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Story Transcript

मित्रता

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल सन् 1884 जन्म बस्ती जिले का आगोना ग्राम जन्म स्थान चन्द्रबली शुक्ल पिता का नाम एफ. ए . (इण्टरमीडिएट) शिक्षा अध्यापन,लेखन, प्राध्यापक आजीविका सन् 1941 मृत्यु आलोचना, निबंध, नाटक, पत्रिका, काव्य, इतिहास, आदि लेखन विधा निबन्धकार,अनुवादक,आलोचक,सम्पादक साहित्य मे पहचान शुद्ध साहित्यक, सरल एव व्यावहारिक भाषा भाषा वर्णनात्मक, विवेचनात्मक व्याख्यात्मक आलोचनात्मक शैली साहित्य मे स्थान शुक्लजी को हिन्दी साहित्य के जगत में आलोचना का सम्राट कहा जाता है

Book summary

सच्चे मित्र का चयन : एक बड़ी समस्या

जब कोई युवा अपनी किशोरावस्था के बाद घर की चाहरदीवारी से निकलकर बाहर की दुनिया में कदम रखता है तो उस समय उसके सामने सबसे बड़ी समस्या एक सच्चा मित्र बनाने की होती है। यदि वह थोड़ा-सा सामाजिक है, बोलचाल में कु शल होता है, तो शीघ्र ही उसकी जान-पहचान बहुतसे लोगों से हो जाती है और उनमें से कु छ उसके मित्र भी बन जाते हैं, ले किन जब वह युवा दुनियादारी में कदम रखता है तब उसे समाज व संसार का कोई अनुभव नहीं होता। उस समय उसका मस्तिष्क व मन निर्मल होता है, उसका व्यक्तित्व कच्ची मिट्टी की मूरत के समान होता है। बनाने वाला चाहे उसे राक्षस बनाए, चाहे देवता अर्थात् मित्रता का प्रभाव उसके चरित्र को किसी भी रूप में ढाल सकता है। ऐसे लोगों से भी मित्रता अच्छी नहीं होती, जो अधिक दृढ़ संकल्प वाले होते हैं, क्योंकि हम उनकी बात का विरोध नहीं कर सकते और हमें बिना सोचे-समझे उनकी बात माननी पड़ती है। बहुत देर में पता लगता है। बड़ा आश्चर्य इस बात पर भी है कि घोड़े खरीदते समय भी हम बहुत जाँच-परख कर ले ते हैं, किन्तु जब हम मित्र बनाते हैं, तब हम उसके पहले का आचरण एवं व्यवहार आदि की कु छ भी जाँच नहीं करते।



सच्चे मित्र के गुण 👉 एक विश्वासपात्र व सच्चा मित्र जीवन में औषधि के समान होता है। उसमें उत्तम वैद्य जैसी कु शलता और परख तथा अच्छी माता जैसा धैर्य व ममता होती है, जो हमें कु मार्ग पर जाने से रोकता है, गलतियों से बचाता है, निराश होने पर आशा का संचार करता है तथा सत्य, मर्यादा, कोमलता, शिष्टता व पवित्रता के प्रति हमारे मन में विचार जाग्रत करवाता है।छात्रावास में मित्र बनाने की धुन अलग ही होती है, जिन मित्रों के साथ उन्हें उनका वर्तमान आनन्दमय तथा भविष्य मनमोहक व सुनहरा प्रतीत होता है। इसके विपरीत एक युवा पुरुष की मित्रता शान्त, दृढ़ और गम्भीर होती है। सुन्दर रंग-रूप, चाल व स्वतन्त्र आचार-व्यवहार देखकर बनाए गए मित्र श्रेष्ठता की कसौटी पर खरे नहीं उतरते।

सच्चे मित्र का कर्तव्य 👇

रहना चाहिए, जिनमें अच्छाइयाँ कम और बुराइयाँ अधिक हों। जो इन्द्रिय-विषयों में स ही लिप्त हैं, जिनका मन नीच व कु त्सित विचारों से दूषित है, जो दूसरों की बुराइयों, बनाव- श्रृंगार व नशा आदि आदतों से घिरे हैं, ऐसे लोगों से हमें भूलकर भी मित्रता नहीं करनी चाहिए।

विपरीत स्वभाव होने पर भी मित्रता सम्भव

साथ ढूंढता है। जो लोग न कोई बुद्धिमानी की बात करते हैं, न सहानुभूति दिखाते हैं, न हमें कर्त्तव्य का ध्यान दिलाते हैं, न हमारे सुखदुःख में शामिल होते हैं, ऐसे लोगों से तो हमें दूर ही रहना चाहिए।

कु संगति जीवन के लिए हानिकारक कु संगति एक सबसे बड़ा दुर्गुण है। कु संग का ज्वर व्यक्ति की नीति, सद्वृत्ति व बुद्धि का नाश कर देता है। यह व्यक्ति को अवनति के गड्ढे में गिराता है, घड़ी भर का कु संग भी व्यक्ति को पतन की तरफ ले जाता है, जबकि अच्छी संगति से व्यक्ति दिन-प्रतिदिन उन्नति करता है। उसका चरित्र उज्ज्वल व निष्कलं क हो जाता है। अतः हमें बुरे लोगों की संगति से बचना चाहिए तथा उत्तम,सच्चरित्र, सच्चे, ईमानदार, विवेकशील लोगों के साथ ही रहना चाहिए और उन्हीं से मित्रता करनी चाहिए।

गद्यांशो पर आधारित प्रश्न

सन्दर्भ, रेखांकित अंश की व्याख्या व एक तथ्यपरक प्रश्न आयागा 2 + 2 +2 = 6 अंक प्राप्त

गद्यांश

1. लोग ऐसे समय में समाज में प्रवेश करके अपना कार्य आरम्भ करते हैं, जबकि हमारा चित्त कोमल और हर तरह का संस्कार ग्रहण करने योग्य रहता है। हमारे भाव अपरिमार्जि त और हमारी प्रवृत्ति अपरिपक्व रहती है। हम लोग कच्ची मिट्टी की मूर्ति के समान रहते हैं. जिसे जो जिस रूप का चाहे उस रूप का करे चाहे राक्षस बनावे, चाहे देवता ऐसे लोगों का साथ करना हमारे लिए बुरा है, जो - हमसे अधिक दृढ संकल्प के हैं। क्योंकि हमें उनकी हर एक बात बिना विरोध के मान ले नी पड़ती है। पर ऐसे लोगों का साथ करना और बुरा है, जो हमारी ही बात को ऊपर रखते हैं। क्योंकि ऐसी दशा में न तो हमारे ऊपर कोई दबाव रहता है और न हमारे लिए कोई सहारा रहता है।

गद्यांश

Q. लोग ऐसे समय में ............................................. सहारा रहता हैं।

सन्दर्भ : ब्याख्या :-

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी कहते हैं कि जब हम किशोरावस्था के पश्चात् युवावस्था में प्रवेश करने पर घर की सीमाओं से बाहर निकलकर समाज में कार्य करना आरम्भ करते हैं, तब हमें संसार व समाज के लोगों के साथ रहने का अनुभव बिल्कु ल नहीं होता, हमें दुनियादारी की बिल्कु ल समझ नहीं होती। उस समय हमारा मन बहुत कोमल होता है, जो किसी प्रकार के अच्छे या बुरे संस्कार ग्रहण करने के योग्य होता है। हमारी बुद्धि इतनी विकसित नहीं होती कि उसे उचित-अनुचित का ज्ञान हो पाए। उस समय हमारी बुद्धि कच्ची मिट्टी की मूर्ति के समान होती है, जिस पर अच्छी या बुरी किसी बात का प्रभाव बहुत जल्दी पड़ता है। उस समय हम जैसे स्वभाव के लोगों के सम्पर्क में आते हैं उनके विचारों का हमारे मन पर वैसा ही प्रभाव

ब्याख्या :-

गद्यांश

पड़ता है। यदि किसी सुयोग्य व्यक्ति के सम्पर्क में हम आ जाते हैं, तो हम में देवताओं जैसे अच्छे गुण व संस्कार आ जाते हैं। यदि किसी दुश्चरित्र व दुष्ट व्यक्ति का साथ मिल जाता है तो उसके सम्पर्क में रहकर हम भी दुर्गुण, बुरे संस्कार व घृणित कार्य करने वाले बनकर समाज में अपमानित होते हैं।

ऐसे समय में ही हमें एक सच्चे मित्र की आवश्यकता होती है, जो हमें सही मार्ग दिखाकर हमारे चरित्र व व्यक्तित्व को निखार दे। शुक्ल जी कहते हैं कि हम यदि ऐसे लोगों की संगति में रहने लग जाते हैं, जिनकी इच्छाशक्ति हम से प्रबल होती है तथा वह अधिक दृढ़ निश्चय वाले होते हैं, तब हम उनके सामने कु छ भी बोल नहीं पाते और हमें उन्हीं के विचारों व आदर्शो पर चुपचाप चलना पड़ता है। उनकी अच्छी व बुरी सभी बातों को हमें बिना विरोध के मानना पड़ता है फलस्वरूप हम कमजोर पड़ते जाते हैं तथा हमारी सोचने समझने की शक्ति व कार्यक्षमता घटती जाती है तथा दूसरी ओर, जो लोग हमसे कमजोर इच्छाशक्ति वाले हैं उनका साथ देना, दृढ़ इच्छाशक्ति वालों के साथ रहने से भी अधिक बुरा व हानिकारक है, क्योंकि वे हमेशा हमारी बात को ही ऊपर रखते हैं। हमेशा हमारी बातों को ही महत्त्व देते हैं, हमारी किसी भी बात का वे विरोध नहीं करते। ऐसे में सहयोग व विरोध के अभाव में हमारा व्यक्तित्व भी दब जाता है। अतः वे किसी प्रकार भी हमारा सहारा नहीं बन सकते।

प्रश्न - मित्र बनाते समय हमें किसकी आवश्यकता होती है? उत्तर - मित्र बनाते समय हमें सावधानी और समझदारी की आवश्यकता होती है, क्योंकि जहाँ अच्छे मित्रों से हममें देवताओं जैसे गुण आते हैं, तो वहीं दुश्चरित्र व दुष्ट व्यक्ति का साथ हमें दुर्गुण व राक्षसी प्रवृत्ति की ओर उन्मुख करता है।

प्रश्न - किशोरावस्था में हमें किसका अनुभव नहीं होता है? उत्तर - किशोरावस्था में हमें समाज और संसार का अनुभव नहीं होता अर्थात् इस अवस्था में हमें दुनियादारी की समझ नहीं होती है।

गद्यांश विश्वासपात्र मित्र जीवन की एक औषध है। हमें अपने मित्रों से यह आशा रखनी चाहिए कि वे उत्तम संकल्पों में हमें दृढ़ करेंगे दोषों और त्रुटियों से हमें बचाएं गे, हमारे सत्य, पवित्रता और मर्यादा के प्रेम को पुष्ट करेंगे, जब हम कु मार्ग पर पैर रखेंगे, तब वे हमें सचेत करेंगे, जब हम हतोत्साहित होंगे, तब हमें उत्साहित करेंगे सारांश यह है कि वे हमें उत्तमतापूर्वक जीवन निर्वाह करने में हर तरह से - सहायता देंगे। सच्ची मित्रता में उत्तम से उत्तम वैद्य की सी निपुणता और परख होती है, अच्छी से अच्छी माता की सी धैर्य और कोमलता होती ऐसी ही मित्रता करने का प्रयत्न प्रत्येक पुरुष को करना चाहिए।

गद्यांश विश्वासपात्र मित्र ........................ ............. करना चाहिए .....................................

संदर्भ : -

प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के गद्य खण्ड में संकलित 'मित्रता' नामक पाठ से लिया गया है। इसके ले खक 'आचार्य रामचन्द्र शुक्ल' हैं।

व्याख्या : -

आचार्य शुक्ल जी कहते हैं कि विश्वासपात्र मित्र दवा के समान होता है। जिस प्रकार अच्छी दवा ले ने से व्यक्ति का रोग दूर हो जाता है, उसी प्रकार विश्वासपात्र मित्र हमारे जीवन में आकर हमारे बुरे संस्कार व दुर्गुणरूपी रोगों से हमें मुक्ति दिलवाता है। हमें अपने मित्रों से यह आशा रखनी चाहिए कि वे हमें दोषों, अवगुणों व बुराइयों से बचाएँ और हमारे विचारों व संकल्पों को मजबूत बनाने में हमारी सहायता करें। हमारे हृदय में अच्छे विचारों को उत्पन्न करें तथा हमें हर प्रकार की बुराइयों से बचाते रहें। हमारे मन में सत्य, मर्यादा व पवित्रता के प्रति प्रेम विकसित करे। यदि हम किसी कारणवश या लोभवश किसी गलत मार्ग पर चल पड़े हैं, तब वे हमारा मार्गदर्शन करके हमें गलत रास्ते पर चलने से बचाए। यदि हम निराश व हताश हो जाएँ तो वह हमें सही मार्ग पर चलने के लिए प्रोत्साहित करें। तात्पर्य यह है कि वे हमें हर प्रकार से उत्तम जीवन जीने के लिए प्रेरित करें।

ब्याख्या : -

गद्यांश

गद्यांश प्रश्न - ले खक ने सच्ची मित्रता की तुलना किससे की है? उत्तर : -'मित्रता' पाठ के आधार पर विश्वासपात्र मित्र की तुलना औषधि अर्थात् दवा से की गई है। जिस प्रकार अच्छी औषधि रोगी का रोग दूर करती है, ठीक उसी प्रकार विश्वासपात्र मित्र हमारे बुरे संस्कारों व दुर्गुणरूपी रोगों से हमें मुक्ति दिलाता है।

प्रश्न -सच्चा मित्र हमारे जीवन में किस प्रकार सहायक है?

उत्तर : - सच्चा मित्र हमें हमारे दोषों से अवगत कराकर उन्हें दूर करवाता है, गलत कार्य करने से रोकता है, झूठ न बोलने और सत्य बोलने के लिए प्रेरित करता है तथा मर्यादा सम्पन्न जीवन व्यतीत करने में अर्थात् वह जीवन की प्रत्येक परिस्थिति में हमारे लिए सहायक होता है।

गद्यांश सुन्दर प्रतिमा, मनभावनी चाल और स्वच्छन्द प्रकृ ति ये ही दो चार बातें देखकर मित्रता की जाती है पर जीवन संग्राम में साथ - - देने वाले मित्रों में इनसे कु छ अधिक बातें होनी चाहिए मित्र के वल उसे नहीं करते, जिसके गुणों की तो हम प्रशंसा करें, पर जिससे हम स्नेह न कर सके , जिससे अपने छोटे मोटे काम तो हम निकालते जाएँ , पर भीतर ही भीतर घृणा करते रहे? मित्र सो पथ- प्रदर्शक के समान होना चाहिए, जिस पर हम पूरा विश्वास कर सके भाई के समान होना चाहिए, जिसे हम अपना प्रीति पात्र बना सके हमारे और हमारे मित्र के बीच सच्ची सहानुभूति होनी चाहिए. ऐसी सहानुभूति, जिससे एक के हानि लाभ को दूसरा अपना हानि - लाभ समझे।

गद्यांश

सुन्दर प्रतिमा ...................... लाभ समझे

सन्दर्भ : -

प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक के गद्य खण्ड में संकलित 'मित्रता' नामक पाठ से लिया गया है। इसके ले खक 'आचार्य रामचन्द्र शुक्ल' हैं।

ब्याख्या : -

आचार्य शुक्ल जी कहते हैं कि सच्चा मित्र किसे कहा जाए। सामान्यतः लोग मित्र का चयन करते समय उसका सुन्दर रंग-रूप, आकर्षक चाल-ढाल और उसकी स्वतन्त्र प्रवृत्ति से प्रभावित होकर ही उसे अपना मित्र बना ले ते हैं। उसके क्रिया-कलाप उन्हें इतना आकर्षि त करते हैं कि उसके गुणों व अवगुणों की तरफ उनका ध्यान ही नहीं जाता। यह बात गलत है, जीवन रूपी कर्म क्षेत्र में साथ देने वाले मित्रों में इतने ही गुण होना पर्याप्त नहीं है। उनमें इनसे बढ़कर कु छ और गुण भी होने चाहिए।

ब्याख्या:-

गद्यांश

शुक्ल जी के अनुसार, सच्चा मित्र वह नहीं हो सकता, जिसके गुणों व कार्यों की हम प्रशंसा तो करते हैं, ले किन अपने मन से उसे प्रेम नहीं करते। सच्चे मित्र को हृदय से प्रेम करना आवश्यक हो जाता है। यदि कोई ऐसा व्यक्ति है, जिससे हम अपने छोटे-मोटे काम तो निकलवातें रहते हैं, किन्तु हृदय में कहीं उसके लिए घृणा का भाव समाया हो, तो उसे हम अपना मित्र नहीं कह सकते उसे तो हमने के वल अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए अपना मित्र बनाया था। वह हमारा सच्चा शुभ चिन्तक नहीं हो सकता। शुक्ल जी कहते हैं कि मित्र के प्रति हमारे हृदय में सच्चा व निष्कपट प्रेम होना चाहिए तथा मित्र भी हमारा सच्चा मार्गदर्शक होना चाहिए, जिस पर हम पूर्ण रूप से विश्वास कर सकें । दोनों मित्रों में परस्पर सहानुभूति होनी चाहिए तथा भाई के समान निःस्वार्थ प्रेम होने के साथ-साथ एक-दूसरे की बात को सहन करन की शक्ति भी होनी मित्रता में दोनों मित्रों में ऐसे गुण होने चाहिए कि वे एक-दूसरे के हानि-लाभ को अपना ही हानि-लाभ समझें और एक-दूसरे के सुख-दुःख को अपना ही सुख-दुःख मान कर उसकी सहायता को सदैव तत्पर रहें।

गद्यांश प्रश्न - सच्चे मित्र का विशेष गुण कौन-सा है? उत्तर :- 'विश्वसनीयता' सच्चे मित्र का विशेष गुण होता है। प्रश्न - एक मित्र में किस प्रकार की सहानुभूति के गुण होने चाहिए?

उत्तर : - एक मित्र में सच्ची सहानुभूति के गुण होने चाहिए अर्थात् एक मित्र का हानि-लाभ, सुख-दुःख को दूसरा मित्र अपना हानि-लाभ, सुख-दुःख समझे।

गद्यांश मित्र का कर्तव्य इस प्रकार बताया गया है उच्च और महान कार्य में इस प्रकार सहायता देना मन बढ़ाना और साहस दिलाना कि तुम अपनी निज की सामर्थ्य से बाहर काम कर जाओ यह कर्तव्य उसी से पूरा होगा, जो दृढ़ चित्त और सत्य संकल्प का हो। इससे हमें ऐसे ही मित्रों की खोज में रहना चाहिए, जिनमें हम से अधिक आत्मबल हो। हमें उनका पल्ला उसी तरह पकड़ना चाहिए, जिस तरह सुग्रीव ने राम का पल्ला पकड़ा था। मित्र हों तो प्रतिष्ठित और शुद्ध हृदय के हों, मृदुल और पुरुषार्थी हों, शिष्ट और सत्यनिष्ठ हों, जिससे हम अपने को उनके भरोसे पर छोड़ सकें और यह विश्वास कर सकें कि उनसे किसी प्रकार का धोखा नहीं होगा।

गद्यांश मित्र का कर्तव्य ..................................... धोखा नहीं होगा।

सन्दर्भ -

प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक के गद्य खण्ड में संकलित 'मित्रता' नामक पाठ से लिया गया है। इसके ले खक 'आचार्य रामचन्द्र शुक्ल' हैं।

ब्याख्या -

आचार्य शुक्ल जी ने सच्चे और अच्छे मित्र के कर्त्तव्य बताते हुए कहा है कि सच्चा मित्र वही है, जो आवश्यकता पड़ने पर मित्र के बड़े-बड़े उच्च व महान् कार्यों में उसकी इस प्रकार सहायता करे कि वह अपनी शक्ति व सामर्थ्य से भी अधिक बढ़कर कार्य कर जाए। मित्र के विपत्तिग्रस्त होने पर वह ऐसे उसकी सहायता करे तथा इतना प्रोत्साहित करे कि वह उस कठिन कार्य को भी सूझ-बूझ व आसानी से पूर्ण कर ले तथा कभी भी अपने को अके ला समझ कर वह हताश व निराश न हो, वरन् उसका मनोबल बना रहे।

ब्याख्या -

गद्यांश

शुक्ल जी कहते हैं कि सहायता करना, उत्साहित करना व मनोबल बढ़ाने का कार्य वही व्यक्ति कर सकता है, जो स्वयं भी दृढ़ इच्छाशक्ति वाला, परिश्रमी तथा सत्य संकल्पों वाला हो। अतः मित्र बनाते समय हमें ऐसे ही व्यक्ति को ढूँढना चाहिए जो हम से भी अधिक साहसी, परिश्रमी, दृढ़ इच्छाशक्ति वाला व उच्च आत्मबल वाला हो। यदि सौभाग्य से ऐसा मित्र मिल जाता है तो फिर हमें उसका साथ नहीं छोड़ना चाहिए। जैसे वानर राज सुग्रीव ने श्रीराम की आत्मशक्ति, ओज व बल का विश्वास हो जाने पर ही उनका आश्रय ग्रहण किया और फिर कभी उनका साथ नहीं छोड़ा। श्रीराम की शक्ति के बल पर ही वह अपनी पत्नी व अपने राज्य को पुनः प्राप्त कर सके । श्रीराम जैसा मित्र पाकर तो सुग्रीव धन्य हो गया था। मित्र का चयन करते समय यह भी ध्यान रखना चाहिए कि मित्र ऐसा हो जिसकी समाज में प्रतिष्ठा व सम्मान हो, जो निश्छल व निष्कपट हृदय का हो, स्वभाव से मृदुल हो, परिश्रमी हो, सभ्य आचरण वाला हो, सत्यनिष्ठ हो अर्थात् सत्य का आचरण करने वाला हो। ऐसे उच्च आदर्शों व महान् गुणों से युक्त व्यक्ति के भरोसे ही स्वयं को छोड़ा जा सकता है अर्थात् ऐसे मित्र पर ही पूर्ण विश्वास किया जा सकता है कि उसके सम्पर्क में रहकर हमें किसी प्रकार का धोखा नहीं मिले गा। वह हमसे कोई भी छल-कपट युक्त व्यवहार नहीं करेगा।

गद्यांश प्रश्न - मित्र का कर्त्तव्य स्पष्ट कीजिए। प्रश्न - उपरोक्त गद्यांश के अनुसार वानर-राज सुग्रीव ने किसका आश्रय ग्रहण किया था? प्रश्न - मित्र का चयन करते समय हमें किस बात का ध्यान रखना चाहिए?

गद्यांश कु संग का ज्वर सबसे भयानक होता है। यह के वल नीति और सदवृत्ति ही नाश नहीं करता, बल्कि बुद्धि का भी आप करता है। किसी युवा पुरा की संगति यदि बुरी होगी तो वह उसके पैरों में बँधी चक्की के समान होगी, जो उसे दिन प्रतिदिन अवनति के गहढे में गिराती जाएगी और यदि अच्छी होगी तो सहारा देने वाली बाहु के समान होगी जो उसे निरन्तर उन्नति की ओर उठाती जाएगी।

गद्यांश कु संग का ज्वर ............................ उठाती जाएगी।

सन्दर्भ -

प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक के गद्य खण्ड में संकलित 'मित्रता' नामक पाठ से लिया गया है। इसके ले खक 'आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ' हैं।

ब्याख्या :-

आचार्य शुक्ल जी कहते हैं कि मानव जीवन पर संगति का प्रभाव सबसे अधिक पड़ता है। बुरे और दुष्ट लोगों की संगति घातक बुखार की तरह हानिकारक होती है। जिस प्रकार भयानक ज्वर व्यक्ति की सम्पूर्ण शक्ति व स्वास्थ्य को नष्ट कर देता है तथा कभी-कभी रोगी के प्राण भी ले ले ता है, उसी प्रकार बुरी संगति में पड़े हुए व्यक्ति की बुद्धि, विवेक, सदाचार, नैतिकता व सभी सद्गुण नष्ट हो जाते हैं तथा वह उचित-अनुचित व अच्छे-बुरे का विवेक भी खो देता है। मानव जीवन में युवावस्था सबसे महत्त्वपूर्ण अवस्था होती है। कु संगति किसी भी युवा पुरुष की सारी उन्नति व प्रगति को उसी तरह बाधित करती है, जिस प्रकार किसी व्यक्ति के पैर में बँधा हुआ भारी पत्थर उसको आगे नहीं बढ़ने देता, बल्कि उसकी गति को अवरुद्ध करता है। उसी प्रकार कु संगति भी हमारे विकास व उन्नति के मार्ग को अवरुद्ध करके अवनति व पतन की ओर धके ल देती है तथा दिन-प्रतिदिन विनाश की ओर अग्रसर करती है। दूसरी ओर, यदि युवा व्यक्ति की संगति अच्छी होगी तो वह उसको सहारा देने वाली बाहु (हाथ) के समान होगी, जो अवनति के गर्त में गिरने वाले व्यक्ति की भुजा पकड़कर उठा देती है तथा सहारा देकर खड़ा कर देती है और उन्नति के मार्ग पर अग्रसर कर देती है।

गद्यांश

प्रश्न - बुरी संगति से व्यक्ति को क्या हानि होती है? उत्तर :- बुरी संगति से होने वाली हानियाँ निम्नलिखित हैं (i) कु संगति व्यक्ति की बुद्धि-विवेक, सदाचार आदि का नाश करती है। (ii) कु संगति द्वारा मनुष्यों के सद्गुण, नैतिकता आदि का विनाश होता है। (ii) कु संगति व्यक्तियों को अवनति की गहरी खाई में धके लती है।

प्रश्न - अच्छी संगति से होने वाले लाभों को उदाहरण देकर समझाइए। उत्तर : - सुसंगति से होने वाले लाभ निम्नलिखित हैं (i) सुसंगति सद्गुणों का विकास करती है। (ii) व्यक्ति को समाज में प्रतिष्ठा दिलाती है। (iii) सुसंगति व्यक्ति को अवनति के गड्ढे में गिरने से बचाकर उसे उन्नति की ओर बढ़ावा देती है। (iv) सुसंगति जीवन की रक्षा करने वाली दवा के समान होती है।

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