहश्चत् कस्यहचत् ररपु:। अथषतस्तु हनबध्यन्ते, हमत्राहण ररपिस्तथा ॥

मूिषहशष्य पिे शेन िु ष्टास्त्रीभरणेन च। िु ोःस्मितैोः सम्प्रय गेण पस्मण्डत ऽप्यिसीिहत॥

िु ष्टा भायाष शठं हमत्रं भृत्यश्च त्तरिायकोः। ससपे गृिे िास मृत्युरेि न संशयोः॥

राष्ट्रभाषा राष्टरस्य जनाोः मुख्यतोः भार्ां ििस्मन्त सा एि राष्टरभार्ा भिहत । हिन्दी अिाकं राष्टरभार्ा अस्मस्त । अस्यां भार्ायां भारतस्य अहधकतमा जनाोः िाताषलापं कुिषस्मन्त । इयं हि सुब धा भार्ा अस्मस्त । अस्याोः हलहपोः अतीि, िैज्ञाहनका अस्मस्त । अस्याोः साहित्यम् अहतसमृद्धम् अस्मस्त । इिानीं अिरिोः अस्याोः उन्हतोः भिहत । अस्याम् एि सूर-कबीर-

धहनकोः श्र हत्रय राजा निी िैद्यस्तु पञ्चमोः। पञ्च यत्र न हिद्यन्ते न तत्र हििसे िसेत ॥

तुलसी-प्रसाि प्रमुिाोः कियोः हिराजन्ते । अस्याोः उन्हतोः एि राष्टरस्य उन्हतोः मूलमस्मस्त । अतोः अिाहभोः सिा अस्याोः भार्ायाोः उन्त्यै यत्नोः करणीयोः। िेिांत

जानीयात्प्रेर्णेभृत्यान् बान्धिानव्यसनाऽऽगमे। हमत्रं याऽऽपहत्तकालेर्ु भायां च हिभिक्षये ॥

यस्मिन् िे शे न सम्मान न िृहत्तनष च बान्धिाोः। न च हिद्यागम ऽप्यस्मस्त िासस्तत्र न कारयेत् ॥

कक्षा- छठिीं अ

गंगानिी अिाकं िे शे सिाष सु निीर्ु गंगा अहतश्रेष्ठा प्रधाना पहित्रतमा च ितषते । इयम् हिमालयात् हनोःसृत्य बंग पसागरे पतहत । अस्याोः पािने तटे हिशालाोः प्राचीनाोः

माता यस्य गृिे नास्मस्त भायाष चाहप्रयिाहिनी। अरण्यं तेन

नगयषोः स्मस्थताोः सस्मन्त, यथा-िररद्धारोः, प्रयागोः, िाराणसी,

गन्तव्यं यथारण्यं तथा गृिम् ॥

पाटहलपुत्राहि । अिाकं सभ्यता-संस्कृहत एर्ु नगरे र्ु उन्ता जाता । गंगा एि भारतिर्षस्य धाहमषक हिचारधारायाोः पाररचाहयका अस्मस्त । हचरकाल-रहक्षतेऽहप

आपिथे धनं रक्षेि् िारान् रक्षेि् धनैरहप। आत्मानं सततं

गंगाजले कीटाणिोः प्रभिस्मन्त । अतएि गंगानिी हनत्या

रक्षेि् िारै रहप धनैरहप ॥

पूजनीय, िन्दनीया, सेिनीया च । भारतीयाोः जनाोः गंगायाोः जलस्य मात्र सेिनं न कुिषस्मन्त अहपतु िे िित् पूजयस्मन्त च । गंगािरणमात्रेण पापोः हशरोः धुन हत इहत

ल कयात्रा भयं लज्जा िाहक्षण्यं त्यागशीलता। पञ्च यत्र न

कथ्यते ।

हिद्यन्ते न कुयाष त्तत्र संगहतम् ॥ पहतत द्धाररहण जाह्नहि गङ्गे िस्मण्डत हगररिरमस्मण्डत भङ्गे आतुरे व्यसने प्राप्ते िु हभषक्षे शत्रुसण्कटे । राजद्वारे श्मशाने च याहत्तष्ठहत स बान्धिोः ॥

। भीष्म जनहन िे मुहनिरकन्ये पहततहनिाररहण हत्रभुिन

अनन्या

संजय कुमार

कक्षा- निमी अ

कक्षा- आठिीं अ

धन्ये॥

मिाभारतं पुराणाहन िशषनग्रन्थाोः िृहतग्रन्थाोः काव्याहन मााँ

नाटकाहन गद्य-नीहत-आख्यानग्रन्थाश्च अस्यामेि भार्ायां हलस्मिताोः प्राप्यन्ते। गहणतं, ज्य हतर्ं, काव्यशास्त्रमायुिेिोः, अथषशास्त्रं राजनीहतशास्त्रं छन्दोःशास्त्रं ज्ञान-हिज्ञानं तत्वजातमस्यामेि संस्कृतभार्ायां समुपलभ्यते। अनेन संस्कृतभार्ायाोः हिपुलं गौरिं स्वमेि हसध्यहत।

मााँ , मााँ त्वम् संसारस्य अनुपम् उपिार, न त्वया सदृश्य कस्याोः स्नेिम्,

काहतषक हसंि

करुणा-ममतायाोः त्वम् मूहतष,

कक्षा- सातिीं ब

न क अहप कत्तुषम् शक्न हत ति क्षहतपूहतष। ति चरणय ोः मम जीिनम् अस्मस्त, ‘मााँ ’शब्स्य महिमा अपार,

जागरूक:जम्बुक: कहसंमस्मचचत् िनप्रिे श िरनिर: नाम हसंि: हनिसहत ि

न मााँ सदृश्य कस्याोः प्यार,

। स किाहचत् बुभुक्षया इतस्तत: भ्रमन् आसीत् । परन्तु

मााँ त्वम् संसारस्य अनुपम् उपिार।

मितीं गुिां िष्टिान् । “अत्र क ऽहप मृग: रात्रौ

कमहप मृगं न प्राप्तिान् । तत: सूयाष स्तमनसमये पिषते आगहमष्यहत । अतोः अिम् अत्रैि गुप्त: हतष्ठाहम ।” तत: तस्या: गुिाय: हनिासी िहधपच्छ: नाम हश्रगाल: आगतिान्

हिव्यां शी हसंि कक्षा - सातिीं अ

। स गुिां प्रहिष्टस्य कहसंमस्मचचत् िनप्रिे श िरनिर: नाम हसंि: हनिसहत ि । स किाहचत् बुभुक्षया इतस्तत: भ्रमन् आसीत् । परन्तु कमहप मृगं न प्राप्तिान् । तत: सूयाष स्तमनसमये पिषते मितीं गुिां िष्टिान् । “अत्र क ऽहप मृग: रात्रौ आगहमष्यहत । अतोः अिम् अत्रैि गुप्त:

मम वप्रया भाषा संस्कृत वनबंध सम्यक् पररष्कृतं शुद्धमथाषि् ि र्रहितं व्याकरणेन संस्काररतं िा यत्तिे ि संस्कृतम्। एिञ्च सम् -

हतष्ठाहम ।” तत: तस्या: गुिाय: हनिासी िहधपच्छ: नाम हश्रगाल: आगतिान् । स गुिां प्रहिष्टस्य हसंिस्य पिपद्धहतं िष्टिान् , न तु बहि: आगतस्य ।

उपसगषपूिषकात् कृधात हनषष्पन् Sयं शब् संस्कृतभार्ेहत

तत: हचस्मन्ततिान् । "अि ! हकहमिम् ? गुिाया: अन्त:

नाम्रा सम्ब ध्यते। सैि िे िभार्ा गीिाष णिाणी, िे ििाणी,

हसंि: स्यात् । हकं कर हम ? कथं जानाहम ?" एिं हिहचन्त्य

अमरिाणी, गीिाष हगत्याहिहभनाष महभोः कथ्यते। इयमेि

गुिाया: द्वारे हसथत्वा उच्चै: आहूतिान् । "अि हबल !

भार्ा सिाष सां भारतीयभार्ाणां जननी, भारतीयसंस्कृतेोः

अि हबल !" कहञ्चत् कालं तूष्णी भूत्वा पुनोः तथैि

प्राणस्वरूपा, भारतीयधमषिशषनाहिकानां प्रसाररका,

उत्तकिान् । "भ : ! हकमषथ न ििहस ? प्रहतहिनं यिा

सिाष स्वहप हिश्वभार्ासु प्राचीनतमा सिषमान्या च मन्यते।

अिम् आगच्छाम तिा मया ति आह्वानं हक्रयते । त्वया च मम: उत्तरं िीयते । यहि मम उत्तरं न प्रयच्छहस, तहिष अिम् अन्यहबलं गहमष्यामी ।" श्रृगालस्य िचनं श्रुत्वा

अिाकं समस्तमहप प्राचीनं साहित्यं संस्कृतभार्ायामेि रहचतमस्मस्त, समस्तमहप िैहिक साहित्यं रामायणं

हसंि: हचस्मन्ततिान । "नूनं यिा स: आगस्मच्छत तिा एर्ा गुिा प्रहतहिनम् उत्तरं हियते । अध तु मभ्ियात् न ििहत।

अतोः अिमेि तम् आह्वयाहम । तत् श्रुत्वा प्रहिर्टं श्रृगालम् अिं भक्षयाहम ।" तथैि हसंिेन कृतम् । हसंिनािस्य प्रहतधिहनना गुिा पूणाष । िने िू रे स्मस्थता: अन्ये मृगा: अहप भीता: अभिन् ।श्रृगाल: झहटहत पलायनं कृतिान ।

अत एि उच्यते,

अनागतं य: कुरुते स

श भते स श च्यते य न कर त्यनागतम्। िनेऽत्र संस्थस्या समागता जरा हबलस्य िाणी न किाहप मे श्रुता ।। आहशफ रजा शाि कक्षा- छठिीं ि

चन्द्रिेखर आजाि चन्द्रशेिरस्य जन्म उन्ािजनपिे बिरका नामक ग्राम अभित्। तस्य हपतुोः नाम श्री बैजनाथोः आसीत्। यिा चन्द्रशेिरोः एकािशिर्ष िे शीयोः आसीत् ‘जहलयांिाला’ काण्डस्य नृशंसताम श्रुत्वा सोः क्रूरशासनस्य उन्मूलनस्य प्रहतज्ञां अकर त्। चतुिषशिं सोः अध्ययन त्यक्त्वा स्वतंत्रता आन्द लने प्रिेश अकर त्। प्राप्तये अयं बहुिारं कारागारं अगच्छत्। िाराणस्यां क्वींसकॉलेज प्रहसद्धस्य संस्कृतमिाहिद्यालये अयं बहिष्कारान्द लनं समचालयत्। 1931 तमे िर्े फरिरी मासस्य सप्तहिंशे हिनां के स्वहमत्रेण सुििे िराजेन सि उपहिशन् नाटबािरे ण अन्ये च राजपुरुर्ाोः तं सिषतोः सिसा आक्राम्यन्। घंटैकं उभयतोः गुहलकािृहष्टोः सञ्जाताोः। एकतोः एकाकी आजािोः अन्यतोः िोः बििोः शत्रिोः। यिा गुहटकाोः समाप्तप्रायाोः अभिन् तिा अंहतमया गुहलकया आत्मानं ित्या स्वकीयम् ‘आजाि’ इहत नाम साथषकम् अकर त्। अनन्या हसंि सप्तमोः ि

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